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यहोवा के अधिकार को कबूल कीजिए

यहोवा के अधिकार को कबूल कीजिए

यहोवा के अधिकार को कबूल कीजिए

“परमेश्‍वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं।”—1 यूह. 5:3.

1, 2. (क) आज कई लोगों को किसी के आगे झुकना गवारा क्यों नहीं होता? (ख) अधिकार को ठुकरानेवाले क्या वाकई किसी के अधीन नहीं होते? समझाइए।

 “अधिकार” शब्द सुनते ही आज कई लोग खीज उठते हैं, क्योंकि उन्हें किसी के आगे झुकना गवारा नहीं होता। अधिकार ठुकरानेवालों की यह सोच होती है: “मैं अपनी मरज़ी का मालिक हूँ। किसी को यह बताने का कोई हक नहीं कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं।” मगर क्या ये लोग वाकई किसी के अधीन नहीं होते? हकीकत कुछ और ही बताती है। वे उन अनगिनत लोगों के स्तरों पर चलते हैं, जो “इस संसार के सदृश” हैं। (रोमि. 12:2) वे आज़ाद नहीं, बल्कि जैसे प्रेरित पतरस ने बताया, वे “भ्रष्टता के दास” हैं। (2 पत. 2:19, NHT) वे “इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम,” शैतान के इशारों पर चलते हैं।—इफि. 2:2.

2 एक लेखक ने यह शेखी बघारी: “मेरे लिए क्या सही है, क्या गलत, यह तय करने का अधिकार मैंने न तो अपने माता-पिता को, न किसी पादरी या धर्म-गुरु को और ना ही बाइबल को दिया है।” यह सच है कि कुछ लोग अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल करते हैं। लेकिन क्या उनकी वजह से इस नतीजे पर पहुँचना सही होगा कि हमें किसी के भी मार्गदर्शन की ज़रूरत नहीं? अगर हम अखबार की सुर्खियों पर नज़र डालें, तो हमें इस बात के ढेरों सबूत मिलेंगे कि अधिकार को ठुकराने का क्या ही भयानक अंजाम होता है। आज इंसानों को पहले से कहीं ज़्यादा मार्गदर्शन की ज़रूरत है। मगर दुःख की बात है कि जब उन्हें मार्गदर्शन दिया जाता है, तो ज़्यादातर उन्हें ठुकरा देते हैं।

अधिकार के बारे में हमारा नज़रिया

3. पहली सदी के मसीहियों ने कैसे दिखाया कि उन्होंने इंसानी अधिकारियों की हर बात आँख मूँदकर नहीं मानी?

3 अधिकार के बारे में हम मसीहियों का नज़रिया, दुनिया के नज़रिए से बिलकुल अलग है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम इंसानी अधिकारियों की हर बात आँख मूँदकर मान लेते हैं। हम कभी-कभी उनकी आज्ञा मानने से इनकार करते हैं। पहली सदी के मसीहियों ने भी ऐसा ही किया था। मिसाल के लिए, जब महायाजक और महासभा के बाकी अधिकारियों ने प्रेरितों को प्रचार बंद करने का हुक्म दिया, तो प्रेरित डरकर उनके आगे झुके नहीं। उन्होंने इन अधिकारियों के अधीन रहने के लिए सही काम करना नहीं छोड़ा।—प्रेरितों 5:27-29 पढ़िए।

4. इब्रानी शास्त्र में से किन लोगों की मिसालें दिखाती हैं कि परमेश्‍वर के कई सेवकों ने ज़माने से अलग रास्ता इख्तियार किया?

4 मसीहियों के ज़माने से पहले, परमेश्‍वर के कई सेवकों ने भी ऐसा ही अटल इरादा दिखाया था। मूसा की मिसाल लीजिए। “उसे पाप में थोड़े दिन के सुख भोगने से परमेश्‍वर के लोगों के साथ दुख भोगना और उत्तम लगा।” इसलिए उसने “राजा के क्रोध” की परवाह न करते हुए, “फिरौन की बेटी का पुत्र कहलाने से इन्कार किया।” (इब्रा. 11:24, 25, 27) यूसुफ ने पोतीपर की पत्नी के साथ लैंगिक संबंध रखने से साफ इनकार कर दिया, यह जानते हुए भी कि वह अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करके उससे बदला ले सकती थी। (उत्प. 39:7-9) दानिय्येल ने ‘अपने मन में ठान लिया कि वह राजा का भोजन खाकर खुद को अपवित्र नहीं करेगा।’ हालाँकि बाबुल के खोजों के प्रधान ने दानिय्येल के इस फैसले पर एतराज़ जताया, मगर दानिय्येल अपने इरादे पर डटा रहा। (दानि. 1:8-14) ये मिसालें दिखाती हैं कि प्राचीन समय से परमेश्‍वर के लोगों ने हमेशा वही किया, जो सही है, फिर चाहे उसका अंजाम जो भी रहा हो। उन्होंने कभी-भी लोगों की मंज़ूरी पाने के लिए उनके कहे मुताबिक काम नहीं किया और ना ही आज, हमें ऐसा करना चाहिए।

5. अधिकार के बारे में हमारा नज़रिया, दुनिया के नज़रिए से कैसे अलग है?

5 अपने विश्‍वास पर अटल बने रहने का यह मतलब नहीं कि हम ज़िद्दी हैं। और ना ही हम उन लोगों की तरह हैं जो किसी सरकार के खिलाफ बगावत करते हैं। इसके बजाय, हम अपने विश्‍वास पर इसलिए अटल बने रहते हैं क्योंकि हम इंसान से बढ़कर यहोवा के अधिकार को कबूल करते हैं। जब इंसान का कोई कानून, परमेश्‍वर की आज्ञा के खिलाफ जाता है, तो ऐसे में हमें क्या करना चाहिए, यह साफ है। पहली सदी के प्रेरितों की तरह, हम मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करेंगे।

6. क्यों यहोवा की आज्ञा मानने में ही हमारी भलाई है?

6 परमेश्‍वर के अधिकार को कबूल करने में किस बात ने हमारी मदद की है? नीतिवचन 3:5, 6 में दी इस सलाह ने कि “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” हम मानते हैं कि परमेश्‍वर हमसे जो कुछ करने को कहता है, उसमें हमारी ही भलाई है। (व्यवस्थाविवरण 10:12, 13 पढ़िए।) दरअसल, यहोवा ने इस्राएलियों से कहा कि वह ‘उनके लाभ के लिये उन्हें शिक्षा देता है और जिस मार्ग से उन्हें जाना है, उसी मार्ग पर उन्हें ले चलता है।’ इसके बाद उसने कहा: “भला होता कि तू ने मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुना होता! तब तेरी शान्ति नदी के समान और तेरा धर्म समुद्र की लहरों के नाईं होता।” (यशा. 48:17, 18) हमें इन शब्दों पर पूरा भरोसा है। हमें पक्का यकीन है कि परमेश्‍वर की आज्ञा मानने में ही हमारी भलाई है।

7. जब हमें समझ में नहीं आता कि परमेश्‍वर के वचन में फलाँ आज्ञा क्यों दी गयी है, तो हमें क्या करना चाहिए?

7 कई बार हमें समझ में नहीं आता कि परमेश्‍वर के वचन में फलाँ आज्ञा क्यों दी गयी है। फिर भी, हम यहोवा के अधिकार को कबूल करते हैं और उस आज्ञा का पालन करते हैं। ऐसा करने का यह मतलब नहीं कि यहोवा पर हमारा विश्‍वास अंधा है, बल्कि यह दिखाता कि हमें इस बात पर भरोसा है कि वह हमेशा हमारी भलाई चाहता है। इसके अलावा, यहोवा की आज्ञा मानना यह भी दिखाता है कि हम उससे प्यार करते हैं। प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा: “परमेश्‍वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें।” (1 यूह. 5:3) लेकिन आज्ञा मानने से जुड़ा एक और पहलू है, जिस पर हमें ध्यान देने की ज़रूरत है।

अपने ज्ञानेंद्रियों को पक्का करना

8. अपने ‘ज्ञानेन्द्रियों को पक्का’ करने और यहोवा के अधिकार को कबूल करने के बीच क्या नाता है?

8 बाइबल बताती है कि हमें अपने ‘ज्ञानेन्द्रियों को भले बुरे में भेद करने के लिये पक्का’ करना चाहिए। (इब्रा. 5:14) इसलिए हमें एक रोबोट की तरह परमेश्‍वर की आज्ञाओं को नहीं मानना चाहिए। इसके बजाय, हमें यहोवा के स्तरों को एक कसौटी की तरह इस्तेमाल करके ‘भले बुरे में भेद करना’ सीखना चाहिए। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम खुद देख पाते हैं कि यहोवा के मार्गों पर चलना वाकई बुद्धिमानी है। नतीजा, हम भजनहार की तरह यह कहने के लिए उभारे जाते हैं: “तेरी व्यवस्था मेरे हृदय में बसी है।”—भज. 40:8, NHT.

9. हम यहोवा के स्तरों के मुताबिक अपने विवेक को कैसे ढाल सकते हैं, और ऐसा करना क्यों ज़रूरी है?

9 अगर हम भजनहार की तरह, परमेश्‍वर की व्यवस्था का मोल जानना चाहते हैं, तो हमें बाइबल पढ़ने के बाद उसमें लिखी बातों पर मनन करना होगा। मिसाल के लिए, जब हम यहोवा की किसी आज्ञा या सिद्धांत के बारे में पढ़ते हैं, तो हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘यह आज्ञा या सिद्धांत बुद्धि-भरा क्यों है? इसे मानना मेरे लिए फायदेमंद क्यों है? जिन लोगों ने परमेश्‍वर की इस आज्ञा या सिद्धांत को दरकिनार किया है, उन्हें क्या बुरे अंजाम भुगतने पड़े हैं?’ ऐसे सवाल पूछकर हम अपने विवेक को यहोवा की सोच के मुताबिक ढाल पाते हैं। फिर, हम उसकी मरज़ी के मुताबिक फैसला ले पाते हैं। इस तरह, हम लगातार ‘प्रभु की इच्छा समझ’ पाएँगे और उसकी आज्ञाओं को मान पाएँगे। (इफि. 5:17) मगर ऐसा करना हमेशा आसान नहीं।

परमेश्‍वर के अधिकार को कमज़ोर करने की शैतान की कोशिश

10. ज़िंदगी का एक दायरा क्या है, जिसमें शैतान ने परमेश्‍वर के अधिकार को कमज़ोर करने की कोशिश की है?

10 मुद्दतों से शैतान, परमेश्‍वर के अधिकार को कमज़ोर करने की कोशिश करता आया है। उसकी मनमानी करने की भावना आज ज़िंदगी के कई दायरों में देखी जा सकती है। मिसाल के लिए, बहुत-से लोग परमेश्‍वर के ठहराए शादी के इंतज़ाम के लिए आदर नहीं दिखाते। कुछ लोग ऐसे हैं, जो बगैर शादी किए एक-साथ रहने का चुनाव करते हैं, जबकि दूसरे ऐसे हैं, जो अपने जीवन-साथी से छुटकारा पाने का रास्ता ढूँढ़ते हैं। ये लोग शायद एक जानी-मानी फिल्म अभिनेत्री के इस दावे से सहमत हों: “एक ही जीवन-साथी के साथ पूरी ज़िंदगी बिताना, स्त्री-पुरुष दोनों के लिए नामुमकिन है।” उसने यह भी कहा: “आज तक मैं ऐसे किसी भी शख्स से नहीं मिली, जो अपने जीवन-साथी का वफादार रहा हो या रहना चाहता हो।” उसी तरह, एक और मशहूर अभिनेता अपने टूटे रिश्‍तों को याद करते हुए कहता है: “मुझे नहीं लगता कि हमें एक ही इंसान के साथ अपनी सारी ज़िंदगी गुज़ारने के लिए बनाया गया है।” तो फिर, सवाल उठता है कि शादी के बारे में हमारा नज़रिया क्या है? क्या इस मामले में हम यहोवा के अधिकार को मानते हैं? या क्या दुनिया का यह रवैया कि “सब चलता है,” हमारे अंदर भी घर करने लगा है?

11, 12. (क) जवानों के लिए यहोवा के अधिकार को कबूल करना क्यों मुश्‍किल हो सकता है? (ख) परमेश्‍वर के नियमों और सिद्धांतों को ठुकराना मूर्खता है, यह समझाने के लिए एक अनुभव बताइए।

11 क्या आप यहोवा की सेवा करनेवाले एक जवान हैं? अगर हाँ, तो आप शैतान का खास निशाना बनते हैं। वह आपके दिल में यह बात बिठाना चाहता है कि यहोवा के अधीन रहने से आपको कोई फायदा नहीं होगा। वह “जवानी की अभिलाषाओं” और हमउम्र साथियों के दबाव के ज़रिए आपको यह यकीन दिलाने की कोशिश करता है कि यहोवा की आज्ञाओं को मानना वाकई एक बोझ है। (2 तीमु. 2:22) शैतान को इसमें कामयाब होने मत दीजिए। इसके बजाय, यह देखने की कोशिश कीजिए कि परमेश्‍वर के स्तरों पर चलना ही बुद्धिमानी है। मिसाल के लिए, बाइबल कहती है: “व्यभिचार से बचे रहो।” (1 कुरि. 6:18) इस मामले में खुद से ये सवाल पूछिए: ‘यह आज्ञा बुद्धि-भरी क्यों है? इसे मानने से मुझे क्या फायदा होगा?’ आप शायद कुछ ऐसे लोगों को जानते हों, जिन्हें परमेश्‍वर की सलाह को ठुकराने की वजह से भारी कीमत चुकानी पड़ी है। मगर आज क्या वे वाकई खुश हैं? यहोवा के संगठन से अलग होकर क्या वे अपनी ज़िंदगी में ज़्यादा सुखी हैं? क्या उन्हें सचमुच खुशी का कोई राज़ मिल गया है, जो परमेश्‍वर के बाकी सेवकों को नहीं मिला है?यशायाह 65:14 पढ़िए।

12 गौर कीजिए कि कुछ वक्‍त पहले, शैरन नाम की एक मसीही ने क्या कहा: “यहोवा के नियमों को ताक पर रखने की वजह से मुझे एड्‌स हो गया है। मैं अकसर उन बीते दिनों को याद करती हूँ, जो मैंने खुशी-खुशी यहोवा की सेवा में बिताए थे।” शैरन को एहसास हुआ कि यहोवा की आज्ञाओं को तोड़ना कितनी बड़ी मूर्खता है, जबकि उसे उन आज्ञाओं की कदर करनी चाहिए थी। सच, यहोवा की आज्ञाएँ मानने से हमारी हिफाज़त होती है। अपनी बात कहने के सात हफ्ते बाद, शैरन की मौत हो गयी। उसका अनुभव दिखाता है कि जो लोग इस संसार के हो जाते हैं, उनको देने के लिए शैतान के पास कुछ नहीं है। “झूठ का पिता” वादे तो ढेर सारे करता है, मगर सब-के-सब खोखले निकलते हैं। ठीक जैसे हव्वा से किया गया उसका वादा खोखला निकला। (यूह. 8:44) सचमुच, यहोवा के अधिकार को कबूल करना ही बुद्धिमानी है।

मनमानी करने की भावना से दूर रहिए

13. एक दायरा क्या है, जिसमें हमें मनमानी करने की भावना से दूर रहना चाहिए?

13 यहोवा के अधिकार को कबूल करने के लिए ज़रूरी है कि हम मनमानी करने की भावना से दूर रहें। अगर हममें घमंड होगा, तो हमें लग सकता है कि हमें किसी के मार्गदर्शन की ज़रूरत नहीं। उदाहरण के लिए, हम शायद उस सलाह को ठुकराएँ, जो परमेश्‍वर के लोगों की अगुवाई करनेवाले हमें देते हैं। परमेश्‍वर ने एक ऐसा इंतज़ाम ठहराया है, जिसके तहत विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग समय पर आध्यात्मिक भोजन मुहैया कराता है। (मत्ती 24:45-47) हमें नम्रता से कबूल करना चाहिए कि आज यहोवा इसी इंतज़ाम के ज़रिए अपने लोगों की देखभाल कर रहा है। इस मामले में वफादार प्रेरितों के जैसा रवैया दिखाइए। जब कुछ चेलों ने यीशु की बातों पर ठोकर खाकर उसके पीछे चलना छोड़ दिया, तब यीशु ने प्रेरितों से पूछा: “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” तब पतरस ने जवाब दिया: “हे प्रभु हम किस के पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं।”—यूह. 6:66-68.

14, 15. हमें क्यों नम्रता से बाइबल की सलाह माननी चाहिए?

14 यहोवा के अधिकार को कबूल करने में, उसके वचन बाइबल में दी सलाह को मानना भी शामिल है। मिसाल के लिए, विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास ने हमें लगातार ‘जागते और सावधान रहने’ की सलाह दी है। (1 थिस्स. 5:6) यह सलाह खासकर इन अंतिम दिनों में बिलकुल सही है, जब बहुत-से लोग ‘अपस्वार्थी और लोभी’ बन गए हैं। (2 तीमु. 3:1, 2) क्या दुनिया के इस रवैए का हम पर भी असर हो सकता है? हो सकता है। अगर हम दुनियावी लक्ष्यों के पीछे भागें, तो हम आध्यात्मिक मायने में ऊँघने लग सकते हैं या फिर हम पर ऐशो-आराम की चीज़ें बटोरने का धुन सवार हो सकता है। (लूका 12:16-21) इसलिए बाइबल की सलाह मानना और दुनियावालों की तरह स्वार्थ की ज़िंदगी जीने से दूर रहना वाकई अक्लमंदी की बात है!—1 यूह. 2:16.

15 विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास का तैयार किया गया आध्यात्मिक भोजन, प्राचीनों के ज़रिए अलग-अलग कलीसियाओं तक पहुँचाया जाता है। बाइबल हमें सलाह देती है: “अपने अगुवों की मानो; और उन के आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं।” (इब्रा. 13:17) क्या इसका मतलब यह है कि कलीसिया के प्राचीन कभी कोई गलती नहीं करते? जी नहीं, ऐसी बात नहीं है! मगर इंसानों से ज़्यादा परमेश्‍वर उनकी खामियों के बारे में अच्छी तरह जानता है। फिर भी, वह हमसे उम्मीद करता है कि हम प्राचीनों के अधीन रहें। और प्राचीनों की खामियों के बावजूद जब हम उन्हें अपना पूरा सहयोग देते हैं, तो हम असल में यहोवा के अधिकार को कबूल कर रहे होते हैं।

नम्रता की अहमियत

16. हम मसीही कलीसिया के मुखिया यीशु के लिए आदर कैसे दिखा सकते हैं?

16 हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि यीशु ही कलीसिया का मुखिया है। (कुलु. 1:18) यही एक वजह है कि हमें क्यों नम्र होकर प्राचीनों के निर्देशनों पर चलना चाहिए और उन्हें ‘बहुत आदर’ देना चाहिए। (1 थिस्स. 5:12, 13) बेशक कलीसिया के प्राचीन भी यीशु को अपनी अधीनता दिखाते हैं। वह कैसे? वे कलीसिया को अपनी विचारधारा नहीं, बल्कि परमेश्‍वर की बातें सिखाते हैं। इस तरह, वे बाइबल में ‘लिखी हुई बातों से आगे नहीं बढ़ते हैं।’—1 कुरि. 4:6.

17. बड़ा बनने की चाहत क्यों खतरनाक है?

17 कलीसिया में सभी को सावधान रहने की ज़रूरत है कि वे अपनी महिमा पाने की कोशिश न करें। (नीति. 25:27) बाइबल दिखाती है कि पहली सदी में एक चेला इस फंदे में जा फँसा था। इस चेले के बारे में प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा: “दियुत्रिफेस जो उन में बड़ा बनना चाहता है, हमें ग्रहण नहीं करता। सो जब मैं आऊंगा, तो उसके कामों की जो वह कर रहा है सुधि दिलाऊंगा, कि वह हमारे विषय में बुरी बुरी बातें बकता है।” (3 यूह. 9, 10) इससे आज हम भी एक सबक सीख सकते हैं। वह यह कि हमें अपने दिल से बड़ा बनने की चाहत को निकाल फेंकना चाहिए। क्योंकि बाइबल कहती है: “विनाश से पहिले गर्व, और ठोकर खाने से पहिले घमण्ड होता है।” जो लोग परमेश्‍वर के अधिकार को कबूल करते हैं, उन्हें अपनी हद पार करने से खबरदार रहना चाहिए। वरना आखिर में उन्हें अपमान ही सहना पड़ेगा।—नीति. 11:2; 16:18.

18. क्या बात हमें यहोवा के अधिकार को कबूल करने में मदद देगी?

18 तो फिर, ठान लीजिए कि आप यहोवा के अधिकार को कबूल करेंगे और मनमानी करने की भावना को ठुकराएँगे। समय-समय पर इस बात पर मनन कीजिए कि आपको यहोवा की सेवा करने का कितना बड़ा सम्मान मिला है। आपका परमेश्‍वर के लोगों में से एक होना इस बात का सबूत है कि उसने अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए आपको अपनी तरफ खींचा है। (यूह. 6:44) यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को कभी कम मत आँकिए। ज़िंदगी के हर दायरे में यहोवा के अधिकार को कबूल कीजिए और मनमानी करने की भावना को ठुकराइए।

क्या आपको याद है?

• यहोवा के अधिकार को कबूल करने में क्या शामिल है?

• अपने ज्ञानेन्द्रियों को पक्का करने और यहोवा के अधिकार को कबूल करने के बीच क्या नाता है?

• शैतान किन दायरों में परमेश्‍वर के अधिकार को कमज़ोर करने की कोशिश करता है?

• यहोवा के अधिकार को कबूल करने में नम्रता क्यों ज़रूरी है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर तसवीर]

“मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है”

[पेज 20 पर तसवीर]

परमेश्‍वर के स्तरों पर चलना हमेशा बुद्धिमानी है