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हमें किन चीज़ों से भागना चाहिए?

हमें किन चीज़ों से भागना चाहिए?

हमें किन चीज़ों से भागना चाहिए?

“हे सांप के बच्चों, तुम्हें किस ने जता दिया, कि आनेवाले क्रोध से भागो?”—मत्ती 3:7.

1. बाइबल से ऐसे कुछ लोगों की मिसालें दीजिए, जिन्हें भागना पड़ा था।

 “भागो!” यह शब्द सुनते ही आपको क्या खयाल आता है? कुछ लोगों को शायद खूबसूरत नौजवान यूसुफ का खयाल आए। जब पोतीपर की पत्नी ने उसके साथ नाजायज़ संबंध रखने के लिए ज़बरदस्ती की, तो यूसुफ वहाँ से भाग खड़ा हुआ। (उत्प. 39:7-12) कुछ और लोगों को शायद उन मसीहियों की याद आए, जो सा.यु. 66 में यरूशलेम से भाग निकले थे। उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि यीशु ने उन्हें खबरदार किया था: “जब तुम यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ देखो, . . . तब जो यहूदिया में हों वह पहाड़ों पर भाग जाएं, और जो यरूशलेम के भीतर हों वे बाहर निकल जाएं।”—लूका 21:20, 21.

2, 3. (क) यूहन्‍ना के शब्दों का क्या मतलब था, जो उसने धर्म-गुरुओं के पाखंड का परदाफाश करते हुए कहे थे? (ख) यीशु ने यूहन्‍ना की दी चेतावनी को कैसे पुख्ता किया?

2 ऊपर जिन लोगों की मिसालें दी गयी हैं, उन्हें सचमुच में भागना पड़ा था। मगर आज लगभग हर देश में मौजूद सच्चे मसीहियों को सचमुच में नहीं, बल्कि लाक्षणिक तौर पर भागने की ज़रूरत है। यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले ने इसी मायने में “भागो” शब्द का इस्तेमाल किया था। उससे मिलने आए यहूदी धर्म-गुरु खुद को बहुत धर्मी समझते थे। इसलिए उन्होंने पश्‍चाताप करना ज़रूरी नहीं समझा। और जो लोग पश्‍चाताप करके बपतिस्मा ले रहे थे, वे उन्हें तुच्छ समझ रहे थे। यूहन्‍ना ने बेधड़क इन अगुवों के पाखंड का परदाफाश करते हुए कहा: “हे सांप के बच्चों, तुम्हें किस ने जता दिया, कि आनेवाले क्रोध से भागो? सो मन फिराव के योग्य फल लाओ।”—मत्ती 3:7, 8.

3 इन आयतों में यूहन्‍ना आनेवाले न्यायदंड यानी क्रोध के दिन के बारे में बात कर रहा था। वह धर्म-गुरुओं को चिता रहा था कि अगर वे उस दिन से बचना चाहते हैं, तो उन्हें अपने कामों से अपना पश्‍चाताप साबित करना होगा। इसके कुछ समय बाद, यीशु ने भी निडरता से इन धर्म-गुरुओं को धिक्कारा था। दरअसल, ये धर्म-गुरु यीशु को मारने की ताक में थे और इससे उन्होंने दिखाया कि उनका असली पिता शैतान है। (यूह. 8:44) यूहन्‍ना की चेतावनी को पुख्ता करते हुए यीशु ने उन्हें ‘करैतों के बच्चे’ बुलाया और कहा: “तुम नरक [“गेहन्‍ना,” NW] के दण्ड से क्योंकर बचोगे?” (मत्ती 23:33) “गेहन्‍ना” शब्द से यीशु का क्या मतलब था?

4. “गेहन्‍ना” शब्द से यीशु का क्या मतलब था?

4 गेहन्‍ना, यरूशलेम की शहरपनाह के बाहर एक घाटी थी, जहाँ कूड़ा-करकट और मरे हुए जानवरों को जलाया जाता था। यीशु ने “गेहन्‍ना” शब्द का इस्तेमाल हमेशा के लिए होनेवाले विनाश को दर्शाने के लिए किया। (पेज 27 देखिए।) इसलिए यीशु के कहने का यह मतलब था कि धर्म-गुरु एक समूह के तौर पर नाश होने के लायक थे और उनके लिए पुनरुत्थान की कोई आशा नहीं थी।—मत्ती 5:22, 29.

5. यूहन्‍ना और यीशु की कही बात कैसे पूरी हुई?

5 यहूदी धर्म-गुरुओं ने यीशु और उसके चेलों पर ज़ुल्म ढाकर अपने पाप का पलड़ा और भी भारी कर दिया। इसके कुछ समय बाद, ठीक जैसे यूहन्‍ना और यीशु ने आगाह किया था, यहोवा के क्रोध का दिन आया। उस वक्‍त यहोवा का “क्रोध” यरूशलेम और यहूदिया पर, यानी एक ही इलाके पर भड़का था। इसलिए मसीहियों के लिए किसी दूसरी जगह भागना मुमकिन था। लेकिन परमेश्‍वर का यह क्रोध कैसे भड़का? सामान्य युग 70 में रोमी सेना ने आकर यरूशलेम और उसके मंदिर को खाक में मिला दिया। यरूशलेम पर ऐसा भयानक “क्लेश” पहले कभी नहीं आया था। कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया या उन्हें बंदी बना लिया गया। आज हमारे समय में इससे भी बड़ा विनाश आनेवाला है, जिसमें मसीही होने का दम भरनेवालों और दूसरे धर्म के माननेवालों का खात्मा होगा।—मत्ती 24:21.

आनेवाले क्रोध के दिन से बचना

6. पहली सदी की मसीही कलीसिया में क्या होने लगा था?

6 पहली सदी में कुछ मसीही धर्मत्यागी बन गए थे और दूसरे उनके पीछे हो लिए थे। (प्रेरि. 20:29, 30) यीशु के प्रेरित जब तक ज़िंदा थे, तब तक वे धर्मत्याग के लिए “रोक” बने हुए थे। मगर उनकी मौत के बाद, झूठे मसीहियों के बहुत-से पंथ बनने लगे। आज ईसाईजगत में सैकड़ों पंथ हैं, जिनकी शिक्षाओं का बाइबल से कोई मेल नहीं। बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी कि पादरियों का वर्ग प्रकट होगा। इस वर्ग को “अधर्म-पुरुष” (नयी हिन्दी बाइबिल, फुटनोट) और “विनाश का पुत्र” कहा गया है, “जिसे प्रभु यीशु . . . मार डालेगा, और अपने आगमन के तेज से भस्म करेगा।”—2 थिस्स. 2:3, 6-8.

7. ईसाईजगत के पादरियों को ‘अधर्म का पुरुष’ कहना क्यों सही है?

7 ईसाईजगत के पादरियों को ‘अधर्म का पुरुष’ इसलिए कहा गया है, क्योंकि उन्होंने ऐसी शिक्षाओं, त्योहारों और चालचलन को बढ़ावा दिया है, जो बाइबल के मुताबिक गलत हैं। इस तरह, उन्होंने लाखों लोगों को गुमराह किया है। ‘विनाश के इन पुत्रों’ का भी वही अंजाम होगा, जो यीशु के ज़माने के धर्म-गुरुओं का हुआ था। यानी उन्हें नाश किया जाएगा और उनके लिए पुनरुत्थान की कोई आशा नहीं होगी। (2 थिस्स. 1:6-9) लेकिन उन लोगों के बारे में क्या, जिन्हें पादरियों या दूसरे धर्म के अगुवों ने गुमराह किया है? इसका जवाब पाने के लिए आइए देखें कि सा.यु.पू. 607 में हुए यरूशलेम के विनाश के बाद क्या घटनाएँ घटी थीं।

“बाबुल में से भागो”

8, 9. (क) बाबुल की बंधुआई में पड़े यहूदियों के लिए यिर्मयाह के पास क्या ज़रूरी पैगाम था? (ख) बाबुल की हार के बाद, किस मायने में यहूदियों को वहाँ से भागना पड़ा?

8 सामान्य युग पूर्व 607 में हुए यरूशलेम के विनाश के बारे में यिर्मयाह नबी ने भविष्यवाणी की थी। उसने कहा कि परमेश्‍वर के लोगों को बंदी बनाकर बाबुल ले जाया जाएगा, मगर “सत्तर वर्ष” पूरे होने पर उन्हें वापस अपने देश में बहाल किया जाएगा। (यिर्म. 29:4, 10) बाबुल की बंधुआई में पड़े यहूदियों के लिए यिर्मयाह के पास एक ज़रूरी पैगाम था। वह यह कि उन्हें किसी भी सूरत में उस देश के झूठे धर्म से खुद को दूषित नहीं करना था। तभी वे परमेश्‍वर के ठहराए वक्‍त पर यरूशलेम लौटने और सच्ची उपासना को दोबारा शुरू करने के लिए तैयार होते। और यह वक्‍त तब आया, जब फारस के राजा कुस्रू द्वितीय ने सा.यु.पू. 539 में बाबुल पर फतह हासिल करने के बाद, एक फरमान जारी किया। इस फरमान के मुताबिक, यहूदी अपने वतन लौटकर यहोवा का मंदिर दोबारा खड़ा कर सकते थे।—एज्रा 1:1-4.

9 हज़ारों यहूदियों ने इस मौके का फायदा उठाया और यरूशलेम लौट गए। (एज्रा 2:64-67) ऐसा करके उन्होंने यिर्मयाह की भविष्यवाणी में दी आज्ञा को माना। और उनके मामले में भागने का मतलब था, बाबुल से यरूशलेम जाना। (यिर्मयाह 51:6, 45, 50 पढ़िए।) मगर कुछ यहूदी अपने हालात की वजह से यरूशलेम और यहूदा तक का लंबा सफर तय नहीं कर पाए। उनमें से एक था, बुज़ुर्ग नबी दानिय्येल। तो फिर, जो बाबुल में ही रह गए थे, उन्हें यहोवा की आशीष पाने के लिए क्या करना था? उन्हें यरूशलेम में की जानेवाली सच्ची उपासना का दिलो-जान से समर्थन करना था और बाबुल की झूठी उपासना से दूर रहना था।

10. “बड़ा बाबुल” किन “घृणित वस्तुओं” के लिए ज़िम्मेदार है?

10 आज करोड़ों लोग ऐसे धर्मों को मानते हैं, जिनकी शुरूआत प्राचीन बाबुल से हुई थी। (उत्प. 11:6-9) इन धर्मों को एक समूह के तौर पर “बड़ा बाबुल” कहा गया है, जो “पृथ्वी की वेश्‍याओं और घृणित वस्तुओं की माता” है। (प्रका. 17:5) बड़े बाबुल का दुनिया के राजनेताओं के संग एक लंबे अरसे से याराना रहा है। वह जिन “घृणित वस्तुओं” के लिए ज़िम्मेदार है, उनमें से एक है युद्ध। इन युद्धों की वजह से “पृथ्वी पर” लाखों लोग “घात किए” गए हैं। (प्रका. 18:24) “घृणित वस्तुओं” में पादरियों की वे करतूतें भी शामिल हैं, जिनके बारे में जानते हुए भी चर्च के अधिकारी हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहते हैं। जैसे, बच्चों को अपनी हवस का शिकार बनाना और दूसरे अनैतिक काम करना। तो फिर, इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि यहोवा बहुत जल्द इस धरती पर से झूठे धर्म का नामो-निशान मिटा देगा!

11. बड़े बाबुल के नाश होने से पहले, सच्चे मसीहियों का क्या फर्ज़ बनता है?

11 बड़े बाबुल के नाश के बारे में सच्चे मसीही अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए उनका यह फर्ज़ बनता है कि वे बड़े बाबुल के सदस्यों को इस बारे में खबरदार करें। ऐसा करने का एक तरीका है, लोगों में बाइबल और बाइबल की समझ देनेवाली किताबें-पत्रिकाएँ बाँटना, जिन्हें “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” मुहैया कराता है। यह वही दास है जिसे यीशु ने ‘समय पर [आध्यात्मिक] भोजन देने’ का ज़िम्मा सौंपा था। (मत्ती 24:45) जब कोई बाइबल के संदेश में दिलचस्पी दिखाता है, तो सच्चे मसीही उसके साथ बाइबल अध्ययन करने का इंतज़ाम करते हैं। उम्मीद है कि ऐसे लोग समय रहते ‘बाबुल में से भाग’ निकलेंगे।—प्रका. 18:4.

मूर्तिपूजा से भागो

12. परमेश्‍वर, मूर्तिपूजा को किस नज़र से देखता है?

12 बड़े बाबुल का एक और घृणित काम है, मूर्तिपूजा। परमेश्‍वर, मूर्तियों और उपासना में इस्तेमाल होनेवाली तसवीरों को “घिनौनी वस्तुएं” कहता है। (व्यव. 29:17) जो कोई परमेश्‍वर को खुश करना चाहता है, उसे मूर्तिपूजा से दूर रहना चाहिए, ठीक जैसे यहोवा ने कहा है: “मैं यहोवा हूं, मेरा नाम यही है; अपनी महिमा मैं दूसरे को न दूंगा और जो स्तुति मेरे योग्य है वह खुदी हुई मूरतों को न दूंगा।”—यशा. 42:8.

13. मूर्तिपूजा के और कौन-से रूप हैं, जिनसे हमें दूर रहना चाहिए?

13 परमेश्‍वर का वचन खुलासा करता है कि मूर्तिपूजा के और भी कई रूप हैं। जैसे बाइबल, लोभ को “मूर्त्ति पूजा के बराबर” बताती है। (कुलु. 3:5) लोभ का मतलब है, दूसरे की चीज़ों को पाने की लालसा करना। (निर्ग. 20:17) जो स्वर्गदूत शैतान बन गया, उसके मन में परमप्रधान परमेश्‍वर के जैसा बनने और उपासना पाने का लोभ पैदा हुआ। (लूका 4:5-7) इस वजह से उसने यहोवा के खिलाफ बगावत की। उसने हव्वा को भी ऐसी चीज़ की लालसा करने को फुसलाया, जिस पर उसका कोई हक नहीं था। आदम ने भी एक तरह से मूर्तिपूजा की। वह अपनी पत्नी का साथ नहीं खोना चाहता था और इसी स्वार्थ में अंधा होकर उसने यहोवा की आज्ञा तोड़ दी। आज, अगर हम परमेश्‍वर के क्रोध के दिन से बचना चाहते हैं, तो हमें सिर्फ यहोवा की उपासना करनी चाहिए और हर तरह के लोभ से दूर रहना चाहिए।

“व्यभिचार से बचे रहो”

14-16. (क) नैतिकता के मामले में यूसुफ एक बढ़िया मिसाल क्यों है? (ख) जब हमारे दिल में कोई गलत लैंगिक इच्छा पैदा होती है, तो हमें क्या करना चाहिए? (ग) व्यभिचार से दूर भागने में हम कैसे कामयाब हो सकते हैं?

14 1 कुरिन्थियों 6:18 पढ़िए। जब पोतीपर की पत्नी ने यूसुफ को लैंगिक संबंध रखने के लिए लुभाया, तो यूसुफ वहाँ से भाग खड़ा हुआ। इस तरह, उसने कुँवारे और शादीशुदा मसीहियों के लिए क्या ही बढ़िया मिसाल कायम की! इसमें कोई शक नहीं कि यूसुफ ने अपने विवेक को परमेश्‍वर की सोच के मुताबिक ढाला था। आज हमें भी यह आज्ञा मानने की ज़रूरत है: “व्यभिचार से बचे रहो।” इसके लिए हमें ऐसी हर बात से दूर रहना होगा, जो हमारे अंदर अपने जीवन-साथी को छोड़ किसी पराए के साथ लैंगिक संबंध रखने की इच्छा पैदा कर सकती है। बाइबल में कहा गया है: “अपने उन अंगों को मार डालो, जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात्‌ व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्त्ति पूजा के बराबर है। इन ही के कारण परमेश्‍वर का प्रकोप आज्ञा न माननेवालों पर पड़ता है।”—कुलु. 3:5, 6.

15 दुनिया में बहुत-से लोग अपने अंदर गलत लैंगिक इच्छाओं को पनपने देते हैं और फिर इन्हीं इच्छाओं के मुताबिक काम करते हैं। “परमेश्‍वर का प्रकोप” आनेवाला है, यह बात मन में रखते हुए हमें ऐसी इच्छाओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। इसके लिए हमें परमेश्‍वर की मदद और पवित्र शक्‍ति के लिए प्रार्थना करने की ज़रूरत है। इसके अलावा, हमें बाइबल का अध्ययन करने, मसीही सभाओं में हाज़िर होने और लोगों को खुशखबरी सुनाने की ज़रूरत है। इस तरह हम ‘आत्मा के अनुसार चल’ पाएँगे। और अपने ‘शरीर की लालसा को किसी रीति से पूरी नहीं करेंगे।’—गल. 5:16.

16 पोर्नोग्राफी देखना “आत्मा के अनुसार” चलना हरगिज़ नहीं होगा। इसी तरह हर मसीही को ऐसी किताबें पढ़ने, फिल्में देखने या गाना सुनने से खबरदार रहना चाहिए, जो उसके अंदर लैंगिक इच्छाएँ पैदा कर सकती हैं। यही नहीं, ऐसे विषयों पर चुटकुलें सुनाना या आपस में बातचीत करना भी परमेश्‍वर के “पवित्र लोगों” के लिए सरासर गलत है। (इफि. 5:3, 4) इन सब बातों से दूर रहकर हम अपने प्यारे पिता, यहोवा को दिखाते हैं कि हम उसके आनेवाले क्रोध के दिन से बचना चाहते हैं और धार्मिकता की नयी दुनिया में जीना चाहते हैं।

‘रुपए के लोभ’ से दूर भागिए

17, 18. हमें ‘रुपए के लोभ’ से क्यों दूर भागना चाहिए?

17 पौलुस ने तीमुथियुस को लिखी अपनी पहली पत्री में कुछ ऐसे सिद्धांतों पर ज़ोर दिया, जिन पर उन मसीहियों को चलना था जो गुलाम थे। इनमें से कुछ गुलामों के मालिक खुद मसीही थे, इसलिए वे शायद अपने मालिकों से लाभ पाने की उम्मीद लगाए हुए थे। कुछ ऐसे भी गुलाम थे, जिन्होंने अपने मतलब के लिए मसीही भाई-बहनों का फायदा उठाने की कोशिश की। पौलुस ने उन्हें खबरदार किया कि वे यह न ‘समझें कि भक्‍ति कमाई का द्वार है।’ उन गुलामों को शायद “रुपये का लोभ” था। यह एक ऐसी समस्या है, जो आज अमीर-गरीब दोनों पर बुरा असर कर सकती है।—1 तीमु. 6:1, 2, 5, 9, 10.

18 क्या आप बाइबल में दी उन लोगों की मिसालें याद कर सकते हैं, जिन्होंने ‘रुपये के लोभ’ में आकर या गैर-ज़रूरी चीज़ों से लगाव रखकर यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता तबाह कर दिया था? (यहो. 7:11, 21; 2 राजा 5:20, 25-27) पौलुस ने तीमुथियुस को उकसाया: “हे परमेश्‍वर के जन, तू इन बातों से भाग; और धर्म, भक्‍ति, विश्‍वास, प्रेम, धीरज और नम्रता का पीछा कर।” (1 तीमु. 6:11) यह सलाह मानना उन सबके लिए ज़रूरी है, जो परमेश्‍वर के आनेवाले क्रोध से बचना चाहते हैं।

“जवानी की अभिलाषाओं से भाग”

19. सभी जवानों को किस चीज़ की ज़रूरत है?

19 नीतिवचन 22:15 पढ़िए। एक जवान के मन की मूढ़ता, उसे बड़ी आसानी से गलत रास्ते पर ले जा सकती है। लेकिन जो बात उसे बहकने से रोक सकती है, वह है बाइबल से मिलनेवाला अनुशासन। कई मसीही जवान, जिनके माता-पिता साक्षी नहीं हैं, खुद बाइबल के सिद्धांत ढूँढ़ने और उनके मुताबिक जीने की कोशिश करते हैं। जबकि दूसरे जवानों को कलीसिया के प्रौढ़ मसीहियों से बढ़िया सलाह मिलती है, जिस पर चलकर उन्हें फायदा होता है। जवानों को बाइबल से सलाह चाहे कोई भी दे, अगर वे उसे मानें, तो उन्हें न सिर्फ आज बल्कि आगे चलकर भी खुशियाँ मिलेंगी।—इब्रा. 12:8-11.

20. गलत अभिलाषाओं से दूर भागने में जवानों को किस बात से मदद मिल सकती है?

20 दूसरा तीमुथियुस 2:20-22 पढ़िए। अनुशासन न मिलने पर बहुत-से जवानों ने ऐसे तौर-तरीके अपनाए हैं, जो मूर्खता के सिवा कुछ नहीं। जैसे, होड़ लगाना, लोभी और पैसे के भूखे होना, बदचलन ज़िंदगी जीना और मौज-मस्ती में डूबे रहना। यह दिखाता है कि उनमें ‘जवानी की अभिलाषाएँ’ हैं, जिनसे दूर भागने की बाइबल जवान मसीहियों से गुज़ारिश करती है। इसके लिए उन्हें हर तरफ से आनेवाले बुरे असर से सतर्क रहने की ज़रूरत है। उन्हें खासकर परमेश्‍वर की इस सलाह से मदद मिल सकती है कि वे ‘शुद्ध मन से प्रभु का नाम लेनेवालों के साथ’ मिलकर, अपने अंदर परमेश्‍वर के जैसे गुण पैदा करें।

21. यीशु मसीह ने अपने भेड़ सरीखे चेलों के बारे में क्या शानदार वादा किया है?

21 चाहे हम बुढ़े हों या जवान, हमें उन लोगों की बिलकुल नहीं सुननी चाहिए जो हमें बहकाने पर तुले हुए हैं। ऐसा करना दिखाएगा कि हम यीशु के भेड़ सरीखे चेलों में गिने जाना चाहते हैं, जो ‘परायों के शब्द से दूर भागते हैं।’ (यूह. 10:5) लेकिन परमेश्‍वर के क्रोध के दिन से बचने के लिए सिर्फ नुकसान पहुँचानेवाली चीज़ों से दूर भागना काफी नहीं। हमें अच्छे गुणों का पीछा भी करना चाहिए। इनमें से सात गुणों के बारे में अगले लेख में बताया जाएगा। इनकी जाँच करना हमारे लिए ज़रूरी है, क्योंकि यीशु ने यह शानदार वादा किया है: “मैं [अपनी भेड़ों को] अनन्त जीवन देता हूं, और वे कभी नाश न होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा।”—यूह. 10:28.

आप क्या जवाब देंगे?

• यीशु ने धर्म-गुरुओं को क्या चेतावनी दी?

• आज लाखों लोग किस खतरनाक हालात में हैं?

• मूर्तिपूजा के और कौन-से रूप हैं, जिनसे हमें दूर रहना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 8, 9 पर तसवीरें]

“भागो” शब्द सुनते ही आपके मन में क्या खयाल आता है?