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माता-पिताओ—अपने बच्चों को प्यार से तालीम दीजिए

माता-पिताओ—अपने बच्चों को प्यार से तालीम दीजिए

माता-पिताओ—अपने बच्चों को प्यार से तालीम दीजिए

“जो कुछ करते हो प्रेम से करो।”—1 कुरिन्थियों 16:14.

1. बच्चे के पैदा होने के बाद, माता-पिताओं के मन में क्या-क्या भावनाएँ आती हैं?

 ज़्यादातर माता-पिता इस बात से सहमत होंगे कि एक नन्ही-सी जान का इस दुनिया में आना, ज़िंदगी के सबसे खुशगवार मौकों में से एक है। आलीआ नाम की एक माँ कहती है: “मेरी बेटी के पैदा होने के बाद, जब मैंने पहली बार उसे देखा तब मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहा! मुझे ऐसा लगा मानो वह दुनिया की सबसे सुंदर बच्ची है।” मगर ऐसे खुशी-भरे मौके पर माता-पिताओं को कुछ चिंताएँ भी आ घेरती हैं। आलीआ का पति कहता है: “मेरी सबसे बड़ी चिंता यह थी कि क्या मैं अपनी बेटी को ज़िंदगी में आनेवाली परीक्षाओं का सामना करने के लिए सही तरह से तैयार कर पाऊँगा?” कई माता-पिताओं को भी यही चिंता सताती है। साथ ही, उन्हें यह एहसास रहता है कि उन्हें अपने बच्चों को प्यार से तालीम देने की ज़रूरत है। मगर ऐसी ख्वाहिश रखनेवाले मसीही माता-पिताओं के आगे कई चुनौतियाँ आती हैं। उनमें से कुछ चुनौतियाँ क्या हैं?

2. मसीही माता-पिताओं को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

2 आज हम इस व्यवस्था के अंतिम दिनों के बिलकुल आखिरी दौर में जी रहे हैं। जैसे कि भविष्यवाणी की गयी थी, आज लोगों में, यहाँ तक कि परिवार के सदस्यों में भी एक-दूसरे के लिए प्यार नहीं रह गया है। वे “दिली मुहब्बत से ख़ाली” (हिन्दुस्तानी बाइबल) हैं और ‘कृतघ्न, अपवित्र, असंयमी और कठोर’ बन गए हैं। (2 तीमुथियुस 3:1-5) हर दिन मसीहियों का ऐसे लोगों के साथ उठना-बैठना होता है। इसलिए उनकी देखा-देखी वे भी अपने परिवारवालों के साथ वैसे ही पेश आ सकते हैं। इसके अलावा, माता-पिताओं को विरासत में मिली अपनी कमज़ोरियों से लड़ना पड़ता है। जैसे, खुद पर काबू न रख पाना, अनजाने में ऐसी बात कह देना जिससे दूसरों को ठेस पहुँचे और दूसरे मामलों में नासमझी दिखाना।—रोमियों 3:23; याकूब 3:2, 8, 9.

3. माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश कैसे कर सकते हैं, जिससे कि वे खुश रहें?

3 इन चुनौतियों के बावजूद, माता-पिता अपने बच्चों की ऐसी परवरिश कर सकते हैं, जिससे बच्चे न सिर्फ खुश रहेंगे बल्कि उनका परमेश्‍वर के साथ करीबी रिश्‍ता भी होगा। वह कैसे? बाइबल की इस सलाह को मानने के ज़रिए: “जो कुछ करते हो प्रेम से करो।” (1 कुरिन्थियों 16:14) वाकई, प्रेम “एकता का सिद्ध बन्ध है।” (कुलुस्सियों 3:14, NHT) प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस के मसीहियों को लिखी अपनी पहली पत्री में प्रेम के कई पहलुओं का ज़िक्र किया था। आइए हम उनमें से सिर्फ तीन पहलुओं की जाँच करें और यह भी चर्चा करें कि माता-पिता अपने बच्चों को तालीम देते वक्‍त किन खास तरीकों से यह गुण दिखा सकते हैं।—1 कुरिन्थियों 13:4-8.

माता-पिताओं को धीरज धरने की ज़रूरत है

4. माता-पिताओं को धीरज धरने की ज़रूरत क्यों है?

4 पौलुस ने लिखा: “प्रेम धीरजवन्त है।” (1 कुरिन्थियों 13:4) जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “धीरजवन्त” किया गया है, उसका मतलब है, सब्र रखना और जल्दी गुस्सा न होना। मगर माता-पिताओं को धीरज धरने की ज़रूरत क्यों है? ज़्यादातर माता-पिता बेशक इसकी कई वजहें बता पाएँगे। मगर आइए हम सिर्फ कुछ पर गौर करें। बच्चों को जब कुछ चाहिए होता है, तो वे तब तक उसकी फरमाइश करते रहते हैं, जब तक कि उन्हें वह मिल नहीं जाता। यहाँ तक कि माता-पिता के सख्ती से ‘ना’ कहने के बाद भी, वे पीछे पड़े रहते हैं और उनके ‘हाँ’ कहने तक उन्हें परेशान करते हैं। किशोर बच्चों को जब उनके माता-पिता कोई ऐसा काम करने से मना करते हैं, जो वे जानते हैं कि मूर्खता है, तो इस पर बच्चे उनसे हुज्जत करने लग सकते हैं। (नीतिवचन 22:15) और हम सब की तरह, बच्चों में भी कुछ गलतियाँ बार-बार दोहराने की फितरत होती है।—भजन 130:3.

5. कौन-सी बात माता-पिताओं को धीरज धरने में मदद दे सकती है?

5 कौन-सी बात माता-पिताओं को अपने बच्चों के साथ धीरज और सब्र से पेश आने में मदद दे सकती है? राजा सुलैमान ने लिखा: “मनुष्य की समझ-बूझ उसे शीघ्र क्रोधित नहीं होने देती।” (नीतिवचन 19:11, NHT) अगर माता-पिता याद करें कि एक समय पर वे खुद भी ‘बालक के समान बोलते, सोचते और समझते’ थे, तो वे अपने बच्चों का व्यवहार समझ पाएँगे। (1 कुरिन्थियों 13:11) माता-पिताओ, क्या आपको अपना बचपन याद है कि कुछ पाने के लिए कैसे आप अपने माता या पिता के नाक में दम कर देते थे? और जब आप किशोर उम्र के हुए, तो क्या आपको लगा था कि आपके माता-पिता आपकी भावनाओं या तकलीफों को बिलकुल भी नहीं समझते हैं? अगर हाँ, तो आप समझ पाएँगे कि आपके बच्चे जो बर्ताव करते हैं, क्यों करते हैं और क्यों आपको सब्र से काम लेते हुए उन्हें बार-बार अपने फैसले याद दिलाते रहने की ज़रूरत है। (कुलुस्सियों 4:6) यह गौरतलब बात है कि यहोवा ने इस्राएली माता-पिताओं को हिदायत दी थी कि वे अपने बच्चों को उसकी कानून-व्यवस्था ‘समझाकर सिखाएँ।’ (व्यवस्थाविवरण 6:6, 7) जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद ‘समझाकर सिखाना’ किया गया है, उसका मतलब है, “दोहराना,” “बार-बार कहना” या “मन में बिठाना।” यह दिखाता है कि माता-पिताओं को शायद कई बार अपने बच्चे को परमेश्‍वर के नियमों के बारे में बताना पड़े, तब कहीं जाकर वह उन नियमों को अपनी ज़िंदगी में लागू करना सीखता है। उसी तरह, ज़िंदगी की दूसरी बातें सिखाने के लिए भी माता-पिता को अकसर इन्हें दोहराने की ज़रूरत पड़ती है।

6. यह क्यों कहा जा सकता है कि जो माता-पिता धीरज धरते हैं, वे अपने बच्चों को ढील नहीं देते हैं?

6 दूसरी तरफ, जो माता-पिता धीरज धरते हैं, वे अपने बच्चों को ढील नहीं देते हैं। परमेश्‍वर का वचन आगाह करता है: “जो लड़का योंही छोड़ा जाता है वह अपनी माता की लज्जा का कारण होता है।” ऐसे अंजाम से बचने के लिए वही नीतिवचन कहता है: “छड़ी और डांट से बुद्धि प्राप्त होती है।” (नीतिवचन 29:15) कभी-कभार बच्चों को लग सकता है कि उनके माता-पिता को उन्हें सुधारने का कोई अधिकार नहीं है। मगर मसीही परिवारों को लोकतंत्र की बिना पर नहीं चलना चाहिए कि जहाँ माँ-बाप अपने बच्चों की मंज़ूरी पाकर ही उनके लिए नियम बनाएँ। इसके बजाय, परिवार का सबसे बड़ा मुखिया, यहोवा माता-पिताओं को यह अधिकार देता है कि वे अपने बच्चों को प्यार से तालीम और अनुशासन दें। (1 कुरिन्थियों 11:3; इफिसियों 3:15; 6:1-4) दरअसल अनुशासन, पौलुस के बताए प्रेम के अगले पहलू से गहरा ताल्लुक रखता है।

प्रेम से अनुशासन कैसे दिया जाए

7. जो माता-पिता कृपालु होते हैं, वे अपने बच्चों को अनुशासन क्यों देते हैं, और इस तरह के अनुशासन में क्या शामिल है?

7 पौलुस ने लिखा कि ‘प्रेम कृपाल है।’ (1 कुरिन्थियों 13:4) जो माता-पिता वाकई कृपालु होते हैं, वे बच्चों को अनुशासन देते वक्‍त कोई समझौता नहीं करते। ऐसा करके वे यहोवा के नक्शेकदम पर चल रहे होते हैं। पौलुस ने लिखा: “प्रभु [यहोवा], जिस से प्रेम करता है, उस की ताड़ना भी करता है।” ध्यान दीजिए कि बाइबल में जिस ताड़ना की बात की गयी है, उसका मतलब सिर्फ सज़ा देना नहीं है। ताड़ना का मतलब तालीम और शिक्षा देना भी है। ऐसे अनुशासन का मकसद क्या होता है? पौलुस ने कहा: “जो इसके द्वारा प्रशिक्षित हो चुके हैं, उन्हें बाद में धार्मिकता का शान्तिदायक फल प्राप्त होता है।” (NHT) (इब्रानियों 12:6, 11) जब माता-पिता परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक, प्यार से अपने बच्चों को सिखाते हैं, तब वे उन्हें बड़ा होकर शांति से रहनेवाला और खरा इंसान बनने का मौका देते हैं। और जब बच्चे “यहोवा के अनुशासन” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) को कबूल करते हैं, तब वे बुद्धि, ज्ञान और समझ-बूझ हासिल करते हैं। ये सारे गुण सोने-चाँदी से भी कहीं ज़्यादा अनमोल हैं।—नीतिवचन 3:11-18.

8. आम तौर पर, जब माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासन देने से चूक जाते हैं, तो इसका क्या नतीजा होता है?

8 दूसरी तरफ, जब माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासन देने से चूक जाते हैं, तो वे यह दिखा रहे होते हैं कि वे उनसे प्यार नहीं करते। यहोवा ने सुलैमान को यह लिखने की प्रेरणा दी: “जो अपने पुत्र को छड़ी नहीं मारता, वह उसका बैरी है, परन्तु जो उस से प्रेम करता है, वह यत्न से उसे अनुशासित करता है।” (नीतिवचन 13:24, NHT) जिन बच्चों को ज़रूरत पड़ने पर अनुशासन नहीं दिया जाता, वे बड़े होकर खुदगर्ज़ इंसान बन जाते हैं और दुःखी रहते हैं। इसके बिलकुल उलट, यह देखा गया कि जो माँ-बाप अपने बच्चों से प्यार करते हैं, मगर साथ ही उन पर बंदिशें भी लगाते हैं, उनके बच्चे पढ़ाई में अव्वल होते हैं, वे दूसरों के साथ आसानी से घुल-मिल जाते हैं और ज़्यादा खुश रहते हैं। इससे साफ पता चलता है कि जो माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासन देते हैं, वे दरअसल उन पर कृपा कर रहे होते हैं।

9. मसीही माता-पिता अपने बच्चों को क्या सिखाते हैं, और इन माँगों के बारे में बच्चों को क्या बताना ज़रूरी है?

9 अपने बच्चों को प्यार से अनुशासन देने में क्या शामिल है? माता-पिताओं को चाहिए कि वे अपने बच्चों को साफ-साफ बताएँ कि वे उनसे क्या माँग करते हैं। मिसाल के लिए, मसीही माता-पिता अपने बच्चों को उनके छुटपन से ही बाइबल के बुनियादी सिद्धांत और सच्ची उपासना के अलग-अलग पहलुओं में हिस्सा लेना सिखाते हैं। (निर्गमन 20:12-17; मत्ती 22:37-40; 28:19; इब्रानियों 10:24, 25) बच्चों को यह बताना ज़रूरी है कि इन माँगों को कभी बदला नहीं जाएगा।

10, 11. घर के नियम बनाते वक्‍त, माता-पिताओं को क्यों अपने बच्चों की ख्वाहिशों के लिए लिहाज़ दिखाना चाहिए?

10 कभी-कभी घर के नियम बनाने में, माता-पिता शायद अपने बच्चों को भी शामिल करना चाहें। खासकर अगर जवान बच्चों को इस तरह की चर्चा में शामिल किया जाए, तो उनके लिए घर के नियमों को मानना ज़्यादा आसान होगा। मिसाल के लिए, जब बच्चों के घर वापस आने का समय ठहराने की बात आती है, तो माता-पिता या तो खुद यह समय तय कर सकते हैं, या फिर बच्चों से पूछ सकते हैं कि वे कौन-सा समय चुनना पसंद करेंगे और क्यों। बच्चों की राय लेने के बाद, माता-पिता तय करके बता सकते हैं कि उन्होंने कौन-सा समय चुना है और क्यों उन्हें लगता है कि वह समय सही है। इसके बावजूद भी अगर बच्चे, माता-पिता के फैसले पर एतराज़ करते हैं, तब क्या? कुछ हालात में अगर बच्चे बाइबल के सिद्धांतों के खिलाफ कोई काम नहीं कर रहे हैं, तो माता-पिता उन्हें उनके चुने हुए समय पर घर लौटने की इजाज़त दे सकते हैं। क्या ऐसा करने का यह मतलब है कि माता-पिता अपना अधिकार त्याग रहे हैं?

11 इस सवाल का जवाब जानने के लिए, आइए हम देखें कि यहोवा ने कैसे प्यार से लूत और उसके परिवार पर अपना अधिकार जताया था। लूत, उसकी पत्नी और उसकी बेटियों को सदोम से बाहर लाने के बाद, स्वर्गदूतों ने उनसे कहा: “उस पहाड़ पर भाग जाना, नहीं तो तू भी भस्म हो जाएगा।” मगर लूत ने कहा: “हे प्रभु, ऐसा न कर।” फिर उसने दूसरा उपाय सुझाते हुए कहा: “देख, वह नगर ऐसा निकट है कि मैं वहां भाग सकता हूं, और वह छोटा भी है: मुझे वहीं भाग जाने दे।” इस पर यहोवा ने क्या जवाब दिया? उसने कहा: “देख, मैं तेरी यह विनती भी स्वीकार करता हूं।” (NHT) (उत्पत्ति 19:17-22) ऐसा करके क्या यहोवा अपना अधिकार त्याग रहा था? हरगिज़ नहीं! इसके बजाय, उसने लूत का लिहाज़ करते हुए उसकी गुज़ारिश कबूल की और इस मामले में भी उस पर कृपा करने का फैसला किया। अगर आप एक माता या पिता हैं, तो क्या आपके सामने ऐसे मौके आते हैं, जब घर के नियम बनाते वक्‍त आप अपने बच्चों की ख्वाहिशों के लिए लिहाज़ दिखा सकें?

12. क्या बात बच्चों को सुरक्षित महसूस करने में मदद देगी?

12 बेशक, बच्चों को सिर्फ नियम ही नहीं, बल्कि उन्हें तोड़ने की सज़ा के बारे में भी बताए जाने की ज़रूरत है। एक बार जब बच्चे यह बात अच्छी तरह से समझ लेते हैं, तो माँ-बाप को फौरन नियमों को लागू कर देना चाहिए। अगर माता-पिता अपने बच्चों को सज़ा देने की सिर्फ धमकी देते रहें, मगर असल में कोई सज़ा न दें, तो वे उन्हें प्यार नहीं दिखा रहे होते हैं। बाइबल कहती है: “बुरे काम के दण्ड की आज्ञा फुर्ती से नहीं दी जाती; इस कारण मनुष्यों का मन बुरा काम करने की इच्छा से भरा रहता है।” (सभोपदेशक 8:11) हो सकता है, माता-पिता अपने बच्चों को उनके दोस्तों या दूसरों के सामने सज़ा न दें, ताकि बच्चों को सबके सामने शर्मिंदा न होना पड़े। लेकिन जब बच्चों को पता रहता है कि उनके माता-पिता के “हां” का मतलब हमेशा हाँ होता है और “नहीं” का मतलब नहीं, यहाँ तक कि सज़ा देने के मामले में भी वे इस सिद्धांत पर अटल बने रहते हैं, तो बच्चे खुद को ज़्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं। साथ ही, इससे उनके दिल में अपने माता-पिता के लिए प्यार और इज़्ज़त भी बढ़ती है।—मत्ती 5:37.

13, 14. अपने बच्चों को तालीम देते वक्‍त, माता-पिता यहोवा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

13 अगर आप चाहते हैं कि आपकी दी हुई सज़ा में आपका प्यार झलके, तो यह ज़रूरी है कि सज़ा और उसे देने का तरीका बच्चे की शख्सियत के मुताबिक हो। पैम याद करते हुए कहती है: “हमें अपनी दोनों बच्चियों को अलग-अलग तरीके से अनुशासन देना पड़ता था। क्योंकि एक के लिए जो तरीका काम आता था, वह दूसरी के लिए नहीं आता था।” उसका पति, लैरी कहता है: “हमारी बड़ी बेटी काफी ज़िद्दी थी और सख्त अनुशासन देने पर ही वह बात मानती थी। मगर हमारी छोटी बेटी ऐसी नहीं थी। बस ज़रा-सी डाँट से या आँखें दिखाने से ही वह फौरन बात समझ लेती थी।” वाकई, प्यार करनेवाले माता-पिता यह भाँपने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं कि उनके हरेक बच्चे के लिए किस तरह का अनुशासन ज़्यादा असरदार साबित होगा।

14 इस मामले में, यहोवा माता-पिताओं के लिए एक अच्छी मिसाल है। वह अपने हरेक सेवक की खूबियों और कमज़ोरियों को अच्छी तरह जानता है। (इब्रानियों 4:13) इसके अलावा, जब वह अपने लोगों को सज़ा देता है, तो वह न तो ज़रूरत-से-ज़्यादा सख्ती बरतता है और ना ही उन्हें हद-से-ज़्यादा ढील देता है। इसके बजाय, वह हमेशा अपने लोगों को “उचित मात्रा में” अनुशासन देता है। (यिर्मयाह 30:11, नयी हिन्दी बाइबिल) माता-पिताओ, क्या आप अपने बच्चों की खूबियों और कमज़ोरियों को अच्छी तरह जानते हैं? क्या आप इस जानकारी का इस्तेमाल करके, उन्हें प्यार और असरदार तरीके से तालीम दे पाते हैं? अगर हाँ, तो आप साबित करते हैं कि आप अपने बच्चों से बेहद प्यार करते हैं।

खुलकर बात करने का बढ़ावा दीजिए

15, 16. माता-पिता अपने बच्चों को खुलकर अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करने का बढ़ावा कैसे दे सकते हैं, और इस मामले में मसीही माता-पिताओं ने कौन-सा तरीका काफी असरदार पाया है?

15 प्यार का एक और पहलू यह है कि प्यार “कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है।” (1 कुरिन्थियों 13:6) माता-पिता अपने बच्चों को सच्चाई से प्यार करने की तालीम कैसे दे सकते हैं? एक सबसे ज़रूरी कदम है कि उन्हें अपने बच्चों को खुलकर अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करने का बढ़ावा देना चाहिए, फिर चाहे उनकी बातें कबूल करना उनके लिए मुश्‍किल क्यों न हो। जब बच्चों के विचार और उनकी भावनाएँ बाइबल के नैतिक स्तरों से मेल खाती हैं, तो लाज़िमी है कि इससे माँ-बाप को खुशी होगी। मगर कई बार बच्चों के दिल से निकली बातें दिखा सकती हैं कि उनका रुझान अधर्म की तरफ है। (उत्पत्ति 8:21) ऐसे में माता-पिता को क्या करना चाहिए? पहले-पहल तो उनका शायद बच्चों को फौरन डाँटने का मन करे। लेकिन अगर वे ऐसा करेंगे, तो बच्चे आगे से उन्हें सिर्फ वही बातें बताएँगे, जो वे सुनना पसंद करते हैं। माना कि जब बच्चे उलटा जवाब देते हैं, तो उन्हें उसी वक्‍त सुधारा जाना चाहिए। मगर बच्चों को यह सिखाने में कि उन्हें कैसे अदब के साथ बात करना चाहिए और उन पर अपनी राय थोपने में कि उन्हें क्या कहना चाहिए, बड़ा फर्क है।

16 माँ-बाप अपने बच्चों को खुलकर बात करने का बढ़ावा कैसे दे सकते हैं? आलीआ, जिसका ज़िक्र पहले किया गया था, कहती है: “जब हमारे बच्चे परेशान करनेवाली बातें कहते हैं, तो हम खुद पर काबू रखते हैं ताकि हम गुस्से से भड़क न उठें। इस तरह, हमने अपने घर में ऐसा माहौल बनाया है, जिसमें बच्चे खुलकर अपने दिल की बात कह पाते हैं।” टॉम नाम का एक पिता कहता है: “हम अपनी बेटी को अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करने का बढ़ावा देते हैं, उस वक्‍त भी जब वह हमारे विचारों से सहमत नहीं होती। हमें लगता है कि अगर हम उसकी बात बीच में ही काट देंगे और उस पर अपनी मरज़ी थोपने की कोशिश करेंगे, तो वह मायूस हो जाएगी और फिर, वह शायद अपने दिल की बात दिल में ही रखना सीख जाए। दूसरी तरफ, हमने पाया है कि क्योंकि हम उसकी बात सुनते हैं, इसलिए वह भी हमारी बात सुनती है।” इसमें कोई दो राय नहीं कि बच्चों को अपने माता-पिता की आज्ञा माननी चाहिए। (नीतिवचन 6:20) मगर खुलकर बातचीत करने के ज़रिए, माता-पिता अपने बच्चों में सोचने-समझने की काबिलीयत बढ़ा पाते हैं। विनसंट, जो चार बेटियों का पिता है, कहता है: “जब हमें मौजूदा हालात के बारे में कोई फैसला लेना पड़ता है, तो हम अकसर अपने फैसले के फायदों और नुकसान के बारे में अपने बच्चों के साथ चर्चा करते हैं। इस तरह, वे खुद हमारे फैसले के अच्छे नतीजे देख पाते हैं। इससे उनकी सोचने-समझने की काबिलीयत भी काफी बढ़ी है।”—नीतिवचन 1:1-4.

17. माता-पिता किस बात का यकीन रख सकते हैं?

17 बेशक, बच्चों की परवरिश के सिलसिले में दी बाइबल की सलाहों को पूरी तरह से लागू करना, किसी भी माता-पिता के लिए मुमकिन नहीं है। मगर फिर भी, आप इस बात का यकीन रख सकते हैं कि अगर आप अपने बच्चों को प्यार से तालीम दें, साथ ही धीरज धरें और कृपा दिखाएँ, तो वे आपकी मेहनत की दिल से कदर करेंगे। और-तो-और, यहोवा भी आपकी इस मेहनत पर आशीष देगा। (नीतिवचन 3:33) आखिर सभी मसीही माता-पिता इतनी मेहनत इसीलिए तो करते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे यहोवा से उतना प्यार करना सीखें, जितना कि वे खुद करते हैं। मगर वे इस बढ़िया लक्ष्य को कैसे हासिल कर सकते हैं? अगले लेख में, इसके कुछ खास तरीकों पर चर्चा की जाएगी। (w07 9/1)

क्या आपको याद है?

• समझ से काम लेने से माता-पिताओं को धीरज धरने में मदद कैसे मिल सकती है?

• कृपा और अनुशासन के बीच क्या ताल्लुक है?

• माता-पिताओं और बच्चों के बीच खुलकर बातचीत होना क्यों ज़रूरी है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 24 पर तसवीरें]

माता-पिताओ, क्या आपको याद है कि बचपन में आपसे गलती हो जाने पर आप कैसा महसूस करते थे?

[पेज 25 पर तसवीर]

क्या आप अपने बच्चों को खुलकर बात करने का बढ़ावा देते हैं?