इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

पौलुस की मिसाल पर चलकर सच्चाई में तरक्की कीजिए

पौलुस की मिसाल पर चलकर सच्चाई में तरक्की कीजिए

पौलुस की मिसाल पर चलकर सच्चाई में तरक्की कीजिए

“मैं अच्छी कुश्‍ती लड़ चुका हूं मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्‍वास की रखवाली की है।”—2 तीमु. 4:7.

1, 2. शाऊल ने अपनी ज़िंदगी में क्या बदलाव किए और उसे कौन-सा ज़रूरी काम दिया गया था?

 वह एक मेधावी और जोशीला इंसान था। मगर इन खूबियों के बावजूद वह “अपने शरीर की लालसाओं” के मुताबिक काम करता था। (इफि. 2:3) वह अपने बारे में बाद में बताता है कि वह ‘निन्दा करनेवाला, सतानेवाला और अन्धेर करनेवाला था।’ (1 तीमु. 1:13) वह इंसान कोई और नहीं बल्कि तरसुस का रहनेवाला शाऊल था।

2 समय के बीतते, शाऊल ने अपनी ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव किए। उसने अपने पुराने तौर-तरीके छोड़ दिए और वह ‘बहुतों का लाभ ढ़ूंढ़ने’ के लिए मेहनत करने लगा। (1 कुरि. 10:33) वह कोमल स्वभाव का बन गया और उन मसीहियों से प्यार करने लगा जिनसे वह पहले नफरत करता था। (1 थिस्सलुनीकियों 2:7, 8 पढ़िए।) और उसे जो ज़रूरी काम दिया गया, उसके बारे में उसने लिखा: “[मैं] सुसमाचार का सेवक बना। . . . मुझ पर जो सब पवित्र लोगों में से छोटे से भी छोटा हूं, यह अनुग्रह हुआ, कि मैं अन्यजातियों को मसीह के अगम्य धन का सुसमाचार सुनाऊं।”—इफि. 3:7, 8.

3. पौलुस की पत्रियों और उसकी सेवा के रिकॉर्ड का अध्ययन करने से हमें क्या करने की प्रेरणा मिलेगी?

3 शाऊल ने, जो बाद में पौलुस के नाम से जाना गया, सच्चाई में कमाल की तरक्की की। (प्रेरि. 13:9) हम भी सच्चाई में अच्छी उन्‍नति कर सकते हैं। इसका एक बढ़िया तरीका है, पौलुस की पत्रियों और उसकी सेवा के बारे में दर्ज़ रिकॉर्ड का अध्ययन करना और फिर उसके जैसा विश्‍वास दिखाना। (1 कुरिन्थियों 11:1; इब्रानियों 13:7 पढ़िए।) ऐसा करने पर हमें बिना नागा निजी अध्ययन करने, लोगों के लिए सच्चा प्यार दिखाने और खुद के बारे में सही नज़रिया रखने की प्रेरणा मिलेगी। वह कैसे? आइए देखें।

नियमित अध्ययन करने की पौलुस की आदत

4, 5. निजी अध्ययन से पौलुस को क्या फायदा हुआ?

4 पौलुस पहले एक फरीसी था। उसे “गमलीएल के पांवों के पास बैठकर पढ़ाया गया, और बापदादों की व्यवस्था की ठीक रीति पर सिखाया गया” था। इसलिए उसे शास्त्र का अच्छा ज्ञान था। (प्रेरि. 22:1-3; फिलि. 3:4-6) अपने बपतिस्मे के फौरन बाद वह “अरब को चला गया।” (गल. 1:17) यहाँ अरब का मतलब हो सकता है, सूरिया (अराम) का रेगिस्तान या अरब प्रायद्वीप की कोई सुनसान जगह। पौलुस वहाँ इसलिए गया क्योंकि वह शास्त्र के उन वचनों पर मनन करना चाहता था, जो साबित करते हैं कि यीशु ही मसीहा है। इसके अलावा, वह उस काम के लिए भी खुद को तैयार करना चाहता था जो उसके आगे धरा था। (प्रेरितों 9:15, 16, 20, 22 पढ़िए।) यह दिखाता है कि पौलुस ने आध्यात्मिक बातों पर मनन करने के लिए वक्‍त निकाला।

5 पौलुस ने निजी अध्ययन से जो ज्ञान और समझ हासिल की, उससे वह लोगों को सच्चाई के बारे में कुशलता से सिखा सका। इसकी एक मिसाल लीजिए। जब पौलुस पिसिदिया के अन्ताकिया के एक आराधनालय में गया, तब वहाँ उसने एक भाषण दिया। उस दौरान उसने इब्रानी शास्त्र से सीधे-सीधे पाँच हवाले दिए, जिससे साबित हुआ कि यीशु ही मसीहा है। इसके अलावा, उसने पवित्र शास्त्र का कई बार ज़िक्र भी किया। बाइबल से दी उसकी दलीलें इतनी ज़बरदस्त थीं कि “यहूदियों और यहूदी मत में आए हुए भक्‍तों में से बहुतेरे” और भी जानने के लिए “पौलुस और बरनबास के पीछे हो लिए।” (प्रेरि. 13:14-44) इसके कई साल बाद, यहूदियों का एक दल पौलुस के रहने की जगह पर उससे मिलने आया। उस मौके पर पौलुस “परमेश्‍वर के राज्य की गवाही देता हुआ, और मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्‍ताओं की पुस्तकों से यीशु के विषय में समझा[ता] रहा।”—प्रेरि. 28:17, 22, 23.

6. आज़माइशों के दौरान, किस बात ने पौलुस को विश्‍वास में अटल बने रहने में मदद दी?

6 आज़माइशों का सामना करते वक्‍त भी पौलुस शास्त्र का अध्ययन करता रहा और उससे हिम्मत पाता रहा। (इब्रा. 4:12) रोम के जेल में अपनी मौत की सज़ा का इंतज़ार करते समय, पौलुस ने तीमुथियुस को “पुस्तकें” और ‘चर्मपत्र’ लाने को कहा। (2 तीमु. 4:13) ये दस्तावेज़ इब्रानी शास्त्र के कुछ भाग थे, जिनका इस्तेमाल करके पौलुस ने गहरा अध्ययन किया था। पौलुस के लिए इस मुश्‍किल समय में विश्‍वास में अटल बने रहने के लिए ज़रूरी था कि वह नियमित तौर पर शास्त्र का अध्ययन करे।

7. बाइबल का नियमित अध्ययन करने के कुछ फायदे बताइए।

7 बाइबल का नियमित अध्ययन करने और ध्यान लगाकर मनन करने से हम मसीही के नाते बढ़िया तरक्की कर पाएँगे। (इब्रा. 5:12-14) परमेश्‍वर का वचन कितना अनमोल है, इस बारे में भजनहार ने अपने गीत में लिखा: “तेरी दी हुई व्यवस्था मेरे लिये हजारों रुपयों और मुहरों से भी उत्तम है। तू अपनी आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है, क्योंकि वे सदा मेरे मन में रहती हैं। मैं ने अपने पांवों को हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है, जिस से मैं तेरे वचन के अनुसार चलूं।” (भज. 119:72, 98, 101) क्या आप नियमित तौर पर बाइबल अध्ययन करते हैं? क्या आप हर दिन बाइबल पढ़ने और उस पर मनन करने के ज़रिए कलीसिया में मिलनेवाले सुअवसर के लिए खुद को तैयार करते हैं?

शाऊल ने लोगों से प्यार करना सीखा

8. शाऊल उन लोगों के साथ कैसे बर्ताव करता था, जो यहूदी धर्म से नहीं थे?

8 मसीही बनने से पहले शाऊल यहूदी धर्म के लिए गहरा जज़्बा रखता था। मगर जो लोग उसके धर्म से नहीं थे, उनकी वह रत्ती-भर भी परवाह नहीं करता था। (प्रेरि. 26:4, 5) जब कुछ यहूदी स्तिफनुस को पत्थरवाह कर रहे थे, तो शाऊल चुपचाप यह सब देख रहा था। उसे शायद लगा हो कि स्तिफनुस को जो सज़ा मिली, वह उसी के लायक है। इस घटना के बाद से मसीहियों को सताने की शाऊल की हिम्मत खुल गयी। (प्रेरि. 6:8-14; 7:54–8:1) बाइबल कहती है: “शाऊल घर घर जाकर कलीसिया को उजाड़ने और स्त्री-पुरुषों को घसीट-घसीट कर बन्दीगृह में डालने लगा।” (प्रेरि. 8:3, NHT) वह तो “बाहर के नगरों में भी जाकर उन्हें सताता था।”—प्रेरि. 26:11.

9. शाऊल के साथ ऐसा क्या हुआ कि लोगों की तरफ उसका रवैया ही बदल गया?

9 शाऊल दमिश्‍क में मसीह के चेलों को सताने जा रहा था कि तभी रास्ते में एक तेज़ रोशनी चमकी और प्रभु यीशु ने उसे दर्शन दिया। इस तेज़ रोशनी से शाऊल अंधा हो गया और उसे कुछ दिनों के लिए दूसरों के सहारे रहना पड़ा। फिर यहोवा ने शाऊल की आँखों की रोशनी लौटाने के लिए हनन्याह को भेजा। जब तक हनन्याह उससे मिला, तब तक लोगों की तरफ शाऊल का रवैया पूरी तरह बदल चुका था। (प्रेरि. 9:1-30) और मसीह का चेला बनने के बाद शाऊल ने लोगों के साथ यीशु के जैसा बर्ताव करने की कोशिश की। इसके लिए उसे हिंसा का रास्ता छोड़ना था और “सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप” रखना था।—रोमियों 12:17-21 पढ़िए।

10, 11. पौलुस ने लोगों के लिए सच्चा प्यार कैसे दिखाया?

10 पौलुस न सिर्फ लोगों के साथ मेल-मिलाप रखना चाहता था, बल्कि उन्हें सच्चा प्यार भी दिखाना चाहता था। और मसीही सेवा के ज़रिए उसे ऐसा करने का भरपूर मौका मिला। अपनी पहली मिशनरी यात्रा में उसने एशिया माइनर में सुसमाचार का प्रचार किया। वहाँ कड़े विरोध के बावजूद पौलुस और उसके साथियों ने नेकदिल लोगों को मसीही बनने में मदद दी। हालाँकि लुस्त्रा और इकुनियुम में विरोधियों ने पौलुस को जान से मारने की कोशिश की, फिर भी वह अपने साथियों के संग दोबारा उन शहरों का दौरा किया।—प्रेरि. 13:1-3; 14:1-7, 19-23.

11 इसके बाद, उन्होंने मकिदुनिया के फिलिप्पी शहर में प्रचार किया और सही मन रखनेवालों को ढूँढ़ा। वहाँ यहूदी धर्म अपनानेवाली लुदिया नाम की एक स्त्री ने सुसमाचार सुना और मसीही बन गयी। फिर उसी शहर में सरकारी अधिकारियों ने पौलुस और सीलास को बेंत से पीटा और उन्हें कैदखाने में डाल दिया। इसके बावजूद पौलुस ने प्रचार करना नहीं छोड़ा। उसने जेल के दारोगा को गवाही दी। नतीजा यह हुआ कि दारोगा और उसका परिवार बपतिस्मा लेकर यहोवा के उपासक बन गए।—प्रेरि. 16:11-34.

12. किस बात ने पत्थरदिल शाऊल को मसीह का एक प्यार करनेवाला प्रेरित बनने को उकसाया?

12 शाऊल ने उन्हीं लोगों के विश्‍वास को अपना लिया, जिन्हें वह पहले सताता था। वह एक पत्थरदिल इंसान से प्यार करनेवाला प्रेरित बन गया। यहाँ तक कि वह दूसरों को सुसमाचार सुनाने की खातिर अपनी जान तक दाँव पर लगा दी। आखिर किस बात ने उसे इतना बड़ा बदलाव करने को उकसाया? पौलुस खुद जवाब देता है: ‘परमेश्‍वर ने मुझे अपने अनुग्रह से बुला लिया कि मुझ में अपने पुत्र को प्रगट करे।’ (गल. 1:15, 16) उसने तीमुथियुस को लिखा: “मुझपर . . . दया हुई, [ता]कि मुझ सब से बड़े पापी में यीशु मसीह अपनी पूरी सहनशीलता दिखाए, कि जो लोग उस पर अनन्त जीवन के लिये विश्‍वास करेंगे, उन के लिये मैं एक आदर्श बनूं।” (1 तीमु. 1:16) यहोवा ने पौलुस को माफ किया और उस पर अनुग्रह और दया की। इसी बात ने पौलुस को उकसाया कि वह दूसरों को सुसमाचार सुनाए और इस तरह उनके लिए प्यार दिखाए।

13. क्या बात हमें दूसरों के लिए प्यार दिखाने को उभारती है, और यह हम कैसे दिखा सकते हैं?

13 यहोवा हमारी गलतियों और पापों को भी माफ करता है। (भज. 103:8-14) भजनहार ने यह सवाल किया: “हे याह, यदि तू अधर्म के कामों का लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा?” (भज. 130:3) ज़रा सोचिए, अगर हम पर यहोवा की दया न होती, तो हममें से किसी को भी न तो उसकी सेवा करने का बढ़िया मौका मिलता और ना ही हमेशा की ज़िंदगी पाने की उम्मीद मिलती। वाकई, परमेश्‍वर ने हम सब पर क्या ही अनुग्रह किया है! इसलिए पौलुस की तरह हमें भी लोगों को प्यार दिखाना है। कैसे? सुसमाचार का प्रचार करने और लोगों को सच्चाई सिखाने के ज़रिए। साथ ही, हमें अपने मसीही भाइयों की हौसला-अफज़ाई भी करनी चाहिए।—प्रेरितों 14:21-23 पढ़िए।

14. हम प्रचार में ज़्यादा-से-ज़्यादा कैसे कर सकते हैं?

14 पौलुस एक कुशल प्रचारक बनना चाहता था। वह अपनी सेवा भी बढ़ाना चाहता था। इस मामले में, यीशु की मिसाल ने उसके दिल पर गहरी छाप छोड़ी थी। यीशु ने कई तरीकों से लोगों के लिए बेजोड़ प्यार दिखाया था, जिनमें से एक था, प्रचार काम। उसने कहा: “पक्के खेत तो बहुत हैं पर मजदूर थोड़े हैं। इसलिये खेत के स्वामी से बिनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिये मजदूर भेज दे।” (मत्ती 9:35-38) पौलुस ने इस गुज़ारिश के मुताबिक काम किया और सुसमाचार का एक जोशीला प्रचारक बना। आपके बारे में क्या? क्या आप प्रचार में अपना हुनर बढ़ाना चाहते हैं? क्या आप प्रचार में ज़्यादा-से-ज़्यादा समय बिता सकते हैं? क्या आप पायनियर सेवा के लिए अपनी ज़िंदगी में ज़रूरी फेरबदल कर सकते हैं? आइए हम दूसरों के लिए सच्चा प्यार दिखाएँ और उन्हें ‘जीवन के वचन को दृढ़ता से थामे रहने’ में मदद दें।—फिलि. 2:16, NHT.

पौलुस ने अपने बारे में क्या नज़रिया रखा?

15. पौलुस ने अपने बारे में क्या नज़रिया रखा?

15 पौलुस ने एक और तरीके से हमारे लिए उम्दा मिसाल कायम की। हालाँकि उसे मसीही कलीसिया में कई ज़िम्मेदारियाँ दी गयी थीं, मगर वह अच्छी तरह जानता था कि उसने अपने बलबूते पर इन आशीषों को हासिल नहीं किया था। और ना ही उसे अपनी काबिलीयतों की वजह से ये आशीषें मिली थीं। उसे एहसास था कि परमेश्‍वर की अपार कृपा की वजह से ही ये आशीषें उसे मिली थीं। पौलुस यह भी जानता था कि सिर्फ वही अकेला कुशल प्रचारक नहीं है, बल्कि दूसरे मसीही भी कुशल प्रचारक हैं। परमेश्‍वर की कलीसिया में बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ और अधिकार मिलने के बावजूद, वह नम्र बना रहा।—1 कुरिन्थियों 15:9-11 पढ़िए।

16. पौलुस ने खतना के मसले में अपनी हद पहचानते हुए नम्रता कैसे दिखायी?

16 ध्यान दीजिए कि सूरिया की अन्ताकिया कलीसिया में जब खतना को लेकर फूट पड़ी, तब पौलुस ने क्या किया। (प्रेरि. 14:26–15:2) पहले-पहल, पौलुस ने सोचा होगा कि वह इस मसले को आसानी से सुलझा सकता है, क्योंकि खासकर उसे खतनारहित गैर-यहूदियों में प्रचार करने को भेजा गया है। (गलतियों 2:8, 9 पढ़िए।) लेकिन जब उसकी कोशिशों से मसला हल नहीं हुआ तो उसने अपनी हद पहचानते हुए नम्रता दिखायी। उसने ठहराए इंतज़ाम के मुताबिक काम किया और यरूशलेम जाकर शासी निकाय से इस मामले पर चर्चा की। शासी निकाय के सदस्यों ने पूरी बात सुनी और फैसला सुनाया। फिर उन्होंने पौलुस को उन लोगों में से एक ठहराया, जो उनके फैसले को कलीसियाओं तक पहुँचाता। इस पूरी कार्रवाई के दौरान पौलुस ने उन्हें पूरा-पूरा सहयोग दिया। (प्रेरि. 15:22-31) इस तरह, पौलुस अपने भाइयों को “परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़” चला।—रोमि. 12:10ख.

17, 18. (क) पौलुस के दिल में मसीही भाई-बहनों के लिए कैसी भावना थी? (ख) पौलुस से जुदा होते वक्‍त, इफिसुस के प्राचीनों को बहुत दुःख हुआ; उससे हम पौलुस के बारे में क्या सीख सकते हैं?

17 नम्र पौलुस अपने मसीही भाई-बहनों से दूर-दूर नहीं रहता था। इसके बजाय, उसे उन लोगों से गहरा लगाव था। रोमियों को लिखी अपनी पत्री के आखिर में, उसने 20 से भी ज़्यादा लोगों का नाम लेकर उन्हें शुभकामनाएँ भेजीं। इनमें से ज़्यादातर लोगों का ज़िक्र बाइबल में और कहीं नहीं किया गया है और ना ही कलीसिया में उनके पास बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ थीं। फिर भी ये लोग यहोवा के वफादार सेवक थे और पौलुस उन्हें दिलो-जान से प्यार करता था।—रोमि. 16:1-16.

18 पौलुस नम्र और मिलनसार होने की वजह से कलीसियाओं को मज़बूत कर सका। जब वह इफिसुस के प्राचीनों से आखिरी बार मिला, तो ‘वे पौलुस के गले लिपटकर उसे चूमने लगे। वे विशेष करके इस बात का शोक करते थे, जो उस ने कही थी, कि तुम मेरा मूंह फिर न देखोगे।’ अगर पौलुस घमंडी और अपने भाइयों से दूर-दूर रहनेवाला होता, तो उससे जुदा होने में प्राचीनों को उतना दुःख नहीं होता।—प्रेरि. 20:37, 38.

19. हम मसीही भाइयों के साथ कैसे “दीनता” से पेश आ सकते हैं?

19 सच्चाई में तरक्की करने की इच्छा रखनेवालों को पौलुस के जैसी नम्रता दिखानी चाहिए। पौलुस ने अपने मसीही भाई-बहनों को उकसाया था कि वे “विरोध या झूठी बढ़ाई के लिये कुछ न क[रें] पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा सम[झें]।” (फिलि. 2:3) हम इस सलाह पर कैसे चल सकते हैं? एक तरीका है, कलीसिया के प्राचीनों को सहयोग देना, उनके निर्देशनों के मुताबिक काम करना और उनके न्यायिक फैसलों को मानना। (इब्रानियों 13:17 पढ़िए।) दूसरा तरीका है, भाई-बहनों की दिल से कदर करना। मसीही कलीसिया में लोग अकसर अलग-अलग राष्ट्र, संस्कृति, जाति और नस्ल से होते हैं। क्या हमें उन सभी के साथ पौलुस की तरह बिना भेदभाव के और प्यार से पेश नहीं आना चाहिए? (प्रेरि. 17:26; रोमि. 12:10क) हमें बढ़ावा दिया गया है कि “जैसा मसीह ने भी परमेश्‍वर की महिमा के लिये [हमें] ग्रहण किया है, वैसे ही [हम] भी एक दूसरे को ग्रहण” करें।—रोमि. 15:7.

जीवन की दौड़ पूरी करने में “धीरज से दौड़ें”

20, 21. जीवन की दौड़ जीतने के लिए क्या बात हमारी मदद करेगी?

20 मसीही ज़िंदगी की तुलना एक लंबी दौड़ से की गयी है। पौलुस ने लिखा: “मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्‍वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, बरन उन सब को भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं।”—2 तीमु. 4:7, 8.

21 पौलुस के नक्शेकदम पर चलने से हम अनंत जीवन की यह दौड़ जीत पाएँगे। (इब्रा. 12:1) तो आइए हम बिना नागा निजी अध्ययन करने, लोगों के लिए सच्चा प्यार दिखाने और नम्र बने रहने के ज़रिए सच्चाई में तरक्की करते जाएँ।

आप क्या जवाब देंगे?

• शास्त्र का नियमित अध्ययन करने से पौलुस को क्या फायदा हुआ?

• यह क्यों ज़रूरी है कि सच्चे मसीही लोगों से गहरा प्यार करें?

• कौन-से गुण दूसरों के साथ भेदभाव न करने में आपकी मदद करेंगे?

• कलीसिया के प्राचीनों को सहयोग देने में पौलुस की मिसाल से आप क्या सीख सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीर]

पौलुस की तरह शास्त्र का अध्ययन कीजिए और उससे हिम्मत पाइए

[पेज 24 पर तसवीर]

दूसरों को सुसमाचार सुनाकर उनके लिए प्यार दिखाइए

[पेज 25 पर तसवीर]

पौलुस में ऐसी क्या बात थी कि उसके भाई उससे प्यार करते थे?