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“वाकई, यह परमेश्‍वर का सबसे पवित्र और महान नाम है”

“वाकई, यह परमेश्‍वर का सबसे पवित्र और महान नाम है”

“वाकई, यह परमेश्‍वर का सबसे पवित्र और महान नाम है”

यह बात कूसा के निक्लस ने सन्‌ 1430 में अपने उपदेश में कही थी। * वह ऐसा शख्स था जो कई विषयों में दिलचस्पी रखता था। मिसाल के लिए, उसने यूनानी, इब्रानी, दर्शनशास्त्र, धर्म-विज्ञान, गणितशास्त्र और खगोल-विज्ञान का अध्ययन किया था। बाईस साल की उम्र में उसने रोमन कैथोलिक चर्च के कानून में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की। और सन्‌ 1448 में उसे चर्च का कार्डिनल बनाया गया।

आज से करीब 550 साल पहले, कूसा के निक्लस ने कूस कसबे में एक वृद्धाश्रम खोला था। आज इसी वृद्धाश्रम में कूसा की इकट्ठी की गयी 310 से भी ज़्यादा हस्तलिपियाँ मौजूद हैं। इनमें से एक हस्तलिपि है, ‘कोडेक्स कूसानूस 220,’ जिसमें सन्‌ 1430 में दिया कूसा का उपदेश पाया जाता है। उस उपदेश का शीर्षक था, इन प्रिंसीपीओ एराट व्यरबूम (‘आदि में वचन था’)। उसमें कूसा के निक्लस ने ‘यहोवा’ के लिए लातिनी वर्तनी ‘ईओउआ’ इस्तेमाल किया। * कोडेक्स के पेज 56 में परमेश्‍वर के नाम के बारे में यह बताया गया है: “यह नाम खुद परमेश्‍वर ने अपने आपको दिया है। इसे इब्रानी भाषा के चार अक्षरों से लिखा जाता है। . . . वाकई, यह परमेश्‍वर का सबसे पवित्र और महान नाम है।” कूसा के निक्लस की बातें इस सच्चाई से मेल खाती हैं कि इब्रानी शास्त्र के मूल पाठ में परमेश्‍वर का नाम पाया जाता है।—निर्ग. 6:3.

पंद्रहवीं सदी का यह कोडेक्स, आज तक मौजूद उन सबसे पुराने दस्तावेज़ों में से एक है, जिनमें परमेश्‍वर के नाम का अनुवाद “ईओउआ” किया गया है। यह एक और सबूत है कि परमेश्‍वर के लिए, “यहोवा” नाम से मिलते-जुलते अलग-अलग उच्चारण सदियों से इस्तेमाल में रहे हैं।

[फुटनोट]

^ कूसा के निक्लस को इन नामों से भी जाना जाता था: नीकोलस क्रीफ्ट्‌स (क्रेप्स), नीकोलाउस कूसानूस और नीकोलस वॉन कूस। कूस, जर्मनी के उस कसबे का नाम है, जहाँ निक्लस पैदा हुआ था। यह कसबा बॉन शहर से 130 किलोमीटर दूर, दक्षिण की तरफ पड़ता है और इसे आज बर्नकास्टल-कूस के नाम से जाना जाता है।

^ यह उपदेश त्रिएक की शिक्षा का समर्थन करने के लिए दिया गया था।

[पेज 16 पर तसवीर]

कूसा की लाइब्रेरी