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यहोवा अपने वफादार जनों को कभी नहीं छोड़ेगा

यहोवा अपने वफादार जनों को कभी नहीं छोड़ेगा

यहोवा अपने वफादार जनों को कभी नहीं छोड़ेगा

‘यहोवा अपने भक्‍तों [“वफादार जनों,” NW] को न तजेगा। उनकी तो रक्षा सदा होती है।’—भज. 37:28.

1, 2. (क) सामान्य युग पूर्व दसवीं सदी में क्या घटनाएँ घटीं, जिनसे परमेश्‍वर के सेवकों की वफादारी परखी गयी? (ख) किन तीन हालात में यहोवा ने अपने वफादार सेवकों की रक्षा की?

 बात सा.यु.पू. दसवीं सदी की है। इस्राएल में उत्तर के दस गोत्र राजा के खिलाफ बगावत करते हैं। ऐसा लगता है कि गृह-युद्ध छिड़ जाएगा, मगर ऐसा नहीं होता। इसके बजाय, दस गोत्रों को अपना एक अलग राज्य दे दिया जाता है। वे यारोबाम को अपना राजा बनाते हैं। यारोबाम अपनी सत्ता मज़बूत करने के लिए फौरन कदम उठाता है। वह अपनी रियासत में एक नया धर्म शुरू करता है और प्रजा से पूरी वफादारी की माँग करता है। यहोवा के वफादार सेवकों के लिए यह एक परीक्षा की घड़ी है। क्या वे राजा की बात मानेंगे या अपने परमेश्‍वर के वफादार बने रहेंगे? हज़ारों लोग यहोवा के वफादार रहते हैं। बदले में, यहोवा उनकी हिफाज़त करता है।—1 राजा 12:1-33; 2 इति. 11:13, 14.

2 आज भी परमेश्‍वर के सेवकों की वफादारी परखी जाती है। बाइबल हमें आगाह करती है: “सचेत हो, और जागते रहो, क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह की नाईं इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए।” क्या हम ‘विश्‍वास में दृढ़ होकर शैतान का साम्हना करने’ में कामयाब हो सकते हैं? (1 पत. 5:8, 9) यह जानने के लिए आइए देखें कि यारोबाम के राजा बनने से पहले और बाद में क्या घटनाएँ घटीं और इनसे हम क्या सीख सकते हैं। उस मुश्‍किल-भरे दौर में यहोवा के वफादार सेवकों पर बहुत ज़ुल्म ढाए गए। उन्हें धर्मत्याग का भी सामना करना पड़ा, साथ ही उन्हें परमेश्‍वर से ऐसे काम भी मिले जिन्हें करने से उनकी जान जा सकती थी। इन तीनों हालात में यहोवा ने अपने वफादार सेवकों को नहीं छोड़ा और ना ही वह आज अपने वफादार लोगों को छोड़ेगा।—भज. 37:28.

अत्याचार सहते वक्‍त

3. दाऊद की हुकूमत में अत्याचार क्यों नहीं होता था?

3 सबसे पहले आइए देखें कि यारोबाम किन हालात में राजा बना। नीतिवचन 29:2 (NHT) कहता है: “जब एक दुष्ट मनुष्य शासन करता है तो लोग कराह उठते हैं।” लेकिन दाऊद ऐसा राजा नहीं था। उसकी हुकूमत में कोई भी आहें नहीं भरता था और ना ही कराहता था। इसका यह मतलब नहीं कि दाऊद सिद्ध था। दरअसल वह परमेश्‍वर का वफादार था और उस पर भरोसा रखता था। इसलिए उसकी हुकूमत में अत्याचार या ज़ुल्म नहीं होता था। यहोवा ने दाऊद के साथ एक वाचा बाँधी और उससे कहा: “तेरा घराना और तेरा राज्य मेरे साम्हने सदा अटल बना रहेगा; तेरी गद्दी सदैव बनी रहेगी।”—2 शमू. 7:16.

4. यहोवा से आशीषें पाने के लिए सुलैमान और उसकी प्रजा को क्या शर्त पूरी करनी थी?

4 दाऊद के बेटे सुलैमान की हुकूमत में शुरू-शुरू में इतनी शांति और खुशहाली थी कि कहा जाता है, उसकी हुकूमत मसीह यीशु के हज़ार साल के राज की एक झलक है। (भज. 72:1, 17) सुलैमान की हुकूमत के दौरान, इस्राएल के 12 गोत्रों में से किसी के पास बगावत करने की कोई वजह नहीं थी। लेकिन इन आशीषों का लुत्फ उठाने के लिए सुलैमान और उसकी प्रजा को एक शर्त पूरी करनी थी। वह क्या? यहोवा ने सुलैमान से कहा था: “यदि तू मेरी विधियों पर चलेगा, और मेरे नियमों को मानेगा, और मेरी सब आज्ञाओं पर चलता हुआ उनका पालन करता रहेगा, तो जो वचन मैं ने तेरे विषय में तेरे पिता दाऊद को दिया था उसको मैं पूरा करूंगा। और मैं इस्राएलियों के मध्य में निवास करूंगा, और अपनी इस्राएली प्रजा को न तजूंगा।”—1 राजा 6:11-13.

5, 6. जब सुलैमान परमेश्‍वर का वफादार नहीं रहा, तो इसका क्या अंजाम हुआ?

5 लेकिन जब सुलैमान बूढ़ा हुआ, तब वह यहोवा का वफादार नहीं रहा और उसने झूठे देवी-देवताओं की उपासना करनी शुरू कर दी। (1 राजा 11:4-6) फिर देखते-ही-देखते सुलैमान ने यहोवा के नियम-कानूनों को मानना छोड़ दिया और लोगों पर बहुत अत्याचार करने लगा। उसने प्रजा पर इतना भारी बोझ लाद दिया कि उसकी मौत के बाद भी लोगों ने उसके बेटे, रहूबियाम से उसके बारे में शिकायत की और अपना बोझ हलका करने की गुज़ारिश की। (1 राजा 12:4) सुलैमान के वफादार न रहने पर यहोवा ने क्या किया?

6 बाइबल बताती है: “यहोवा ने सुलैमान पर क्रोध किया, क्योंकि उसका मन इस्राएल के परमेश्‍वर . . . से फिर गया था जिस ने दो बार उसको दर्शन दिया था।” यहोवा ने सुलैमान से कहा: “मेरी बन्धाई हुई वाचा और दी हुई विधि तू ने पूरी नहीं की, इस कारण मैं राज्य को निश्‍चय तुझ से छीनकर तेरे एक कर्मचारी को दे दूंगा।”—1 राजा 11:9-11.

7. हालाँकि यहोवा ने सुलैमान को ठुकरा दिया, मगर उसने अपने वफादार लोगों के लिए कैसी परवाह दिखायी?

7 इसके बाद, यहोवा ने अहिय्याह नबी को एक ऐसे शख्स का अभिषेक करने को भेजा, जो लोगों को सुलैमान के अत्याचार से छुटकारा दिलाता। वह शख्स यारोबाम था, जो बहुत ही काबिल था और सुलैमान के दरबार में काम करता था। हालाँकि यहोवा ने दाऊद के साथ बाँधी राज्य की वाचा नहीं तोड़ी, मगर उसने 12 गोत्रों का बँटवारा होने दिया। दस गोत्र पर यारोबाम को राज करने दिया गया, जबकि दो गोत्र दाऊद के खानदान के अधीन रहे और जिन पर रहूबियाम की हुकूमत थी। (1 राजा 11:29-37; 12:16, 17, 21) यहोवा ने यारोबाम से कहा: “यदि तू मेरे दास दाऊद की नाईं मेरी सब आज्ञाएं माने, और मेरे मार्गों पर चले, और जो काम मेरी दृष्टि में ठीक है, वही करे, और मेरी विधियां और आज्ञाएं मानता रहे, तो मैं तेरे संग रहूंगा, और जिस तरह मैं ने दाऊद का घराना बनाए रखा है, वैसे ही तेरा भी घराना बनाए रखूंगा, और तेरे हाथ इस्राएल को दूंगा।” (1 राजा 11:38) इस तरह यहोवा ने अपने लोगों की खातिर कदम उठाया और उन्हें अत्याचार से छुड़ाने का रास्ता निकाला।

8. आज किन तरीकों से परमेश्‍वर के लोगों पर ज़ुल्म ढाए जा रहे हैं?

8 आज भी चारों तरफ ज़ुल्म और नाइंसाफी का बोलबाला है। सभोपदेशक 8:9 कहता है: “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।” व्यापार व्यवस्था के लालच और सरकारों की बेईमानी की वजह से लोगों को घोर तंगहाली झेलनी पड़ती है। इसके अलावा, राजनेता, बड़े-बड़े बिज़नेसमैन और धर्म के अगुवे नैतिक मामलों में अच्छी मिसाल नहीं रखते। इसलिए धर्मी लूत की तरह, परमेश्‍वर के वफादार सेवक भी “अधर्मियों के अशुद्ध चालचलन से बहुत दुखी” हो जाते हैं। (2 पत. 2:7) और हालाँकि हम परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक जीते हैं और किसी को तकलीफ नहीं पहुँचाते, फिर भी अकसर हम शासकों के ज़ुल्मों का निशाना बनते हैं।—2 तीमु. 3:1-5, 12.

9. (क) यहोवा ने अपने लोगों को छुड़ाने के लिए अब तक क्या किया है? (ख) हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यीशु हमेशा परमेश्‍वर का वफादार रहेगा?

9 चाहे हमें कितने ही अत्याचार क्यों न सहने पड़ें, हम एक बात का पूरा यकीन रख सकते हैं। वह यह कि यहोवा अपने वफादार सेवकों को कभी नहीं छोड़ेगा। ज़रा गौर कीजिए कि उसने इस दुनिया की तमाम भ्रष्ट सरकारों को हटाने के लिए अब तक क्या किया है। वह मसीहाई राज्य को स्वर्ग में स्थापित कर चुका है और मसीह यीशु को उसका राजा बनाया है। यीशु को स्वर्ग में हुकूमत करते हुए लगभग सौ साल हो गए हैं। और बहुत जल्द वह उन सबको पूरी तरह से राहत पहुँचाएगा, जो परमेश्‍वर के नाम का भय मानते हैं। (प्रकाशितवाक्य 11:15-18 पढ़िए।) यीशु ने मरते दम तक परमेश्‍वर के लिए अपनी वफादारी साबित की है। वह कभी अपनी प्रजा को निराश नहीं करेगा, जैसा सुलैमान ने किया था।—इब्रा. 7:26; 1 पत. 2:6, NHT.

10. (क) हम कैसे दिखाते हैं कि हमें परमेश्‍वर के राज्य पर पूरा भरोसा है? (ख) जब हम पर आज़माइश आती है, तब हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?

10 परमेश्‍वर का यह राज्य एक हकीकत है और वह बहुत जल्द हर तरह के अत्याचार को मिटा देगा। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम यहोवा परमेश्‍वर और उसके राज्य के लिए वफादारी दिखाते हैं। और इस राज्य पर पूरा भरोसा रखते हुए दुनिया के भक्‍तिहीन कामों से दूर रहते हैं और अच्छे कामों में सरगर्म रहते हैं। (तीतु. 2:12-14) इसके अलावा, हम इस संसार से निष्कलंक रहने की कोशिश करते हैं। (2 पत. 3:14) फिलहाल हम पर चाहे जो भी आज़माइश आए, हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारे विश्‍वास को कमज़ोर नहीं पड़ने देगा। (भजन 97:10 पढ़िए।) यही नहीं, भजन 116:15 हमें यकीन दिलाता है: “यहोवा के भक्‍तों [“वफादार जनों,” NW] की मृत्यु, उसकी दृष्टि में अनमोल हैं।” जी हाँ, यहोवा को अपने सेवक इतने प्यारे हैं कि वह उन्हें एक समूह के तौर पर कभी नहीं मिटने देगा।

धर्मत्यागियों का सामना करते वक्‍त

11. यारोबाम ने कैसे परमेश्‍वर से बेवफाई की?

11 यारोबाम अपनी हुकूमत से परमेश्‍वर के लोगों को थोड़ी-बहुत राहत पहुँचा सकता था। मगर उसने ऐसा नहीं किया। उलटा, उसने कुछ ऐसे काम किए जिनसे परमेश्‍वर के लिए लोगों की वफादारी और भी परखी गयी। दरअसल यारोबाम को राजा बनने का जो खास सम्मान मिला था, उससे वह खुश नहीं था। इस वजह से वह अपनी हुकूमत को मज़बूत करने के मंसूबे बाँधने लगा। उसने सोचा: “यदि प्रजा के लोग यरूशलेम में बलि करने को जाएं, तो उनका मन अपने स्वामी यहूदा के राजा रहूबियाम की ओर फिरेगा, और वे मुझे घात करके यहूदा के राजा रहूबियाम के हो जाएंगे।” इसलिए उसने सोने के दो बछड़े बनवाकर एक नया धर्म शुरू किया। फिर उसने “एक बछड़े को बेतेल, और दूसरे को दान में स्थापित किया। और यह बात पाप का कारण हुई; क्योंकि लोग उस एक के साम्हने दण्डवत करने को दान तक जाने लगे। और उस ने ऊंचे स्थानों के भवन बनाए, और सब प्रकार के लोगों में से जो लेवीवंशी न थे, याजक ठहराए।” यहाँ तक कि यारोबाम ने ‘इस्राएलियों के लिये पर्व्व’ मनाने का अलग से एक दिन भी ठहराया और उस दिन वह “धूप जलाने को वेदी के पास चढ़ गया।”—1 राजा 12:26-33.

12. जब यारोबाम ने उत्तरी राज्य में बछड़े की उपासना शुरू करवायी, तो परमेश्‍वर के वफादार जनों ने क्या किया?

12 ऐसे हालात में उत्तरी राज्य में रहनेवाले परमेश्‍वर के वफादार जनों ने क्या किया? लेवियों की मिसाल लीजिए, जिन्हें उस राज्य में रहने के लिए नगर दिए गए थे। उन्होंने अपने पूर्वजों की तरह यहोवा के लिए वफादारी दिखाने में ज़रा-भी वक्‍त नहीं गँवाया। (निर्ग. 32:26-28; गिन. 35:6-8; व्यव. 33:8, 9) वे अपने नगर और चराइयाँ छोड़कर अपने परिवार समेत दक्षिण में यहूदा को चले गए, ताकि वहाँ वे बिना किसी बाधा के यहोवा की उपासना कर सकें। (2 इति. 11:13, 14) उनके अलावा, जो इस्राएली कुछ समय के लिए यहूदा में रह रहे थे, उन्होंने भी फैसला किया कि वे अपने घर इस्राएल वापस नहीं जाएँगे, बल्कि यहूदा में ही रहेंगे। (2 इति. 10:17) यहोवा ने सच्ची उपासना की तरफ वापस लौटने का रास्ता हमेशा खुला रखा, ताकि उत्तरी राज्य की आनेवाली पीढ़ियों में से अगर कोई चाहे, तो बछड़े की उपासना छोड़कर वापस यहूदा आ सके।—2 इति. 15:9-15.

13. हमारे समय में धर्मत्यागियों के बुरे असर से परमेश्‍वर के लोगों की आज़माइश कैसे हुई है?

13 आज भी परमेश्‍वर के लोगों को धर्मत्यागियों से या उनके बुरे असर से खतरा रहता है। कुछ शासकों ने सरकारी धर्म शुरू किया है और लोगों पर सिर्फ उसी धर्म को मानने का दबाव डाला है। ईसाईजगत के पादरियों और दूसरे गुस्ताख लोगों ने यह दावा किया है कि वे परमेश्‍वर के आत्मिक मंदिर के याजकवर्ग हैं। मगर हम जानते हैं कि “राजकीय याजकों का समाज” सिर्फ अभिषिक्‍त जनों से मिलकर बना है और ये लोग सिर्फ सच्चे मसीहियों के बीच पाए जाते हैं।—1 पत. 2:9, NHT; प्रका. 14:1-5.

14. धर्मत्यागियों के विचारों की तरफ हमारा क्या रवैया होना चाहिए?

14 सामान्य युग पूर्व दसवीं सदी के वफादार लेवियों की तरह, आज भी परमेश्‍वर के वफादार सेवक धर्मत्यागियों के विचारों से गुमराह नहीं होते। अभिषिक्‍त मसीही और उनके साथी, धर्मत्यागियों के विचारों से दूर रहने और उन्हें ठुकराने में ज़रा-भी नहीं हिचकिचाते। (रोमियों 16:17 पढ़िए।) हालाँकि हम गैर-धार्मिक मामलों में खुशी-खुशी सरकारी अधिकारियों के अधीन रहते हैं, मगर हम दुनिया के लड़ाई-झगड़ों में किसी का पक्ष नहीं लेते और परमेश्‍वर के राज्य के वफादार रहते हैं। (यूह. 18:36; रोमि. 13:1-8) हम ऐसे लोगों को ठुकराते हैं जो परमेश्‍वर की सेवा करने का दावा तो करते हैं, मगर अपने चालचलन से उसका अपमान करते हैं।—तीतु. 1:16.

15. हमें क्यों “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के वफादार रहना चाहिए?

15 ज़रा इस सच्चाई पर भी गौर कीजिए। यहोवा ने नेकदिल लोगों के लिए यह मुमकिन किया है कि वे लाक्षणिक मायने में इस दुष्ट संसार से निकलकर उसके आध्यात्मिक फिरदौस में आएँ। (2 कुरि. 12:1-4) हम एहसान-भरे दिल से “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के करीब रहते हैं “जिसे स्वामी ने अपने नौकर चाकरों पर सरदार ठहराया, कि समय पर उन्हें भोजन दे।” मसीह ने इस दास को “अपनी सारी संपत्ति” की देखरेख करने का ज़िम्मा सौंपा है। (मत्ती 24:45-47) इसलिए जब दास वर्ग किसी मामले पर कोई फैसला लेता है और हम उसकी वजह पूरी तरह समझ नहीं पाते, तो हमें उस फैसले को ठुकराना नहीं चाहिए। और ना ही हमें नाराज़ होकर शैतान की दुनिया में वापस जाना चाहिए। इसके बजाय, हमारी वफादारी हमें उकसाएगी कि हम नम्र बने रहें और यहोवा पर भरोसा रखें कि वह अपने समय पर उस मामले की साफ समझ देगा।

परमेश्‍वर का दिया काम पूरा करते वक्‍त

16. यहूदा के एक नबी को परमेश्‍वर से क्या काम मिला?

16 यहोवा ने यारोबाम को सच्ची उपासना से दूर जाने की वजह से ठुकरा दिया। उसने यहूदा के एक नबी को इस्राएल के उत्तर में बेतेल जाने को कहा। और उसे यारोबाम को ठीक उसी वक्‍त एक दिल दहलानेवाला न्यायदंड का संदेश सुनाना था, जब वह वेदी पर धूप जलाने जा रहा था। इसमें कोई शक नहीं यह काम बड़ा ही चुनौती-भरा था।—1राजा 13:1-3.

17. यहोवा ने अपने नबी की कैसे हिफाज़त की?

17 यहोवा का संदेश सुनते ही यारोबाम की आँखों में खून उतर आया। उसने परमेश्‍वर के नबी की तरफ हाथ बढ़ाया और चिल्लाकर अपने आदमियों से कहा: “उसको पकड़ लो।” मगर इससे पहले कि कोई कुछ करता, “उसका हाथ जो [उसने नबी की] ओर बढ़ाया . . . था, सूख गया और वह उसे अपनी ओर खींच न सका। और वेदी फट गई, और उस पर की राख गिर गई।” तब यारोबाम ने मजबूर होकर नबी से मिन्‍नत की कि वह यहोवा को मनाए और उससे प्रार्थना करे कि उसका सूखा हुआ हाथ ठीक हो जाए। नबी ने यहोवा से प्रार्थना की और यारोबाम का हाथ फिर पहले जैसा हो गया। इस तरह यहोवा ने अपने नबी का बाल भी बाँका नहीं होने दिया।—1राजा 13:4-6.

18. जब हम निडर होकर यहोवा की पवित्र सेवा करते हैं, तब वह किस तरह हमारी हिफाज़त करता है?

18 हम भी जब पूरी वफादारी से राज्य का प्रचार और चेला बनाने का काम करते हैं, तो कभी-कभी हमारी मुलाकात ऐसे लोगों से होती है, जो बेरुखी से पेश आते हैं या हमारा विरोध करते हैं। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) लेकिन इस डर से प्रचार के लिए हमारा जोश कभी ठंडा नहीं पड़ना चाहिए। यारोबाम के दिनों के उस बेनाम नबी की तरह हमें भी यह सम्मान मिला है कि हम “पवित्रता [“वफादारी,” NW] और धार्मिकता से जीवन भर निडर रहकर [यहोवा] की सेवा करते रहें।” * (लूका 1:74, 75) हालाँकि आज यहोवा किसी चमत्कार के ज़रिए हमें नहीं बचाता, लेकिन वह अपनी पवित्र शक्‍ति और स्वर्गदूतों के ज़रिए हमारी हिफाज़त करता है। (यूहन्‍ना 14:15-17; प्रकाशितवाक्य 14:6 पढ़िए।) परमेश्‍वर उन लोगों को कभी अकेला नहीं छोड़ेगा, जो निधड़क होकर उसके वचन का ऐलान करते हैं।—फिलि. 1:14, 28.

यहोवा अपने वफादार जनों की हिफाज़त करेगा

19, 20. (क) हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमें कभी अकेला नहीं छोड़ेगा? (ख) अगले लेख में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी?

19 यहोवा वफादार परमेश्‍वर है। वह “अपने सब कामों में वफादार है।” (भज. 145:17, NW) बाइबल हमें यकीन दिलाती है: “वह अपने भक्‍तों [“वफादार जनों,” NW] के मार्ग की रक्षा करता है।” (नीति. 2:8) इसलिए परमेश्‍वर के वफादार सेवक इस बात का पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हर हाल में उन्हें राह दिखाएगा और उनकी मदद करेगा। फिर चाहे उन्हें ज़ुल्मों या धर्मत्यागियों का सामना करना पड़े, या उन्हें कोई चुनौती-भरा काम करना पड़े।

20 अब हममें से हरेक को इस बात पर गहराई से सोचना चाहिए: चाहे मुझे लुभाया जाए या मेरे सामने आज़माइशें आएँ, क्या बात मुझे यहोवा का वफादार बने रहने में मदद देगी? दूसरे शब्दों में कहें तो, मैं परमेश्‍वर के लिए अपनी वफादारी को चट्टान की तरह कैसे मज़बूत बना सकता हूँ?

[फुटनोट]

^ इस नबी ने आगे चलकर यहोवा की आज्ञा मानी या नहीं, और उसके साथ क्या हुआ, इस बारे में अगले लेख में चर्चा की जाएगी।

आप क्या जवाब देंगे?

• यहोवा ने कैसे दिखाया कि जब उसके वफादार जन अत्याचार का सामना करते हैं, तब वह उन्हें नहीं छोड़ता?

• धर्मत्यागियों और उनके विचारों की तरफ हमारा क्या रवैया होना चाहिए?

• जब यहोवा के वफादार जन प्रचार में हिस्सा लेते हैं, तब वह किस तरह उनकी हिफाज़त करता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 5 पर नक्शा/तसवीर]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

उत्तरी राज्य (यारोबाम)

दान

शेकेम

बेतेल

दक्षिणी राज्य (रहूबियाम)

यरूशलेम

[तसवीर]

जब यारोबाम ने बछड़े की उपासना शुरू करवायी, तब यहोवा ने अपने वफादार जनों को नहीं छोड़ा

[पेज 3 पर तसवीर]

यहोवा से आशीषें पाने के लिए सुलैमान और उसकी प्रजा को एक शर्त पूरी करनी थी