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एक चित्त होकर यहोवा के वफादार बने रहिए

एक चित्त होकर यहोवा के वफादार बने रहिए

एक चित्त होकर यहोवा के वफादार बने रहिए

“मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूंगा, मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं।”—भज. 86:11.

1, 2. (क) भजन 86:2, 11 के मुताबिक आज़माइशें आने या लुभाए जाने पर क्या बात यहोवा के वफादार रहने में हमारी मदद करेगी? (ख) हमें कब से यहोवा के लिए पूरे दिल से वफादारी दिखाना सीखना चाहिए?

 ऐसा क्यों होता है कि कुछ मसीही बरसों तक सलाखों के पीछे रहने या ज़ुल्म सहने के बावजूद वफादार बने रहते हैं, मगर आगे चलकर धन-दौलत के लालच के फंदे में फँस जाते हैं? इसकी वजह उनका दिल है यानी वे अंदर से कैसे इंसान हैं। भजन 86 में वफादारी का ताल्लुक एक चित्त से यानी एक संपूर्ण हृदय से किया गया है, जो बँटा हुआ न हो। भजनहार दाऊद ने अपनी प्रार्थना में यहोवा से कहा: “मेरे प्राण की रक्षा कर, क्योंकि मैं भक्‍त [“वफादार,” NW] हूं; तू मेरा परमेश्‍वर है, इसलिये अपने दास का, जिसका भरोसा तुझ पर है, उद्धार कर।” दाऊद ने यह भी प्रार्थना की: “हे यहोवा अपना मार्ग मुझे दिखा, तब मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूंगा, मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं।”—भज. 86:2, 11.

2 अगर हम पूरे दिल से यहोवा पर भरोसा न करें, तो दूसरी बातें और हमें जिन चीज़ों या लोगों से लगाव हैं, वे बड़ी आसानी से सच्चे परमेश्‍वर के लिए हमारी वफादारी को कमज़ोर कर सकते हैं। स्वार्थी इच्छाएँ छिपी हुई बारूद की तरह होती हैं जो मानो हमारी राह पर बिछायी गयी हो। भले ही हम मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में यहोवा के वफादार रहे हों, फिर भी हम शैतान के बिछाए जाल में फँस सकते हैं। इसलिए यह कितना ज़रूरी है कि हम अभी से पूरे दिल से यहोवा को वफादारी दिखाना सीखें, इससे पहले कि हमारे सामने कोई आज़माइश आए या हमें कोई गलत काम करने को लुभाया जाए। बाइबल कहती है: “सब से अधिक अपने मन की रक्षा कर।” (नीति. 4:23) इस सिलसिले में हम यहूदा के एक नबी के साथ हुई घटनाओं से अनमोल सबक सीख सकते हैं। इस नबी को यहोवा ने इस्राएल के राजा यारोबाम के पास भेजा था।

“मैं तुम्हें उपहार दूँगा”

3. परमेश्‍वर के नबी का पैगाम सुनते ही यारोबाम क्या करता है?

3 ज़रा इस नज़ारे को अपने मन की आँखों से देखने की कोशिश कीजिए। परमेश्‍वर के नबी ने अभी-अभी राजा यारोबाम को एक कड़ा संदेश सुनाया है, जिसने उत्तर के इस्राएल के दस गोत्रवाले राज्य में बछड़े की उपासना शुरू की थी। पैगाम सुनते ही राजा आग-बबूला हो जाता है। वह उस नबी को पकड़ने के लिए अपने आदमियों को हुक्म देता है। लेकिन उस नबी का कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता, क्योंकि यहोवा उसके साथ है। राजा ने गुस्से में जो हाथ आगे बढ़ाया था, वह फौरन सूख जाता है और झूठी उपासना के लिए खड़ी की गयी वेदी के दो टुकड़े हो जाते हैं। एकाएक यारोबाम का बर्ताव बदल जाता है और वह परमेश्‍वर के नबी के आगे गिड़गिड़ाता है: “अपने परमेश्‍वर यहोवा को मना और मेरे लिये प्रार्थना कर, कि मेरा हाथ ज्यों का त्यों हो जाए।” नबी प्रार्थना करता है और राजा का हाथ ठीक हो जाता है।—1 राजा 13:1-6.

4. (क) ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि राजा की पेशकश से नबी की वफादारी की सचमुच परख होती? (ख) नबी का क्या जवाब था?

4 इसके बाद यारोबाम सच्चे परमेश्‍वर के बंदे से कहता है: “मेरे साथ घर आ कर भोजन करो। मैं तुम्हें उपहार दूँगा।” (1 राजा 13:7, बुल्के बाइबिल) अब नबी को क्या करना चाहिए? क्या उसे राजा के न्यौते को कबूल कर लेना चाहिए, इसके बावजूद कि उसने अभी राजा को तीखे शब्दों में न्यायदंड सुनाया है? (भज. 119:113) या क्या उसे उसके न्यौते को ठुकरा देना चाहिए, जबकि ऐसा मालूम होता है कि राजा को अपने किए पर पछतावा है? यारोबाम के पास बेशुमार दौलत है और वह जिन पर मेहरबान होता है, उन्हें सोने-चाँदी से मालामाल कर सकता है। अगर परमेश्‍वर के नबी के दिल में इन चीज़ों के लिए ज़रा-भी चाहत होती, तो राजा की पेशकश को ठुकराना उसके लिए बहुत मुश्‍किल हो सकता था। और इससे उसकी वफादारी की सचमुच परख होती। लेकिन यहोवा ने नबी को हुक्म दिया है: “[तू] न तो रोटी खाना, और न पानी पीना, और न उस मार्ग से लौटना जिस से तू जाएगा।” इसलिए नबी राजा को साफ-साफ जवाब देता है: “चाहे तू मुझे अपना आधा घर भी दे, तौभी तेरे घर न चलूंगा; और इस स्थान में मैं न तो रोटी खाऊंगा और न पानी पीऊंगा।” (1 राजा 13:8-10) नबी के इस फैसले से हम पूरे दिल से यहोवा को वफादारी दिखाने के बारे में क्या सीखते हैं?—रोमि. 15:4.

‘खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर सन्तोष कीजिए’

5. यह क्यों कहा जा सकता है कि धन-दौलत के पीछे भागने से हम यहोवा को वफादारी नहीं दिखा रहे होते हैं?

5 हमें शायद ऐसा न लगे कि धन-दौलत के पीछे भागने से हम यहोवा को वफादारी नहीं दिखा रहे होते हैं। लेकिन सच तो यही है। क्या हम यहोवा के इस वादे पर भरोसा रखते हैं कि वह हमारी ज़रूरतें पूरी करेगा? (मत्ती 6:33; इब्रा. 13:5) अगर ज़िंदगी की “बेहतरीन” चीज़ों को हासिल करना हमारे बस में नहीं है, तो उन्हें हर हाल में पाने के बजाय क्या हम उनके बगैर जी सकते हैं? (फिलिप्पियों 4:11-13 पढ़िए।) क्या हम अपनी चाहतों को पूरा करने की फिराक में कलीसिया या परमेश्‍वर की सेवा में मिलनेवाले मौकों को ठुकराने के लिए लुभाए जाते हैं? क्या हम वफादारी से यहोवा की सेवा करने को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं? इन सवालों के हम क्या जवाब देंगे, यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि हम तन-मन से परमेश्‍वर की सेवा करते हैं या नहीं। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “सन्तोष सहित भक्‍ति बड़ी कमाई है। क्योंकि न हम जगत में कुछ लाए हैं और न कुछ ले जा सकते हैं। और यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर सन्तोष करना चाहिए।”—1 तीमु. 6:6-8.

6. नबी की तरह हमारे सामने किन “उपहारों” की पेशकश रखी जा सकती है? और हम उन्हें कबूल करेंगे या नहीं, इसका हम कैसे फैसला कर सकते हैं?

6 मिसाल के लिए, हमारा बॉस शायद हमें प्रमोशन देना चाहे, जिससे हमें अच्छी तनख्वाह के साथ-साथ दूसरे कई फायदे मिल सकते हैं। या हो सकता है, हमें विदेश में नौकरी करने का मौका मिले और हमें लगे कि इससे हम ज़्यादा कमा सकेंगे। शुरू-शुरू में हमें लग सकता है कि ये मौके दरअसल यहोवा की तरफ से एक आशीष हैं। लेकिन कोई भी फैसला लेने से पहले हमें अपने इरादों की जाँच करनी चाहिए। और हमें खुद से यह अहम सवाल करना चाहिए: “मेरे इस फैसले का यहोवा के साथ मेरे रिश्‍ते पर कैसा असर होगा?”

7. धन-दौलत के लिए दिल में उठनेवाली इच्छाओं को उखाड़ फेंकना क्यों ज़रूरी है?

7 शैतान की दुनिया लगातार धन-दौलत और ऐशो-आराम की चीज़ों के पीछे भागने का बढ़ावा देती है। (1 यूहन्‍ना 2:15, 16 पढ़िए।) शैतान इन चीज़ों के ज़रिए हमारे दिलों को भ्रष्ट करना चाहता है। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम चौकन्‍ने रहें, ताकि अपने दिल में इन चीज़ों के लिए उठनेवाली इच्छाओं को पहचान सकें और उन्हें उखाड़ फेंकें। (प्रका. 3:15-17) शैतान ने यीशु के आगे भी दुनिया के सारे राज्य देने की पेशकश रखी थी, लेकिन उसने सीधे-सीधे उसे ठुकरा दिया। (मत्ती 4:8-10) यीशु ने खबरदार किया: “चौकस रहो, और हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो: क्योंकि किसी का जीवन उस की संपत्ति की बहुतायात से नहीं होता।” (लूका 12:15) अगर हम यहोवा के वफादार रहें, तो हम खुद पर भरोसा करने के बजाय यहोवा पर भरोसा करेंगे।

एक बूढ़े नबी ने “उस से झूठ कहा”

8. परमेश्‍वर के नबी की वफादारी कैसे परखी गयी?

8 अगर परमेश्‍वर का नबी सीधे अपने घर लौटता, तो सबकुछ ठीक होता। मगर ऐसा नहीं हुआ। यारोबाम को न्यायदंड सुनाने के तुरंत बाद उसके सामने एक और परीक्षा आती है। इस बारे में बाइबल कहती है: “बेतेल में एक बूढ़ा नबी रहता था, और उसके [बेटों] ने आकर उस से उन सब कामों का वर्णन किया” जो उस दिन हुए थे। यह खबर सुनते ही बूढ़ा नबी अपने बेटों को गधे पर काठी बाँधने को कहता है, ताकि वह उस पर सवार होकर परमेश्‍वर के नबी से मिलने जा सके। फिर बूढ़ा नबी निकल पड़ता है और कुछ ही समय बाद, वह उस नबी को एक बड़े पेड़ के नीचे बैठा पाता है और वह उससे कहता है: “मेरे संग घर चलकर भोजन कर।” जब सच्चे परमेश्‍वर का बंदा इस न्यौते को कबूल नहीं करता तो बूढ़ा नबी कहता है: “जैसा तू नबी है वैसा ही मैं भी नबी हूं; और मुझ से एक दूत ने यहोवा से वचन पाकर कहा, कि उस पुरुष को अपने संग अपने घर लौटा ले आ, कि वह रोटी खाए, और पानी पीए।” मगर बाइबल कहती है कि “उस ने उस से झूठ कहा।”—1 राजा 13:11-18.

9. छल से काम करनेवालों के बारे में बाइबल क्या कहती है और वे यहोवा के साथ किस-किस के रिश्‍ते को तबाह करते हैं?

9 हम यह तो नहीं जानते कि इस बूढ़े नबी ने किस इरादे से परमेश्‍वर के बंदे से छल किया, लेकिन एक बात साफ है। वह यह कि उसने उससे झूठ बोला। हो सकता है, बूढ़ा नबी पहले यहोवा का वफादार रहा हो। मगर इस वक्‍त वह छल से काम कर रहा था। बाइबल इस तरह के बर्ताव की सख्त निंदा करती है। (नीतिवचन 3:32 पढ़िए।) छल से काम करनेवाले यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को तबाह करते हैं। यही नहीं, वे यहोवा के साथ दूसरे के रिश्‍ते को भी जोखिम में डालते हैं।

‘वह बूढ़े नबी के संग लौट गया’

10. बूढ़े नबी का न्यौता पाने पर परमेश्‍वर के नबी ने क्या किया और इसका क्या अंजाम हुआ?

10 यहूदा के नबी को समझ जाना चाहिए था कि वह बूढ़ा नबी उसे धोखा देने के लिए चाल चल रहा था। वह खुद से पूछ सकता था, ‘यहोवा मुझे नयी हिदायतें देने के लिए अपने स्वर्गदूत को किसी दूसरे के पास क्यों भेजेगा?’ या वह खुद यहोवा से पूछ सकता था कि क्या उसने वाकई उसके लिए कोई नयी हिदायतें दी हैं। लेकिन बाइबल में कहीं नहीं बताया गया है कि उसने ऐसा किया। इसके बजाय, “वह [बूढ़े नबी के] संग लौट गया और उसके घर में रोटी खाई और पानी पीया।” यहोवा इससे खुश नहीं था। जब वह नबी यहूदा को लौट रहा था, तो रास्ते में एक सिंह ने उसे मार डाला। कितने अफसोस की बात है कि एक नबी के तौर पर उसकी सेवा का इस तरह अंत हुआ।—1 राजा 13:19-25. *

11. अहिय्याह ने क्या अच्छी मिसाल कायम की?

11 दूसरी तरफ अहिय्याह नबी की मिसाल लीजिए, जिसे यारोबाम को राजा के तौर पर अभिषेक करने के लिए भेजा गया था। वह ज़िंदगी-भर यहोवा का वफादार बना रहा। जब वह बूढ़ा और अंधा था, तब यारोबाम का बेटा बीमार पड़ गया। उस वक्‍त यारोबाम ने अपनी पत्नी को अहिय्याह के पास यह पूछने के लिए भेजा कि उनके बीमार बेटे का क्या होगा। अहिय्याह ने निडरता के साथ भविष्यवाणी की कि यारोबाम का बेटा मर जाएगा। (1 राजा 14:1-18) अहिय्याह की वफादारी के लिए उसे कई आशीषें मिलीं। एक आशीष यह थी कि उसे परमेश्‍वर के ईश्‍वर-प्रेरित वचन में योगदान देने का सम्मान मिला। वह कैसे? आगे चलकर एज्रा याजक ने उसकी किताबों से जानकारी लेकर परमेश्‍वर के वचन में दर्ज़ की।—2 इति. 9:29.

12-14. (क) यहूदा से आए नबी के वाकये से हम क्या सबक सीखते हैं? (ख) जब प्राचीन बाइबल से सलाह देते हैं, तो उस बारे में प्रार्थना करना और गहराई से सोचना क्यों ज़रूरी है? उदाहरण देकर समझाइए।

12 यहूदा से आए उस नबी ने बूढ़े नबी के साथ जाने और उसके घर खाने-पीने से पहले यहोवा से सलाह क्यों नहीं ली, इस बारे में बाइबल कुछ नहीं बताती। क्या इसकी वजह यह तो नहीं कि बूढ़े नबी ने उससे वही बात कही, जो वह सुनना चाहता था? इस वाकये से हम क्या सबक सीखते हैं? हमें इस बात का पूरा यकीन होना चाहिए कि यहोवा हमसे जो भी करने को कहता है, वह एकदम सही है। और हमें ठान लेना चाहिए कि चाहे जो हो जाए, हम उसका कहा मानेंगे।

13 जब सलाह लेने की बात आती है, तो कुछ लोग सिर्फ उन्हीं बातों पर ध्यान देते हैं जो वे सुनना चाहते हैं। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। एक प्रचारक को ऐसी नौकरी मिल रही है, जिसे करने से उसके पास अपने परिवार और मसीही कामों के लिए बहुत कम समय बचेगा। वह एक प्राचीन से सलाह-मशविरा करता है। प्राचीन शायद शुरू में कहे कि वह यह तो नहीं बता सकता कि प्रचारक को अपने परिवार का पेट पालने के लिए यह नौकरी करनी चाहिए या नहीं। लेकिन वह शायद बताए कि यह नौकरी करने से क्या आध्यात्मिक खतरे हो सकते हैं। मगर अब सवाल उठता है कि क्या प्रचारक, सिर्फ शुरू में कही प्राचीन की बात को याद रखेगा? या क्या वह प्राचीन की बाकी बातों पर भी गहराई से सोचेगा? ज़ाहिर है कि अब इस भाई को तय करना होगा कि किस तरह का फैसला करने से यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता बरकरार रहेगा।

14 एक दूसरे उदाहरण पर गौर कीजिए। एक बहन एक प्राचीन से सलाह माँगती है कि क्या उसे अपने अविश्‍वासी पति से अलग हो जाना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि प्राचीन उस बहन को समझाएगा कि उसे अपने पति से अलग होना चाहिए या नहीं, यह उसका निजी फैसला है। लेकिन प्राचीन बहन को बताएगा कि इस मामले में बाइबल क्या कहती है। (1 कुरि. 7:10-16) क्या बहन प्राचीन की बातों पर विचार करेगी? या क्या उसने पहले से मन बना लिया है कि वह अपने पति को छोड़ देगी? बहन के लिए समझदारी इसी में होगी कि फैसला करने से पहले वह इस बारे में प्रार्थना करे और बाइबल में दी सलाह पर गहराई से सोचे।

अपनी मर्यादा को पहचानिए

15. परमेश्‍वर के नबी ने जो गलती की, उससे हम क्या सबक सीखते हैं?

15 परमेश्‍वर के नबी ने जो गलती की, उससे हम और क्या सबक सीखते हैं? नीतिवचन 3:5 कहता है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना।” इस नबी ने पहले कई मौकों पर यहोवा पर भरोसा दिखाया था। मगर जब बूढ़े नबी के संग जाने की बात आयी, तो इस मौके पर उसने अपनी समझ का सहारा लिया। इस गलती की वजह से वह अपनी जान से हाथ धो बैठा और यहोवा के साथ उसका अच्छा नाम खराब हो गया। यह घटना क्या ही ज़बरदस्त तरीके से सिखाती है कि यहोवा की सेवा करते वक्‍त हमें अपनी मर्यादा को पहचानना चाहिए और उसके वफादार रहना चाहिए।

16, 17. यहोवा के वफादार बने रहने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

16 हमारे मन में स्वार्थ की भावना हमें गलत राह पर ले जा सकती है। क्योंकि “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है।” (यिर्म. 17:9) अगर हम यहोवा के वफादार बने रहना चाहते हैं, तो हमें अपने पुराने मनुष्यत्व को उतार फेंकने में लगातार मेहनत करनी होगी। अपनी मर्यादा पार करना और खुद पर भरोसा रखना भी पुराने मनुष्यत्व का एक पहलू है जिसे हमें उखाड़ फेंकना होगा। इसके अलावा, हमें नए मनुष्यत्व को पहन लेना चाहिए “जो परमेश्‍वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता, और पवित्रता में सृजा गया है।”—इफिसियों 4:22-24 पढ़िए।

17 नीतिवचन 11:2 कहता है: “नम्र [“मर्यादाशील,” NW] लोगों में बुद्धि होती है।” अपनी मर्यादा को पहचानते हुए यहोवा पर भरोसा रखने से हम ऐसी गलतियाँ करने से बच सकते हैं जिनका अंजाम भयानक होता है। मिसाल के लिए, निराश होने पर हम बड़ी आसानी से गलत फैसला ले सकते हैं। (नीति. 24:10) हम पवित्र सेवा के किसी पहलू से ऊब सकते हैं और यह सोचने लग सकते हैं कि हमने बहुत कर लिया है, अब दूसरों को यह ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए। या हमारे अंदर यह चाहत पैदा हो सकती है कि औरों की तरह हम भी एक “आम” ज़िंदगी जीएँ। लेकिन ‘यत्न करने’ और ‘प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाने’ से हमारे दिल की हिफाज़त होगी।—लूका 13:24; 1 कुरि. 15:58.

18. अगर हमें कोई फैसला लेते वक्‍त सही रास्ता न सूझे, तो हमें क्या करना चाहिए?

18 कभी-कभी हमें शायद बहुत मुश्‍किल फैसला करना पड़े और हमें सही रास्ता न सूझे। ऐसे में, क्या हमारा मन करता है कि मामले से निपटने के लिए हम अपनी समझ का सहारा लें? अगर हम खुद को ऐसे हालात में पाते हैं, तो अच्छा होगा कि हम यहोवा से मदद माँगें। याकूब 1:5 कहता है: “यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्‍वर से मांगे, जो . . . सब को उदारता से देता है।” जी हाँ, स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता हमें अपनी पवित्र शक्‍ति देगा, ताकि हम सही फैसला कर सकें।लूका 11:9, 13 पढ़िए।

वफादार रहने का पक्का इरादा कर लीजिए

19, 20. हमें क्या करने का पक्का इरादा कर लेना चाहिए?

19 सुलैमान का सच्ची उपासना से दूर जाने के बाद जो मुश्‍किल भरा दौर शुरू हुआ, उसमें परमेश्‍वर के सेवकों की वफादारी ज़बरदस्त तरीके से परखी गयी। यह सच है कि कइयों ने किसी-न-किसी तरीके से समझौता किया, लेकिन कुछ सेवक यहोवा के वफादार बने रहे।

20 हर दिन हमें ऐसे चुनाव और फैसले करने पड़ते हैं, जिनसे हमारी वफादारी परखी जाती है। ऐसे में, हम भी साबित कर सकते हैं कि हम वफादार हैं। तो आइए, हम यह पक्का इरादा कर लें कि हम एक चित्त होकर यहोवा के हमेशा वफादार रहेंगे। और इस बात का पूरा भरोसा रखेंगे कि “किसी वफादार के साथ [यहोवा] वफादारी से पेश आएगा।”—2 शमू. 22:26, NW.

[फुटनोट]

^ बाइबल यह नहीं बताती कि यहोवा ने बूढ़े नबी को भी मारा या नहीं।

आप क्या जवाब देंगे?

• हमें धन-दौलत और ऐशो-आराम की चीज़ों के लिए दिल में उठनेवाली इच्छाओं को क्यों उखाड़ फेंकना चाहिए?

• यहोवा के वफादार बने रहने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

• अपनी मर्यादा को पहचानने से हम परमेश्‍वर के वफादार कैसे बने रह सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीरें]

क्या आपको दुनिया की लुभावनी चीज़ों को ठुकराना मुश्‍किल लगता है?

[पेज 10 पर तसवीरें]

क्या आप बाइबल से दी सलाह पर गहराई से सोचेंगे और उस बारे में प्रार्थना करेंगे?