इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

क्या आपने पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप किया है?

क्या आपने पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप किया है?

क्या आपने पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप किया है?

“पाप ऐसा भी होता है, जिस का फल मृत्यु है।”—1 यूहन्‍ना 5:16.

1, 2. हम यह कैसे जानते हैं कि एक मसीही परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप कर सकता है?

 “यह बात मुझे अंदर-ही-अंदर खाए जा रही है कि मैंने पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप किया है।” जर्मनी में यहोवा की सेवा करनेवाली एक बहन ने ऐसा लिखा। क्या एक मसीही वाकई परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा यानी उसकी सक्रिय शक्‍ति के खिलाफ पाप कर सकता है?

2 जी हाँ, एक मसीही ऐसा कर सकता है। यह हम कैसे जानते हैं? यीशु मसीह ने कहा था: “मनुष्य का सब प्रकार का पाप और निन्दा क्षमा की जाएगी, पर आत्मा की निन्दा क्षमा न की जाएगी।” (मत्ती 12:31) इसके अलावा, हमें चिताया गया है: “सच्चाई की पहिचान प्राप्त करने के बाद यदि हम जान बूझकर पाप करते रहें, तो पापों के लिये फिर कोई बलिदान बाकी नहीं। हां, दण्ड का एक भयानक बाट जोहना . . . बाकी है।” (इब्रानियों 10:26, 27) प्रेरित यूहन्‍ना ने भी लिखा: “पाप ऐसा भी होता है, जिस का फल मृत्यु है।” (1 यूहन्‍ना 5:16) लेकिन क्या यह तय करना एक इंसान पर छोड़ा जाता है कि उसने जो गंभीर पाप किया, वह एक ‘ऐसा पाप है, जिसका फल मृत्यु है’?

पश्‍चाताप करने से माफी मिलती है

3. अगर हम अपने किसी पाप को लेकर बहुत उदास हैं, तो इससे क्या ज़ाहिर होता है?

3 यहोवा ही पाप करनेवालों का सबसे बड़ा न्यायी है। दरअसल, हममें से हरेक को उसे लेखा देना है। और परमेश्‍वर हमेशा वही करता है, जो सही है। (उत्पत्ति 18:25; रोमियों 14:12) यहोवा ही यह तय करता है कि हमने जो पाप किया, वह माफी के लायक है या नहीं। और वही हम पर से अपनी आत्मा हटा सकता है। (भजन 51:11) लेकिन अगर हम अपने किसी पाप को लेकर बहुत उदास हैं, तो इससे काफी हद तक ज़ाहिर होता है कि हमारा पश्‍चाताप सच्चा है। अब सवाल यह उठता है कि सच्चा पश्‍चाताप क्या है?

4. (क) पश्‍चाताप करने का क्या मतलब है? (ख) भजन 103:10-14 के शब्द क्यों हमारा ढाढ़स बँधाते हैं?

4 पश्‍चाताप करने का मतलब है, अपने पिछले पापों या जो पाप हम करने जा रहे थे, उन पर गहरा दुःख और अफसोस महसूस करना और पाप का रास्ता छोड़ देना। अगर हमने गंभीर पाप किया है और सच्चा पश्‍चाताप दिखाने के लिए ज़रूरी कदम उठाए हैं, तो भजनहार के ये शब्द हमारा ढाढ़स बँधा सकते हैं: “[यहोवा] ने हमारे पापों के अनुसार हम से व्यवहार नहीं किया, और न हमारे अधर्म के कामों के अनुसार हम को बदला दिया है। जैसे आकाश पृथ्वी के ऊपर ऊंचा है, वैसे ही उसकी करुणा उसके डरवैयों के ऊपर प्रबल है। उदयाचल अस्ताचल से जितनी दूर है, उस ने हमारे अपराधों को हम से उतनी ही दूर कर दिया है। जैसे पिता अपने बालकों पर दया करता है, वैसे ही यहोवा अपने डरवैयों पर दया करता है। क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।”—भजन 103:10-14.

5, 6. पहला यूहन्‍ना 3:19-22 का निचोड़ बताइए, और समझाइए कि यूहन्‍ना के इन शब्दों का क्या मतलब है।

5 प्रेरित यूहन्‍ना के शब्द भी हमें ढाढ़स देते हैं: “इसी से हम जानेंगे, कि हम सत्य के हैं; और जिस बात में हमारा मन हमें दोष देगा, उसके विषय में हम उसके साम्हने अपने अपने मन को ढाढ़स दे सकेंगे। क्योंकि परमेश्‍वर हमारे मन से बड़ा है; और सब कुछ जानता है। हे प्रियो, यदि हमारा मन हमें दोष न दे, तो हमें परमेश्‍वर के साम्हने हियाव होता है। और जो कुछ हम मांगते हैं, वह हमें उस से मिलता है; क्योंकि हम उस की आज्ञाओं को मानते हैं; और जो उसे भाता है वही करते हैं।”—1 यूहन्‍ना 3:19-22.

6 हम इसलिए ‘जानते हैं कि हम सत्य के हैं,’ क्योंकि हम भाइयों के लिए प्यार दिखाते हैं और पाप करने की आदत नहीं बना लेते। (भजन 119:11) अगर किसी वजह से हमारा मन हमें दोष दे, तो हमें याद रखना चाहिए कि “परमेश्‍वर हमारे मन से बड़ा है; और सब कुछ जानता है।” वह जानता है कि हमारे दिल में “भाईचारे की निष्कपट प्रीति” है, हम पाप के खिलाफ कड़ा संघर्ष करते हैं और उसकी मरज़ी पूरी करने की जी-तोड़ कोशिश करते हैं। इसलिए वह हम पर दया करता है। (1 पतरस 1:22) हमारा “मन हमें दोष न” देगा, अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें, भाइयों के लिए प्यार दिखाएँ और जानबूझकर पाप करने की आदत न बना लें। तब हमें प्रार्थना में “परमेश्‍वर के साम्हने [बोलने का] हियाव” होगा। और वह हमारी सुनेगा, क्योंकि हम उसकी आज्ञाओं को मानते हैं।

उन्होंने आत्मा के खिलाफ पाप किया

7. किन बातों से तय होता है कि एक इंसान का पाप माफी के लायक है या नहीं?

7 ऐसे कौन-से पाप हैं, जिनकी माफी नहीं मिल सकती? इसका जवाब पाने के लिए, आइए बाइबल की चंद मिसालों पर गौर करें। इससे हमें खासकर तब दिलासा मिलता है, जब अपने संगीन पापों का पश्‍चाताप करने के बावजूद हमारा दिल हमें कचोटता रहता है। इन मिसालों से हम देखेंगे कि एक इंसान का पाप माफी के लायक है या नहीं, यह सिर्फ इस बात से तय नहीं होता कि उसने कैसा पाप किया है। इसके बजाय उसके इरादे, उसके दिल की हालत और उसने किस हद तक ढिठाई दिखाते हुए पाप किया, इन बातों से भी तय होता है।

8. पहली सदी के कुछ यहूदी धर्मगुरुओं ने कैसे पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप किया था?

8 पहली सदी में, यीशु मसीह का कड़ा विरोध करनेवाले यहूदी धर्मगुरुओं ने पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप किया था। उन्होंने अपनी आँखों से देखा था कि परमेश्‍वर की आत्मा ने यीशु के ज़रिए कैसे-कैसे चमत्कार किए और उनसे यहोवा की महिमा हुई। फिर भी, मसीह के इन दुश्‍मनों ने उस आत्मा को शैतान की ताकत कहा। यीशु के मुताबिक, इस तरह परमेश्‍वर की आत्मा की निंदा करके ये लोग एक ऐसा पाप कर रहे थे, जो “न तो इस युग और न आने वाले युग में” (NHT) माफ किया जाएगा।—मत्ती 12:22-32.

9. निंदा का मतलब क्या है और इसके बारे में यीशु ने क्या कहा?

9 निंदा का मतलब है, झूठमूठ किसी का नाम खराब करना, या उसके बारे में अपमान-भरी बातें कहना। परमेश्‍वर ही पवित्र आत्मा का सोता है, इसलिए उसकी आत्मा के खिलाफ बातें करना, दरअसल यहोवा के खिलाफ बातें करना है। और इस तरह की निंदा से बाज़ न आना, एक ऐसा पाप है जिसकी कोई माफी नहीं। आत्मा की निंदा के बारे में यीशु ने जो कहा, उससे पता चलता है कि उसका इशारा उन लोगों की तरफ था, जो परमेश्‍वर की आत्मा का ढिठाई से विरोध करते हैं। यीशु के दुश्‍मनों ने देखा था कि यहोवा की आत्मा यीशु पर काम कर रही है, फिर भी उन्होंने उस आत्मा को शैतान की ताकत कहा। इस तरह उन्होंने आत्मा की निंदा की और उसके खिलाफ पाप किया। तभी यीशु ने कहा: “जो कोई पवित्रात्मा के विरुद्ध निन्दा करे, वह कभी भी क्षमा न किया जाएगा: बरन वह अनन्त पाप का अपराधी ठहरता है।”—मरकुस 3:20-29.

10. यीशु ने यहूदा को ‘विनाश का पुत्र’ क्यों कहा?

10 यहूदा इस्करियोती की भी मिसाल लीजिए। वह एक ऐसा इंसान था, जिसने बेईमानी का रास्ता अपनाया। वह उस थैली से पैसे चुराता था, जो उसे सँभालने के लिए दी गयी थी। (यूहन्‍ना 12:5, 6) बाद में, वह यहूदी शासकों के पास गया और चाँदी के 30 सिक्कों के लिए, यीशु को पकड़वाने का सौदा किया। यह सच है कि यीशु को पकड़वाने के बाद यहूदा ने खुद को दोषी तो महसूस किया, लेकिन उसने जानबूझकर किए इस पाप का कभी पश्‍चाताप नहीं किया। यही वजह है कि क्यों यहूदा को पुनरुत्थान नहीं मिलेगा। और इसलिए यीशु ने उसे ‘विनाश का पुत्र’ कहा।—यूहन्‍ना 17:12; मत्ती 26:14-16.

उन्होंने आत्मा के खिलाफ पाप नहीं किया

11-13. राजा दाऊद ने कौन-सा बड़ा पाप किया था? और परमेश्‍वर जिस तरह दाऊद और बतशेबा के साथ पेश आया, उससे हम क्या दिलासा पा सकते हैं?

11 कभी-कभी ऐसा होता है कि कुछ मसीही अपने गंभीर पाप को कबूल कर लेते हैं और उन्हें कलीसिया के प्राचीनों से ज़रूरी मदद भी मिलती है। (याकूब 5:14) लेकिन उसके बाद भी, वे यह सोच-सोचकर निराश हो जाते हैं कि उन्होंने परमेश्‍वर के नियमों को तोड़ा है। अगर हम इसी वजह से मायूस हैं, तो हमें गौर करना चाहिए कि बाइबल उन लोगों के बारे में क्या बताती है, जिनके पाप माफ किए गए थे। इससे हमें ज़रूर फायदा होगा।

12 राजा दाऊद ने एक बार बहुत बड़ा पाप किया था। उसने अपने घर की छत से एक सुंदर स्त्री को नहाते देखा। वह स्त्री ऊरिय्याह की पत्नी, बतशेबा थी। उसने बतशेबा को अपने महल में बुलवाया और उसके साथ लैंगिक संबंध रखे। बाद में, जब दाऊद को पता चला कि बतशेबा गर्भवती हो गयी है, तो उसने अपने पाप को छिपाने के लिए एक चाल चली। उसने ऊरिय्याह को बतशेबा के साथ सोने के लिए घर भेजा। लेकिन जब यह चाल नाकाम हो गयी, तो दाऊद ने ऊरिय्याह को युद्ध में मरवा डाला। इसके बाद, उसने बतशेबा को अपनी पत्नी बना लिया। और उनका जो बच्चा पैदा हुआ, वह मर गया।—2 शमूएल 11:1-27.

13 दाऊद और बतशेबा ने जो पाप किया था, उसका न्याय खुद यहोवा ने किया। यहोवा ने दाऊद को माफ कर दिया। उसने शायद दाऊद के पश्‍चाताप और उसके साथ बाँधी गयी राज्य की वाचा को ध्यान में रखकर ऐसा किया होगा। (2 शमूएल 7:11-16; 12:7-14) ऐसा मालूम होता है कि बतशेबा ने भी पश्‍चाताप किया, क्योंकि उसे राजा सुलैमान की माँ और यीशु मसीह की पुरखिन बनने का सम्मान मिला। (मत्ती 1:1, 6, 7, 16) अगर हमने पाप किया है, तो हम इस बात से दिलासा पा सकते हैं कि यहोवा हमारे पश्‍चाताप को भी देखेगा और हमें माफ करेगा।

14. यहोवा किस हद तक माफ करता है, यह हमें राजा मनश्‍शे की मिसाल से कैसे पता चलता है?

14 यहोवा किस हद तक माफ करता है, यह हमें यहूदा के राजा मनश्‍शे की मिसाल से भी पता चलता है। मनश्‍शे ने यहोवा की नज़र में बहुत बुरे काम किए थे। उसने बाल देवता के लिए वेदियाँ खड़ी करवायीं, ‘आकाश के सारे गणों’ की उपासना की, यहाँ तक कि यहोवा के मंदिर के दोनों आँगनों में झूठे देवताओं के लिए वेदियाँ बनवायीं। मनश्‍शे ने अपने बेटों को आग में होम करके चढ़ाया और भूतविद्या को बढ़ावा दिया। उसने यहूदा और यरूशलेम के लोगों को इस कदर गुमराह कर दिया कि उन्होंने “उन जातियों से भी बढ़कर बुराई की, जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के साम्हने से विनाश किया था।” परमेश्‍वर ने अपने भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए मनश्‍शे को बार-बार चेतावनी दी, मगर मनश्‍शे ने एक न सुनी। आखिरकार, अश्‍शूर का राजा आया और उसे बंदी बनाकर ले गया। बंधुआई में रहते वक्‍त, मनश्‍शे को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ। उसने खुद को दीन किया और गिड़गिड़ाकर यहोवा से माफी माँगी। इस पर यहोवा ने उसे माफ कर दिया और यरूशलेम का राजपाट उसे लौटा दिया। इसके बाद से मनश्‍शे ने अपने राज्य में सच्ची उपासना को बढ़ावा दिया।—2 इतिहास 33:2-17.

15. प्रेरित पतरस की ज़िंदगी के किस वाकये से पता चलता है कि यहोवा “पूरी रीति से” माफ करता है?

15 सदियों बाद, प्रेरित पतरस ने यीशु को जानने से इनकार करके गंभीर पाप किया था। (मरकुस 14:30, 66-72) फिर भी, यहोवा ने पतरस को “पूरी रीति से” माफ कर दिया। (यशायाह 55:7) क्यों? क्योंकि पतरस ने सच्चा पश्‍चाताप दिखाया। (लूका 22:62) इस घटना के 50 दिन बाद, पिन्तेकुस्त के दिन पतरस को यीशु के बारे में ज़बरदस्त गवाही देने का सम्मान मिला। इससे साबित हुआ कि यहोवा ने पतरस को माफ कर दिया था। (प्रेरितों 2:14-36) क्या आज यहोवा उन मसीहियों को माफ नहीं करेगा, जो सच्चे दिल से पश्‍चाताप करते हैं? भजनहार ने अपने एक गीत में गाया: “हे याह, यदि तू अधर्म के कामों का लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा? परन्तु तू क्षमा करनेवाला है।”—भजन 130:3, 4.

आत्मा के खिलाफ पाप करने की चिंता को कम करना

16. परमेश्‍वर से माफी पाने के लिए हमें क्या करना होगा?

16 अभी हमने जिन मिसालों पर चर्चा की, उनकी मदद से हम पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप करने की अपनी चिंता को कम कर पाएँगे। इन मिसालों से हमने सीखा कि यहोवा उन पापियों को माफ करता है, जो पश्‍चाताप करते हैं। लेकिन माफी पाने के लिए सबसे ज़रूरी है कि हम परमेश्‍वर से सच्चे दिल से प्रार्थना करें। अगर हमने पाप किया है, तो हम यीशु के छुड़ौती बलिदान, यहोवा की दया, वफादारी से की गयी हमारी सेवा और अपनी असिद्धता की बिनाह पर यहोवा से माफी माँग सकते हैं। हम जानते हैं कि यहोवा अपार कृपा करनेवाला है, इसलिए हम उससे माफी माँग सकते हैं। और यह भरोसा रख सकते हैं कि वह हमें ज़रूर माफ करेगा।—इफिसियों 1:7.

17. अगर हमने पाप किया है और हमें आध्यात्मिक मदद की ज़रूरत है, तो हमें क्या करना चाहिए?

17 अगर पाप करने की वजह से हम आध्यात्मिक तौर पर बीमार हो गए हैं और प्रार्थना नहीं कर पा रहे हैं, तब हमें क्या करना चाहिए? इस बारे में शिष्य याकूब ने लिखा: “[ऐसा व्यक्‍ति] कलीसिया के प्राचीनों को बुलाए, और वे प्रभु के नाम से उस पर तेल मल कर उसके लिये प्रार्थना करें। और विश्‍वास की प्रार्थना के द्वारा रोगी बच जाएगा और प्रभु उस को उठाकर खड़ा करेगा; और यदि उस ने पाप भी किए हों, तो उन की भी क्षमा हो जाएगी।”—याकूब 5:14, 15.

18. एक व्यक्‍ति को बहिष्कृत किए जाने पर भी यह मतलब नहीं निकाला जा सकता कि उसने ऐसा पाप किया है जिसकी माफी नहीं है। क्यों?

18 लेकिन तब क्या अगर एक व्यक्‍ति को अपने पाप का पछतावा नहीं होता और उसे कलीसिया से बहिष्कृत किया जाता है? तब भी इसका यह मतलब नहीं निकाला जा सकता कि उसने ऐसा पाप किया है जिसकी माफी नहीं है। कुरिन्थुस कलीसिया के उस अभिषिक्‍त भाई पर ध्यान दीजिए, जिसे कलीसिया से बहिष्कृत किया गया था। उसके बारे में पौलुस ने लिखा: “ऐसे जन के लिये यह दण्ड जो भाइयों में से बहुतों ने दिया, बहुत है। इसलिये इस से यह भला है कि उसका अपराध क्षमा करो; और शान्ति दो, न हो कि ऐसा मनुष्य बहुत उदासी में डूब जाए।” (2 कुरिन्थियों 2:6-8; 1 कुरिन्थियों 5:1-5) लेकिन यहोवा के साथ दोबारा एक अच्छा रिश्‍ता कायम करने के लिए पाप करनेवाले व्यक्‍ति को वह मदद कबूल करनी चाहिए, जो मसीही प्राचीन उसे बाइबल से देते हैं। साथ ही, उसे सच्चे दिल से किए गए अपने पश्‍चाताप का सबूत देना चाहिए। जी हाँ, उसे ‘मन फिराव के योग्य फल लाने’ होंगे।—लूका 3:8.

19. किन बातों की मदद से हम ‘विश्‍वास में पक्के’ बने रह सकते हैं?

19 तो फिर, हमें यह क्यों लग सकता है कि हमने पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप किया है? खुद से बहुत ज़्यादा की उम्मीद करने या खराब सेहत की वजह से हम ऐसा महसूस कर सकते हैं। ऐसे में, प्रार्थना करने और भरपूर आराम लेने से हमें काफी मदद मिल सकती है। हमें खासकर शैतान को हमारी हिम्मत तोड़ने का मौका नहीं देना चाहिए, जिससे कि हम परमेश्‍वर की सेवा करना छोड़ दें। जब यहोवा को किसी दुष्ट के मरने से कोई खुशी नहीं होती, तो भला अपने किसी सेवक को खोने से उसे कैसे खुशी हो सकती है? इसलिए अगर हमें यह चिंता सताती है कि हमने आत्मा के खिलाफ पाप किया है, तो हमें बाइबल से आध्यात्मिक खुराक लेते रहना चाहिए। बाइबल में खासकर भजन जैसी किताबों से हमें दिलासा मिल सकता है। इसके अलावा, हमें लगातार सभाओं में हाज़िर होना और राज्य के प्रचार में हिस्सा लेना चाहिए। इस तरह हम ‘विश्‍वास में पक्के’ हो पाएँगे और हमें यह चिंता नहीं सताएगी कि हमने ऐसा पाप किया है जिसकी कोई माफी नहीं।—तीतुस 2:2.

20. एक व्यक्‍ति किस तरह इस नतीजे पर पहुँच सकता है कि उसने पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप नहीं किया?

20 अगर एक व्यक्‍ति को यह चिंता सताती है कि उसने पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप किया है, तो उसे खुद से पूछना चाहिए: ‘क्या मैंने पवित्र आत्मा की निंदा की है? क्या मैंने सच्चे दिल से अपने पाप का पश्‍चाताप किया है? क्या मुझे विश्‍वास है कि यहोवा माफ करनेवाला परमेश्‍वर है? क्या मैंने आध्यात्मिक उजियाले को ठुकरा दिया है और क्या मैं एक धर्मत्यागी बन गया हूँ?’ मुमकिन है कि इन सवालों की मदद से वह व्यक्‍ति इस नतीजे पर पहुँचे कि उसने परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा की निंदा नहीं की है और ना ही वह धर्मत्यागी बन गया है। अगर उसे अपने किए पर पछतावा है और उसे अटूट विश्‍वास है कि यहोवा माफ करनेवाला परमेश्‍वर है, तो इसका मतलब उसने यहोवा की पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप नहीं किया।

21. अगले लेख में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी?

21 जब हमें इस बात का भरोसा हो जाता है कि हमने पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप नहीं किया, तब हमें क्या ही राहत मिलती है! लेकिन पवित्र आत्मा से जुड़े और भी कुछ सवाल हैं। मिसाल के लिए, हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘क्या मैं वाकई परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा की दिखायी राह पर चलता हूँ? क्या मैं अपनी ज़िंदगी में आत्मा के फल ज़ाहिर करता हूँ?’ इन सवालों के जवाब हम अगले लेख में देखेंगे। (w07 7/15)

आपका जवाब क्या है?

• हम यह कैसे जानते हैं कि एक मसीही परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप कर सकता है?

• पश्‍चाताप करने का क्या मतलब है?

• यीशु के धरती पर रहते वक्‍त किन लोगों ने आत्मा के खिलाफ पाप किया था?

• अगर हमें यह चिंता सताती है कि हमने ऐसा पाप किया है जिसकी कोई माफी नहीं, तो इस चिंता पर कैसे काबू पाया जा सकता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]