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सही हद तक अधीनता दिखाइए और दूसरों का लिहाज़ कीजिए

सही हद तक अधीनता दिखाइए और दूसरों का लिहाज़ कीजिए

सही हद तक अधीनता दिखाइए और दूसरों का लिहाज़ कीजिए

“लोगों को सुधि दिला कि . . . [वे] कोमल स्वभाव के हों।”—तीतु. 3:1, 2.

1, 2. कोमलता दिखाने के बारे में बाइबल क्या कहती है, और यह क्यों सही भी है?

 स्वर्ग में रहनेवाले हमारे प्यारे पिता, यहोवा की बुद्धि असीम है। इसलिए उसके हाथों की रचना होने के नाते, हमें अपनी ज़िंदगी में उससे मार्गदर्शन लेने की ज़रूरत है। (भज. 48:14) मसीही चेले याकूब ने कहा: ‘जो [बुद्धि] ऊपर से आती है, वह पहले तो पवित्र होती है, फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव और दया, और अच्छे फलों से लदी हुई और पक्षपात और कपट रहित होती है।’—याकू. 3:17.

2 प्रेरित पौलुस ने उकसाया: “तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो।” * (फिलि. 4:5) मसीह यीशु, मसीही कलीसिया का प्रभु और सिर है। (इफि. 5:23) इसलिए हमारे लिए यह कितना ज़रूरी है कि हम मसीह के निर्देशनों को मानें और दूसरों के साथ व्यवहार करते वक्‍त कोमलता दिखाएँ।

3, 4. (क) कुछ उदाहरण देकर समझाइए कि दूसरों को अधीनता और लिहाज़ दिखाने के क्या फायदे हैं। (ख) अब हम क्या जाँच करेंगे?

3 अगर हम सही हद तक अधीनता दिखाएँ और दूसरों का लिहाज़ करें, तो इससे हमें फायदा होगा। इस बात को और भी अच्छी तरह समझने के लिए आइए कुछ उदाहरणों पर गौर करें। ब्रिटेन में जब कुछ आतंकवादियों की एक साज़िश पर से परदा उठा, तब से अधिकारियों ने हवाई जहाज़ में कई चीज़ें ले जाने पर बंदिश लगा दी। हवाई जहाज़ से सफर करनेवाले ज़्यादातर मुसाफिर बेझिझक इन नियमों को मानने के लिए तैयार हो गए, क्योंकि वे जानते थे कि ये नियम उन्हीं की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं। जब हम गाड़ी चलाते हैं, तो हमें दूसरे गाड़ी चलानेवालों को लिहाज़ दिखाने की ज़रूरत है। जैसे, चौराहे पर मुड़ते वक्‍त हमें अपनी गाड़ी की रफ्तार कम करनी चाहिए, ताकि किसी को खतरा न हो और गाड़ियों की आवा-जाही आराम से हो सके।

4 लेकिन हममें से ज़्यादातर के लिए अधीनता दिखाना और दूसरों का लिहाज़ करना आसान नहीं होता। तो फिर ऐसे में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? अधीनता दिखाने और दूसरों का लिहाज़ करने के सिलसिले में तीन पहलुओं की जाँच करने से हमें मदद मिल सकती है। ये पहलू हैं: हमारा इरादा, अधिकार की तरफ हमारा रवैया और हमें किस हद तक दूसरों को अधीनता और लिहाज़ दिखाना चाहिए।

अधीनता दिखाना और दूसरों का लिहाज़ करना—क्यों?

5. मूसा की कानून-व्यवस्था के तहत, क्या बात एक गुलाम को उम्र-भर अपने मालिक की सेवा करते रहने के लिए उभार सकती थी?

5 प्राचीन इस्राएल के ज़माने का एक उदाहरण, अधीनता दिखाने के सही इरादे पर हमारा ध्यान खींचता है। मूसा की कानून-व्यवस्था के तहत, जो इब्री लोग गुलाम बनते थे, उन्हें उनकी गुलामी के सातवें साल आज़ाद कर दिया जाना था। या फिर, अगर जुबली वर्ष पहले आता, तो गुलामों को उसी साल आज़ाद किया जाना था। लेकिन एक गुलाम, आगे भी गुलाम बने रहने का चुनाव कर सकता था। (निर्गमन 21:5, 6 पढ़िए।) मगर भला वह ऐसा क्यों करता? मालिक से लगाव होने की वजह से। अगर उसका मालिक अच्छा हो और उसकी अच्छी देखभाल करता हो, तो ज़ाहिर है कि गुलाम को उससे लगाव होगा ही। यही लगाव, गुलाम को उम्र-भर अपने मालिक की सेवा करते रहने के लिए उभार सकता था।

6. दूसरों को अधीनता और लिहाज़ दिखाने में प्यार का गुण कैसे शामिल है?

6 उसी तरह, यहोवा के लिए हमारा प्यार हमें उभारता है कि हम अपना जीवन उसे समर्पित करें और उम्र-भर अपने समर्पण के मुताबिक जीते रहें। (रोमि. 14:7, 8) प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा: “परमेश्‍वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं।” (1 यूह. 5:3) यह प्रेम अपनी भलाई नहीं चाहता। (1 कुरि. 13:4, 5) इसलिए जब दूसरों से व्यवहार करने की बात आती है, तो पड़ोसियों के लिए प्यार हमें उकसाता है कि हम उन्हें लिहाज़ दिखाएँ। हम अपने मतलब के बारे में सोचने के बजाय, दूसरों की भलाई की चिंता करते हैं।—फिलि. 2:2, 3.

7. प्रचार काम में हिस्सा लेते वक्‍त, हम दूसरों की भावनाओं का लिहाज़ कैसे कर सकते हैं?

7 प्रचार काम में हिस्सा लेते वक्‍त, हमें सावधान रहने की ज़रूरत है कि हम अपनी बातों और अपने कामों से किसी को ठोकर न खिलाएँ। (इफि. 4:29) सचमुच, अगर हममें अलग-अलग माहौल और संस्कृति के लोगों के लिए प्यार होगा, तो हम ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे, जो यहोवा की सेवा में उनकी तरक्की में रुकावट बन सकता है। इसके लिए ज़रूरी है कि हम दूसरों की भावनाओं का लिहाज़ करें। मिसाल के लिए, जिन मिशनरी बहनों को मेकअप करने की आदत है, वे इसे उन इलाकों में इस्तेमाल करने की ज़िद नहीं करेंगी, जहाँ ऐसा करने पर लोग उन्हें बदचलन समझ सकते हैं और ठोकर खा सकते हैं।—1 कुरि. 10:31-33.

8. परमेश्‍वर के लिए प्यार कैसे हमें खुद को ‘सबसे छोटा’ मानने में मदद दे सकता है?

8 अगर हमारे दिल में यहोवा के लिए प्यार होगा, तो हम घमंड करने से कोसों दूर रहेंगे। यीशु के चेलों में जब यह झड़प हुई कि उनमें सबसे महान कौन है, तब यीशु ने उनके बीच एक छोटे-से लड़के को खड़ा किया और समझाया: “जो कोई मेरे नाम से इस बालक को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो कोई मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है क्योंकि जो तुम में सब से छोटे से छोटा है, वही बड़ा है।” (लूका 9:48; मर. 9:36) खुद को ‘सबसे छोटा’ मानना, हममें से हरेक को शायद मुश्‍किल लगे। क्योंकि विरासत में मिली असिद्धता और घमंड करने की फितरत की वजह से हम पर बड़ा बनने का जुनून सवार हो सकता है। लेकिन अगर हम नम्र होंगे, तो हम खुद से ज़्यादा दूसरों को अहमियत देंगे और उनका आदर करेंगे।—रोमि. 12:10.

9. अधीनता दिखाने के लिए, हमें क्या करने की ज़रूरत है?

9 अधीनता दिखाने के लिए, हमें परमेश्‍वर के ठहराए अधिकार को मानने की ज़रूरत है। सभी सच्चे मसीही, मुखियापन के सिद्धांत की अहमियत समझते हैं। इस सिद्धांत के बारे में प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थ के मसीहियों को साफ-साफ जताया: “मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि हर एक पुरुष का सिर मसीह है: और स्त्री का सिर पुरुष है: और मसीह का सिर परमेश्‍वर है।”—1 कुरि. 11:3.

10. जब हम यहोवा के अधिकार के अधीन रहते हैं, तो हम क्या दिखाते हैं?

10 जब हम परमेश्‍वर के अधिकार के अधीन रहते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हमें अपने प्यारे पिता पर पूरा भरोसा है। उससे कोई भी बात छिपी नहीं है और हम जो अच्छाई करते हैं, उसके मुताबिक वह हमें प्रतिफल देता है। यह सच्चाई जानना हमारे लिए तब मददगार साबित हो सकता है, जब कोई हमारे साथ इज़्ज़त से पेश नहीं आता या हम पर अपना गुस्सा उतारता है। पौलुस ने यह सलाह दी: “जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो।” इस सलाह पर ज़ोर देने के लिए पौलुस ने आगे यह निर्देशन दिया: “हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु परमेश्‍वर [के] क्रोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु [यहोवा] कहता है मैं ही बदला दूंगा।”—रोमि. 12:18, 19, फुटनोट।

11. हम कैसे साबित कर सकते हैं कि हम मसीह के मुखियापन को अधीनता दिखाते हैं?

11 परमेश्‍वर ने मसीही कलीसिया में कुछ लोगों को अधिकार के पद पर ठहराया है और हमें उनके भी अधीन रहने की ज़रूरत है। प्रकाशितवाक्य के अध्याय 1 में बताया गया है कि मसीह यीशु अपने दाहिने हाथ में कलीसिया के “तारे” लिए हुए है। (प्रका. 1:16, 20) मोटे तौर पर ये “तारे” अलग-अलग कलीसियाओं के अध्यक्षों या प्राचीनों के निकायों को दर्शाते हैं। परमेश्‍वर के ठहराए ये सभी अध्यक्ष, मसीह की अगुवाई को मानते हैं और उसकी मिसाल पर चलते हुए कलीसिया के दूसरे भाई-बहनों के साथ प्यार से पेश आते हैं। इसके अलावा, यीशु ने कलीसिया के सभी सदस्यों को समय पर आध्यात्मिक भोजन मुहैया कराने के लिए “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को ठहराया है। इसलिए सभी मसीहियों को इस इंतज़ाम के अधीन रहना चाहिए। (मत्ती 24:45-47) आज इस जानकारी का अध्ययन करने और उस पर अमल करने के लिए हमारा तैयार रहना, साबित करता है कि हम सभी, मसीह के मुखियापन को अधीनता दिखाते हैं। और यही बात कलीसिया में शांति और एकता बढ़ाती है।—रोमि. 14:13, 19.

अधीनता दिखाना और दूसरों का लिहाज़ करना —किस हद तक?

12. अधीनता दिखाने की एक हद क्यों है?

12 लेकिन अधीनता दिखाने का यह मतलब हरगिज़ नहीं कि हम अपने विश्‍वास से मुकर जाएँ या परमेश्‍वर के सिद्धांतों से समझौता कर लें। याद है, पहली सदी में जब यहूदी धर्म-गुरुओं ने मसीहियों को यह हुक्म दिया कि वे यीशु के नाम से सिखाना बंद कर दें, तब उन मसीहियों ने क्या किया? पतरस और दूसरे प्रेरितों ने बेधड़क होकर कहा: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही [हमारा] कर्तव्य कर्म है।” (प्रेरि. 4:18-20; 5:28, 29) उसी तरह, आज सरकारी अधिकारी हमारे प्रचार काम को बंद करवाने की चाहे लाख कोशिश कर लें, पर हम रुकनेवाले नहीं। मगर हाँ, ऐसे हालात में हम सूझ-बूझ से काम ज़रूर लेते हैं और प्रचार करने के अपने तरीके में फेरबदल करते हैं। उदाहरण के लिए, जब घर-घर के प्रचार काम पर पाबंदी लगायी जाती है, तो हम घर-मालिकों से मिलने के कोई और तरीके ढूँढ़ निकालते हैं। इस तरह, हम परमेश्‍वर से मिले काम को पूरा करना जारी रखते हैं। इसके अलावा, जब ‘प्रधान अधिकारी’ हमें सभा चलाने से रोकते हैं, तो हम बड़े एहतियात के साथ छोटे-छोटे समूहों में मिलते हैं।—रोमि. 13:1; इब्रा. 10:24, 25.

13.यीशु ने अधिकारियों का कहा मानने के बारे में क्या बताया?

13 यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में इस बात पर ज़ोर दिया था कि अधिकारियों का कहा मानना ज़रूरी है। उसने बताया: “यदि कोई तुझ पर नालिश करके तेरा कुरता लेना चाहे, तो उसे दोहर भी ले लेने दे। और जो कोई तुझे कोस भर बेगार में ले जाए तो उसके साथ दो कोस चला जा।” (मत्ती 5:40, 41) * दूसरों को लिहाज़ दिखाने की भावना और उनकी मदद करने की ख्वाहिश, हमें दो कोस चलने, यानी हमसे जितना करने को कहा जाता है, उससे कहीं बढ़कर करने के लिए उकसाती है।—1 कुरि. 13:5; तीतु. 3:1, 2.

14. हमें क्यों धर्मत्यागियों की नहीं सुननी चाहिए?

14 हालाँकि हम दूसरों की सुनना और मानना चाहते हैं, मगर जहाँ तक धर्मत्यागियों की बात है, तो हमें उनकी एक नहीं सुननी चाहिए। ऐसा अटल इरादा करना हमारे लिए निहायत ज़रूरी है, क्योंकि तभी हम सच्चाई की शुद्धता और कलीसिया की एकता बरकरार रख पाएँगे। “झूठे भाइयों” के बारे में पौलुस ने लिखा: “उन के आधीन होना हम ने एक घड़ी भर न माना, इसलिये कि सुसमाचार की सच्चाई तुम में बनी रहे।” (गल. 2:4, 5) धर्मत्याग की शुरूआत विरले ही होती है और जब होती है, तो समर्पित मसीही सख्ती से वही करते हैं जो सही है।

अध्यक्षों को दूसरों का लिहाज़ करना चाहिए

15. जब मसीही अध्यक्ष बैठक रखते हैं, तो वे कैसे दूसरों की मान सकते हैं?

15 अध्यक्ष ठहराए जाने के लिए भाइयों में जो योग्यताएँ होनी चाहिए, उनमें से एक है, कोमलता का गुण दिखाना। यानी, अपनी बात पर अड़े रहने के बजाय, उन्हें दूसरों की राय मानने के लिए तैयार होना चाहिए। पौलुस ने लिखा: “सो चाहिए, कि अध्यक्ष . . . कोमल हो।” (1 तीमु. 3:2, 3) अध्यक्षों के लिए यह गुण दिखाना खासकर तब ज़रूरी होता है, जब वे कलीसिया के मामलों की चर्चा करने के लिए बैठक रखते हैं। हालाँकि यह ज़रूरी नहीं कि बैठक में हाज़िर हर प्राचीन को कुछ-न-कुछ कहना ही है, फिर भी कोई भी फैसला लेने से पहले, सभी को अपनी बात कहने का मौका दिया जाता है। चर्चा के दौरान जब कोई अध्यक्ष बाइबल सिद्धांतों के आधार पर अपनी राय पेश करता है, तो ऐसे में दूसरे अध्यक्षों का नज़रिया बदल सकता है। एक प्रौढ़ प्राचीन दूसरों के विचारों को काटने या अपनी राय पर अड़े रहने के बजाय, उनकी मानेगा। चर्चा की शुरूआत में सभी प्राचीनों की अलग-अलग राय हो सकती है, लेकिन जब वे प्रार्थना के साथ मामले की जाँच करते हैं, तो नम्र और दूसरों की राय माननेवाले प्राचीनों के बीच एकता बढ़ती है।—1 कुरि. 1:10. इफिसियों 4:1-3 पढ़िए।

16. एक मसीही अध्यक्ष में कैसा रवैया होना चाहिए?

16 एक मसीही प्राचीन की यही कोशिश रहनी चाहिए कि वह अपना हर काम परमेश्‍वर के इंतज़ाम के मुताबिक करे। यहाँ तक कि भेड़ सरीखे लोगों की चरवाही करते वक्‍त भी उसे यही रवैया अपनाना चाहिए। ऐसा करने से वह दूसरों के लिए लिहाज़ दिखा पाएगा और उनके साथ कोमलता से पेश आ सकेगा। पतरस ने लिखा: “परमेश्‍वर के उस झुंड की, जो तुम्हारे बीच में [है] रखवाली करो; और यह दबाव से नहीं, परन्तु परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार आनन्द से, और नीच-कमाई के लिये नहीं, पर मन लगा कर।”—1 पत. 5:2.

17. कलीसिया के सभी लोग कैसे एक-दूसरे को लिहाज़ और आदर दिखा सकते हैं?

17 कलीसिया के बुज़ुर्ग सदस्य, जवान भाई-बहनों की मदद की बहुत कदर करते हैं और उनके साथ गरिमा से पेश आते हैं। वहीं दूसरी तरफ, जवान लोग बुज़ुर्गों का आदर करते हैं, क्योंकि उन्हें यहोवा की सेवा में कई सालों का तजुरबा है। (1 तीमु. 5:1, 2) मसीही प्राचीन ऐसे काबिल भाइयों की तलाश करते हैं, जिन्हें वे कुछ खास ज़िम्मेदारियाँ सौंप सकें। साथ ही, उन्हें ऐसी तालीम दे सकें, जिससे वे परमेश्‍वर की भेड़ों की देखभाल करने में प्राचीनों का हाथ बँटा सकें। (2 तीमु. 2:1, 2) दरअसल, सभी मसीहियों को पौलुस की इस बात को गाँठ बाँध लेना चाहिए, जो उसने ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखी थी: “अपने अगुवों की मानो; और उन के आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते [हैं], जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं।”—इब्रा. 13:17.

परिवार में अधीनता और लिहाज़ दिखाना

18. परिवार में अधीनता और लिहाज़ दिखाना क्यों सही है?

18 परिवार में भी अधीनता और लिहाज़ दिखाना ज़रूरी है। (कुलुस्सियों 3:18-21 पढ़िए।) बाइबल बताती है कि मसीही परिवार के हरेक सदस्य की क्या भूमिका है। पति, पत्नी का मुखिया है और अगर वह एक पिता भी है, तो बच्चों को सिखाने की ज़िम्मेदारी खासकर उसी की बनती है। पत्नी को अपने पति के अधीन रहना चाहिए। और बच्चों को अपने पिता की आज्ञा माननी चाहिए, क्योंकि प्रभु को यही भाता है। जब परिवार के सदस्य सही तरीके से अधीनता और लिहाज़ दिखाएँगे, तभी परिवार में एकता और शांति बढ़ेगी। इस बात को और भी अच्छी तरह समझने के लिए, आइए बाइबल में दी कुछ मिसालों पर गौर करें।

19, 20. (क) एली ने जिस तरह अपने बेटों को लिहाज़ दिखाया और यहोवा ने जिस तरह अपने स्वर्गीय बेटों को लिहाज़ दिखाया, उसमें क्या फर्क था? (ख) इन मिसालों से माता-पिता क्या सीख सकते हैं?

19 एली, प्राचीन इस्राएल में महायाजक के तौर पर सेवा किया करता था। उसके दो बेटे थे, होप्नी और पीनहास। वे दोनों ‘दुष्ट थे और यहोवा पर श्रद्धा नहीं रखते थे।’ (बुल्के बाइबिल) एली को अपने बेटों की काली करतूतों की कई खबरें मिलीं। उसे यह भी बताया गया कि उसके बेटे निवासस्थान के द्वार पर सेवा करनेवाली स्त्रियों के साथ कुकर्म करते हैं। इस पर एली ने क्या किया? उसने अपने बेटों को सुधारने और अनुशासन देने के बजाय, उनसे बस इतना कहा कि अगर वे यहोवा के खिलाफ पाप करते रहे, तो उनके लिए बिनती करनेवाला कोई न होगा। नतीजा, वे अपने बुरे कामों में लगे रहे। आखिरकार, यहोवा ने उनका न्याय किया और पाया कि वे सज़ा-ए-मौत के लायक हैं। उनकी मौत की खबर सुनते ही एली ने भी दम तोड़ दिया। क्या ही बुरा अंजाम! इससे साफ ज़ाहिर होता है कि एली ने अपने बेटों को बुरे कामों में लगे रहने की छूट देकर कितनी बड़ी गलती की!—1 शमू. 2:12-17, 22-25, 34, 35; 4:17, 18.

20 मगर इसके बिलकुल उलट, परमेश्‍वर ने अपने स्वर्गीय बेटों को सही तरीके से लिहाज़ दिखाया। कैसे? मीकायाह नबी को एक बहुत ही हैरतअँगेज़ दर्शन मिला, जिसमें उसने परमेश्‍वर को अपने स्वर्गदूतों के साथ एक बैठक में देखा। यहोवा ने स्वर्गदूतों से पूछा कि कौन इस्राएल के दुष्ट राजा, अहाब की आँखों में धूल झोंककर उसे बरबाद कर सकता है। इस पर स्वर्गदूतों ने अपने-अपने सुझाव दिए, जिन्हें यहोवा ने ध्यान से सुना। फिर एक स्वर्गदूत ने कहा कि वह राजा अहाब को बहकाएगा। यहोवा ने उससे पूछा, कैसे? जब उस स्वर्गदूत ने अपनी तरकीब बतायी, तो यहोवा को उसकी तरकीब अच्छी लगी और उसने उसे अपनी तरकीब के मुताबिक कार्रवाई करने की इजाज़त दी। (1 राजा 22:19-23) क्या धरती पर रहनेवाले परिवार इस वाकये से अधीनता और लिहाज़ दिखाने के बारे में सबक नहीं सीख सकते? बेशक सीख सकते हैं! एक मसीही पति और पिता के लिए अच्छा होगा, अगर वह अपने बीवी-बच्चों के सुझावों और विचारों पर गौर करे। दूसरी तरफ, बीवी-बच्चों को ध्यान रखने की ज़रूरत है कि अपनी राय देने या अपनी पसंद बताने के बाद, परिवार का मुखिया जो आखिरी फैसला करता है, वह उन्हें मानना चाहिए। क्योंकि बाइबल के मुताबिक, फैसला करने का अधिकार पति और पिता को है।

21. अगले लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?

21 अधीनता दिखाने और दूसरों का लिहाज़ करने के बारे में यहोवा ने हमें जो प्यार और बुद्धि-भरी चितौनियाँ दी हैं, उनके लिए हम कितने एहसानमंद हैं! (भज. 119:99) हमारे अगले लेख में चर्चा की जाएगी कि जब पति-पत्नी सही तरीके से एक-दूसरे को कोमलता दिखाते हैं, तो कैसे उनकी शादीशुदा ज़िंदगी खुशियों से सराबोर हो जाती है।

[फुटनोट]

^ प्रेरित पौलुस ने मूल भाषा में जिस शब्द का इस्तेमाल किया, उसे एक ही शब्द में अनुवाद करना बहुत मुश्‍किल है। इस शब्द का हिंदी बाइबल में अकसर “कोमलता” अनुवाद किया गया है। पौलुस ने जिस शब्द का इस्तेमाल किया, उसके दो मतलब हैं। एक है, अपने हक पर अड़े रहने के बजाय, दूसरों का लिहाज़ करना। और दूसरा है, किसी अधिकारी को बेझिझक अधीनता दिखाना।

^ 15 फरवरी, 2005 की प्रहरीदुर्ग के पेज 23-6 पर दिया गया लेख, ‘जो कोई तुझे बेगार में ले जाए’ देखिए।

आप क्या जवाब देंगे?

• अधीनता दिखाने और दूसरों का लिहाज़ करने के क्या अच्छे नतीजे निकल सकते हैं?

• अध्यक्ष दूसरों को लिहाज़ कैसे दिखा सकते हैं?

• परिवार में अधीनता और लिहाज़ दिखाना क्यों ज़रूरी है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 4 पर तसवीर]

प्राचीन, मसीह की मिसाल पर चलते हुए कलीसिया के दूसरे भाई-बहनों के साथ प्यार से पेश आते हैं

[पेज 6 पर तसवीर]

कलीसिया के प्राचीन जब अपनी बैठक में प्रार्थना के साथ मामलों की जाँच करते हैं और एक-दूसरे की राय मानते हैं, तो इससे उनमें एकता बढ़ती है