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‘प्रभु में आपको जो सेवा सौंपी गयी है, उसका ध्यान रखो’

‘प्रभु में आपको जो सेवा सौंपी गयी है, उसका ध्यान रखो’

‘प्रभु में आपको जो सेवा सौंपी गयी है, उसका ध्यान रखो’

‘इस बात का ध्यान रखो कि प्रभु में जो सेवा आपको सौंपी गयी है, आप उसे पूरा करें।’—कुलु. 4:17, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

1, 2. इंसानों की तरफ मसीहियों की क्या ज़िम्मेदारी बनती है?

 हमारे आस-पास रहनेवाले लोगों की तरफ हम मसीहियों की एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी बनती है। क्योंकि आज लोग जो फैसले करते हैं, उनसे तय होगा कि वे “बड़े क्लेश” में बचेंगे या नहीं। (प्रका. 7:14) नीतिवचन की किताब के ईश्‍वर-प्रेरित लेखक ने कहा: “जो लोग मार डाले जाने के लिए घसीटे जा रहे हैं, उन्हें छुड़ा, जो घात होने को लड़खड़ाते हुए चले जा रहे हैं, उन्हें रोक!” ये क्या ही ज़बरदस्त शब्द हैं! अगर हम लोगों को यह बताने से चूक जाएँ कि उनके आगे क्या चुनाव रखा है, तो हम उनके खून के दोषी बन सकते हैं। दरअसल, उसी लेखक ने आगे कहा: “यदि तू कहे, ‘देख हम तो यह जानते न थे,’ क्या वह जो हृदयों को तौलता है ध्यान नहीं देता? क्या वह जो तेरे प्राण की रक्षा करता है, यह नहीं जानता? क्या वह मनुष्य को उसके कार्यों के अनुसार प्रतिफल न देगा?” इससे साफ है कि यहोवा के सेवक यह हरगिज़ नहीं कह सकते कि वे “जानते न थे” कि लोगों पर क्या खतरा मँडरा रहा है।—नीति. 24:11, 12, NHT.

2 यहोवा की नज़र में इंसान की ज़िंदगी बहुत अनमोल है। इसलिए वह अपने सेवकों को उकसाता है कि वे ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों की जान बचाने की हर मुमकिन कोशिश करें। परमेश्‍वर के हरेक सेवक के लिए ज़रूरी है कि वह बाइबल से जीवन देनेवाले संदेश का ऐलान करे। हमारा यह काम पहरेदार के काम की तरह है, जो किसी भी खतरे को आते देख सबको खबरदार करता है। बेशक, हम नहीं चाहते कि जो नाश होंगे, उनके खून का दोष हमारे सिर आए। (यहे. 33:1-7) तो फिर, यह कितना ज़रूरी है कि हम परमेश्‍वर के ‘वचन का प्रचार करने’ में लगे रहें!—2 तीमुथियुस 4:1, 2, 5 पढ़िए।

3. हम इस लेख में और अगले दो लेखों में किन विषयों पर चर्चा करेंगे?

3 इस लेख में आप यह सीखेंगे कि जान बचाने के इस काम में आनेवाली रुकावटों को आप कैसे पार कर सकते हैं और ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों की कैसे मदद कर सकते हैं। दूसरे अध्ययन लेख में यह चर्चा की जाएगी कि आप अहम सच्चाइयाँ सिखाने की अपनी कला को कैसे निखार कर सकते हैं। तीसरे अध्ययन लेख में यह बताया जाएगा कि दुनिया-भर के राज्य प्रचारकों को कैसे बढ़िया नतीजे मिल रहे हैं। लेकिन इन विषयों पर गौर करने से पहले, अच्छा होगा कि हम एक बार फिर इस बात पर विचार करें कि हम जिस दौर में जी रहे हैं, वह इतना कठिन क्यों हैं।

आज क्यों ज़्यादातर लोगों के पास कोई आशा नहीं है

4, 5. आज इंसान किन हालात से गुज़र रहे हैं, और ऐसे में बहुत-से लोग क्या करते हैं?

4 दुनिया में हो रही घटनाएँ दिखाती हैं कि हम “जगत के अन्त” के समय में जी रहे हैं और अंत बहुत ही नज़दीक है। यीशु और उसके चेलों ने “अन्तिम दिनों” में होनेवाली जिन घटनाओं और हालात के बारे में बताया था, आज इंसान उन्हीं का सामना कर रहा है। तरह-तरह की ‘पीड़ाएँ,’ जैसे लड़ाई, अकाल, भूकंप और दूसरी आफतें इंसान पर अपना कहर ढा रही हैं। हर कहीं अधर्म, स्वार्थ और दूसरे बुरे रवैए देखने को मिलते हैं। यहाँ तक कि बाइबल के उसूलों के मुताबिक जीनेवालों को भी ‘कठिन समयों’ का सामना करना पड़ रहा है।—मत्ती 24:3, 6-8, 12; 2 तीमु. 3:1-5.

5 लेकिन ज़्यादातर इंसान इस बात से बेखबर हैं कि दुनिया में होनेवाली इन सारी घटनाओं के असली मायने क्या हैं। इसलिए बहुत-से लोग बस अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता करते हैं। दूसरे ऐसे भी हैं जो अपने अज़ीज़ों की मौत या कुछ और हादसों की वजह से पूरी तरह टूट जाते हैं। ये सब घटनाएँ क्यों घट रही हैं और इनका क्या हल है, इस बारे में लोगों को सही समझ नहीं है। इसलिए उनके पास कोई भी आशा नहीं है।—इफि. 2:12.

6. “बड़ा बाबुल” क्यों अपने लोगों को मदद नहीं दे पाया है?

6 “बड़ा बाबुल” यानी पूरी दुनिया में साम्राज्य की तरह फैले झूठे धर्म इंसानों को राहत पहुँचाने में नाकाम रहे हैं। इसके उलट, उन्होंने बेशुमार लोगों को “व्यभिचार की मदिरा” पिलायी है, जिसकी वजह से वे आध्यात्मिक तौर पर लड़खड़ा रहे हैं। यही नहीं, झूठे धर्मों ने एक वेश्‍या की तरह, “पृथ्वी के राजाओं” को अपने प्रेमजाल में फँसाकर उन्हें अपनी मुट्ठी में कर रखा है। और-तो-और, उन्होंने दुनिया की सरकारों की लालसा भी पूरी की है। वह कैसे? उन्होंने झूठी शिक्षाओं और भूतविद्या से जुड़े कामों के ज़रिए आम जनता को इस कदर अंधा कर रखा है कि वे सरकार की हर बात मानने को तैयार हैं। झूठे धर्मों ने एक तरफ काफी ताकत तो हासिल कर ली है और उनका दबदबा भी बहुत बढ़ गया है, मगर वहीं दूसरी तरफ उन्होंने सच्चाई को पूरी तरह ठुकरा दिया है।—प्रका. 17:1, 2, 5; 18:23.

7. आज ज़्यादातर इंसानों के आगे कैसा भविष्य है, लेकिन उनमें से कुछ की मदद कैसे की जा सकती है?

7 यीशु ने बताया था कि ज़्यादातर इंसान चौड़े मार्ग पर चलेंगे, जो विनाश की ओर ले जाता है। (मत्ती 7:13, 14) आज कुछ लोग चौड़े मार्ग पर इसलिए चल रहे हैं, क्योंकि उन्होंने जानबूझकर बाइबल की शिक्षाओं को ठुकराया है। लेकिन बहुत-से लोग ऐसे भी हैं, जो इस मार्ग पर इसलिए चल रहे हैं क्योंकि उनके अगुवों ने उन्हें यह नहीं सिखाया कि यहोवा उनसे क्या चाहता है और इस तरह, उन्हें अंधेरे में रखा है। इसलिए अगर इनमें से कुछ को बाइबल से दिखाया जाए कि क्यों उन्हें अपनी ज़िंदगी में बदलाव करने की ज़रूरत है, तो वे बदल सकते हैं। लेकिन जो बड़े बाबुल में ही रहेंगे और बाइबल के स्तरों को ठुकराते रहेंगे, वे “बड़े क्लेश” में नहीं बच पाएँगे।—प्रका. 7:14.

‘बिना रुके’ प्रचार करते रहो

8, 9. पहली सदी के मसीहियों ने विरोध आने पर क्या किया, और क्यों?

8 यीशु ने कहा था कि उसके चेले, राज्य के सुसमाचार का प्रचार करेंगे और चेले बनाएँगे। (मत्ती 28:19, 20) इसलिए सच्चे मसीही हमेशा से मानते आए हैं कि प्रचार में हिस्सा लेना, परमेश्‍वर के वफादार बने रहने और अपना मसीही विश्‍वास ज़ाहिर करने के लिए निहायत ज़रूरी है। इस वजह से यीशु के शुरूआती चेले विरोध के बावजूद निडरता से प्रचार करते रहे। उन्होंने यहोवा पर पूरा भरोसा रखा और उससे प्रार्थना की कि वह उन्हें उसका “वचन बड़े हियाव से सुना[ते]” रहने की ताकत दे। यहोवा ने उनकी प्रार्थना सुनी और उन्हें पवित्र आत्मा से भर दिया और वे परमेश्‍वर का वचन हियाव से सुनाने लगे।—प्रेरि. 4:18, 29, 31.

9 जब यहूदी धर्म-गुरु हिंसा पर उतर आए, तब क्या चेलों का सुसमाचार प्रचार करने का इरादा कमज़ोर पड़ गया? बिलकुल नहीं। प्रेरितों के प्रचार काम से यहूदी धर्म-गुरुओं को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने प्रेरितों को गिरफ्तार करवाया, उन्हें धमकी दी और कोड़े लगवाए। इन सबके बावजूद, प्रेरित ‘प्रति दिन यह उपदेश देने और इस बात का सुसमाचार सुनाने से न रुके कि यीशु ही मसीह है।’ वे समझ गए कि “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही [उनका] कर्तव्य कर्म है।”—प्रेरि. 5:28, 29, 40-42.

10. आज मसीहियों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन उनके अच्छे चालचलन का क्या नतीजा हो सकता है?

10 हालाँकि आज, परमेश्‍वर के ज़्यादातर सेवकों को प्रचार करने की वजह से पीटा नहीं जाता या उन्हें जेल में नहीं डाला जाता, मगर उन्हें दूसरे किस्म की परीक्षाओं और चुनौतियाँ का सामना ज़रूर करना पड़ता है। मिसाल के लिए, बाइबल से तालीम पाया हुआ विवेक आपको ऐसा चालचलन बनाए रखने के लिए उभारे, जो ज़्यादातर लोगों को रास न आए या जिससे आप बाकी लोगों से अलग दिखें। जब आप बाइबल के सिद्धांतों के आधार पर फैसले लेते हैं, तो आपके साथ काम करनेवाले लोग, स्कूल के दोस्त या फिर आपके पड़ोसी सोच सकते हैं कि आप बड़े अजीब किस्म के इंसान हैं। लेकिन लोगों के इस तरह के व्यवहार से खुद के इरादे को कमज़ोर पड़ने मत दीजिए। यह दुनिया आध्यात्मिक अंधकार में है, मगर हम मसीहियों को “जलते दीपकों” की तरह चमकने की ज़रूरत है। (फिलि. 2:15) और क्या पता, कुछ नेकदिल इंसान शायद आपके भले कामों को देखकर उनकी कदर करें और यहोवा की बड़ाई करें।—मत्ती 5:16 पढ़िए।

11. (क) कुछ लोग हमारे प्रचार काम की तरफ कैसा रवैया दिखाते हैं? (ख) प्रेरित पौलुस ने किस तरह के विरोध का सामना किया, और ऐसे में उसने कैसा रवैया दिखाया?

11 हमें राज्य का संदेश सुनाते रहने के लिए हिम्मत की ज़रूरत पड़ती है। कुछ लोग, यहाँ तक कि हमारे नाते-रिश्‍तेदार शायद हमारा मज़ाक उड़ाएँ या किसी और तरीके से हमारा हौसला तोड़ने की कोशिश करें। (मत्ती 10:36) प्रेरित पौलुस को प्रचार करने की वजह से कई बार पीटा गया था। ध्यान दीजिए कि इस तरह सताए जाने पर उसने कैसा रवैया दिखाया। उसने कहा: “दुख उठाने और उपद्रव सहने पर भी हमारे परमेश्‍वर ने हमें ऐसा हियाव दिया, कि हम परमेश्‍वर का सुसमाचार भारी विरोधों के होते हुए भी तुम्हें सुनाएं।” (1 थिस्स. 2:2) बेशक, पकड़े जाने, कपड़े फाड़े जाने, बेतों से पीटे जाने और जेल में डाले जाने के बाद, पौलुस के लिए प्रचार करते रहना आसान नहीं था। फिर भी, वह सुसमाचार सुनाने में लगा रहा। (प्रेरि. 16:19-24) आखिर उसे यह सब करने की हिम्मत कहाँ से मिली? पौलुस में परमेश्‍वर से मिले प्रचार काम की ज़िम्मेदारी को पूरा करने की ज़बरदस्त इच्छा थी और इसी इच्छा ने उसे अपनी सेवा में लगे रहने की हिम्मत दी।—1 कुरि. 9:16.

12, 13. कुछ लोग किन समस्याओं का सामना करते हैं, और वे इनसे निपटने के लिए क्या कदम उठाते हैं?

12 इसके अलावा, आजकल लोगों से घर पर मिलना बहुत मुश्‍किल हो गया है। या फिर बहुत ही कम लोग राज्य संदेश में दिलचस्पी दिखाते हैं। ऐसे हालात में जोश के साथ प्रचार करते रहना, हमारे लिए एक चुनौती हो सकता है। मगर इस चुनौती का सामना करने के लिए हम क्या कर सकते हैं? हमें शायद मौके ढूँढ़कर गवाही देने के लिए और भी ज़्यादा हिम्मत जुटानी पड़े। हमें हफ्ते के दूसरे दिन या किसी और वक्‍त पर लोगों से मिलने की कोशिश भी करनी पड़ सकती है। या फिर हमें शायद प्रचार के लिए ऐसे इलाकों पर ध्यान देना पड़े, जहाँ ज़्यादा लोगों से मुलाकात की जा सकती है।—यूहन्‍ना 4:7-15; प्रेरितों 16:13; 17:17 से तुलना कीजिए।

13 इसके अलावा, कई मसीहियों को ढलती उम्र और खराब सेहत जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस वजह से वे प्रचार काम में उतना नहीं कर पाते, जितना वे करना चाहते हैं। क्या आप भी इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं? अगर हाँ, तो हिम्मत मत हारिए। यहोवा आपकी हदों को बखूबी जानता है और आप उसकी सेवा में जितना कर पाते हैं, वह उसकी बहुत कदर करता है। (2 कुरिन्थियों 8:12 पढ़िए।) आप चाहे विरोध, बेरुखी, खराब सेहत या किसी और तरह की आज़माइश का सामना क्यों न करें, मगर दूसरों को सुसमाचार सुनाने में अपना भरसक करते रहिए।—नीति. 3:27. मरकुस 12:41-44 से तुलना कीजिए।

‘अपनी सेवा का ध्यान रख’

14. प्रेरित पौलुस ने अपने संगी भाई-बहनों के लिए क्या मिसाल रखी, और उसने उन्हें क्या सलाह दी?

14 प्रेरित पौलुस ने बड़ी लगन से अपनी सेवा पूरी की और उसने अपने संगी भाई-बहनों को भी ऐसा करने का बढ़ावा दिया। (प्रेरि. 20:20, 21; 1 कुरि. 11:1) उन मसीहियों में से एक को पौलुस ने खास तौर पर उकसाया था। वह था पहली सदी का मसीही अर्खिप्पुस। कुलुस्से के मसीहियों को लिखी अपनी पत्री में पौलुस ने कहा: ‘अर्खिप्पुस से कहना कि वह इस बात का ध्यान रखे कि प्रभु में जो सेवा उसे सौंपी गयी है, वह उसे पूरा करे।’ (कुलु. 4:17, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) अर्खिप्पुस कौन था या उसके हालात कैसे थे, यह तो हम नहीं जानते। मगर पौलुस की बातों से इतना ज़रूर ज़ाहिर होता है कि उसने प्रचार करने की ज़िम्मेदारी कबूल की थी। उसी तरह, अगर आप एक समर्पित मसीही हैं, तो इसका मतलब है कि आपने भी प्रचार करने की ज़िम्मेदारी कबूल की है। तो क्या आप अपनी सेवा का ध्यान रख रहे हैं, ताकि आप उसे पूरा कर सकें?

15. मसीही समर्पण का क्या मतलब है, और इस बात को मन में रखते हुए हमें खुद से कौन-से सवाल पूछने चाहिए?

15 हमने बपतिस्मा लेने से पहले, दिल से यहोवा से प्रार्थना की थी और उसे अपना जीवन समर्पित किया था। इसका मतलब है कि हमने यहोवा की मरज़ी पूरी करने की ठान ली है। इस बात को मन में रखते हुए हमें अब खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करना सचमुच मेरी ज़िंदगी का सबसे ज़रूरी काम है?’ हमारे ऊपर कई ज़िम्मेदारियाँ हो सकती हैं, जिन्हें यहोवा चाहता है कि हम पूरा करें। जैसे, परिवार की ज़रूरतें पूरी करना। (1 तीमु. 5:8) लेकिन इन ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के बाद हमारे पास जो वक्‍त और ताकत बचती है, हम उसका कैसे इस्तेमाल करते हैं? हम अपनी ज़िंदगी में किन बातों को पहली जगह देते हैं?2 कुरिन्थियों 5:14, 15 पढ़िए।

16, 17. जवान मसीही या जिनके पास कम ज़िम्मेदारियाँ हैं, वे क्या करने की सोच सकते हैं?

16 क्या आप एक जवान समर्पित मसीही हैं, जो स्कूल की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं या पूरी करनेवाले हैं? अगर हाँ, तो शायद फिलहाल आप पर परिवार की भारी ज़िम्मेदारियाँ नहीं हैं। तो फिर, आप अपने जीवन के साथ क्या करने की सोच रहे हैं? भविष्य के बारे में कौन-से फैसले लेना सही होगा, जिससे कि आप यहोवा की मरज़ी पूरी करने के अपने वादे को और भी बेहतर तरीके से निभा सकें? कई जवानों ने पायनियर सेवा करने के लिए अपनी ज़िंदगी में बदलाव किया है। नतीजा, उन्हें बहुत खुशी और संतोष मिला है।—भज. 110:3; सभो. 12:1.

17 हो सकता है, आप एक ऐसे जवान हैं जो पूरे समय की नौकरी करते हैं और खुद की देखभाल करने के अलावा आपके पास थोड़ी-बहुत ज़िम्मेदारियाँ हैं। और जब भी आपको समय मिलता है, तो बेशक उस वक्‍त कलीसिया के कामों में हिस्सा लेने से आपको बहुत खुशी मिलती होगी। लेकिन क्या आप अपनी खुशी बढ़ा सकते हैं? क्या आपने अपनी सेवा को बढ़ाने के बारे में सोचा है? (भज. 34:8; नीति. 10:22) कुछ इलाकों में अभी-भी लोगों तक सच्चाई का जीवन देनेवाला संदेश पहुँचाने का बहुत काम बाकी है। क्या आप अपने जीवन में कुछ फेरबदल कर सकते हैं, ताकि आप ऐसे इलाकों में जाकर सेवा कर सकें, जहाँ राज्य प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है?1 तीमुथियुस 6:6-8 पढ़िए।

18. एक जोड़े ने अपनी ज़िंदगी में क्या फेरबदल किए, और इसका क्या नतीजा निकला?

18 अमरीका के रहनेवाले, केविन और एलीना की मिसाल लीजिए। * वे जिस इलाके में रहते थे, वहाँ नए शादीशुदा जोड़े के लिए अपना एक घर खरीदना आम बात थी। इसलिए जब केविन और एलीना की नयी-नयी शादी हुई, तो उन्होंने भी अपने लिए एक घर खरीदा। दोनों पूरे समय की नौकरी करते थे और आराम की ज़िंदगी बसर कर रहे थे। लेकिन नौकरी और घर के कामकाज में वे इस कदर उलझे रहते थे कि प्रचार के लिए उनके पास न के बराबर समय बचता था। कुछ वक्‍त बाद, उन्हें एहसास हुआ कि वे करीब-करीब अपना पूरा समय और ताकत ऐशो-आराम की चीज़ों की देखभाल करने में लगा देते हैं। और जब उन्होंने एक खुशहाल पायनियर जोड़े पर गौर किया कि वे कितनी सादगी-भरी ज़िंदगी जी रहे हैं, तो उन्होंने अपनी ज़िंदगी में फेरबदल करने का फैसला किया। उन्होंने यहोवा से बिनती की कि वह उन्हें सही फैसला लेने में मदद दे। इसके बाद, उन्होंने अपना घर बेच दिया और एक फ्लैट में जाकर रहने लगे। एलीना पार्ट-टाइम की नौकरी करने लगी और एक पायनियर बन गयी। उसे प्रचार में जो बढ़िया अनुभव मिलते थे, उनके बारे में वह केविन को बताने लगी। धीरे-धीरे केविन में भी जोश भर आया, उसने पूरे समय की अपनी नौकरी छोड़ दी और वह भी पायनियर सेवा करने लगा। कुछ समय बाद, वे दक्षिण अमरीका के एक देश में जाकर बस गए, जहाँ राज्य प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत थी। आज, केविन कहता है: “शादी के बाद हम खुश तो थे, मगर जब हम साथ मिलकर अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए मेहनत करने लगे, तो हमारी खुशी दुगुनी हो गयी।”—मत्ती 6:19-22 पढ़िए।

19, 20. सुसमाचार का प्रचार करना, हमारे समय का सबसे ज़रूरी काम क्यों है?

19 आज पूरी दुनिया में जो सबसे ज़रूरी काम किया जा रहा है, वह है सुसमाचार का प्रचार। (प्रका. 14:6, 7) इस काम से यहोवा के नाम को पवित्र किया जाता है। (मत्ती 6:9) बाइबल का संदेश हर साल उन हज़ारों लोगों की ज़िंदगी को सँवारता है, जो इसे कबूल करते हैं। यही नहीं, यह उन्हें उद्धार भी दिला सकता है। लेकिन प्रेरित पौलुस ने एक सवाल पूछा था: “प्रचार किए बिना वे कैसे सुनेंगे?” (रोमि. 10:14, 15, आर.ओ.वी.) वाकई, जब तक लोगों को प्रचार नहीं किया जाएगा, तो वे भला बाइबल के संदेश के बारे में कैसे जानेंगे? तो फिर, ठान लीजिए कि आप अपनी सेवा पूरी करने में अपना भरसक करेंगे।

20 आप लोगों को एक और तरीके से इन कठिन समयों की अहमियत समझने और आज वे जो फैसले लेते हैं, उनके क्या अंजाम होंगे, यह जानने में मदद दे सकते हैं। वह तरीका है, सिखाने की अपनी कला बढ़ाना। यह आप कैसे कर सकते हैं, इस बारे में हम अगले लेख में चर्चा करेंगे।

[फुटनोट]

^ नाम बदल दिए गए हैं।

आप क्या जवाब देंगे?

• इंसानों की तरफ मसीहियों की क्या ज़िम्मेदारी बनती है?

• प्रचार में आनेवाली रुकावटों का हम कैसे सामना कर सकते हैं?

• हमने जो सेवा कबूल की है, उसे हम कैसे पूरा कर सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 5 पर तसवीर]

विरोध के बावजूद प्रचार करते रहने के लिए हिम्मत की ज़रूरत पड़ती है

[पेज 7 पर तसवीर]

अगर आप ऐसे इलाके में प्रचार करते हैं, जहाँ लोगों से घर पर मिलना मुश्‍किल है, तो आप क्या कर सकते हैं?