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अपने बच्चे को मेल-मिलाप करना सिखाइए

अपने बच्चे को मेल-मिलाप करना सिखाइए

अपने बच्चे को मेल-मिलाप करना सिखाइए

आठ साल की नीकोल इस बात से फूले नहीं समा रही थी कि उसका परिवार अब एक नए शहर में बसनेवाला है। वह रोज़ अपनी सबसे अच्छी सहेली, गेब्रीएल को जाने की तैयारियों की एक-एक बात बताती। फिर एक दिन, अचानक गेब्रीएल ने नीकोल से कहा, ‘जाना हो तो जाओ, इससे मुझे क्या।’ यह सुनकर बेचारी नीकोल का दिल टूट गया और उसे गेब्रीएल पर बड़ा गुस्सा भी आया। नीकोल ने अपनी माँ से जाकर कहा: “मैं अब कभी गेब्रीएल से बात नहीं करूँगी!”

बच्चों में अकसर ऐसे झगड़े हो जाते हैं, जिनमें माँ-बाप को बीच-बचाव करना पड़ता है। उन्हें न सिर्फ अपने बच्चों के दिल पर लगी चोट पर मरहम लगाना पड़ता है, बल्कि बच्चों को यह भी सिखाना पड़ता है कि वे इन झगड़ों से कैसे निपट सकते हैं। बच्चे आखिर बच्चे होते हैं, इसलिए उनमें ‘बचपना’ रहेगा ही। (1 कुरिन्थियों 13:11, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) उन्हें अकसर इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं होता कि उनकी बातों या कामों से दूसरों को ठेस पहुँच सकती है। इसलिए उन्हें अपने अंदर ऐसे गुण बढ़ाने में मदद की ज़रूरत होती है, जिनसे वे घर के लोगों और दूसरों के साथ मधुर रिश्‍ता बनाए रख सकें।

मसीही माता-पिता अपने बच्चों को ‘शांति ढूंढ़ने और उसका पीछा करने’ की तालीम देने में गहरी दिलचस्पी लेते हैं। (1 पतरस 3:11, NHT) माना कि शक, निराशा और नफरत जैसी बुरी भावनाओं पर काबू पाना और शांति बनाए रखना काफी मेहनत का काम है। मगर इससे जो खुशी मिलती है, उसके आगे यह मेहनत तो कुछ भी नहीं। अगर आप एक माता या पिता हैं, तो आप अपने बच्चों को मेल-मिलाप करना कैसे सिखा सकते हैं?

उनमें ‘शान्ति के परमेश्‍वर’ को खुश करने की इच्छा पैदा कीजिए

यहोवा को ‘शान्ति का परमेश्‍वर’ और “शान्ति का सोता” कहा गया है। (रोमियों 15:33; फिलिप्पियों 4:9) इसलिए समझदार माता-पिता परमेश्‍वर के वचन, बाइबल का कुशलता से इस्तेमाल करके अपने बच्चों में यहोवा को खुश करने और उसके जैसे गुण दिखाने की इच्छा पैदा करते हैं। मिसाल के लिए, अपने बच्चों को उस हैरतअँगेज़ दर्शन की कल्पना करने में मदद दीजिए, जो प्रेरित यूहन्‍ना ने देखा था। उस दर्शन में यहोवा के सिंहासन के चारों तरफ एक शानदार मेघधनुष पन्‍ना जैसे दमकता है। * (प्रकाशितवाक्य 4:2, 3, NHT) फिर उन्हें समझाइए कि इस मेघधनुष का मतलब है कि यहोवा के चारों तरफ शांति और सुकून है और जो कोई उसकी आज्ञा मानता है, यहोवा उसे भी यह शांति देता है।

इसके अलावा, यहोवा अपने बेटे यीशु के ज़रिए भी मार्गदर्शन देता है, जिसे “शान्ति का शासक” कहा गया है। (यशायाह 9:6, 7, नयी हिन्दी बाइबिल) इसलिए अपने नन्हे-मुन्‍नों के संग बाइबल में उन वाकयों को पढ़िए और चर्चा कीजिए, जिनमें यीशु ने लड़ाई-झगड़ों से दूर रहने के बारे में ज़रूरी सबक दिए थे। (मत्ती 26:51-56; मरकुस 9:33-35) यही नहीं, उन्हें पौलुस की कहानी भी सुनाइए जो पहले “अन्धेर करनेवाला था।” उन्हें समझाइए कि क्यों पौलुस ने अपना तौर-तरीका बदला और बाद में यह लिखा: ‘प्रभु के दास को झगड़ालू नहीं, पर सब के साथ कोमल और सहनशील होना चाहिए।’ (1 तीमुथियुस 1:13; 2 तीमुथियुस 2:24) हो सकता है, आपका बच्चा आपकी बात फौरन समझ जाए और वह उसके मुताबिक काम भी करने लगे!

एवान को ही लीजिए। उसे याद है कि जब वह 7 साल का था, तब एक दिन स्कूल-बस में एक लड़के ने उसे खूब चिढ़ाया। एवान कहता है: “मुझे इतना गुस्सा आया कि मन किया उसकी जमकर धुनाई करूँ! मगर फिर मुझे याद आया कि झगड़ा शुरू करनेवालों के बारे में मैंने घर पर क्या सीखा था। मैं जानता था कि यहोवा चाहता है कि मैं ‘बुराई के बदले किसी से बुराई न करूँ, बल्कि सब मनुष्यों के साथ मेल-मिलाप रखूँ।’” (रोमियों 12:17, 18) इसी बात ने एवान को नर्मी से पेश आने की ताकत और हिम्मत दी। इस तरह, उसने मामले को बिगड़ने से पहले ही रफा-दफा कर दिया। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह शांति के परमेश्‍वर, यहोवा को खुश करना चाहता था।

माता-पिताओ, आप भी शांति बनाए रखिए

क्या आपके घर में शांति का माहौल बना रहता है? अगर हाँ, तो आपकी अच्छी मिसाल देखकर ही आपके बच्चे शांति बनाए रखने के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं। इस सिलसिले में आप कितने कामयाब होंगे, इसका दारोमदार काफी हद तक इस बात पर है कि आप खुद परमेश्‍वर और मसीह के जैसे शांति से पेश आते हैं कि नहीं।—रोमियों 2:21.

रस और सिंडी अपने दो बेटों को तालीम देने में कड़ी मेहनत करते हैं। वे बार-बार उन्हें यह बढ़ावा देते हैं कि जब कोई उन्हें गुस्सा दिलाता है, तो वे उसके साथ प्यार से पेश आएँ। सिंडी कहती है: “मैंने देखा है कि मुश्‍किलें आने पर मैं और रस अपने बेटों और दूसरों के साथ जिस तरह से पेश आते हैं, उसका हमारे बेटों पर ज़बरदस्त असर पड़ता है। नतीजा, जब वे ऐसे हालात से गुज़रते हैं, तो वे भी हमारे जैसे पेश आते हैं।”

जब आपसे गलती हो जाती है और गलतियाँ किस माँ-बाप से नहीं होती, तब भी आप अपने बच्चों को अनमोल सबक सिखा सकते हैं। एक पिता स्टीवन कबूल करता है: “कभी-कभी मैं और मेरी पत्नी, टेरी पूरी बात जाने बगैर ही गुस्से से भड़क उठते थे और बच्चों को सज़ा देते थे। लेकिन जब भी ऐसा होता था, हम बाद में उनसे माफी ज़रूर माँगते थे।” टेरी कहती है: “हम अपने बच्चों को समझाते थे कि हम भी इंसान हैं और इंसानों से गलतियाँ तो होती ही हैं। हमने महसूस किया है कि इससे न सिर्फ हमारे परिवार में शांति बरकरार रही, बल्कि हमारे बच्चों ने मेल-मिलाप करना भी सीखा है।”

आप अपने बच्चों के साथ जैसा बर्ताव करते हैं, क्या उसे देखकर वे मेल-मिलाप करना सीख रहे हैं? यीशु ने यह सलाह दी: “इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।” (मत्ती 7:12) आपमें चाहे जो भी कमज़ोरियाँ हों, फिर भी आप एक बात का यकीन रख सकते हैं। वह यह कि आप अपने बच्चों को जो लाड़-प्यार देते हैं, उसका अच्छा नतीजा निकलेगा। अगर आप प्यार से अपने नन्हे-मुन्‍नों को नसीहत दें, तो वे उसे खुशी-खुशी मानेंगे।

क्रोध करने में धीमा होइए

नीतिवचन 19:11 कहता है: “जो मनुष्य बुद्धि से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है।” आप अपने बच्चों में यह बुद्धि या अंदरूनी समझ कैसे पैदा कर सकते हैं? डेविड और उसकी पत्नी, मारीएन के एक बेटा और एक बेटी हैं। वे बताते हैं कि किस कारगर तरीके से वे अपने बच्चों में यह समझ बढ़ाने की कोशिश करते हैं। डेविड कहता है: “जब हमारे बच्चे किसी की बातों या हरकतों से दुःखी होते हैं, तो हम उन्हें हमदर्दी की भावना पैदा करने में मदद देते हैं। हम उनसे कुछ इस तरह के सवाल पूछते हैं: ‘क्या ऐसा हो सकता है कि उस शख्स का दिन खराब बीता हो? कहीं ऐसा तो नहीं कि वह किसी बात को लेकर तुमसे जलता हो? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि किसी और ने उसका दिल दुखाया हो?’” मारीएन आगे कहती है: “इससे बच्चे शांत हो जाते हैं, बजाय इसके कि वे मुँह फुलाकर बैठ जाएँ या इस बात पर हुज्जत करें कि कौन सही है और कौन गलत।”

ऐसी तालीम से बढ़िया नतीजे मिल सकते हैं। गौर कीजिए कि इस लेख की शुरूआत में बतायी गयी नीकोल को उसकी माँ, मीशेल ने क्या मदद दी। मीशेल ने न सिर्फ नीकोल और गेब्रीएल के बीच सुलह करवायी, बल्कि उससे भी बढ़कर मदद दी। मीशेल कहती है: “मैंने नीकोल के साथ महान शिक्षक से सीखिए * (अँग्रेज़ी) किताब का अध्याय 14 पढ़ा। फिर मैंने उसे समझाया कि यीशु के कहने का क्या मतलब था कि हमें किसी को ‘सतत्तर बार तक’ माफ करना चाहिए। जब नीकोल ने अपने दिल की बात कही तब मैंने उसे ध्यान से सुना। इसके बाद, मैंने नीकोल को यह समझने में मदद दी कि गेब्रीएल शायद इसलिए दुःखी और निराश है, क्योंकि उसकी सबसे अच्छी सहेली अब उससे दूर जा रही है।”—मत्ती 18:21, 22, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

जब नीकोल को आखिर में समझ आया कि गेब्रीएल के गुस्से की क्या वजह हो सकती है, तो उसका दिल हमदर्दी से भर आया। उसने फौरन गेब्रीएल को फोन किया और उससे माफी माँगी। मीशेल कहती है: “तब से नीकोल हमेशा दूसरों की भावनाओं का लिहाज़ करती है और उन्हें खुश रखने के लिए कुछ-न-कुछ करती है। ऐसा करके खुद उसे बहुत अच्छा लगता है।”—फिलिप्पियों 2:3, 4.

अपने बच्चों की मदद कीजिए ताकि वे दूसरों की गलतियों या गलतफहमियों की वजह से दुःखी न हो जाएँ। नतीजा यह हो सकता है कि वे दूसरों की मदद करना और उन्हें प्यार दिखाना सीखेंगे। और यह देखकर आपका दिल बाग-बाग होगा।—रोमियों 12:10; 1 कुरिन्थियों 12:25.

इस बात का बढ़ावा दीजिए कि माफ करने में ही महानता है

नीतिवचन 19:11 (NHT) आगे कहता है: ‘अपराध पर ध्यान न देना महानता है।’ यीशु ने अपनी ज़िंदगी की सबसे दर्दनाक घड़ी में अपने पिता की मिसाल पर चलकर अपने सितमगरों को माफ किया। (लूका 23:34) माफ करने में ही महानता है, यह बात आपके बच्चे सीख सकते हैं, बशर्ते आप उन्हें माफ करें और उन्हें सुकून पहुँचाएँ।

मिसाल के लिए, 5 साल के विली को अपनी नानी के साथ चित्रों में रंग भरना बेहद पसंद है। एक दिन, उसकी नानी रंग भरते-भरते अचानक रुक गयी, उसने विली को डाँट लगायी और वहाँ से उठकर चली गयी। इस पर विली रुआँसा हो गया। उसका पिता, सैम कहता है: “दरअसल, विली की नानी को अल्ज़ाइमर्स की बीमारी है (यानी, एक ऐसी बीमारी जिसका असर दिमाग पर होता है और याददाश्‍त धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगती है)। और यही बात हमने विली को आसान शब्दों में समझाने की कोशिश की।” फिर सैम ने विली को याद दिलाया कि कई बार उसकी गलतियों को माफ किया गया है, इसलिए उसे भी दूसरों को माफ करना चाहिए। इसके बाद विली ने जो किया, वह देखकर सैम हैरान रह गया। सैम कहता है: “हमारा लाड़ला अपनी 80 साल की नानी के पास गया, उससे माफी माँगी और उसका हाथ पकड़कर वापस रंग करने के लिए ले आया। क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यह देखकर मेरा और मेरी पत्नी का दिल कैसे भर आया होगा?”

वाकई, जब बच्चे दूसरों की कमज़ोरियों को ‘सहना’ और उनकी गलतियों को माफ करना सीखते हैं, तो यह महानता ही है। (कुलुस्सियों 3:13) आपके बच्चों को दूसरे चाहे जानबूझकर क्यों न तंग करें, उन्हें भरोसा दिलाइए कि ठंडे दिमाग से काम लेना फायदेमंद है। क्योंकि “जब किसी का चालचलन यहोवा को भावता है, तब वह उसके शत्रुओं का भी उस से मेल कराता है।”—नीतिवचन 16:7.

शांति बनाए रखने में अपने बच्चे की मदद करते रहिए

जब माता-पिता “शांति के लिए काम करने वाले लोगों” के नाते “शांतिपूर्ण वातावरण” में, परमेश्‍वर के वचन से अपने बच्चों को हिदायतें देते हैं, तो वे उनके लिए एक सच्ची आशीष साबित होते हैं। (याकूब 3:18, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) ऐसे माता-पिता अपने बच्चों को इस काबिल बना रहे होते हैं कि वे खुद अपने झगड़ों से निपट सकें और शांति बनाए रख सकें। नतीजा, उन्हें ज़िंदगी-भर खुशी और संतोष मिलेगा।

डैन और कैथी के तीन किशोर बच्चे हैं, जो यहोवा की सेवा में बढ़िया तरक्की कर रहे हैं। डैन कहता है: “हालाँकि बचपन में उन्हें तालीम देना आसान नहीं था, मगर आज उन्हें बढ़िया तरीके से यहोवा की सेवा करते देख हमारा दिल गद्‌गद हो उठता है। वे दूसरों के साथ मेल-मिलाप बनाए रखते हैं और उन्हें माफ करने के लिए तैयार रहते हैं, जिससे कि उनका आपस में शांति का रिश्‍ता न टूटे।” कैथी कहती है: “इससे खासकर हमारा हौसला बढ़ा है क्योंकि शांति, परमेश्‍वर की आत्मा का ही एक फल है।”—गलतियों 5:22, 23.

इसलिए मसीही माता-पिताओ, अपने बच्चों को सबके साथ मेल-मिलाप करने की शिक्षा देने में ‘हियाव मत छोड़िए’ और ना ही “ढीले” पड़िए। उस वक्‍त भी नहीं जब आपको लगे कि बच्चे धीरे-धीरे सीख रहे हैं। अगर आप ऐसा करें तो यकीन मानिए, “प्रेम और शान्ति का दाता परमेश्‍वर [आपके] साथ होगा।”—गलतियों 6:9; 2 कुरिन्थियों 13:11. (w07 12/1)

[फुटनोट]

^ रेवलेशन—इट्‌स ग्रैंड क्लाइमैक्स एट हैंड! किताब के पेज 75 पर दी तसवीर देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 20 पर बक्स/तसवीर]

अच्छा असर या बुरा?

मीडिया के बारे में जागरूकता पैदा करनेवाली एक संस्था (मीडिया अवेरनेस नेटवर्क) ने एक निबंध छापा जिसका शीर्षक था, “मनोरंजन में हिंसा।” उस निबंध में यह लिखा था: “फिल्मों में अकसर हीरो और विलन के बीच मार-धाड़ दिखाया जाता है। इस तरह, मीडिया बार-बार इस बात पर ज़ोर देता है कि समस्या सुलझाने का एक तरीका है, हिंसा।” टी.वी. कार्यक्रमों, फिल्मों और गाने के वीडियो की जाँच करने पर पता चला कि इनमें से सिर्फ 10 प्रतिशत में मार-पीट के बुरे अंजाम दिखाए जाते हैं। निबंध में यह भी लिखा था: “ज़्यादातर कार्यक्रमों और फिल्मों में दिखाया जाता है कि किसी समस्या को हल करने के लिए हिंसा का रास्ता अपनाना जायज़ और मामूली-सी बात है, मानो इसके सिवा और कोई दूसरा रास्ता है ही नहीं।”

यह जानने के बाद, क्या आपको लगता है कि आप घर बैठे जो-जो टी.वी. कार्यक्रम देखते हैं, उनमें आपको कुछ फेरबदल करने की ज़रूरत है? मीडिया को मौका मत दीजिए जिससे कि आप अपने बच्चों को मेल-मिलाप करने की तालीम देने में जो मेहनत करते हैं, उस पर वह पानी फेर दे!

[पेज 17 पर तसवीर]

अपने बच्चों के मन में ‘शांति के परमेश्‍वर’ को खुश करने की इच्छा पैदा कीजिए

[पेज 18 पर तसवीर]

जब आपका बच्चा ठेस पहुँचानेवाली कोई बात कहता या हरकत करता है, तो उसे सुधारने की कोशिश कीजिए

[पेज 19 पर तसवीर]

आपके बच्चे को माफी माँगना और माफ करना सीखना चाहिए