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“तुम में ज्ञानवान और समझदार कौन है?”

“तुम में ज्ञानवान और समझदार कौन है?”

“तुम में ज्ञानवान और समझदार कौन है?”

“तुम में ज्ञानवान और समझदार कौन है? जो ऐसा हो वह अपने कामों को अच्छे चालचलन से उस नम्रता सहित प्रगट करे जो ज्ञान से उत्पन्‍न होती है।”—याकू. 3:13.

1, 2. आप उन लोगों के बारे में क्या कहेंगे, जिन्हें दुनिया बुद्धिमान समझती है?

 आप किसे एक ज्ञानवान या बुद्धिमान इंसान कहेंगे? अपने माँ-बाप को? किसी बड़े-बुज़ुर्ग को या फिर कॉलेज के अपने किसी प्रोफेसर को? इसका जवाब आप शायद अपनी परवरिश या हालात की बिनाह पर दें। लेकिन परमेश्‍वर के सेवकों को खासकर यह जानने में दिलचस्पी है कि परमेश्‍वर किसे बुद्धिमान समझता है?

2 दुनिया जिन्हें बुद्धिमान मानती है, वे परमेश्‍वर की नज़र में सही मायनों में बुद्धिमान नहीं होते। मिसाल के लिए, अय्यूब के दिनों में कुछ लोग खुद को बड़े ज्ञानी समझते थे। लेकिन उनसे बात करने के बाद अय्यूब ने कहा, “मुझे तुम लोगों में एक भी बुद्धिमान न मि[ला]।” (अय्यू. 17:10) परमेश्‍वर के ज्ञान को ठुकरानेवालों के बारे में प्रेरित पौलुस ने लिखा, “वे अपने आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए।” (रोमि. 1:22) और यशायाह नबी के ज़रिए यहोवा ने खुद बड़े ज़बरदस्त शब्दों में कहा, “हाय उन पर जो अपनी दृष्टि में . . . बुद्धिमान हैं!”—यशा. 5:21.

3, 4. सही मायनों में बुद्धिमान बनने के लिए क्या होना ज़रूरी है?

3 इसलिए यह जानना ज़रूरी है कि क्या बात एक इंसान को सही मायनों में बुद्धिमान बनाती है, जिससे वह परमेश्‍वर का अनुग्रह पा सके। नीतिवचन 9:10 हमसे कहता है: “यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है, और परमपवित्र ईश्‍वर को जानना ही समझ है।” बुद्धिमान इंसान में परमेश्‍वर के लिए सही किस्म का भय होना चाहिए और उसके स्तरों के लिए आदर भी होना चाहिए। लेकिन सिर्फ यह मान लेना काफी नहीं कि परमेश्‍वर अस्तित्त्व में है और उसके कुछ स्तर हैं। शिष्य याकूब इस बारे में हमें और भी जानकारी देता है। (याकूब 3:13 पढ़िए।) ध्यान दीजिए कि यह आयत एक बुद्धिमान इंसान के बारे में क्या कहती है, ‘ऐसा हो कि वह अपने कामों को अच्छे चालचलन से प्रकट करे।’ इससे पता चलता है कि सच्ची बुद्धि हमारे हर दिन के कामों और बातों से ज़ाहिर होनी चाहिए।

4 सच्ची बुद्धि में ज्ञान और समझ का सही तरह से इस्तेमाल करना और सोच-समझकर फैसले करना भी शामिल है। किन कामों से ज़ाहिर होगा कि हममें सच्ची बुद्धि है? याकूब ने ऐसी कई बातें बतायीं, जो एक बुद्धिमान इंसान के कामों में साफ नज़र आनी चाहिए। * याकूब ने ऐसा क्या कहा, जिससे हम अपने व्यवहार में भाई-बहनों और दुनिया के लोगों के साथ अच्छे तरीके से पेश आ सकें?

बुद्धिमानों की पहचान, उनके कामों से होती है

5. अपने चालचलन के सिलसिले में एक बुद्धिमान इंसान क्या करने कोशिश करता है?

5 जैसा हमने ऊपर देखा, याकूब बताता है कि बुद्धि का अच्छे चालचलन के साथ गहरा नाता है। यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरंभ है, इसलिए एक बुद्धिमान इंसान यही कोशिश करता है कि उसका चालचलन यहोवा के मार्गों और स्तरों के मुताबिक हो। हालाँकि यह बुद्धि हममें पैदाइशी नहीं होती, मगर हम इसे पा सकते हैं। वह कैसे? हर दिन बाइबल का अध्ययन करने और सीखी बातों पर मनन करने के ज़रिए। इस तरह हम “परमेश्‍वर के सदृश्‍य” बन पाएँगे, जैसा इफिसियों 5:1 हमसे गुज़ारिश करता है। हम अपने चालचलन में जितना ज़्यादा यहोवा की शख्सियत ज़ाहिर करेंगे, उतना ही हम अपने कामों से बुद्धि दिखा पाएँगे। यहोवा के मार्ग इंसान के मार्गों से कहीं श्रेष्ठ हैं। (यशा. 55:8, 9) इसलिए, जब हम हर काम यहोवा के मार्गों के मुताबिक करेंगे, तो दुनियावाले साफ देख पाएँगे कि हम उनसे कितने अलग हैं।

6. नर्मदिल होना क्यों दिखाता है कि हम परमेश्‍वर के जैसा बनने की कोशिश करते हैं और इस गुण का क्या मतलब है?

6 याकूब ने बताया कि यहोवा के जैसा बनने का एक तरीका है “नर्मदिली” दिखाना, “जिसका बुद्धि से नाता है।” (NW) हालाँकि नर्मदिली का मतलब कोमलता है, लेकिन ज़रूरत पड़ने पर यह गुण एक मसीही को बाइबल के उसूलों पर डटे रहने और सही काम करने की ताकत भी देता है। यहोवा के पास असीम सामर्थ है, फिर भी वह नर्मदिल है। और इस वजह से हम उसके करीब आने में कोई डर या झिझक महसूस नहीं करते। परमेश्‍वर का बेटा हू-ब-हू अपने पिता जैसा नर्मदिल था, इसलिए वह कहा सका: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र [“नर्मदिल,” NW] और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।”—मत्ती 11:28, 29; फिलि. 2:5-8.

7. मूसा को नर्मदिली की बेहतरीन मिसाल क्यों कहा जा सकता है?

7 इनके अलावा, बाइबल ऐसे लोगों के बारे में बताती है, जिन्होंने नर्मदिली या नम्रता दिखाने में बेहतरीन मिसाल रखी। मूसा उनमें से एक था। उसे बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी, फिर भी वह नम्र बना रहा। उसके बारे में कहा गया कि वह “पृथ्वी भर के रहने वाले सब मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था।” (गिन. 11:29; 12:3) यहोवा ने अपनी मरज़ी पूरी करवाने के लिए मूसा को ज़रूरी हिम्मत दी। ऐसे नर्मदिल लोगों को अपने मकसद के लिए इस्तेमाल करने में यहोवा को बेहद खुशी हुई।

8. असिद्ध इंसान किस तरह वह “नर्मदिली” दिखा सकते हैं, “जिसका बुद्धि से नाता है”?

8 मूसा की मिसाल दिखाती है कि असिद्ध इंसानों के लिए वह “नर्मदिली” दिखाना मुमकिन है “जिसका बुद्धि से नाता है।” (NW) हमारे बारे में क्या? हम अपनी ज़िंदगी में यह गुण और भी अच्छे तरीके से कैसे दिखा सकते हैं? नर्मदिली, यहोवा की पवित्र आत्मा का एक फल है। (गल. 5:22, 23) इसलिए हम उसकी आत्मा के लिए प्रार्थना कर सकते हैं और इस फल को दिखाने की खास कोशिश कर सकते हैं। साथ ही, हम इस बात का भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमें नर्मदिली दिखाने में मदद देगा। ऐसा करने की ज़बरदस्त प्रेरणा हमें भजनहार के इन शब्दों से मिलती है: “[परमेश्‍वर] नम्र लोगों को अपना मार्ग दिखलाएगा।”—भज. 25:9.

9, 10. नरमी से पेश आने के लिए हम क्या कर सकते हैं और ऐसा करना क्यों आसान नहीं?

9 मगर नर्मदिली दिखाना इतना आसान नहीं। शायद हममें से कुछ लोग ऐसे माहौल में पले-बढ़े हों, जहाँ हमने नरमी से पेश आना सीखा ही न हो। इसके अलावा, ज़्यादातर लोग हमें यह बढ़ावा दें, ‘ईंट का जवाब पत्थर से दो।’ लेकिन क्या ऐसा करना सचमुच बुद्धिमानी है? मान लीजिए, आपके घर में अचानक आग लग जाती है। उसे बुझाने के लिए क्या आप तेल डालेंगे या पानी? अगर आप तेल डालेंगे तो आग और भी फैलेगी, जबकि पानी डालने से आग तुरंत बुझ जाएगी। उसी तरह, बाइबल हमें सलाह देती है: “कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है, परन्तु कटुवचन से क्रोध धधक उठता है।” (नीति. 15:1, 18) इसलिए जब किसी मसीही भाई या बाहरवाले के साथ हमारी नोंक-झोंक हो जाती है, तो क्या हम नरमी से पेश आकर सच्ची बुद्धि दिखा सकते हैं?—2 तीमु. 2:24.

10 जैसा कि हमने पिछले पैराग्राफ में देखा, आज ज़्यादातर लोगों पर संसार की आत्मा हावी है और उनमें कोमलता और शांति दूर-दूर तक दिखायी नहीं देती। इसके बजाय, वे कठोर और घमंडी होते हैं। याकूब अच्छी तरह जानता था कि संसार की आत्मा का कितना ज़बरदस्त असर हो सकता है। इसलिए उसने कलीसिया के लोगों को चिताया, ताकि यह आत्मा उन पर हावी न हो जाए। याकूब की दी सलाह से हम और क्या सीख सकते हैं?

मूर्ख लोगों की निशानियाँ

11. ऐसी कुछ निशानियाँ बताइए जिनका परमेश्‍वर की बुद्धि से कोई मेल नहीं।

11 याकूब ने खुलकर ऐसी कुछ निशानियों के बारे में बताया, जिनका परमेश्‍वर की बुद्धि से कोई मेल नहीं। (याकूब 3:14 पढ़िए।) डाह और विरोध यानी झगड़े, दुनियावी सोच रखनेवालों की निशानियाँ हैं, न कि आध्यात्मिक इंसानों की। गौर कीजिए कि जो लोग दुनियावी सोच रखते हैं, उनमें क्या होता है। यरूशलेम में ‘होली सेपलकर’ नाम का एक चर्च है, जिसके अलग-अलग हिस्सों पर छः “ईसाई” समूहों का अधिकार है। माना जाता है कि यह चर्च उस जगह पर खड़ा है, जहाँ यीशु को मारकर दफनाया गया था। बरसों से इन समूहों के आपस में झगड़े होते आए हैं। सन्‌ 2006 में टाइम पत्रिका में कुछ समय पहले हुए एक वाकये के बारे में बताया गया। पत्रिका कहती है, पादरियों में “घंटों तक ज़ोरदार बहस चलती रही, . . . वे मोमबत्ती रखने के बड़े-बड़े स्टैंड से एक-दूसरे को मारने लगे।” बात यहाँ तक पहुँच गयी कि उन्होंने एक मुसलिम के पास चर्च की चाबी रखवायी, क्योंकि उन्हें एक-दूसरे पर ज़रा-भी भरोसा नहीं था।

12. जहाँ परमेश्‍वर की बुद्धि नहीं होती, वहाँ क्या होता है?

12 सच्ची मसीही कलीसिया में इस तरह के झगड़ों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। लेकिन, असिद्धता की वजह से कभी-कभी कुछ मसीही दूसरों की सुनने के बजाय अपनी बात पर अड़े रहते हैं। इससे भाइयों में बहस और झगड़ा हो सकता है। प्रेरित पौलुस ने पहली सदी की कुरिन्थुस कलीसिया में यही बात देखी थी। इसलिए उसने उन्हें लिखा: “जब तुम में डाह और झगड़ा है, तो क्या तुम शारीरिक नहीं? और मनुष्य की रीति पर नहीं चलते?” (1 कुरि. 3:3) उस कलीसिया में ऐसा बुरा माहौल काफी समय तक बना रहा। इसलिए आज हमें सावधान रहना चाहिए कि कहीं ऐसा माहौल हमारी कलीसिया में पैदा न हो जाए।

13, 14. उदाहरण देकर बताइए कि कलीसिया में दुनियावी माहौल कैसे पैदा हो सकता है?

13 कलीसिया में ऐसा माहौल कैसे पैदा हो सकता है? छोटी-छोटी बातों से। मान लीजिए, एक राज्य घर के निर्माण के वक्‍त भाइयों में मतभेद हो जाता है कि फलाँ-फलाँ काम को कैसे किया जाना है। एक भाई अपना सुझाव देता है, लेकिन उसे नहीं माना जाता। इस पर वह शायद दूसरे भाइयों से झगड़ने लगे। और जो फैसला लिया जाता है, शायद वह उसकी खुल्लम-खुल्ला नुक्‍ताचीनी करे। यह भी हो सकता है कि वह निर्माण काम में हाथ बँटाने से साफ इनकार कर दे! इस तरह पेश आकर वह भाई यह भूल जाता है कि कलीसिया का काम करने के लिए शांति का माहौल बनाए रखना ज़्यादा अहमियत रखता है, बजाय इसके कि उस काम को किस तरीके से पूरा किया जाता है। यहोवा हमेशा नर्मदिली की भावना दिखानेवालों पर अपनी आशीषें बरसाता है, न कि रगड़े-झगड़े करनेवालों पर।—1 तीमु. 6:4, 5.

14 एक और उदाहरण लीजिए। कलीसिया के प्राचीन गौर करते हैं कि एक भाई को प्राचीन बने कुछ साल हो चुके हैं। मगर अब वह उन माँगों को पूरा नहीं कर रहा है, जो बाइबल में अध्यक्षों के लिए दी गयी हैं। वे उस भाई की मदद करने के लिए उसे सलाह देते हैं, मगर उसमें कोई सुधार नहीं आता। इसलिए कलीसिया के प्राचीन सर्किट अध्यक्ष के दौरे के वक्‍त, यह मामला उसके सामने रखते हैं और उस भाई को पद से हटाने की सिफारिश करते हैं। सभी बातों की जाँच करने के बाद सर्किट अध्यक्ष भी उस सिफारिश से सहमत होता है। अब सवाल यह है कि वह भाई उनके फैसले को कैसे लेगा? क्या वह उस फैसले और बाइबल से मिली सलाह को नम्रता और नर्मदिली से कबूल करेगा? क्या वह बाइबल में बतायी माँगों को पूरा करने की ठानेगा, जिससे वह दोबारा प्राचीन के नाते सेवा कर सके? या क्या वह इस बात को लेकर जलन और कड़वाहट से भर जाएगा कि अब वह एक प्राचीन नहीं रहा? भला उस भाई को इस बात पर अड़े रहने से क्या मिलेगा कि वह प्राचीन रहने के योग्य है, जबकि दूसरे प्राचीनों ने तय किया है कि वह योग्य नहीं? उसके लिए यही अच्छा होगा कि वह नम्रता से प्राचीनों की सलाह को माने।

15. आपको क्यों लगता है कि याकूब 3:15, 16 में ईश्‍वर-प्रेरणा से दी सलाह को मानना बहुत ज़रूरी है?

15 माना कि ऐसे और भी कई हालात हैं, जिनसे कलीसिया में दुनियावी माहौल पैदा हो सकता है। लेकिन चाहे जो भी हालात पैदा हो, हमें झगड़ा और डाह करने से दूर रहना चाहिए। (याकूब 3:15, 16 पढ़िए।) शिष्य याकूब ने इस तरह के रवैए को “सांसारिक” कहा, क्योंकि इससे इंसानी सोच झलकती है और इसका परमेश्‍वर की बुद्धि से कोई नाता नहीं होता। इस रवैए को “शारीरिक” भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें और निर्बुद्धि जानवरों के व्यवहार में कोई फर्क नहीं होता। ऐसा रवैया “शैतानी” भी होता है, क्योंकि इससे परमेश्‍वर के आत्मिक दुश्‍मनों की फितरत ज़ाहिर होती है। इस तरह का सांसारिक, शारीरिक या शैतानी रवैया दिखाना एक मसीही को हरगिज़ शोभा नहीं देता।

16. कलीसिया के हर सदस्य को क्या करना चाहिए और ऐसा करने में वे कैसे कामयाब हो सकते है?

16 कलीसिया के हर सदस्य को अपनी जाँच करनी चाहिए और इस तरह के रवैए को अपने दिल से उखाड़ फेंकना चाहिए। ऐसा करना अध्यक्षों के लिए भी बेहद ज़रूरी है, जो कलीसिया में सिखाने की ज़िम्मेदारी निभाते हैं। लेकिन हम असिद्ध हैं और दुनिया हमें अपने रंग में रंगना चाहती है, इसलिए ऐसे रवैए को अपने मन से निकाल फेंकना इतना आसान नहीं। यह ऐसा है मानो हम एक टेकरी चढ़ रहे हैं और रास्ता कीचड़ से लथपथ और फिसलाऊ है। हम आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं, पर कोई सहारा न होने की वजह से हम पीछे की तरफ फिसल जाते हैं। लेकिन अगर हम बाइबल की सलाहों का सहारा लें और परमेश्‍वर की कलीसिया से मदद लें, तो हम आगे बढ़ते जाएँगे।—भज. 73:23, 24.

गुण जिन्हें बुद्धिमान इंसान ज़ाहिर करने की कोशिश करता है

17. बुरे काम के लिए लुभाए जाने पर एक बुद्धिमान इंसान क्या करता है?

17 याकूब 3:17 पढ़िए। ‘ऊपर से आनेवाली बुद्धि’ (NW) की मदद से हम अपने अंदर कुछ गुण पैदा कर सकते हैं। और इन गुणों पर गौर करने से हमें फायदा होगा। एक गुण है, पवित्रता। पवित्रता का मतलब है, अपने कामों और इरादों में शुद्ध और निष्कलंक होना। हमें बुरी बातों को फौरन ठुकरा देना चाहिए। इसे समझने के लिए एक मिसाल लीजिए। जब किसी की उँगली अचानक हमारी आँख पर लगनेवाली होती है, तो हम तुरंत अपना सिर घुमा लेते हैं या अपने हाथों से बचाव करते हैं। ऐसा करने के लिए हमें सोचना नहीं पड़ता। उसी तरह बुरे काम के लिए लुभाए जाने पर हमें उसे ठुकराने के लिए सोचना नहीं पड़ता। हमारी पवित्रता और बाइबल से तालीम पाया हमारा विवेक हमें उसी पल बुराई से मुँह फेर लेने के लिए उकसाता है। (रोमि. 12:9) बाइबल बताती है कि यूसुफ और यीशु ने ऐसा ही किया था, जब उन्हें लुभाया गया था।—उत्प. 39:7-9; मत्ती 4:8-10.

18. (क) शांति से रहनेवाले और (ख) शांति कायम करनेवाले का क्या मतलब है?

18 परमेश्‍वर की बुद्धि ज़ाहिर करने में सबके साथ मेल या शांति से रहना भी शामिल है। इसका मतलब है कि हमें गुस्सैल होने, झगड़ने या उन कामों से दूर रहना चाहिए, जिनसे शांति भंग हो सकती है। इसी बात का खुलासा करते हुए याकूब ने कहा: “शान्ति स्थापित करनेवाले शान्ति के क्षेत्र में बीज बोते हैं और धार्मिकता का फल प्राप्त करते हैं।” (याकू. 3:18, नयी हिन्दी बाइबिल) इस आयत में इन शब्दों पर ध्यान दीजिए, “शान्ति स्थापित करनेवाले।” क्या कलीसिया के भाई-बहन हमें शांति कायम करनेवाले समझते हैं या शांति भंग करनेवाले? क्या आए दिन दूसरों के साथ हमारी कहा-सुनी होती है, जिससे या तो उन्हें ठेस पहुँचती है या हमें? हमारी जो आदतें दूसरों को बुरी लगती हैं, क्या हम नम्रता से उन्हें सुधारने की कोशिश करते हैं? या हम कहते हैं कि मैं ऐसा ही हूँ, मैं तो नहीं बदल सकता? क्या भाई-बहन हमारे बारे में यही कहते हैं कि हम हमेशा शांति बनाए रखते हैं, माफ करने को तैयार रहते हैं और दूसरों की गलतियों को याद नहीं रखते? इस मामले में खुद की ईमानदारी से जाँच करने पर हम जान पाएँगे कि परमेश्‍वर की बुद्धि ज़ाहिर करने में हमें कहाँ-कहाँ सुधार करना होगा।

19. एक इंसान किस तरह कोमल होने का नाम कमाता है?

19 याकूब ने बताया कि ऊपर से आनेवाली बुद्धि ज़ाहिर करने में कोमल होना, यानी दूसरों की मानना भी शामिल है। क्या कलीसिया में हमें कोमल समझा जाता है? दूसरे शब्दों में कहें, तो जब बाइबल के किसी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं हो रहा, तब क्या हम दूसरों की बात मान लेते हैं, बजाय अपने स्तरों पर अड़े रहने के? क्या हमने ऐसा नाम कमाया है कि हम मृदु स्वभाव के हैं और कोई भी आकर हमसे बेझिझक बात कर सकता है? अगर ऐसा है, तो यह दिखाता है कि हमने कोमल होना सीख लिया है।

20. हमने जिन गुणों की चर्चा की है, उन्हें दिखाने से क्या नतीजे मिलते हैं?

20 याकूब ने परमेश्‍वर के जिन गुणों के बारे में बताया, उन्हें ज़ाहिर करने में अगर भाई-बहन मेहनत करें, तो सचमुच कलीसिया में क्या ही खुशनुमा माहौल हो सकता है! (भज. 133:1-3) नरमी से पेश आने, शांति से रहने और कोमल होने से दूसरों के साथ हमारे रिश्‍ते में ज़रूर सुधार आएगा। इतना ही नहीं, इससे सब पर ज़ाहिर होगा कि हममें वह ‘बुद्धि है, जो ऊपर से आती है।’ अगले लेख में हम सीखेंगे कि हम दूसरों को यहोवा की नज़र से कैसे देख सकते हैं, जिससे हमें उसके गुण ज़ाहिर करने में मदद मिलती है।

[फुटनोट]

^ आस-पास की आयत से पता चलता है कि याकूब ने ये बातें कलीसिया के प्राचीनों या ‘उपदेशकों’ को ध्यान में रखकर लिखी थी। (याकू. 3:1) यह सच है कि प्राचीनों को सच्ची बुद्धि ज़ाहिर करने में एक मिसाल होना चाहिए। लेकिन याकूब की सलाह से हम भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।

क्या आप समझा सकते हैं?

• एक मसीही सही मायनों में कैसे बुद्धिमान बनता है?

हम और भी अच्छे तरीके से कैसे परमेश्‍वर की बुद्धि ज़ाहिर कर सकते हैं?

• उन लोगों की क्या निशानियाँ हैं, जो ‘ऊपर से आनेवाली बुद्धि’ नहीं दिखाते?

• आपने किन गुणों को और भी बढ़ाने की ठान ली है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीर]

भाइयों के बीच झगड़ा कैसे शुरू हो सकता है?

[पेज 24 पर तसवीर]

क्या आप फौरन बुराई से मुँह फेर लेते हैं?