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यहोवा के मार्गों पर चलिए

यहोवा के मार्गों पर चलिए

यहोवा के मार्गों पर चलिए

“क्या ही धन्य [“खुश,” NW] है हर एक जो यहोवा का भय मानता है, और उसके मार्गों पर चलता है!”—भज. 128:1.

1, 2. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि सच्ची खुशी पाना मुमकिन है?

 खुशी पाना कौन नहीं चाहता? सभी चाहते हैं। लेकिन एक बात है, जो आप भी मानेंगे। वह यह कि खुशी पाने की चाहत रखने, यहाँ तक कि उसे पाने की पुरज़ोर कोशिश करने और खुशी महसूस करने में ज़मीन-आसमान का फर्क है।

2 तो क्या इसका मतलब यह है कि सच्ची खुशी पाना नामुमकिन है? जी नहीं, यह नामुमकिन नहीं। भजन 128:1 कहता है: “क्या ही धन्य [“खुश,” NW] है हर एक जो यहोवा का भय मानता है, और उसके मार्गों पर चलता है!” यह आयत साफ दिखाती है कि हम खुशी पा सकते हैं, बशर्ते हम परमेश्‍वर की उपासना करें और उसकी इच्छा पूरी करते हुए उसके मार्गों पर चलें। ऐसा करने का हमारे चालचलन और हमारी शख्सियत पर क्या असर हो सकता है?

भरोसेमंद बनिए

3. भरोसेमंद होने और परमेश्‍वर से किए अपने समर्पण के बीच क्या नाता है?

3 जो लोग यहोवा का भय मानते हैं, वे उसी की तरह भरोसेमंद होते हैं। यहोवा ने पुराने ज़माने में इस्राएलियों से जो भी वादे किए थे, वे उसने बखूबी निभाए। (1 राजा 8:56) हमने भी यहोवा से एक वादा किया है, जो हमारी ज़िंदगी का सबसे बड़ा वादा है। कौन-सा वादा? समर्पण का, यानी हमने अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित कर दी है। अगर हम अपने इस वादे के बारे में लगातार प्रार्थना करें, तो हम इसे निभा पाएँगे। हम भजनहार दाऊद की तरह यह प्रार्थना कर सकते हैं: “हे परमेश्‍वर, तू ने मेरी मन्‍नतें सुनीं, . . . मैं सर्वदा तेरे नाम का भजन गा गाकर अपनी मन्‍नतें हर दिन पूरी किया करूंगा।” (भज. 61:5, 8; सभो. 5:4-6) अगर हम परमेश्‍वर के मित्र बनना चाहते हैं, तो यह ज़रूरी है कि हम भरोसेमंद बनें, यानी अपना वादा पूरा करें।—भज. 15:1, 4.

4. यिप्तह ने यहोवा से जो वादा किया था, उसे खुद उसने और उसकी बेटी ने कैसे निभाया?

4 यिप्तह की मिसाल लीजिए, जो इस्राएल में न्यायियों के दौर में जीया था। यिप्तह ने यहोवा से वादा किया कि अगर वह उसे अम्मोनियों पर जीत दिलाएगा, तो युद्ध से लौटने पर जो व्यक्‍ति उससे सबसे पहले मिलने आएगा, उसे वह “होमबलि” के तौर पर यहोवा को अर्पित कर देगा। और जानते हो, उससे मिलने के लिए सबसे पहले कौन आया? उसकी एकलौती बेटी। इसके बावजूद यिप्तह अपने वादे से नहीं मुकरा। इसके बजाय, उसने यहोवा पर विश्‍वास रखा और अपने वादे को पूरा किया। उसकी कुँवारी बेटी के बारे में क्या? उसने भी यहोवा पर विश्‍वास करते हुए अपने पिता के किए वादे को निभाया। ऐसा करना उसके लिए आसान नहीं था, क्योंकि इस्राएल में लड़कियों के लिए शादी करना और बच्चे पैदा करना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी। मगर उसने अपनी मरज़ी से उम्र-भर कुँवारी रहने का चुनाव किया। नतीजा, उसे यहोवा के पवित्र स्थान में सेवा करने का बड़ा सम्मान मिला।—न्यायि. 11:28-40.

5. हन्‍ना ने किस तरह खुद को भरोसेमंद साबित किया?

5 परमेश्‍वर का भय माननेवाली हन्‍ना ने भी खुद को भरोसेमंद साबित किया। वह कैसे? वह अपने पति एल्काना और उसकी दूसरी पत्नी, पनिन्‍ना के साथ एप्रैम के पहाड़ी देश में रहती थी। एल्काना लेवी गोत्र का था। पनिन्‍ना के कई बच्चे थे, जबकि हन्‍ना बाँझ थी। इसलिए पनिन्‍ना बार-बार हन्‍ना पर ताने कसती थी, खासकर तब जब पूरा परिवार उपासना के लिए निवासस्थान को जाता था। ऐसे ही एक मौके पर, हन्‍ना ने यहोवा से मन्‍नत माँगी कि अगर वह उसे एक बेटा देगा, तो वह अपने बेटे को यहोवा को अर्पण कर देगी। फिर क्या था, वह गर्भवती हुई और उसने एक बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम शमूएल रखा गया। जब शमूएल का दूध छुड़ाया गया, तब हन्‍ना और एल्काना उसे शीलो ले गए और “उसे उसके जीवन भर के लिये” यहोवा को अर्पण कर दिया। (1 शमू. 1:11) इस तरह, हन्‍ना ने अपनी मन्‍नत पूरी की, हालाँकि वह उस वक्‍त बिलकुल भी नहीं जानती थी कि आगे चलकर उसके और भी बच्चे होंगे।—1 शमू. 2:20, 21.

6. तुखिकुस ने कैसे साबित किया कि वह एक भरोसेमंद आदमी था?

6 पहली सदी का मसीही, तुखिकुस एक भरोसेमंद आदमी और “विश्‍वासयोग्य सेवक” था। (कुलु. 4:7) वह प्रेरित पौलुस के साथ यूनान से रवाना हुआ और मकिदुनिया से होते हुए एशिया माइनर तक गया। और हो सकता है वह पौलुस के साथ आगे यरूशलेम तक भी गया हो। (प्रेरि. 20:2-4) तुखिकुस शायद वह “भाई” रहा हो, जिसने यहूदिया के ज़रूरतमंद भाई-बहनों तक दान पहुँचाने में तीतुस की मदद की। (2 कुरि. 8:18, 19; 12:18) पौलुस को जब पहली बार रोम में कैद किया गया था, तब उसने इसी भरोसेमंद तुखिकुस को अपना नुमाइंदा चुना और उसके हाथों इफिसुस और कुलुस्से के मसीहियों तक अपनी चिट्ठियाँ पहुँचायीं। (इफि. 6:21, 22; कुलु. 4:8, 9) फिर जब पौलुस को दूसरी बार रोम में कैद किया गया, तब उसने तुखिकुस को इफिसुस भेजा। (2 तीमु. 4:12) अगर हम भी तुखिकुस की तरह भरोसेमंद होंगे, तो हमें भी यहोवा की सेवा में कई सुअवसर मिलेंगे।

7, 8. हम क्यों कह सकते हैं कि दाऊद और योनातन सच्चे दोस्त थे?

7 परमेश्‍वर हमसे उम्मीद करता है कि हम भरोसेमंद दोस्त बनें। (नीति. 17:17) राजा शाऊल के बेटे, योनातन को ही लीजिए। जब उसने सुना कि दाऊद ने गोलियत को मार गिराया है, “तब [उसका] मन दाऊद पर ऐसा लग गया, कि [वह] उसे अपने प्राण के बराबर प्यार करने लगा।” (1 शमू. 18:1, 3) इसके बाद से, वह दाऊद का जिगरी दोस्त बन गया। उनकी दोस्ती इतनी गहरी थी कि जब योनातन को पता चला कि उसका पिता शाऊल, दाऊद को जान से मार डालना चाहता है, तो उसने दाऊद को खबरदार किया। दाऊद के भाग जाने के बाद, योनातन उससे मिला और उसके साथ एक वाचा बाँधी। एक दफे तो जब योनातन ने अपने पिता से दाऊद के बारे में बात की, तब योनातान शाऊल के हाथों मरने से बाल-बाल बच गया। इतना सबकुछ होने के बाद भी, ये दोनों दोस्त दोबारा मिले और अपनी दोस्ती को और भी गहरा किया। (1 शमू. 20:24-41) उनकी आखिरी मुलाकात में, योनातन ने “परमेश्‍वर की चर्चा” कर उसको ढाढ़स दिलाया।—1 शमू. 23:16-18.

8 पलिश्‍तियों के साथ हुई लड़ाई में योनातन मारा गया। (1 शमू. 31:6) उसकी मौत पर दाऊद ने एक विलापगीत रचा, जिसके बोल कुछ इस तरह थे: “हे मेरे भाई योनातन, मैं तेरे कारण दुःखित हूं; तू मुझे बहुत मनभाऊ जान पड़ता था; तेरा प्रेम मुझ पर अद्‌भुत, वरन स्त्रियों के प्रेम से भी बढ़कर था।” (2 शमू. 1:26) वाकई, दाऊद और योनातन सच्चे दोस्त थे!

हमेशा “नम्र” बने रहिए

9. न्यायियों का अध्याय 9 कैसे दिखाता है कि नम्रता का गुण बेहद ज़रूरी है?

9 परमेश्‍वर के मित्र बनने के लिए, हमें “नम्र” बनना होगा। (1 पत. 3:8; भज. 138:6) नम्रता का गुण क्यों ज़रूरी है, यह न्यायियों की किताब के अध्याय 9 में बताया गया है। वहाँ गिदोन के बेटे, योताम ने कहा: “किसी युग में वृक्ष किसी का अभिषेक करके अपने ऊपर राजा ठहराने को चले।” उन्होंने एक-एक करके जैतून के पेड़, अंजीर के पेड़ और दाखलता से पूछा कि क्या वे उन पर राज्य करेंगे। मगर उन तीनों ने साफ इनकार कर दिया। लेकिन जब उन्होंने झड़बेरी से पूछा, तो वह खुशी-खुशी राज़ी हो गयी। जैतून और अंजीर के पेड़, साथ ही दाखलता, उन काबिल पुरुषों को दर्शाते थे, जो अपने संगी इस्राएलियों पर हुकूमत करना नहीं चाहते थे। जबकि झड़बेरी, जो सिर्फ ईंधन के तौर पर काम आती है, मगरूर अबीमेलेक की हुकूमत को दर्शाती थी। अबीमेलेक एक हत्यारा था और दूसरों पर राज करने का उस पर जुनून सवार था। हालाँकि उसने “इस्राएल पर तीन वर्ष तक शासन किया” (NHT), मगर आखिर में वह बेवक्‍त मौत का शिकार हो गया। (न्यायि. 9:8-15, 22, 50-54) यह उदाहरण साफ दिखाता है कि “नम्र” बने रहना लाख गुना बेहतर है।

10. हेरोदेस “परमेश्‍वर की महिमा” करने से चूक गया, इससे आपने क्या सीखा?

10 सामान्य युग पहली सदी में, यहूदिया के घमंडी राजा हेरोदेस अग्रिप्पा और सूर और सैदा के रहनेवालों के बीच तनाव पैदा हो गया। मगर उन शहरों के लोगों ने हेरोदेस से सुलह करने की कोशिश की। इसी दौरान, हेरोदेस ने जनता के सामने एक भाषण दिया, जिसके बाद लोग चिल्ला उठे: “यह तो मनुष्य का नहीं परमेश्‍वर का शब्द है”! हेरोदेस को इस तरह की वाह-वाही को नकारकर सारा श्रेय परमेश्‍वर को देना चाहिए था, मगर नहीं, उसने ऐसा नहीं किया। ‘उसने परमेश्‍वर की महिमा नहीं की,’ इसलिए यहोवा के एक स्वर्गदूत ने उसी पल उसे ऐसा मारा कि वह एक घिनौनी मौत मरा। (प्रेरि. 12:20-23) उसी तरह, अगर हम एक कुशल वक्‍ता हैं या बाइबल की सच्चाई सिखाने में माहिर हैं, तो हमें खुद की शेखी नहीं बघारनी चाहिए। इसके बजाय, हमें सारा श्रेय परमेश्‍वर को देना चाहिए, क्योंकि ये खूबियाँ उसी की देन हैं।—1 कुरि. 4:6, 7; याकू. 4:6.

हिम्मत से काम लीजिए और मज़बूत बने रहिए

11, 12. हनोक का अनुभव कैसे दिखाता है कि यहोवा अपने सेवकों को हिम्मत देता है और उन्हें मज़बूत करता है?

11 अगर हम नम्र होकर यहोवा के मार्गों पर चलें, तो वह हमें हिम्मत और ताकत देगा। (व्यव. 31:6-8, 23) हनोक, जो आदम से सातवीं पीढ़ी में था, बड़ी हिम्मत से परमेश्‍वर के साथ-साथ चला। उसने अपने ज़माने के दुष्ट लोगों की तरह बनने के बजाय, खराई के मार्ग पर चलने का फैसला किया। (उत्प. 5:21-24) यहोवा ने हनोक को मज़बूत किया, ताकि वह उन लोगों के अधर्मी कामों और बातों की वजह से उन्हें एक ज़बरदस्त संदेश सुना सके। (यहूदा 14, 15 पढ़िए।) क्या आपमें दूसरों को परमेश्‍वर का न्यायदंड सुनाने की हिम्मत है?

12 हालाँकि यहोवा ने अधर्मी लोगों का नाश नूह के दिनों में लाए महा-जलप्रलय में कर दिया था, मगर फिर भी हनोक के ज़रिए की गयी भविष्यवाणी से हमारी भी हौसला-अफज़ाई हो सकती है। वह कैसे? इस भविष्यवाणी के मुताबिक, परमेश्‍वर के लाखों पवित्र स्वर्गदूत बहुत जल्द हमारे समय के अधर्मियों का भी सफाया कर देंगे। (प्रका. 16:14-16; 19:11-16) हमारी प्रार्थनाओं के जवाब में, यहोवा हमें उसका संदेश सुनाने की हिम्मत देता है, फिर चाहे यह संदेश उसके न्यायदंड के बारे में हो या उसके राज्य की हुकूमत में मिलनेवाली आशीषों के बारे में।

13. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि परमेश्‍वर हमें मायूस कर देनेवाली समस्याओं का सामना करने के लिए हिम्मत और ताकत दे सकता है?

13 जब हम पर समस्याएँ आती हैं, तो हम मायूसी के सागर में डूब सकते हैं। ऐसी समस्याओं का सामना करने के लिए हमें परमेश्‍वर से हिम्मत और ताकत की ज़रूरत है। इसहाक और रिबका की मिसाल पर गौर कीजिए। जब उनके बड़े बेटे, एसाव ने दो हित्ती स्त्रियों से शादी की, तो “इन स्त्रियों के कारण [उनके] मन को खेद हुआ।” नौबत यहाँ तक आ गयी कि रिबका ने बड़े दुःखी होकर कहा: “मैं हित्ती जाति की बहुओं के कारण जीवन से ऊब गई हूं। यदि [हमारा छोटा बेटा] याकूब भी इन बहुओं के समान इस देश की किसी हित्ती जाति की कन्या से विवाह कर लेगा तो मुझे अपने जीवन में क्या लाभ? मैं मर जाऊंगी।” (नयी हिन्दी बाइबिल) (उत्प. 26:34, 35; 27:46) यह सुनकर इसहाक ने फौरन कदम उठाया और याकूब को यहोवा के उपासकों में से ही अपने लिए एक पत्नी ढूँढ़ने के लिए भेज दिया। हालाँकि एसाव ने जो किया, उसे इसहाक और रिबका बदल नहीं सकते थे, पर फिर भी परमेश्‍वर ने उन्हें बुद्धि, हिम्मत और ताकत दी, ताकि वे परमेश्‍वर के वफादार बने रहें। अगर हम मदद के लिए यहोवा से बिनती करें, तो वह हमें भी उसके वफादार बने रहने के लिए बुद्धि, हिम्मत और ताकत देगा।—भज. 118:5.

14. एक छोटी-सी इस्राएली लड़की ने कैसे हिम्मत दिखायी?

14 अब आइए एक छोटी-सी इस्राएली लड़की की हिम्मत पर गौर करें, जो इसहाक और रिबका के सदियों बाद जी थी। अरामी लोग उसे बंदी बनाकर अपने देश ले गए थे। आखिरकार, वह अराम के सेनापति, नामान के घर पर दासी का काम करने लगी। नामान को कोढ़ की बीमारी थी। बंदी बनने से पहले, इस्राएली लड़की ने परमेश्‍वर के उन चमत्कारों के बारे में सुना था, जो उसने अपने नबी एलीशा के ज़रिए किए थे। इसलिए इस लड़की ने हिम्मत जुटाते हुए नामान की पत्नी से कहा: ‘अगर मेरा स्वामी इस्राएल को जाए, तो यहोवा का भविष्यवक्‍ता उसका कोढ़ दूर कर देगा।’ नामान ने ऐसा ही किया। वह इस्राएल गया और एक चमत्कार के ज़रिए चंगा हो गया। (2 राजा 5:1-3) यह इस्राएली लड़की, उन सभी बच्चों और जवानों के लिए एक बढ़िया मिसाल है, जो अपने टीचरों, साथ पढ़नेवालों और दूसरों को गवाही देने में हिम्मत पाने के लिए यहोवा पर निर्भर रहते हैं।

15. अहाब के घराने के दीवान, ओबद्याह ने कौन-सा बहादुरी का काम किया?

15 परमेश्‍वर से मिलनेवाली हिम्मत की बदौलत हम ज़ुल्म सह पाते हैं। राजा अहाब के घराने के दीवान, ओबद्याह पर गौर कीजिए। वह भविष्यवक्‍ता एलिय्याह के ज़माने में जीया था। जब रानी ईज़ेबेल ने परमेश्‍वर के सारे नबियों को मौत के घाट उतारने का हुक्म दिया, तो ओबद्याह ने उनमें से सौ नबियों को “पचास-पचास करके गुफाओं में छिपा[ए] रखा।” (1 राजा 18:13; 19:18) अगर आपके मसीही भाई-बहनों पर ज़ुल्म ढाया जाता है, तो क्या आप ओबद्याह की तरह हिम्मत से काम लेते हुए उनकी मदद करेंगे?

16, 17. जब अरिस्तरखुस और गयुस को सताया गया, तो उन्होंने क्या किया?

16 दूसरी तरफ, जब हमें सताया जाता है, तो हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारा साथ कभी नहीं छोड़ेगा। (रोमि. 8:35-39) प्राचीन इफिसुस की एक खुली रंगशाला में, पौलुस के साथी अरिस्तरखुस और गयुस ने खुद को ऐसे हज़ारों लोगों के बीच पाया, जो काफी भड़के हुए थे। आखिर क्यों? दरअसल, उनमें यह आग, चाँदी के मंदिर बनानेवाले देमेत्रियुस ने लगायी थी। वह और दूसरे कारीगर, अरतिमिस देवी के मंदिर बना-बनाकर बेचते थे और उनका यह कारोबार उस वक्‍त बहुत ही फल-फूल रहा था। मगर जब से पौलुस ने प्रचार करना शुरू किया, तब से उस शहर के बहुत-से लोग मूर्तिपूजा करना छोड़ने लगे थे। इसलिए अब देमेत्रियुस और उसके साथियों में यह डर समा गया कि कहीं इससे उनका धंधा चौपट न हो जाए। जब भीड़, अरिस्तरखुस और गयुस को घसीटकर रंगशाला में ले जा रही थी, तब वह नारे लगाती जा रही थी: ‘इफिसियों की अरतिमिस की जय!’ (बुल्के बाइबिल) अरिस्तरखुस और गयुस को शायद लगा होगा कि अब उनका मरना तय है। मगर ऐन वक्‍त पर, नगर के मंत्री ने आकर भीड़ को शांत किया।—प्रेरि. 19:23-41.

17 अगर आप अरिस्तरखुस और गयुस की जगह होते, तो ऐसे हालात से गुज़रने के बाद आप क्या करते? क्या आप ऐसी ज़िंदगी का चुनाव करते, जिसमें आपको कम परेशानियों से गुज़रना पड़ता? बाइबल से इस बात का कोई इशारा नहीं मिलता कि अरिस्तरखुस या गयुस ने हिम्मत हारी हो। दरअसल, अरिस्तरखुस थिस्सलुनिके का रहनेवाला था, वहीं का जहाँ कुछ समय पहले पौलुस के प्रचार करने की वजह से काफी कोहराम मच गया था। इसलिए वह अच्छी तरह जानता था कि खुशखबरी सुनाने की वजह से उसे भी सताया जा सकता है। (प्रेरि. 17:5; 20:4) अरिस्तरखुस और गयुस यहोवा के मार्गों पर चले, इसलिए परमेश्‍वर ने उन्हें ज़ुल्मों को सहने की हिम्मत और ताकत दी।

दूसरों की भलाई की चिंता करना

18. प्रिसका और अक्विला ने किस तरह दूसरों की भलाई की “चिन्ता” की?

18 चाहे हमें फिलहाल सताया जा रहा हो या नहीं, हमें फिर भी अपने मसीही भाई-बहनों की चिंता करनी चाहिए। शादीशुदा जोड़ा, प्रिसका और अक्विला दूसरों की भलाई की “चिन्ता” करने में बढ़िया मिसाल थे। (फिलिप्पियों 2:4 पढ़िए।) उन्होंने शायद पौलुस को इफिसुस में अपने घर पर रहने की जगह दी थी। जैसे कि ऊपर बताया गया है, इफिसुस वही जगह थी, जहाँ चाँदी का काम करनेवाले देमेत्रियुस के ज़रिए भड़काए जाने पर भीड़ ने हो-हल्ला मचाया था। हो सकता है, इन्हीं हालात में इस जोड़े ने पौलुस की जान बचाने के लिए ‘अपना जीवन जोखिम में डाला हो।’ (रोमि. 16:3, 4, NHT; 2 कुरि. 1:8) आज, क्योंकि हमें सताए जा रहे अपने भाइयों की फिक्र है, इसलिए हम “सांपों की नाईं बुद्धिमान” बनते हैं। (मत्ती 10:16-18) वह कैसे? हम प्रचार करते वक्‍त पूरी एहतियात बरतते हैं और हमें अपने भाई-बहनों के साथ गद्दारी करना कतई मंज़ूर नहीं। इसलिए सितमगरों के हाथों पकड़े जाने पर, हम उन्हें न तो अपने भाई-बहनों के नाम बताते हैं और ना ही दूसरी जानकारी देते हैं।

19. दोरकास ने दूसरों की खातिर क्या भले काम किए?

19 दूसरों की भलाई की चिंता करने के कई तरीके हैं। कुछ मसीहियों के पास शायद बुनियादी ज़रूरतें न हों, तो ऐसे में हम उनकी ये ज़रूरतें पूरी कर सकते हैं। (इफि. 4:28; याकू. 2:14-17) पहली सदी की याफा कलीसिया में एक बहुत ही दिलदार स्त्री रहती थी। उसका नाम था, दोरकास। (प्रेरितों 9:36-42 पढ़िए।) “वह बहुतेरे भले भले काम और दान किया करती थी।” ऐसा लगता है कि वह गरीब विधवाओं के लिए कपड़े भी बनाती थी। सामान्य युग 36 में जब उसकी मौत हो गयी, तो विधवाओं को बहुत दुःख हुआ। इस पर, परमेश्‍वर ने प्रेरित पतरस के ज़रिए दोरकास को दोबारा ज़िंदा किया। इसके बाद, दोरकास ने ज़रूर अपनी बाकी ज़िंदगी खुशी-खुशी सुसमाचार का प्रचार करने और दूसरों की खातिर भले काम करने में बितायी होगी। आज भी हमारे बीच इस तरह की निःस्वार्थ मसीही स्त्रियाँ मौजूद हैं। इनकी मौजूदगी हमारे लिए कितनी बड़ी खुशी की बात है!

20, 21. (क) दूसरों की भलाई की चिंता करने और उनका हौसला बढ़ाने के बीच क्या नाता है? (ख) दूसरों का हौसला बढ़ाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

20 दूसरों की भलाई की चिंता करने का एक और तरीका है, उनका हौसला बढ़ाना। (रोमि. 1:11, 12) पौलुस का साथी, सीलास दूसरों का बहुत हौसला बढ़ाता था। लगभग सा.यु. 49 में जब खतने का मसला सुलझाया गया, तो यरूशलेम के शासी निकाय ने अलग-अलग कलीसियाओं को अपना फैसला सुनाने के लिए एक चिट्ठी लिखी और इसे दूतों के ज़रिए उन तक पहुँचाया। इस चिट्ठी को सीलास, यहूदा, बरनबास और पौलुस अन्ताकिया ले गए। वहाँ सीलास और यहूदा ने “बहुत बातों से भाइयों को उपदेश देकर [उन्हें] स्थिर किया।”—प्रेरि. 15:32.

21 कुछ समय बाद, पौलुस और सीलास को फिलिप्पी शहर के जेल में डाला गया। मगर फिर एक भूकंप आया और वे आज़ाद हो गए। इसके बाद, उन्होंने वहाँ के जेलर और उसके परिवार को गवाही दी और वे सब विश्‍वासी बन गए। ज़रा सोचिए, यह देखकर पौलुस और सीलास को कितनी खुशी हुई होगी! फिलिप्पी शहर से निकलने से पहले, उन्होंने वहाँ के भाइयों का हौसला बँधाया। (प्रेरि. 16:12, 40) पौलुस और सीलास की तरह, आप भी अपने जवाबों से, भाषणों से और पूरे जोश के साथ प्रचार में हिस्सा लेने के ज़रिए दूसरों की हौसला-अफज़ाई करने की पूरी-पूरी कोशिश कीजिए। और अगर आप “लोगों के प्रोत्साहन के लिए कुछ कहना चाहते हैं तो [बेझिझक] कहिए।”—प्रेरि. 13:15, नयी हिन्दी बाइबिल।

यहोवा के मार्गों पर चलते रहिए

22, 23. हम बाइबल में दर्ज़ ब्यौरों से पूरा-पूरा फायदा कैसे पा सकते हैं?

22 हमें ‘हर तरह के हौसले के परमेश्‍वर’ यहोवा के कितने एहसानमंद होना चाहिए, जिसने अपने वचन में सचमुच के लोगों के ब्यौरे दर्ज़ करवाए हैं! (2 कुरि. 1:3, बाइंगटन) अगर हम ऊपर बताए बाइबल के किरदारों के तजुरबों से फायदा पाना चाहते हैं, तो हमें उनसे सीखे सबक को अपनी ज़िंदगी में लागू करना होगा। साथ ही, हमें परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा की दिखायी राह पर चलना होगा।—गल. 5:22-25.

23 बाइबल में दर्ज़ ब्यौरों पर मनन करने से हम परमेश्‍वर को भानेवाले गुण ज़ाहिर कर पाएँगे। इससे यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता मज़बूत होगा, जो हमें “बुद्धि और ज्ञान और आनन्द देता है।” (सभो. 2:26) और बदले में हम परमेश्‍वर के मन को आनंदित कर पाएँगे, जो हमारे लिए प्यार से उमड़ रहा है। (नीति. 27:11) तो फिर आइए, हम यहोवा के मार्गों पर चलते रहने के ज़रिए उसके मन को खुश करने की ठान लें।

आप क्या जवाब देंगे?

• आप खुद को भरोसेमंद कैसे साबित कर सकते हैं?

• हमें “नम्र” क्यों बने रहना चाहिए?

• हिम्मत से काम लेने में बाइबल के ब्यौरे हमारी मदद कैसे कर सकते हैं?

• हम कैसे दूसरों की भलाई की चिंता कर सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 8 पर तसवीर]

भरोसेमंद यिप्तह और उसकी बेटी ने यिप्तह का वादा पूरा किया, हालाँकि ऐसा करना बिलकुल भी आसान नहीं था

[पेज 10 पर तसवीर]

बच्चो और जवानो, आपने छोटी इस्राएली लड़की से क्या सीखा?

[पेज 11 पर तसवीर]

दोरकास ने कैसे अपने संगी मसीहियों की ज़रूरतें पूरी कीं?