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हाग्गै और जकर्याह किताबों की झलकियाँ

हाग्गै और जकर्याह किताबों की झलकियाँ

यहोवा का वचन जीवित है

हाग्गै और जकर्याह किताबों की झलकियाँ

सामान्य युग पूर्व 520 का समय है। बाबुल की बंधुआई से लौटे यहूदियों को यरूशलेम में यहोवा के मंदिर की बुनियाद डाले सोलह साल बीत चुके हैं। मगर अभी तक मंदिर बनकर तैयार नहीं हुआ है। और-तो-और, इस काम पर पाबंदी लगी हुई है। ऐसे में, यहोवा पहले हाग्गै को और फिर इसके दो महीने बाद, जकर्याह को अपना वचन सुनाने के लिए नबी ठहराता है।

हाग्गै और जकर्याह का एक ही मकसद है: लोगों में मंदिर का काम दोबारा शुरू करने का जोश भरना। इन नबियों की मेहनत रंग लाती है और पाँच सालों के अंदर मंदिर पूरी तरह बनकर तैयार हो जाता है। हाग्गै और जकर्याह ने लोगों को जो-जो संदेश सुनाए, वे बाइबल में उनके नाम की किताबों में दर्ज़ हैं। हाग्गै किताब की लिखाई सा.यु.पू. 520 में और जकर्याह की सा.यु.पू. 518 में पूरी हुई। इन नबियों की तरह, आज हमें भी परमेश्‍वर से एक काम मिला है, जो हमें इस मौजूदा व्यवस्था के अंत आने से पहले पूरा करना है। वह काम क्या है? वह है, राज्य का सुसमाचार सुनाना और चेला बनाना। तो फिर, आइए देखें कि हम हाग्गै और जकर्याह की किताबों से क्या हौसला पा सकते हैं।

अपने अपने चालचलन पर सोचो

(हाग्गै 1:1–2:23)

हाग्गै 112 दिनों के अंदर चार पैगाम सुनाता है, जिससे लोगों में जोश भर आता है। पहला पैगाम है: “अपने अपने चालचलन पर सोचो। पहाड़ पर चढ़ जाओ और लकड़ी ले आओ और इस भवन को बनाओ; और मैं उसको देखकर प्रसन्‍न हूंगा, और मेरी महिमा होगी, यहोवा का यही वचन है।” (हाग्गै 1:7, 8) लोग हाग्गै की बात मानते और उसके कहे मुताबिक काम करते हैं। दूसरा पैगाम दरअसल एक वादा है: “मैं [यहोवा] इस भवन को अपनी महिमा के तेज से भर दूंगा।”—हाग्गै 2:7.

तीसरे पैगाम में, हाग्गै बताता है कि लोगों ने मंदिर को दोबारा बनाने का काम छोड़ दिया है, इसलिए ‘वे और उनके सब काम’ यहोवा की नज़र में अशुद्ध ठहरे हैं। लेकिन जिस दिन से वे मरम्मत का काम शुरू करेंगे, उस दिन से यहोवा उन्हें “आशीष” देने लगेगा। चौथे पैगाम के मुताबिक, यहोवा ‘अन्यजातियों के राज्य-राज्य का बल तोड़ेगा’ और गवर्नर जरुब्बाबेल को एक “अंगूठी” के तौर पर सँभाले रखेगा।—हाग्गै 2:14, 19, 22, 23.

बाइबल सवालों के जवाब पाना:

1:6 (ईज़ी-टू-रीड वर्शन)—इन शब्दों का क्या मतलब है कितुम पीते हो, पर तुम्हें नशा नहीं होता? इन शब्दों का सीधा-सा मतलब है कि दाखमधु की भारी कमी होगी। यहोवा की आशीष खो बैठने की वजह से दाखमधु की मात्रा इतनी कम होगी कि वह नशा करने के लिए काफी नहीं होगी।

2:6, 7, 21, 22—कौन सारी जातियों को कंपकंपा रहा है और इसका क्या नतीजा निकला है? यहोवा दुनिया-भर में राज्य के सुसमाचार का प्रचार करवाकर ‘सारी जातियों को कम्पकपा’ रहा है। साथ ही, इस प्रचार काम के ज़रिए “सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं” भी यहोवा के भवन में आ रही हैं और उसे महिमा से भर रही हैं। आखिर में, “सेनाओं का यहोवा” “आकाश और पृथ्वी और समुद्र और स्थल” को कँपकँपाएगा, यानी वह पूरे दुष्ट संसार को इस कदर हिलाएगा कि उसका वजूद ही मिट जाएगा।—इब्रानियों 12:26, 27.

2:9 (NW)—किन मायनों में परमेश्‍वर के ‘बाद के भवन की महिमा, पहले भवन की महिमा से बड़ी’ थी? परमेश्‍वर के बाद के भवन की महिमा कम-से-कम तीन मायनों में पहले भवन की महिमा से बड़ी थी। एक, सुलैमान का बनाया आलीशान मंदिर सिर्फ 420 साल तक खड़ा रहा (यानी सा.यु.पू. 1027 से 607 तक), जबकि ‘बाद का भवन’ 580 से भी ज़्यादा सालों तक खड़ा रहा (यानी सा.यु.पू. 515 में उसके दोबारा बनाए जाने से लेकर सा.यु. 70 में उसके नाश तक)। दूसरा, ‘बाद के भवन’ में मसीहा यानी यीशु मसीह ने लोगों को सिखाया था। और तीसरा, पहले मंदिर के मुकाबले ‘बाद के भवन’ में ज़्यादा लोग परमेश्‍वर की उपासना के लिए आए थे।—प्रेरितों 2:1-11.

हमारे लिए सबक:

1:2-4. जब हमारे प्रचार काम का विरोध किया जाता है, तो हमें खबरदार रहना चाहिए कि कहीं हम ‘पहले राज्य की खोज’ करने के बजाय अपनी ख्वाहिशें पूरी करने में न लग जाएँ।—मत्ती 6:33.

1:5, 7. हमारी भलाई इसी में है कि हम ‘अपने अपने चालचलन पर सोचें’ और मनन करें कि हम जिस तरह से अपनी ज़िंदगी जी रहे हैं, उसका परमेश्‍वर के साथ हमारे रिश्‍ते पर क्या असर पड़ता है।

1:6, 9-11; 2:14-17. हाग्गै के दिनों में यहूदी अपनी लालसाओं को पूरा करने में लगे हुए थे, मगर उन्हें अपनी मेहनत का फल नहीं मिल रहा था। क्यों? क्योंकि उन्होंने मंदिर के काम को नज़रअंदाज़ कर दिया था, इसलिए परमेश्‍वर की आशीष उन पर नहीं थी। हमें आध्यात्मिक कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देनी चाहिए और तन-मन से परमेश्‍वर की सेवा करनी चाहिए। साथ ही, हमें याद रखना चाहिए कि चाहे हमारे पास खाने-पहनने को थोड़ा हो या ज़्यादा, “यहोवा की आशीष ही [हमें] धनी बनाती है।”—नीतिवचन 10:22, NW.

2:15, 18, NHT. यहोवा ने यहूदियों को उस दिन से आगे की ओर देखने और मंदिर को दोबारा बनाने के काम पर मन लगाने का बढ़ावा दिया। वह नहीं चाहता था कि वे बीते कल को याद करें कि वे किस तरह निर्माण काम में लापरवाह हो गए थे। उसी तरह, हमें भी आगे की ओर देखते हुए, परमेश्‍वर की उपासना करनी चाहिए।

‘न शक्‍ति से, परन्तु मेरी आत्मा के द्वारा’

(जकर्याह 1:1–14:21)

जब जकर्याह एक नबी के तौर पर अपना काम शुरू करता है, तो वह सबसे पहले यहूदियों को ‘यहोवा की और फिरने’ का न्यौता देता है। (जकर्याह 1:3) इसके बाद उसे एक-के-बाद-एक आठ दर्शन मिलते हैं, जिनसे साबित होता है कि मंदिर को दोबारा बनाने के काम में यहोवा, यहूदियों के साथ है। (बक्स, “लाक्षणिक अर्थ रखनेवाले जकर्याह के आठ दर्शन” देखिए।) जी हाँ, मंदिर का निर्माण ज़रूर पूरा होगा, मगर ‘बल या शक्‍ति से नहीं,’ बल्कि “[यहोवा की] आत्मा के द्वारा” ऐसा होगा। (जकर्याह 4:6) शाख या अंकुर नाम का पुरुष, “यहोवा के मन्दिर को बनाएगा” और “अपने सिंहासन पर याजक भी होगा।”—जकर्याह 6:12, 13, NHT, फुटनोट।

बेथेल के रहनेवाले, अपने नुमाइंदों को याजकों के पास यह पूछने के लिए भेजते हैं कि यरूशलेम के नाश की यादगार में क्या उन्हें उपवास रखना चाहिए या नहीं। तब यहोवा, जकर्याह से कहता है कि यरूशलेम पर आयी विपत्ति की याद में, चार उपवास के दिन जो शोक मनाए जाते हैं, वे “हर्ष और आनन्द और उत्सव के पर्बों के दिन हो जाएंगे।” (जकर्याह 7:2; 8:19) इसके बाद, जकर्याह दो ऐलान करता है। इन ऐलानों में दूसरी जातियों और झूठे भविष्यवक्‍ताओं के खिलाफ न्यायदंड, मसीहा के बारे भविष्यवाणियाँ और परमेश्‍वर के लोगों की बहाली का पैगाम भी शामिल होता है।—जकर्याह 9:1; 12:1.

बाइबल सवालों के जवाब पाना:

2:1, 2—उस पुरुष का डोरी से यरूशलेम को नापना क्या दिखाता है? यह दिखाता है कि शहर के चारों तरफ सुरक्षा के लिए दीवार खड़ी की जाएगी। स्वर्गदूत उस पुरुष को बताता है कि यरूशलेम में खुशहाली होगी और यहोवा उसकी हिफाज़त करेगा।—जकर्याह 2:3-5.

6:11-13—क्या महायाजक यहोशू को मुकुट पहनाने से वह राजा बन गया था? जी नहीं, क्योंकि यहोशू, दाऊद के राजवंश से नहीं था। लेकिन उसे मुकुट इसलिए पहनाया गया था, ताकि वह मसीहा को दर्शा सके। (इब्रानियों 6:20) “अंकुर” के बारे में की गयी भविष्यवाणी स्वर्ग में रहनेवाले राजा और याजक, यीशु मसीह पर पूरी हुई। (यिर्मयाह 23:5) जिस तरह यहोशू दोबारा बनाए गए मंदिर में, बंधुआई से लौटे यहूदियों के लिए महायाजक के तौर पर सेवा करता था, उसी तरह यीशु, यहोवा के आत्मिक मंदिर में महायाजक की तरह सेवा कर रहा है।

8:1-23—इन आयतों में बतायी दस भविष्यवाणियाँ कब पूरी हुईं? हरेक भविष्यवाणी इन शब्दों से शुरू होती है, “सेनाओं का यहोवा यों कहता है” और इन सब भविष्यवाणियों में परमेश्‍वर वादा करता है कि वह अपने लोगों को शांति देगा। इन भविष्यवाणियों में से कुछ सा.यु.पू. छठी सदी में पूरी हुई। लेकिन बाकी की भविष्यवाणियाँ या तो सन्‌ 1919 से पूरी हो चुकी हैं या आज पूरी हो रही हैं। *

8:3—यरूशलेम कोसच्चाई का नगरक्यों कहा गया? सामान्य युग पूर्व 607 में नाश होने से पहले, यरूशलेम “अन्धेर से भरी हुई नगरी” थी। वह भ्रष्ट नबियों और याजकों, साथ ही विश्‍वासघाती लोगों से भरी पड़ी थी। (सपन्याह 3:1; यिर्मयाह 6:13; 7:29-34) मगर जब से मंदिर दोबारा बनकर तैयार हुआ और लोग तन-मन से यहोवा की उपासना करने लगे, तब से यरूशलेम में शुद्ध उपासना की सच्चाइयाँ बोली जाने लगीं। इसलिए यरूशलेम को “सच्चाई का नगर” कहा गया।

11:7-14—जकर्याह नेअनुग्रहऔरएकतानाम की दो लाठियाँ तोड़ी थी, उसका क्या मतलब था? ये आयतें बताती हैं कि जकर्याह को एक चरवाहे के तौर पर ऐसी “भेड़ों की देखभाल” करने के लिए भेजा गया था, “जिन्हें मारने के लिये पाला गया था।” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यानी ऐसे भेड़ सरीखे लोगों के पास, जिन्हें अपने अगुवों के हाथों बड़े ज़ुल्म सहने पड़े थे। एक चरवाहे के नाते जकर्याह, यीशु मसीह को दर्शाता है, जिसे परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों के पास भेजा गया था, मगर उन्होंने उसे ठुकरा दिया। “अनुग्रह” नाम की लाठी तोड़ने का मतलब था कि परमेश्‍वर, यहूदियों के साथ बाँधी व्यवस्था-वाचा खत्म कर देगा और उन पर अनुग्रह करना छोड़ देगा। और “एकता” नाम की लाठी तोड़ने का मतलब था कि यहूदा और इस्राएल के बीच यहोवा की उपासना करने की वजह से जो भाईचारे का बंधन था, वह टूट जाएगा।

12:11—‘मगिद्दोन की तराई हदद्रिम्मोन में हुए रोने-पीटने’ का क्या मतलब है? “मगिद्दोन की तराई” में, मिस्र के फिरौन निको और यहूदा के राजा योशिय्याह के बीच लड़ाई हुई थी, जिसमें योशिय्याह मारा गया था। उसकी मौत के गम में कई सालों तक ‘विलाप के गीत’ गाए गए थे। (2 इतिहास 35:25) इसलिए ‘हदद्रिम्मोन में हुए रोने-पीटने’ का मतलब भी योशिय्याह की मौत के लिए विलाप करना हो सकता है।

हमारे लिए सबक:

1:2-6; 7:11-14. यहोवा उन लोगों से खुश होता है और उनकी ओर फिरता है, जो पश्‍चाताप करके उसकी ताड़ना कबूल करते हैं और तन-मन से उसकी उपासना करके उसके पास लौट आते हैं। दूसरी तरफ, वह उन लोगों की मदद की पुकार नहीं सुनता, जो उसके संदेश पर ‘ध्यान देने से इनकार करते, ढिठाई करते, और अपने कान ऐसे बन्द कर लेते हैं कि सुन न सकें।’—NHT.

4:6, 7. मंदिर के निर्माण में पहाड़ जैसी रुकावटें आयी थीं, मगर यहोवा की आत्मा की मदद से इस्राएली उन रुकावटों को पार कर सके और उन्होंने मंदिर बनाकर तैयार कर दिया। वैसे ही, परमेश्‍वर की सेवा में हमारे सामने चाहे कोई भी समस्या आए, अगर हम यहोवा पर विश्‍वास रखें, तो हम उसका सामना ज़रूर कर पाएँगे।—मत्ती 17:20.

4:10. यहोवा की निगरानी में, जरुब्बाबेल और उसके लोगों ने परमेश्‍वर के ऊँचे स्तरों के मुताबिक मंदिर को दोबारा बनाने का काम पूरा किया। यह दिखाता है कि यहोवा की उम्मीदों पर खरा उतरना, असिद्ध इंसानों के लिए कोई मुश्‍किल काम नहीं।

7:8-10; 8:16, 17. अगर हम यहोवा का अनुग्रह पाना चाहते हैं, तो हमें न्याय से काम करना होगा, कृपा और दया दिखानी होगी और एक-दूसरे से सच बोलना होगा।

8:9-13, NHT. यहोवा हमें तब आशीषें देता है, जब हम उससे मिले काम को पूरा करने के लिए ‘अपने हाथों को दृढ़’ करते हैं। इन आशीषों में शांति, सुरक्षा और आध्यात्मिक तरक्की शामिल हैं।

12:6. यहोवा के लोगों में से जिन भाइयों को कलीसिया की निगरानी का ज़िम्मा सौंपा गया है, उन्हें “जलती हुई मशाल” की तरह बनने की ज़रूरत है। यानी, उनमें गज़ब का जोश होना चाहिए।

13:3. हमें किसी भी इंसान से ज़्यादा, यहोवा और उसके संगठन के वफादार रहना चाहिए, फिर चाहे वह इंसान हमारा कोई रिश्‍तेदार या करीबी दोस्त ही क्यों न हो।

13:8, 9, NHT. यहोवा ने जिन धर्मत्यागियों को ठुकरा दिया था, वे देश की आबादी के दो तिहाई लोग थे, यानी उनकी तादाद काफी ज़्यादा थी। जबकि सिर्फ एक तिहाई लोगों को मानो आग में डालकर शुद्ध किया गया। उसी तरह हमारे समय में यहोवा ने ईसाईजगत को ठुकरा दिया है, जिसमें मसीही होने का दावा करनेवालों की गिनती, सच्चे मसीहियों की तुलना में ज़्यादा है। सिर्फ अभिषिक्‍त मसीहियों के एक छोटे समूह ने ही ‘यहोवा का नाम लेकर उसे पुकारा’ है और शुद्ध किए जाने के लिए खुद को उसके हवाले कर दिया। उन्होंने और उनके साथियों ने साबित कर दिखाया है कि वे यहोवा के साक्षी होने का सिर्फ दम ही नहीं भरते हैं, बल्कि इस नाम के मुताबिक काम भी करते हैं।

जोश के साथ सेवा करने के लिए उभारे जाना

हाग्गै और जकर्याह के पैगामों का आज हम पर क्या असर होता है? जब हम मनन करते हैं कि उनके पैगामों ने कैसे यहूदियों में मंदिर को दोबारा बनाने का जोश भर दिया था, तो क्या इससे हम राज्य का प्रचार करने और चेले बनाने के काम में पूरी गर्मजोशी के साथ हिस्सा लेने के लिए नहीं उभारे जाते?

जकर्याह ने भविष्यवाणी की थी कि मसीहा ‘गदहे पर चढ़कर आएगा,’ ‘चान्दी के तीस टुकड़ों’ के लिए उसके साथ विश्‍वासघात किया जाएगा, उसे मार डाला जाएगा और उसकी “भेड़-बकरियां तितर-बितर हो जाएंगी।” (जकर्याह 9:9; 11:12; 13:7) जब हम इन भविष्यवाणियों की पूर्ति पर मनन करते हैं, तो इसका हमारे विश्‍वास पर क्या ही ज़बरदस्त असर होता है! (मत्ती 21:1-9; 26:31, 56; 27:3-10) यहोवा के वचन पर और हमारे उद्धार के लिए उसने जो इंतज़ाम किए हैं, उन पर हमारा भरोसा और भी मज़बूत होता है।—इब्रानियों 4:12. (w07 12/1)

[फुटनोट]

^ जनवरी 1, 1996 की प्रहरीदुर्ग का पेज 9-22 देखिए।

[पेज 15 पर बक्स]

लाक्षणिक अर्थ रखनेवाले जकर्याह के आठ दर्शन

1:8-17: इस दर्शन में यहोवा ने गारंटी दी कि मंदिर ज़रूर बनकर तैयार होगा। साथ ही, इसमें यह भी दिखाया गया कि यरूशलेम और यहूदा के बाकी नगरों पर आशीषों की बौछार होगी।

1:18-21: इस दर्शन में दिखाया गया कि ‘यहूदा को तितर-बितर’ करनेवाले ‘चार सींगों,’ यानी यहोवा की उपासना का विरोध करनेवाली तमाम सरकारों को मिटा दिया जाएगा।

2:1-13: इस दर्शन के मुताबिक, यरूशलेम में खुशहाली होगी और यहोवा “उसके चारों ओर आग की सी शहरपनाह” ठहरेगा, यानी वह उसकी हिफाज़त करेगा।

3:1-10: इस दर्शन में यह दिखाया गया कि मंदिर के काम का विरोध करने में शैतान का हाथ था और महायाजक, यहोशू को छुड़ाया और शुद्ध किया गया।

4:1-14: इस दर्शन में भरोसा दिलाया गया कि पहाड़ जैसी बाधाएँ दूर की जाएँगी और गवर्नर जरुब्बाबेल मंदिर बनाने का काम पूरा करेगा।

5:1-4: इसमें उन दुष्टों को शाप दिया गया, जिन्हें सज़ा नहीं मिली।

5:5-11: यह दर्शन, दुष्टता के अंत की भविष्यवाणी के बारे में बताता है।

6:1-8: इस दर्शन में यह वादा किया गया कि स्वर्गदूत, यहोवा के काम की निगरानी और उसके लोगों की हिफाज़त करेंगे।

[पेज 12 पर तसवीर]

हाग्गै और जकर्याह के पैगामों का क्या मकसद था?

[पेज 14 पर तसवीर]

जिन भाइयों को कलीसिया की निगरानी करने का ज़िम्मा सौंपा गया है, वे कैसे “जलती हुई मशाल” की तरह हैं?