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हमें दूसरों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए?

हमें दूसरों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए?

हमें दूसरों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए?

“जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।”—लूका 6:31.

1, 2. (क) पहाड़ी उपदेश क्या है? (ख) हम इस लेख में और अगले लेख में किस बात पर चर्चा करेंगे?

 यीशु मसीह वाकई एक महान शिक्षक था। एक मौके पर जब धर्म-गुरुओं ने उसे पकड़ने के लिए सिपाही भेजे, तो वे खाली हाथ लौट आए। वह क्यों? उन्होंने इसकी वजह बताते हुए कहा: “आज तक ऐसी बातें किसी ने कभी नहीं कहीं।” (NHT) (यूह. 7:32, 45, 46) धरती पर रहते वक्‍त, यीशु ने कई ज़बरदस्त भाषण दिए थे। उनमें से एक था, पहाड़ी उपदेश। यह उपदेश, मत्ती की सुसमाचार की किताब के अध्याय 5 से 7 में दर्ज़ है और इसकी कुछ बातें लूका 6:20-49 में भी दी गयी हैं। *

2 पहाड़ी उपदेश का ज़िक्र आते ही, आज ज़्यादातर लोगों को सुनहरा नियम याद आता है, जो इसी उपदेश में दिया गया था। इस नियम में यीशु ने बताया था कि हमें दूसरों के साथ कैसे पेश आना चाहिए। उसने कहा: “जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।” (लूका 6:31) इसमें कोई शक नहीं कि यीशु ने लोगों की खातिर कई भले काम किए। उसने बीमारों को चंगा किया, यहाँ तक कि मरे हुओं को भी ज़िंदा किया। मगर इससे भी बढ़कर उसने लोगों को राज्य का सुसमाचार सुनाया और जिस किसी ने उसके संदेश को कबूल किया उन्हें बेशुमार फायदे हुए। (लूका 7:20-22 पढ़िए।) हमें इस बात की खुशी है कि यहोवा के साक्षी होने के नाते आज हम भी इसी काम में जुटे हुए हैं। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) हम इस लेख में और अगले लेख में देखेंगे कि यीशु ने पहाड़ी उपदेश में प्रचार काम के बारे में क्या कहा। साथ ही, हम दूसरे मुद्दों पर भी गौर करेंगे, जो इस बात से ताल्लुक रखते हैं कि हमें दूसरों के साथ कैसे पेश आना चाहिए।

नर्मदिल बनिए

3. नर्मदिली क्या है?

3 यीशु ने कहा था: “खुश हैं वे जो नर्मदिल हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के वारिस होंगे।” (मत्ती 5:5, NW) बाइबल के मुताबिक नर्मदिल होना कमज़ोरी की निशानी नहीं, बल्कि परमेश्‍वर के स्तरों पर चलते हुए कोमलता दिखाना है। यह नर्मदिली हम दूसरों के साथ अपने व्यवहार में दिखा सकते हैं। मिसाल के लिए, हम ‘बुराई के बदले किसी से बुराई नहीं करते।’—रोमि. 12:17-19.

4. नर्मदिल लोग क्यों खुश हैं?

4 नर्मदिल लोग खुश हैं, क्योंकि “वे पृथ्वी के वारिस होंगे।” यीशु को, जो ‘नर्मदिल और मन में दीन’ था, “सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया” गया है। इस नाते वह ऐसा पहला शख्स है जिसे विरासत में पृथ्वी दी जाएगी। यानी उसे पृथ्वी पर राज करने का अधिकार मिलेगा। (मत्ती 11:29, NW; इब्रा. 1:2; भज. 2:8) लेकिन भविष्यवाणी के मुताबिक ‘मनुष्य की सन्तान’ यानी मसीहा अकेले राज नहीं करेगा। स्वर्गीय राज्य में उसके साथ 1,44, 000 अभिषिक्‍त जन भी राज करेंगे। (दानि. 7:13, 14, 21, 22, 27) ‘मसीह के ये संगी वारिस’ नर्मदिल हैं और उन्हें भी पृथ्वी विरासत में मिलेगी। (रोमि. 8:16, 17; प्रका. 14:1) इसके अलावा, दूसरे नर्मदिल इंसानों को परमेश्‍वर के राज्य के अधीन धरती पर हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी।—भज. 37:11.

5. मसीह की तरह नर्मदिल होने से हमारी शख्सियत पर क्या असर होगा?

5 अगर हम कठोरता से पेश आएँ, तो हमारे मसीही भाई-बहन हमारी संगति पसंद नहीं करेंगे और हमसे दूर-दूर रहेंगे। लेकिन अगर हम मसीह की तरह नर्मदिल होंगे, तो वे हमारी तरफ खिंचे चले आएँगे और उन्हें हमसे बड़ा हौसला मिलेगा। प्रेरित पौलुस ने बताया कि नर्मदिली का गुण, पवित्र शक्‍ति का ही एक फल है। उसने लिखा: ‘नर्मदिली और संयम। ऐसी बातों के खिलाफ कोई भी व्यवस्था नहीं।’ इसलिए अगर हम ‘पवित्र शक्‍ति के मुताबिक जीएँ और चलें,’ तो परमेश्‍वर की यह शक्‍ति हमारे अंदर नर्मदिली पैदा करेगी। (गलतियों 5:23, 25, NW) इसमें कोई शक नहीं कि हम उन लोगों में से एक होना चाहते हैं, जो नर्मदिल हैं और पवित्र शक्‍ति की दिखायी राह पर चलते हैं।

खुश हैं वे जो दयालु हैं

6. एक दयालु इंसान में कौन-से बढ़िया गुण होते हैं?

6 यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में यह भी कहा था: “खुश हैं वे जो दयालु हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।” (मत्ती 5:7, NW) दयालु इंसान वह होता है जिसमें करुणा की भावना होती है और जो दूसरों की परवाह करता है। यही नहीं, वह दीन-दुखियों पर भी तरस खाता है। यीशु ने जब दुःख से तड़पते लोगों को देखा, तो उसे “उन पर तरस आया” और उसने उनकी तकलीफ दूर करने के लिए चमत्कार किए। (मत्ती 14:14; 20:34, हिन्दुस्तानी बाइबल) उसी तरह, अगर हम भी दूसरों के लिए परवाह दिखाएँ और उन पर तरस खाएँ, तो हम दया दिखाने के लिए उभारे जाएँगे।—याकू. 2:13.

7. लोगों पर तरस खाकर यीशु ने क्या किया?

7 एक बार जब यीशु आराम करने जा रहा था, तो रास्ते में उसने एक बड़ी भीड़ को देखा। उसने ‘उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिन का कोई रखवाला नहीं था।’ नतीजा, “वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा।” (मर. 6:34) यीशु की मिसाल पर चलते हुए, आज हम लोगों को राज्य का संदेश सुनाते हैं और उन्हें परमेश्‍वर की अपार दया के बारे में बताते हैं। इससे हमें क्या ही खुशी मिलती है!

8. दयालु लोग खुश क्यों हैं?

8 दयालु लोग खुश हैं, क्योंकि उन पर ‘दया की जाती है।’ जब हम दूसरों को दया दिखाते हैं, तो बदले में वे भी हमें दया दिखाते हैं। (लूका 6:38) इससे भी बढ़कर यहोवा हम पर दया करता है। यीशु ने कहा था: “यदि तुम मनुष्य के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा।” (मत्ती 6:14) जी हाँ, परमेश्‍वर सिर्फ दयालु लोगों के पापों को माफ करता है और उन पर अनुग्रह करता है। इससे उन्हें खुशी का गहरा एहसास होता है।

‘शांति कायम करनेवाले’ क्यों खुश हैं

9. अगर हम शांति कायम करनेवाले हैं, तो हम क्या करेंगे?

9 यीशु ने खुशी की एक और वजह बताते हुए कहा: “खुश हैं वे जो शांति कायम करते हैं, क्योंकि वे ‘परमेश्‍वर के पुत्र’ कहलाएँगे।” (मत्ती 5:9, NW) अगर हम शांति कायम करनेवाले हैं, तो हम झूठी अफवाहें नहीं फैलाएँगे और ना ही ऐसा कोई काम करेंगे जिससे ‘परम मित्रों में फूट पैदा’ हो। और अगर कोई ऐसे काम करे भी, तो हम उसे अनदेखा नहीं करेंगे। (नीति. 16:28) हम अपनी बातों और कामों से सभी के साथ शांति कायम करने की कोशिश करेंगे, फिर चाहे वे कलीसिया के लोग हों या बाहरवाले। (इब्रा. 12:14) सबसे बढ़कर हम अपने परमेश्‍वर यहोवा के साथ शांति कायम करने की पूरी-पूरी कोशिश करेंगे।1 पतरस 3:10-12 पढ़िए।

10. ‘शांति कायम करनेवाले’ खुश क्यों हैं?

10 यीशु ने कहा था कि ‘शांति कायम करनेवाले’ खुश हैं, “क्योंकि वे ‘परमेश्‍वर के पुत्र’ कहलाएँगे।” अभिषिक्‍त जन, यीशु को मसीहा मानते हैं और उस पर विश्‍वास करते हैं, इसलिए उन्हें ‘परमेश्‍वर की सन्तान होने का अधिकार’ मिला है। (यूह. 1:12; 1 पत. 2:24) लेकिन शांति कायम करनेवाली ‘अन्य भेड़ों’ (NW) के बारे में क्या? जब यीशु अपने संगी वारिसों के साथ हज़ार साल के लिए राज करेगा, तब वह इन भेड़ों का “अनन्तकाल का पिता” होगा। (यूह. 10:14, 16; यशा. 9:6; प्रका. 20:6) और हज़ार साल के आखिर में, ये भेड़ें सही मायनों में धरती पर परमेश्‍वर की संतान बनेंगी।—1 कुरि. 15:27, 28.

11. अगर हम ‘ऊपर से आनेवाली बुद्धि’ के मुताबिक काम करें, तो हम दूसरों के साथ किस तरह पेश आएँगे?

11 ‘शान्ति के परमेश्‍वर’ यहोवा के साथ करीबी रिश्‍ता बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि हम उसके जैसा बनें। (फिलि. 4:9) मिसाल के लिए, हमें उसकी तरह शांति कायम करनेवाले होने चाहिए। अगर हम ‘ऊपर से आनेवाले ज्ञान’ या बुद्धि के मुताबिक काम करें, तो हम दूसरों के साथ शांति से पेश आएँगे। (याकू. 3:17) जी हाँ, शांति कायम करने से हमें खुशी मिलेगी।

‘तुम्हारा उजियाला चमके’

12. (क) सच्चाई की रोशनी के बारे में यीशु ने क्या कहा? (ख) हम अपना उजियाला कैसे चमका सकते हैं?

12 सुनहरे नियम पर चलने का सबसे अच्छा तरीका है, लोगों तक सच्चाई की रोशनी पहुँचाना। (भज. 43:3) यीशु ने अपने चेलों से कहा था कि वे “जगत की ज्योति” हैं। और उन्हें उकसाया कि वे अपना ‘उजियाला चमकाएँ’ ताकि लोग उनके “भले कामों को देख सकें। इसका नतीजा यह होगा कि लोगों को सच्चाई की रोशनी मिलेगी और उनका भला होगा। (मत्ती 5:14-16 पढ़िए।) आज हम भी लोगों पर अपना उजियाला चमकाते हैं। कैसे? उनकी खातिर भले काम करके और “सारे जगत” में यानी “सब जातियों” के लोगों को सुसमाचार सुनाकर। (मत्ती 26:13; मर. 13:10) वाकई, इस काम में हिस्सा लेना हमारे लिए कितने सम्मान की बात है!

13. लोग हमारे बारे में क्या गौर करते हैं?

13 यीशु ने कहा: “जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता।” उसी तरह, जब हम राज्य प्रचारकों के नाते भले काम करते हैं, तो ये लोगों की नज़रों से नहीं छिपते। इसके अलावा, वे हमारे बारे में यह भी गौर करते हैं कि हम शालीनता और पवित्रता जैसे गुण दिखाते हैं।—तीतु. 2:1-14.

14. हम किस मायने में अपनी ज्योति “पैमाने” के नीचे नहीं रखते?

14 यीशु ने आगे कहा कि एक दिए को जलाकर उसे “पैमाने” या टोकरी के नीचे नहीं, बल्कि दीवट पर रखा जाता है। पहली सदी में दिए को अकसर लकड़ी या धातु के बने दीवट पर रखा जाता था, जिससे ‘घर के सब लोगों को प्रकाश’ मिलता था। ऐसा नहीं था कि लोग दिया जलाकर उसे टोकरी के नीचे रखते थे। ठीक इसी तरह यीशु नहीं चाहता था कि उसके चेले अपनी ज्योति को छिपाए रखें। आज हमें भी अपना उजियाला चमकाते रहने की ज़रूरत है। हमें कभी-भी सच्चाई के बारे में बताने से पीछे नहीं हटना चाहिए, फिर चाहे हमारा विरोध किया जाए या हमें सताया जाए।

15. हमारे “भले कामों” का कुछ लोगों पर क्या असर होता है?

15 यीशु ने जलते हुए दिए का ज़िक्र करने के बाद अपने चेलों से कहा: “उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, बड़ाई करें।” हमारे भले कामों को देखकर कुछ लोग परमेश्‍वर के सेवक बनते हैं और उसकी “बड़ाई” करते हैं। इससे हमें हौसला मिलता है कि हम ‘जगत में दीपकों की नाईं जलते’ रहें।—फिलि. 2:15.

16. “जगत की ज्योति” होने का क्या मतलब है?

16 “जगत की ज्योति” होने का मतलब है कि हम राज्य के प्रचार और चेला बनाने के काम में हिस्सा लें। लेकिन इसमें एक और बात भी शामिल है। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “ज्योति की सन्तान की नाईं चलो। (क्योंकि ज्योति का फल सब प्रकार की भलाई, और धार्मिकता, और सत्य है)।” (इफि. 5:8, 9) इससे पता चलता है कि हमें परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक जीने में एक उम्दा मिसाल कायम करने की ज़रूरत है। प्रेरित पतरस ने भी हमें यह सलाह दी: “अन्यजातियों में तुम्हारा चालचलन भला हो; इसलिये कि जिन जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जानकर बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देखकर; उन्हीं के कारण कृपा दृष्टि के दिन परमेश्‍वर की महिमा करें।” (1 पत. 2:12) लेकिन मान लीजिए, किसी भाई या बहन के साथ हमारी अनबन हो जाती है। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए?

“अपने भाई से मेल मिलाप कर”

17-19. (क) मत्ती 5:23, 24 में बतायी “भेंट” का क्या मतलब था? (ख) अपने भाई से मेल-मिलाप करना कितना ज़रूरी है, और यीशु ने इस बात पर कैसे ज़ोर दिया?

17 पहाड़ी उपदेश में यीशु ने अपने चेलों को आगाह किया था कि वे किसी भाई के लिए नफरत और नाराज़गी न पालें। इसके बजाय, उन्हें अपने भाई से फौरन सुलह करनी थी। (मत्ती 5:21-25 पढ़िए।) आइए यीशु की सलाह को करीबी से जाँचें। अगर कोई इंसान अपनी भेंट वेदी के पास लाता है और तभी उसे याद आता है कि उसके भाई को उससे कोई शिकायत है, तो उसे क्या करना था? उसे अपनी भेंट वहीं छोड़कर पहले अपने भाई से सुलह करनी थी। इसके बाद ही वह अपनी भेंट चढ़ा सकता था।

18 यहाँ बतायी “भेंट” का आम तौर पर मतलब होता था, यहोवा के मंदिर में चढ़ाया जानेवाला जानवरों का बलिदान। यह बलिदान, मूसा की व्यवस्था के मुताबिक सच्ची उपासना का एक अहम हिस्सा था। इसलिए इस्राएलियों के लिए इसे चढ़ाना बेहद ज़रूरी था। लेकिन अगर एक इस्राएली को याद आता कि उसने अपने किसी भाई का दिल दुखाया है, तब उस मामले को सुलझाना भेंट चढ़ाने से ज़्यादा ज़रूरी हो जाता था। यीशु ने कहा था: “अपनी भेंट वहीं बेदी के साम्हने छोड़ दे। और जाकर पहिले अपने भाई से मेल मिलाप कर; तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।” जी हाँ, अपने भाई से मेल-मिलाप करना व्यवस्था का पालन करने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी था।

19 यीशु ने जब यह सलाह दी थी, तो वह किसी खास भेंट या पापों की बात नहीं कर रहा था। इसलिए अगर एक इंसान को याद आता है कि उसका भाई उससे नाराज़ है, तो वह चाहे जो भी भेंट चढ़ाने आया हो, उसे सुलह करने के बाद ही वह भेंट चढ़ानी थी। और अगर वह जानवरों का बलिदान चढ़ाने आया हो, तो उसे जानवर को वहीं याजकों के आँगन में “बेदी के साम्हने” छोड़ जाना था। अपने भाई से सुलह करने के बाद ही वह आकर भेंट चढ़ा सकता था।

20. अगर हम किसी भाई से नाराज़ है, तो हमें जल्द-से-जल्द मामले को क्यों निपटाना चाहिए?

20 परमेश्‍वर की नज़र में, भाइयों के साथ हमारा रिश्‍ता सच्ची उपासना का एक अहम हिस्सा है। प्राचीन समय में अगर कोई अपने भाई के साथ बुरा सलूक करता, तो उसका चढ़ाया कोई भी बलिदान यहोवा के सामने बेमाने होता। (मीका 6:6-8) इसलिए यीशु ने अपने चेलों को उकसाया कि वे ‘झटपट मेल मिलाप करें।’ (मत्ती 5:25) पौलुस ने भी लिखा: “क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे। और न शैतान को अवसर दो।” (इफि. 4:26, 27) चाहे गुस्सा होने के हमारे पास वाजिब कारण क्यों न हो, हमें क्रोध करने और शैतान को मौका देने के बजाय मामले को जल्द-से-जल्द निपटाना चाहिए।—लूका 17:3, 4.

दूसरों के साथ हमेशा आदर से पेश आइए

21, 22. (क) इस लेख में दी यीशु की सलाहों पर हम कैसे चल सकते हैं? (ख) अगले लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

21 हमने यीशु के पहाड़ी उपदेश से जिन चंद बातों पर चर्चा की, उनकी मदद से हम दूसरों के साथ प्यार और आदर से पेश आना सीखते हैं। हालाँकि हम सब असिद्ध हैं, फिर भी हम यीशु की इन सलाहों पर चल सकते हैं। क्योंकि न तो यीशु और ना ही हमारा पिता, यहोवा हमसे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद करता है। अगर हम सच्चे दिल से कोशिश करें और प्रार्थना के ज़रिए यहोवा की मदद लें, तो हम नर्मदिल, दयालु और शांति कायम करनेवाले बन सकेंगे। इसके अलावा, हम सच्चाई की वह रोशनी फैला पाएँगे, जिससे यहोवा की महिमा हो। यही नहीं, किसी भाई के साथ अनबन होने पर हम उससे मेल-मिलाप भी कर सकेंगे।

22 अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी उपासना कबूल करे, तो हमें दूसरों के साथ अच्छा बर्ताव करना चाहिए। (मर. 12:31) अगले लेख में हम पहाड़ी उपदेश की और भी बातों पर चर्चा करेंगे, जो हमें दूसरों का भला करते रहने में मदद देंगी। लेकिन हमने इस लेख से जिन मुद्दों पर चर्चा की, उन पर हमें मनन करना चाहिए और फिर खुद से पूछना चाहिए: ‘क्या मैं दूसरों के साथ अच्छा बर्ताव करता हूँ?’

[फुटनोट]

^ अपने निजी अध्ययन में इस लेख और अगले लेख की तैयारी करने से पहले, इन आयतों को पढ़ना आपके लिए फायदेमंद होगा।

आप क्या जवाब देंगे?

• नर्मदिल होने का क्या मतलब है?

• “दयालु” लोग क्यों खुश हैं?

• हम अपना उजियाला कैसे चमका सकते हैं?

• हमें फौरन ‘अपने भाई से मेल-मिलाप’ क्यों करना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 4 पर तसवीर]

अपना उजियाला चमकाने का एक अहम तरीका है, राज्य का संदेश सुनाना

[पेज 5 पर तसवीर]

मसीहियों को परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक जीने में एक उम्दा मिसाल होनी चाहिए

[पेज 6 पर तसवीर]

अपने भाई से मेल-मिलाप करने में अपना भरसक कीजिए