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मसीह की उपस्थिति आपके लिए क्या मायने रखती है?

मसीह की उपस्थिति आपके लिए क्या मायने रखती है?

मसीह की उपस्थिति आपके लिए क्या मायने रखती है?

“तेरे आने [“तेरी उपस्थिति,” NW] का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?”—मत्ती 24:3.

1. यीशु के प्रेरितों ने उससे कौन-से दिलचस्प सवाल पूछे?

 करीब दो हज़ार साल पहले की बात है। यीशु और उसके चार प्रेरित जैतून पहाड़ पर एकांत में बैठे बातें कर रहे थे। इसी बातचीत के दौरान, यीशु के प्रेरितों ने उससे कुछ सवाल पूछे: “ये बातें कब होंगी? और तेरे आने [“तेरी उपस्थिति,” NW] का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?” (मत्ती 24:3) गौर कीजिए कि प्रेरितों ने अपने सवालों में दो बड़ी दिलचस्प बातों का ज़िक्र किया। एक यीशु की “उपस्थिति” के बारे में और दूसरी “जगत के अन्त” के बारे में। इन दोनों बातों का क्या मतलब है?

2. शब्द सिनटीलीया, जिसका अनुवाद हिंदी बाइबल में “अन्त” किया गया है, इसका असली मतलब क्या है?

2 आइए हम सबसे पहले “जगत के अन्त” शब्दों पर गौर करें। मूल यूनानी भाषा में दो शब्द हैं, जिनका अनुवाद हिंदी बाइबल में “अन्त” किया गया है। ये शब्द हैं, सिनटीलीया और टीलोस। इन दोनों शब्दों में हलका-सा फर्क है। मत्ती 24:3 में शब्द सिनटीलीया इस्तेमाल किया गया है और इसका मतलब है, “आखिरी वक्‍त।” जबकि शब्द टीलोस का मतलब है, “अंत।” इन दोनों शब्दों के फर्क को और भी अच्छी तरह समझने के लिए, आइए राज्य घर में दिए जानेवाले भाषण का उदाहरण लें। भाषण का आखिरी भाग वह भाग होता है, जिसमें वक्‍ता हाज़िर लोगों को याद दिलाता है कि भाषण में किन-किन बातों पर चर्चा की गयी थी और उन पर कैसे अमल किया जा सकता है। और भाषण का अंत तब होता है, जब वक्‍ता स्टेज से उतर जाता है। उसी तरह बाइबल के मुताबिक, शब्द सिनटीलीया में अंत से पहले का दौर और अंत शामिल हैं।

3. यीशु की उपस्थिति के दौरान कौन-सी घटनाएँ घटती हैं?

3 अब आइए शब्द “उपस्थिति” पर ध्यान दें। जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “उपस्थिति” किया गया है, वह है पारूसिया। * मसीह का पारूसिया, यानी उसकी उपस्थिति सन्‌ 1914 में शुरू हो गयी थी, जब उसे स्वर्ग में राजा बनाया गया। और उसकी यह उपस्थिति “भारी क्लेश” तक चलेगी, जिस दौरान वह सारे दुष्टों का नाश करने के लिए आएगा। (मत्ती 24:21) यीशु की इस उपस्थिति के दौरान और भी कई घटनाएँ घटती हैं। जैसे, इस दुष्ट संसार का “अन्तिम दिनों” से गुज़रना, चुने हुओं का इकट्ठा किया जाना और स्वर्ग में जीवन पाने के लिए उनका पुनरुत्थान होना। (2 तीमु. 3:1; 1 कुरि. 15:23; 1 थिस्स. 4:15-17; 2 थिस्स. 2:1) इसलिए यह कहा जा सकता है कि जब मसीह की उपस्थिति (पारूसिया) शुरू हुई, तब ‘जगत का अन्त’ यानी आखिरी वक्‍त (सिनटीलीया) भी शुरू हो गया था।

एक लंबा दौर

4. किस मायने में यीशु की उपस्थिति, नूह के दिनों में हुई घटनाओं से मेल खाती है?

4 शब्द पारूसिया एक लंबे दौर को दर्शाता है, यह विचार यीशु की उस बात से भी मेल खाता है जो उसने अपनी उपस्थिति के सिलसिले में कही थी। (मत्ती 24:37-39 पढ़िए।) ध्यान दीजिए कि इन आयतों में यीशु ने अपनी उपस्थिति की तुलना उस थोड़े समय से नहीं की, जब नूह के दिनों में जलप्रलय आया था। इसके बजाय, उसने अपनी उपस्थिति की तुलना जलप्रलय से पहले के लंबे दौर से की। उस दौर में नूह ने जहाज़ बनाया और प्रचार किया। उसने ऐसा तब तक किया जब तक कि जलप्रलय नहीं आ गया। इन कामों को पूरा करने के लिए नूह को शायद 50 से भी ज़्यादा साल लगे थे। उसी तरह, मसीह की उपस्थिति में भारी क्लेश से पहले घटनेवाली सारी घटनाएँ और भारी क्लेश शामिल हैं।—2 थिस्स. 1:6-9.

5. प्रकाशितवाक्य के छठे अध्याय में दर्ज़ भविष्यवाणी कैसे दिखाती है कि यीशु की उपस्थिति एक लंबे दौर को दर्शाती है?

5 बाइबल की दूसरी भविष्यवाणियाँ भी साफ दिखाती हैं कि मसीह की उपस्थिति सिर्फ उस समय को नहीं दर्शाती, जब वह आकर सारे दुष्टों का नाश कर देगा। बल्कि, उसकी उपस्थिति एक लंबे दौर को भी दर्शाती है। मिसाल के लिए, प्रकाशितवाक्य की किताब में दर्ज़ एक दर्शन के मुताबिक, यीशु एक सफेद घोड़े पर सवार है और उसे एक मुकुट दिया गया है। (प्रकाशितवाक्य 6:1-8 पढ़िए।) सन्‌ 1914 में राजा बनाए जाने के बाद से, यीशु को “विजेता के रूप में जय प्राप्त कर[ता]” (नयी हिन्दी बाइबिल) हुआ दर्शाया गया है। यह ब्यौरा आगे बताता है कि उसके पीछे और भी कुछ घुड़सवार अलग-अलग रंग के घोड़े पर सवार चले आ रहे हैं। ये घुड़सवार युद्ध, अकाल और महामारियों को दर्शाते हैं। ये सब-की-सब विपत्तियाँ उस लंबे दौर में अपना कहर बरपाती आयी हैं, जिसे ‘अन्तिम दिन’ कहा जाता है। यह भविष्यवाणी आज हमारे दिनों में पूरी हो रही है।

6. प्रकाशितवाक्य का 12वाँ अध्याय हमें मसीह की उपस्थिति के बारे में क्या समझने में मदद देता है?

6 प्रकाशितवाक्य का 12वाँ अध्याय, स्वर्ग में परमेश्‍वर के राज्य की स्थापना के बारे में और भी ब्यौरेदार जानकारी देता है। वहाँ हम आत्मिक लोक में हुए एक युद्ध के बारे में पढ़ते हैं। इस युद्ध में क्या होता है? मीकाईल, यानी स्वर्ग में बड़े पद पर यीशु मसीह और उसके स्वर्गदूत, शैतान इब्‌लीस और उसकी दुष्टात्माओं से लड़ते हैं। नतीजा, शैतान और उसकी पलटन को धरती पर फेंक दिया जाता है। इस पर शैतान आग-बबूला हो उठता है, “क्योंकि [वह] जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।” (प्रकाशितवाक्य 12:7-12 पढ़िए।) यह ब्यौरा साफ दिखाता है कि स्वर्ग में मसीह के राज्य की स्थापना से जो दौर शुरू हुआ है, उस दौर में धरती और उसके रहनेवालों पर ऐसी “हाय” मची है, जैसी पहले कभी नहीं मची थी।

7. दूसरे भजन में किस बारे में भविष्यवाणी की गयी है, और इसमें किस मौके के बारे में बताया गया है?

7 दूसरे भजन में भी भविष्यवाणी की गयी थी कि यीशु को स्वर्गीय पर्वत, सिय्योन की राजगद्दी पर बिठाया जाएगा। (भजन 2:5-9; 110:1, 2 पढ़िए।) मगर साथ ही, इस भजन में एक ऐसे दौर के बारे में भी बताया गया है, जब पृथ्वी के शासकों और उनकी प्रजाओं को मसीह की हुकूमत के अधीन होने का मौका दिया जाएगा। उन्हें बढ़ावा दिया जाएगा कि वे ‘बुद्धि’ से काम लें और “चेतावनी पर ध्यान” (NHT) दें। उस वक्‍त उन लोगों को “धन्य” कहा जाएगा, जो यहोवा और उसके ठहराए राजा की सेवा करते हुए, “[परमेश्‍वर की] शरण” लेंगे। (NHT) तो इसका मतलब है कि राज्य के अधिकार में यीशु की उपस्थिति के दौरान, यानी आज, पृथ्वी के शासकों और उनकी प्रजाओं को अपनी ज़िंदगी में ज़रूरी बदलाव करने का मौका मिल रहा है।—भज. 2:10-12.

चिन्ह पहचानना

8, 9. कौन मसीह की उपस्थिति के चिन्ह को पहचानेंगे और उसके मायने समझेंगे?

8 जब फरीसियों ने यीशु से पूछा कि परमेश्‍वर का राज्य कब आएगा, तो यीशु ने उन्हें जवाब दिया कि राज्य “प्रगट रूप से नहीं” आएगा, जैसा वे सोचते हैं। (लूका 17:20, 21) जी हाँ, अविश्‍वासी लोग परमेश्‍वर के राज्य के आने की बात को नहीं समझ पाएँगे। और वे समझेंगे भी कैसे? वे तो यीशु को अपना होनेवाला राजा तक नहीं मानते। तो फिर, कौन मसीह की उपस्थिति के चिन्ह को पहचानेंगे और उसके मायने समझेंगे?

9 यीशु ने आगे बताया कि उसके चेलों को उसकी उपस्थिति के चिन्ह उतने ही साफ नज़र आएँगे, जितनी कि “बिजली [जो] आकाश की एक ओर से कौन्धकर आकाश की दूसरी ओर चमकती है।” (लूका 17:24-29 पढ़िए।) गौरतलब बात यह है कि मत्ती 24:23-27 में साफ बताया गया है कि यीशु अपनी उपस्थिति के चिन्ह की ही बात कर रहा था।

पीढ़ी जो चिन्ह देखेगी

10, 11. (क) कुछ साल पहले, मत्ती 24:34 में दर्ज़ शब्द “पीढ़ी” के बारे में क्या समझाया गया था? (ख) इस “पीढ़ी” में कौन लोग शामिल हैं, इस बारे में यीशु के चेलों ने बेशक क्या समझा होगा?

10 कुछ साल पहले, इस पत्रिका में समझाया गया था कि मत्ती 24:34 में बतायी गयी “यह पीढ़ी,” पहली सदी में ‘अविश्‍वासी यहूदियों की पीढ़ी’ को दर्शाती थी। * यह बात सही भी लग रही थी, क्योंकि जिन-जिन आयतों में यीशु ने शब्द “पीढ़ी” का इस्तेमाल किया, उनमें से ज़्यादातर में उसने “पीढ़ी” के साथ-साथ इन विशेषणों का भी इस्तेमाल किया: “दुष्ट,” “व्यभिचारिणी,” “अविश्‍वासी,” “भ्रष्ट,” “पापी।” (NHT) (मत्ती 12:39; 17:17; मर. 8:38) इसी के चलते, इस पत्रिका ने समझाया कि यीशु ने जिस “पीढ़ी” का ज़िक्र किया था, वह आज के ज़माने में उस अविश्‍वासी और दुष्ट “पीढ़ी” को दर्शाती है, जो “जगत के अन्त” यानी आखिरी वक्‍त (सिनटीलीया) के चिन्ह और इस मौजूदा व्यवस्था का अंत (टीलोस) देखेगी।

11 यह सच है कि जब यीशु ने शब्द “पीढ़ी” के साथ-साथ “दुष्ट” या “पापी” जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया, तब वह दरअसल अपने ज़माने के बुरे लोगों से या उनके बारे में बात कर रहा था। मगर क्या मत्ती 24:34 में भी यीशु ने शब्द “पीढ़ी” का इस्तेमाल अपने ज़माने के बुरे लोगों के लिए किया था? याद कीजिए कि यीशु के चार चेलों ने “एकान्त” में उसके पास आकर बात की थी। (मत्ती 24:3, NHT) उनसे बात करते वक्‍त, यीशु ने जब “यह पीढ़ी” के बारे में बताया, तब उसने “दुष्ट” या “पापी” जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। इसलिए प्रेरित बेशक समझ गए होंगे कि वे और उनके साथी चेले भी इस “पीढ़ी” में शामिल होंगे, जो तब तक जाती न रहेगी, ‘जब तक कि ये सब बातें पूरी नहीं हो जातीं।’

12. यीशु ने जब शब्द “पीढ़ी” का ज़िक्र किया, तो वह किन लोगों के बारे में बात कर रहा था, यह हम मत्ती 24:32, 33 से कैसे पता लगा सकते हैं?

12 हम इस नतीजे पर कैसे पहुँच सकते हैं? मत्ती 24:34 से पहले की दो आयतों की करीबी से जाँच करने के ज़रिए। मत्ती 24:32, 33 में यीशु ने कहा: “अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखो: जब उस की डाली कोमल हो जाती और पत्ते निकलने लगते हैं, तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्म काल निकट है। इसी रीति से जब तुम इन सब बातों को देखो, तो जान लो, कि वह निकट है, बरन द्वार ही पर है।” (मरकुस 13:28-30; लूका 21:30-32 से तुलना कीजिए।) इसके बाद, मत्ती 24:34 में यीशु ने कहा: “मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी।”

13, 14. हम क्यों कह सकते हैं कि यीशु ने जिस “पीढ़ी” का ज़िक्र किया, वह उसके चेले रहे होंगे?

13 यीशु ने कहा कि उसके चेलों को, जिनका बहुत जल्द पवित्र आत्मा से अभिषेक होनेवाला था, “ये सब बातें” पूरी होते देखकर सही नतीजे पर पहुँचना चाहिए। तो ज़ाहिर-सी बात है कि जब यीशु ने कहा: “जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी,” तो वह ज़रूर अपने चेलों के बारे में ही बात कर रहा था।

14 अविश्‍वासियों के बिलकुल उलट, यीशु के चेले न सिर्फ मसीह की उपस्थिति का चिन्ह देखते, बल्कि उसकी अहमियत भी समझते। वे उस चिन्ह के अलग-अलग पहलुओं से ‘सीखते’ और उसका असली मतलब भी “जान लेते।” तब वे इस बात को पूरी तरह समझ लेते कि “वह निकट है, बरन द्वार ही पर है।” यह सच है कि पहली सदी में अविश्‍वासी यहूदी और वफादार अभिषिक्‍त मसीही, दोनों ने कुछ हद तक यीशु के शब्दों को पूरा होते देखा था। मगर यीशु ने जिन घटनाओं की भविष्यवाणी की थी, उनसे सिर्फ अभिषिक्‍त चेले ही सबक सीखे और उनके असली मायने समझे।

15. (क) यीशु ने जिस “पीढ़ी” का ज़िक्र किया था, वह आज किसे दर्शाता है? (ख) “यह पीढ़ी” कितने समय तक जीएगी, इसका हम सही-सही हिसाब क्यों नहीं लगा सकते? (पेज 25 पर दिया बक्स देखिए।)

15 आज जिन लोगों के पास आध्यात्मिक बातों की समझ नहीं है, उन्हें लगा है कि यीशु की उपस्थिति के चिन्ह का “प्रगट रूप” नज़र नहीं आया है। वे यह दलील देते हैं कि कुछ नहीं बदला है, आज भी सबकुछ वैसा ही चला आ रहा है जैसा बीते कल में था। (2 पत. 3:4) लेकिन मसीह के वफादार अभिषिक्‍त भाइयों ने, यानी आज के ज़माने के यूहन्‍ना वर्ग ने इस चिन्ह को ऐसे पहचान लिया है, मानो यह बिजली की चमक हो। यही नहीं, उन्होंने उस चिन्ह के असली मतलब को भी समझ लिया है। ये सभी अभिषिक्‍त मसीही मिलकर आज के ज़माने की “पीढ़ी” बनते हैं, जो तब तक जाती न रहेगी, ‘जब तक कि ये सब बातें पूरी नहीं हो जातीं।’ * इससे इस बात का इशारा मिलता है कि भविष्यवाणी के मुताबिक, जब भारी क्लेश शुरू होगा, तब धरती पर मसीह के कुछ अभिषिक्‍त भाई मौजूद होंगे।

“जागते रहो”

16. मसीह के सभी चेलों को क्या करना चाहिए?

16 मगर हमारे लिए सिर्फ चिन्ह पहचानना काफी नहीं, बल्कि हमें और भी कुछ करने की ज़रूरत है। यीशु ने आगे कहा: “जो मैं तुम से कहता हूं, वही सब से कहता हूं, जागते रहो।” (मर. 13:37) हम चाहे अभिषिक्‍त जनों में से हों या बड़ी भीड़ में से, हम सभी के लिए यह निहायत ज़रूरी है कि हम जागते रहें। सन्‌ 1914 से यीशु को स्वर्ग में राज करते हुए करीब 90 साल बीत चुके हैं। इसलिए हमारे लिए यह और भी ज़रूरी हो गया है कि हम तैयार रहें और जागते रहें, फिर चाहे यह हमारे लिए कितना ही मुश्‍किल क्यों न हो। अगर हम इस बात की गाँठ बाँध लें कि मसीह स्वर्ग में राजा की हैसियत से हुकूमत कर रहा है, तो हमें जागते रहने में मदद मिलेगी। साथ ही, हम इस सच्चाई की तरफ अपना पूरा ध्यान भी लगा पाएँगे कि “जिस घड़ी [हम] सोचते भी नहीं, उस घड़ी” वह जल्द आकर अपने दुश्‍मनों का सर्वनाश कर देगा।—लूका 12:40.

17. मसीह की उपस्थिति हमारे लिए क्या मायने रखती है, इस बात की समझ से हमें कैसा महसूस करना चाहिए, और हमें क्या करने का इरादा कर लेना चाहिए?

17 मसीह की उपस्थिति के क्या मायने हैं, इस बात की समझ हासिल करने से हमारा यकीन बढ़ता है कि इस संसार का अंत करीब है। हम जानते हैं कि सन्‌ 1914 से यीशु ने राजा की हैसियत से स्वर्ग में हुकूमत करना शुरू कर दिया है। साथ ही, उसकी उपस्थिति भी शुरू हो चुकी है। अब जल्द ही वह दुष्टों का विनाश करने के लिए आएगा और पूरी धरती की शकल बदल देगा। तो फिर आइए, हम अपने इस इरादे को और भी बुलंद करें कि यीशु ने जिस काम की भविष्यवाणी की थी, उसमें हम ज़ोर-शोर से हिस्सा लेंगे: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त [टीलोस] आ जाएगा।”—मत्ती 24:14.

[फुटनोट]

^ पारूसिया शब्द का क्या मतलब है, इस बारे में ज़्यादा जानने के लिए इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌, भाग 2 के पेज 676-9 देखिए।

^ 1 नवंबर, 1995 की प्रहरीदुर्ग के पेज 11-15, 19, 30, 31 देखिए।

^ ऐसा लगता है कि जिस दौर में “यह पीढ़ी” जी रही है, उसी दौर में प्रकाशितवाक्य की किताब में दर्ज़ सबसे पहला दर्शन पूरा हो रहा है। (प्रका. 1:10-3:22) और प्रभु के दिन का यह दौर, सन्‌ 1914 से लेकर आखिरी वफादार अभिषिक्‍त मसीही की मौत और उसके पुनरुत्थान तक चलेगा।—रॆवलेशन—इट्‌स ग्रैंड क्लाइमैक्स एट हैंड! किताब का पेज 24, पैराग्राफ 4 देखिए।

आप क्या जवाब देंगे?

• हम कैसे जानते हैं कि यीशु की उपस्थिति, एक लंबा दौर है?

• कौन मसीह की उपस्थिति के चिन्ह को पहचानते और उसके मायने समझते हैं?

मत्ती 24:34 में जिस “पीढ़ी” का ज़िक्र किया गया है, वह आज किसे दर्शाती है?

• “यह पीढ़ी” कितने समय तक जीएगी, इसका हम सही-सही हिसाब क्यों नहीं लगा सकते?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 25 पर बक्स]

“यह पीढ़ी” कितने समय तक जीएगी, क्या हम इसका हिसाब लगा सकते हैं?

आम तौर पर शब्द “पीढ़ी” का मतलब होता है, अलग-अलग उम्र के लोग, जो किसी खास दौर या हालात में जीते हैं। मिसाल के लिए, निर्गमन 1:6 कहता है: “यूसुफ, और उसके सब भाई, और उस पीढ़ी के सब लोग मर मिटे।” यूसुफ और उसके भाइयों की उम्र अलग-अलग थी, मगर वे एक ही दौर में जीए थे, इसलिए उनके अनुभव भी एक-जैसे थे। “उस पीढ़ी के सब लो[गों]” में यूसुफ के वे भाई भी शामिल थे, जो उससे पहले पैदा हुए थे। इनमें से कुछ यूसुफ के बाद भी ज़िंदा रहे। (उत्प. 50:24) “उस पीढ़ी” के दूसरे लोग, जैसे बिन्यामीन, यूसुफ के बाद पैदा हुए थे और शायद उसकी मौत के बाद भी ज़िंदा रहे।

तो फिर, जब किसी खास दौर में जी रहे लोगों के लिए शब्द “पीढ़ी” इस्तेमाल किया जाता है, तो उस दौर के समय का सही-सही हिसाब नहीं लगाया जा सकता। मगर एक बात तय है कि वह दौर हद-से-ज़्यादा लंबा नहीं होता और उसका अंत ज़रूर होता है। इसलिए मत्ती 24:34 में जब यीशु ने शब्द “पीढ़ी” का इस्तेमाल किया, तो उसने अपने चेलों को यह पता लगाने की कोई तरकीब नहीं दी कि ‘अन्तिम दिन’ कब खत्म होंगे। इसके बजाय, उसने ज़ोर देकर कहा कि वे “उस दिन और उस घड़ी” के बारे में नहीं जान पाएँगे।—2 तीमु. 3:1; मत्ती 24:36.

[पेज 22, 23 पर तसवीर]

सन्‌ 1914 में राजा बनाए जाने के बाद से, यीशु को ‘जय प्राप्त करता’ हुआ दर्शाया गया है

[पेज 24 पर तसवीर]

‘यह पीढ़ी तब तक जाती न रहेगी, जब तक कि ये सब बातें पूरी नहीं हो जातीं’