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“भलाई से बुराई को जीत लो”

“भलाई से बुराई को जीत लो”

“भलाई से बुराई को जीत लो”

“बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई को जीत लो।”—रोमियों 12:21.

1. हम इतने यकीन से क्यों कह सकते हैं कि हम बुराई पर जीत हासिल कर सकते हैं?

 क्या सच्ची उपासना का कड़ा विरोध करनेवालों के खिलाफ, हम डटे रह सकते हैं? क्या हम उन दबावों का सामना कर सकते हैं, जो हमें अधर्मी संसार की तरफ लौट जाने के लिए लुभाते हैं? बेशक, हम कर सकते हैं! हम इतने यकीन के साथ ऐसा क्यों कह सकते हैं? वह इसलिए कि प्रेरित पौलुस ने रोमियों को लिखी अपनी पत्री में कहा: “बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई को जीत लो।” (रोमियों 12:21) अगर हम यहोवा पर पूरा भरोसा रखें और यह ठान लें कि हम अपने ऊपर संसार का कोई ज़ोर नहीं चलने देंगे, तो उसकी बुराइयाँ हमको हरा नहीं सकेंगी। यही नहीं, “बुराई को जीत लो” ये शब्द ज़ाहिर करते हैं कि हम बुराई पर जीत हासिल कर सकते हैं, बशर्ते हम उसके खिलाफ अपनी आध्यात्मिक लड़ाई जारी रखें। यह दुष्ट संसार और इसका सरदार शैतान, सिर्फ उन्हीं लोगों पर हावी होते हैं, जो चौकस नहीं रहते और अपनी लड़ाई छोड़ देते हैं।—1 यूहन्‍ना 5:19.

2. हम क्यों नहेमायाह की ज़िंदगी में हुई, कुछ घटनाओं पर ध्यान देंगे?

2 परमेश्‍वर के एक सेवक ने यह साबित कर दिखाया था कि बुराई पर जीत हासिल करने की पौलुस की बात कितनी सच है। यह सेवक, पौलुस के ज़माने से कुछ 500 साल पहले यरूशलेम में जीया था। वह कौन था? वह था, नहेमायाह। उसने अधर्मी लोगों के विरोध का डटकर सामना किया। इतना ही नहीं, उसने भलाई से बुराई पर जीत भी हासिल की। उसे किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा था? और ऐसा करने में किस बात ने उसकी मदद की? हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? इन सवालों के जवाब पाने के लिए, आइए हम नहेमायाह की ज़िंदगी में हुई, कुछ घटनाओं पर ध्यान दें। *

3. नहेमायाह किन लोगों के बीच रहता था और उसने क्या कामयाबी हासिल की?

3 नहेमायाह, फारसी राजा अर्तक्षत्र के राजदरबार में सेवा करता था। हालाँकि वह ऐसे लोगों के बीच रहता था, जो परमेश्‍वर के उपासक नहीं थे। फिर भी, वह उस ज़माने के ‘संसार के सदृश नहीं बना।’ (रोमियों 12:2) जब यहूदा में ज़रूरत की घड़ी आन पड़ी, तो उसने अपनी आराम की ज़िंदगी छोड़ दी और यरूशलेम तक का लंबा और थकाऊ सफर तय किया। वहाँ पहुँचकर, उसने यरूशलेम की टूटी शहरपनाह को दोबारा बनाने का भारी ज़िम्मा अपने कंधों पर लिया। (रोमियों 12:1) हालाँकि वह यरूशलेम का राज्यपाल था, मगर हर दिन वह अपने इस्राएली भाइयों के साथ “पौ फटने से तारों के निकलने” तक खूब मेहनत करता था। नतीजा, बस दो महीने के अंदर ही शहरपनाह बनकर तैयार हो गयी! (नहेमायाह 4:21; 6:15) यह एक बड़ी कामयाबी थी, क्योंकि शहरपनाह बनाते वक्‍त उसे और इस्राएलियों को तरह-तरह के विरोध का सामना करना पड़ा। नहेमायाह के विरोधी कौन थे और उनका इरादा क्या था?

4. नहेमायाह के दुश्‍मनों ने क्या ठान लिया था?

4 नहेमायाह के खास विरोधी थे, सम्बल्लत, तोबियाह और गेशेम। ये तीनों यहूदा के आस-पास रहते थे और उनका काफी दबदबा था। वे परमेश्‍वर के लोगों के दुश्‍मन थे, इसलिए “यह सुनकर कि [नहेमायाह] इस्राएलियों के कल्याण का उपाय करने को आया है . . . [उन्हें] बहुत बुरा लगा।” (नहेमायाह 2:10, 19) नहेमायाह के दुश्‍मनों ने ठान लिया कि वे शहरपनाह बनाने के उसके काम को बंद करवाकर ही दम लेंगे, इसके लिए उन्होंने घिनौनी साज़िशें भी रचीं। ऐसे में, क्या नहेमायाह ‘बुराई के आगे हार मान लेता’?

बुरा मानकर रिसियाने लगा

5, 6. (क) जब नहेमायाह के दुश्‍मनों ने देखा कि शहरपनाह बनायी जा रही है, तो वे क्या करने लगे? (ख) नहेमायाह, दुश्‍मनों से क्यों नहीं डरा?

5 नहेमायाह ने यह कहकर, अपने लोगों की हिम्मत बँधायी: “आओ, हम यरूशलेम की शहरपनाह को फिर से बनाएं।” (NHT) इस पर लोगों ने कहा: ‘हम बनाएंगे।’ नहेमायाह आगे बताता है कि क्या हुआ: “उन्हों ने इस भले काम को करने के लिये हियाव बान्ध लिया।” मगर विरोधी “हमें ठट्ठों में उड़ाने लगे; और हमें तुच्छ जानकर कहने लगे, यह तुम क्या काम करते हो। क्या तुम राजा के विरुद्ध बलवा करोगे?” लेकिन नहेमायाह उनके तानों और झूठे इलज़ामों से नहीं डरा। उसने विरोधियों से कहा: “स्वर्ग का परमेश्‍वर हमारा काम सुफल करेगा, इसलिये हम उसके दास कमर बान्धकर बनाएंगे।” (नहेमायाह 2:17-20) नहेमायाह ने पक्का इरादा कर लिया था कि वह शहरपनाह बनाने के “भले काम” को करता रहेगा।

6 उनमें से एक विरोधी, सम्बल्लत ‘बुरा मानकर रिसियाने लगा’ और वह यहूदियों के खिलाफ पहले-से-ज़्यादा ज़हर उगलने लगा। उसने खिल्ली उड़ाते हुए कहा: “वे निर्बल यहूदी क्या किया चाहते हैं? . . . क्या वे मिट्टी के ढेरों में के जले हुए पत्थरों को फिर नये सिरे से बनाएंगे?” तोबियाह ने भी मज़ाक उड़ाते हुए कहा: “यदि कोई गीदड़ भी उस पर चढ़े, तो वह उनकी बनाई हुई पत्थर की शहरपनाह को तोड़ देगा।” (नहेमायाह 4:1-3) यह सुनकर नहेमायाह ने क्या किया?

7. जब विरोधियों ने झूठे इलज़ाम लगाए, तो नहेमायाह ने क्या किया?

7 नहेमायाह ने विरोधियों के ठट्ठों और तानों को अनसुना कर दिया। उसने परमेश्‍वर की आज्ञा मानते हुए उनसे बदला लेने की कोशिश नहीं की। (लैव्यव्यवस्था 19:18) इसके बजाय, उसने मामले को यहोवा के हाथ में छोड़ दिया और प्रार्थना की: “हे हमारे परमेश्‍वर सुन ले, कि हमारा अपमान हो रहा है; और उनका किया हुआ अपमान उन्हीं के सिर पर लौटा दे।” (नहेमायाह 4:4) नहेमायाह ने यहोवा के वादे पर भरोसा रखा: “पलटा लेना और बदला देना मेरा ही काम है।” (व्यवस्थाविवरण 32:35) इतना ही नहीं, नहेमायाह और उसके लोग ‘शहरपनाह बनाते रहे।’ उन्होंने अपना ध्यान भटकने नहीं दिया। नतीजा, “सारी शहरपनाह आधी ऊंचाई तक जुड़ गई। क्योंकि लोगों का मन उस काम में नित लगा रहा।” (नहेमायाह 4:6) सच्ची उपासना के दुश्‍मनों को मुँह की खानी पड़ी! वे शहरपनाह बनाने का काम नहीं रोक पाए। हम नहेमायाह की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

8. (क) जब विरोधी हम पर झूठे इलज़ाम लगाते हैं, तब हम नहेमायाह की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? (ख) बदला न लेने में ही समझदारी है, इस बारे में ऐसा कोई अनुभव बताइए, जो आपके साथ हुआ हो या जिसके बारे में आपने सुना हो।

8 आज हम नौकरी की जगह पर, स्कूल में, या फिर घरवालों के ही मज़ाक और झूठे इलज़ामों का निशाना बन सकते हैं। लेकिन अकसर ऐसे हालात से निपटने के लिए बाइबल के इस उसूल को मानना सबसे अच्छा होता है: ‘चुप रहने का भी समय है।’ (सभोपदेशक 3:1, 7) इसलिए नहेमायाह की मिसाल पर चलते हुए, हम बदले में जली-कटी बातें कहने से दूर रहते हैं। (रोमियों 12:17) साथ ही, हम परमेश्‍वर से प्रार्थना करते हैं और उसके इस वादे पर भरोसा रखते हैं: “मैं ही बदला दूंगा।” (रोमियों 12:19; 1 पतरस 2:19, 20) इस तरह हम विरोधियों को कोई मौका नहीं देते कि वे हमारा ध्यान उस काम से भटका दें, जिसे आज किया जाना है। और वह काम है, परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना और चेला बनाना। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) जब हम विरोध के बावजूद लगातार प्रचार में हिस्सा लेते हैं, तो हम नहेमायाह की तरह वफादारी दिखा रहे होते हैं।

हम तुझे घात कर देंगे

9. नहेमायाह के दुश्‍मनों ने किस तरह विरोध की आग भड़कायी और बदले में, नहेमायाह ने क्या किया?

9 नहेमायाह के ज़माने में, सच्ची उपासना के दुश्‍मनों ने जब सुना कि “यरूशलेम की शहरपनाह की मरम्मत होती जाती है,” तो उन्होंने ‘यरूशलेम से लड़ने’ के लिए अपनी-अपनी तलवारें उठा लीं। यहूदियों के लिए ये हालात मायूस कर देनेवाले थे। क्योंकि यरूशलेम चारों तरफ से दुश्‍मनों से घिरा हुआ था। उत्तर में सामरी, दक्षिण में अरब के लोग, पूरब में अम्मोनी और पश्‍चिम में अशदोदी थे। ऐसा मालूम होता है कि शहरपनाह बनानेवाले बुरी तरह फँस चुके थे! अब वे क्या करते? नहेमायाह बताता है कि उन्होंने क्या किया: “हम लोगों ने अपने परमेश्‍वर से प्रार्थना की।” फिर दुश्‍मनों ने यह धमकी दी: ‘हम उन्हें घात करके वह काम बन्द कर देंगे।’ इस पर नहेमायाह ने क्या किया? उसने शहर की हिफाज़त के लिए शहरपनाह बनानेवालों को “तलवारें, बर्छियां और धनुष देकर” तैनात कर दिया। यह सच है कि इंसानी नज़रिए से देखें, तो मुट्ठी-भर यहूदियों का दुश्‍मन की ताकतवर सेना से जीत पाना नामुमकिन था। मगर नहेमायाह ने यह कहकर उनकी हौसला-अफज़ाई की: ‘मत डरो; प्रभु जो महान और भययोग्य है, उसी को स्मरण करो।’—नहेमायाह 4:7-9, 11, 13, 14.

10. (क) दुश्‍मन सेनाएँ अचानक पीछे क्यों हट गयीं? (ख) नहेमायाह ने क्या कदम उठाए?

10 देखते-ही-देखते, हालात बदल गए। दुश्‍मन सेनाओं ने हमला नहीं किया। क्यों? नहेमायाह बताता है: “परमेश्‍वर ने उनकी युक्‍ति निष्फल की है।” लेकिन नहेमायाह ने महसूस किया कि दुश्‍मनों का खतरा अभी टला नहीं है। इसलिए उसने समझदारी से काम लिया और शहरपनाह बनानेवालों के काम करने के तरीके में थोड़ा फेरबदल किया। उसके बाद से, वे “एक हाथ से काम करते थे और दूसरे हाथ से हथियार पकड़े रहते थे।” नहेमायाह ने एक ‘नरसिंगे फूंकनेवाले’ को भी ठहराया, ताकि अगर दुश्‍मनों ने हमला किया, तो वह शहरपनाह बनानेवालों को खबरदार कर सके। मगर सबसे बढ़कर, नहेमायाह ने लोगों को यकीन दिलाया कि “हमारा परमेश्‍वर हमारी ओर से लड़ेगा।” (नहेमायाह 4:15-20) इन सब बातों से शहरपनाह बनानेवालों का हौसला बढ़ा और वे हमले के लिए कमर कसकर तैयार हो गए। साथ ही, वे शहरपनाह बनाने के काम में लगे रहे। इससे हम क्या सबक सीखते हैं?

11. जिन देशों में प्रचार काम पर पाबंदी लगी है, वहाँ सच्चे मसीहियों को बुराई के खिलाफ डटे रहने में क्या बात मदद करती है, और वे कैसे भलाई से बुराई को जीत लेते हैं?

11 कभी-कभी, सच्चे मसीहियों को कड़े विरोध का सामना करना पड़ता है। दरअसल, कुछ देशों में सच्ची उपासना के खूँखार दुश्‍मन, एक ताकतवर सेना की तरह हमारा विरोध करते हैं। इंसानी नज़रिए से देखें, तो उन देशों में हमारे भाई-बहनों का दुश्‍मनों से जीत पाना नामुमकिन है। लेकिन उन्हें पूरा यकीन है कि ‘परमेश्‍वर उनकी ओर से लड़ेगा।’ वाकई, अपने विश्‍वास की खातिर सताए जानेवाले साक्षियों ने हर बार यह अनुभव किया है कि यहोवा उनकी प्रार्थनाओं का जवाब देता है और ताकतवर दुश्‍मनों की ‘युक्‍ति निष्फल करता है।’ इसके अलावा, उन देशों में जहाँ राज्य के काम पर पाबंदी लगी है, वहाँ पर भी मसीही अलग-अलग तरीके ढूँढ़कर, सुसमाचार का प्रचार करते रहते हैं। नहेमायाह के दिनों में, जिस तरह शहरपनाह बनानेवालों ने अपने काम करने के तरीके में फेरबदल किए थे, यहोवा के साक्षी भी वैसा ही करते हैं। जब वे दुश्‍मनों का निशाना बनते हैं, तो वे समझदारी से काम लेते हैं और प्रचार के अपने तरीकों में फेरबदल करते हैं। मगर हाँ, वे हथियार कभी नहीं उठाते। (2 कुरिन्थियों 10:4) और जब उन्हें मारने की धमकी जाती है, तब भी वे प्रचार करना नहीं छोड़ते। (1 पतरस 4:16) उलटा, ये दिलेर भाई-बहन ‘भलाई से बुराई को जीत लेते हैं।’

आ, हम एक दूसरे से भेंट करें

12, 13. (क) नहेमायाह के दुश्‍मनों ने सीधे-सीधे विरोध न करके अब क्या किया? (ख) नहेमायाह ने दुश्‍मनों से मुलाकात करने की पेशकश को क्यों ठुकरा दिया?

12 नहेमायाह के दुश्‍मन समझ गए थे कि सीधे-सीधे विरोध करने का कोई फायदा नहीं। इसलिए वे अब धूर्त चालें चलने लगे। उन्होंने तीन तरह की साज़िशें रचीं। वे क्या थीं?

13 पहली, नहेमायाह के दुश्‍मनों ने उसकी आँखों में धूल झोंकने की कोशिश की। उन्होंने उससे कहा: “आ, हम ओनो के मैदान के किसी गांव में एक दूसरे से भेंट करें।” ओनो नगर, यरूशलेम और सामरिया के बीच में बसा था। इसलिए दुश्‍मनों ने मतभेद सुलझाने के लिए उसके आगे ओनो में मुलाकात करने की पेशकश रखी। नहेमायाह सोच सकता था: ‘बात तो वे अक्लमंदी की कर रहे हैं। जब बातचीत से मामला सुलझ सकता है, तो लड़ाई करने का क्या फायदा।’ लेकिन नहेमायाह ने उनसे मिलने से साफ इनकार कर दिया। उसने ऐसा क्यों किया? वह समझाता है: “वे मेरी हानि करने की इच्छा करते थे।” वह समझ गया कि इस साज़िश के पीछे उनका क्या इरादा है। इसलिए वह उनके झाँसे में नहीं आया। उसने चार बार अपने विरोधियों से कहा: “मैं नहीं आ सकता। मेरे इस कार्य को छोड़कर तुम्हारे पास आने से वह कार्य बन्द क्यों हो जाए?” (NHT) नहेमायाह को समझौते के लिए राज़ी करने की दुश्‍मनों की कोशिशें नाकाम रहीं। उसने अपना पूरा ध्यान शहरपनाह बनाने के काम पर लगाए रखा।—नहेमायाह 6:1-4.

14. झूठे इलज़ाम लगाए जाने पर नहेमायाह ने क्या किया?

14 दूसरी साज़िश यह थी कि नहेमायाह के दुश्‍मन उसके बारे में झूठी अफवाहें फैलाने लगे। उन्होंने यह इलज़ाम लगाया कि नहेमायाह, राजा अतर्क्षत्र के खिलाफ ‘बलवा करने की मनसा रखता है।’ एक बार फिर उन्होंने नहेमायाह से कहा: “आ, हम एक साथ सम्मति करें।” इस बार भी, नहेमायाह ने मिलने से इनकार कर दिया, क्योंकि वह उनके इरादों को भाँप गया था। नहेमायाह बताता है: “वे सब लोग यह सोचकर हमें डराना चाहते थे, कि उनके हाथ ढीले पड़ें, और काम बन्द हो जाए।” लेकिन नहेमायाह इस बार चुप नहीं रहा, बल्कि उसने दुश्‍मनों के लगाए इलज़ामों को बेबुनियाद बताया। उसने कहा: ‘जैसा तुम कहते हो, वैसा तो कुछ भी नहीं हुआ, तुम ये बातें अपने मन से गढ़ते हो।’ इसके अलावा, नहेमायाह ने यहोवा से मदद के लिए प्रार्थना की: “तू मुझे हियाव दे।” उसे पूरा यकीन था कि यहोवा की मदद से वह दुश्‍मनों की इस घिनौनी साज़िश को कामयाब नहीं होने देगा और शहरपनाह बनाने के काम को करता जाएगा।—नहेमायाह 6:5-9.

15. एक झूठे नबी ने नहेमायाह को क्या सलाह दी और नहेमायाह ने उसे क्यों नहीं माना?

15 अब दुश्‍मनों ने तीसरी साज़िश रची। इस बार, उन्होंने एक गद्दार को अपना मोहरा बनाया, ताकि नहेमायाह उसकी बातों में आकर परमेश्‍वर का कानून तोड़ दे। वह गद्दार था, इस्राएली शमायाह। उसने नहेमायाह से कहा: “आ, हम परमेश्‍वर के भवन अर्थात्‌ मन्दिर के भीतर आपस में भेंट करें, और मन्दिर के द्वार बन्द करें; क्योंकि वे लोग तुझे घात करने आएंगे।” शमायाह का कहना था कि दुश्‍मन, नहेमायाह का कत्ल करनेवाले हैं, लेकिन वह मंदिर में छिपकर अपनी जान बचा सकता है। मगर नहेमायाह एक याजक नहीं था। अगर वह परमेश्‍वर के भवन में छिपता, तो यह एक पाप होता। क्या वह अपनी जान बचाने की खातिर परमेश्‍वर के कानून को तोड़ देता? नहेमायाह ने कहा: “क्या मुझ जैसा मनुष्य . . . अपना प्राण बचाने को मंदिर में घुसे? मैं भीतर नहीं जाऊंगा।” (NHT) नहेमायाह दुश्‍मन के बिछाए जाल में क्यों नहीं फँसा? क्योंकि वह जानता था कि शमायाह इस्राएली ज़रूर है, मगर “वह परमेश्‍वर का भेजा [हुआ] नहीं है।” अगर वह परमेश्‍वर का सच्चा नबी होता, तो वह नहेमायाह को परमेश्‍वर का कानून तोड़ने की सलाह कभी न देता। इस बार भी नहेमायाह ने बुरा चाहनेवाले उसके दुश्‍मनों के आगे हार नहीं मानी। कुछ वक्‍त बाद, नहेमायाह यह कह सका: “एलूल महीने के पचीसवें दिन को अर्थात्‌ बावन दिन के भीतर शहरपनाह बन चुकी।”—नहेमायाह 6:10-15; गिनती 1:51; 18:7.

16. (क) हमें झूठे दोस्तों, झूठे इलज़ाम लगानेवालों और झूठे भाइयों के साथ कैसे पेश आना चाहिए? (ख) आप घर पर, स्कूल में, या काम की जगह पर यह कैसे दिखाते हैं कि आप अपने विश्‍वास के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे?

16 नहेमायाह की तरह, हमें भी विरोधियों का सामना करना पड़ सकता है। जैसे झूठे दोस्तों, झूठे इलज़ाम लगानेवालों और झूठे भाइयों का। जिस तरह नहेमायाह के दुश्‍मनों ने उसे समझौता करने को कहा था, उसी तरह कुछ लोग हमें भी समझौता करने को कह सकते हैं। वे हमें यकीन दिलाने की कोशिश करें कि अगर हम यहोवा की सेवा में थोड़ा कम जोश दिखाएँ, तो हम दुनियावी लक्ष्यों को भी हासिल कर सकते हैं। लेकिन हम अपनी ज़िंदगी में परमेश्‍वर के राज्य को पहली जगह देते हैं, इसलिए हम किसी भी हाल में समझौता नहीं करते। (मत्ती 6:33; लूका 9:57-62) विरोधी, हमारे बारे में झूठी बातें भी फैलाते हैं। कुछ देशों में, हम पर यह इलज़ाम लगाया गया है कि हम देश के लिए खतरा हैं, ठीक जैसे नहेमायाह पर राजा के खिलाफ बगावत करने का झूठा इलज़ाम लगाया गया था। कुछ इलज़ामों को हम अदालतों में झूठा साबित करने में कामयाब हुए हैं। लेकिन हर मामले का चाहे जो भी अंजाम निकले, हम इस भरोसे के साथ प्रार्थना करते हैं कि यहोवा अपनी मरज़ी के मुताबिक उन मामलों का रुख बदलेगा। (फिलिप्पियों 1:7) विरोध उनकी तरफ से भी आ सकता है, जो परमेश्‍वर की सेवा करने का ढोंग करते हैं। ठीक जैसे नहेमायाह को एक साथी इस्राएली ने कायल करने की कोशिश की थी कि वह परमेश्‍वर का कानून तोड़कर अपनी जान बचा सकता है। वैसे ही, वे धर्मत्यागी, जो एक वक्‍त पर साक्षी थे, हम पर किसी-न-किसी तरीके से समझौता करने का दबाव डाल सकते हैं। लेकिन हम धर्मत्यागियों से कोसों दूर रहते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि हम अपनी जान, परमेश्‍वर के कानून तोड़कर नहीं, बल्कि उन्हें मानकर बचा सकते हैं। (1 यूहन्‍ना 4:1) जी हाँ, यहोवा की मदद से हम किसी भी तरह की बुराई पर जीत हासिल कर सकते हैं।

बुराई का सामना करने के बावजूद सुसमाचार का प्रचार करना

17, 18. (क) शैतान और उसके नुमाइंदे क्या करने की कोशिश कर रहे हैं? (ख) आपने क्या करने की ठानी है और क्यों?

17 मसीह के अभिषिक्‍त भाइयों के बारे में परमेश्‍वर का वचन कहता है: “वे . . . अपनी गवाही के वचन के कारण, [शैतान] पर जयवन्त हुए।” (प्रकाशितवाक्य 12:11) यह आयत बताती है कि राज्य के संदेश का प्रचार करने का सीधा ताल्लुक, शैतान पर जीत हासिल करने के साथ है, जो सारी बुराइयों के लिए ज़िम्मेदार है। इसलिए ताज्जुब की बात नहीं कि क्यों शैतान बचे हुए अभिषिक्‍त जनों और “बड़ी भीड़” पर एक-के-बाद-एक हमले कर रहा है और उनके खिलाफ विरोध की आग भड़का रहा है।—प्रकाशितवाक्य 7:9; 12:17.

18 जैसा कि हमने देखा कि हमारा कई तरीकों से विरोध किया जा सकता है। हमारे बारे में झूठी अफवाहें फैलायी जा सकती हैं, हमें मारने की धमकी दी जा सकती है या फिर चलाकी से हमें फँसाने का कोई और तरीका अपनाया जा सकता है। मगर इन सबके पीछे शैतान का एक ही मकसद है कि हम प्रचार करना बंद कर दें। लेकिन वह अपने मकसद में हरगिज़ कामयाब नहीं होगा, बल्कि उसे शर्मनाक हार का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि प्राचीन समय के नहेमायाह की तरह, परमेश्‍वर के लोगों ने ठान लिया है कि वे हमेशा ‘भलाई से बुराई को जीत लेंगे।’ वे ऐसा कैसे करेंगे? सुसमाचार का प्रचार करने के ज़रिए। और वे यह काम तब तक करते रहेंगे, जब तक यहोवा यह नहीं कहता कि काम पूरा हो चुका।—मरकुस 13:10; रोमियों 8:31; फिलिप्पियों 1:27, 28. (w07 7/1)

[फुटनोट]

^ ये घटनाएँ किन हालात में घटी थीं, इस बारे में जानने के लिए नहेमायाह 1:1-4; 2:1-6, 9-20; 4:1-23; 6:1-15 पढ़िए।

क्या आपको याद है?

• परमेश्‍वर के प्राचीन सेवकों ने किन विरोधों का सामना किया था और आज मसीही किन विरोधों का सामना करते हैं?

• नहेमायाह के दुश्‍मनों का खास मकसद क्या था और आज परमेश्‍वर के दुश्‍मनों का मकसद क्या है?

• आज हम भलाई से बुराई को कैसे जीत सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 30 पर बक्स/तसवीर]

नहेमायाह की किताब में पाए जानेवाले सबक

परमेश्‍वर के सेवकों को

हँसी-ठट्ठों में उड़ाया जाता है

डराया-धमकाया जाता है

धोखा देने की कोशिश की जाती है

कौन हमें धोखा दे सकते हैं

झूठे दोस्त

झूठे इलज़ाम लगानेवाले

झूठे भाई

परमेश्‍वर के सेवक बुराई को जीतने के लिए

उस काम में लगे रहते हैं, जो परमेश्‍वर ने उन्हें दिया है

[पेज 31 पर तसवीर]

सच्चे मसीही बेखौफ सुसमाचार का प्रचार करते हैं