इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

घर-घर के प्रचार में आनेवाली चुनौतियों का सामना करना

घर-घर के प्रचार में आनेवाली चुनौतियों का सामना करना

घर-घर के प्रचार में आनेवाली चुनौतियों का सामना करना

“हमारे परमेश्‍वर ने हमें ऐसा हियाव दिया, कि हम परमेश्‍वर का सुसमाचार भारी विरोधों के होते हुए भी तुम्हें सुनाएं।”—1 थिस्स. 2:2.

1. यिर्मयाह के आगे क्या चुनौतियाँ आयीं और उसने उनका कैसे सामना किया?

 यिर्मयाह एक ऐसा इंसान था, जिसमें हमारे जैसी ही भावनाएँ थीं। जब यहोवा ने उसे “जातियों का भविष्यवक्‍ता” ठहराया, तो उसने खुद को इस ज़िम्मेदारी के लायक नहीं समझा और बोल उठा: “हाय, प्रभु यहोवा! देख, मैं तो बोलना ही नहीं जानता, क्योंकि मैं लड़का ही हूं।” इसके बावजूद यिर्मयाह ने यहोवा पर भरोसा रखा और उस ज़िम्मेदारी को कबूल किया। (यिर्म. 1:4-10) अपनी सेवा के 40 से भी ज़्यादा सालों के दौरान उसे क्या कुछ नहीं सहना पड़ा। लोगों ने उसके संदेश में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी, उसे दुतकारा, उसकी खिल्ली उड़ायी, उस पर ज़ुल्म ढाए। (यिर्म. 20:1, 2) ऐसे में कभी-कभी यिर्मयाह हिम्मत हारने लगा था। फिर भी, वह लोगों को ऐसा संदेश सुनाता रहा, जिसे वे पसंद नहीं करते थे। यिर्मयाह ने परमेश्‍वर की ताकत से अपनी सेवा पूरी की, जो वह अपने बलबूते कभी नहीं कर सकता था।—यिर्मयाह 20:7-9 पढ़िए।

2, 3. यिर्मयाह की तरह, आज परमेश्‍वर के सेवक कैसी चुनौतियों का सामना करते हैं?

2 आज परमेश्‍वर के कई सेवक यिर्मयाह की भावनाओं को अच्छी तरह समझ सकते हैं। जब उन्हें शुरू-शुरू में पता चला कि उन्हें घर-घर जाकर प्रचार करना है, तो उनमें से कुछेक के मन में यह खयाल आया होगा: ‘ना बाबा, यह तो मुझसे कभी नहीं होगा।’ लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि यह दरअसल यहोवा की मरज़ी है कि वे सुसमाचार सुनाएँ, तो वे अपने डर पर काबू पाकर प्रचार काम में जी-जान से लग गए। इसके बाद भी, उनकी ज़िंदगी में ऐसे हालात आए जब कुछ वक्‍त के लिए, प्रचार करते रहना उनके लिए मुश्‍किल था। इसमें कोई शक नहीं कि घर-घर जाकर प्रचार शुरू करना और इसे अंत तक करते रहना वाकई एक चुनौती है।—मत्ती 24:13.

3 अगर आप काफी समय से यहोवा के साक्षियों के साथ अध्ययन कर रहे हैं और कलीसिया की सभाओं में हाज़िर हो रहे हैं, मगर घर-घर का प्रचार शुरू करने से झिझकते हैं, तब क्या? या अगर आप बपतिस्मा-शुदा प्रचारक हैं और आपकी सेहत भी अच्छी है, मगर आपको घर-घर जाकर प्रचार करना मुश्‍किल लगता है, तब क्या? इस बात का यकीन रखिए कि हर किस्म के लोग घर-घर के प्रचार से जुड़ी चुनौतियों का कामयाबी से सामना कर रहे हैं। आप भी यहोवा की मदद से ऐसा कर सकते हैं।

हियाव के साथ प्रचार करना

4. किस बात ने प्रेरित पौलुस को हियाव के साथ सुसमाचार सुनाने में मदद दी?

4 बेशक आप इस बात को अच्छी तरह जानते होंगे कि दुनिया-भर में प्रचार का काम इंसान की ताकत या बुद्धि से नहीं, बल्कि परमेश्‍वर की शक्‍ति से पूरा हो रहा है। (जक. 4:6) यही बात हरेक मसीही की सेवा के बारे में भी सच है। (2 कुरि. 4:7) प्रेरित पौलुस की मिसाल लीजिए। एक बार विरोधियों ने पौलुस और उसके मिशनरी साथी को मारा-पीटा। उस समय को याद करते हुए पौलुस ने लिखा: “पहिले पहिल फिलप्पी में दुख उठाने और उपद्रव सहने पर . . . हमारे परमेश्‍वर ने हमें ऐसा हियाव दिया, कि हम परमेश्‍वर का सुसमाचार भारी विरोधों के होते हुए भी तुम्हें सुनाएं।” (1 थिस्स. 2:2; प्रेरि. 16:22-24) हमें शायद यह जानकर ताज्जुब हो कि पौलुस जैसे जोशीले प्रचारक के लिए भी प्रचार करना इतना आसान नहीं था। मगर यह सच है और हमारी तरह उसे भी परमेश्‍वर के सहारे की ज़रूरत थी, ताकि वह हियाव के साथ सुसमाचार सुना सके। (इफिसियों 6:18-20 पढ़िए।) हम पौलुस की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

5. हियाव के साथ सुसमाचार सुनाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

5 हियाव के साथ सुसमाचार सुनाने के लिए हमें प्रार्थना में यहोवा से मदद माँगनी चाहिए। एक पायनियर बहन कहती है: “मैं हर वक्‍त यहोवा से प्रार्थना करती हूँ कि मैं यकीन के साथ सुसमाचार सुना सकूँ, लोगों के दिलों तक पहुँच सकूँ और अपनी सेवा में खुशी पा सकूँ। आखिर यह उसी का तो काम है, हम उसकी मदद के बगैर इसे नहीं कर सकते।” (1 थिस्स. 5:17) हम सभी को परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के लिए लगातार प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि हम हियाव के साथ प्रचार कर सकें।—लूका 11:9-13.

6, 7. (क) यहेजकेल को क्या दर्शन दिया गया और उसका क्या मतलब था? (ख) आज परमेश्‍वर के सेवक उस दर्शन से क्या सबक सीख सकते हैं?

6 हियाव के साथ प्रचार करने में एक और बात हमारी मदद कर सकती है, जिसके बारे में यहेजकेल की किताब से पता चलता है। एक दर्शन में यहोवा, यहेजकेल को एक पुस्तक या खर्रा खाने को देता है, जिसके दोनों तरफ “विलाप और शोक और दुःखभरे वचन” लिखे होते हैं। फिर यहोवा उससे कहता है, “हे मनुष्य के सन्तान, यह पुस्तक जो मैं तुझे देता हूँ उसे पचा ले, और अपनी अन्तड़ियां इस से भर ले।” इस दर्शन का क्या मतलब था? इसका मतलब था कि यहेजकेल को जो संदेश सुनाना था, वह उसे अपने दिलो-दिमाग में अच्छी तरह बिठा लेना था, जिससे उसकी भावनाओं पर गहरा असर होता। यहेजकेल आगे कहता है, “मैं ने उसे खा लिया; और मेरे मुंह में वह मधु के तुल्य मीठी लगी।” जिस तरह मधु चखने से एक इंसान का दिल खुश हो जाता है, उसी तरह यहेजकेल को सरेआम परमेश्‍वर का संदेश सुनाने से खुशी मिलती थी। यहेजकेल के लिए यहोवा का भविष्यवक्‍ता बनकर उसका संदेश सुनाना बड़े सम्मान की बात थी, फिर चाहे उसका संदेश उन लोगों को पसंद न आता, जो ढीठ हो चुके थे।—यहेजकेल 2:8–3:4, 7-9 पढ़िए।

7 इस दर्शन से आज परमेश्‍वर के सेवक एक बढ़िया सबक सीख सकते हैं। यहेजकेल की तरह हम भी एक ऐसा संदेश सुनाते हैं, जो ज़्यादातर लोगों को पसंद नहीं आता। अगर हम अपनी मसीही सेवा को हमेशा एक सम्मान समझना चाहते हैं, तो हमें परमेश्‍वर का वचन पढ़ना और उसका अध्ययन करना चाहिए। सरसरी तौर पर या बिना शेड्‌यूल बनाए जब तब अध्ययन करने से हम परमेश्‍वर के वचन को अपने दिलो-दिमाग में नहीं बिठा सकेंगे। क्या आप गहराई से या नियमित तौर पर बाइबल पढ़ सकते हैं और उसका अध्ययन कर सकते हैं? क्या आप मनन करने के लिए और भी समय निकाल सकते हैं?—भज. 1:2, 3.

बाइबल पर चर्चा कैसे शुरू करें?

8. कुछ प्रचारकों ने कौन-सा तरीका अपनाकर लोगों के साथ बाइबल पर चर्चा शुरू की है?

8 कई प्रचारकों का कहना है कि उन्हें घर-घर के प्रचार में घर-मालिक से बातचीत शुरू करना सबसे मुश्‍किल लगता है। यह सच है कि कुछ इलाकों में लोगों के साथ बातचीत शुरू करना एक चुनौती है। लेकिन कुछ प्रचारकों ने देखा है कि जब वे सही शब्द चुनकर बातचीत शुरू करते हैं और फिर एक ट्रैक्ट देते हैं, तो घर-मालिक से बात करना आसान हो जाता है। यह तरीका यहाँ दिए बक्स में बताया गया है। हो सकता है, ट्रैक्ट का शीर्षक या उसकी रंगीन तसवीर घर-मालिक की दिलचस्पी बढ़ाए और इससे हमें अपने आने का मकसद समझाने, साथ ही एक सवाल पूछने का मौका भी मिले। बातचीत शुरू करने का एक और तरीका है, घर-मालिक को तीन-चार ट्रैक्ट दिखाकर उसे कोई एक ट्रैक्ट चुनने को कहना, जिसमें उसे दिलचस्पी हो। बेशक हमारा मकसद सिर्फ ट्रैक्ट दिखाना या उसे पेश करना नहीं, बल्कि बाइबल पर चर्चा शुरू करना है, ताकि आगे चलकर एक बाइबल अध्ययन शुरू हो सके। *

9. अच्छी तैयारी करना क्यों ज़रूरी है?

9 आप चाहे जो भी तरीका अपनाएँ, अच्छी तैयारी करने से आप बिना किसी घबराहट के और जोश के साथ प्रचार कर पाएँगे। एक पायनियर कहता है, “जब मैं अच्छी तैयारी करता हूँ, तो मैं लोगों को गवाही देने के लिए उत्सुक रहता हूँ और मुझे प्रचार में खूब मज़ा आता है।” एक दूसरा पायनियर कहता है, “मैं जिन पत्रिकाओं को पेश करना चाहता हूँ, उन्हें मैं पहले से पढ़ लेता हूँ। इससे मैं घर-घर के प्रचार में उन पत्रिकाओं को जोश के साथ पेश कर पाता हूँ।” माना कि अपनी पेशकश को मन में दोहराने के फायदे होते हैं, लेकिन कइयों ने पाया कि ऊँची आवाज़ में अपनी पेशकश की रिहर्सल करने से उन्हें और भी फायदा होता है। इससे वे यहोवा को अपना भरसक दे पाते हैं।—कुलु. 3:23; 2 तीमु. 2:15.

10. प्रचार की सभाएँ कारगर और फायदेमंद हों, इसके लिए क्या किया जा सकता है?

10 प्रचार की सभाओं से भी हमें घर-घर का प्रचार करने में मदद मिल सकती है। अगर ये सभाएँ व्यावहारिक हों, तो हम गवाही देने में कुशल बन सकते हैं और अपनी सेवा में खुशी पा सकते हैं। इसके लिए प्रचार की सभा चलानेवाला भाई क्या कर सकता है? अगर दिन के वचन का सीधा ताल्लुक प्रचार काम से हो, तो वह उसे पढ़कर उस पर चर्चा कर सकता है। लेकिन यह ज़रूरी है कि वह सभा में एक ऐसी पेशकश पर चर्चा करे और उस पर एक प्रदर्शन दिखाए, जो आसान हो और प्रचार के इलाके के लिए कारगर हो। या ऐसी बातों पर चर्चा करे, जो उस दिन गवाही देने के लिए फायदेमंद हों। इससे प्रचार की सभा में हाज़िर सभी अच्छी तरह गवाही दे पाएँगे। इस लक्ष्य को हासिल करने और सभा को ठहराए गए समय पर खत्म करने के लिए सभा चलानेवाले प्राचीनों या दूसरे भाइयों को अच्छी तैयारी करनी चाहिए।—रोमि. 12:8.

सुनने के क्या फायदे होते हैं?

11, 12. लोगों की सुनने और उनके साथ हमदर्दी जताने से हमें उनको सुसमाचार सुनाने में कैसे मदद मिलेगी? उदाहरण दीजिए।

11 अच्छी तैयारी के साथ-साथ, लोगों में गहरी दिलचस्पी लेने से भी हमें उनके साथ बाइबल पर चर्चा शुरू करने और उनके दिलों तक पहुँचने में मदद मिल सकती है। हम जिस तरह लोगों की बातें सुनते हैं, उससे हम दिखा सकते हैं कि हमें उनमें दिलचस्पी है। एक सफरी अध्यक्ष बताता है, ‘अगर हम सब्र के साथ लोगों की सुनने को तैयार रहें, तो वे भी हमारा संदेश सुनने को तैयार होंगे। इस तरह हम दिखाएँगे कि हमें उनकी सच्ची परवाह है।’ अगर हम प्यार और हमदर्दी जताते हुए घर-मालिक की बातें सुनें, तो वह हमारे साथ बाइबल पर चर्चा करने के लिए राज़ी हो सकता है, जैसा कि आगे दिया अनुभव बताता है।

12 फ्रांस के सेंट एटयन शहर के ला प्रॉगे अखबार में एक स्त्री का खत छपा था, जिसने अपनी तीन महीने की बेटी को मौत में खोया था। उस खत में उसने उन दो लोगों के बारे में बताया, जो इस दर्दनाक हादसे के कुछ ही समय बाद उसके घर आए थे। उसने खत में लिखा, “मैं उन्हें देखते ही पहचान गयी कि वे यहोवा के साक्षी हैं। मैंने सोचा कि मैं उन्हें अदब से चले जाने को कह दूँगी, मगर फिर मेरा ध्यान उस ब्रोशर पर पड़ा, जो वे मुझे देना चाहते थे। वह ब्रोशर इस बारे में था कि परमेश्‍वर दुःख को अनुमति क्यों देता है। मैंने उनको अंदर बुलाया, मगर उनकी बातें सुनने के लिए नहीं बल्कि उनकी दलीलों को गलत साबित करने के लिए। . . . वे मेरे घर पर एक घंटे से ज़्यादा रहे। उस दौरान उन्होंने हमदर्दी जताते हुए बड़े ध्यान से मेरी बात सुनी। उनसे बात करके मेरा मन हलका हुआ। और जब उन्होंने कहा कि वे मुझसे दोबारा मिलना चाहते हैं, तो मैं राज़ी हो गयी।” (रोमि. 12:15) कुछ समय बाद, वह स्त्री बाइबल अध्ययन करने लगी। गौर कीजिए कि इस स्त्री को उस पहली मुलाकात के बारे में क्या याद रहा। यह नहीं कि साक्षियों ने उससे क्या कहा, बल्कि यह कि उन्होंने किस तरह उसकी बात सुनी। इससे हम भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।

13. हम प्रचार में मिलनेवाले हरेक शख्स के मुताबिक अपनी पेशकश को कैसे ढाल सकते हैं?

13 जब हम हमदर्दी जताते हुए लोगों की सुनते हैं, तो दरअसल हम उन्हें यह बताने का मौका देते हैं कि उनको परमेश्‍वर के राज्य की क्यों ज़रूरत है। इससे सुसमाचार सुनाने का हमारा काम आसान हो जाता है। आपने शायद गौर किया होगा कि कुशल प्रचारक आम तौर पर अच्छे सुननेवाले होते हैं। (नीति. 20:5) वे प्रचार में मिलनेवालों में सच्ची दिलचस्पी लेते हैं। वे उनका नाम-पता तो नोट करते-ही-करते हैं, साथ ही यह भी नोट करते हैं कि उन्हें किन बातों में रुचि है और उनकी क्या ज़रूरतें हैं। जब घर-मालिक किसी बात पर चिन्ता ज़ाहिर करता है, तो वे उससे जुड़े विषय पर खोजबीन करते हैं और वापसी भेंट पर उसे वह जानकारी देते हैं। इस तरह वे प्रचार में मिलनेवाले हर शख्स के मुताबिक अपनी पेशकश ढालते हैं, ठीक जैसे प्रेरित पौलुस ने भी किया था। (1 कुरिन्थियों 9:19- 23 पढ़िए।) लोगों में सच्ची दिलचस्पी दिखाकर वे उन्हें सुसमाचार की तरफ खींचते हैं और ‘परमेश्‍वर की बड़ी करुणा’ ज़ाहिर करते हैं।—लूका 1:78.

सही नज़रिया रखिए

14. प्रचार करते वक्‍त हम यहोवा के गुण कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं?

14 यहोवा ने हमें आज़ाद मरज़ी का मालिक बनाकर हमें सम्मान दिया है। हालाँकि वह सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर है, लेकिन वह किसी को भी उसकी सेवा करने के लिए मजबूर नहीं करता। इसके बजाय, वह प्यार से लोगों को उसकी सेवा करने के लिए उकसाता है और जो कोई उसके इंतज़ामों के लिए कदर दिखाते हुए ऐसा करते हैं, उन्हें वह आशीषें देता है। (रोमि. 2:4) यहोवा के सेवक होने के नाते, हमें इस तरह सुसमाचार सुनाना चाहिए, जिससे परमेश्‍वर की दया ज़ाहिर हो। (2 कुरि. 5:20, 21; 6:3-6) ऐसा करने के लिए, हमें प्रचार में मिलनेवाले लोगों के बारे में सही नज़रिया रखना चाहिए। इस चुनौती का सामना करने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

15. (क) यीशु की हिदायत के मुताबिक चेलों को उस वक्‍त क्या करना था, जब कोई उनका संदेश सुनने से इनकार कर देता? (ख) योग्य लोगों को ढूँढ़ने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

15 यीशु ने अपने चेलों से कहा था कि जब कोई संदेश सुनने से इनकार कर दे, तो वे बेवजह चिंता न करें। इसके बजाय, वे अपना पूरा ध्यान योग्य लोगों को ढूँढ़ने में लगाएँ। (मत्ती 10:11-15 पढ़िए।) इसके लिए हमें ऐसे छोटे-छोटे लक्ष्य रखने चाहिए, जिन्हें हासिल करना हमारे लिए मुमकिन हो। एक भाई प्रचार में मिलनेवाले नेकदिल लोगों की तुलना खज़ाने से करता है। वह अपने लक्ष्य के बारे में कहता है, “मैं हमेशा इस उम्मीद के साथ प्रचार में निकलता हूँ कि आज मेरे हाथ ज़रूर कोई खज़ाना लगेगा।” एक दूसरे भाई ने यह लक्ष्य रखा है कि “वह हर हफ्ते कम-से-कम एक दिलचस्पी दिखानेवाले को ढूँढ़ निकालेगा और उसकी दिलचस्पी बढ़ाने के लिए जल्द-से-जल्द उससे दोबारा मिलने जाएगा।” कुछ प्रचारक यह लक्ष्य रखते हैं कि वे हर घर में कम-से-कम एक आयत ज़रूर पढ़ेंगे। योग्य लोगों को ढूँढ़ने के लिए आप कौन-से लक्ष्य रख सकते हैं?

16. हमारे पास प्रचार करते रहने की क्या वजह हैं?

16 घर-घर के प्रचार में हमारी कामयाबी इस बात पर पूरी तरह निर्भर नहीं करती कि लोग हमारे संदेश को सुनते हैं या नहीं। यह सच है कि प्रचार काम नेकदिल लोगों को उद्धार दिलाने में एक अहम भूमिका निभाता है। मगर इस काम को करने की और भी कई वजह हैं। इससे हमें यह दिखाने का मौका मिलता है कि हम यहोवा से कितना प्यार करते हैं। (1 यूह. 5:3) यह हमें लोगों के खून का दोषी होने से बचाता है। (प्रेरि. 20:26, 27) इससे हम दुष्टों को खबरदार कर पाते हैं कि “[परमेश्‍वर के] न्याय करने का समय आ पहुँचा है।” (प्रका. 14:6, 7) सबसे बढ़कर, सुसमाचार का प्रचार करने से पूरी धरती पर यहोवा के नाम की स्तुति होती है। (भज. 113:3) इसलिए चाहे लोग सुनें या न सुनें, हमें राज्य के पैगाम का ऐलान करते रहना चाहिए। सच, इस काम में हम जो भी मेहनत करते हैं, उससे परमेश्‍वर का दिल खुश होता है।—रोमि. 10:13-15.

17. जल्द ही, लोगों को क्या मानना पड़ेगा?

17 हालाँकि आज कई लोग हमारे प्रचार काम को तुच्छ समझते हैं, लेकिन जल्द ही उन्हें अपना नज़रिया बदलना पड़ेगा। (मत्ती 24:37-39) यहोवा ने यहेजकेल को भरोसा दिलाया कि उसका सुनाया न्यायदंड का संदेश जब सच साबित होगा, तब बगावती इस्राएली “जान लेंगे कि हमारे बीच एक भविष्यवक्‍ता प्रकट हुआ” था। (यहे. 2:5) उसी तरह, जब यहोवा इस दुनिया पर न्यायदंड लाएगा, तो लोगों को मजबूरन यह मानना पड़ेगा कि यहोवा के साक्षी सरेआम और घर-घर जाकर जो संदेश सुनाते थे, वह दरअसल एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर यहोवा का संदेश था और साक्षी वाकई उसके नुमाइंदे थे। सचमुच, इस नाज़ुक दौर में यहोवा के नाम को धारण करने और उसके संदेश का ऐलान करने का हमें क्या ही बड़ा सम्मान मिला है! आइए परमेश्‍वर की ताकत से हम घर-घर के प्रचार में आनेवाली चुनौतियों का सामना करते रहें।

[फुटनोट]

^ हो सकता है, कुछ इलाकों को ध्यान में रखते हुए हमारी राज्य सेवकाई कोई दूसरा तरीका सुझाए।

आप क्या जवाब देंगे?

• हियाव के साथ प्रचार करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

• घर-घर के प्रचार में बाइबल पर चर्चा शुरू करने के लिए क्या तरीका अपनाया जा सकता है?

• हम लोगों में सच्ची दिलचस्पी कैसे दिखा सकते हैं?

• किस बात से हम प्रचार में मिलनेवाले लोगों के बारे में सही नज़रिया रख सकेंगे?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर बक्स/तसवीर]

बाइबल पर चर्चा शुरू करने का एक तरीका

बातचीत कैसे शुरू करें:

◼ घर-मालिक से नमस्ते कहने के बाद, आप उसे एक ट्रैक्ट देकर कह सकते है: “मैं दरअसल इस खास विषय पर आपको एक अच्छी बात बताने आया हूँ।”

◼ या एक ट्रैक्ट पेश करने के बाद आप कह सकते हैं, “मैं जानना चाहता हूँ कि इस विषय पर आप क्या सोचते हैं।”

अगर घर-मालिक ट्रैक्ट लेता है, तो:

◼ देर किए बिना घर-मालिक से पूछिए कि ट्रैक्ट के शीर्षक के बारे में उसकी क्या राय है।

◼ ध्यान से उसकी सुनिए और उसके नज़रिए को समझने की कोशिश कीजिए। उसकी राय के लिए उसका धन्यवाद कीजिए और उसे ध्यान में रखकर चर्चा कीजिए।

चर्चा जारी रखने के लिए:

◼ एक या दो आयतें पढ़िए और उन पर चर्चा कीजिए। घर-मालिक की ज़रूरतें और उसे जिन बातों में रुचि है, उसके मुताबिक अपनी पेशकश में फेरबदल कीजिए।

◼ जब घर-मालिक दिलचस्पी दिखाता है, तो उसे साहित्य पेश कीजिए और हो सके तो दिखाइए कि बाइबल अध्ययन कैसे किया जाता है। इसके बाद, दोबारा मिलने का समय तय कीजिए।