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“भाषाओं ने अलग किया, मगर प्यार ने एक किया”

“भाषाओं ने अलग किया, मगर प्यार ने एक किया”

“भाषाओं ने अलग किया, मगर प्यार ने एक किया”

आज़ादी, उद्धार, छुटकारा। जी हाँ, इंसान सदियों से आए दिन की चिंताओं और परेशानियों से राहत पाने के लिए तरस रहे हैं। आखिर, हम अपनी ज़िंदगी में आनेवाली समस्याओं का सामना कैसे कर सकते हैं? क्या हमें कभी इनसे छुटकारा मिलेगा? अगर हाँ, तो कैसे?

मई 2006 से शुरू हुए यहोवा के साक्षियों के अधिवेशनों का यही विषय था। तीन दिन तक चलनेवाले उन अधिवेशनों का शीर्षक था, “छुटकारा निकट है!”

उन अधिवेशनों में से नौ अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन थे, जिनमें अलग-अलग देशों से आए हज़ारों साक्षी मौजूद थे। ये अधिवेशन जुलाई और अगस्त 2006 के दौरान, इन शहरों में आयोजित किए गए थे: चेक रिपब्लिक की राजधानी, प्राग; स्लोवाकिया की राजधानी, ब्राटस्लावा; पोलैंड के शहर, कोज़ूफ और पोज़नन; * और जर्मनी के पाँच शहर: डॉर्टमंड, फ्रैंकफर्ट, म्यूनिक, लाइपसिग और हैमबर्ग। उन नौ अधिवेशनों की कुल हाज़िरी 3,13,000 से भी ज़्यादा थी।

उन अधिवेशनों में कैसा माहौल छाया हुआ था? दूसरों ने अधिवेशनों के बारे में क्या कहा? और अधिवेशन में हाज़िर लोगों ने कैसा महसूस किया?

तैयारियाँ

अधिवेशन के शहरों में रहनेवाले और बाहर से आनेवाले साक्षियों को उन अधिवेशनों का बेसब्री से इंतज़ार था। क्यों? क्योंकि वे जानते थे कि इस तरह के आध्यात्मिक मौके यादगार बन जाएँगे। दूसरे देशों के भाई-बहनों के लिए ठहरने का इंतज़ाम करना, एक बहुत बड़ा काम था। उदाहरण के लिए, कोज़ूफ शहर में हुए अधिवेशन के लिए पूर्वी यूरोप से तकरीबन 13,000 मेहमान आए थे और उनके ठहरने के लिए पोलैंड के साक्षियों ने अपने घर के दरवाज़े खोल दिए थे। इस अधिवेशन के लिए जिन देशों से साक्षी आए, वे थे: अमरीका, आर्मीनिया, उज़्बेकस्तान, एस्टोनिया, कज़ाकस्तान, किरगिस्तान, जॉर्जिया, तर्कमनस्तान, ताज़ीकस्तान, बेलारूस, मौलदोवा, यूक्रेन, रशिया, लिथुएनिया और लैटविया।

दूसरे देशों से आए कई साक्षियों को अपने सफर की तैयारी, महीनों पहले शुरू करनी पड़ी। उनमें से एक थी, टाट्याना। टाट्याना पूरे समय की एक प्रचारक है, जो रशिया के प्रायद्वीप, कमचट्‌का में रहती है। कमचट्‌का प्रायद्वीप, जापान के उत्तर-पूर्व में पाया जाता है। टाट्याना ने कोज़ूफ में होनेवाले अधिवेशन में जाने के लिए, एक साल पहले से ही पैसे बचाना शुरू कर दिया था। उसे लगभग 10,500 किलोमीटर की दूरी तय करनी थी। पहले, उसने हवाई जहाज़ से 5 घंटे का सफर तय किया। फिर, उसने करीब 3 दिन ट्रेन से और आखिरकार, 30 घंटे बस से सफर किया।

अधिवेशन से पहले, हज़ारों साक्षियों ने स्टेडियम और उनके आस-पास की जगहों को तैयार करने में हाथ बँटाया। उन्होंने उन जगहों को इस काबिल बनाया कि उनमें यहोवा की उपासना की जा सके। (व्यवस्थाविवरण 23:14) मिसाल के लिए, लाइपसिग में रहनेवाले साक्षियों ने वहाँ के स्टेडियम की अच्छी साफ-सफाई की। और उन्होंने अधिवेशन के बाद भी सफाई करने का वादा किया। इसका नतीजा यह हुआ कि स्टेडियम के अधिकारियों ने किराए के करारनामे में दी एक शर्त रद्द कर दी। उस शर्त के मुताबिक, साक्षियों को सफाई के लिए अलग-से एक बड़ी रकम देनी थी।

न्यौता

दुनिया-भर की कलीसियाओं ने “छुटकारा निकट है!” अधिवेशन का बहुत बढ़-चढ़कर प्रचार किया। जिन साक्षियों को अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों में हाज़िर होना था, उन्होंने भी इस अभियान में बड़ी गर्मजोशी के साथ हिस्सा लिया। यहाँ तक कि अधिवेशन के एक दिन पहले, वे देर शाम तक लोगों को इसका न्यौता देने में लगे रहे। क्या उनके जोश का कोई बढ़िया नतीजा निकला?

पोलैंड के एक साक्षी, बोगडान की मुलाकात एक बुज़ुर्ग आदमी से हुई जो कोज़ूफ में आयोजित अधिवेशन में हाज़िर होना चाहता था। मगर उसकी पेंशन इतनी कम थी कि वह 120 किलोमीटर दूर कोज़ूफ शहर तक जाने का खर्च नहीं उठा सकता था। इत्तफाक की बात है कि वहाँ के साक्षियों ने अधिवेशन जाने के लिए जो बस किराए पर ली थी, उसमें एक सीट खाली थी। बोगडान कहता है: “हमने उस आदमी को बताया कि अगर वह सुबह 5:30 बजे उस जगह पहुँच जाए जहाँ से बस रवाना होगी, तो वह हमारे साथ मुफ्त में जा सकता है।” उस आदमी ने न्यौता कबूल किया और अधिवेशन में हाज़िर हुआ। बाद में, उसने भाइयों को लिखा: “इस अधिवेशन में हाज़िर होने के बाद, मैंने एक बेहतर इंसान बनने की ठान ली है।”

प्राग में, एक आदमी उसी होटल में ठहरा था जिसमें ब्रिटेन से आए साक्षी रुके हुए थे। एक शाम, उस आदमी ने उन साक्षियों को बताया कि वह भी उस दिन के सेशनों में हाज़िर था। आखिर, किस बात ने उसे वहाँ जाने के लिए उकसाया? उस आदमी ने बताया कि शहर की सड़कों पर, दस अलग-अलग प्रचारकों ने उसे अधिवेशन में आने का न्यौता दिया, इसलिए उसने तय किया कि अब तो उसे जाना ही पड़ेगा! उसे कार्यक्रम बहुत अच्छा लगा और उसने ज़ाहिर किया कि वह बाइबल के बारे में ज़्यादा सीखने के लिए बेताब है।—1 तीमुथियुस 2:3, 4.

ठोस आध्यात्मिक भोजन

अधिवेशन के कार्यक्रम में यह बताया गया कि अलग-अलग समस्याओं से कैसे निपटा जा सकता है। बाइबल से सीधे-सीधे सलाह दी गयी कि कैसे उन समस्याओं को सुलझाया जा सकता है या फिर उनका सामना किया जा सकता है।

जो लोग बुढ़ापे, खराब सेहत, अपने किसी अज़ीज़ की मौत या फिर किसी और समस्या की वजह से कई तकलीफें सह रहे थे, उन सभी को बाइबल से हिम्मत दी गयी। इससे उन्हें ज़िंदगी के बारे में सही नज़रिया अपनाने में मदद मिली। (भजन 72:12-14) पति-पत्नियों को बाइबल से सलाह दी गयी कि वे कैसे अपनी शादीशुदा ज़िंदगी को खुशहाल बना सकते हैं। उसी तरह, माता-पिताओं को बाइबल से हिदायतें दी गयीं कि वे कैसे अपने बच्चों की अच्छी परवरिश कर सकते हैं। (सभोपदेशक 4:12; इफिसियों 5:22, 25; कुलुस्सियों 3:21) यहोवा के संगठन में ऐसे कई मसीही जवान भी हैं, जिन्हें एक तरफ घर पर और कलीसिया में परमेश्‍वर के वचन से बुद्धि-भरी सलाहें मिलती हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्हें स्कूल में अपने दोस्तों के बुरे असर का सामना करना पड़ता है। अधिवेशन में इन जवानों को भी व्यावहारिक सलाहें दी गयीं कि वे कैसे साथियों के दबाव का विरोध कर सकते हैं और “जवानी की अभिलाषाओं से भाग” सकते हैं।—2 तीमुथियुस 2:22.

सच्चा अंतर्राष्ट्रीय भाईचारा

यहोवा के साक्षियों को मसीही सभाओं के ज़रिए लगातार बाइबल से बेहतरीन निर्देशन मिलते हैं। (2 तीमुथियुस 3:16) तो फिर उन अधिवेशनों में खास बात क्या थी? वे अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन थे। उनमें एक ही कार्यक्रम को कई भाषाओं में पेश किया गया था। इसके अलावा, उन अधिवेशनों की खासियत यह थी कि हर दिन, यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के सदस्यों ने भाषण दिया और दूसरे देशों की रिपोर्टें भी पढ़ी गयीं। उन भाषणों और रिपोर्टों का अनुवाद किया गया था ताकि वहाँ मौजूद अलग-अलग भाषा बोलनेवाले लोग उन भागों को समझ सकें।

बाहर देशों से आए साक्षी अपने सभी मसीही भाई-बहनों से मिलने के लिए बेकरार थे। उनमें से एक साक्षी ने कहा: “भले ही सबकी भाषा अलग-अलग थी, मगर इससे कोई खास परेशानी नहीं हुई। इसके बजाय, मौका और भी खुशनुमा हो गया। यहाँ आए मेहमान अलग-अलग संस्कृति से थे, फिर भी उनका एक ही धर्म होने की वजह से उनमें एकता थी।” म्यूनिक में हुए अधिवेशन में हाज़िर साक्षियों ने कहा: “भाषाओं ने अलग किया, मगर प्यार ने एक किया।” हालाँकि अधिवेशन में हाज़िर लोग अलग-अलग देश और भाषा के थे, फिर भी उन्होंने महसूस किया कि वे अपने सच्चे दोस्तों, यानी आध्यात्मिक भाई-बहनों के बीच हैं।—जकर्याह 8:23.

कदरदानी के शब्द

पोलैंड में अधिवेशन के समय जिस तरह का मौसम था, उसमें दूसरे देशों से आए साक्षियों के रवैए और धीरज की परख हुई। अधिवेशन के ज़्यादातर समय न सिर्फ बारिश होती रही, बल्कि तापमान करीब 14 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाने की वजह से कड़ाके की ठंड पड़ी। अमरीका से आए एक भाई ने कहा: “मैं अब तक जितने अधिवेशनों में हाज़िर हुआ हूँ, उनमें से किसी में भी मौसम इतना खराब नहीं था। साथ ही, ठंड इतनी थी कि मैं कार्यक्रम के ज़्यादातर भाग में ध्यान नहीं दे पाया। मगर अधिवेशन में छाया खुशी का समाँ, अलग-अलग देशों के भाई-बहनों के बीच का बेमिसाल प्यार, साथ ही वहाँ के साक्षियों की बेजोड़ मेहमाननवाज़ी, इन सारी बातों ने इस कमी को पूरा कर दिया। वाकई, वह अधिवेशन मैं ज़िंदगी-भर भुला नहीं पाऊँगा!”

पोलैंड के भाई-बहन भी उस अधिवेशन को कभी नहीं भूल पाएँगे, क्योंकि उनकी भाषा यानी पोलिश में इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌ रिलीज़ की गयी थी। उन्हें ठंड और बारिश में धीरज धरने का क्या ही बढ़िया इनाम मिला! उसी तरह, सभी “छुटकारा निकट है!” अधिवेशनों में जब किताब, लिव विथ जेहोवाज़ डे इन माइंड (यहोवा के दिन को मन में रखकर जीओ) रिलीज़ की गयी, तो लोगों में खुशी की लहर दौड़ गयी।

इसके अलावा, ऐसी और भी बातें थीं जिनकी वजह से बहुत-से साक्षी उन अधिवेशनों को हमेशा याद रखेंगे। चेक रिपब्लिक की एक साक्षी, क्रिस्टीना बाहर देश से आए साक्षियों के एक समूह को, जो किराए पर लिए बस में सफर कर रहा था, मदद देने के लिए आगे आयी। वह याद करते हुए कहती है: “जब हम उन साक्षियों को विदा कर रहे थे, तो एक बहन मुझे एक तरफ ले गयी और गले लगाकर कहा: ‘आपने मेरा कितना ख्याल रखा! हमारा खाना और पानी हमें आप खुद लाकर देती थीं, हमें तो अपनी जगह से उठने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी। आपने जो त्याग की भावना और प्यार दिखाया, उसके लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।’” दरअसल, वह बहन दूसरे देशों से आए साक्षियों को दोपहर का खाना देने के इंतज़ाम के बारे में बता रही थी। इसी सिलसिले में एक भाई कहता है: “हमें इस काम में कोई तजुरबा नहीं था। हमें हर दिन करीब 6,500 लोगों को दोपहर का खाना देना था। मगर जिस तरह कई भाई-बहन और बच्चे हमें मदद देने के लिए आगे आए, वह नज़ारा वाकई देखने लायक था!”

एक बहन, जो अधिवेशन के लिए यूक्रेन से कोज़ूफ आयी थी, कहती है: “हमारे संगी विश्‍वासियों ने जो प्यार, परवाह और दरियादिली दिखायी, वह हमारे दिल को छू गयी। हम उनके इतने एहसानमंद हैं कि इसे बयान करने के लिए हमारे पास शब्द ही नहीं हैं।” फिनलैंड से आठ साल की एक लड़की, आनिका ने पोलैंड के शाखा दफ्तर को लिखा: “अधिवेशन इतना बढ़िया था कि क्या बताऊँ। सचमुच यहोवा के संगठन का हिस्सा होना सबसे अच्छी बात है, क्योंकि हम दुनिया-भर के लोगों से दोस्ती कर पाते हैं!”—भजन 133:1

दूसरों ने अधिवेशनों के बारे में क्या कहा?

अधिवेशनों से पहले, दूसरे देशों से आए कई साक्षियों के घूमने का इंतज़ाम किया गया। जर्मनी में, जब मेहमान बवेरीया राज्य के दूर-दराज़ इलाके में घूमने गए, तो वे बीच रास्ते में कई राज्य घरों में रुके। वहाँ के साक्षियों ने दिल खोलकर उनका स्वागत किया। भाइयों का यही आपसी प्यार, एक समूह की टूर गाइड के दिल को भा गया, जो साक्षी नहीं है। उसी समूह में मौजूद एक भाई बताता है: “जब हम बस से होटल वापस जा रहे थे, तब हमारी टूर गाइड ने कहा कि हम दूसरे सैलानियों से बिलकुल अलग हैं। उसने यह भी कहा कि हम सभी का पहनावा सलीकेदार और अच्छा है; हमने समूह की अगुवाई करनेवालों को सहयोग दिया; घूमते वक्‍त कोई गड़बड़ी नहीं हुई और ना ही किसी ने गाली-गलौज की। यही नहीं, वह यह देखकर हैरान रह गयी कि जो लोग एक-दूसरे को जानते तक नहीं थे, वे कैसे पहली मुलाकात में ही पक्के दोस्त बन गए।”

प्राग में एक भाई, जिसने अधिवेशन के समाचार सेवा विभाग में काम किया, बताता है: “रविवार की सुबह, अधिवेशन पर निगरानी रखने के लिए जो पुलिसवाले तैनात थे, उनका अधिकारी हमसे मिलने आया। उसने अधिवेशन में चारों तरफ फैली शांति के बारे में बताया और यह भी कहा कि उसे कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं है। उसने यह भी कहा कि आस-पड़ोस के कुछ लोगों ने उससे पूछा कि स्टेडियम में कौन-सा कार्यक्रम चल रहा है। जब उसने उन्हें बताया कि यहोवा के साक्षियों का अधिवेशन चल रहा है, तो उन्होंने मुँह बना लिया। इस पर उस अधिकारी ने उनसे कहा: ‘यहोवा के साक्षी जितना अच्छा व्यवहार करते हैं, अगर सब लोग उसका आधा भी करें, तो पुलिस की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।’”

कई लोग पहले से छुटकारा पा चुके हैं!

परमेश्‍वर का वचन, बाइबल एक ऐसी कड़ी है जो अलग-अलग संस्कृति के लोगों को एकता के बंधन में बाँधती है। इससे उनके बीच शांति भी बनी रहती है। (रोमियों 14:19; इफिसियों 4:22-24; फिलिप्पियों 4:7) यह बात, “छुटकारा निकट है!” के खास अधिवेशनों में साफ देखी गयी। यहोवा के साक्षी पहले से उन बहुत-सी मुसीबतों से छुटकारा पा चुके हैं, जिनकी वजह से पूरी दुनिया तड़प रही है। उनके बीच से असहनशीलता, झगड़ालू रवैया और जाति-भेद जैसी समाज की बुराइयाँ लगभग खत्म हो चुकी हैं। और अब वे उस समय का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं, जब पूरी दुनिया से इन सारी समस्याओं का नामो-निशान मिट जाएगा।

जो लोग इन अधिवेशनों में हाज़िर हुए, उन्होंने खुद अपनी आँखों से देखा कि अलग-अलग देशों और संस्कृतियों से आए साक्षियों के बीच कितनी एकता है। यह बात अधिवेशनों के खत्म होने पर और भी खुलकर सामने आयी। कैसे? सभी लोग तालियाँ बजा रहे थे, अपने नए दोस्तों से गले मिल रहे थे और आखिरी बार एक-दूसरे के साथ फोटो खींच रहे थे। (1 कुरिन्थियों 1:10; 1 पतरस 2:17) बाहर देशों से आए साक्षी बहुत खुश थे, साथ ही उन्हें इस बात का पक्का यकीन था कि बहुत जल्द उन्हें सभी चिंताओं और परेशानियों से छुटकारा मिलनेवाला है। इसलिए वे और भी बुलंद इरादे के साथ अपने घरों और कलीसियाओं में वापस लौट गए कि परमेश्‍वर ने उन्हें “जीवन का [जो] वचन” दिया है, उसे वे मज़बूती से थामे रहेंगे।—फिलिप्पियों 2:15, 16.

[फुटनोट]

^ कार्यक्रम के जिन भागों को मेहमान वक्‍ताओं ने पेश किया, उन भागों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से पोलैंड के छः और अधिवेशनों में, साथ ही स्लोवाकिया के एक और अधिवेशन में प्रसारित किया गया था।

[पेज 10 पर बक्स/तसवीर]

छब्बीस भाषाएँ, पर ज़बान एक

सभी नौ अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों में, कार्यक्रम को देश की राष्ट्रीय भाषा में पेश किया गया था। जर्मनी में भाषण 18 और भाषाओं में पेश किए गए। जैसे, डॉर्टमंड में अरबी, पुर्तगाली, फारसी, रूसी और स्पैनिश भाषा में; फ्रैंकफर्ट में अँग्रेज़ी, फ्रांसीसी और सरबियन/क्रोएशियन भाषा में; हैमबर्ग में डच, डेनिश, तमिल और स्वीडिश भाषा में; लाइपसिग में चीनी, तुर्की और पोलिश भाषा में; और म्यूनिक में इतालवी, जर्मन साइन लैंग्वेज और यूनानी में। प्राग में हुए अधिवेशन में सभी भाषण अँग्रेज़ी, चेक और रूसी भाषा में पेश किए गए। ब्राटस्लावा में कार्यक्रम अँग्रेज़ी, स्लोवाक, स्लोवाकियन साइन लैंग्वेज और हंगेरियन भाषा में पेश किया गया। कोज़ूफ में अधिवेशन पोलिश, पोलिश साइन लैंग्वेज, यूक्रेनियन और रूसी भाषा में हुआ। और पोज़नन में पोलिश और फिनिश भाषा में अधिवेशन हुआ।

ये अधिवेशन कुल मिलाकर छब्बीस भाषाओं में हुए! वाकई, अधिवेशन में हाज़िर लोगों की भाषाएँ अलग-अलग थीं, मगर प्यार की वजह से उनमें एकता थी।

[पेज 9 पर तसवीर]

फ्रैंकफर्ट में हुए अधिवेशन में क्रोएशिया से आए साक्षियों को जब अपनी भाषा में “न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन” बाइबल मिली, तो वे बेहद खुश हुए