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आपका आज्ञाकारी होना, यहोवा की नज़र में अनमोल है

आपका आज्ञाकारी होना, यहोवा की नज़र में अनमोल है

आपका आज्ञाकारी होना, यहोवा की नज़र में अनमोल है

“हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर।”—नीतिवचन 27:11.

1. आज पूरी दुनिया में, कौन-सा रवैया फैला हुआ है?

 मनमरज़ी करने और आज्ञा न मानने का रवैया, आज पूरी दुनिया में फैला हुआ है। ऐसा क्यों है? इसका जवाब हमें प्रेरित पौलुस की उस पत्री में मिलता है, जो उसने इफिसुस के मसीहियों को लिखी थी। उस पत्री में उसने समझाया: “तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात्‌ उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न माननेवालों में कार्य्य करता है।” (इफिसियों 2:1,2) वाकई, ‘आकाश के अधिकार के हाकिम,’ शैतान इब्‌लीस ने पूरी दुनिया को इस रवैए से भ्रष्ट कर रखा है। ऐसा उसने पहली सदी में किया था। और पहले विश्‍वयुद्ध के आस-पास, जब उसे स्वर्ग से खदेड़ा गया, तब से उसने अपनी कोशिशें और भी तेज़ कर दी हैं।—प्रकाशितवाक्य 12:9.

2, 3. यहोवा की आज्ञा मानने की हमारे पास क्या वजह हैं?

2 लेकिन मसीही होने के नाते, हम जानते हैं कि हमें सिर्फ यहोवा की आज्ञा माननी चाहिए। क्योंकि वही हमारा सिरजनहार, पालनहार, प्यार करनेवाला महाराजाधिराज और हमारा छुड़ानेवाला है। (भजन 148:5,6; प्रेरितों 4:24; कुलुस्सियों 1:13; प्रकाशितवाक्य 4:11) मूसा के दिनों में इस्राएली जानते थे कि यहोवा ही उनका जीवनदाता और उद्धारकर्ता है। इसलिए मूसा ने उनसे कहा: “तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार करने में चौकसी करना।” (व्यवस्थाविवरण 5:32) जी हाँ, इस्राएलियों को सिर्फ यहोवा की आज्ञा माननी थी। मगर बहुत जल्द उन्होंने उसकी आज्ञा माननी छोड़ दी।

3 इस जहान के सिरजनहार की आज्ञा मानना हमारे लिए कितना ज़रूरी है? गौर कीजिए कि एक मौके पर परमेश्‍वर ने नबी शमूएल के ज़रिए राजा शाऊल से क्या कहा था: “[आज्ञा] मानना तो बलि चढ़ाने से . . . उत्तम है।” (1 शमूएल 15:22, 23) वह क्यों?

आज्ञा मानना ‘बलि चढ़ाने से उत्तम’ क्यों है?

4. हम किस मायने में यहोवा को कुछ दे सकते हैं?

4 यहोवा पूरी कायनात का बनानेवाला है, इसलिए हमारा सबकुछ उसी का दिया हुआ है। तो फिर, क्या ऐसा कुछ है, जो हम उसे दे सकते हैं? जी हाँ, हम उसे जो दे सकते हैं, वह बहुत ही अनमोल है। और वह है, उसके आज्ञाकारी होना। यही बात हमें इस गुज़ारिश से भी पता चलती है: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा।” (नीतिवचन 27:11) शैतान ने दावा किया कि अगर इंसानों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़े, तो वे परमेश्‍वर के वफादार नहीं रहेंगे। लेकिन हममें से हरेक परमेश्‍वर का आज्ञाकारी होकर शैतान के इस दावे को झूठा साबित कर सकता है। फिर चाहे हमारे हालात कैसे भी हों या हमारी परवरिश किसी भी माहौल में हुई हो। शैतान को झूठा साबित करने का हमें क्या ही बड़ा सम्मान मिला है!

5. सिरजनहार की आज्ञा न मानने से उस पर कैसा असर होता है? उदाहरण देकर समझाइए।

5 परमेश्‍वर यह जानने में दिलचस्पी रखता है कि हम क्या फैसले करते हैं। अगर हम अपने फैसलों में उसकी आज्ञाओं को दरकिनार करें, तो इसका उस पर असर होता है। कैसा असर? वह हममें से किसी को भी गलत फैसला लेते देख बहुत दुःखी होता है। (भजन 78:40, 41) मान लीजिए, एक इंसान को शुगर की बीमारी है। उसके डॉक्टर ने उसे हिदायत दी है कि उसे क्या खाना चाहिए। लेकिन अगर वह डॉक्टर की बात न माने और वे सब चीज़ें खाए जो उसके लिए ज़हर साबित होंगी, तो सोचिए उसकी परवाह करनेवाले डॉक्टर को कैसा लगेगा? ज़ाहिर है उसे दुःख होगा। उसी तरह, यहोवा को भी उतना ही दुःख होता है, जब इंसान ज़िंदगी के बारे में दी उसकी हिदायतों को ठुकरा देते हैं। क्योंकि यहोवा जानता है कि ऐसा करने के बुरे अंजाम होते हैं।

6. परमेश्‍वर की आज्ञा मानने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

6 परमेश्‍वर की आज्ञा मानने में क्या बात हमारी मदद करेगी? इसके लिए, हममें से हरेक को परमेश्‍वर से “आज्ञा माननेवाला हृदय” (NW) माँगना चाहिए, ठीक जैसे राजा सुलैमान ने माँगा था। उसने ऐसा हृदय इसलिए माँगा था ताकि वह अपने इस्राएली भाइयों का न्याय करते वक्‍त ‘भले बुरे को परख सके।’ (1 राजा 3:9) आज, हमें भी ‘आज्ञा माननेवाले हृदय’ की ज़रूरत है, ताकि इस आज्ञा न माननेवाले संसार में रहकर हम भले-बुरे में फर्क कर सकें। ऐसा हृदय पाने के लिए परमेश्‍वर ने कई प्यार-भरे इंतज़ाम किए हैं। जैसे, उसका वचन बाइबल, बाइबल की समझ देनेवाली किताबें-पत्रिकाएँ, मसीही सभाएँ और परवाह करनेवाले कलीसिया के प्राचीन। क्या हम इन इंतज़ामों का पूरा-पूरा फायदा उठा रहे हैं?

7. यहोवा बलिदानों से ज़्यादा आज्ञा मानने पर क्यों ज़ोर देता है?

7 इसी सिलसिले में, याद कीजिए कि यहोवा ने बीते ज़माने में अपने लोगों को क्या जताया था। यही कि आज्ञा मानना, जानवरों के बलिदान चढ़ाने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है। (नीतिवचन 21:3, 27; होशे 6:6; मत्ती 12:7) यहोवा ने ऐसा क्यों कहा? क्या उसी ने लोगों को बलिदान चढ़ाने की आज्ञा नहीं दी थी? ज़रा सोचिए, एक इंसान किस इरादे से बलिदान चढ़ाता है? यहोवा को खुश करने के लिए? या बस खानापूर्ति के लिए? अगर वह सचमुच यहोवा को खुश करना चाहता है, तो वह उसकी सब आज्ञाओं को मानेगा। परमेश्‍वर को जानवरों के बलिदानों की कोई ज़रूरत नहीं। मगर जब हम उसकी आज्ञाएँ मानते हैं, तो हम उसे बलिदानों से कहीं ज़्यादा अनमोल चीज़ दे रहे होते हैं।

एक मिसाल, जो हमारे लिए एक चेतावनी है

8. परमेश्‍वर ने शाऊल को राजा के तौर पर क्यों ठुकरा दिया?

8 बाइबल में राजा शाऊल के बारे में दर्ज़ वाकया दिखाता है कि आज्ञा मानना कितनी अहमियत रखता है। जब शाऊल ने अपनी हुकूमत शुरू की थी, तब वह “अपनी दृष्टि में छोटा” था। यानी वह नम्र था और अपनी मर्यादा में रहता था। मगर वक्‍त के गुज़रते, उसके फैसलों से ज़ाहिर हुआ कि उसमें घमंड आ गया है। और अपने उन फैसलों को सही ठहराने के लिए उसने झूठी दलीलों का सहारा लिया। (1 शमूएल 10:21, 22; 15:17) एक मौके पर शाऊल को मैदाने-जंग में पलिश्‍तियों से लड़ना था। लड़ाई से पहले, शमूएल को यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाना था और उसे शाऊल को और भी हिदायतें देनी थीं। इसलिए उसने शाऊल को उसके आने का इंतज़ार करने को कहा। मगर जब शमूएल को आने में देर हुई, तो लोग तितर-बितर होने लगे। यह देखकर शाऊल ने खुद ‘होमबलि चढ़ायी।’ उसके इस काम से यहोवा बहुत क्रोधित हुआ। आखिरकार, जब शमूएल आया तो शाऊल उसे यह सफाई देने लगा कि आप वक्‍त पर नहीं आए, इसलिए ‘इच्छा न होते हुए भी’ मुझे परमेश्‍वर का अनुग्रह पाने के लिए होमबलि चढ़ानी पड़ी। राजा शाऊल की नज़र में बलिदान चढ़ाना ज़्यादा ज़रूरी था, ना कि उस हिदायत को मानना कि उसे शमूएल का इंतज़ार करना था। इस पर शमूएल ने उससे कहा: “तू ने मूर्खता का काम किया है; तू ने अपने परमेश्‍वर यहोवा की आज्ञा को नहीं माना।” यहोवा की आज्ञा न मानने की वजह से शाऊल को बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी। यहोवा ने उसे राजा के तौर पर ठुकरा दिया।—1 शमूएल 10:8; 13:5-13.

9. शाऊल ने कैसे दिखाया कि परमेश्‍वर की आज्ञा न मानना, उसकी आदत बन चुकी है?

9 क्या शाऊल ने इस घटना से कोई सबक सीखा? नहीं। आगे चलकर यहोवा ने शाऊल को आज्ञा दी कि वह अमालेकियों की पूरी जाति को नाश कर दे। इन अमालेकियों ने एक मरतबा इस्राएलियों पर बेवजह हमला किया था। यहोवा ने उनके मवेशियों तक को नाश करने का हुक्म दिया था। शाऊल ने यहोवा की आज्ञा मानते हुए “हवीला से लेकर शूर तक . . . अमालेकियों को मारा।” जब शमूएल उससे मिलने आया, तो शाऊल अपनी जीत पर बहुत खुश हुआ और शमूएल से कहने लगा: “तुझे यहोवा की ओर से आशीष मिले; मैं ने यहोवा की आज्ञा पूरी की है।” मगर शाऊल को जो साफ हिदायतें मिली थीं, उनको उसने पूरी तरह से नहीं माना था। शाऊल और उसकी प्रजा ने अमालेकियों के राजा अगाग को और “अच्छी से अच्छी भेड़-बकरियों, गाय-बैलों, मोटे पशुओं, और मेम्नों, और जो कुछ अच्छा था,” उनको बख्श दिया था। परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ने की जो गलती राजा शाऊल ने की थी, उसे वह यह कहकर सही ठहराने लगा: “प्रजा के लोगों ने अच्छी से अच्छी भेड़-बकरियों और गाय-बैलों को तेरे परमेश्‍वर यहोवा के लिये बलि करने को छोड़ दिया है।”—1 शमूएल 15:1-15.

10. शाऊल कौन-सा सबक सीखने से चूक गया था?

10 इस पर शमूएल ने शाऊल से कहा: “क्या यहोवा होमबलियों और मेलबलियों से उतना प्रसन्‍न होता है, जितना कि अपनी बात के माने जाने से प्रसन्‍न होता है? सुन, मानना तो बलि चढ़ाने से, और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है।” (1 शमूएल 15:22) जब यहोवा ने ही यह ठान लिया था कि उन मवेशियों को नाश कर दिया जाए, तो भला वह उन्हें बलिदान के तौर पर क्यों कबूल करता?

सब बातों में आज्ञाकारी रहिए

11, 12. (क) उपासना के मामले में, हम यहोवा को खुश करने के लिए जो मेहनत करते हैं, वह उसे किस नज़र से देखता है? (ख) किस तरह की सोच से एक इंसान खुद को धोखा दे सकता है?

11 यहोवा को यह देखकर क्या ही खुशी होती है, जब उसके वफादार सेवक ज़ुल्मों के बावजूद विश्‍वास में अटल बने रहते हैं, लोगों के दिलचस्पी न दिखाने पर भी राज्य का सुसमाचार सुनाते हैं और रोज़ी-रोटी कमाने का दबाव होने पर भी बिना नागा मसीही सभाओं में हाज़िर होते हैं। आध्यात्मिक ज़िंदगी के इन अहम पहलुओं में यहोवा के आज्ञाकारी होने से हम उसके मन को आनंदित करते हैं। जब हमारे दिल में यहोवा के लिए प्यार होता है और इस वजह से हम उसकी उपासना में अपना भरसक करते हैं, तो वह हमारी मेहनत को बहुत अनमोल समझता है। इंसान चाहे हमारी मेहनत को अनदेखा कर दें, मगर परमेश्‍वर ऐसा नहीं है। वह सच्चे दिल से चढ़ाए गए हमारे बलिदानों पर ध्यान देता है और उन्हें याद रखता है।—मत्ती 6:4.

12 फिर भी, परमेश्‍वर को पूरी तरह से खुश करने के लिए, हमें ज़िंदगी के हर दायरे में उसकी आज्ञा माननी चाहिए। हमें कभी-भी यह सोचकर खुद को धोखा नहीं देना चाहिए कि अगर हम कुछ मामलों में यहोवा की माँगें पूरी करते हैं, तो हमें दूसरे मामलों में छूट मिल सकती है। मिसाल के लिए, एक मसीही यह सोचकर खुद को धोखा दे सकता है कि अगर वह खानापूर्ति के लिए यहोवा की उपासना करता रहे, तो वह अनैतिकता या दूसरे गंभीर पाप करके उसकी सज़ा से बच सकता है। ऐसा सोचना कितनी बड़ी भूल है!—गलतियों 6:7, 8.

13. जब हम अकेले होते हैं, तो किन बातों से हमारी परख हो सकती है कि हम यहोवा के आज्ञाकारी रहेंगे या नहीं?

13 इसलिए हम खुद से यह पूछ सकते हैं, ‘क्या मैं अपने रोज़मर्रा के कामों में यहोवा की आज्ञा मानता हूँ और उस वक्‍त भी जब मैं अकेला होता हूँ?’ यीशु ने कहा था: “जो थोड़े से थोड़े में सच्चा है, वह बहुत में भी सच्चा है: और जो थोड़े से थोड़े में अधर्मी है, वह बहुत में भी अधर्मी है।” (लूका 16:10) क्या हम “अपने घर में” भी, जहाँ दूसरे हमें नहीं देख सकते, ‘मन की खराई के साथ चलते हैं’? (भजन 101:2) सचमुच, घर की चारदीवारी में भी हमारी खराई परखी जा सकती है। कुछ साल पहले, एक इंसान को अश्‍लील तसवीरें देखने के लिए उन जगहों पर जाना पड़ता था, जहाँ उसे ऐसा अश्‍लील मनोरंजन मिलता था। मगर आज बहुत-से देशों में, जहाँ कंप्यूटर लगभग हर घर में पहुँच चुका है, वहाँ एक इंसान बैठे-बैठे ही अश्‍लील तसवीरें देख सकता है। ऐसे में, क्या हम यीशु के इन शब्दों को दिल से मानेंगे: “जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका”? जी हाँ, क्या हम उन तसवीरों को भी देखने से इनकार करेंगे, जो अनैतिक इच्छाओं को बढ़ावा देती हैं? (मत्ती 5:28; अय्यूब 31:1, 9, 10; भजन 119:37; नीतिवचन 6:24, 25; इफिसियों 5:3-5) टी.वी. के उन कार्यक्रमों के बारे में क्या, जिनमें खून-खराबा दिखाया जाता है? क्या हम अपने परमेश्‍वर के जैसा नज़रिया रखते हैं, जो ‘उपद्रव से प्रीति रखनेवालों से अपनी आत्मा में घृणा करता है’? (भजन 11:5) या अकेले में हद-से-ज़्यादा शराब पीने के बारे में क्या? बाइबल पियक्कड़पन की निंदा तो करती ही है, मगर साथ ही, मसीहियों को यह चेतावनी भी देती है कि वे “बहुत ज़्यादा शराब” पीने के आदी न हो जाएँ।—तीतुस 2:3, NW; लूका 21:34, 35; 1 तीमुथियुस 3:3.

14. रुपए-पैसों के मामले में हम किन तरीकों से दिखा सकते हैं कि हम परमेश्‍वर की आज्ञा मानते हैं?

14 हमें एक और मामले में चौकस रहने की ज़रूरत है और वह है, रुपए-पैसों का मामला। उदाहरण के लिए, क्या हम रातों-रात अमीर बनने की ऐसी तरकीब आज़माएँगे, जो करीब-करीब धोखाधड़ी है? क्या हम ऐसे गैर-कानूनी तरीकों का सहारा लेने को लुभाए जाते हैं, जिससे हमें टैक्स न भरना पड़े? या इसके बजाय, क्या हम पूरी ईमानदारी से इस आज्ञा को मानते हैं कि “हर एक का हक्क चुकाया करो, जिसे कर चाहिए, उसे कर दो”?—रोमियों 13:7.

प्यार की वजह से आज्ञा मानना

15. आप यहोवा की आज्ञा क्यों मानते हैं?

15 परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानने से हमें आशीषें मिलती हैं। मिसाल के लिए, अगर हम तंबाकू का सेवन न करें, अपना चालचलन शुद्ध बनाए रखें और लहू की पवित्रता का आदर करें, तो हम कुछ बीमारियों से बच सकते हैं। इसके अलावा, ज़िंदगी के दूसरे पहलुओं में बाइबल के मुताबिक जीने से हमें आर्थिक, सामाजिक, या पारिवारिक रूप से भी फायदे हो सकते हैं। (यशायाह 48:17) इस तरह के फायदों को आशीषें माना जा सकता है और ये साबित करते हैं कि परमेश्‍वर के नियम व्यावहारिक हैं। लेकिन यहोवा की आज्ञा मानने की सबसे बड़ी वजह यह नहीं कि हम उससे आशीषें पाना चाहते हैं, बल्कि यह है कि हम उससे प्यार करते हैं। हम अपने स्वार्थ के लिए यहोवा की सेवा नहीं करते हैं। (अय्यूब 1:9-11; 2:4, 5) यहोवा ने हमें यह चुनने की आज़ादी दी है कि हम किसकी आज्ञा मानेंगे। और हमने यहोवा की आज्ञा मानने का चुनाव किया है, क्योंकि हम उसे खुश करना चाहते हैं और वही करना चाहते हैं जो सही है।—रोमियों 6:16, 17; 1 यूहन्‍ना 5:3.

16, 17. (क) यहोवा के लिए गहरा प्यार होने की वजह से यीशु ने उसकी आज्ञा कैसे मानी? (ख) हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

16 यहोवा के लिए गहरा प्यार होने की वजह से ही यीशु ने उसकी आज्ञा मानने में सबसे उम्दा मिसाल कायम की। (यूहन्‍ना 8:28, 29) जब वह धरती पर था, तो उसने “दुख उठा उठाकर आज्ञा माननी सीखी।” (इब्रानियों 5:8, 9) कैसे? यीशु ने “अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।” (फिलिप्पियों 2:7, 8) हालाँकि यीशु ने स्वर्ग में साबित कर दिखाया था कि वह आज्ञाकारी है, मगर धरती पर उसके इस गुण को और भी परखा गया। इसलिए हम पक्का यकीन रख सकते हैं कि यीशु महायाजक के तौर पर अपने आध्यात्मिक भाइयों और दूसरे विश्‍वासी लोगों की सेवा करने के लिए पूरी तरह से काबिल है।—इब्रानियों 4:15; 1 यूहन्‍ना 2:1, 2.

17 हमारे बारे में क्या? अगर हम अपनी ज़िंदगी में परमेश्‍वर की मरज़ी को पहली जगह दें, तो हम यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं। (1 पतरस 2:21) हमें सच्ची खुशी तब मिल सकती है, जब यहोवा के लिए हमारा प्यार हमें हर समय उसकी आज्ञा मानने को उकसाता है। उस समय भी जब उसकी आज्ञा तोड़ने का हम पर ज़बरदस्त दबाव आता है या ऐसा करने के लिए हम लुभाए जाते हैं। (रोमियों 7:18-20) यहोवा की आज्ञा मानने में उन हिदायतों को खुशी-खुशी मानना भी शामिल है, जो सच्ची उपासना में अगुवाई करनेवाले हमें देते हैं, फिर चाहे ये अगुवे असिद्ध ही क्यों न हों। (इब्रानियों 13:17) जब हम अपनी निजी ज़िंदगी में यहोवा की आज्ञाओं को मानते हैं, तो यह उसकी नज़रों में अनमोल ठहरता है।

18, 19. जब हम दिल से परमेश्‍वर की आज्ञा मानते हैं, तो इसका क्या नतीजा निकलता है?

18 आज, यहोवा की आज्ञा मानने का यह मतलब हो सकता है कि हमें अपनी खराई बनाए रखने के लिए ज़ुल्म सहना पड़े। (प्रेरितों 5:29) इसके अलावा, यहोवा ने प्रचार करने और लोगों को सिखाने की जो आज्ञा दी है, उसे मानने के लिए हमें इस व्यवस्था के अंत तक धीरज धरना होगा। (मत्ती 24:13, 14; 28:19, 20) संसार की तरफ से आनेवाले दबावों के बावजूद, हमें अपने भाई-बहनों के साथ लगातार इकट्ठा होने के लिए भी धीरज की ज़रूरत है। इन मामलों में आज्ञाकारी बने रहने के लिए हम जो मेहनत करते हैं, उससे हमारा प्यारा परमेश्‍वर अच्छी तरह वाकिफ है। फिर भी, पूरी तरह से आज्ञाकारी बने रहने के लिए, हमें अपने पापी शरीर से लड़ना और बुरी बातों से दूर रहना होगा। साथ ही, अच्छी बातों के लिए कदर बढ़ानी होगी।—रोमियों 12:9.

19 जब हम प्यार की वजह से और एहसान-भरे दिल से यहोवा की सेवा करते हैं, तो वह हमें यानी “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।” (इब्रानियों 11:6) यहोवा को सही किस्म के बलिदान चढ़ाना ज़रूरी है और यह उसके मन को भी भाता है। मगर उसे सबसे ज़्यादा खुशी इस बात से मिलती है कि हम प्यार की वजह से उसकी हर आज्ञा मानते हैं।—नीतिवचन 3:1, 2. (w07 6/15)

आप क्या जवाब देंगे?

• हम ऐसा क्यों कह सकते हैं कि हम यहोवा को कुछ दे सकते हैं?

• शाऊल ने क्या गलतियाँ कीं?

• आप कैसे दिखा सकते हैं कि आप आज्ञा मानने को बलिदान चढ़ाने से उत्तम समझते हैं?

• क्या बात आपको यहोवा की आज्ञा मानने के लिए उकसाती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 21 पर तसवीर]

राजा शाऊल पर यहोवा का क्रोध क्यों भड़क उठा?