इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

“वह इरादे का बड़ा पक्का था”

“वह इरादे का बड़ा पक्का था”

“वह इरादे का बड़ा पक्का था”

जर्मनी के एक लेखक, गुंटर ग्रास को सन्‌ 1999 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। उन्होंने अपनी ज़िंदगी पर एक किताब लिखी, जो सन्‌ 2006 में प्रकाशित की गयी। इस किताब में उन्होंने उस समय के बारे में बताया जब वे जर्मनी के नागरिक सुरक्षा-बल (युद्ध के दौरान काम करनेवाला नागरिक संगठन) में भर्ती हुए थे। इसी किताब में उन्होंने एक आदमी का भी ज़िक्र किया, जिसने उन पर इतनी गहरी छाप छोड़ी कि वे उसे 60 साल बाद भी नहीं भूला पाए। वे बताते हैं कि उस आदमी पर बेतहाशा ज़ुल्म ढाए गए, मगर वह अपने विश्‍वास पर डटा रहा।

एक दैनिक अखबार, फ्रांकफुर्टर आल्गेमाइना त्साइटुंग को दिए अपने इंटरव्यू में ग्रास ने दोबारा उस अजब आदमी का ज़िक्र किया जिसने हथियार उठाने से इनकार कर दिया था। उन्होंने बताया कि वह आदमी “उस वक्‍त की मशहूर विचारधाराओं का माननेवाला नहीं था और ना ही वह एक नात्ज़ी, कम्यूनिस्ट या समाजवादी था। इसके बजाय, वह यहोवा का एक साक्षी था।” ग्रास को अब उस आदमी का नाम याद नहीं, इसलिए उन्होंने उसका यह नाम रख दिया: ‘नानुकर करनेवाला,’ क्योंकि वह हमेशा यही कहता था कि हम इस तरह के काम नहीं करते। यहोवा के साक्षियों में से कुछ लोगों ने खोज करके पता लगाया कि वह आदमी योआकीम आलफामान था। उसे बार-बार पीटा गया, ज़लील किया गया और काल-कोठरी में डाला गया, फिर भी वह टस-से-मस नहीं हुआ। वह हथियार न उठाने के अपने फैसले पर अटल बना रहा।

ग्रास ने कहा: “मैं उसकी इज़्ज़त इसलिए करता था, क्योंकि वह इरादे का बड़ा पक्का था। मैं खुद से पूछता था: आखिर वह इतना सबकुछ कैसे झेल लेता है? उसे ये सब सहने की ताकत कहाँ से मिलती है?” नात्ज़ियों ने लंबे समय तक आलफामान की खराई तोड़ने की कोशिश की, मगर वे नाकाम रहे। इसलिए फरवरी 1944 में, उन्होंने उसे श्‍टुटहॉफ के यातना शिविर भेज दिया। अप्रैल 1945 में आलफामान आज़ाद हो गया और इस तरह, दूसरे विश्‍वयुद्ध से सही-सलामत बच निकला। वह सन्‌ 1998 में अपनी मौत तक यहोवा का वफादार बना रहा।

आलफामान उन करीब 13,400 साक्षियों में से एक था, जिन्हें जर्मनी में और नात्ज़ियों के कब्ज़े में पड़े दूसरे देशों में अपने विश्‍वास की खातिर वहशियाना ज़ुल्म सहने पड़े थे। वे बाइबल के निर्देशन पर चलते हुए, राजनैतिक मामलों में निष्पक्ष रहे और उन्होंने हथियार उठाने से साफ इनकार कर दिया। (मत्ती 26:52; यूहन्‍ना 18:36) करीब 4,200 साक्षियों को यातना शिविर में डाला गया और 1,490 साक्षियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। आज भी, दुनिया के कई लोग उन यहोवा के साक्षियों के बुलंद इरादों की सराहना करते हैं। (w07 10/15)

[पेज 32 पर तसवीर]

योआकीम आलफामान