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ऐसे गुण बढ़ाइए जो चेला बनाने में आपकी मदद कर सकें

ऐसे गुण बढ़ाइए जो चेला बनाने में आपकी मदद कर सकें

ऐसे गुण बढ़ाइए जो चेला बनाने में आपकी मदद कर सकें

“जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ।”—मत्ती 28:19.

1. बीते समयों में परमेश्‍वर के सेवकों को कौन-से हुनर और रवैए पैदा करने की ज़रूरत पड़ी थी?

 यहोवा के सेवकों को कभी-कभी ऐसे हुनर और रवैए पैदा करने की ज़रूरत होती है, जो उन्हें यहोवा की मरज़ी पूरी करने में मदद दे सकें। इब्राहीम और सारा की मिसाल लीजिए। परमेश्‍वर से आज्ञा मिलने पर उन्होंने ऊर जैसे फलते-फूलते शहर को छोड़ दिया और तंबुओं में रहने के लिए अपने अंदर ज़रूरी गुण और काबिलीयतें बढ़ायीं। (इब्रानियों 11:8, 9, 15) यहोशू के बारे में क्या? उसे इस्राएलियों को वादा किए गए देश में पहुँचाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी। इसके लिए उसे अपने अंदर हिम्मत, यहोवा पर भरोसा और उसकी व्यवस्था का ज्ञान बढ़ाने की ज़रूरत थी। (यहोशू 1:7-9) उसी तरह, बसलेल और ओहोलीआब में चाहे पहले से हुनर क्यों न रहे हों, मगर परमेश्‍वर की आत्मा ने उनके हुनर को और भी निखारा। इसलिए वे निवासस्थान के निर्माण और उससे जुड़े कामों में हिस्सा ले सके और उसकी देखरेख भी कर सके।—निर्गमन 31:1-11.

2. चेला बनाने के सिलसिले में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

2 सदियों बाद यीशु मसीह ने अपने चेलों को यह काम सौंपा: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ . . . और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” (मत्ती 28:19, 20) इससे पहले, लोगों को कभी इतना बड़ा काम नहीं सौंपा गया था। चेला बनाने के काम में किन गुणों की ज़रूरत पड़ती है? हम अपने अंदर वे गुण कैसे बढ़ा सकते हैं?

परमेश्‍वर के लिए गहरा प्यार ज़ाहिर कीजिए

3. चेला बनाने की आज्ञा मानकर हम क्या दिखा सकते हैं?

3 अगर हमारे दिल में यहोवा के लिए गहरा प्यार होगा, तभी हम लोगों को सच्चे परमेश्‍वर की उपासना करने के लिए कायल कर पाएँगे। प्राचीन समय में इस्राएली दिल से परमेश्‍वर की आज्ञाएँ मानकर, उसे भानेवाले बलिदान चढ़ाकर और उसकी स्तुति में गीत गाकर अपने प्यार का सबूत दे सकते थे। (व्यवस्थाविवरण 10:12, 13; 30:19, 20; भजन 21:13; 96:1, 2; 138:5) चेले बनानेवालों के नाते, आज हम यहोवा के लिए अपना प्यार कैसे दिखा सकते हैं? परमेश्‍वर के नियमों का पालन करने, साथ ही उसके और उसके मकसदों के बारे में दूसरों को बताने के ज़रिए। हमें परमेश्‍वर ने जो आशा दी है, उसके बारे में हमें यकीन के साथ बोलना चाहिए और सही शब्दों का चुनाव करना चाहिए, जिससे सुननेवालों को लगे कि हम जो बोल रहे हैं, उस पर हमें पूरा यकीन है।—1 थिस्सलुनीकियों 1:5; 1 पतरस 3:15.

4. लोगों को यहोवा के बारे में सिखाने से यीशु को क्यों खुशी मिलती थी?

4 यीशु यहोवा से बेइंतिहा प्यार करता था। इसलिए उसे परमेश्‍वर के मकसद, राज्य और सच्ची उपासना के बारे में लोगों को बताने से बड़ी खुशी मिलती थी। (लूका 8:1; यूहन्‍ना 4:23, 24, 31) उसने तो यह तक कहा: “मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं।” (यूहन्‍ना 4:34) भजनहार के ये शब्द यीशु पर लागू होते हैं: “हे मेरे परमेश्‍वर मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्‍न हूं; और तेरी व्यवस्था मेरे अन्त:करण में बसी है। मैं ने बड़ी सभा में धर्म के शुभ समाचार का प्रचार किया है; देख, मैं ने अपना मुंह बन्द नहीं किया, हे यहोवा, तू इसे जानता है।”—भजन 40:8, 9; इब्रानियों 10:7-10.

5, 6. चेले बनानेवालों में कौन-सा खास गुण होना ज़रूरी है?

5 परमेश्‍वर का प्यार, बाइबल की सच्चाई सीखनेवाले नए लोगों को उभारता है कि वे यहोवा और उसके राज्य के बारे में दूसरों को बताएँ। ऐसा करते वक्‍त वे कभी-कभी इतने यकीन के साथ बोलते हैं कि लोग शास्त्र की जाँच करने के लिए कायल हो जाते हैं। (यूहन्‍ना 1:41) परमेश्‍वर के लिए प्यार ही वह खास गुण है जो हमें चेला बनाने के लिए उकसाता है। इसलिए आइए, हम बिना नागा बाइबल पढ़ने और उस पर मनन करने के ज़रिए यहोवा के लिए अपना प्यार हमेशा बरकरार रखें।—1 तीमुथियुस 4:6,15; प्रकाशितवाक्य 2:4.

6 इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा के लिए प्यार होने की वजह से ही यीशु मसीह एक जोशीला शिक्षक बना। मगर वह सिर्फ इसी वजह से एक कामयाब राज्य प्रचारक नहीं बना। तो फिर, और कौन-से गुण की वजह से यीशु चेला बनाने में कामयाब हुआ?

लोगों के लिए प्यार और परवाह दिखाइए

7, 8. यीशु लोगों को किस नज़र से देखता था?

7 यीशु लोगों की परवाह करता था और उनमें गहरी दिलचस्पी लेता था। यहाँ तक कि धरती पर आने से पहले, जब वह स्वर्ग में परमेश्‍वर का “कुशल कारीगर” था, तब भी उसे इंसानों से गहरा लगाव था। (नीतिवचन 8:30, 31, NHT) यही नहीं, धरती पर रहते वक्‍त उसके दिल में लोगों के लिए करुणा थी और जो लोग उसके पास आते थे, उन्हें वह विश्राम या ताज़गी पहुँचाता था। (मत्ती 11:28-30) यीशु ने हू-ब-हू यहोवा जैसा प्यार और करुणा ज़ाहिर की। इसी वजह से लोग एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर की उपासना करने के लिए खिंचे चले आते थे। यीशु का संदेश हर तरह के लोगों ने सुना, क्योंकि उसने उनके हालात को समझते हुए उनके लिए प्यार और परवाह दिखायी।—लूका 7:36-50; 18:15-17; 19:1-10.

8 जब एक आदमी ने यीशु से पूछा कि हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए उसे क्या करना चाहिए, तो ‘उसे देख कर यीशु को उस पर प्यार आया।’ (NHT) (मरकुस 10:17-21) बैतनिय्याह में यीशु ने जिन लोगों को सिखाया था, उनके बारे में हम बाइबल में पढ़ते हैं: “यीशु मरथा और उस की बहन और लाजर से प्रेम रखता था।” (यूहन्‍ना 11:1, 5) यीशु को लोगों की इतनी परवाह थी कि एक मौके पर थके होने के बावजूद, उसने उन्हें सिखाने के लिए अपना आराम तक त्याग दिया था। (मरकुस 6:30-34) इस तरह का गहरा प्यार और परवाह होने की वजह से ही यीशु लोगों को सच्ची उपासना की तरफ खींच लाने में सबसे कामयाब रहा है।

9. चेला बनानेवाले के नाते पौलुस ने कैसा रवैया दिखाया?

9 प्रेरित पौलुस को भी उन लोगों की सच्ची परवाह थी, जिन्हें वह प्रचार करता था। मिसाल के लिए, थिस्सलुनीके में जो लोग मसीही बने थे, उनसे पौलुस ने कहा: “हम तुम्हारी लालसा करते हुए, न केवल परमेश्‍वर का सुसमाचार, पर अपना अपना प्राण भी तुम्हें देने को तैयार थे, इसलिये कि तुम हमारे प्यारे हो गए थे।” जी हाँ, वह पौलुस का प्यार और उसकी मेहनत ही थी, जिसकी वजह से थिस्सलुनीके के कुछ लोग ‘मूरतों से फिरकर जीवते और सच्चे परमेश्‍वर की सेवा’ करने लगे। (1 थिस्सलुनीकियों 1:9; 2:8) यीशु और पौलुस की तरह, अगर हम भी लोगों के लिए सच्ची परवाह दिखाएँ, तो हमें भी यह देखकर बेइंतिहा खुशी होगी कि ‘अनंत जीवन के लिए सही मन रखनेवाले’ सुसमाचार को कबूल कर रहे हैं।—प्रेरितों 13:48, NW.

त्याग की भावना दिखाइए

10, 11. चेला बनाने में त्याग की भावना होना क्यों ज़रूरी है?

10 चेला बनानेवाले, अच्छे फल लाने के लिए त्याग करने को हरदम तैयार रहते हैं। वे यह कतई नहीं मानते कि धन-दौलत बटोरना ही ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत रखता है। दरअसल यीशु ने अपने चेलों से कहा था: “धनवानों को परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है!” चेले उसकी यह बात सुनकर दंग रह गए, मगर यीशु ने आगे कहा: “हे बालको, जो धन पर भरोसा रखते हैं, उन के लिये परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है! परमेश्‍वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊंट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है!” (मरकुस 10:23-25) यीशु ने अपने चेलों को सादगी-भरी ज़िंदगी जीने का बढ़ावा दिया, ताकि वे चेला बनाने के काम में अपना पूरा ध्यान लगाए रख सकें। (मत्ती 6:22-24, 33) मगर त्याग की भावना हमें चेला बनाने में कैसे मदद देती है?

11 यीशु ने हमें जिन बातों की आज्ञा दी है, उन्हें सिखाने में काफी मेहनत लगती है। चेला बनानेवाला मसीही आम तौर पर कोशिश करता है कि वह दिलचस्पी दिखानेवाले के साथ हर हफ्ते बाइबल अध्ययन करे। कुछ राज्य प्रचारकों ने ज़्यादा-से-ज़्यादा नेकदिल लोगों को ढूँढ़ निकालने के लिए पूरे दिन की नौकरी छोड़कर पार्ट-टाइम नौकरी की है। हज़ारों मसीहियों ने अपने इलाके में रहनेवाले फलाँ जाति या राष्ट्र के लोगों को प्रचार करने के लिए उनकी भाषा सीखी है। और दूसरे मसीही, कटनी के काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के लिए दूसरे इलाके या देश में जाकर बस गए हैं। (मत्ती 9:37, 38) त्याग की भावना के बगैर ये सब करना मुमकिन नहीं। मगर चेला बनाने के काम में अच्छे नतीजे पाने के लिए और भी कुछ गुण बढ़ाने की ज़रूरत है।

धीरज धरिए मगर वक्‍त ज़ाया न कीजिए

12, 13. चेला बनाने में धीरज धरना क्यों बेहद ज़रूरी है?

12 धीरज एक और गुण है जो चेला बनाने के काम में हमारी मदद करता है। हम मसीहियों को जल्द-से-जल्द सुसमाचार सुनाना है, मगर चेला बनाने में अकसर वक्‍त लगता है और धीरज धरना पड़ता है। (1 कुरिन्थियों 7:29) यीशु ने अपने सौतेले भाई याकूब के मामले में धीरज धरा था। हालाँकि याकूब शायद यीशु के प्रचार काम से अच्छी तरह वाकिफ था, मगर कोई तो बात थी जिसने उसे चेला बनने से काफी समय तक रोक रखा था। (यूहन्‍ना 7:5) लेकिन ऐसा मालूम होता है कि यीशु की मौत से लेकर सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त तक के उस थोड़े समय के अंदर ही याकूब यीशु का चेला बन गया। यह इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि बाइबल से ऐसा इशारा मिलता है कि याकूब अपनी माँ, अपने भाइयों और प्रेरितों के साथ प्रार्थना करने के लिए इकट्ठा हुआ था। (प्रेरितों 1:13, 14) इसके बाद, याकूब ने बढ़िया आध्यात्मिक तरक्की की और आगे चलकर मसीही कलीसिया में बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ सँभालीं।—प्रेरितों 15:13; 1 कुरिन्थियों 15:7.

13 किसानों की तरह, मसीही भी लोगों के दिलों में ऐसी बातों के बीज बोते हैं जिन्हें उगने में अकसर वक्‍त लगता है। जैसे, परमेश्‍वर के वचन की समझ, यहोवा के लिए प्यार और मसीह के जैसा रवैया। इसलिए मसीहियों को धीरज धरने की ज़रूरत होती है। याकूब ने लिखा: “हे भाइयो, प्रभु के आगमन तक धीरज धरो, देखो, गृहस्थ [“किसान,” हिन्दुस्तानी बाइबल] पृथ्वी के बहुमूल्य फल की आशा रखता हुआ प्रथम और अन्तिम वर्षा होने तक धीरज धरता है। तुम भी धीरज धरो, और अपने हृदय को दृढ़ करो, क्योंकि प्रभु का शुभागमन निकट है।” (याकूब 5:7, 8) याकूब अपने मसीही भाई-बहनों को ‘प्रभु के आगमन तक धीरज धरने’ का बढ़ावा दे रहा था। जब यीशु के चेले कोई बात समझ नहीं पाते थे, तब यीशु धीरज धरते हुए उन्हें या तो सीधे-सीधे या फिर मिसाल देकर समझाता था। (मत्ती 13:10-23; लूका 19:11; 21:7; प्रेरितों 1:6-8) अब जबकि प्रभु का आगमन हो चुका है, तो हमें भी चेला बनाते वक्‍त यीशु की तरह धीरज धरना चाहिए। जो लोग हमारे समय में यीशु के चेले बनते हैं, उनको हमें सब्र के साथ सिखाना चाहिए।—यूहन्‍ना 14:9.

14. धीरज धरने के बावजूद हम चेला बनाने के काम में अपने समय का बुद्धिमानी से इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं?

14 हमारे धीरज धरने के बावजूद भी हम जिनके साथ बाइबल अध्ययन करना शुरू करते हैं, उनमें से ज़्यादातर लोगों में राज्य का वचन फल नहीं लाता। (मत्ती 13:18-23) इसलिए, उनकी मदद करने की मुनासिब कोशिशें करने के बाद, बुद्धिमानी इसी में होगी कि हम उनके साथ अध्ययन करना बंद कर दें। और वह समय ऐसे लोगों को ढूँढ़ने में लगाएँ, जो बाइबल की सच्चाई की ज़्यादा कदर करेंगे। (सभोपदेशक 3:1, 6) बेशक, जिन लोगों में सच्ची कदर होती है, उन्हें भी वक्‍त और मदद की ज़रूरत होती है, ताकि वे अपने सोच-विचार, रवैए और ज़िंदगी में जिन बातों को अहमियत दी जानी चाहिए, उन मामलों में फेरबदल कर सकें। इसलिए हम धीरज धरते हैं, ठीक जैसे यीशु ने अपने उन चेलों के साथ धीरज धरा था, जिन्हें सही रवैया अपनाने में काफी वक्‍त लगा था।—मरकुस 9:33-37; 10:35-45.

अपने सिखाने की कला को निखारिए

15, 16. चेला बनाने के लिए सरल शब्दों में सिखाना और अच्छी तैयारी करना क्यों ज़रूरी है?

15 चेला बनाने के काम में कामयाब होने में परमेश्‍वर के लिए प्यार, लोगों के लिए परवाह, त्याग की भावना और धीरज जैसे गुण दिखाना बेहद ज़रूरी है। इनके अलावा, हमें अपने अंदर सिखाने का हुनर भी बढ़ाना चाहिए, क्योंकि यही हुनर हमें दूसरों को अपनी बात साफ और आसान तरीके से समझाने में मदद देता है। मिसाल के लिए, महान शिक्षक यीशु मसीह की कई बातें खासकर इसलिए दमदार थीं, क्योंकि उन्हें समझना आसान था। आपको शायद यीशु की ये बातें याद हों: “अपने लिये स्वर्ग में धन इकट्ठा करो।” “पवित्र वस्तु कुत्तों को न दो।” “बुद्धि की उत्तमता उसके कामों से सिद्ध होती है।” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्‍वर का है, वह परमेश्‍वर को दो।” (मत्ती 6:20; 7:6; 11:19; 22:21) बेशक, यीशु हमेशा सिर्फ थोड़े ही शब्दों में अपनी बात नहीं कहता था। वह लोगों को साफ शब्दों में सिखाता था और जब उसे लगता कि किसी बात को समझाने की ज़रूरत है, तो वह उसे खुलकर समझाता था। चेला बनाने के काम में आप यीशु के सिखाने का तरीका कैसे अपना सकते हैं?

16 सरल शब्दों में और आपकी बात लोगों को साफ समझ में आए, इस तरह सिखाने के लिए अच्छी तैयारी की ज़रूरत होती है। अकसर देखा गया है कि जो प्रचारक पहले से तैयारी नहीं करता, वह अध्ययन चलाते वक्‍त बहुत बातें करता है। जिस विषय पर अध्ययन चल रहा होता है, उस बारे में वह जो कुछ जानता है वह सब कह डालता है। लेकिन इस तरह, ढेर सारी बातों में खास मुद्दा खो सकता है। इसके उलट, जो प्रचारक अच्छी तैयारी करता है, वह विद्यार्थी के बारे में सोचता है कि कैसे उसकी मदद की जा सकती है। इसके अलावा, वह विषय पर मनन करता है और फिर अध्ययन के दौरान साफ शब्दों में सिर्फ उतनी जानकारी देता है, जितनी ज़रूरी है। (नीतिवचन 15:28; 1 कुरिन्थियों 2:1, 2) वह इस बात का ध्यान रखता है कि विद्यार्थी फलाँ विषय के बारे में पहले से कितना जानता है और अध्ययन के दौरान किन मुद्दों पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। हो सकता है प्रचारक अध्ययन किए जा रहे विषय के बारे में बहुत-सी दिलचस्प बातें जानता हो, मगर विद्यार्थी उसकी बात तभी साफ-साफ समझ पाएगा जब वह उसे गैर-ज़रूरी जानकारी न दे।

17. बाइबल के मुद्दों पर तर्क करने में हम किस तरह लोगों की मदद कर सकते हैं?

17 यीशु लोगों को सिर्फ जानकारी नहीं देता था, बल्कि उन्हें मामलों पर तर्क करने में भी मदद देता था। मिसाल के लिए, एक मौके पर उसने अपने एक चेले से पूछा: “शमौन, तू क्या सोचता है? पृथ्वी के राजा चुंगी या कर किस से लेते हैं, अपने पुत्रों से या परायों से?” (मत्ती 17:25, NHT) बाइबल के बारे में समझाना शायद हमें इतना अच्छा लगे कि हम ही पूरे अध्ययन के दौरान बातें करते रहें। ऐसे में हमें खुद को रोकना चाहिए, ताकि विद्यार्थी को अपनी बात कहने या अध्ययन से जुड़े किसी मामले को समझाने का मौका मिले। ज़ाहिर है कि हमें लोगों पर सवालों की बौछार नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय, अगर हम व्यवहार-कुशलता से, अच्छे दृष्टांतों का इस्तेमाल करके और सोच-समझकर सवाल पूछें, तो हम उन्हें अध्ययन की किताब में दिए बाइबल के मुद्दों पर तर्क करने और उन मुद्दों को समझने में मदद दे पाएँगे।

18. “सिखाने की कला” बढ़ाने में क्या शामिल है?

18 बाइबल, “सिखाने की कला” (NW) का ज़िक्र करती है। (2 तीमुथियुस 4:2; तीतुस 1:9) इसमें विद्यार्थियों से जानकारी सिर्फ मुँहज़बानी याद कराना शामिल नहीं है। हमें उनको सच और झूठ में, अच्छे और बुरे में, साथ ही बुद्धिमानी और मूर्खता में फर्क समझने में मदद देनी चाहिए। अगर हम ऐसा करें और विद्यार्थी के दिल में यहोवा के लिए प्यार बढ़ाएँ, तो वह खुद-ब-खुद समझ जाएगा कि उसे परमेश्‍वर की आज्ञा क्यों माननी चाहिए।

चेला बनाने के काम में जोश के साथ हिस्सा लीजिए

19. चेला बनाने के काम में किस तरह सभी मसीहियों का हाथ होता है?

19 मसीही कलीसिया एक ऐसा संगठन है, जिसमें चेला बनाने में सबका हाथ होता है। जब कोई नया व्यक्‍ति चेला बनता है, तब ना सिर्फ उस साक्षी को खुशी होती है जिसने उसे ढूँढ़ा और बाइबल के बारे में उसे सिखाया, बल्कि सभी को खुशी होती है। इसे समझने के लिए एक मिसाल पर गौर कीजिए। जब एक लापता बच्चे को ढूँढ़ने के लिए एक खोजी दल निकलता है, तब मुमकिन है कि उस दल का सिर्फ एक व्यक्‍ति उस बच्चे को ढूँढ़ निकाले। मगर जब बच्चा अपने माँ-बाप से जाकर गले लगता है, तब उस दल के सभी लोग खुशी से झूम उठते हैं। (लूका 15:6, 7) उसी तरह, चेला बनाने के काम में सिर्फ एक व्यक्‍ति का नहीं, बल्कि सबका हाथ होता है। सभी मसीही ऐसे लोगों को ढूँढ़ने में हिस्सा लेते हैं, जो शायद आगे चलकर यीशु के चेले बनें। और जब एक नया व्यक्‍ति राज्य घर में सभाओं के लिए आना शुरू करता है, तब वहाँ हाज़िर हर मसीही किसी-न-किसी तरीके से सच्ची उपासना के लिए उसकी कदर बढ़ाता है। (1 कुरिन्थियों 14:24, 25) इसलिए, सभी मसीही इस बात की खुशी मना सकते हैं कि हर साल हज़ारों लोग चेले बनते हैं।

20. अगर आप दूसरों को बाइबल की सच्चाई सिखाना चाहते हैं, तो आपको क्या करना चाहिए?

20 कई वफादार मसीही चाहते हैं कि वे दूसरों को यहोवा और सच्ची उपासना के बारे में सिखाएँ। मगर उनकी लाख कोशिशों के बावजूद शायद उन्हें यह खुशी न मिली हो। अगर आपके बारे में भी यह बात सच है, तो हिम्मत मत हारिए। यहोवा के लिए अपना प्यार बढ़ाते रहिए, लोगों के लिए परवाह दिखाइए, त्याग की भावना रखिए, धीरज धरिए और अपने सिखाने की कला को निखारिए। और सबसे बढ़कर, सच्चाई सिखाने की अपनी इच्छा के बारे में यहोवा से प्रार्थना कीजिए। (सभोपदेशक 11:1) इस बात से दिलासा पाइए कि यहोवा की सेवा में आप जो कुछ करते हैं, उससे आप चेला बनाने के उस काम में योगदान देते हैं, जिससे परमेश्‍वर की महिमा होती है। (w07 11/15)

क्या आप समझा सकते हैं?

• चेला बनाने के काम से परमेश्‍वर के लिए हमारे प्यार की परख क्यों होती है?

• चेले बनानेवालों को अपने अंदर कौन-से गुण बढ़ाने की ज़रूरत है?

• “सिखाने की कला” में क्या शामिल है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 21 पर तसवीर]

मसीही, चेले बनाने के ज़रिए परमेश्‍वर के लिए अपना गहरा प्यार जताते हैं

[पेज 23 पर तसवीर]

चेला बनानेवालों को दूसरों में दिलचस्पी क्यों लेनी चाहिए?

[पेज 24 पर तसवीर]

चेले बनानेवालों को अपने अंदर कौन-से गुण बढ़ाने की ज़रूरत है?

[पेज 25 पर तसवीर]

चेला बनाने के काम से मिलनेवाले अच्छे नतीजे देखकर सभी मसीही खुशी से झूम उठते हैं