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यहोवा से की गयी दिली प्रार्थना का जवाब

यहोवा से की गयी दिली प्रार्थना का जवाब

यहोवा से की गयी दिली प्रार्थना का जवाब

“जिस से [लोग] यह जानें कि केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।”—भज. 83:18.

1, 2. (क) परमेश्‍वर का नाम जानने पर कई लोग क्या महसूस करते हैं? (ख) इस लेख में हम किन सवालों के जवाब देखेंगे?

 कुछ साल पहले की बात है। एक स्त्री के पड़ोस में एक हादसा हुआ जिससे वह बहुत मायूस हो गयी। वह स्त्री एक रोमन कैथोलिक परिवार में पली-बढ़ी थी, इसलिए वह मदद के लिए अपने इलाके के पादरी के पास गयी। मदद करना तो दूर, पादरी ने उससे मिलने तक से इनकार कर दिया। बेबस होकर उसने परमेश्‍वर से फरियाद की: “मैं यह तो नहीं जानती कि आप कौन हैं। . . . पर मुझे इतना यकीन है कि आप कहीं-न-कहीं हैं ज़रूर। मेरी मदद कीजिए ताकि मैं आपको जान सकूँ।” कुछ समय बाद, यहोवा के साक्षी उसके घर आए। उन्होंने उसे वह दिलासा और जानकारी दी जिसकी उसे तलाश थी। इसके बाद, उसने उनसे कई बातें सीखीं, जिनमें से एक यह थी कि परमेश्‍वर का एक नाम है, यहोवा। इस बात ने उस स्त्री पर गहरी छाप छोड़ी। उसने कहा: “आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते कि मुझे कितनी खुशी हुई। बचपन से जिस परमेश्‍वर को जानने की मेरी आरज़ू थी, वह आखिरकार पूरी हो गयी।”

2 कई लोगों को जब पहली बार परमेश्‍वर का नाम बताया जाता है, तो वे भी कुछ ऐसा ही महसूस करते हैं। आम तौर पर उन्हें यह नाम बाइबल के भजन 83:18 से दिखाया जाता है। वह आयत कहती है: “जिस से [लोग] यह जानें कि केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।” लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भजन 83 क्यों लिखा गया था? किन घटनाओं की वजह से सभी लोगों को यह मानना पड़ेगा कि सिर्फ यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है? इस भजन से आज हम क्या सीखते हैं? इस लेख में हम इन सवालों के जवाब देखेंगे। *

यहोवा के लोगों के खिलाफ षड्यंत्र

3, 4. भजन 83 को किसने लिखा था और उसमें किस खतरे के बारे में बताया गया है?

3 भजन 83 का उपरिलेख बताता है कि यह “आसाप का भजन” था। इस भजन का लिखनेवाला शायद लेवी आसाप का वंशज था। आसाप, राजा दाऊद की हुकूमत के दौरान जीनेवाला एक नामी संगीतकार था। भजन 83 में भजनहार यहोवा से मिन्‍नत करता है कि वह अपनी हुकूमत को बुलंद करे और अपने नाम को जग-ज़ाहिर करे। यह भजन सुलैमान की मौत के कुछ समय बाद लिखा गया था। ऐसा क्यों कहा जा सकता है? क्योंकि दाऊद और सुलैमान की हुकूमत के दौरान सोर का राजा इस्राएल का दुश्‍मन नहीं था। लेकिन जिस समय भजन 83 लिखा गया, उस वक्‍त तक सोर के निवासी इस्राएल के बैरी बन गए थे और उन्होंने उसके दुश्‍मनों से साँठ-गाँठ कर ली थी।

4 भजनहार ने इस्राएल के चारों तरफ रहनेवाली ऐसी दस जातियों के नाम बताए, जो परमेश्‍वर के लोगों को मिटाने का षड्यंत्र रच रही थीं। उसने कहा: “ये तो एदोम के तम्बूवाले और इश्‍माइली, मोआबी और हुग्री, गबाली, अम्मोनी, अमालेकी, और सोर समेत पलिश्‍ती हैं। इनके संग अश्‍शूरी भी मिल गए हैं।” (भज. 83:6-8) यह भजन इतिहास में हुई किस घटना का ज़िक्र कर रहा है? कुछ लोगों का कहना है इसमें उस घटना का ज़िक्र किया गया है, जब यहोशापात के दिनों में अम्मोन, मोआब और सेईर के पहाड़ी देश के लोगों ने मिलकर इस्राएल पर हमला बोला था। (2 इति. 20:1-26) कुछ औरों का मानना है कि यह किसी एक घटना की तरफ नहीं बल्कि उस दुश्‍मनी की तरफ इशारा करता है, जो इस्राएल के पड़ोसियों ने उसके लिए हमेशा दिखायी थी।

5. भजन 83 से आज मसीहियों को क्या मदद मिलती है?

5 यह भजन चाहे किसी घटना की बात कर रहा हो या नहीं, इतना साफ है कि यहोवा ने ईश्‍वर-प्रेरणा से इसे तब लिखवाया था जब उसकी जाति पर खतरे की तलवार लटक रही थी। इस भजन से आज परमेश्‍वर के सेवकों की हौसला-अफज़ाई भी होती है, जिन्होंने देखा है कि कैसे दुश्‍मनों ने उन्हें मिटाने की गरज़ से उन पर एक-के-बाद-एक कई हमले किए हैं। यह भजन खासकर तब हमें हिम्मत देगा, जब मागोग देश का गोग अपनी सेना इकट्ठी करेगा और उन लोगों को खत्म करने की आखिरी कोशिश करेगा, जो पवित्र शक्‍ति और सच्चाई से यहोवा की उपासना करते हैं।यहेजकेल 38:2, 8, 9, 16 पढ़िए।

सबसे बड़ी चिंता

6, 7. (क) भजन 83 की शुरूआत में भजनहार किस बात के लिए प्रार्थना करता है? (ख) भजनहार की सबसे बड़ी चिंता क्या थी?

6 ध्यान दीजिए कि भजनहार किस तरह प्रार्थना में अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करता है: “हे परमेश्‍वर मौन न रह; हे ईश्‍वर चुप न रह, और न शान्त रह! क्योंकि देख तेरे शत्रु धूम मचा रहे हैं; और तेरे बैरियों ने सिर उठाया है। वे चतुराई से तेरी प्रजा की हानि की सम्मति करते . . . हैं। उन्हों ने एक मन होकर युक्‍ति निकाली है, और तेरे ही विरुद्ध वाचा बान्धी है।”—भज. 83:1-3, 5.

7 भजनहार की सबसे बड़ी चिंता क्या थी? बेशक उसे अपनी और अपने परिवार की सलामती की फिक्र थी। लेकिन उसकी सबसे बड़ी चिंता यह थी कि यहोवा के नाम पर कलंक लगाया जा रहा था और उसका नाम धारण करनेवाली जाति को मिटाने के मंसूबे बाँधे जा रहे थे। भजनहार ने हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल कायम की! आइए हम भी इस संसार के अंतिम दिनों में मुश्‍किलों का सामना करते वक्‍त उसकी तरह सही नज़रिए बनाए रखें।मत्ती 6:9, 10 पढ़िए।

8. दुश्‍मन जातियों ने किस इरादे से इस्राएल के खिलाफ षड्यंत्र रचा था?

8 भजनहार बताता है कि दुश्‍मन जातियाँ इस्राएल के बारे में क्या कह रही थीं: “आओ, हम उनको मिटा डालें कि उनकी जाति ही न रहे; और इस्राएल का नाम फिर कभी स्मरण न किया जाए।” (भज. 83:4, NHT) ये जातियाँ परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों से कितनी नफरत करती थीं! लेकिन इस्राएल के खिलाफ षड्यंत्र रचने के पीछे उनका एक और इरादा था। वे उनका देश हड़पना चाहते थे। इसलिए उन्होंने डींग मारी: “हम परमेश्‍वर की चराइयों [‘निवासस्थान,’ NW] के अधिकारी आप ही हो जाएं।” (भज. 83:12) क्या हमारे दिनों में ऐसा कुछ हुआ है? हाँ, हुआ है।

‘उसका पवित्र निवासस्थान’

9, 10. (क) प्राचीन समय में परमेश्‍वर का पवित्र निवासस्थान क्या था? (ख) शेष अभिषिक्‍त जन और “अन्य भेड़ें” किन आशीषों का लुत्फ उठाते हैं?

9 प्राचीन समय में, वादा किए गए देश को परमेश्‍वर का पवित्र निवासस्थान कहा जाता था। याद कीजिए कि मिस्र से छुड़ाए जाने पर इस्राएलियों ने विजय गीत में क्या कहा: “अपनी करूणा से तू ने अपनी छुड़ाई हुई प्रजा की अगुवाई की है, अपने बल से तू उसे अपने पवित्र निवासस्थान को ले चला है।” (निर्ग. 15:13) आगे चलकर, मंदिर जिसमें याजकवर्ग सेवा करता था और राजधानी यरूशलेम, जहाँ से दाऊद का वंश यहोवा के सिंहासन पर बैठकर हुकूमत करता था, इस “निवासस्थान” का हिस्सा बने। (1 इति. 29:23) इसलिए यीशु ने बिलकुल सही कहा कि यरूशलेम “महान्‌ राजा का नगर” है।—मत्ती 5:35, नयी हिन्दी बाइबिल।

10 हमारे दिनों के बारे में क्या? परमेश्‍वर एक नयी जाति को वजूद में लाया, जिसे ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ कहा जाता है। (गल. 6:16) इस जाति का जन्म सा.यु. 33 में हुआ था। यीशु मसीह के अभिषिक्‍त भाइयों से बनी इस जाति ने वह ज़िम्मेदारी पूरी की जो पैदाइशी इस्राएली पूरी करने से चूक गए। वह थी, परमेश्‍वर के नाम के साक्षी होना। (यशा. 43:10; 1 पत. 2:9) यहोवा ने अभिषिक्‍त मसीहियों से वही वादा किया जो उसने प्राचीन इस्राएल से किया था: “मैं उन का परमेश्‍वर हूंगा, और वे मेरे लोग होंगे।” (2 कुरि. 6:16; लैव्य. 26:12) सन्‌ 1919 में, यहोवा ने “परमेश्‍वर के इस्राएल” के शेष जनों के साथ एक खास रिश्‍ता जोड़ा और उस वक्‍त वे एक “देश” के अधिकारी हो गए। यह एक आध्यात्मिक देश है, जिसमें रहकर वे काम करते हैं और आध्यात्मिक फिरदौस की आशीषों का लुत्फ उठाते हैं। (यशा. 66:8) सन्‌ 1930 के दशक से लाखों की तादाद में ‘अन्य भेड़ों’ ने उनका दामन थामा है। (यूह. 10:16, NW) यहोवा की आशीष से आज मसीहियों के बीच बढ़ोतरी हो रही है और वह उनकी हिफाज़त कर रहा है। यह इस बात का ज़बरदस्त सबूत है कि यहोवा के हुकूमत करने का तरीका ही सही है। (भजन 91:1, 2 पढ़िए।) यह देखकर शैतान वाकई दाँत पीसता होगा!

11. परमेश्‍वर के दुश्‍मनों का हमेशा से क्या मकसद रहा है?

11 इन अंतिम दिनों के दौरान शैतान ने धरती पर अपने नुमाइंदों को मोहरा बनाकर अभिषिक्‍त जनों और अन्य भेड़ के उनके साथियों का कड़ा विरोध किया है। नात्ज़ी सरकार के अधीन पश्‍चिमी यूरोप और कम्यूनिस्ट सरकार के अधीन पूर्वी यूरोप में ऐसा ही हुआ था। दूसरे कई देशों में भी यही देखा गया है और आगे भी ऐसा ज़रूर होगा, खासकर तब, जब मागोग देश का गोग आखिरी बार हमला करेगा। उस हमले के दौरान, विरोधी शायद यहोवा के लोगों की ज़मीन-जायदाद हथिया लें, जैसे बीते ज़माने में हुआ था। मगर शैतान का असली मकसद यह नहीं है। उसका मकसद तो परमेश्‍वर के लोगों को एक समूह के तौर पर खत्म करना है, ताकि धरती पर से “यहोवा के साक्षियों” का नाम ही मिट जाए। यहोवा अपनी हुकूमत के खिलाफ की गयी इस बगावत का क्या जवाब देगा? आइए एक बार फिर भजनहार के शब्दों पर ध्यान दें।

यहोवा की जीत होकर ही रहेगी

12-14. भजनहार, मगिद्दो नगर के पास हुई किन दो अहम लड़ाइयों के बारे में लिखता है?

12 ध्यान दीजिए कि भजनहार का विश्‍वास कितना मज़बूत था कि यहोवा दुश्‍मन जातियों की योजनाओं को चौपट कर सकता है। वह अपने भजन में दो अहम लड़ाइयों का ज़िक्र करता है, जिनमें इस्राएलियों ने अपने दुश्‍मनों पर जीत हासिल की थी। ये लड़ाइयाँ प्राचीन नगर मगिद्दो के पास की तराई में लड़ी गयी थीं, जिसे मगिद्दो की तराई के नाम से जाना जाता था। गर्मियों के मौसम में इस तराई में कीशोन नदी की पतली धारा बहती नज़र आती थी। लेकिन सर्दियों में बारिश होने से नदी उफनने लगती थी और पूरी तराई लबालब भर जाती थी। शायद इसी वजह से इस नदी को ‘मगिद्दो के सोते’ भी कहा जाता है।—न्यायि. 4:13; 5:19.

13 मगिद्दो से करीब 15 किलोमीटर दूर मोरे नाम की पहाड़ी थी। न्यायी गिदोन के दिनों में मिद्दानी, अमालेकी और पूर्वी लोग इस्राएलियों से लड़ने के लिए यहीं इकट्ठा हुए थे। (न्यायि. 7:1, 12) दुश्‍मनों की बड़ी सेना के सामने गिदोन की सेना की कोई बिसात नहीं थी, क्योंकि उसमें सिर्फ 300 आदमी रह गए थे। मगर यहोवा की मदद से इन मुट्ठी-भर सैनिकों ने दुश्‍मनों को धूल चटा दी। यह सब कैसे हुआ? परमेश्‍वर की हिदायतों के मुताबिक, उन्होंने रात के अँधेरे में दबे पाँव दुश्‍मनों की छावनी को घेर लिया। वे अपने साथ घड़ों में मशालें ले गए थे। गिदोन का इशारा मिलते ही, उन्होंने घड़ों को फोड़ दिया और चारों तरफ मशालों की रोशनी फैल गयी। उसी वक्‍त उन्होंने तुरहियाँ फूँकीं और ज़ोर से चिल्लाए: “यहोवा की तलवार और गिदोन की तलवार।” दुश्‍मनों में हाहाकार मच गया और अफरा-तफरी में वे एक-दूसरे को घात करने लगे। उनमें से कुछ अपनी जान बचाकर यरदन पार भाग खड़े हुए। इस दरमियान, और भी इस्राएली, दुश्‍मनों का पीछा करने के लिए गिदोन के संग हो लिए। उस लड़ाई में कुल मिलाकर एक लाख बीस हज़ार दुश्‍मनों को मौत के घाट उतारा गया।—न्यायि. 7:19-25; 8:10.

14 मोरे पहाड़ी से करीब 6 किलोमीटर आगे ताबोर पर्वत था। यह वह जगह थी जहाँ न्यायी बाराक अपने 10,000 सैनिकों के साथ इकट्ठा हुआ था। वे हासोर के कनानी राजा याबीन की सेना से लड़ने आए थे, जिसकी कमान सीसरा नाम सेनापति के हाथ में थी। कनानी सेना के 900 रथों के पहियों में लोहे की दराँतियाँ लगी हुई थीं। इस्राएल की छोटी-सी सेना को ताबोर पर्वत पर इकट्ठी देख, सीसरा की सेना तराई में इकट्ठा हुई। “तब यहोवा ने सारे रथों वरन सारी सेना समेत सीसरा को . . . घबरा दिया।” ऐसा मालूम होता है कि अचानक मूसलाधार बारिश होने की वजह से कीशोन नदी में बाढ़ आ गयी और दुश्‍मन के रथ कीचड़ में बुरी तरह फँस गए। इस तरह इस्राएलियों ने उनकी पूरी सेना को नेस्तनाबूद कर दिया।—न्यायि. 4:13-16; 5:19-21.

15. (क) भजनहार यहोवा से क्या बिनती करता है? (ख) शब्द “हरमगिदोन” हमें क्या याद दिलाता है?

15 भजनहार बिनती करता है कि यहोवा उन राष्ट्रों का भी वही हश्र करे, जो उसके दिनों में इस्राएल का वजूद मिटाने पर तुले हुए थे। वह प्रार्थना करता है: “इन से ऐसा कर जैसा मिद्यानियों से, और कीशोन नाले में सीसरा और याबीन से किया था, जो एन्दोर में नाश हुए, और भूमि के लिये खाद बन गए।” (भज. 83:9, 10) गौरतलब है कि शैतान की दुनिया के खिलाफ परमेश्‍वर की आखिरी लड़ाई का नाम हरमगिदोन (मतलब “मगिद्दो पर्वत”) है। यह नाम हमें उन अहम लड़ाइयों की याद दिलाता है, जो मगिद्दो के पास लड़ी गयी थीं। उन लड़ाइयों में यहोवा की जीत से हमें इस बात का भरोसा मिलता है कि हरमगिदोन की लड़ाई में भी जीत उसी की होगी।—प्रका. 16:13-16.

यहोवा की हुकूमत बुलंद होने के लिए प्रार्थना कीजिए

16. किस तरह विरोधियों का मुँह ‘अति लज्जित किया’ गया है?

16 इन “अन्तिम दिनों” के दौरान दुश्‍मनों ने परमेश्‍वर के लोगों को मिटाने की लाख कोशिश की, लेकिन यहोवा ने उनकी हर कोशिश को नाकाम किया है। (2 तीमु. 3:1) इससे विरोधियों को शर्मिंदा होना पड़ा है। भजन 83:16 में इसी बात की ओर इशारा किया गया है: “इनके मुंह को अति लज्जित कर, कि हे यहोवा [लोग] तेरे नाम को ढ़ूंढ़ें।” और यहोवा ने वाकई ऐसा किया है! लगभग हर देश में दुश्‍मन यहोवा के साक्षियों का मुँह बंद करने में बुरी तरह नाकाम रहे हैं। उन देशों में सच्चे परमेश्‍वर के उपासकों के अटल इरादे और धीरज का नेकदिल लोगों पर गहरा असर हुआ है और उन्होंने ‘यहोवा के नाम को ढूँढ़ा है।’ बीते समय में जिन देशों में यहोवा के साक्षियों पर वहशियाना तरीके से ज़ुल्म ढाए गए, आज वहाँ सैकड़ों-हज़ारों साक्षी खुशी-खुशी यहोवा की स्तुति कर रहे हैं। यह वाकई यहोवा के लिए एक बड़ी जीत और दुश्‍मनों के मुँह पर एक करारा तमाचा है!—यिर्मयाह 1:19 पढ़िए।

17. कौन-सा मौका बंद होनेवाला है और बहुत जल्द हम क्या याद करेंगे?

17 बेशक हम जानते हैं कि विरोधी हम पर ज़ुल्म ढाना बंद नहीं करेंगे। लेकिन जहाँ तक हमारी बात है, हम सभी को, यहाँ तक कि विरोधियों को भी सुसमाचार सुनाते रहेंगे। (मत्ती 24:14, 21) इन विरोधियों के सामने मौका खुला है कि वे पश्‍चाताप करें और उद्धार पाएँ। मगर यह मौका हमेशा खुला नहीं रहेगा। क्योंकि इंसानों के उद्धार से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि यहोवा का नाम पवित्र किया जाए। (यहेजकेल 38:23 पढ़िए।) जब दुनिया के सारे राष्ट्र परमेश्‍वर के लोगों को मिटाने के लिए एकजुट होंगे, तो हम भजनहार की इस दुआ को याद करेंगे: “ये सदा के लिये लज्जित और घबराए रहें इनके मुंह काले हों, और इनका नाश हो जाए।”—भज. 83:17.

18, 19. (क) यहोवा की हुकूमत का ढिठाई से विरोध करनेवालों का क्या अंजाम होगा? (ख) यहोवा की हुकूमत बहुत जल्द बुलंद होनेवाली है, इस बात का आप पर क्या असर होता है?

18 यहोवा की हुकूमत का ढिठाई से विरोध करनेवालों का शर्मनाक अंत होगा। परमेश्‍वर का वचन बताता है कि जो “सुसमाचार को नहीं मानते,” उन्हें हरमगिदोन में मार डाला जाएगा और इस तरह वे “अनन्त विनाश” का दंड पाएँगे। (2 थिस्स. 1:7-9) उनका नाश किया जाना और यहोवा के सच्चे उपासकों का बचाया जाना इस बात का पक्का सबूत होगा कि सिर्फ यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है। नयी दुनिया में यहोवा की शानदार जीत हमेशा याद की जाएगी। ‘धर्मियों और अधर्मियों के जी उठने’ पर वे भी यहोवा की इस फतह के बारे में सीखेंगे। (प्रेरि. 24:15) नयी दुनिया में वे इस बात के ठोस सबूत देख पाएँगे कि यहोवा की हुकूमत के अधीन रहना ही जीने का सबसे बेहतरीन तरीका है। और उनमें से नम्र लोगों को यह समझते देर नहीं लगेगी कि सिर्फ यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है।

19 यहोवा ने अपने वफादार उपासकों के लिए क्या ही लाजवाब भविष्य रखा है! बेशक, यहोवा भजनहार की इस प्रार्थना का पूरी तरह जवाब देगा: “[दुश्‍मनों के] मुंह काले हों, और इनका नाश हो जाए, जिस से [लोग] यह जानें कि केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।” (भज. 83:17, 18) क्या आप यह दुआ नहीं करते कि यहोवा ऐसा जल्द-से-जल्द करे?

[फुटनोट]

^ इस लेख की चर्चा करने से पहले अच्छा होगा अगर आप भजन 83 को पढ़ लें, ताकि आप इसमें दी बातों से वाकिफ हो सकें।

क्या आप समझा सकते हैं?

• जिस समय भजन 83 लिखा गया, उस वक्‍त इस्राएल किन हालात का सामना कर रहा था?

• भजनहार 83 के लेखक की सबसे बड़ी चिंता क्या थी?

• आज के ज़माने में शैतान ने अपनी दुश्‍मनी किन पर निकाली है?

• यहोवा भजन 83:18 में दी प्रार्थना का कैसे पूरी तरह जवाब देगा?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

[पेज 15 पर तसवीर]

प्राचीन मगिद्दो के आस-पास हुई लड़ाइयों का हमारे भविष्य से क्या ताल्लुक है?

कीशोन नदी

हरोशेत

कर्मेल पर्वत

यिज्रेल की तराई

मगिद्दो

तानाक

गिलबो पर्वत

हरोद का कुँआ

मोरे

एनदोर

ताबोर पर्वत

गलील सागर

यरदन नदी

[पेज 12 पर तसवीर]

किस बात ने भजनहार को दिली प्रार्थना लिखने के लिए उभारा?