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जवानो, यहोवा की सेवा करने का फैसला कीजिए

जवानो, यहोवा की सेवा करने का फैसला कीजिए

जवानो, यहोवा की सेवा करने का फैसला कीजिए

“तुमने जिन बातों को सीखा और माना है, उन्हें करते जाओ।”—2 तीमु. 3:14, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

1. यहोवा, जवान साक्षियों की सेवा को किस नज़र से देखता है?

 यहोवा, जवान लोगों की पवित्र सेवा की कदर करता है। इसलिए उसने भजनहार को उनके बारे में यह भविष्यवाणी लिखने के लिए प्रेरित किया: “तेरी प्रजा के लोग तेरे पराक्रम के दिन स्वेच्छाबलि बनते हैं; तेरे जवान लोग पवित्रता से शोभायमान, और भोर के गर्भ से जन्मी हुई ओस के समान तेरे पास हैं।” (भज. 110:3) जी हाँ, यहोवा उन जवानों को बहुत अनमोल समझता है, जो अपनी इच्छा से उसकी सेवा करने का चुनाव करते हैं।

2. अपने भविष्य का चुनाव करते वक्‍त जवानों पर किन लोगों का दबाव आता है?

2 मसीही कलीसिया के जवानो, क्या आपने अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित की है? यह कदम उठाना कई जवानों को मुश्‍किल लग सकता है। क्यों? क्योंकि बड़े-बड़े बिज़नेसमैन, टीचर-प्रोफेसर और कभी-कभी तो उनके घरवाले और दोस्त भी उन पर ऐसे करियर चुनने का दबाव डालते हैं, जिनसे वे खूब पैसा कमा सकें। और जब जवान आध्यात्मिक लक्ष्य रखते हैं, तो दुनियावाले उनकी खिल्ली उड़ाते हैं। लेकिन इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता कि यहोवा की सेवा करना ही, जीने का सबसे बेहतरीन तरीका है। (भज. 27:4) इससे जुड़े तीन सवालों पर ध्यान दीजिए: आपको परमेश्‍वर की सेवा क्यों करनी चाहिए? चाहे दूसरे कुछ भी कहें या करें, आप यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित करके उसे कैसे कामयाब बना सकते हैं? और आपके सामने पवित्र सेवा के कौन-से बढ़िया मौके आ सकते हैं?

ज़िंदगी का सबसे बढ़िया फैसला है, यहोवा की सेवा करना

3. यहोवा की सृष्टि का हम पर क्या असर होना चाहिए?

3 आपको जीवते और सच्चे परमेश्‍वर की सेवा क्यों करनी चाहिए? इसकी अहम वजह प्रकाशितवाक्य 4:11 में दी गयी है: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्‍वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।” जी हाँ, यहोवा एक महान सिरजनहार है! हमारी पृथ्वी की ही बात लें, तो यह कितनी खूबसूरत है! हरे-भरे पेड़, रंग-बिरंगे फूल, तरह-तरह के जीव-जंतु, नीले समंदर, खूबसूरत पहाड़ और झरने, ये सब यहोवा के हाथों की कारीगरी हैं। भजन 104:24 (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) कहता है: “धरती [परमेश्‍वर की] वस्तुओं से भरी पड़ी है।” हमें यहोवा का कितना शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि उसने हमें अद्‌भुत तरीके से बनाया है, ताकि हम उसकी रचनाओं का लुत्फ उठा सकें। तो क्या यह बात हमें उसकी सेवा करने के लिए नहीं उभारती?

4, 5. परमेश्‍वर के किन हैरतअँगेज़ कामों को देखकर यहोशू उसके करीब आया?

4 यहोवा की सेवा करने की दूसरी वजह हमें इस्राएल के अगुवे, यहोशू के शब्दों से मिलती है। अपनी ज़िंदगी के आखिरी दिनों में उसने परमेश्‍वर के लोगों से कहा: “तुम सब अपने अपने हृदय और मन में जानते हो, कि जितनी भलाई की बातें हमारे परमेश्‍वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही; वे सब की सब तुम पर घट गई हैं।” यहोशू यह बात इतने यकीन के साथ क्यों कह सका?—यहो. 23:14.

5 यहोशू का बचपन मिस्र की गुलामी में बीता था। इसलिए शायद उसे मालूम था कि परमेश्‍वर ने इस्राएलियों को एक देश देने का वादा किया है। (उत्प. 12:7; 50:24, 25; निर्ग. 3:8) यहोशू ने खुद अपनी आँखों से देखा था कि यहोवा ने अपना यह वादा कैसे पूरा किया। यहोवा ने पहले मिस्र पर दस विपत्तियाँ लाकर मगरूर फिरौन को मजबूर किया कि वह इस्राएलियों को जाने दे। फिर उसने लाल समुद्र में इस्राएलियों को बचाया, जबकि उसी समुद्र में फिरौन और उसकी सेना को डूबो दिया। और जब इस्राएली सीनै नाम वीराने के “बड़े और भयानक जंगल” में सफर कर रहे थे, तब भी यहोवा ने उनकी सारी ज़रूरतें पूरी कीं। उनमें से एक भी इस्राएली भूख-प्यास से नहीं मरा। (व्यव. 8:3-5, 14-16; यहो. 24:5-7) और जब ताकतवर कनानियों से लड़ने और वादा किए गए देश पर कब्ज़ा करने का वक्‍त आया, तो यहोशू ने देखा कि यहोवा ने किस तरह उनकी मदद की।—यहो. 10:14, 42.

6. क्या बात आपमें परमेश्‍वर की सेवा करने की इच्छा पैदा कर सकती है?

6 यहोशू जानता था कि यहोवा अपने वादे का पक्का है। इसलिए उसने ऐलान किया: ‘मैं तो अपने घराने समेत यहोवा ही की सेवा करूंगा।’ (यहो. 24:15) आपके बारे में क्या? जब आप सच्चे परमेश्‍वर के उन वादों के बारे में सोचते हैं, जिन्हें वह पूरा कर चुका है और जिन्हें वह पूरा करनेवाला है, तब क्या आपमें भी यहोवा की सेवा करने की इच्छा पैदा होती है?

7. बपतिस्मा लेना एक बेहद ज़रूरी कदम क्यों है?

7 यहोवा की सृष्टि और उसके पक्के वादों पर मनन करने से हम यहोवा को अपना समर्पण करने और इसे ज़ाहिर करने के लिए बपतिस्मा लेने को उभारे जाएँगे। जो लोग यहोवा की सेवा करना चाहते हैं, उनके लिए बपतिस्मा लेना एक बेहद ज़रूरी कदम है। इसी बात को हमारे आदर्श, यीशु ने पुख्ता किया था। मसीहा के तौर पर अपनी सेवा शुरू करने से पहले वह यूहन्‍ना बपतिस्मे देनेवाले के पास गया और बपतिस्मा लिया। यीशु ने यह कदम क्यों उठाया? उसने बाद में कहा: “मैं अपनी इच्छा नहीं, बरन अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिये स्वर्ग से उतरा हूं।” (यूह. 6:38) इससे पता चलता है कि यीशु का बपतिस्मा लेना इस बात की निशानी थी कि वह परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने के लिए खुद को पेश कर रहा है।—मत्ती 3:13-17.

8. तीमुथियुस ने परमेश्‍वर की सेवा करने का चुनाव क्यों किया, और आपको क्या करने की ज़रूरत है?

8 जवान तीमुथियुस की भी मिसाल लीजिए, जिसे यहोवा ने आगे चलकर कई ज़िम्मेदारियाँ और खास काम दिए। तीमुथियुस ने सच्चे परमेश्‍वर की सेवा करने का चुनाव क्यों किया? बाइबल बताती है कि उसने पवित्र शास्त्र से बातें सीखी और मानी थीं।’ (2 तीमु. 3:14, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) अगर आपने परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन किया है और उसमें दी शिक्षाओं को सच माना है, तो आपको भी फैसला लेने की ज़रूरत है, ठीक जैसे तीमुथियुस ने किया था। इस बारे में क्यों न आप अपने मम्मी-पापा से बात करें? वे कलीसिया के प्राचीनों के साथ मिलकर आपको समझा सकते हैं कि बपतिस्मा लेने के लिए बाइबल की कौन-सी माँगें पूरी करना ज़रूरी है।—प्रेरितों 8:12 पढ़िए।

9. आपके बपतिस्मा लेने से शायद अलग-अलग लोग क्या रवैया दिखाएँ?

9 बपतिस्मा, सच्चे परमेश्‍वर की सेवा करने की एक बढ़िया शुरूआत है। यह कदम उठाकर आप एक लंबी दौड़ में हिस्सा लेंगे, जिसका इनाम है परमेश्‍वर की सेवा करने से मिलनेवाली खुशी और हमेशा की ज़िंदगी। (इब्रा. 12:2, 3) आपके बपतिस्मे से आपके घरवालों को, जो पहले ही इस दौड़ में शामिल हैं और कलीसिया के दोस्तों को भी खुशी मिलेगी। इससे भी बढ़कर, आप यहोवा के दिल को खुश कर रहे होंगे। (नीतिवचन 23:15 पढ़िए।) मगर कुछ ऐसे लोग भी होंगे, जो समझ न पाएँ कि आपने यहोवा की सेवा करने का फैसला क्यों किया। वे शायद आपके फैसले पर सवाल उठाएँ। यहाँ तक कि आपका विरोध भी करें। मगर इन मुश्‍किलों का सामना करने में आप कामयाब हो सकते हैं।

जब दूसरे आपसे सवाल करें या आपका विरोध करें

10, 11. (क) जब आप यहोवा की सेवा करने का फैसला करते हैं, तो लोग क्या सवाल पूछ सकते हैं? (ख) यीशु ने सच्ची उपासना से जुड़े सवालों का जिस तरह जवाब दिया, उससे आप क्या सीख सकते हैं?

10 जब आप यहोवा की सेवा करने का फैसला करते हैं, तो हो सकता है आपके स्कूल के साथी, पड़ोसी और रिश्‍तेदार उलझन में पड़ जाएँ और आपसे इसकी वजह पूछें। या फिर, वे आपके विश्‍वास के बारे में पूछताछ करें। तब आपको कैसे जवाब देना चाहिए? आपको सोच-समझकर और अपनी भावनाओं को काबू में रखकर जवाब देना चाहिए, ताकि आप उन्हें अपने फैसले की वजह साफ समझा सकें। जवानों के लिए अपने विश्‍वास के बारे में जवाब देने की सबसे बढ़िया मिसाल यीशु मसीह है।

11 जब यीशु से यहूदी धर्म-गुरुओं ने पुनरुत्थान के बारे में जवाब-तलब किया, तो उसने शास्त्र की उस आयत की तरफ उनका ध्यान खींचा जिसके बारे में उन्होंने पहले कभी नहीं सोचा था। (निर्ग. 3:6; मत्ती 22:23, 31-33) एक दूसरे मौके पर, जब एक शास्त्री ने यीशु से पूछा कि सबसे बड़ी आज्ञा क्या है, तो यीशु ने बाइबल की आयतों का हवाला देकर सही जवाब दिया। और उस शास्त्री ने भी माना कि यीशु ने एकदम सही बात कही थी। (लैव्य. 19:18; व्यव. 6:5; मर. 12:28-34) एक और मौके पर, यीशु ने जिस तरह शास्त्र का इस्तेमाल किया और लोगों से बात की, उससे ‘उनमें फूट पड़ गयी।’ और नतीजा यह हुआ कि उसके विरोधी उसका बाल भी बाँका नहीं कर पाए। (यूह. 7:32-46) उसी तरह, जब कोई आपसे आपके विश्‍वास के बारे में सवाल करता है, तो उसे “नम्रता व श्रद्धा के साथ” बाइबल से जवाब दीजिए। (1 पत. 3:15, NHT) अगर आपको किसी सवाल का जवाब नहीं मालूम, तो साफ बताइए और कहिए कि आप खोजबीन करके जवाब ढूँढ़ेंगे। इसके लिए आप वॉच टावर पब्लिकेशन्स इंडैक्स या सीडी-रोम पर वॉचटावर लाइब्रेरी का इस्तेमाल कर सकते हैं, अगर यह एक ऐसी भाषा में उपलब्ध है जिसे आप समझते हैं। अच्छी तैयारी करने से आप “उचित रीति से उत्तर” दे पाएँगे।—कुलु. 4:6.

12. सताए जाने पर आपको क्यों हिम्मत नहीं हारनी चाहिए?

12 लोग आपके फैसले और विश्‍वास के बारे में सिर्फ सवाल ही नहीं पूछेंगे, बल्कि हो सकता है कि वे आपका विरोध भी करें। आखिर, यह दुनिया परमेश्‍वर के दुश्‍मन, शैतान की मुट्ठी में जो है। (1 यूहन्‍ना 5:19 पढ़िए।) इसलिए यह उम्मीद करना नासमझी होगी कि हर कोई आपके फैसले से खुश होगा या आपको शाबाशी देगा। कुछ लोग तो आपको ‘बुरा भला कह’ सकते हैं और शायद वे ऐसा बार-बार करें। (1 पत. 4:4) मगर इस तरह के विरोध का सामना करनेवाले आप अकेले नहीं। याद कीजिए कि यीशु को भी सताया गया था। प्रेरित पतरस को भी ज़ुल्म सहने पड़े थे। उसने लिखा: “हे प्रियो, जो दुख रूपी अग्नि तुम्हारे परखने के लिये तुम में भड़की है, इस से यह समझकर अचम्भा न करो कि कोई अनोखी बात तुम पर बीत रही है। पर जैसे जैसे मसीह के दुखों में सहभागी होते हो, आनन्द करो, जिस से उसकी महिमा के प्रगट होते समय भी तुम आनन्दित और मगन हो।”—1 पत. 4:12, 13.

13. मसीहियों को ज़ुल्म सहने के बावजूद क्यों खुश होना चाहिए?

13 एक मसीही होने की वजह से जब आपको सताया जाता है, तो आपको खुश होना चाहिए। क्यों? क्योंकि अगर आपके जीने का तरीका सभी लोगों को भाएगा, तो इसका मतलब होगा कि आप परमेश्‍वर के नहीं बल्कि शैतान के स्तरों के मुताबिक जी रहे हैं। यीशु ने खबरदार किया था: “हाय, तुम पर; जब सब मनुष्य तुम्हें भला कहें, क्योंकि उन के बाप-दादे झूठे भविष्यद्वक्‍ताओं के साथ भी ऐसा ही किया करते थे।” (लूका 6:26) दूसरी तरफ, ज़ुल्म सहना दिखाता है कि शैतान और उसकी दुनिया आपसे खफा है, क्योंकि आप यहोवा की सेवा कर रहे हैं। (मत्ती 5:11, 12 पढ़िए।) और ‘मसीह के नाम के लिये निन्दा’ सहना, बड़े आनंद की बात है।—1 पत. 4:14.

14. विरोध और ज़ुल्मों के बावजूद, यहोवा के वफादार रहने के क्या बढ़िया नतीजे मिलते हैं?

14 विरोध और ज़ुल्मों के बावजूद यहोवा के वफादार बने रहने से कई बढ़िया नतीजे मिलते हैं। आइए कम-से-कम चार पर नज़र डालें। एक, आप परमेश्‍वर और उसके बेटे के बारे में अच्छी गवाही दे पाते हैं। दूसरा, आपकी वफादारी और धीरज देखकर मसीही भाई-बहनों का हौसला बढ़ता है। तीसरा, जो लोग यहोवा को नहीं जानते, वे शायद उसके बारे में जानने के लिए उकसाए जाएँ। (फिलिप्पियों 1:12-14 पढ़िए।) चौथा, आज़माइशों के दौरान जब आप महसूस करते हैं कि यहोवा आपको धीरज धरने की ताकत दे रहा है, तो उसके लिए आपका प्यार और भी गहरा होता है।

आपके लिए ‘सेवा का एक बड़ा द्वार’ खुला है

15. प्रेरित पौलुस के लिए कौन-सा “बड़ा द्वार” खुला था?

15 इफिसुस शहर में अपनी सेवा के बारे में, प्रेरित पौलुस ने लिखा: “मेरे लिए वहां प्रभावशाली सेवा करने का एक बड़ा द्वार खुला है।” (1 कुरि. 16:8, 9, NHT) इस द्वार का मतलब है, इफिसुस में सुसमाचार सुनाने और चेला बनाने के काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने का मौका। पौलुस ने इस मौके का फायदा उठाकर बहुतों को यहोवा के बारे में सीखने और उसकी उपासना करने में मदद दी।

16. सन्‌ 1919 में बचे हुए अभिषिक्‍त जनों ने किस मायने में ‘खुले हुए द्वार’ में प्रवेश किया?

16 सन्‌ 1919 में महिमा से भरपूर यीशु मसीह ने बचे हुए अभिषिक्‍त जनों के आगे ‘एक द्वार खोला।’ (प्रका. 3:8) वे इस मौके का फायदा उठाकर और भी गर्मजोशी के साथ सुसमाचार सुनाने और बाइबल की सच्चाई सिखाने लगे। उनकी मेहनत का क्या नतीजा निकला? आज दुनिया के कोने-कोने तक सुसमाचार सुनाया जा रहा है। और करीब 70 लाख लोगों को परमेश्‍वर की नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा मिली है।

17. आप ‘सेवा के बड़े द्वार’ में कैसे प्रवेश कर सकते हैं?

17 आज भी यहोवा के सभी सेवकों के आगे ‘सेवा का एक बड़ा द्वार’ खुला है। जो सेवक इस मौके का फायदा उठाकर प्रचार काम में ज़्यादा हिस्सा लेते हैं, उन्हें खुशी और संतोष मिलता है। वाकई दूसरों को ‘सुसमाचार पर विश्‍वास करने’ में मदद देना एक अनोखा सुअवसर है! यहोवा के जवान सेवको, आप इस सुअवसर को कितना अनमोल समझते हैं? (मर. 1:14, 15) क्या आपने पायनियर सेवा या सहयोगी पायनियर सेवा करने की सोची है? इसके अलावा, आपमें से कइयों के आगे राज्य घर निर्माण काम, बेथेल सेवा और मिशनरी सेवा के भी मौके हैं। शैतान की दुष्ट दुनिया का अब थोड़ा ही समय रह गया है। इसलिए परमेश्‍वर की सेवा में इन मौकों का फायदा उठाना, पहले से ज़्यादा ज़रूरी हो गया है। अब सवाल यह है कि समय रहते क्या आप ‘सेवा के बड़े द्वार’ में प्रवेश करेंगे?

“परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है!”

18, 19. (क) किस बात ने दाऊद में यहोवा की सेवा करने की ज़बरदस्त इच्छा पैदा की? (ख) क्या बात दिखाती है कि दाऊद को यहोवा की सेवा करने के अपने फैसले पर अफसोस नहीं हुआ?

18 भजनहार दाऊद ने दूसरों को यह न्यौता दिया कि वे ‘परखकर देखें कि यहोवा कैसा भला है।’ (भज. 34:8) दाऊद जब एक छोटा लड़का था और भेड़ों को चराता था, तब यहोवा ने उसे जंगली जानवरों से बचाया था। उसने दाऊद को गोलियत से लड़ने में मदद दी और उसे कई मुसीबतों से बचाया। (1 शमू. 17:32-51; भज. 18, उपरिलेख) इस तरह, परमेश्‍वर ने दाऊद पर अपार कृपा दिखायी। इसलिए दाऊद यह लिखे बिना नहीं रह सका: “हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, तू ने बहुत से काम किए हैं! जो आश्‍चर्यकर्म और कल्पनाएं तू हमारे लिये करता है वह बहुत सी हैं; तेरे तुल्य कोई नहीं!”—भज. 40:5.

19 यहोवा के लिए दाऊद का प्यार बढ़ता ही गया और उसने अपने सारे मन और सारी बुद्धि से उसकी स्तुति करनी चाही। (भजन 40:8-10 पढ़िए।) उसने अपनी पूरी ज़िंदगी सच्चे परमेश्‍वर की सेवा में लगा दी। मगर उसे एक पल के लिए भी अपने इस फैसले पर अफसोस नहीं हुआ। परमेश्‍वर की भक्‍ति करना, उसके लिए किसी खज़ाने से कम नहीं था। ऐसा करने से उसे जो खुशी मिली, वह शायद ही किसी और बात से मिलती। अपने बुढ़ापे में दाऊद ने कहा: “हे प्रभु यहोवा, मैं तेरी ही बाट जोहता आया हूं, बचपन से मेरा आधार तू है। इसलिये हे परमेश्‍वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़।” (भज. 71:5, 18) हालाँकि उम्र के साथ-साथ दाऊद का दमखम जाता रहा, मगर यहोवा पर उसका विश्‍वास और दोस्ती का बंधन मज़बूत होता गया।

20. आपके लिए परमेश्‍वर की सेवा करना, जीने का सबसे बेहतरीन तरीका क्यों है?

20 यहोशू, दाऊद और तीमुथियुस की ज़िंदगी यह पुख्ता करती है कि यहोवा की सेवा करना ही जीने का सबसे बेहतरीन तरीका है। ‘अपने सारे मन और सारे प्राण से [यहोवा की] सेवा करने’ से हमें हमेशा-हमेशा के फायदे मिलते हैं। (यहो. 22:5) जबकि दुनिया में दौलत और शोहरत कमाने के फायदे सिर्फ पल-भर के होते हैं। इसलिए परमेश्‍वर की सेवा करने की बराबरी दुनिया के किसी भी करियर से नहीं की जा सकती। अगर आपने अभी तक प्रार्थना में यहोवा को अपना समर्पण नहीं किया है, तो खुद से पूछिए: ‘क्या बात मुझे यहोवा का एक साक्षी बनने से रोक रही है?’ और अगर आपने बपतिस्मा ले लिया है, तो क्या आप अपनी खुशी बढ़ाना चाहते हैं? अगर हाँ, तो अपनी सेवा बढ़ाइए और एक मसीही के नाते तरक्की करते जाइए। अगला लेख दिखाएगा कि आप प्रेरित पौलुस की मिसाल पर चलते हुए कैसे आध्यात्मिक रूप से बढ़ते जा सकते हैं।

आप क्या जवाब देंगे?

• परमेश्‍वर की सेवा करने की दो वजहें बताइए।

• तीमुथियुस ने परमेश्‍वर की सेवा करने का चुनाव क्यों किया?

• विरोध और ज़ुल्म सहने के बावजूद, हमें क्यों वफादार रहना चाहिए?

• आपके सामने सेवा के कौन-से मौके आ सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर तसवीर]

यहोवा की सेवा करना ही जीने का सबसे बेहतरीन तरीका है

[पेज 19 पर तसवीर]

क्या आप अपने विश्‍वास के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब दे सकते हैं?