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हमें किन गुणों का पीछा करना चाहिए?

हमें किन गुणों का पीछा करना चाहिए?

हमें किन गुणों का पीछा करना चाहिए?

‘धार्मिकता, ईश्‍वरीय भक्‍ति, विश्‍वास, प्रेम, धीरज और नर्मदिली का पीछा कर।’—1 तीमु. 6:11, NW.

1. उदाहरण देकर समझाइए कि शब्द “पीछा कर” का क्या मतलब है?

 “पीछा कर,” यह शब्द सुनकर आपके मन में क्या आता है? हो सकता है, आपको मूसा के दिनों की याद आए, जब मिस्री सेना इस्राएलियों का ‘पीछा करते हुए’ लाल समुद्र तक पहुँची और उसी समुद्र में डूब मरी। (निर्ग. 14:23) या आपको प्राचीन इस्राएल में एक ऐसे इंसान की याद आए, जो अनजाने में किसी का खून करता है। इससे पहले कि ‘खून का पलटा लेनेवाला अपने क्रोध के ज्वलन में उसका पीछा करके उसको जा पकड़े और उसे मार डाले,’ उसे फौरन छः शरणनगरों में से किसी एक में भागना था।—व्यव. 19:6.

2. (क) परमेश्‍वर ने कुछ मसीहियों को किस इनाम का पीछा करने का बढ़ावा दिया है? (ख) आज परमेश्‍वर ने ज़्यादातर मसीहियों के आगे क्या आशा रखी है?

2 ऊपर दिए बाइबल के उदाहरणों के बिलकुल उलट, गौर कीजिए कि प्रेरित पौलुस ने पीछा करने के बारे में क्या कहा: “[मैं] निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि वह इनाम पाऊं, जिस के लिये परमेश्‍वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है।” (फिलि. 3:14) बाइबल बताती है कि 1, 44, 000 अभिषिक्‍त मसीहियों को, जिनमें पौलुस भी शामिल है, स्वर्ग में जीने का इनाम मिलेगा। वे यीशु मसीह के साथ धरती पर हज़ार साल के लिए राज करेंगे। परमेश्‍वर ने इन मसीहियों को क्या ही शानदार लक्ष्य का पीछा करने का बढ़ावा दिया है! लेकिन आज ज़्यादातर सच्चे मसीहियों के आगे एक दूसरी आशा है। यहोवा उन्हें फिरदौस में बढ़िया सेहत और हमेशा की ज़िंदगी देने का वादा करता है, जिसे आदम और हव्वा ने गँवा दिया था।—प्रका. 7:4, 9; 21:1-4.

3. हम परमेश्‍वर की अपार कृपा के लिए अपनी एहसानमंदी कैसे दिखा सकते हैं?

3 हम इंसान पापी हैं, इसलिए हम चाहे जितने भी अच्छे काम करें, हम कभी इनकी बिनाह पर अनंत जीवन हासिल नहीं कर सकते। (यशा. 64:6) यह जीवन हमें सिर्फ तभी मिल सकता है, जब हम परमेश्‍वर के प्यार-भरे इंतज़ाम यानी यीशु के छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास करेंगे। परमेश्‍वर की इस अपार कृपा के लिए हम अपनी एहसानमंदी कैसे दिखा सकते हैं? एक तरीका है, इस आज्ञा को मानना: ‘धार्मिकता, ईश्‍वरीय भक्‍ति, विश्‍वास, प्रेम, धीरज और नर्मदिली का पीछा कर।’ (1 तीमु. 6:11, NW) इन गुणों की गहराई से जाँच करने पर हमारा यह इरादा बुलंद होगा कि हम इनका “और भी अधिक” पीछा करें।—1 थिस्स. 4:1, NHT.

धार्मिकता . . . का पीछा कर”

4. धार्मिकता का पीछा करना क्यों ज़रूरी है, और इसके लिए एक इंसान को पहले क्या-क्या कदम उठाने चाहिए?

4 प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को लिखी अपनी दोनों पत्रियों में कुछ खास गुणों का पीछा करने के बारे में बताया। और हर बार उसने सबसे पहले “धर्म” या धार्मिकता के गुण का ज़िक्र किया। (1 तीमु. 6:11; 2 तीमु. 2:22) बाइबल की दूसरी आयतों में भी हमें धार्मिकता का पीछा करने का बढ़ावा दिया गया है। (नीति. 15:9; 21:21; यशा. 51:1) धार्मिकता का पीछा करने का सबसे पहला कदम है, ‘एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर और यीशु मसीह को, जिसे परमेश्‍वर ने भेजा है, जानना।’ (यूह. 17:3, NHT) फिर यह ज्ञान एक इंसान को अपने पिछले पापों का पश्‍चाताप करने और ‘लौट आने’ को उकसाएगा, ताकि वह परमेश्‍वर की मरज़ी पर चल सके।—प्रेरि. 3:19.

5. (क) परमेश्‍वर के साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम करने के लिए आपको क्या करना चाहिए? (ख) धार्मिकता का लगातार पीछा करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

5 परमेश्‍वर के साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम करने के लिए लाखों लोगों ने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया है। और इसे ज़ाहिर करने के लिए उन्होंने बपतिस्मा लिया है। अगर आप एक बपतिस्मा-शुदा मसीही हैं, तो आपके जीने के तरीके से ज़ाहिर होना चाहिए कि आप धार्मिकता का पीछा कर रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि ज़्यादातर मसीही ऐसा ही कर रहे हैं। धार्मिकता का पीछा करने का एक तरीका है, अपनी ज़िंदगी में अहम फैसले लेते वक्‍त बाइबल से यह जानने की कोशिश करना कि क्या ‘भला’ है और क्या ‘बुरा।’ (इब्रानियों 5:14 पढ़िए।) मिसाल के लिए, क्या आप एक अविवाहित मसीही हैं और आपकी शादी की उम्र हो चुकी है? ऐसे में क्या आपने ठान लिया है कि आप ऐसे किसी भी व्यक्‍ति के साथ रिश्‍ता नहीं जोड़ेंगे, जो बपतिस्मा-शुदा नहीं है? अगर आप धार्मिकता का पीछा कर रहे हैं, तो आपने ज़रूर ऐसा करने की ठान ली होगी।—1 कुरि. 7:39.

6. धार्मिकता का पीछा करने की शुरूआत कहाँ से होती है?

6 धर्मी होने और “बहुत धर्मी” होने में फर्क है। (सभो. 7:16) यीशु ने लोगों को खबरदार किया था कि वे खुद को दूसरों से ऊपर उठाने के लिए धार्मिकता का दिखावा न करें। (मत्ती 6:1) दरअसल देखा जाए, तो धार्मिकता का पीछा करने की शुरूआत हमारे दिल से होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो हमें अपने दिल में उठनेवाले गलत रवैए, इरादों, इच्छाओं और सोच को दुरुस्त करना होगा। अगर हम ऐसा लगातार करें, तो हम गंभीर पाप करने से दूर रहेंगे। (नीतिवचन 4:23 पढ़िए; याकूब 1:14, 15 से तुलना कीजिए।) इतना ही नहीं, यहोवा हमें आशीष देगा और हमें दूसरे ज़रूरी मसीही गुणों का पीछा करने में मदद देगा।

“ईश्‍वरीय भक्‍ति . . . का पीछा कर”

7. “ईश्‍वरीय भक्‍ति” का मतलब क्या है?

7 भक्‍ति में किसी के लिए समर्पण की भावना होना और उसके वफादार बने रहना शामिल है। एक बाइबल शब्दकोश के मुताबिक, जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “ईश्‍वरीय भक्‍ति” किया गया है, उसका मतलब है: “ऐसी भावना जिससे एक इंसान के दिल में परमेश्‍वर के लिए भय और गहरी श्रद्धा हमेशा बनी रहती है।” इस तरह की भक्‍ति दिखाने में इस्राएली बार-बार चूक गए थे। मिस्र से आज़ाद किए जाने के बाद भी उन्होंने कई बार यहोवा की आज्ञाओं को तोड़ दिया था।

8. (क) आदम के पाप करने की वजह से क्या सवाल खड़ा हुआ? (ख) परमेश्‍वर ने यह पवित्र “भेद” कैसे खोला?

8 सिद्ध इंसान आदम के पाप करने की वजह से यह सवाल खड़ा हुआ: “क्या कोई भी इंसान ईश्‍वरीय भक्‍ति दिखाने में सिद्ध साबित हो सकता है?” यह सवाल सदियों तक एक पवित्र “भेद” बना रहा। मगर जब यहोवा का ठहराया हुआ वक्‍त आया, तब उसने यह भेद खोला। कैसे? उसने अपने एकलौते बेटे, यीशु का जीवन एक भ्रूण के रूप में, मरियम के गर्भ में डाला। इस तरह, यीशु एक सिद्ध इंसान के रूप में पैदा हुआ। उसने अपनी पूरी ज़िंदगी के दौरान, यहाँ तक कि मौत से पहले अपमान झेलते वक्‍त भी दिखाया कि सच्चे परमेश्‍वर के लिए समर्पण की भावना होने और उसके वफादार बने रहने का क्या मतलब है। उसने अपनी प्रार्थनाओं से भी ज़ाहिर किया कि उसके दिल में अपने प्यारे पिता के लिए कितनी गहरी श्रद्धा है। (मत्ती 11:25; यूह. 12:27, 28) इसलिए यहोवा ने पौलुस को यह लिखने के लिए प्रेरित किया कि यीशु की ज़िंदगी, ईश्‍वरीय भक्‍ति की एक उम्दा मिसाल है।1 तीमुथियुस 3:16 पढ़िए।

9. हम ईश्‍वरीय भक्‍ति का पीछा कैसे कर सकते हैं?

9 पापी होने की वजह से हम सिद्ध तरीके से ईश्‍वरीय भक्‍ति नहीं दिखा सकते। फिर भी हम इसका पीछा ज़रूर कर सकते हैं। इसके लिए हमें मसीह के आदर्श पर करीबी से चलना होगा। (1 पत. 2:21) इस तरह हम ऐसे लोगों के जैसे नहीं होंगे, जो ‘भक्‍ति का भेष तो धरते हैं, पर उस की शक्‍ति को नहीं मानते।’ (2 तीमु. 3:5) लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि सच्ची भक्‍ति का हमारे बाहरी रूप से कोई लेना-देना नहीं। मिसाल के लिए, अपनी शादी का जोड़ा चुनते वक्‍त या यह तय करते वक्‍त कि खरीदारी करने के लिए हम क्या पहनेंगे, हमें एक बात ध्यान में रखने की ज़रूरत है। वह यह कि हमारे पहनावे से साफ झलकना चाहिए कि हम ‘परमेश्‍वर की भक्‍ति करनेवाले’ लोग हैं। (1 तीमु. 2:9, 10) जी हाँ, ईश्‍वरीय भक्‍ति का पीछा करने के लिए ज़रूरी है कि हम अपनी रोज़मर्रा ज़िंदगी में परमेश्‍वर के धर्मी स्तरों पर चलें।

“विश्‍वास . . . का पीछा कर”

10. अपने विश्‍वास को मज़बूत बनाए रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

10 रोमियों 10:17 पढ़िए। मज़बूत विश्‍वास पैदा करने और उसे बनाए रखने के लिए, हम मसीहियों को बाइबल में दी अनमोल सच्चाइयों पर लगातार मनन करना चाहिए। इस मामले में हमारी मदद करने के लिए “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने कई बेहतरीन किताबें-पत्रिकाएँ तैयार की हैं। इनमें से एक बढ़िया किताब है, वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा। इस किताब को इसलिए तैयार किया गया है, ताकि हम मसीह को और भी करीबी से जानें और उसके नक्शेकदम पर चल सकें। (मत्ती 24:45-47) इसके अलावा, दास वर्ग सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों का भी इंतज़ाम करता है, जिनमें से ज़्यादातर कार्यक्रमों में “मसीह के वचन” के बारे में बताया जाता है। आइए हम इन सभाओं का पूरा-पूरा फायदा उठाएँ और कार्यक्रमों में ‘और भी अधिक गहराई से ध्यान दें।’—इब्रा. 2:1.

11. विश्‍वास का पीछा करने में, प्रार्थना और आज्ञा मानना क्या भूमिका निभाते हैं?

11 मज़बूत विश्‍वास पैदा करने में एक और मदद है, प्रार्थना। यीशु के चेलों ने एक मौके पर उससे मिन्‍नट की: “हमारा विश्‍वास बढ़ा।” हम भी नम्रता के साथ परमेश्‍वर से यह गुज़ारिश कर सकते हैं। (लूका 17:5) अपना विश्‍वास बढ़ाने के लिए हमें पवित्र शक्‍ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, क्योंकि विश्‍वास ‘आत्मा का ही एक फल’ है। (गल. 5:22) इसके अलावा, परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानने से भी हमारा विश्‍वास मज़बूत होता है। वह कैसे? मिसाल के लिए, हम परमेश्‍वर की आज्ञा मानते हुए प्रचार में ज़्यादा-से-ज़्यादा हिस्सा लेते हैं। इस तरह, “पहले परमेश्‍वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज” करने से हमें खुशी और कई आशीषें मिलती हैं। और जब हम इनके बारे में गहराई से सोचते हैं, तो हमारा विश्‍वास बढ़ता है।—मत्ती 6:33, NHT.

“प्रेम . . . का पीछा कर”

12, 13. (क) यीशु ने कौन-सी नयी आज्ञा दी? (ख) हम किन अहम तरीकों से मसीह के जैसा प्यार दिखा सकते हैं?

12 1 तीमुथियुस 5:1, 2 पढ़िए। पौलुस ने सलाह दी कि किस तरह मसीही एक-दूसरे को आदर देकर प्यार दिखा सकते हैं। ईश्‍वरीय भक्‍ति दिखाने में यीशु की दी नयी आज्ञा को मानना शामिल है। वह आज्ञा यह है कि जैसा यीशु ने हमसे प्रेम किया है, वैसे ही हमें भी “एक दूसरे से प्रेम” करना चाहिए। (यूह. 13:34) प्रेरित यूहन्‍ना ने प्यार दिखाने का दूसरा तरीका बताया: “जिस किसी के पास संसार की संपत्ति हो और वह अपने भाई को कंगाल देखकर उस पर तरस खाना न चाहे, तो उस में परमेश्‍वर का प्रेम क्योंकर बना रह सकता है?” (1 यूह. 3:17) क्या आप याद कर सकते हैं कि आपने किन कारगर तरीकों से अपने भाइयों के लिए प्यार दिखाया है?

13 प्रेम का पीछा करने का एक और तरीका है, अपने भाइयों को माफ करना और उनके लिए मन में कोई नाराज़गी न पालना। (1 यूहन्‍ना 4:20 पढ़िए।) इसके बजाय, हम परमेश्‍वर की इस सलाह को मानते हैं: “यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।” (कुलु. 3:13) क्या कलीसिया में किसी के साथ आपकी अनबन हो गयी है? क्या आप इस सलाह को मानते हुए उसे माफ करेंगे?

“धीरज . . . का पीछा कर”

14. फिलेदिलफिया की कलीसिया से हम क्या सीख सकते हैं?

14 जब मंज़िल पास हो, तो उसे पाना आसान होता है। लेकिन अगर मंज़िल दूर हो या उस तक पहुँचना मुश्‍किल हो, तो धीरज धरना ज़रूरी होता है। यही बात अनंत जीवन के लक्ष्य को हासिल करने के बारे में सच है। प्रभु यीशु ने फिलेदिलफिया की कलीसिया से कहा: “तू ने मेरे धीरज के वचन को थामा है, इसलिये मैं भी तुझे परीक्षा के उस समय बचा रखूंगा।” (प्रका. 3:10) जी हाँ, यीशु ने सिखाया कि हमें धीरज के गुण की ज़रूरत है। यह एक ऐसा गुण है जो हमें तकलीफों और परीक्षाओं के दौरान हिम्मत न हारने की ताकत देता है। पहली सदी में, फिलेदिलफिया के भाइयों ने विश्‍वास की कई परीक्षाओं से गुज़रते वक्‍त कमाल का धीरज दिखाया होगा। तभी यीशु ने उन्हें यकीन दिलाया कि वह आनेवाली बड़ी परीक्षा में भी उनकी मदद करेगा।—लूका 16:10.

15. यीशु ने धीरज के गुण के बारे में क्या सिखाया?

15 यीशु जानता था कि उसके चेलों को अपने अविश्‍वासी रिश्‍तेदारों और दुनियावालों की नफरत का सामना करना पड़ेगा। इसलिए कम-से-कम दो मौकों पर उसने अपने चेलों की हिम्मत बँधाते हुए कहा: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा उसी का उद्धार होगा।” (मत्ती 10:22; 24:13) यीशु ने यह भी बताया कि ऐसे मुश्‍किल हालात में उसके चेलों को धीरज धरने की ताकत कहाँ से मिल सकती है। अपने एक दृष्टांत में उसने पथरीली भूमि की तुलना ऐसे लोगों से की, जो “आनन्द से [परमेश्‍वर के] वचन को ग्रहण तो करते हैं,” मगर विश्‍वास की परीक्षा आने पर वे सच्चाई पर चलना छोड़ देते हैं। लेकिन यीशु ने अपने वफादार चेलों की तुलना अच्छी भूमि से की, क्योंकि वे परमेश्‍वर के वचन को अपने मन में “सम्भाले” रहते हैं और “धीरज से फल लाते हैं।”—लूका 8:13, 15.

16. किस प्यार-भरे इंतज़ाम से लाखों लोगों को धीरज धरने में मदद मिली है?

16 क्या आपने गौर किया कि धीरज धरने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? हमें परमेश्‍वर के वचन को “सम्भाले” रहना होगा, यानी उसे अपने दिलो-दिमाग में ज़िंदा रखना होगा। ऐसा करना मुमकिन हो गया है, क्योंकि न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स्‌ आज ज़्यादा-से-ज़्यादा भाषाओं में उपलब्ध है। यह, बाइबल का एकदम सही अनुवाद है और इसकी भाषा भी समझने में आसान है। अगर हम हर दिन परमेश्‍वर के वचन के एक भाग पर मनन करें, तो हमें “धीरज से फल” लाने की ताकत मिलती रहेगी।—भज. 1:1, 2.

“नर्मदिली” और मेल-मिलाप का “पीछा कर”

17. (क) “नर्मदिली” दिखाना क्यों ज़रूरी है? (ख) यीशु ने कैसे दिखाया कि वह नर्म स्वभाव का है?

17 जब हम पर कोई झूठा इलज़ाम लगाया जाता है, तो हमें बहुत बुरा लगता है। ऐसे में गुस्से से भड़क उठना और उस इलज़ाम को झूठा साबित करने की कोशिश करना इंसानी फितरत होती है। लेकिन इस तरह से पेश आने के बजाय, कितना अच्छा होगा अगर हम “नर्मदिली” दिखाएँ। (नीतिवचन 15:1 पढ़िए।) इस तरह की नर्मदिली दिखाने में बड़ी हिम्मत की ज़रूरत होती है। इस मामले में यीशु मसीह ने हमारे लिए एक बेहतरीन मिसाल कायम की। “वह गाली सुनकर गाली नहीं देता था, और दुख उठाकर किसी को भी धमकी नहीं देता था, पर अपने आप को सच्चे न्यायी के हाथ में सौंपता था।” (1 पत. 2:23) यह सच है कि नर्मदिली दिखाने में हम यीशु के नक्शेकदम पर पूरी तरह से नहीं चल सकते। मगर इस गुण को और भी अच्छी तरह ज़ाहिर करने में हम मेहनत ज़रूर कर सकते हैं।

18. (क) नर्मदिली दिखाने के क्या फायदे हैं? (ख) हमें और किस गुण का पीछा करने का बढ़ावा दिया गया है?

18 आइए हम यीशु की मिसाल पर चलते हुए “नरमी और गहरे आदर के साथ” (NW) अपने विश्‍वास के बारे “उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार” रहें। (1 पत. 3:15) जब किसी संगी मसीही की या प्रचार में घर-मालिक की राय हमारी राय से मेल न खाए, तो इससे एक ज़ोरदार बहस छिड़ सकती है। लेकिन अगर हम नर्मदिली दिखाएँ, तो शायद ऐसी नौबत न आए। (2 तीमु. 2:24, 25) नर्मदिली की वजह से शांति का माहौल पैदा होता है। शायद इसी वजह से पौलुस ने तीमुथियुस को लिखी अपनी दूसरी पत्री में “मेल-मिलाप” का भी ज़िक्र किया। (2 तीमु. 2:22. 1 तीमुथियुस 6:11 से तुलना कीजिए।) यह साफ दिखाता है कि बाइबल हमें “मेल-मिलाप” का भी पीछा करने का बढ़ावा देती है।—भज. 34:14; इब्रा. 12:14.

19. सात मसीही गुणों पर चर्चा करने के बाद, आपने क्या करने का इरादा किया है और क्यों?

19 इस लेख में हमने सात मसीही गुणों पर चर्चा की है, जिनका हमें पीछा करना चाहिए। वे हैं, धार्मिकता, ईश्‍वरीय भक्‍ति, विश्‍वास, प्रेम, धीरज, नर्मदिली और शांति। ज़रा सोचिए, अगर हर कलीसिया में भाई-बहन इन अनमोल गुणों को और भी अधिक दिखाने में मेहनत करें, तो कितना बढ़िया समाँ होगा! इससे यहोवा की महिमा होगी और हम खुद को उसके हवाले कर रहे होंगे ताकि वह हमें ढाल सके।

मनन के लिए सवाल

• धार्मिकता और ईश्‍वरीय भक्‍ति का पीछा करने में क्या शामिल है?

• विश्‍वास और धीरज का पीछा करने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

• हम अपने व्यवहार में दूसरों के लिए प्यार कैसे दिखा सकते हैं?

• हमें नर्मदिली और शांति का पीछा क्यों करना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 12 पर तसवीर]

यीशु ने धार्मिकता का दिखावा करने से खबरदार किया था

[पेज 13 पर तसवीर]

परमेश्‍वर के वचन में दी सच्चाइयों पर मनन करने से हम विश्‍वास का पीछा कर सकते हैं

[पेज 15 पर तसवीर]

हम प्रेम और नर्मदिली का पीछा कर सकते हैं