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“हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो”

“हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो”

“हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो”

“किसी का जीवन उस की संपत्ति की बहुतायात से नहीं होता।”—लूका 12:15.

1, 2. (क) आज लोगों का ध्यान किस बात पर लगा हुआ है? (ख) दुनिया के लोगों के रवैए से हम पर क्या दबाव आ सकता है?

 कई लोग मानते हैं कि ज़मीन-जायदाद, पैसा, शोहरत, मोटी तनख्वाहवाली नौकरी, घर-परिवार का होना कामयाब ज़िंदगी की निशानी है। या इन्हें हासिल कर लेने पर ही भविष्य सुरक्षित हो सकता है। यह बात आज और भी साफ देखने को मिल रही है, क्योंकि अमीर और गरीब देशों में बहुत-से लोगों का ध्यान धन-दौलत कमाने और तरक्की करने में लगा हुआ है। और यही उनकी ज़िंदगी का मकसद बन गया है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ, आध्यात्मिक बातों में उनकी जो थोड़ी-बहुत दिलचस्पी बची है, वह भी तेज़ी से खत्म होती जा रही है।

2 आज हालात बिलकुल वैसे ही हैं, जैसे बाइबल में पहले से बताए गए थे: “अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, . . . परमेश्‍वर के नहीं बरन सुखविलास ही के चाहनेवाले होंगे। वे भक्‍ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्‍ति को न मानेंगे।” (2 तीमुथियुस 3:1-5) आज सच्चे मसीही रोज़ ऐसे लोगों के बीच में जी रहे हैं। इसलिए उन पर हमेशा दुनिया के लोगों की सोच और जीने के तरीके को अपनाने का दबाव बना रहता है। लेकिन क्या बात हमारी मदद करेगी कि हम दुनिया के ‘साँचे में न ढल जाएँ’?—रोमियों 12:2, जे. बी. फिलिप्स का द न्यू टेस्टामैंट इन मॉर्डन इंग्लिश।

3. हम यीशु की किस सलाह पर ध्यान देंगे?

3 इस बारे में हमारे “विश्‍वास के कर्त्ता और सिद्ध करनेवाले” यीशु मसीह ने हमें ज़बरदस्त सबक दिए हैं। (इब्रानियों 12:2) एक मौके पर, यीशु एक भीड़ को आध्यात्मिक बातों के बारे में गहराई से समझा रहा था कि तभी एक आदमी ने उसे बीच में टोक दिया। उसने यीशु से गुज़ारिश की: “हे गुरु, मेरे भाई से कह, कि पिता की संपत्ति मुझे बांट दे।” जवाब में, यीशु ने उस आदमी को और वहाँ मौजूद सभी को कुछ गंभीर सलाह दी। उसने लोभ के बारे में एक कड़ी चेतावनी दी और इसे लोगों के दिलो-दिमाग में अच्छी तरह बैठाने के लिए एक दृष्टांत भी दिया। यीशु ने इस मौके पर जो बात कही, उस पर हमें ध्यान देने की ज़रूरत है। साथ ही, हमें यह समझने की ज़रूरत है कि हम उन बातों को अपने जीवन में लागू करके कैसे फायदा पा सकते हैं।—लूका 12:13-21.

गैर-वाजिब गुज़ारिश

4. उस आदमी का यीशु को बीच में टोकना क्यों गलत था?

4 उस आदमी के टोकने से पहले, यीशु अपने चेलों और लोगों को कपट से दूर रहने, हिम्मत के साथ दूसरों के सामने मनुष्य के पुत्र को कबूल करने और पवित्र आत्मा की मदद पाने के बारे बात कर रहा था। (लूका 12:1-12) ये वाकई ऐसे ज़रूरी विषय थे, जिन्हें चेलों को अपने मन में अच्छी तरह बिठाने की ज़रूरत थी। लेकिन उस आदमी ने इतनी गंभीर चर्चा के बीच में टोकते हुए, यीशु से कहा कि वह उनके परिवार की जायदाद के बँटवारे का मसला हल करे। इस बात से हम एक ज़रूरी सबक सीख सकते हैं।

5. उस आदमी की गुज़ारिश से क्या बात ज़ाहिर हुई?

5 कहा जाता है कि “धार्मिक उपदेश सुनते वक्‍त, एक इंसान किन बातों के बारे में सोचता है, उससे अकसर उसकी शख्सियत का पता चलता है।” गौर कीजिए कि जब यीशु गंभीर आध्यात्मिक विषयों के बारे में बात कर रहा था, तब वह आदमी शायद यह सोच रहा था कि धन-दौलत पाने के लिए उसे क्या करना चाहिए। बाइबल यह नहीं बताती कि उस आदमी ने जायदाद को लेकर जो शिकायत की थी, उसके पीछे कोई वाजिब कारण था या नहीं। हो सकता है कि उस आदमी ने सोचा हो कि यीशु एक बुद्धिमान न्यायी है और लोग उसकी काफी इज़्ज़त करते हैं, तो क्यों न वह उसका फायदा उठा ले। (यशायाह 11:3, 4; मत्ती 22:16) वजह चाहे जो भी रही हो, उस आदमी की गुज़ारिश से एक बात साफ ज़ाहिर हुई कि उसे आध्यात्मिक बातों की कोई कदर नहीं थी। क्या आपको नहीं लगता कि हमें भी खुद की जाँच करनी चाहिए? जैसे, मसीही सभाओं के दौरान हमारा मन बड़ी आसानी से उन बातों की तरफ भटक सकता है, जिन्हें हम बाद में करनेवाले हैं। लेकिन ऐसी बातों के बारे में सोचने के बजाय, हमें सभा में दी जानेवाली जानकारी पर ध्यान लगाना चाहिए। और यह सोचना चाहिए कि हम उसे अपने जीवन में कैसे लागू कर सकते हैं, ताकि स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता, यहोवा और साथी मसीहियों के साथ हमारा रिश्‍ता और भी मज़बूत हो सके।—भजन 22:22; मरकुस 4:24.

6. यीशु ने उस आदमी की गुज़ारिश को क्यों पूरा नहीं किया?

6 उस आदमी को यीशु से गुज़ारिश करने के लिए चाहे किसी भी बात ने उकसाया हो। लेकिन यीशु ने उसकी गुज़ारिश पूरी नहीं की। इसके बजाय, उसने उससे कहा: “हे मनुष्य, किस ने मुझे तुम्हारा न्यायी या बांटनेवाला नियुक्‍त किया है?” (लूका 12:14) यह कहकर यीशु, मूसा की कानून-व्यवस्था के तहत किए गए एक इंतज़ाम की तरफ इशारा कर रहा था, जिससे लोग अच्छी तरह वाकिफ थे। इंतज़ाम के मुताबिक, इस तरह के मामलों को निपटाने के लिए नगरों में न्यायी ठहराए जाते थे। (व्यवस्थाविवरण 16:18-20; 21:15-17; रूत 4:1, 2) दूसरी तरफ, यीशु को ज़्यादा ज़रूरी बातों की फिक्र थी। जैसे, राज्य की सच्चाई के बारे में गवाही देना और परमेश्‍वर की इच्छा लोगों को सिखाना। (यूहन्‍ना 18:37) आज, हमें भी यीशु की मिसाल पर चलते हुए, ज़िंदगी की छोटी-मोटी चिंताओं को आध्यात्मिक बातों के आड़े नहीं आने देना चाहिए। इसके बजाय, हमें अपना वक्‍त और ताकत, सुसमाचार का प्रचार करने और ‘सब जाति के लोगों को चेला बनाने’ के काम में लगानी चाहिए।—मत्ती 24:14; 28:19.

लोभ से खबरदार

7. यीशु ने उस आदमी के इरादे को भाँपते हुए क्या कहा?

7 यीशु इंसानों के दिल में छिपे इरादों को पढ़ सकता था। इसलिए जब उस आदमी ने यीशु से अपने निजी मामले में दखल देने की गुज़ारिश की, तो यीशु समझ गया कि इसके पीछे उसका क्या इरादा है। इसलिए उसकी गुज़ारिश को यूँ ही ठुकरा देने के बजाय उसने कहा: “चौकस रहो, और हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो: क्योंकि किसी का जीवन उस की संपत्ति की बहुतायात से नहीं होता।”—लूका 12:15.

8. लोभ क्या है, और इसका क्या अंजाम हो सकता है?

8 लोभ क्या है? पैसा या किसी और चीज़ की सिर्फ चाहत होना लोभ नहीं, क्योंकि ज़िंदगी में इनकी अपनी एक जगह हो सकती है। एक शब्दकोश के मुताबिक, लोभ का मतलब है, “दौलत, जायदाद या किसी और की चीज़ों को पाने की हद-से-ज़्यादा इच्छा।” लोभी इंसान वह होता है, जिसमें खासकर दूसरों की चीज़ें पाने की ऐसी भूख होती है, जो कभी नहीं मिटती। उसे शायद उन चीज़ों की ज़रूरत न हो, फिर भी वह उन्हें पाना चाहता है। साथ ही, दूसरों पर इसका क्या असर होगा, इस बारे में वह बिलकुल नहीं सोचता है। किसी चीज़ को पाने की इच्छा उसकी सोच पर इस कदर हावी हो जाती है कि वह उसे पाने की हर मुमकिन कोशिश करता है। इस तरह वह चीज़ उसके लिए भगवान्‌ बन जाती है। याद कीजिए कि प्रेरित पौलुस ने लालची इंसानों की तुलना मूर्तिपूजा करनेवालों से की थी, जो परमेश्‍वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे।—इफिसियों 5:5; कुलुस्सियों 3:5.

9. लालच किन तरीकों से ज़ाहिर हो सकता है? इसकी कुछ मिसालें दीजिए।

9 दिलचस्पी की बात है कि यीशु ने “हर प्रकार के लोभ” से खबरदार रहने को कहा। एक इंसान कई चीज़ों का लोभ या लालच कर सकता है। दस आज्ञाओं में से आखिरी आज्ञा में, ऐसी ही कुछ चीज़ों के बारे में बताया गया है: “तू किसी के घर का लालच न करना; न तो किसी की स्त्री का लालच करना, और न किसी के दास-दासी, वा बैल गदहे का, न किसी की किसी वस्तु का लालच करना।” (निर्गमन 20:17) बाइबल में, ऐसे अलग-अलग शख्स की मिसालें दी गयी हैं, जिन्होंने किसी-न-किसी तरह के लालच में पड़कर गंभीर पाप किए। शैतान उनमें से पहला है। उसने वह महिमा, आदर और अधिकार पाने का लोभ किया, जो सिर्फ यहोवा का था। (प्रकाशितवाक्य 4:11) हव्वा ने सही-गलत के स्तर तय करने के परमेश्‍वर के हक का लोभ किया। इस वजह से वह शैतान के बहकावे में आ गयी। नतीजा, सभी इंसान पाप और मौत की जकड़ में आ गए। (उत्पत्ति 3:4-7) दुष्टात्माएँ, जो पहले स्वर्गदूत थे, “अपने पद” से नाखुश हो गए और उन्होंने ऐसी चीज़ को हासिल करने के लिए “अपने निज निवास को छोड़ दिया,” जिस पर उनका कोई हक नहीं था। (यहूदा 6; उत्पत्ति 6:2) इसके अलावा, बिलाम, आकान, गेहजी और यहूदा इस्करियोती के बारे में भी सोचिए। उनके पास जो था, उससे खुश होने के बजाय, उन्होंने दौलत पाने की इच्छा को अपने अंदर इस कदर हावी होने दिया कि वे अपनी ज़िम्मेदारी के पद का गलत इस्तेमाल करने लगे। नतीजा, यही लालच उनकी बरबादी का सबब बन गयी।

10. यीशु की सलाह मानते हुए हमें क्यों ‘चौकस रहना’ है?

10 यह कितना सही था कि यीशु ने लालच से दूर रहने की चेतावनी देते वक्‍त सबसे पहले कहा: “चौकस रहो”! क्यों? क्योंकि लोगों के लिए यह देखना तो बहुत आसान होता है कि दूसरे लालची हैं। लेकिन ऐसा बहुत ही कम होता है कि वे खुद यह कबूल करते हैं कि उनमें भी लालच है। जो भी हो, प्रेरित पौलुस की यह बात उन पर लागू होती है: “रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है।” (1 तीमुथियुस 6:9, 10) शिष्य याकूब ने भी समझाया था कि गलत इच्छाएँ ‘गर्भवती होकर पाप को जनती हैं।’ (याकूब 1:15) यीशु की सलाह को मानते हुए हमें ‘चौकस रहना’ है। मगर यह देखने के लिए नहीं कि दूसरे लालची हैं या नहीं, बल्कि खुद की जाँच करने के लिए कि हमारा ध्यान कहाँ लगा हुआ है, ताकि हम ‘हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रख सके।’

ऐशो-आराम की ज़िंदगी

11, 12. (क) यीशु ने लालच के बारे में क्या चेतावनी दी? (ख) हमें यीशु की चेतावनी को क्यों मानना चाहिए?

11 एक और वजह है कि हमें क्यों लालच से बचे रहना है। ध्यान दीजिए कि यीशु ने आगे क्या कहा: “किसी का जीवन उस की संपत्ति की बहुतायात से नहीं होता।” (लूका 12:15) यीशु के इन शब्दों पर गौर करना हमारे लिए ज़रूरी है। क्योंकि हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ लोग धन-दौलत के पीछे पागल हैं, और खुशी और कामयाबी को पैसों से आँका जाता है। इन शब्दों से यीशु यह इशारा कर रहा था कि एक इंसान के पास चाहे कितनी ही धन-दौलत और ज़मीन-जायदाद क्यों न हो, एक मकसद और संतोष से भरी ज़िंदगी उन पर निर्भर नहीं करती।

12 लेकिन कुछ लोग शायद इस बात को मानने से इनकार करें। वे कहें कि धन-दौलत होना ज़रूरी है, क्योंकि तभी हम आराम की ज़िंदगी जी सकते हैं और उसका पूरा मज़ा उठा सकते हैं। इसलिए वे ऐसा करियर बनाने में दिन-रात एक कर देते हैं, जिससे वे खूब पैसा कमा सकें। और अपनी हर मनपसंद चीज़ हासिल कर सकें। जैसे, नयी-नयी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ें वगैरह। वे सोचते हैं कि इस तरह वे अच्छी ज़िंदगी जी पाएँगे। लेकिन ऐसी सोच रखनेवाले यीशु की बात को समझने से चूक जाते हैं।

13. ज़िंदगी और धन-दौलत के बारे में सही नज़रिया क्या है?

13 यीशु यह नहीं कह रहा था कि ढेर सारी धन-दौलत होना, सही है या गलत। इसके बजाय, वह इस बात पर ज़ोर दे रहा था कि एक इंसान की ज़िंदगी “उस की संपत्ति” पर निर्भर नहीं करती। हम सब जानते हैं कि ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी नहीं कि हमारे पास बहुत सारी चीज़ें हों। हमारे लिए बस थोड़ा खाना, तन ढकने के लिए कपड़े और सोने के लिए एक जगह काफी है। एक अमीर इंसान के पास ये चीज़ें बहुतायात में होती हैं, वहीं दूसरी तरफ एक गरीब को इन्हें हासिल करने में खूब मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन मौत होने पर अमीर-गरीब दोनों का एक ही अंजाम होता है और सबकुछ धरा-का-धरा रह जाता है। (सभोपदेशक 9:5, 6) इसलिए सुख-सुविधा की चीज़ें होने या उन्हें जुटा लेने से हमारी ज़िंदगी मकसद-भरी नहीं बन सकती। और न ही हमें यह सोचना चाहिए कि इन चीज़ों से हमारी ज़िंदगी को मकसद मिल सकता है। इस बात को और भी अच्छी तरह समझने के लिए, हमें यह जाँचने की ज़रूरत है कि यीशु किस तरह के जीवन की बात कर रहा था।

14. बाइबल में लूका की किताब में दिए गए शब्द “जीवन” से हम क्या सीख सकते हैं?

14 यीशु ने कहा कि किसी का “जीवन उस की संपत्ति . . . से नहीं होता।” लूका की सुसमाचार की किताब में, जिस यूनानी शब्द (ज़ोए) का अनुवाद “जीवन” किया गया है, उसका मतलब जीने का तरीका नहीं, बल्कि इंसान की जान है। * यीशु कह रहा था कि चाहे हम अमीर हों या गरीब, चाहे ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीते हों या तंगहाली में जी रहे हों, हमारा इस बात पर कोई काबू नहीं कि हम कितने साल जीएँगे, यहाँ तक कि कल ज़िंदा रहेंगे भी या नहीं। यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में कहा था: “तुम में कौन है, जो चिन्ता करके अपनी अवस्था में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है?” (मत्ती 6:27) बाइबल साफ-साफ बताती है कि सिर्फ यहोवा ही “जीवन का सोता” है। और वही वफादार इंसानों को स्वर्ग में या इस धरती पर “सत्य जीवन” या “अनन्त जीवन” दे सकता है यानी ऐसी ज़िंदगी, जिसमें वे हमेशा-हमेशा के लिए जीएँगे।—भजन 36:9; 1 तीमुथियुस 6:12, 19.

15. कई लोग धन-दौलत और सुख-सुविधा की चीज़ों पर क्यों भरोसा रखते हैं?

15 यीशु के शब्द बताते हैं कि लोगों के लिए ज़िंदगी के बारे में गलत नज़रिया अपनाना बहुत आसान होता है। चाहे कोई अमीर हो या गरीब, सभी इंसान असिद्ध हैं और एक-न-एक-दिन सभी को मरना है। प्राचीन समय के मूसा ने कहा: “हमारी आयु के वर्ष सत्तर तो होते हैं, और चाहे बल के कारण अस्सी वर्ष भी हो जाएं, तौभी उनका घमण्ड केवल कष्ट और शोक ही शोक है; क्योंकि वह जल्दी कट जाती है, और हम जाते रहते हैं।” (भजन 90:10; अय्यूब 14:1, 2; 1 पतरस 1:24) इसलिए जो लोग परमेश्‍वर के साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम नहीं करते, वे अकसर ‘खाओ-पीओ, क्योंकि कल तो मर ही जाएंगे’ जैसी सोच अपना लेते हैं, जिसके बारे में पौलुस ने बताया था। (1 कुरिन्थियों 15:32) दूसरे, यह देखते हुए कि जीवन पल-भर का है और कभी-भी कुछ भी हो सकता है, धन-दौलत और ऐशो-आराम की चीज़ों में सुरक्षा और स्थिरता ढूँढ़ने की कोशिश करते हैं। शायद उन्हें लगता है कि ढेरों चीज़ें जुटा लेने से उनकी ज़िंदगी और भी महफूज़ होगी। इसलिए वे धन-संपत्ति बटोरने में दिन-रात एक कर देते हैं। लेकिन यह मानना उनकी बड़ी भूल है कि सुरक्षा और खुशी का ताल्लुक दौलत और सुख-सुविधा की चीज़ों से है।—भजन 49:6, 11, 12.

एक सुरक्षित भविष्य

16. ज़िंदगी का असली मोल किस बात से नहीं आँका जाता?

16 शायद यह सच हो कि एक इंसान जो ठाट-बाट की ज़िंदगी जीता हो, यानी जिसके पास आलीशान घर हो, गाड़ी और महँगे-महँगे कपड़े हों और ऐसी दूसरी चीज़ें हों, जिससे उसकी ज़िंदगी में आराम-ही-आराम हो। वह शायद अच्छे-से-अच्छा इलाज करवाकर अपने जीवन के चंद साल और भी बढ़ा ले। लेकिन क्या ऐसी ज़िंदगी वाकई मकसद भरी और सुरक्षित होती है? ज़िंदगी का असली मोल इस बात ने नहीं आँका जाता कि एक इंसान कितने साल ज़िंदा रहता है या उसके पास सुख-सुविधा की कितनी चीज़ें हैं। प्रेरित पौलुस ने बताया था कि इन चीज़ों पर ज़्यादा भरोसा रखने के क्या खतरे हो सकते हैं। उसने तीमुथियुस को लिखा था: “इस संसार के धनवानों को आज्ञा दे, कि वे अभिमानी न हों और चंचल धन पर आशा न रखें, परन्तु परमेश्‍वर पर जो हमारे सुख के लिये सब कुछ बहुतायत से देता है।”—1 तीमुथियुस 6:17.

17, 18. (क) धन-दौलत के बारे सही नज़रिया रखने के सिलसिले में, कौन-सी बढ़िया मिसालें हैं, जिन पर हमें चलना चाहिए? (ख) हम अगले लेख में यीशु के बताए किस दृष्टांत पर गौर करेंगे?

17 धन पर भरोसा रखना नासमझी है, क्योंकि यह “चंचल” होता है। यानी यह आज है तो कल नहीं। कुलपिता अय्यूब बहुत अमीर था, लेकिन जब अचानक उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, तो उसकी धन-दौलत कोई काम नहीं आयी। क्योंकि एक ही रात में उसका सबकुछ तबाह हो गया। लेकिन उन परीक्षाओं और मुसीबतों में, परमेश्‍वर के साथ उसके मज़बूत रिश्‍ते ने ही उसे सँभाले रखा। (अय्यूब 1:1, 3, 20-22) इब्राहीम के पास भी ज़मीन-जायदाद और बेशुमार दौलत थी। फिर भी, जब उसे परमेश्‍वर से एक मुश्‍किल काम मिला, तो उसे कबूल करने में उसने अपनी धन-दौलत को रुकावट नहीं बनने दिया। नतीजा, उसे “जातियों के समूह का मूलपिता” बनने की आशीष मिली। (उत्पत्ति 12:1, 4; 17:4-6) अय्यूब और इब्राहीम की तरह और भी कई मिसालें है, जिन पर हम चल सकते हैं। चाहे हम जवान हों या बुज़ुर्ग, हम सभी को खुद की जाँच करके यह देखने की ज़रूरत है कि हम अपनी ज़िंदगी में किन बातों को सबसे ज़्यादा अहमियत देते हैं और हम किस पर भरोसा रखते हैं।—इफिसियों 5:10; फिलिप्पियों 1:10.

18 लालच और ज़िंदगी के बारे में सही नज़रिया रखने के सिलसिले में, यीशु ने जो चंद शब्द कहे थे, उनका कितना गहरा अर्थ है और उनसे हम कितना कुछ सीख सकते हैं। लेकिन यीशु ने कुछ और भी हिदायतें दी। उसने एक दृष्टांत बताया, जो सोचने पर मजबूर कर देता है। वह था, एक मूर्ख धनवान का दृष्टांत। आज हमारी ज़िंदगी पर वह दृष्टांत कैसे लागू होता है और हम उससे क्या सीख सकते हैं? इस बारे में हम अगले लेख में चर्चा करेंगे। (w07 8/1)

[फुटनोट]

^ यूनानी में “जीवन” के लिए एक और शब्द है, बायोस। वाइन्स्‌ एक्सपॉज़िट्री डिक्शनरी ऑफ ओल्ड एण्ड न्यू टेस्टामेंट वर्ड्‌स्‌ के मुताबिक, शब्द बायोस का मतलब है, “जीवन की अवधि,” “जीने का तरीका” और “जीने का साधन।”

आप क्या जवाब देंगे?

• यीशु ने उस आदमी की गुज़ारिश को पूरा नहीं किया, इससे हम क्या सीख सकते हैं?

• हमें लालच से क्यों बचे रहना चाहिए और हम यह कैसे कर सकते हैं?

• क्यों हमारी ज़िंदगी धन-दौलत पर निर्भर नहीं करती?

• क्या बात हमें एक मकसद-भरी और सुरक्षित ज़िंदगी जीने में मदद दे सकती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]