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ढलती उम्र में आध्यात्मिक तौर पर फलते-फूलते रहना

ढलती उम्र में आध्यात्मिक तौर पर फलते-फूलते रहना

ढलती उम्र में आध्यात्मिक तौर पर फलते-फूलते रहना

“[जो] प्रभु के गृह में रोपे गए हैं; . . . वे वृद्धावस्था में भी फलते हैं।”—भजन 92:13, 14, नयी हिन्दी बाइबिल।

1, 2. (क) ‘बुढ़ापा’ शब्द सुनते ही अकसर लोगों के मन में क्या आता है? (ख) आदम के पाप के अंजामों का क्या होगा, इस बारे में बाइबल क्या कहती है?

 बुढ़ापा। यह शब्द सुनते ही आपके मन में क्या आता है? चेहरे पर झुर्रियाँ? कम सुनायी देना? हाथ-पैरों का काँपना? या सभोपदेशक 12:1-7 में बताए बुढ़ापे के “विपत्ति के दिन” की कोई और तकलीफ? अगर आपके मन में ये खयाल आते हैं, तो आपको एक बात याद रखने की ज़रूरत है। वह यह कि सभोपदेशक 12 में उम्र ढलने के साथ आनेवाली तकलीफों का जो ब्यौरा दिया गया है, वह सिरजनहार यहोवा परमेश्‍वर का मकसद कभी नहीं था। इसके बजाय, ये तकलीफें आदम के पाप का एक अंजाम हैं।—रोमियों 5:12.

2 उम्र ढलना, अपने आपमें एक शाप नहीं है। क्योंकि जीते रहने के लिए वक्‍त तो गुज़रेगा ही। दरअसल, सभी जीवित प्राणियों का बढ़ना और पूरी तरह विकसित होना ज़रूरी माना जाता है। और पिछले छः हज़ार सालों से, पाप और असिद्धता की वजह से जो नुकसान हुए हैं और जिन्हें हम अपने चारों तरफ देख सकते हैं, वे बहुत जल्द बीती बातें बनकर रह जाएँगे। तब आज्ञा माननेवाले सभी लोग वैसी ही ज़िंदगी का आनंद उठाएँगे, जैसी परमेश्‍वर ने इंसानों के लिए शुरू में चाही थी। यानी वे बूढ़े नहीं होंगे और ना ही उन्हें इसके साथ आनेवाली तकलीफों से गुज़रना पड़ेगा। यहाँ तक कि उन्हें मौत का भी सामना नहीं करना पड़ेगा। (उत्पत्ति 1:28; प्रकाशितवाक्य 21:4, 5) उस वक्‍त “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं।” (यशायाह 33:24) बुज़ुर्गों के “जवानी के दिन फिर लौट आएंगे” और उनकी “देह बालक की देह से अधिक स्वस्थ और कोमल हो जाएगी।” (अय्यूब 33:25) मगर उस वक्‍त के आने तक, सभी इंसानों को आदम से विरासत में मिले पाप के साथ जूझना पड़ेगा। लेकिन यहोवा के सेवकों की उम्र जैसे-जैसे ढलती है, उन्हें खास तरीकों से आशीष मिलती है।

3. मसीही कैसे “वृद्धावस्था में भी फलते” रह सकते हैं?

3 परमेश्‍वर का वचन हमें भरोसा दिलाता है कि “[जो] प्रभु के गृह में रोपे गए हैं; . . . वे वृद्धावस्था में भी फलते हैं।” (भजन 92:13, 14, नयी हिन्दी बाइबिल) भजनहार ने लाक्षणिक भाषा का इस्तेमाल करते हुए, एक बुनियादी सच्चाई बतायी कि परमेश्‍वर के वफादार, बुज़ुर्ग सेवक चाहे शरीर से कमज़ोर क्यों न होते जाएँ, मगर आध्यात्मिक तौर पर वे लगातार तरक्की कर सकते हैं, फल-फूल सकते हैं और कामयाब हो सकते हैं। बाइबल के और आज के ज़माने की बहुत-सी मिसालें दिखाती हैं कि यह बात एकदम सच है।

“कभी गैर-हाज़िर नहीं होती”

4. बुज़ुर्ग भविष्यवक्‍तिन, हन्‍नाह ने परमेश्‍वर के लिए अपनी भक्‍ति कैसे दिखायी, और उसे क्या आशीष मिली?

4 पहली सदी की भविष्यवक्‍तिन, हन्‍नाह की मिसाल पर गौर कीजिए। चौरासी की उम्र में भी वह “मन्दिर को नहीं छोड़ती थी [“मंदिर से कभी गैर-हाज़िर नहीं होती थी,” NW] पर उपवास और प्रार्थना कर करके रात-दिन उपासना किया करती थी।” हन्‍नाह का पिता लेवी गोत्र से नहीं बल्कि “अशेर के गोत्र” से था, साथ ही एक स्त्री होने के नाते, वह मंदिर में नहीं रह सकती थी। लेकिन फिर भी वह रोज़-ब-रोज़, सुबह चढ़ाए जानेवाली होमबलि से लेकर शाम को चढ़ाए जानेवाली होमबलि तक मंदिर में रहती थी। ज़रा सोचिए, हर दिन मंदिर आने के लिए वह कितनी मेहनत करती होगी! हन्‍नाह की भक्‍ति की वजह से उसे एक बड़ी आशीष मिली। वह उस वक्‍त मंदिर में मौजूद थी, जब यूसुफ और मरियम नन्हे यीशु को कानून-व्यवस्था के मुताबिक वहाँ लाए थे। यीशु को देखते ही, हन्‍नाह “प्रभु का धन्यवाद करने लगी, और उन सभों से, जो यरूशलेम के छुटकारे की बाट जोहते थे, उसके विषय में बातें करने लगी।”—लूका 2:22-24, 36-38; गिनती 18:6, 7.

5, 6. आज कई बुज़ुर्ग जन किन तरीकों से हन्‍नाह के जैसा जज़्बा दिखा रहे हैं?

5 आज हमारे बीच भी ऐसे कई बुज़ुर्ग जन हैं, जो हन्‍नाह के जैसा जज़्बा दिखाते हैं। वे नियमित तौर पर सभाओं में हाज़िर होते हैं, सच्ची उपासना के बढ़ते जाने के लिए पूरे दिल से प्रार्थना करते हैं, साथ ही उनमें सुसमाचार का प्रचार करने की गहरी इच्छा है। एक भाई, जिसकी उम्र 80 से ऊपर है, अपनी पत्नी के साथ बिना नागा मसीही सभाओं में हाज़िर होता। वह कहता है: “हमने सभाओं में जाना अपनी आदत बना ली है। जहाँ परमेश्‍वर के लोग होते हैं हम वहीं जाना चाहते हैं, और कहीं नहीं। क्योंकि वहीं हमें सुकून मिलता है।” हम सब के लिए यह क्या ही हौसला बढ़ानेवाला उदाहरण है!—इब्रानियों 10:24, 25.

6 जीन नाम की एक मसीही विधवा 80 की उम्र पार कर चुकी है। उसने अपनी ज़िंदगी में एक उसूल बनाया है। वह कहती है: “अगर सच्ची उपासना से जुड़ा कोई भी काम होता है और मैं उसे कर सकती हूँ, तो मैं ज़रूर करती हूँ।” वह आगे कहती है: “बेशक, मेरी ज़िंदगी में दुःख-भरे पल आते हैं, मगर यह ज़रूरी नहीं कि जब मैं दुःखी हूँ, तो दूसरे भी दुःखी हों। लेकिन जीन जब आध्यात्मिक तौर पर हौसला बढ़ानेवाले मौकों के लिए, दूसरे देशों में जाने के अपने अनुभव बताती है, तो खुशी से उसकी आँखें चमक उठती हैं। हाल ही में, वह अपने मसीही दोस्तों के साथ ऐसे ही दौरे के लिए एक देश गयी थी। वहाँ सैर करते वक्‍त उसने अपने दोस्तों से कहा: “मुझे और महल-किले नहीं देखने। मैं प्रचार के लिए जाना चाहती हूँ!” हालाँकि जीन इलाके की भाषा नहीं जानती थी, फिर भी वह बाइबल के संदेश में कई लोगों की दिलचस्पी जगाने में कामयाब रही। इसके अलावा, उसने कई सालों तक एक ऐसी कलीसिया में सेवा की है, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत थी। यह उसके लिए आसान नहीं था, क्योंकि उसे एक नयी भाषा सीखनी पड़ी और सभाओं में आने-जाने के लिए उसे दो घंटे का सफर तय करना पड़ता था।

दिमाग को दुरुस्त रखना

7. बुज़ुर्ग होने के बावजूद, मूसा ने परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत करने की ख्वाहिश कैसे ज़ाहिर की?

7 जैसे-जैसे वक्‍त बीतता जाता है, वैसे-वैसे इंसान ज़िंदगी में तजुरबा हासिल करता जाता है। (अय्यूब 12:12) मगर आध्यात्मिक तरक्की के मामले में ऐसा नहीं होता। इसलिए परमेश्‍वर के वफादार सेवक, बीते कल में हासिल किए ज्ञान पर ही निर्भर नहीं रहते, बल्कि वे वक्‍त के गुज़रते अपना ‘ज्ञान बढ़ाने’ के लिए मेहनत करते हैं। (नीतिवचन 9:9, बुल्के बाइबिल) जब यहोवा ने मूसा को ज़िम्मेदारी सौंपी थी, तब वह 80 साल का था। (निर्गमन 7:7) उसके ज़माने में लोगों का इतने साल तक जीना, एक अनोखी बात मानी जाती थी। क्योंकि मूसा ने लिखा था: ‘हमारी आयु के वर्ष सत्तर होते हैं, और बल के कारण अस्सी वर्ष भी हो सकते हैं।’ (भजन 90:10) मगर इतने बुज़ुर्ग होने पर भी, मूसा को कभी ऐसा नहीं लगा कि उसके सीखने की उम्र बीत चुकी है। उसने बरसों तक परमेश्‍वर की सेवा की, कई खास मौकों का आनंद उठाया और भारी ज़िम्मेदारियों को भी पूरा किया। इन सबके बावजूद, उसने यहोवा से गुज़ारिश की: “मुझे अपने मार्ग समझा दे, कि मैं तुझे जान सकूं।” (निर्गमन 33:13, NHT) मूसा की हमेशा यही ख्वाहिश थी कि यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता मज़बूत होता जाए।

8. नब्बे की उम्र पार करने के बाद भी दानिय्येल ने अपने दिमाग को कैसे दुरुस्त रखा, और इसके क्या नतीजे निकले?

8 दानिय्येल नबी की उम्र जब शायद 90 से भी ऊपर हो चुकी थी, तब भी वह पवित्र “शास्त्र” का गहराई से अध्ययन करता था। हो सकता है कि उस शास्त्र में लैव्यव्यवस्था, यशायाह, यिर्मयाह, होशे और आमोस की किताबें शामिल थीं। इन किताबों का अध्ययन करने से उसे जो समझ हासिल हुई, उससे प्रेरित होकर वह यहोवा से दिल से बिनती करने लगा। (दानिय्येल 9:1, 2) परमेश्‍वर ने उसकी प्रार्थना सुनी और उसे मसीहा के आने और भविष्य में सच्ची उपासना के बुलंद किए जाने के बारे में जानकारी दी।—दानिय्येल 9:20-27.

9, 10. कुछ लोगों ने अपने दिमाग को दुरुस्त रखने के लिए क्या किया है?

9 मूसा और दानिय्येल की तरह, हम भी अपने दिमाग को दुरुस्त रखने की कोशिश कर सकते हैं। कैसे? अपनी आखिरी साँस तक आध्यात्मिक बातों पर मन लगाने के ज़रिए। आज कई लोग ऐसा ही कर रहे हैं। वर्थ नाम का एक मसीही प्राचीन, जिसकी उम्र 80 से ऊपर है, “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग” के ज़रिए सच्चाई के बारे में दी जानेवाली समझ की ताज़ा जानकारी रखने की कोशिश करता है। (मत्ती 24:45) वह कहता है: “मुझे सच्चाई से गहरा लगाव है। और जब मैं इसकी रोशनी को और भी बढ़ते हुए देखता हूँ, तो मेरे अंदर सिहरन-सी दौड़ जाती है।” (नीतिवचन 4:18) उसी तरह, फ्रेड ने 60 से भी ज़्यादा साल पूरे समय की सेवा की है। आज भी उसे अपने मसीही भाई-बहनों के साथ बाइबल विषयों पर बातचीत शुरू करना बेहद पसंद है, क्योंकि इस तरह की चर्चाओं से उसमें जोश और उमंग भर आता है और उसे आध्यात्मिक बातों पर सोचते रहने में भी मदद मिलती है। वह कहता है: “मुझे बाइबल को अपने मन में जीवित रखना है।” फिर वह आगे बताता है: “अगर हम बाइबल को अपने मन में जीवित रखेंगे, यानी उसमें लिखी बातों को अच्छी तरह से समझेंगे और सीखी बातों का ‘खरी बातों के आदर्श’ के साथ मेल बिठाएँगे, तो हम देख पाएँगे कि बाइबल की अलग-अलग सच्चाइयाँ कैसे एक-दूसरे से गहरा ताल्लुक रखती हैं। ये सच्चाइयाँ, उन अनमोल रत्नों की तरह हैं जिन्हें बहुत ही खूबसूरत तरीके से एक हार में जड़ा गया है।”—2 तीमुथियुस 1:13.

10 यह ज़रूरी नहीं कि उम्र ढल जाने से एक इंसान कोई नया और मुश्‍किल काम नहीं सीख सकता। कई लोगों ने तो 60, 70, यहाँ तक कि 80 से ज़्यादा की उम्र में पढ़ना-लिखना सीखा है या कोई नयी भाषा सीखी है। कुछ यहोवा के साक्षियों ने दूसरे देश से आए लोगों को सुसमाचार सुनाने के लिए उनकी भाषाएँ सीखी हैं। (मरकुस 13:10) हैरी और उसकी पत्नी ने 60 से भी ज़्यादा की उम्र में पुर्तगाली भाषा के इलाके में मदद देने का फैसला किया। हैरी कहता है: “मैं मानता हूँ कि जैसे-जैसे उम्र ढलती जाती है, कोई भी काम करना मुश्‍किल हो जाता है।” फिर भी, मेहनत और लगन के साथ उन्होंने पुर्तगाली भाषा सीखी और उस भाषा में बाइबल अध्ययन चलाने लगे। इसके अलावा, हैरी कई सालों से ज़िला अधिवेशनों में पुर्तगाली में भाषण देता आया है।

11. हमें वफादार बुज़ुर्गों की मिसालों पर क्यों गौर करना चाहिए?

11 यह सच है कि हर किसी की सेहत या हालात उन्हें इस तरह की चुनौतियाँ कबूल करने की इजाज़त नहीं देते। तो फिर हमें ऊपर बताए बुज़ुर्गों की मिसालों पर क्यों गौर करना चाहिए? बेशक ये सब बताने का यह मकसद नहीं कि हम सभी को उनके जैसे काम करने की कोशिश करनी चाहिए। इसके बजाय, हमें उनकी मिसालों पर इसलिए गौर करना चाहिए ताकि हम उनके जैसा मज़बूत विश्‍वास पैदा कर सकें। इसी बात का बढ़ावा प्रेरित पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को दिया था, जब उसने कलीसिया के वफादार प्राचीनों के बारे में लिखा: “ध्यान से उन के चाल-चलन का अन्त देखकर उन के विश्‍वास का अनुकरण करो।” (इब्रानियों 13:7) जी हाँ, जब हम बुज़ुर्गों की मिसालों पर गौर करते हैं कि कैसे उनका मज़बूत विश्‍वास उन्हें जोश के साथ परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए उभारता है, तो हमें भी उनके जैसा विश्‍वास पैदा करने का बढ़ावा मिलता है। हैरी, जो अब 87 साल का है, बताता है कि क्या बात उसे सेवा के लिए उकसाती है: “मैं अपनी ज़िंदगी के बाकी सालों का बुद्धिमानी से इस्तेमाल करना चाहता हूँ और जितना हो सके, उतना यहोवा के काम आना चाहता हूँ।” फ्रेड को, जिसका ज़िक्र पहले भी किया गया है, बेथेल में जो काम दिया गया है, वह काम करने में उसे बड़ा संतोष मिलता है। वह कहता है: “आपको यह जानने की ज़रूरत है कि आप कैसे सबसे बढ़िया तरीके से यहोवा की सेवा कर सकते हैं, और फिर आपको वैसे ही करते रहना चाहिए।”

बदलते हालात के बावजूद परमेश्‍वर के लिए भक्‍ति दिखाना

12, 13. बर्जिल्लै के हालात बदल गए थे, फिर भी उसने परमेश्‍वर के लिए अपनी भक्‍ति कैसे दिखायी?

12 बुढ़ापे के साथ आनेवाले शारीरिक बदलावों का सामना करना मुश्‍किल हो सकता है। मगर इन बदलावों के बावजूद, परमेश्‍वर के लिए भक्‍ति दिखाना मुमकिन है। इस मामले में गिलादी बर्जिल्लै एक अच्छी मिसाल है। जब वह 80 की उम्र का था, तब उसने दाऊद और उसकी सेना को जो मेहमाननवाज़ी दिखायी, वह बड़ी अनोखी थी। उसने अबशालोम की बगावत के दौरान, उनके लिए खाने-पीने और रहने का बंदोबस्त किया। जब दाऊद अपनी सेना के साथ वापस यरूशलेम लौट रहा था, तो बर्जिल्लै उनके साथ यरदन नदी तक गया। उस वक्‍त, दाऊद ने उसके आगे शाही दरबारी बनने की पेशकश रखी। इस पर बर्जिल्लै ने क्या जवाब दिया? उसने कहा: “आज मैं अस्सी वर्ष का हूं; . . . क्या तेरा दास जो कुछ खाता पीता है उसका स्वाद पहिचान सकता है? क्या मुझे गवैय्यों वा गायिकाओं का शब्द अब सुन पड़ता है? . . . परन्तु तेरा दास किम्हाम उपस्थित है; मेरे प्रभु राजा के संग वह पार जाए; और जैसा तुझे भाए वैसा ही उस से व्यवहार करना।2 शमूएल 17:27-29; 19:31-40.

13 बर्जिल्लै के हालात बदल गए थे, फिर भी यहोवा के अभिषिक्‍त राजा को मदद देने में उससे जितना बन पड़ा, उसने किया। बर्जिल्लै जानता था कि स्वाद पहचानने और सुनने की उसकी शक्‍ति नहीं रही, फिर भी उसका मन कड़वा नहीं हुआ। इसके बजाय, उसने बिना किसी स्वार्थ के दाऊद से किम्हाम को अपने साथ ले जाने और उसे शाही दरबारी बनाने की सिफारिश की। इस तरह बर्जिल्लै ने दिखाया कि वह अंदर से कैसा इंसान है। उसकी तरह आज भी ऐसे कई बुज़ुर्ग जन हैं जिनमें किसी भी तरह का स्वार्थ नहीं है और जो दरियादिल हैं। सच्ची उपासना को बढ़ाने में उनसे जितना बन पड़ता है, वे करते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि “परमेश्‍वर ऐसे बलिदानों से प्रसन्‍न होता है।” वाकई, हमारे बीच मौजूद ऐसे वफादार जन हमारे लिए एक बड़ी आशीष हैं!—इब्रानियों 13:16.

14. यह बात कि दाऊद बूढ़ा हो चुका है, भजन 37:23-25 में लिखे उसके शब्दों को कैसे और भी जानदार बना देती है?

14 हालाँकि दाऊद की ज़िंदगी में कई बार हालात बदले, मगर उसे पक्का यकीन था कि यहोवा अपने वफादार सेवकों की देखभाल करना कभी नहीं छोड़ता। अपने जीवन के आखिरी दिनों में दाऊद ने एक गीत रचा, जिसे आज भजन 37 कहा जाता है। कल्पना कीजिए, दाऊद मनन कर रहा है और वीणा बजाते हुए गीत के ये बोल गा रहा है: “मनुष्य की गति यहोवा की ओर से दृढ़ होती है, और उसके चलन से वह प्रसन्‍न रहता है; चाहे वह गिरे तौभी पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका हाथ थांभे रहता है। मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूं; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े मांगते देखा है।” (भजन 37:23-25) यहोवा ने इस भजन में यह बताना ज़रूरी समझा कि दाऊद बूढ़ा हो चुका है। सचमुच, यह बात दिल की गहराई से लिखे दाऊद के शब्दों में और भी जान डाल देती है।

15. बदले हालात और बुढ़ापे में भी वफादार बने रहने में, प्रेरित यहून्‍ना ने कैसे एक बेहतरीन मिसाल कायम की?

15 प्रेरित यहून्‍ना एक और बेहतरीन मिसाल है, जो बदले हालात और ढलती उम्र में भी वफादार बना रहा। उसे यहोवा की सेवा करते हुए करीब 70 साल हो चुके थे, जब उसे देशनिकाला देकर पतमुस द्वीप भेजा गया। इसकी वजह यह थी कि वह “परमेश्‍वर के वचन, और यीशु की गवाही” देता था। (प्रकाशितवाक्य 1:9) लेकिन उसकी सेवा अभी खत्म नहीं हुई थी। दरअसल, बाइबल की जितनी किताबें यहून्‍ना ने लिखीं, वह उसने अपनी ज़िंदगी के आखिरी सालों के दौरान लिखीं। जब वह पतमुस द्वीप पर था, तब उसे प्रकाशितवाक्य का हैरतअंगेज़ दर्शन दिया गया, जिसे उसने बहुत ही ध्यान से दर्ज़ किया। (प्रकाशितवाक्य 1:1, 2) आम तौर पर यह माना जाता है कि रोमी सम्राट नरवा की हुकूमत के दौरान, यहून्‍ना को कैद से रिहा किया गया था। उसके बाद, करीब सा.यु. 98 में जब यहून्‍ना 90 या 100 साल का रहा होगा, तब उसने अपने नाम की सुसमाचार की किताब और तीन पत्रियाँ लिखीं।

धीरज धरने का एक बढ़िया रिकॉर्ड, जो कभी नहीं मिट सकता

16. जो बुज़ुर्ग ठीक से बातचीत नहीं कर पाते हैं, वे यहोवा के लिए अपनी भक्‍ति कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं?

16 बुढ़ापे में कई तरह की तकलीफें आती हैं, और कुछ लोगों में ये तकलीफें ज़्यादा होती हैं तो कुछ में कम। मिसाल के लिए, कुछ बुज़ुर्ग ठीक से बातचीत नहीं कर पाते हैं। लेकिन फिर भी वे यहोवा के प्यार और उसकी अपार कृपा की मीठी यादों को अपने दिल में सँजोए रखते हैं। हालाँकि वे मुँह से ज़्यादा नहीं बोल पाते, मगर अपने दिल में यहोवा से बार-बार यही कहते हैं: “अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।” (भजन 119:97) दूसरी तरफ, यहोवा उन्हें जानता है जो “उसके नाम का चिंतन करते” (नयी हिन्दी बाइबिल) हैं। वह यह भी जानता है कि वे दुनिया के उन ज़्यादातर इंसानों से बिलकुल अलग हैं, जो उसके मार्गों पर कोई ध्यान नहीं देते। (मलाकी 3:16; भजन 10:4) वाकई, यह जानकर हमें बड़ा सुकून मिलता है कि मनन करने पर हमारे अंदर जो अच्छे विचार उठते हैं, उससे यहोवा खुश होता है!—1 इतिहास 28:9; भजन 19:14.

17. जिन लोगों ने बरसों तक यहोवा की सेवा की है, उन्होंने कौन-सी अनोखी चीज़ हासिल की है?

17 इस सच्चाई को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि यहोवा के बुज़ुर्ग सेवकों ने एक अनोखी चीज़ हासिल की है। वह है धीरज धरने का एक बढ़िया रिकॉर्ड, जो कभी नहीं मिट सकता। यह रिकॉर्ड किसी और तरीके से नहीं, बल्कि बरसों तक यहोवा की वफादारी से सेवा करने के ज़रिए ही कायम होता है। यीशु ने कहा: “अपने धीरज से तुम अपने प्राणों को बचाए रखोगे।” (लूका 21:19) हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए धीरज धरना ज़रूरी है। आपमें से जितनों ने ‘परमेश्‍वर की इच्छा पूरी’ की है और अपने जीने के तरीके से वफादारी का सबूत दिया है, वे “प्रतिज्ञा का फल” पाने की आस लगाए रख सकते हैं।—इब्रानियों 10:36.

18. (क) यहोवा, बुज़ुर्गों की किस बात की कदर करता है? (ख) हम अगले लेख में क्या देखेंगे?

18 यहोवा, तन-मन से की गयी आपकी सेवा को अनमोल समझता है, फिर चाहे वह ज़्यादा हो या कम। हालाँकि उम्र के बढ़ने के साथ-साथ आपका “बाहरी मनुष्यत्व” नाश होता जाता है, फिर भी आपका “भीतरी मनुष्यत्व” दिन-ब-दिन नया बनता जा सकता है। (2 कुरिन्थियों 4:16) इसमें कोई शक नहीं कि आपने बीते कल में जो कुछ किया है, यहोवा उसकी कदर करता है। मगर यह बात भी एकदम साफ है कि आज आप उसके नाम के लिए जो कुछ कर रहे हैं, वह उसकी भी कदर करता है। (इब्रानियों 6:10) अगले लेख में, हम देखेंगे कि ऐसी वफादारी का दूसरों पर कितना ज़बरदस्त असर होता है। (w07 6/1)

आप क्या जवाब देंगे?

• हन्‍नाह ने आज के बुज़ुर्ग मसीहियों के लिए क्या बेहतरीन मिसाल रखी?

• यह क्यों ज़रूरी नहीं कि ढलती उम्र की वजह से एक इंसान कुछ भी हासिल नहीं कर सकता?

• बुज़ुर्ग जन परमेश्‍वर के लिए अपनी भक्‍ति कैसे लगातार ज़ाहिर कर सकते हैं?

• यहोवा, बुज़ुर्गों की सेवा को किस नज़रिए से देखता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीर]

बुज़ुर्ग दानिय्येल ने “शास्त्र” का अध्ययन करके समझा कि यहूदी कितने समय तक बंधुआई में रहेंगे

[पेज 25 पर तसवीरें]

कई बुज़ुर्ग जन, बिना नागा सभाओं में हाज़िर होने, जोश के साथ प्रचार करने और सीखने के लिए हमेशा तैयार रहने में अच्छी मिसाल हैं