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मुश्‍किल को किया पार

मुश्‍किल को किया पार

मुश्‍किल को किया पार

मध्य अफ्रीका में तीन नौजवान भाई अधिवेशन में जाना चाहते थे। लेकिन उनके आगे एक समस्या थी। अधिवेशन की जगह उनके यहाँ से करीब 90 किलोमीटर दूर थी और रास्ता ऊबड़-खाबड़ और धूल-मिट्टी से भरा था। यही नहीं, उनके पास आने-जाने का कोई साधन भी नहीं था। इसलिए उन्होंने दूसरों से तीन साइकिल माँगने का फैसला किया। मगर अफसोस उन्हें ढंग की कोई साइकिल नहीं मिल पायी।

जब उनकी कलीसिया के एक प्राचीन को सारा हाल पता चला, तो उसने उन्हें अपनी एक साइकिल दी। हालाँकि वह साइकिल थी तो पुरानी, मगर वह उनके काम आ सकती थी। उस प्राचीन ने उन्हें बताया कि कैसे वह और दूसरे भाई-बहन अधिवेशन में जाने के लिए पहले से तैयारी करते थे। फिर उसने उन्हें एक सुझाव दिया कि किस तरह वे एक साइकिल से ही अपना सफर तय कर सकते हैं। प्राचीन का सुझाव अच्छा था, मगर उसके मुताबिक काम करने के लिए उन्हें योजना बनानी थी। उन नौजवान भाइयों ने कैसे एक ही साइकिल से सफर तय किया?

दिन की चिलचिलाती धूप से बचने के लिए, वे सुबह तड़के उठ गए और साइकिल पर अपना-अपना सामान लाद दिया। फिर एक भाई साइकिल चलाकर आगे निकल गया और बाकी दो लंबे-लंबे डग भरते हुए पैदल चलने लगे। इसके बाद, करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर साइकिल चलानेवाला भाई रुक गया और उसने साइकिल एक पेड़ के सहारे टिका दी। उसने साइकिल ऐसी जगह खड़ी की, जहाँ से वह पीछे आ रहे भाइयों को दिखायी देती रहे, ताकि कोई उसे “चुरा” न ले जाए। और फिर वह भाई पैदल चलने लगा।

पीछे चले आ रहे दोनों भाई जब साइकिल के पास पहुँचे, तो उनमें से एक ने साइकिल उठायी और चल दिया। फिर आधा किलोमीटर का सफर तय करने के बाद, उसने भी साइकिल रास्ते के किनारे खड़ी कर दी, ताकि पीछे आनेवाला भाई उसे चला सके। इस तरह पूरे रास्ते उन्होंने बारी-बारी से साइकिल चलायी। नतीजा, उन्हें 90 किलोमीटर के सफर में करीब 60 किलोमीटर ही पैदल चलना पड़ा। यह सब इसलिए हो पाया क्योंकि उन्होंने अच्छी योजना बनायी थी और उनका इरादा पक्का था। इन भाइयों को अपनी मेहनत का बढ़िया फल मिला। वे अपने मसीही भाई-बहनों से मिल पाए और उन्होंने अधिवेशन का पूरा आनंद उठाया। (व्यव. 31:12) क्या इस साल अधिवेशन में हाज़िर होने के लिए आप भी पूरी-पूरी कोशिश करेंगे?