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सबसे महान मिशनरी की मिसाल पर चलिए

सबसे महान मिशनरी की मिसाल पर चलिए

सबसे महान मिशनरी की मिसाल पर चलिए

“तुम मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूं।”—1 कुरि. 11:1.

1. हमें क्यों यीशु मसीह की मिसाल पर चलना चाहिए?

 प्रेरित पौलुस एक ऐसा शख्स था, जो सबसे महान मिशनरी यीशु मसीह की मिसाल पर चला था। उसने अपने संगी मसीहियों को भी उकसाया: “तुम मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूं।” (1 कुरि. 11:1) जब यीशु धरती पर था, तब उसने खुद अपने प्रेरितों को उसकी मिसाल पर चलने की हिदायत दी थी। उनके पैर धोकर नम्रता की मिसाल कायम करने के बाद उसने कहा: “मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो।” (यूह. 13:12-15) आज, मसीह के चेले होने के नाते हमारी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि हम अपनी बातों और अपने कामों में यीशु मसीह की मिसाल पर चलें। साथ ही, अपने जीवन में उसके जैसे गुण ज़ाहिर करें।—1 पत. 2:21.

2. अगर आपको शासी निकाय के ज़रिए मिशनरी न भी ठहराया गया हो, तो भी आप क्या जज़्बा रख सकते हैं?

2 पिछले लेख में हमने सीखा कि एक मिशनरी वह होता है, जिसे सुसमाचार सुनाने के लिए भेजा जाता है। इस सिलसिले में पौलुस ने कुछ दिलचस्प सवाल पूछे। (रोमियों 10:11-15 पढ़िए।) उनमें से एक सवाल यह है: “भला वे प्रचारक के बिना कैसे सुनेंगे?” (NHT) फिर पौलुस ने यशायाह की भविष्यवाणी का हवाला देते हुए कहा: “उन के पांव क्या ही सोहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं!” (यशा. 52:7) अगर आपको विदेश में सेवा करने के लिए मिशनरी न भी ठहराया गया हो, फिर भी आप सुसमाचार सुनाने का जज़्बा रख सकते हैं। इस तरह आप यीशु की मिसाल पर चल रहे होंगे। पिछले साल, 69, 57, 852 राज्य प्रचारकों ने 236 देशों में ‘सुसमाचार का प्रचार’ किया था।—2 तीमु. 4:5.

“हम तो सब कुछ छोड़ के तेरे पीछे हो लिए हैं”

3, 4. धरती पर आने के लिए यीशु ने स्वर्ग में क्या छोड़ा और उसका चेला बनने के लिए हमें क्या करना होगा?

3 इस धरती पर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने के लिए, यीशु ने “अपने आप को . . . शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया।” (फिलि. 2:7) जी हाँ, वह अपना स्वर्गीय जीवन और महिमा छोड़कर धरती पर आया। मसीह की मिसाल पर चलते हुए हम चाहे जो भी त्याग क्यों न करें, वह यीशु के त्याग से बढ़कर नहीं हो सकता। लेकिन हाँ, हम उसके चेले बने रहने में अटल रह सकते हैं। साथ ही, शैतान की दुनिया में हम जिन चीज़ों को पीछे छोड़ आए हैं, उनकी लालसा करने से भी दूर रह सकते हैं।—1 यूह. 5:19.

4 एक मौके पर, प्रेरित पतरस ने यीशु से कहा था: “देख, हम तो सब कुछ छोड़ के तेरे पीछे हो लिए हैं।” (मत्ती 19:27) यीशु ने जब पतरस, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्‍ना को उसके पीछे हो लेने का न्यौता दिया, तो उन्होंने फौरन अपने जाल छोड़ दिए और उसके पीछे हो लिए। उन्होंने मछुवाई का व्यापार छोड़कर प्रचार के काम में अपनी ज़िंदगी लगा दी। लूका की सुसमाचार की किताब के मुताबिक, पतरस ने कहा: “देखिए, हम लोग अपना सब कुछ छोड़ कर आपके अनुयायी बन गये हैं।” (लूका 18:28, बुल्के बाइबिल) यीशु के पीछे हो लेने के लिए हममें से ज़्यादातर लोगों को “अपना सब कुछ” छोड़ना नहीं पड़ा है। मगर उसका चेला बनने और तन-मन से यहोवा की सेवा करने के लिए हमें ‘अपने आप से इन्कार’ करना पड़ा है। (मत्ती 16:24) ऐसा करने से हमें भरपूर आशीषें मिली हैं। (मत्ती 19:29 पढ़िए।) जब हम मसीह की मिसाल पर चलते हुए सुसमाचार सुनाने का जज़्बा रखते हैं, तो हमारे दिल को कितनी खुशी मिलती है। हमें तब और भी ज़्यादा खुशी होती है, जब हम किसी को परमेश्‍वर और उसके प्यारे बेटे के करीब आने में मदद देते हैं, फिर चाहे हमारी भूमिका कितनी भी छोटी क्यों न रही हो।

5. विदेश में काम करनेवाला एक इंसान सच्चाई सीखने पर क्या फैसला कर सकता है, यह समझाने के लिए एक अनुभव बताइए।

5 ब्राज़ील से आया एक आदमी वालमीर, सूरीनाम के अंदरूनी इलाकों में सोने की खान में काम करता था। वह एक शराबी था और बदचलन ज़िंदगी जीता था। एक बार जब वह शहर गया, तब उसकी मुलाकात यहोवा के साक्षियों से हुई। वह उनके साथ रोज़ बाइबल अध्ययन करने लगा। उसने अपनी ज़िंदगी में कई तबदीलियाँ कीं और जल्द ही बपतिस्मा ले लिया। जब उसने देखा कि उसके काम की वजह से उसे बाइबल की शिक्षाओं के मुताबिक जीने में मुश्‍किल हो रही है, तो उसने अपनी मोटी तनख्वाहवाली नौकरी छोड़ दी। वह वापस ब्राज़ील गया और अपने परिवार को सच्चाई सीखने में मदद देने लगा। वालमीर की तरह विदेश में काम करनेवाले बहुत-से लोग सच्चाई सीखने के बाद खुशी-खुशी अपनी नौकरी छोड़कर वापस अपने वतन लौट जाते हैं। वे ऐसा इस मकसद से करते हैं कि अपने नाते-रिश्‍तेदारों और दूसरों को यहोवा के बारे में सीखने और उसके करीब आने में मदद दे सकें। ऐसे राज्य प्रचारकों ने सही मायनों में सुसमाचार सुनाने का जज़्बा दिखाया है!

6. जहाँ राज्य प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है, अगर वहाँ सेवा करना हमारे लिए मुमकिन न हो, तो हम क्या कर सकते हैं?

6 कई साक्षी ऐसे इलाकों में जाकर सेवा कर पाए हैं, जहाँ राज्य प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। यहाँ तक कि कुछ साक्षी दूसरे देशों में जाकर भी सेवा करते हैं। शायद ऐसा करना हमारे लिए मुमकिन न हो, मगर फिर भी हम सेवा में हमेशा अपना भरसक कर सकते हैं और इस तरह यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं।

यहोवा हमें ज़रूरी तालीम देता है

7. कुशल राज्य प्रचारक बनने के लिए कौन-कौन-से स्कूल मौजूद हैं?

7 जिस तरह यीशु को अपने पिता से तालीम मिली थी, उसी तरह आज हमें भी यहोवा सिखा रहा है। खुद यीशु ने कहा था: “भविष्यद्वक्‍ताओं के लेखों में यह लिखा है, कि वे सब परमेश्‍वर की ओर से सिखाए हुए होंगे।” (यूह. 6:45; यशा. 54:13) आज ऐसे कई स्कूल हैं, जिनका खास मकसद है, हमें राज्य का कुशल प्रचारक बनाना। इनमें से एक है, ‘परमेश्‍वर की सेवा स्कूल’ जो हर कलीसिया में चलाया जाता है। इसमें कोई शक नहीं कि इस स्कूल से हम सभी को किसी-न-किसी तरीके से फायदा हुआ है। पायनियरों को ‘पायनियर सेवा स्कूल’ में हाज़िर होने का अनोखा सुअवसर मिलता है। बरसों से पायनियर सेवा करनेवाले बहुत-से भाई-बहनों को दूसरी बार इस स्कूल में हाज़िर होने का बढ़िया मौका मिला है। प्राचीनों और सहायक सेवकों के लिए ‘राज्य सेवा स्कूल’ का इंतज़ाम है। यह स्कूल उनके सिखाने की कला में निखार लाता है साथ ही, उन्हें और भी बेहतर तरीके से अपने भाई-बहनों की सेवा करने के काबिल बनाता है। कई अविवाहित प्राचीनों और सहायक सेवकों को ‘कलीसिया सेवक प्रशिक्षण स्कूल’ में हाज़िर होने का सम्मान मिलता है। इस स्कूल में उन्हें सिखाया जाता है कि वे प्रचार में दूसरों की कैसे मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, जिन भाई-बहनों को मिशनरी सेवा के लिए विदेश भेजा जाता है, उन्हें ‘वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड’ में तालीम दी जाती है।

8. परमेश्‍वर से मिलनेवाली तालीम का फायदा उठाने के लिए, कुछ भाइयों ने खुशी-खुशी क्या त्याग किया है?

8 यहोवा के बहुत-से साक्षियों ने इन स्कूलों में हाज़िर होने के लिए अपनी ज़िंदगी में फेरबदल किए हैं। मिसाल के लिए, कैनडा में यूगू नाम के एक भाई को जब ‘कलीसिया सेवक प्रशिक्षण स्कूल’ में हाज़िर होने का न्यौता आया, तो उसने अपने मालिक से छुट्टी माँगी। लेकिन जब मालिक ने उसकी छुट्टी नामंज़ूर कर दी, तो यूगू ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। यूगू कहता है: “मुझे इस बात का ज़रा-भी अफसोस नहीं। दरअसल अगर कंपनीवाले मुझे छुट्टी देने का एहसान करते, तो वे मुझसे यह उम्मीद करते कि मैं कंपनी का वफादार रहूँ और हमेशा उनके लिए काम करता रहूँ। लेकिन अब मैं आज़ाद हूँ और किसी भी काम के लिए तैयार हूँ जो यहोवा मुझे देगा।” परमेश्‍वर से मिलनेवाली तालीम का फायदा उठाने के लिए, बहुत-से मसीहियों ने खुशी-खुशी उन चीज़ों का त्याग किया है, जिन्हें वे पहले बहुत अनमोल समझते थे।—लूका 5:28.

9. बाइबल सिखाने के साथ-साथ कड़ी मेहनत करने के क्या बढ़िया नतीजे मिलते हैं, इसकी एक मिसाल दीजिए।

9 अगर प्रचारक, बाइबल सिखाने के साथ-साथ कड़ी मेहनत करें, तो इससे लोगों को बहुत फायदा हो सकता है। (2 तीमु. 3:16, 17) गौर कीजिए कि ग्वाटेमाला के रहनेवाले साउलो को क्या फायदा हुआ। वह जन्म से मानसिक रूप से थोड़ा कमज़ोर था। उसकी एक टीचर ने उसकी माँ से कहा कि वह अपने बेटे को ज़बरदस्ती पढ़ना न सिखाए, क्योंकि इससे साउलो को सिर्फ निराशा ही महसूस होगी। इसलिए स्कूल छोड़ने तक साउलो ने कभी पढ़ना ही नहीं सीखा। लेकिन एक साक्षी ने उसे पढ़ना सिखाया। साउलो ने इतनी अच्छी तरक्की की कि आखिरकार, वह ‘परमेश्‍वर की सेवा स्कूल’ में भाषण देने लगा। एक दिन, जब साउलो की माँ घर-घर प्रचार कर रही थी, तब उसकी मुलाकात साउलो की टीचर से हुई। जब उस टीचर को पता चला कि साउलो ने अब पढ़ना सीख लिया है, तो वह उससे मिलना चाहती थी और अगले हफ्ते उसे साथ लाने को कहा। जब साउलो आया, तो टीचर ने उससे पूछा: “बताओ, तुम मुझे क्या सिखाओगे?” इस पर साउलो उसे बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब से एक पैराग्राफ पढ़कर सुनाने लगा। टीचर ने कहा: “मुझे तो यकीन ही नहीं होता कि अब तुम मुझे सिखा रहे हो।” खुशी के मारे वह रो पड़ी और साउलो को गले लगा लिया।

सिखाने का तरीका, जो दिल पर गहरा असर कर जाए

10. बाइबल की सच्चाई सिखाने के लिए हमारे पास कौन-सी बढ़िया किताब है?

10 यीशु ने यहोवा से जो कुछ सीखा था, वही लोगों को सिखाता था। साथ ही, वह परमेश्‍वर के लिखित वचन से भी हिदायतें देता था। (लूका 4:16-21; यूह. 8:28) हम यीशु की सलाहों को मानने और बाइबल के आधार पर लोगों को सिखाने के ज़रिए उसकी मिसाल पर चलते हैं। इस तरह, हम सभी की बातों और विचारों में तालमेल पाया जाता है और इससे हमारी एकता बढ़ती है। (1 कुरि. 1:10) हम “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के कितने एहसानमंद है कि वह बाइबल की समझ देनेवाली किताबें-पत्रिकाएँ मुहैया कराता है! क्योंकि इन किताबों-पत्रिकाओं से हम अपने सिखाने के तरीके और प्रचार काम में एकता बनाए रख पाते हैं। (मत्ती 24:45; 28:19, 20) ऐसी ही एक किताब है, बाइबल असल में क्या सिखाती है? जो अब 179 भाषाओं में उपलब्ध है।

11. इथियोपिया में एक बहन ने कैसे बाइबल सिखाती है किताब की मदद से विरोध का सामना किया?

11 बाइबल सिखाती है किताब के ज़रिए शास्त्र का अध्ययन करने से विरोधियों का भी मन बदल सकता है। इथियोपिया के इस अनुभव पर ध्यान दीजिए। एक बार, लूला नाम की एक पायनियर बहन अपने विद्यार्थी के साथ बाइबल अध्ययन कर रही थी। अचानक, उस विद्यार्थी की एक रिश्‍तेदार आ धमकी और कहने लगी कि बाइबल अध्ययन बंद करो। लूला ने ठंडे दिमाग से उस स्त्री के साथ बात करने की कोशिश की और बाइबल सिखाती है किताब के अध्याय 15 में दिए जाली नोटों का उदाहरण इस्तेमाल किया। इस पर वह स्त्री शांत हो गयी और उन्हें अध्ययन करने दिया। यही नहीं, जब लूला अगली बार बाइबल अध्ययन के लिए गयी, तो वह स्त्री भी अध्ययन के लिए बैठी। फिर उसने कहा कि वह भी बाइबल अध्ययन करना चाहती है और अध्ययन के लिए फीस देने को भी तैयार थी! देखते-ही-देखते, वह हफ्ते में तीन बार बाइबल अध्ययन करने लगी और उसने सच्चाई में अच्छी तरक्की की।

12. एक मिसाल देकर बताइए कि बच्चे और जवान कैसे असरदार तरीके से बाइबल की सच्चाइयाँ सिखा सकते हैं।

12 बाइबल सिखाती है किताब से बच्चे और जवान भी दूसरों की मदद कर सकते हैं। हवाई द्वीप-समूह में 11 साल का कीयानू, जब एक दिन स्कूल में यह किताब पढ़ रहा था, तो उसके एक साथी ने उससे पूछा: “तुम कोई त्योहार क्यों नहीं मनाते हो?” कीयानू ने सीधे किताब के अतिरिक्‍त लेख में दिए भाग, “क्या हमें त्योहार और दूसरे दिवस मनाने चाहिए?” से जवाब पढ़कर उसे सुनाया। इसके बाद, उसने किताब की विषय-सूची दिखायी और अपने साथी से पूछा कि वह खास किस विषय के बारे में जानना चाहता है। इस तरह कीयानू ने अपने साथी के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया। पिछले सेवा साल में, यहोवा के साक्षियों ने 65, 61, 426 बाइबल अध्ययन चलाए, और ज़्यादातर अध्ययन बाइबल सिखाती है किताब से चलाए गए थे। क्या आप भी इस किताब से बाइबल अध्ययन चला रहे हैं?

13. बाइबल अध्ययन करने का लोगों पर कैसा ज़बरदस्त असर हो सकता है?

13 बाइबल सिखाती है किताब से अध्ययन करने का उन लोगों पर ज़बरदस्त असर होता है, जो परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करना चाहते हैं। नोर्वे में खास पायनियर सेवा करनेवाले एक शादीशुदा जोड़े ने ज़ाम्बिया से आए एक परिवार के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया। उस परिवार में पहले से तीन बेटियाँ थीं, इसलिए पति-पत्नी और बच्चा नहीं चाहते थे। ऐसे में जब पत्नी फिर से माँ बननेवाली थी, तो उन्होंने बच्चा गिरा देने का फैसला किया। डॉक्टर के पास जाने के कुछ ही दिन पहले उन्होंने अध्याय, “जीवन के बारे में परमेश्‍वर जैसा नज़रिया रखिए” का अध्ययन किया। उस अध्याय में गर्भ में पल रहे एक बच्चे की तसवीर दी गयी थी। यह तसवीर उस पति-पत्नी के दिल को इस कदर छू गयी कि उन्होंने बच्चा न गिराने का फैसला किया। वे लगातार अच्छी तरक्की करते रहे और बाद में उन्हें एक बेटा हुआ। उन्होंने उसका नाम उस भाई के नाम पर रखा, जो उनका बाइबल अध्ययन चलाता था।

14. उदाहरण देकर समझाइए कि कैसे सीखी बातों के मुताबिक जीने से अच्छे नतीजे मिलते हैं।

14 यीशु के सिखाने का एक अहम तरीका था कि वह जो सिखाता था, उसके मुताबिक जीता भी था। इस मामले में आज यहोवा के साक्षी यीशु की मिसाल पर चलते हैं। और साक्षियों की बढ़िया चालचलन देखकर कई लोग उनकी तारीफ करते हैं। न्यू ज़ीलैंड में एक बिज़नेसमैन की गाड़ी में चोरी हुई और चोर उसका ब्रीफकेस लेकर चंपत हो गया। चोरी की रिपोर्ट लिखवाने पर एक पुलिसवाले ने उससे कहा: “अगर आपका सामान किसी यहोवा के साक्षी को मिल जाए, तो वह आपको वापस मिल सकता है, वरना मुश्‍किल है।” और हकीकत में ऐसा ही हुआ। एक साक्षी बहन को, जो घर-घर अखबार पहुँचाने का काम करती है, उस बिज़नेसमैन का ब्रीफकेस मिला। उस आदमी को इत्तला किया गया, और वह बहन के घर अपना ब्रीफकेस लेने आया। जब उस आदमी ने देखा कि ब्रीफकेस में उसका एक ज़रूरी कागज़ात सही-सलामत है, तो उसकी जान में जान आयी। बहन ने उससे कहा: “मैंने आपका सामान इसलिए लौटाया, क्योंकि मैं यहोवा की एक साक्षी हूँ।” यह सुनकर बिज़नेसमैन भौचक्का रह गया, क्योंकि उसे याद आया कि उसी सुबह पुलिसवाले ने उससे क्या कहा था। वाकई सच्चे मसीही, यीशु की मिसाल पर चलते हुए बाइबल की शिक्षाओं के मुताबिक अपनी ज़िंदगी जीते हैं।—इब्रा. 13:18.

लोगों के बारे में यीशु के जैसा नज़रिया रखिए

15, 16. लोग हमारे संदेश को सुनने के लिए कैसे खिंचे चले आ सकते हैं?

15 यीशु ने लोगों के बारे में जैसा नज़रिया रखा, उसी वजह से वे उसके संदेश को सुनने के लिए खिंचे चले आए। मिसाल के लिए, उसका प्यार और उसकी नम्रता देखकर दीन लोग बेझिझक उसके पास चले आते थे। उसके पास आनेवालों के साथ वह करुणा से पेश आता, अपने प्यार-भरे शब्दों से उन्हें तसल्ली देता और उनकी बीमारियों को दूर करता था। (मरकुस 2:1-5 पढ़िए।) आज हम चमत्कार तो नहीं कर सकते, मगर हम प्यार, नम्रता और करुणा ज़रूर दिखा सकते हैं। ये ऐसे गुण हैं, जिनसे लोग सच्चाई की तरफ खिंचे चले आते हैं।

16 गौर कीजिए कि कैसे करुणा दिखाने से लोग सच्चाई की तरफ आकर्षित हो सकते हैं। टारीऊआ नाम की एक बहन खास पायनियर सेवा करती है। एक दिन उसकी मुलाकात बीरा नाम के एक बुज़ुर्ग से हुई। वह दक्षिण प्रशांत महासागर में किरिबती के एक दूर-दराज़ द्वीप में रहता है। हालाँकि उस बुज़ुर्ग ने कहा कि उसे टारीऊआ की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं, फिर भी टारीऊआ ने गौर किया कि उसके शरीर के कुछ हिस्सों को लकवा मार गया था। यह देखकर बहन को उस पर दया आयी। उसने पूछा: “क्या आप जानते हैं कि परमेश्‍वर ने बीमार और बुज़ुर्ग लोगों के लिए क्या करने का वादा किया है?” फिर उसने यशायाह की भविष्यवाणी से एक भाग पढ़ा। (यशायाह 35:5, 6 पढ़िए।) इस बात से उस आदमी की दिलचस्पी बढ़ी और उसने कहा: “मैं बरसों से बाइबल पढ़ रहा हूँ और मेरे धर्म का एक मिशनरी सालों से मेरे घर आता है, फिर भी मैंने यह बात बाइबल में कभी नहीं पढ़ी।” बीरा के साथ एक बाइबल अध्ययन शुरू किया गया और उसने बहुत ही बढ़िया तरक्की की। अब वह एक बपतिस्मा-शुदा भाई है और एक अलग-थलग समूह की अगुवाई करता है। यह सच है कि पहले उसकी हालत इतनी खराब थी कि वह चल-फिर नहीं पाता था। मगर अब वह चल पाता है और पूरे द्वीप में सुसमाचार सुनाता फिरता है।

मसीह की मिसाल पर चलते रहिए

17, 18. (क) आप एक कुशल प्रचारक कैसे बन सकते हैं? (ख) जो मसीही अपनी सेवा को अहमियत देते हैं, उन्हें क्या मिलेगा?

17 प्रचार में मिलनेवाले बढ़िया अनुभव बार-बार यही साबित करते हैं कि हम कुशल प्रचारक बन सकते हैं, बशर्ते हम यीशु के जैसे गुण पैदा और ज़ाहिर करें। तो फिर, जोशीले प्रचारक के नाते आइए हम मसीह की मिसाल पर चलते रहें!

18 पहली सदी में जब कुछ लोग यीशु के चेले बने, तो पतरस ने यीशु से पूछा: “हमें क्या मिलेगा?” जवाब में यीशु ने कहा: “जिस किसी ने घरों या भाइयों या बहिनों या पिता या माता या लड़केबालों या खेतों को मेरे नाम के लिये छोड़ दिया है, उस को सौ गुना मिलेगा: और वह अनन्त जीवन का अधिकारी होगा।” (मत्ती 19:27-29) जी हाँ, अगर हम सबसे महान मिशनरी, यीशु मसीह की मिसाल पर चलते रहें, तो हम बेशक इस बात को पूरा होते देखेंगे!

आप क्या जवाब देंगे?

• यहोवा हमें सुसमाचार का प्रचारक बनने की तालीम कैसे दे रहा है?

• प्रचार में बाइबल सिखाती है किताब क्यों असरदार है?

• हम लोगों के बारे में यीशु के जैसा नज़रिया कैसे रख सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 17 पर तसवीर]

जब यीशु ने पतरस, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्‍ना को बुलाया, तो वे तुरंत उसके पीछे हो लिए

[पेज 19 पर तसवीर]

“बाइबल सिखाती है” जैसी किताबों से हम अपने सिखाने के तरीके में एकता बनाए रख सकते हैं