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“सही मन” रखनेवाले सुसमाचार को कबूल कर रहे हैं

“सही मन” रखनेवाले सुसमाचार को कबूल कर रहे हैं

“सही मन” रखनेवाले सुसमाचार को कबूल कर रहे हैं

‘जितने अनंत जीवन के लिए सही मन रखनेवाले थे, उन्होंने विश्‍वास किया।’—प्रेरि. 13:48, NW.

1, 2. सारे जगत में सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, यीशु की इस भविष्यवाणी के मुताबिक पहली सदी के मसीहियों ने क्या किया?

 यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि राज्य का सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा। (मत्ती 24:14) इस भविष्यवाणी के मुताबिक पहली सदी के मसीहियों ने जो किया, उसका रोमांचक ब्यौरा बाइबल की प्रेरितों की किताब में दर्ज़ है। उन जोशीले मसीहियों ने प्रचार काम का रास्ता तैयार किया, ताकि दूसरे भी उनकी मिसाल पर चल सकें। यीशु के चेलों ने यरूशलेम में ज़ोर-शोर से प्रचार का काम किया। नतीजा, हज़ारों लोग, यहाँ तक कि “याजकों का एक बड़ा समाज” भी पहली सदी की मसीही कलीसिया के सदस्य बने।—प्रेरि. 2:41; 4:4; 6:7.

2 उस ज़माने के मिशनरियों ने मसीही धर्म अपनाने में और भी बहुत-से लोगों की मदद की। मिसाल के तौर पर, फिलिप्पुस ने सामरिया जाकर प्रचार किया, जहाँ भीड़-की-भीड़ ने मन लगाकर उसकी बातें सुनीं। (प्रेरि. 8:5-8) पौलुस ने अपने कई साथियों के संग दूर-दूर तक सुसमाचार का प्रचार किया। जैसे कुप्रुस, मकिदुनिया, यूनान, इटली और एशिया माइनर के कुछ हिस्सों में। उसने जिन-जिन शहरों में प्रचार किया, वहाँ यहूदी और यूनानी दोनों भारी तादाद में मसीही बने। (प्रेरि. 14:1; 16:5; 17:4) तीतुस ने क्रेते में मिशनरी सेवा की। (तीतु. 1:5) पतरस बाबुल में प्रचार का काम करने में लगा रहा। और जब उसने लगभग सा.यु. 62-64 में अपनी पहली पत्री लिखी, उस वक्‍त तक पुन्तुस, गलतिया, कप्पदूकिया, एशिया और बितूनिया के लोग मसीहियों के प्रचार काम से अच्छी तरह वाकिफ हो गए थे। (1 पत. 1:1; 5:13) वाकई, वह क्या ही रोमांचक दौर था! पहली सदी के मसीही प्रचारक इतने जोशीले थे कि उनके दुश्‍मनों ने कहा कि इन्होंने “जगत को उलटा पुलटा कर दिया है।”—प्रेरि. 17:6; 28:22.

3. राज्य प्रचारकों के काम से क्या नतीजे हासिल हुए हैं और इससे आप कैसा महसूस करते हैं?

3 आज हमारे समय में भी मसीही कलीसिया में क्या ही लाजवाब बढ़ोतरी हो रही है। जब आप यहोवा के साक्षियों की सालाना रिपोर्ट पढ़ते हैं और दुनिया-भर में उनके प्रचार काम के अच्छे नतीजे देखते हैं, तो क्या आप उमंग से नहीं भर जाते? और क्या यह जानकर आपका दिल गदगद्‌ नहीं हो उठता कि सन्‌ 2007 के सेवा साल के दौरान 60 लाख से भी ज़्यादा बाइबल अध्ययन चलाए गए? यही नहीं, पिछले साल यीशु की मौत के स्मारक की हाज़िरी दिखाती है कि साक्षियों के अलावा करीब एक करोड़ लोगों ने सुसमाचार में दिलचस्पी दिखायी और स्मारक के अहम मौके पर हाज़िर हुए। इससे ज़ाहिर होता है कि अब भी बहुत काम करना बाकी है।

4. आज कौन राज्य का संदेश कबूल कर रहे हैं?

4 पहली सदी की तरह, आज भी ‘जितने अनंत जीवन के लिए सही मन रखनेवाले’ हैं, वे सच्चाई को कबूल कर रहे हैं। (प्रेरि. 13:48, NW) ऐसे लोगों को यहोवा अपने संगठन में इकट्ठा कर रहा है। (हाग्गै 2:7 पढ़िए।) लोगों को इकट्ठा करने के इस काम में पूरा सहयोग देने के लिए, हमें प्रचार की तरफ कैसा रवैया रखना चाहिए?

बिना किसी भेदभाव के प्रचार कीजिए

5. किस तरह के लोग यहोवा की मंज़ूरी पा सकते हैं?

5 पहली सदी के मसीही समझ गए थे कि “परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” (प्रेरि. 10:34, 35) अगर एक इंसान चाहता है कि यहोवा के साथ उसका अच्छा रिश्‍ता हो, तो उसे यीशु के छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास करना होगा। (यूह. 3:16, 36) यहोवा तो यही चाहता है कि “सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।”—1 तीमु. 2:3, 4.

6. राज्य प्रचारकों को क्या नहीं करना चाहिए और क्यों?

6 सुसमाचार के प्रचारक अगर लोगों का रंग-रूप, जाति-धर्म, समाज में उनका ओहदा या कोई और बात देखकर उनके बारे में पहले से कोई राय कायम कर लें, तो यह गलत होगा। ज़रा सोचिए: क्या आप इस बात के लिए एहसानमंद नहीं कि जिसने आपको पहली बार सच्चाई के बारे में बताया, उसने बिना किसी भेदभाव के ऐसा किया? तो फिर हमें भी हर किसी को सुसमाचार सुनाने से पीछे नहीं हटना चाहिए, ताकि उसकी जान बच सके।—मत्ती 7:12 पढ़िए।

7. प्रचार में मिलनेवाले लोगों के बारे में हम क्यों न्याय नहीं कर सकते?

7 यहोवा ने यीशु को न्यायी ठहराया है। इसलिए किसी के बारे में न्याय करने का हमें कोई अधिकार नहीं है। और यह ठीक भी है, क्योंकि हम तो सिर्फ ‘मुँह देखा’ न्याय या “अपने कानों के सुनने के अनुसार” निर्णय कर सकते हैं। जबकि यीशु तो इंसान के दिल की बात पढ़ सकता है।—यशा. 11:1-5; 2 तीमु. 4:1.

8, 9. (क) मसीही बनने से पहले शाऊल कैसा इंसान था? (ख) प्रेरित पौलुस की मिसाल से हमें क्या सीखना चाहिए?

8 लगभग हर किस्म के लोग यहोवा के सेवक बने हैं। इसकी एक बेजोड़ मिसाल है, तरसुस का रहनेवाला शाऊल, जो बाद में प्रेरित पौलुस बना। शाऊल एक फरीसी और मसीहियों का कट्टर विरोधी था। उसे पक्का विश्‍वास था कि मसीही यहोवा के सच्चे उपासक नहीं हैं, इसलिए वह उन पर ज़ुल्म ढाने लगा। (गल. 1:13) शाऊल को देखकर शायद ही कोई सोच सकता था कि वह एक मसीही बनेगा। मगर यीशु ने शाऊल के दिल में कुछ अच्छाई देखी और उसे एक खास काम के लिए चुना। नतीजा, शाऊल पहली सदी की मसीही कलीसिया का सबसे सरगर्म और जोशीला सेवक बना।

9 प्रेरित पौलुस की मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं? हमारे प्रचार के इलाके में, शायद कुछ समूह के लोग हमारे संदेश को सुनना पसंद न करें। ऐसे में, हमें लग सकता है कि उनमें से कोई भी सच्चा मसीही नहीं बनेगा। फिर भी, हमें अपना संदेश सुनाने की कोशिश करते रहना चाहिए। कभी-कभी जिन लोगों से हम उम्मीद नहीं करते, वे हमारे संदेश में दिलचस्पी दिखाते हैं। इसलिए हमें अपना काम यानी ‘बिना रुके’ सभी को प्रचार करते रहना चाहिए।—प्रेरितों 5:42 पढ़िए।

‘बिना रुके’ प्रचार करनेवालों को आशीषें मिलती हैं

10. भले ही एक इंसान दिखने में डरावना हो, मगर उसे प्रचार करने से हमें क्यों नहीं झिझकना चाहिए? अपने इलाके का कोई अनुभव बताइए।

10 कभी-कभी लोगों की शक्ल-सूरत देखकर हम शायद उनके बारे में गलत राय कायम कर बैठें। ईगनासयो * की मिसाल लीजिए। जब वह दक्षिण-अमरीका के एक देश में जेल की सज़ा काट रहा था, तब उसने यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करना शुरू किया। मगर वह स्वभाव से बहुत ही खूँखार था, जिस वजह से लोग उसके सामने थर-थर काँपते थे। जेल के कुछ कैदी सामान बनाकर दूसरे कैदियों को उधार बेचते थे। मगर जब ये कैदी पैसा देने में आनाकानी करते, तो उन्हें धमकाने और उनसे पैसा वसूल करने के लिए ईगनासयो से कहा जाता था। मगर जैसे-जैसे ईगनासयो बाइबल अध्ययन करने लगा और सीखी हुई बातों को लागू करने लगा, वह खूँखार और लोगों को डराने-धमकानेवाले से एक नरमदिल इंसान बन गया। अब कोई उसे पैसा वसूल करने के लिए नहीं कहता। मगर ईगनासयो को इस बात का दुःख नहीं है, उलटा वह खुश है कि बाइबल की सच्चाई और परमेश्‍वर की आत्मा ने उसकी कायापलट कर दी। वह उन राज्य प्रचारकों का भी बहुत एहसानमंद है, जिन्होंने बिना किसी भेदभाव के उसके साथ अध्ययन करने में मेहनत की।

11. हम लोगों के पास बार-बार क्यों जाते हैं?

11 जिन लोगों को हम खुशखबरी सुनाते हैं, उनसे हम बार-बार मिलने की कोशिश करते हैं। इसकी एक वजह यह है कि उनके हालात और रवैए बदल सकते हैं। और सचमुच में ऐसा होता भी है। क्या पता अगली बार हम उनसे मिलने जाएँ और हमें पता चले कि उन्हें कोई गंभीर बीमारी हो गयी है, उनकी नौकरी छूट गयी है या उनके किसी अज़ीज़ की मौत हो गयी है। (सभोपदेशक 9:11 पढ़िए।) हो सकता है, दुनिया की समस्याओं को देखकर लोग अपने भविष्य के बारे में गहराई से सोचने लगें। इन बदलावों की वजह से मुमकिन है कि सच्चाई में दिलचस्पी न दिखानेवाले या विरोध करनेवाले लोग भी राज्य का संदेश सुनने के लिए तैयार हो जाएँ। इसलिए हमें हर मुनासिब मौके पर दूसरों को सुसमाचार सुनाने से पीछे नहीं हटना चाहिए।

12. प्रचार में मिलनेवाले लोगों के बारे में हमें कैसा नज़रिया अपनाना चाहिए और क्यों?

12 किसी शख्स को उसकी जाति-धर्म, समाज में उसकी हैसियत वगैरह की बिनाह पर आँकना और उसके बारे में किसी नतीजे पर पहुँचना इंसानी फितरत होती है। मगर यहोवा ऐसा नहीं करता। वह हरेक में अच्छे गुण देखता है। (1 शमूएल 16:7 पढ़िए।) हमें अपने प्रचार में भी वैसा ही करना चाहिए। कई अनुभव दिखाते हैं कि प्रचार में मिलनेवाले लोगों के बारे में यहोवा के जैसा नज़रिया अपनाने से बढ़िया नतीजे मिले हैं।

13, 14. (क) एक पायनियर ने प्रचार में मिली एक स्त्री की दिलचस्पी को आगे क्यों नहीं बढ़ाया? (ख) इस अनुभव से हम क्या सीख सकते हैं?

13 एक केरिबियन द्वीप में सैंड्रा नाम की एक पायनियर बहन घर-घर का प्रचार कर रही थी। उसकी मुलाकात रूत से हुई जो कार्निवल उत्सव (नाच-गाना और रंग-रलियाँ मनाने का उत्सव) में बड़े ज़ोर-शोर से हिस्सा लेती थी। रूत ने दो बार नैशनल कार्निवल क्वीन का खिताब जीता था। उसने सैंड्रा की बातों में सच्ची दिलचस्पी दिखायी, इसलिए उसके साथ बाइबल अध्ययन करने का बंदोबस्त किया गया। सैंड्रा याद करती है: “जब मैं उसके ड्राइंगरूम में आयी, तो मेरी नज़र एक बहुत बड़ी फोटो पर पड़ी। उस फोटो में रूत कार्निवल उत्सव के भड़कीले कपड़े पहने हुए थी। साथ ही, मैंने वो ट्राफियाँ भी देखीं, जो उसने जीती थीं। मुझे लगा कि जिस शख्स का कार्निवल उत्सव में इतना नाम है और जो उसमें इतना डूबा हुआ है, उसको सच्चाई में भला क्या दिलचस्पी होगी। इसलिए मैंने उसके पास जाना बंद कर दिया।”

14 कुछ समय बाद, रूत राज्य घर में आयी। सभा खत्म होने के बाद, उसने सैंड्रा से पूछा: “आपने मुझे अध्ययन कराना क्यों बंद कर दिया?” सैंड्रा ने उससे माफी माँगी और दोबारा अध्ययन शुरू कर दिया। रूत ने बहुत जल्दी तरक्की की। उसने कार्निवल की अपनी सारी तसवीरें उतार दीं, सभाओं में आना और प्रचार में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। और उसने यहोवा को अपना जीवन समर्पित कर दिया। सैंड्रा को एहसास हुआ कि उसने रूत के बारे में जो सोचा था, वह गलत था।

15, 16. (क) अपने रिश्‍तेदार को गवाही देने से एक प्रचारक को क्या नतीजा मिला? (ख) हमारे रिश्‍तेदारों के जीने का तरीका चाहे जैसा भी हो, हमें उन्हें गवाही देने से पीछे क्यों नहीं हटना चाहिए?

15 कई साक्षियों को तब भी अच्छे नतीजे मिले जब उन्होंने अपने परिवार के अविश्‍वासी सदस्यों को गवाही दी, भले ही उन्हें लगा हो कि वे सच्चाई कबूल नहीं करेंगे। अमरीका की एक बहन जोइस की मिसाल लीजिए। उसका छोटा बहनोई अपने जवानी के दिनों से जेल के चक्कर काट रहा था। जोइस कहती है: “लोगों का कहना था कि उसने अपनी ज़िंदगी बरबाद कर ली है, क्योंकि वह ड्रग्स का धंधा, चोरी और दूसरे गलत काम करता था। इसके बावजूद, मैं उसे 37 सालों तक लगातार बाइबल की सच्चाई के बारे में बताती रही।” जोइस का सब्र और उसकी सालों की मेहनत आखिरकार रंग लायी। उसके बहनोई ने यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करना शुरू कर दिया और अपनी ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव किए। हाल ही में, उसने 50 साल की उम्र में अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य में हुए एक ज़िला अधिवेशन में बपतिस्मा लिया। जोइस कहती है: “मारे खुशी के मेरे आँसू छलक पड़े। मैं बहुत खुश हूँ कि मैंने कभी यह आस नहीं छोड़ी कि एक-न-एक-दिन वह सच्चाई को कबूल करेगा।”

16 आप शायद उन रिश्‍तेदारों को बाइबल की सच्चाइयों के बारे में बताने से झिझकें, जिनके जीने का तरीका ठीक न हो। मगर जोइस अपने बहनोई को सच्चाई बताने से पीछे नहीं हटी। आखिर एक इंसान के दिल में क्या है, यह भला कोई दूसरा कैसे जान सकता है? शायद वह इंसान सच्चे धर्म की तलाश में हो। इसलिए उसे सच्चाई पाने में मदद देने से पीछे मत हटिए।—नीतिवचन 3:27 पढ़िए।

बाइबल अध्ययन चलाने में एक बेहतरीन मदद

17, 18. (क) दुनिया-भर से मिली रिपोर्टें कैसे दिखाती हैं कि बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब एक बेहतरीन मदद है? (ख) इस किताब को इस्तेमाल करने से आपको क्या बढ़िया अनुभव मिले हैं?

17 दुनिया-भर से मिली रिपोर्टें दिखाती हैं कि बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब की मदद से बहुत-से नेकदिल लोग सच्चाई कबूल कर रहे हैं। अमरीका में पेनी नाम की एक पायनियर बहन ने इस किताब की मदद से कई बाइबल अध्ययन शुरू किए। उनमें से दो ऐसे बुज़ुर्ग हैं, जो चर्च के जोशीले सदस्य थे। पेनी इस उधेड़-बुन में थी कि बाइबल सिखाती है किताब में पेश की गयी बाइबल सच्चाइयों को पढ़कर ना जाने वे क्या कहेंगे। मगर वह लिखती है, “किताब में जानकारी साफ तरीके से, अच्छी दलीलों के साथ और चंद शब्दों में दी गयी है। इसलिए वे जो सीख रहे थे उसे उन्होंने सच्चाई माना और खुशी-खुशी उसे कबूल किया। कोई बहस नहीं की और ना ही उनके मन में किसी तरह की हलचल या उलझन पैदा हुई।”

18 ब्रिटेन में रहनेवाली एक प्रचारक पैट ने एक स्त्री के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया, जो किसी एशियाई देश से शरणार्थी बनकर आयी थी। इस स्त्री के पति और बेटों को उग्रवादी सैनिक उठा ले गए थे और तब से उसने उनको कभी नहीं देखा। उस स्त्री को जान से मार डालने की धमकी दी गयी, उसके घर को राख कर दिया गया और कई लोगों ने मिलकर उसका बलात्कार किया। इसलिए उसे मजबूरन अपना देश छोड़कर भागना पड़ा। इन हादसों से उसे लगा कि उसके जीने का कोई मतलब नहीं रह गया। और उसने कई बार खुदकुशी करनी चाही। मगर ऐसे में, बाइबल अध्ययन ने उसकी ज़िंदगी में उम्मीद की किरण जगायी। पैट लिखती है: “बाइबल सिखाती है किताब में जानकारी और मिसालों को जिस आसान तरीके से समझाया गया है, उसका उस पर ज़बरदस्त असर हुआ।” उस स्त्री ने बहुत जल्दी तरक्की की, बपतिस्मा रहित प्रचारक बनी और अगले सम्मेलन में उसने बपतिस्मा लेने की इच्छा ज़ाहिर की है। बाइबल से मिलनेवाली आशा के बारे में नेकदिल लोगों को समझाना और उनके दिल में उसी आशा के लिए कदर बढ़ाना हमारे लिए क्या ही खुशी की बात है!

“हम भले काम करने में हियाव न छोड़ें”

19. प्रचार का काम क्यों ज़रूरी होता जा रहा है?

19 हर दिन के गुज़रते, प्रचार करना और चेला बनाना और भी ज़रूरी होता जा रहा है। हर साल हज़ारों लोग सुसमाचार के हमारे संदेश को कबूल कर रहे हैं। मगर “यहोवा का भयानक दिन निकट है।” इसका मतलब है कि जो लोग आध्यात्मिक अंधकार में हैं, वे ‘घात किए जाएंगे।’—सप. 1:14; नीति. 24:11.

20. हममें से हरेक को क्या करने की ठान लेनी चाहिए?

20 अभी-भी हम ऐसे लोगों की मदद कर सकते हैं जो आध्यात्मिक अंधकार में हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए ज़रूरी है कि हम पहली सदी के मसीहियों की तरह ‘इस बात का सुसमाचार सुनाने से न रुकें कि यीशु ही मसीह है।’ (प्रेरि. 5:42) मुश्‍किलों के बावजूद डटे रहने, अपने “सिखाने की कला” पर ध्यान देने और बिना भेदभाव के लोगों को प्रचार करने के ज़रिए उन मसीहियों की मिसाल पर चलिए! आइए “हम भले काम करने में हियाव न छोड़ें” क्योंकि अगर हम डटे रहें, तो हमें परमेश्‍वर बेशुमार आशीषें देगा।—2 तीमु. 4:2. गलतियों 6:9 पढ़िए।

[फुटनोट]

^ कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

आप क्या जवाब देंगे?

• आज कौन सुसमाचार को कबूल कर रहे हैं?

• प्रचार में मिलनेवाले लोगों के बारे में हमें पहले से कोई राय क्यों नहीं कायम करनी चाहिए?

• बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब के इस्तेमाल से क्या नतीजे मिल रहे हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीरें]

हज़ारों नेकदिल लोग सुसमाचार को कबूल कर रहे हैं

[पेज 15 पर तसवीरें]

प्रेरित पौलुस ने जो बदलाव किए उनसे हम क्या सीख सकते हैं?

[पेज 16 पर तसवीर]

सुसमाचार के प्रचारक बिना किसी भेदभाव के प्रचार करते हैं