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“अपना पहला सा प्रेम” बनाए रखिए

“अपना पहला सा प्रेम” बनाए रखिए

“अपना पहला सा प्रेम” बनाए रखिए

“जो कुछ तेरे पास है, उसे थामे रह।”—प्रका. 3:11.

1, 2. उस वक्‍त आपको कैसा लगा था जब आपने जाना कि यहोवा के बारे में आप जो सीख रहे हैं, वही सच्चाई है?

 क्या आपको वह दिन याद है, जब आपने यहोवा के इस वादे के बारे में जाना था कि वह उसकी आज्ञा माननेवालों को खुशियों-भरी ज़िंदगी देगा? अगर उस वक्‍त आप दूसरे धर्म को मानते थे और आपको बाइबल से परमेश्‍वर के मकसद के बारे में समझाया गया, तो आपको कैसा लगा था? या फिर जब आपको उन शिक्षाओं के बारे में खुलकर समझाया गया, जिन्हें लेकर आप उलझन में पड़े थे, तब आपने कैसा महसूस किया था? शायद तब आपको एहसास हुआ कि अभी तक आपको गुमराह किया जा रहा था। मगर अब आप कितने खुश हैं कि आपको सच्चाई पता चल गयी है! और अगर आपकी परवरिश मसीही परिवार में हुई है, तब क्या? उस वक्‍त आपने कैसा महसूस किया था, जब आपको इस बात का पूरा यकीन हो गया कि यहोवा के बारे में आप जो सीख रहे हैं, वही सच्चाई है और आपने फैसला किया कि अब से आप सच्चाई के मुताबिक जीएँगे।—रोमि. 12:2.

2 आपकी कलीसिया में ऐसे कई भाई-बहन होंगे, जो आपको बता सकते हैं कि सच्चाई सीखने पर उन्हें कितनी खुशी हुई थी और उन्होंने खुद को यहोवा के कितने करीब महसूस किया था। साथ ही, वे इस बात के लिए बहुत एहसानमंद हैं कि यहोवा ने उन्हें अपनी तरफ खींचा है। (यूह. 6:44) इसलिए वे ज़ोर-शोर से मसीही कामों में हिस्सा लेने लगे। उनका दिल खुशी से इस कदर उमड़ रहा था कि वे सच्चाई के बारे में हर किसी को बताना चाहते थे। क्या सच्चाई सीखने पर आपने भी ऐसा ही महसूस किया था?

3. जब यीशु ने इफिसुस कलीसिया के लिए पैगाम भेजा, तब वहाँ कैसे हालात थे?

3 यीशु ने पहली सदी की इफिसुस कलीसिया से बात करते वक्‍त सच्चाई के लिए उनके उस “प्रेम” का ज़िक्र किया, जो उनमें ‘पहले’ था। हालाँकि इफिसुस के मसीहियों में कई अच्छे गुण थे, लेकिन यहोवा के लिए अब उनमें वह प्यार नहीं रहा, जो पहले था। इसलिए यीशु ने उनसे कहा, “मैं तेरे काम, और परिश्रम, और तेरा धीरज जानता हूं; और यह भी, कि तू बुरे लोगों को तो देख नहीं सकता; और जो अपने आप को प्रेरित कहते हैं, और हैं नहीं, उन्हें तू ने परखकर झूठा पाया। और तू धीरज धरता है, और मेरे नाम के लिये दुख उठाते उठाते थका नहीं। पर मुझे तेरे विरुद्ध यह कहना है कि तू ने अपना पहिला सा प्रेम छोड़ दिया है।”—प्रका. 2:2-4.

4. यीशु ने इफिसुस की कलीसिया को जो सलाह दी, वह आज हमारे लिए क्यों अहमियत रखती है?

4 यीशु ने इफिसुस और दूसरी कलीसियाओं को जो सलाहें दीं, वे सन्‌ 1914 से कुछ समय के लिए अभिषिक्‍त मसीहियों पर भी लागू हुईं। क्योंकि उस दौरान उनके बीच भी पहली सदी की उन कलीसियाओं के जैसे हालात थे। (प्रका. 1:10) आज भी ऐसा हो सकता है कि कुछ मसीही यहोवा और सच्चाई के लिए “अपना पहिला सा प्रेम” छोड़ दें। इसी बात को ध्यान में रखते हुए आइए देखें कि आपको मसीही ज़िंदगी में जो-जो अनुभव हुए हैं, उन्हें याद करने और उन पर मनन करने से आप परमेश्‍वर और सच्चाई के लिए पहले जैसा जोश और प्यार कैसे बरकरार रख सकते हैं और कैसे उन्हें बढ़ा सकते हैं।

किस बात ने आपको यकीन दिलाया कि यही सच्चाई है?

5, 6. (क) हर मसीही को खुद को क्या साबित करना चाहिए? (ख) किस बात से आपको यकीन हुआ कि यहोवा के साक्षी सच्चाई सिखाते हैं? (ग) एक मसीही सच्चाई के लिए अपने पहले जैसे प्यार को कैसे फिर से जगा सकता है?

5 यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित करनेवाले हरेक जन को पहले खुद को यह “साबित” करना चाहिए कि ‘परमेश्‍वर की भली, उसे भानेवाली और सिद्ध इच्छा’ क्या है। (रोमि. 12:1, 2) ऐसा करने में, बाइबल की सच्चाई सीखना शामिल है। हरेक जन को अलग-अलग बातों से यकीन होता है कि यहोवा के साक्षी सच्चाई सिखाते हैं। जैसे कुछ लोगों को तब यकीन हुआ जब उन्होंने बाइबल में परमेश्‍वर का नाम पढ़ा या जब उन्होंने यह जाना कि मरे हुए किस दशा में हैं। (भज. 83:18; सभो. 9:5, 10) दूसरों ने जब देखा कि यहोवा के लोगों के बीच कितना प्यार है, तो यह बात उनके दिल को छू गयी। (यूह. 13:34, 35) कुछ लोगों ने जब यह समझा कि संसार का भाग न होने का क्या मतलब है, तो उन्हें यकीन हो गया कि यहोवा के साक्षी ही सच्चाई सिखाते हैं। वे समझ गए कि सच्चे मसीही राजनीति और युद्ध में हिस्सा नहीं लेते।—यशा. 2:4; यूह. 6:15; 17:14-16.

6 इन और ऐसी ही दूसरी बातों ने कई लोगों के दिल में परमेश्‍वर के लिए प्यार जगाया है। ज़रा वक्‍त निकालकर सोचिए कि किस बात ने आपको यकीन दिलाया था कि यही सच्चाई है। शायद परमेश्‍वर से प्यार करने और उसके वादों पर यकीन करने की आपकी वजह दूसरों से अलग हो। क्योंकि आपकी शख्सियत और आपके हालात दूसरों से फर्क हैं। जिन बातों की वजह से आप यहोवा से प्यार करने लगे थे, वे आज भी आपको ऐसा ही करने में मदद दे सकती हैं। क्योंकि बाइबल की सच्चाई बदली नहीं है। इसलिए अगर आप याद करें कि सच्चाई सीखने पर आपने कैसा महसूस किया था और आप किस कदर उमंग से भर गए थे, तो आप सच्चाई के लिए अपने पहले जैसे प्यार को फिर से जगा सकते हैं।—भजन 119:151, 152; 143:5 पढ़िए।

सच्चाई के लिए आपमें पहले जो प्यार था उसे बढ़ाइए

7. हमें अपना प्यार बढ़ाने की क्यों ज़रूरत है और यह हम कैसे कर सकते हैं?

7 जब आपने यहोवा को अपना समर्पण किया था, तब से अब तक शायद आपकी ज़िंदगी में बहुत कुछ बदल चुका हो। सच्चाई के लिए आप में शुरू-शुरू में जो प्यार था, वह अपने आपमें बहुत मायने रखता है। लेकिन जैसे-जैसे समय गुज़रता गया, आपको अपना प्यार और भी बढ़ाने की ज़रूरत पड़ी, ताकि आप विश्‍वास को परखनेवाली उन चुनौतियों का सामना कर सकें, जो आपके सामने पहले कभी नहीं आयी थीं। लेकिन इन सारी मुश्‍किलों के दौरान यहोवा ने आपको सँभाले रखा। (1 कुरि. 10:13) इस तरह सच्चाई में बरसों से आपको जो अनुभव हुए, वे आपके लिए बहुत अनमोल हैं। क्योंकि उनकी मदद से आप अपना पहला प्यार बढ़ा पाए हैं। यही नहीं, इन अनुभवों से आप खुद को साबित कर सके हैं कि परमेश्‍वर की भली और उसे भानेवाली इच्छा क्या है।—यहो. 23:14; भज. 34:8.

8. यहोवा ने मूसा को अपनी पहचान के बारे में क्या बताया और इस्राएली कैसे परमेश्‍वर को करीबी से जान पाए?

8 इस बारे में इस्राएलियों की मिसाल पर गौर कीजिए। जब वे मिस्र की गुलामी में थे, तो यहोवा ने उनसे वादा किया कि वह उन्हें आज़ाद कराएगा। उसने मूसा को अपनी पहचान बताते हुए कहा: “मैं जो हूं सो हूं।” (निर्ग. 3:7, 8, 13, 14) दरअसल यहोवा कह रहा था कि वह अपने लोगों को आज़ाद कराने के लिए, जो ज़रूरी है, वह बन सकता है। इसके बाद जो-जो घटनाएँ घटीं और जो हालात पैदा हुए, उस दौरान उन्होंने यहोवा को और करीबी से जाना। कैसे? यहोवा उनकी ज़रूरतों के मुताबिक उनके लिए सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर, न्यायी, अगुवा, उद्धारकर्ता, योद्धा और ज़रूरतों को पूरा करनेवाला साबित हुआ। इस तरह वे यहोवा की शख्सियत के अलग-अलग पहलू देख पाए।—निर्ग. 12:12; 13:21; 14:24-31; 16:4; नहे. 9:9-15.

9, 10. ऐसे कुछ हालात क्या हैं जिनमें एक इंसान को महसूस होता है कि यहोवा को उसकी परवाह है और उन्हें याद करना क्यों फायदेमंद है?

9 यह सच है कि आपके हालात इस्राएलियों के हालात से अलग हैं। लेकिन आपकी ज़िंदगी में ऐसे लमहें ज़रूर आए होंगे, जब आपने महसूस किया कि यहोवा आपकी बहुत परवाह करता है। और इससे आपका विश्‍वास मज़बूत हुआ होगा। हो सकता है, यहोवा ने किसी-न-किसी तरीके से आपकी ज़रूरतें पूरी की हों, आपकी हिम्मत बढ़ायी हो या आपके लिए एक शिक्षक बना हो। (यशायाह 30:20ख, 21 पढ़िए।) या शायद आपको अपनी किसी प्रार्थना का जवाब मिला हो। या जब आपके सामने कोई बड़ी मुसीबत आ खड़ी हुई थी, तो ऐसे में किसी मसीही भाई या बहन ने आपको मदद दी। या हो सकता है कि निजी अध्ययन करते वक्‍त ऐसी आयतों पर आपका ध्यान गया हो, जिनसे आपको अपने हालात का सामना करने में बहुत मदद मिली।

10 अगर आप अपने ये अनुभव दूसरों को बताएँ, तो शायद कुछ लोगों को इनमें कोई खास बात नज़र न आए। आखिर ये कोई चमत्कार तो थे नहीं। लेकिन आपके लिए ये बहुत ही अनमोल हैं। जी हाँ, इन अनुभवों के ज़रिए यहोवा ने साबित किया कि वह आपकी खातिर जो चाहे बन सकता है। ज़रा सोचिए कि जब से आप सच्चाई में आए हैं, तब से यहोवा ने आपकी कैसे मदद की है। क्या आपको ऐसे वाकये याद हैं, जब आपने महसूस किया कि यहोवा को आपकी बहुत परवाह है? अगर हाँ, तो उन वाकयों पर गौर कीजिए। क्योंकि ऐसा करने से पहले की तरह फिर से आपके दिल में यहोवा के लिए प्यार उमड़ने लगेगा। उन अनुभवों को सँजोए रखिए। उन पर मनन कीजिए। वे इस बात का सबूत हैं कि यहोवा को आपसे प्यार है और वह आपकी परवाह करता है। और यहोवा पर आपके इस यकीन को कोई आपसे छीन नहीं सकता।

खुद की जाँच कीजिए

11, 12. सच्चाई के लिए एक मसीही में जो प्यार पहले था अगर वह कम हो गया है, तो इसकी क्या वजह हो सकती है, और इस बारे में यीशु ने क्या सलाह दी?

11 परमेश्‍वर और सच्चाई के लिए आपमें जो प्यार पहले था अगर वह कम हो गया है, तो इसकी वजह यह नहीं कि यहोवा बदल गया है। यहोवा कभी नहीं बदलता। (मला. 3:6; याकू. 1:17) वह आपकी जितनी परवाह पहले करता था, उतनी ही आज भी करता है। तो फिर यहोवा के साथ आपका रिश्‍ता क्यों कमज़ोर हो गया है? कहीं इसकी यह वजह तो नहीं कि आप पर ज़िंदगी की चिंताएँ हावी होने लगी हैं? हो सकता है, आप पहले पूरे दिल से प्रार्थना करते थे, मन लगाकर बाइबल अध्ययन करते थे, खूब मनन करते थे, मगर आज इन बातों में ढीले पड़ गए हैं। या हो सकता है, प्रचार काम के लिए अब आपमें पहले जैसा जोश नहीं रहा या आप जिस तरह पहले बिना नागा कलीसिया की सभाओं में हाज़िर होते थे, शायद अब वैसा नहीं कर रहे हैं।—2 कुरि. 13:5.

12 खुद की जाँच करने पर शायद आपको खुद में ऐसी कोई कमी नज़र न आए। लेकिन अगर आप पाते हैं कि आप इन मामलों में कमज़ोर पड़ गए हैं, तो इसकी क्या वजह हो सकती है? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करने, अपनी सेहत का ध्यान रखने और ऐसी दूसरी बातों को कुछ ज़्यादा ही तवज्जोह देने लगे हैं? ये बातें अपने आपमें जायज़ तो हैं, मगर इन पर हद-से-ज़्यादा ध्यान देने से आप इस बात की गंभीरता को भूल सकते हैं कि यहोवा का दिन कितना करीब है। यीशु ने अपने प्रेरितों से कहा था, “इसलिये सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएं, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े। क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहनेवालों पर इसी प्रकार आ पड़ेगा। इसलिये जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के साम्हने खड़े होने के योग्य बनो।”—लूका 21:34-36.

13. याकूब ने परमेश्‍वर के वचन की तुलना किससे की?

13 बाइबल के एक लेखक याकूब ने अपने साथी मसीहियों को बढ़ावा दिया कि वे परमेश्‍वर के वचन की मदद से खुद की ईमानदारी से जाँच करें। उसने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा: “वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं। क्योंकि जो कोई वचन का सुननेवाला हो, और उस पर चलनेवाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्वाभाविक मुंह दर्पण में देखता है। इसलिये कि वह अपने आप को देखकर चला जाता, और तुरन्त भूल जाता है कि मैं कैसा था। पर जो व्यक्‍ति स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपने काम में इसलिये आशीष पाएगा कि सुनकर भूलता नहीं, पर वैसा ही काम करता है।”—याकू. 1:22-25.

14, 15. (क) परमेश्‍वर के साथ आपके रिश्‍ते को मज़बूत करने में बाइबल कैसे आपकी मदद कर सकती है? (ख) हमें किन सवालों पर गहराई से सोचना चाहिए?

14 आम तौर पर लोग आईने में देखकर यह पक्का करते हैं कि वे ठीक से तैयार हुए हैं या नहीं। जैसे, आईने में देखकर अगर एक आदमी को पता चलता है कि उसकी टाई टेढ़ी है, तो वह उसे ठीक करता है। जब एक स्त्री आईना देखती है और उसे पता चलता है कि उसके बाल सही से नहीं बने हैं, तो वह उन्हें फिर से सँवारती है। बाइबल भी एक आईना है, जो हमें यह देखने में मदद देती है कि हम कैसे इंसान हैं। अगर हम लगातार इसकी मदद से खुद की जाँच करें और जहाँ कमी दिखती है उसे ठीक करें, तो हम बाइबल को एक आईने की तरह इस्तेमाल कर रहे होंगे। लेकिन अगर हम आईने में देखकर भी अपनी कमियों को ठीक न करें, तो आईना देखने का क्या फायदा? इसलिए अक्लमंदी इसी में है कि हम परमेश्‍वर की “सिद्ध व्यवस्था” या बाइबल के मुताबिक अपनी जाँच करें और अपनी कमियों को सुधारें। इस तरह हम वचन पर “चलनेवाले” बनेंगे। अगर किसी को लगता है कि यहोवा और सच्चाई के लिए उसका प्यार पहले से कम हो गया है, तो उसे इन सवालों पर विचार करना चाहिए: ‘मेरी ज़िंदगी में क्या दबाव और समस्याएँ हैं? मैं उनका कैसे सामना कर रहा हूँ? बीते समय में, मैंने इनका कैसे सामना किया था? क्या मेरे रवैए में कोई बदलाव आया है?’ खुद की जाँच करने पर अगर आपको कुछ कमियाँ नज़र आती हैं, तो उन्हें नज़रअंदाज़ मत कीजिए। और जो फेरबदल करने की ज़रूरत है, उसे जल्द-से-जल्द कीजिए।—इब्रा. 12:12, 13.

15 इस तरह मनन करने से आपको सही लक्ष्य रखने में मदद मिलेगी, ताकि आप एक मसीही के तौर पर तरक्की कर सकें। परमेश्‍वर की प्रेरणा से प्रेरित पौलुस ने अपने सहकर्मी तीमुथियुस को सलाह दी कि वह अपनी सेवा में और भी तरक्की करे। उसने जवान तीमुथियुस से कहा, “उन बातों को सोचता रह और उन्हीं में अपना ध्यान लगाए रह, ताकि तेरी उन्‍नति सब पर प्रगट हो।” हमें भी इस बात पर गहराई से सोचना चाहिए कि परमेश्‍वर के वचन की मदद से हम मसीही सेवा के किन पहलुओं में तरक्की कर सकते हैं।—1 तीमु. 4:15.

16. जब आप परमेश्‍वर के वचन की मदद से खुद की जाँच करते हैं, तो आपको किस बात से बचे रहने की ज़रूरत है?

16 ज़ाहिर है कि जब आप ईमानदारी से खुद की जाँच करेंगे, तो आपको अपने अंदर कुछ खामियाँ नज़र आएँगी। मगर इससे निराश मत होइए। क्योंकि खुद की जाँच करने का यही तो मकसद है कि हम पता कर सकें कि हमें कहाँ सुधार करने की ज़रूरत है। लेकिन शैतान चाहता है कि एक मसीही अपनी कमज़ोरियों को लेकर यह मान बैठे कि वह किसी लायक नहीं। यही नहीं, परमेश्‍वर पर यह इलज़ाम लगाया गया है कि उसकी सेवा में एक इंसान चाहे जितनी मेहनत करे, वह उसकी नज़र में कोई मोल नहीं रखता। (अय्यू. 15:15, 16; 22:3) लेकिन यह सरासर झूठ है। क्योंकि यीशु ने ज़ोर देकर बताया कि परमेश्‍वर हममें से हरेक को अनमोल समझता है। (मत्ती 10:29-31 पढ़िए।) इसलिए एक बार जब आपको अपनी खामियाँ पता चल जाती हैं, तो खुद को नाकाबिल महसूस करने के बजाय, नम्रता से उन्हें कबूल कीजिए। और ठान लीजिए कि आप यहोवा की मदद से उन्हें दूर करने की कोशिश करेंगे। (2 कुरि. 12:7-10) अगर बीमारी या ढलती उम्र की वजह से आप परमेश्‍वर की सेवा में उतना नहीं कर पा रहे हैं, जितना आप चाहते हैं, तो ऐसे लक्ष्य रखिए जिन्हें आप हासिल कर सकें। लेकिन चाहे जो भी हो परमेश्‍वर के लिए अपने प्यार को कम मत होने दीजिए।

हम किन बातों के लिए एहसानमंद हो सकते हैं

17, 18. आपमें जो प्यार पहले था, उसे बढ़ाने से क्या फायदे होंगे?

17 आपमें जो प्यार पहले था, उसे लगातार बढ़ाने से आपको कई फायदे होंगे। आप परमेश्‍वर के बारे में अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं। साथ ही, वह आपको प्यार से जो मार्गदर्शन देता है, उसके लिए आप अपनी कदरदानी बढ़ा सकते हैं। (नीतिवचन 2:1-9; 3:5, 6 पढ़िए।) भजनहार ने कहा, “[यहोवा के धर्ममय कानून का] पालन करने से बड़ा ही प्रतिफल मिलता है।” “यहोवा के नियम विश्‍वासयोग्य हैं, साधारण लोगों को बुद्धिमान बना देते हैं।” इतना ही नहीं, एक भजनहार ने यह भी कहा कि “क्या ही धन्य [खुश] हैं वे जो चाल के खरे हैं, और यहोवा की व्यवस्था पर चलते हैं!”—भज. 19:7, 11; 119:1.

18 आप इस बात से ज़रूर सहमत होंगे कि परमेश्‍वर के एहसानमंद होने के लिए आपके पास कई वाजिब कारण हैं। जैसे, आप जानते हैं कि दुनिया में आज जो कुछ हो रहा है उसकी वजह क्या है। आप उन सारे इंतज़ामों का फायदा उठा रहे हैं, जो परमेश्‍वर ने अपने लोगों के लिए किए हैं। और हाँ, आप इस बात के लिए भी एहसानमंद होंगे कि यहोवा ने आपको दुनिया-भर में फैली अपनी कलीसिया का हिस्सा होने और अपना साक्षी बनने का मौका दिया है। सोचिए, यहोवा ने आपको कितनी सारी आशीषें दी हैं! अगर आप उन्हें गिनने की कोशिश करें, तो शायद आप गिन नहीं पाएँगे। लेकिन फिर भी जब आप उन आशीषों पर मनन करते हैं, तो दरअसल आप इस सलाह पर चल रहे होते हैं, “जो कुछ तेरे पास है, उसे थामे रह।”—प्रका. 3:11.

19. सालों के दौरान आपका विश्‍वास कैसे मज़बूत हुआ है, इस पर मनन करने के अलावा, परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत करने के लिए आप और क्या कर सकते हैं?

19 आपके पास जो कुछ है, उसे आप कैसे थामे रह सकते हैं? एक तरीका है, इस बात पर मनन करना कि सालों के दौरान आपका विश्‍वास कैसे मज़बूत हुआ है। और प्रहरीदुर्ग पत्रिका में भी ऐसी कई बातों पर बार-बार ज़ोर दिया गया है, जो परमेश्‍वर के साथ हमारे रिश्‍ते को मज़बूत करने के लिए ज़रूरी हैं। जैसे, प्रार्थना, मसीही सभाओं में हाज़िर होना और उनमें हिस्सा लेना, साथ ही जोश के साथ प्रचार करना। ये बातें आपको अपना पहला सा प्रेम बरकरार रखने और उसे बढ़ाने में मदद दे सकती हैं।—इफि. 5:10; 1 पत. 3:15; यहू. 20, 21.

आप क्या जवाब देंगे?

• जिन वजह से आप यहोवा से प्यार करने लगे थे, उनसे आज आपका हौसला कैसे बढ़ सकता है?

• सालों के दौरान आपको जो अनुभव हुए हैं, उन पर मनन करने से आपको किस बात का यकीन हो सकता है?

• आपमें परमेश्‍वर के लिए कितना प्यार है, इसकी जाँच करना क्यों ज़रूरी है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीर]

सच्चाई के बारे में आपको क्या बात भा गयी थी और किस बात ने आपको सच्चाई का यकीन दिलाया था?

[पेज 25 पर तसवीर]

क्या आपको खुद में ऐसी खामियाँ नज़र आती हैं, जिन्हें सुधारने की ज़रूरत है