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क्या आप आदर दिखाने में अच्छी मिसाल रखते हैं?

क्या आप आदर दिखाने में अच्छी मिसाल रखते हैं?

क्या आप आदर दिखाने में अच्छी मिसाल रखते हैं?

“परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।”—रोमि. 12:10.

1. आज ज़्यादातर लोग क्या नहीं करते?

 दुनिया के कुछ हिस्सों में यह रिवाज़ है कि जब बड़े-बुज़ुर्ग बैठे होते हैं, तो बच्चे उनके सामने खड़े नहीं रहते, बल्कि घुटनों के बल उनके पास बैठ जाते हैं। इस तरह बुज़ुर्गों के लिए आदर दिखाया जाता है। वहीं अगर एक बच्चा बुज़ुर्गों की तरफ पीठ करता है, तो यह अनादर की बात मानी जाती है। हर संस्कृति में आदर दिखाने के अलग-अलग तरीके होते हैं। तरीका चाहे जो भी हो, मगर इनसे हमें मूसा की कानून-व्यवस्था का एक नियम याद आता है। उस नियम में कहा गया है: “जिन के सिर के बाल सफेद हैं, तुम [इज़्ज़त देने के लिए] उन के सामने उठ खड़े होना, और बड़े बूढ़े का अदब करना।” (लैव्य. 19:32, किताब-ए-मुकद्दस) मगर अफसोस, आज ज़्यादातर लोग एक-दूसरे को आदर और सम्मान नहीं देते। इसके बजाय, जहाँ देखो वहाँ अनादर का बोलबाला है।

2. परमेश्‍वर का वचन हमें किन्हें आदर देने को कहता है?

2 परमेश्‍वर का वचन दूसरों का आदर करने पर ज़ोर देता है। यह बताता है कि हम यहोवा और यीशु का आदर करें। (यूह. 5:23) हमें यह आज्ञा भी दी गयी है कि हम अपने परिवारवालों, मसीही भाई-बहनों और बाहरवालों का आदर करें। (रोमि. 12:10; इफि. 6:1, 2; 1 पत. 2:17) हम किन तरीकों से दिखा सकते हैं कि हम यहोवा का सम्मान करते हैं? हम अपने मसीही भाई-बहनों के लिए गहरा आदर कैसे दिखा सकते हैं? आइए इन सवालों और इन्हीं से जुड़े दूसरे सवालों के जवाब देखें।

यहोवा और उसके नाम का सम्मान कीजिए

3. यहोवा को सम्मान देने का एक अहम तरीका क्या है?

3 यहोवा को सम्मान देने का एक अहम तरीका है, उसके नाम का आदर करना। और ऐसा करना ज़रूरी भी है, आखिर हम ‘उसके नाम के लोग’ जो ठहरे। (प्रेरि. 15:14) सचमुच, यह हमारे लिए क्या ही फख्र की बात है कि हम सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर यहोवा का नाम धारण करते हैं। भविष्यवक्‍ता मीका ने कहा था: “सब राज्यों के लोग तो अपने अपने देवता का नाम लेकर चलते हैं, परन्तु हम लोग अपने परमेश्‍वर यहोवा का नाम लेकर सदा सर्वदा चलते रहेंगे।” (मीका 4:5) ‘यहोवा का नाम लेकर चलने’ का मतलब है, ऐसी ज़िंदगी जीना, जिससे उसके नाम की बड़ाई हो। लेकिन अगर हम उन बातों के मुताबिक न जीएँ जो हम दूसरों को सिखाते हैं, तो परमेश्‍वर के नाम की “निन्दा” होगी या उसके नाम पर लांछन लगेगा। यही बात पौलुस ने रोम के मसीहियों से कही थी।—रोमि. 2:21-24.

4. यहोवा के साक्षी होने के सुअवसर को आप किस नज़र से देखते हैं?

4 हम प्रचार काम के ज़रिए भी यहोवा को सम्मान देते हैं। बीते ज़माने में, यहोवा ने इस्राएल जाति को उसका साक्षी होने के लिए बुलाया था, मगर वे यह ज़िम्मेदारी निभाने से चूक गए। (यशा. 43:1-12) वे बार-बार यहोवा से मुँह मोड़ लेते थे और “इस्राएल के पवित्र को खेदित करते थे।” (भज. 78:40, 41) आखिरकार उस जाति ने पूरी तरह से यहोवा की मंज़ूरी खो दी। लेकिन हम कितने एहसानमंद हैं कि आज हमें उसके साक्षी होने और उसके नाम का ऐलान करने का सुअवसर मिला है। हम इस सुअवसर का पूरा फायदा उठाते हैं, क्योंकि हम परमेश्‍वर से प्यार करते हैं और वह दिन देखने के लिए तरसते हैं, जब उसके नाम को पवित्र किया जाएगा। क्या ऐसा हो सकता है कि हम यहोवा और उसके मकसदों के बारे में सच्चाई जानते हुए भी चुप रहें? कभी नहीं! प्रचार काम के बारे में हम प्रेरित पौलुस की तरह महसूस करते हैं, जिसने कहा: “यह तो मेरे लिये अवश्‍य है; और यदि मैं सुसमाचार न सुनाऊं, तो मुझ पर हाय।”—1 कुरि. 9:16.

5. यहोवा पर विश्‍वास करने और उसे सम्मान देने के बीच क्या ताल्लुक है?

5 भजनहार दाऊद ने कहा: “तेरे नाम के जाननेवाले तुझ पर भरोसा रखेंगे, क्योंकि हे यहोवा तू ने अपने खोजियों को त्याग नहीं दिया।” (भज. 9:10) अगर हम वाकई यहोवा को जानते हैं और उसका आदर करते हैं, तो हम उस पर पूरा भरोसा रखेंगे, ठीक जैसे पुराने ज़माने के उसके वफादार सेवकों ने किया था। यहोवा पर भरोसा या विश्‍वास रखने के ज़रिए भी हम उसे सम्मान देते हैं। ध्यान दीजिए कि बाइबल बताती है कि यहोवा पर भरोसा रखने और उसे सम्मान देने के बीच क्या ताल्लुक है। जब इस्राएली यहोवा पर भरोसा रखने से चूक गए, तब उसने मूसा से पूछा: “वे लोग कब तक मेरा तिरस्कार करते रहेंगे? और मेरे सब आश्‍चर्यकर्म देखने पर भी कब तक मुझ पर विश्‍वास न करेंगे?” (गिन. 14:11) इससे पता चलता है कि यहोवा पर भरोसा न रखने का मतलब है उसका अनादर करना। वहीं दूसरी तरफ जब हम यहोवा पर भरोसा रखते हैं कि वह अच्छे-बुरे वक्‍त में हमारी हिफाज़त करेगा और हमें सँभालेगा, तो हम उसका सम्मान करते हैं।

6. यहोवा का दिल से आदर करने के लिए क्या बात हमें उभारती है?

6 यीशु ने एक मौके पर इस बात की तरफ इशारा किया कि हमें दिल से यहोवा का आदर करना चाहिए। वह उन लोगों से बात कर रहा था, जो सच्चे दिल से यहोवा की उपासना नहीं कर रहे थे। उसने यहोवा के शब्दों का हवाला देते हुए कहा: “ये लोग होठों से तो मेरा आदर करते हैं, पर उन का मन मुझ से दूर रहता है।” (मत्ती 15:8) हम यहोवा का दिल से आदर तभी कर पाएँगे, जब हमें उससे सच्चा प्यार होगा, क्योंकि यह प्यार ही हमें उसका आदर करने को उभारता है। (1 यूह. 5:3) ऐसा आदर दिखानेवालों से यहोवा वादा करता है: “जो मेरा आदर करें मैं उनका आदर करूंगा।”—1 शमू. 2:30.

कलीसिया के अध्यक्ष दूसरों का आदर करते हैं

7. (क) ज़िम्मेदार भाइयों को अपने अधीन रहनेवाले भाई-बहनों का क्यों आदर करना चाहिए? (ख) पौलुस ने अपने संगी मसीहियों को कैसे आदर दिखाया?

7 प्रेरित पौलुस ने अपने संगी मसीहियों को उकसाया: “परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।” (रोमि. 12:10) कलीसिया में जो भाई जिम्मेदारी के पद पर हैं, खासकर उन्हें अपने अधीन रहनेवाले भाई-बहनों का आदर करने में ‘बढ़ चलना’ चाहिए। मतलब, उन्हें आदर दिखाने में आदर्श बनना चाहिए। इस मामले में पौलुस उनके लिए एक अच्छी मिसाल है। (1 थिस्सलुनीकियों 2:7, 8 पढ़िए।) जिन कलीसियाओं का पौलुस ने दौरा किया था, वहाँ के भाई जानते थे कि पौलुस उनसे ऐसा कोई काम करने को नहीं कहेगा, जिसे करने के लिए वह खुद तैयार न हो। इस तरह पौलुस ने अपने संगी मसीहियों के लिए आदर दिखाया और बदले में उनका आदर पाया। इसलिए जब पौलुस ने कहा: “मैं तुम से बिनती करता हूं, कि मेरी सी चाल चलो,” तो हम यकीन रख सकते हैं कि कइयों ने उसकी अच्छी मिसाल देखकर ही खुशी-खुशी उसकी सलाह मानी होगी।—1 कुरि. 4:16.

8. (क) एक अहम तरीका क्या है, जिससे यीशु ने अपने चेलों को इज़्ज़त बख्शी? (ख) आज मसीही अध्यक्ष कैसे यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं?

8 एक और तरीके से ज़िम्मेदार भाई अपने अधीन रहनेवालों का आदर करते हैं। जब वे भाइयों से कुछ काम करने की गुज़ारिश करते हैं या कोई हिदायत देते हैं, तब वे उसकी वजह भी बताते हैं। ऐसा करके वे यीशु की नकल करते हैं। उदाहरण के लिए, जब यीशु ने अपने चेलों से कहा कि वे और भी मज़दूरों के लिए बिनती करें, तो उसने इसकी वजह भी बतायी। उसने कहा: “पक्के खेत तो बहुत हैं पर मजदूर थोड़े हैं। इसलिये खेत के स्वामी से बिनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिये मजदूर भेज दे।” (मत्ती 9:37, 38) उसी तरह, जब उसने अपने चेलों को ‘जागते रहने’ के लिए कहा, तब भी इसकी वजह बतायी। उसने कहा: “क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।” (मत्ती 24:42) जी हाँ, यीशु जब भी अपने चेलों से कोई काम करने को कहता था, तब उन्हें उसकी वजह भी बताता था। इस तरह उसने उन्हें इज़्ज़त बख्शी। मसीही अध्यक्षों के लिए क्या ही बढ़िया मिसाल!

यहोवा की कलीसिया और उससे मिलनेवाले निर्देशन का आदर कीजिए

9. दुनिया-भर में फैली मसीही कलीसिया और उसके नुमाइंदों का आदर करना क्या दिखाता है? समझाइए।

9 यहोवा को सम्मान देने के लिए यह भी ज़रूरी है कि हम दुनिया-भर में फैली मसीही कलीसिया और उसके नुमाइंदों का आदर करें। विश्‍वासयोग्य दास बाइबल से जो सलाह देता है, उसे मानकर हम दिखाते हैं कि हम यहोवा के इंतज़ाम की कदर करते हैं। पहली सदी में प्रेरित यूहन्‍ना ने कलीसिया के कुछ लोगों की कड़ी आलोचना की, जो ज़िम्मेदारी के पद पर ठहराए भाइयों की इज़्ज़त नहीं करते थे। (3 यूहन्‍ना 9-11 पढ़िए।) यूहन्‍ना के शब्द दिखाते हैं कि ये लोग न सिर्फ अध्यक्षों का, बल्कि उनकी शिक्षाओं और हिदायतों का भी अनादर करते थे। मगर खुशी की बात यह है कि ज़्यादातर मसीही ऐसे नहीं थे। प्रेरितों के जीते-जी भाइयों की बिरादरी में आम तौर पर अगुवाई लेनेवालों का गहरा आदर किया जाता था।—फिलि. 2:12.

10, 11. बाइबल से समझाइए कि मसीही कलीसिया में कुछ लोगों को अधिकार देना क्यों सही है।

10 कुछ लोग सोचते हैं कि जब यीशु ने खुद कहा, “तुम सब भाई हो,” तो फिर मसीही कलीसिया में कुछ भाइयों को अधिकार क्यों दिया जाता है? (मत्ती 23:8) लेकिन इब्रानी और यूनानी शास्त्र में ऐसे लोगों के ढेरों उदाहरण हैं, जिन्हें यहोवा ने दूसरों पर अधिकार दिया था। प्राचीन इस्राएल में उसने कुलपिताओं, न्यायियों और राजाओं के ज़रिए अपने लोगों को निर्देशन दिया था। और जब-जब लोगों ने परमेश्‍वर के इन नुमाइंदों की इज़्ज़त नहीं की, यहोवा ने उन्हें सज़ा दी।—2 राजा 1:2-17; 2:19, 23, 24.

11 पहली सदी के मसीहियों ने इस बात को कबूल किया कि परमेश्‍वर ने प्रेरितों को उन पर अधिकार दिया है। (प्रेरि. 2:42) अधिकार के बारे में पौलुस ने बिलकुल सही नज़रिया दिखाया था। यह सच है कि उसके पास अधिकार था और उसने अपने भाइयों को निर्देशन भी दिए। (1 कुरि. 16:1; 1 थिस्स. 4:2) लेकिन पौलुस ने खुद उन भाइयों को अधीनता दिखायी जिन्हें उस पर अधिकार दिया गया था।—प्रेरि. 15:22; गल. 2:9, 10.

12. बाइबल की मिसालों से हम अधिकार के बारे में कौन-से दो सबक सीखते हैं?

12 ऊपर दी मिसालों से हम दो सबक सीखते हैं। पहला, बाइबल के मुताबिक “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के नुमाइंदे यानी शासी निकाय का भाइयों को ज़िम्मेदारी के पद पर ठहराना गलत नहीं। साथ ही, कुछ भाइयों को दूसरे ज़िम्मेदार भाइयों के ऊपर अधिकार दिया जाता है। (मत्ती 24:45-47; 1 पत. 5:1-3) दूसरा, हम सबको उनका आदर करना चाहिए जिन्हें हम पर अधिकार दिया गया है। इसका मतलब है कि जिनके पास अधिकार है, उन्हें भी अपने ऊपर ठहराए भाइयों का आदर करना चाहिए। तो फिर, हम किन कारगर तरीकों से कलीसिया की अगुवाई करनेवालों के लिए आदर दिखा सकते हैं?

सफरी अध्यक्षों को आदर दिखाना

13. आज मसीही कलीसिया के नुमाइंदों को हम कैसे आदर दिखा सकते हैं?

13 पौलुस ने कहा: “हे भाइयो, हम तुम से बिनती करते हैं, कि जो तुम में परिश्रम करते हैं, और प्रभु में तुम्हारे अगुवे हैं, और तुम्हें शिक्षा देते हैं, उन्हें मानो। और उन के काम के कारण प्रेम के साथ उन को बहुत ही आदर के योग्य समझो: आपस में मेल-मिलाप से रहो।” (1 थिस्स. 5:12, 13) सफरी अध्यक्ष वाकई “परिश्रम” करनेवालों में से हैं। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम उन्हें ‘बहुत ही आदर के योग्य समझें।’ आदर देने का एक तरीका है, उनकी सलाह को दिल से मानना। जब ये अध्यक्ष हमें विश्‍वासयोग्य दास की तरफ से निर्देशन देते हैं, तो ‘ऊपर से आनेवाली बुद्धि’ हमें उकसाएगी कि हम उनकी ‘आज्ञा मानने को तैयार’ रहें।—याकू. 3:17, NW.

14. कलीसिया कैसे दिखाती है कि वह सफरी अध्यक्षों की दिल से इज़्ज़त करती है? और ऐसा करने का क्या नतीजा होता है?

14 लेकिन जब हमसे कहा जाता है कि हमें फलाँ काम करने के तरीके को बदलना होगा, तब हम कैसा रवैया दिखाते हैं? हम शायद कुछ इस तरह एतराज़ जताएँ: “हमारे यहाँ ऐसा नहीं किया जाता” या “बाकी जगहों में चलता होगा, लेकिन हमारी कलीसिया में नहीं।” सफरी अध्यक्षों को आदर दिखाने का मतलब है कि हम ऐसी सोच से दूर रहें और उनकी हिदायतों को मानने की पूरी-पूरी कोशिश करें। अगर हम याद रखें कि कलीसिया यहोवा की है और कलीसिया का मुखिया यीशु है, तो हमारे लिए अध्यक्षों की हिदायतें मानना आसान होगा। जब कलीसिया, सफरी अध्यक्ष के निर्देशन को खुशी-खुशी कबूल करती है और उस पर अमल करती है, तो यह दिखाता है कि वह अध्यक्ष की दिल से इज़्ज़त करती है। इस सिलसिले में प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस के मसीहियों की सराहना की। क्योंकि जब तीतुस नाम के एक प्राचीन ने उनकी कलीसिया का दौरा किया और उन्हें हिदायतें दीं, तो उन्होंने खुशी-खुशी उनको माना। (2 कुरि. 7:13-16) आज हम भी जब सफरी अध्यक्षों की हिदायतों को मानने के लिए तैयार रहते हैं, तो हमें प्रचार काम में दुगनी खुशी मिलती है।—2 कुरिन्थियों 13:11 पढ़िए।

“सब का आदर करो”

15. हम किन तरीकों से मसीही भाइयों के लिए आदर दिखा सकते हैं?

15 पौलुस ने लिखा: “किसी बूढ़े को न डांट; पर उसे पिता जानकर समझा दे, और जवानों को भाई जानकर; बूढ़ी स्त्रियों को माता जानकर। और जवान स्त्रियों को पूरी पवित्रता से बहिन जानकर, समझा दे। उन विधवाओं का जो सचमुच विधवा हैं आदर कर।” (1 तीमु. 5:1-3) जी हाँ, परमेश्‍वर का वचन हमें उकसाता है कि हम मसीही कलीसिया में सभी का आदर करें। लेकिन अगर आपका किसी भाई-बहन के साथ मन-मुटाव हो जाता है, तब क्या? क्या इस वजह से आप उसे आदर दिखाना छोड़ देंगे? या फिर आप अपना नज़रिया बदलेंगे और उसकी अच्छाइयाँ देखने की कोशिश करेंगे? जो अधिकार के पद पर हैं, खासकर उन्हें अपने भाइयों का आदर करना चाहिए। उन्हें कभी-भी ‘झुण्ड पर प्रभुता नहीं जतानी चाहिए।’ (1 पत. 5:3, NHT) भाइयों का आपसी प्यार ही मसीही कलीसिया की पहचान है। और इस कलीसिया में हमें एक-दूसरे को आदर दिखाने के बहुत-से मौके मिलते हैं।—यूहन्‍ना 13:34, 35 पढ़िए।

16, 17. (क) प्रचार में मिलनेवाले लोगों, यहाँ तक कि विरोधियों का भी आदर करना क्यों ज़रूरी है? (ख) हम “सब का आदर” कैसे करते हैं?

16 बेशक, हम सिर्फ कलीसिया के भाई-बहनों को ही आदर नहीं दिखाते। पौलुस ने अपने दिनों के मसीहियों को लिखा: “जहां तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें।” (गल. 6:10) इस सिद्धांत पर चलना आसान नहीं। खासकर तब, जब हमारा सहकर्मी या स्कूल का कोई साथी हमारे साथ रूखा बर्ताव करता है। ऐसे में हमें इन शब्दों को याद रखना चाहिए: “कुकर्मियों के कारण मत कुढ़।” (भज. 37:1) इस सलाह को मानने से हम विरोधियों का भी आदर कर पाएँगे। इसके अलावा, प्रचार करते वक्‍त अगर हम खुद को बड़ा न समझें और नम्र रहें, तो हम सभी के साथ ‘विनम्रता और आदर’ से पेश आ सकेंगे। (1 पत. 3:15, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यहाँ तक कि हमारे पहनावे और बनने-सँवरने से भी ज़ाहिर होगा कि हम जिन्हें प्रचार करते हैं, उनके लिए आदर और लिहाज़ दिखाते हैं।

17 जी हाँ, चाहे मसीही भाई-बहन हों या बाहरवाले, हम सभी के साथ पेश आते वक्‍त इस सलाह को मानने की पुरज़ोर कोशिश करेंगे: “सब का आदर करो, भाइयों से प्रेम रखो, परमेश्‍वर से डरो, राजा का सम्मान करो।”—1 पत. 2:17.

आप क्या जवाब देंगे?

आप इनके लिए कैसे आदर दिखा सकते हैं:

• यहोवा?

• कलीसिया के प्राचीन और सफरी अध्यक्ष?

• कलीसिया के हरेक सदस्य?

• जिन्हें आप प्रचार करते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीर]

पहली सदी के मसीहियों ने शासी निकाय के अधिकार का आदर किया

[पेज 24 पर तसवीर]

हरेक देश में प्राचीन, शासी निकाय के ठहराए सफरी अध्यक्षों का आदर करते हैं