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जल्द-से-जल्द झुंड में लौट आने में उनकी मदद कीजिए!

जल्द-से-जल्द झुंड में लौट आने में उनकी मदद कीजिए!

जल्द-से-जल्द झुंड में लौट आने में उनकी मदद कीजिए!

“हम किस के पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं।”—यूह. 6:68.

1. जब बहुत-से चेले यीशु को छोड़कर चले गए, तब पतरस ने क्या कहा?

 एक बार ऐसा हुआ कि यीशु के बहुत-से चेले उसे छोड़कर चले गए, क्योंकि उन्हें उसकी एक शिक्षा रास नहीं आयी। इस पर यीशु ने अपने प्रेरितों से पूछा: “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” पतरस ने जवाब दिया: “हे प्रभु हम किस के पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं।” (यूह. 6:51-69) सच, वे जाते भी कहाँ! यहूदी धर्म में “अनन्त जीवन की बातें” नहीं थीं। उसी तरह, आज बड़े बाबुल यानी दुनिया-भर में साम्राज्य की तरह फैले झूठे धर्म में भी, इस तरह की बातें नहीं पायी जातीं। इसलिए उन भटकी हुई भेड़ों के लिए अब “नींद से जाग उठने” और झुंड में लौट आने की “घड़ी आ पहुंची है,” जो परमेश्‍वर को खुश करना चाहती हैं।—रोमि. 13:11.

2. न्यायिक या नाज़ुक मामलों के बारे में एक प्रचारक को क्या याद रखना चाहिए?

2 यहोवा ने यह ज़ाहिर किया कि उसे इस्राएल की खोयी हुई भेड़ों की परवाह है। (यहेजकेल 34:15, 16 पढ़िए।) मसीही प्राचीनों की भी दिली तमन्‍ना होती है कि वे झुंड से भटके हुओं की मदद करें और ऐसा करना उनका फर्ज़ भी बनता है। हो सकता है कि एक प्राचीन, किसी प्रचारक को सच्चाई में ठंडे पड़ चुके व्यक्‍ति के साथ अध्ययन करने के लिए कहे। अध्ययन के दौरान, अगर प्रचारक को पता चलता है कि उस व्यक्‍ति ने कोई गंभीर पाप किया है, तो उसे क्या करना चाहिए? ऐसे न्यायिक या नाज़ुक मामले पर प्रचारक को उसे कोई सलाह नहीं देनी चाहिए। इसके बजाय, उसे उस व्यक्‍ति से कहना चाहिए कि वह जाकर प्राचीनों से इस बारे में बात करे। अगर वह ऐसा नहीं करता, तब प्रचारक को चाहिए कि वह खुद जाकर प्राचीनों को इस बारे में बताए।—लैव्य. 5:1; गल. 6:1.

3. जब चरवाहे को उसकी भटकी हुई भेड़ मिल जाती है, तो वह कैसा महसूस करता है?

3 पिछले लेख में हमने एक चरवाहे के दृष्टांत पर चर्चा की थी, जिसकी 100 भेड़ें थीं। जब उसकी एक भेड़ खो जाती है, तो वह बाकी 99 को पीछे छोड़कर उस खोई हुई को ढूँढ़ने निकल जाता है। और जब वह मिल जाती है तो चरवाहा खुशी से झूम उठता है। (लूका 15:4-7) उसी तरह, प्यार की वजह से प्राचीन और कलीसिया के दूसरे सदस्य, भटकी हुई भेड़ों से मुलाकात करते हैं। उनकी दिली ख्वाहिश रहती है कि ऐसी भेड़ें कलीसिया में लौट आएँ और परमेश्‍वर की मदद, सुरक्षा और आशीषों का आनंद उठाएँ। (व्यव. 33:27; भज. 91:14; नीति. 10:22) आखिरकार जब खोयी हुई भेड़ परमेश्‍वर के झुंड में लौट आती है, तो वे खुशी से फूले नहीं समाते। अगर एक प्राचीन या कलीसिया के किसी और सदस्य को ऐसी भेड़ की मदद करने का मौका मिले, तो वह क्या कर सकता है ताकि भेड़ झुंड में लौट आए?

4. गलतियों 6:2, 5 से हम क्या समझ सकते हैं?

4 एक प्राचीन या प्रचारक सच्चाई में ठंडे पड़ चुके व्यक्‍ति की मदद करने के लिए क्या कर सकता है? वह उसे बता सकता है कि यहोवा को अपनी भेड़ें बहुत प्यारी हैं और वह उनसे सिर्फ उतना ही करने की उम्मीद करता है, जितना कि वे कर सकते हैं। जैसे, बाइबल का अध्ययन करना, मसीही सभाओं में हाज़िर होना और राज्य की खुशखबरी सुनाना। यह भी अच्छा होगा कि वह उसे गलतियों 6:2, 5 पढ़कर समझाए कि कलीसिया के भाई-बहन उसे उसका भार उठाने में मदद कर सकते हैं, लेकिन जहाँ तक मसीही ज़िम्मेदारी की बात है, तो ‘हर व्यक्‍ति को अपना ही बोझ उठाना है।’ जी हाँ, कोई भी हमारी एवज़ में परमेश्‍वर को वफादारी नहीं दिखा सकता, खुद हमें ही ऐसा करना होगा।

क्या ‘जीवन की चिन्ताएँ’ उन पर हावी हो गयी हैं?

5, 6. (क) यह क्यों ज़रूरी है कि जब सच्चाई में ठंडा पड़ चुका व्यक्‍ति अपने दिल का हाल बयान करे तो हम उसकी ध्यान से सुनें? (ख) आप सच्चाई में ठंडे पड़ चुके व्यक्‍ति को कैसे एहसास दिला सकते हैं कि कलीसिया के साथ संगति न करने से उसका नुकसान हुआ है?

5 प्राचीनों और दूसरे प्रौढ़ मसीहियों को चाहिए कि जब सच्चाई में ठंडे पड़ चुके भाई-बहन उनसे अपने दिल का हाल बयान करें, तो वे उनकी ध्यान से सुनें। तभी वे समझ पाएँगे कि किस तरह उनकी मदद की जा सकती है। प्राचीन के नाते, आप शायद एक ऐसे शादीशुदा जोड़े से मुलाकात करें, जिसने “जीवन की चिन्ताओं” की वजह से कलीसिया में आना बंद कर दिया है। (लूका 21:34) हो सकता है कि पैसों की तंगी या पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के बढ़ने से, वे मसीही सेवा में ठंडे पड़ गए हों। ऐसे में, आप उन्हें बता सकते हैं कि अपनी मसीही ज़िम्मेदारी से दूर भागकर उन्हें चैन और राहत नहीं मिल सकती है। (नीतिवचन 18:1 पढ़िए।) आप कुशलता से उनसे पूछ सकते हैं, “क्या सभाओं में गैर-हाज़िर रहने से आपकी खुशी बढ़ी है? क्या आपके परिवार का माहौल बेहतर हुआ है? क्या आज भी यहोवा का आनन्द आपका दृढ़ गढ़ है?”—नहे. 8:10.

6 इन सवालों पर गहराई से सोचने से वे समझ पाएँगे कि कलीसिया के साथ संगति न करने की वजह से उनकी आध्यात्मिकता कमज़ोर हो गयी है और अब वे पहले की तरह खुश नहीं हैं। (मत्ती 5:3; इब्रा. 10:24, 25) उन्हें यह एहसास दिलाना अच्छा होगा कि जो आनंद सुसमाचार का प्रचार करने से उन्हें मिलता था, अब वे उससे महरूम हैं। (मत्ती 28:19, 20) तो फिर उनके लिए क्या करना सही होगा?

7. हम झुंड से भटकी हुई भेड़ों को क्या करने के लिए उकसा सकते हैं?

7 यीशु ने कहा था: “सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएं। . . . इसलिये जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के साम्हने खड़े होने के योग्य बनो।” (लूका 21:34-36) हम झुंड से भटकी हुई उन भेड़ों की मदद कैसे कर सकते हैं, जो पहले जैसी खुशी पाना चाहती हैं? हम उन्हें उकसा सकते हैं कि वे प्रार्थना में परमेश्‍वर से मदद माँगें, पवित्र शक्‍ति की गुज़ारिश करें और अपनी प्रार्थना के मुताबिक काम करें।—लूका 11:13.

क्या उन्हें ठोकर लगी है?

8, 9. जिन्हें ठोकर लगी है, उनके साथ एक प्राचीन कैसे तर्क कर सकता है?

8 हम सभी असिद्ध हैं इसलिए हममें आपसी मतभेद हो सकते हैं और इस वजह से एक इंसान को ठोकर लग सकती है। या फिर कलीसिया के किसी प्रौढ़ मसीही को बाइबल के उसूलों के खिलाफ काम करता देखकर कुछ लोग ठोकर खा सकते हैं। अगर एक व्यक्‍ति ऐसी ही कुछ वजहों से सच्चाई में ठंडा पड़ गया है, तो एक प्राचीन उससे कुछ इस तरह तर्क कर सकता है: यहोवा किसी को ठोकर नहीं खिलाता है। तो भला दूसरों के व्यवहार की वजह से कोई परमेश्‍वर और उसके लोगों के साथ अपना रिश्‍ता क्यों तोड़ ले? इसके बजाय, क्या उसे इस भरोसे के साथ परमेश्‍वर की सेवा में नहीं लगे रहना चाहिए कि “सारी पृथ्वी का न्यायी” होने के नाते परमेश्‍वर सब कुछ जानता है और सही तरीके से कार्रवाही करेगा? (उत्प. 18:25; कुलु. 3:23-25) ज़रा सोचिए, अगर एक आदमी चलते-चलते ठोकर खाकर गिर पड़ता है, तो क्या वह वहीं पड़ा रहेगा या फिर तुरंत उठ खड़ा होगा?

9 प्राचीन उससे यह भी कह सकता है कि कुछ लोगों ने पाया है कि जो बातें पहले उनके ठोकर का कारण थीं, समय के गुज़रते अब वे उनके लिए कोई मायने नहीं रखतीं। कभी-कभी तो ठोकर की वजह ही खत्म हो जाती है। अगर प्राचीनों से मिली किसी सलाह की वजह से उसे ठोकर लगी थी, तो प्रार्थना के साथ मनन करने पर वह पाएगा कि कम-से-कम कुछ हद तक तो वह सलाह, उस पर ज़रूर लागू होती है। इसलिए उसे ठोकर नहीं खानी चाहिए थी।—भज. 119:165; इब्रा. 12:5-13.

क्या उन्हें कोई शिक्षा रास नहीं आयी?

10, 11. उन लोगों के साथ किस तरह असरदार तरीके से तर्क किया जा सकता है, जो बाइबल पर आधारित किसी शिक्षा से सहमत नहीं थे?

10 कुछ लोगों ने शायद बाइबल पर आधारित किसी शिक्षा से सहमत न होने की वजह से परमेश्‍वर का झुंड छोड़ दिया हो। मिस्र की गुलामी से आज़ाद हुए इस्राएली, परमेश्‍वर के उन “कामों को भूल गए” जो उसने उनकी खातिर किए थे और वे “उसकी युक्‍ति के लिये न ठहरे।” (भज. 106:13) सच्चाई में ठंडे पड़ चुके व्यक्‍ति को याद दिलाया जा सकता है कि “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ही सबसे बेहतरीन आध्यात्मिक भोजन मुहैया कराता है। (मत्ती 24:45) और इन्हीं के ज़रिए उसने शुरू में बाइबल की सच्चाइयाँ सीखी थीं। तो फिर उसे दोबारा सच्चाई के रास्ते पर चलने का फैसला क्यों नहीं कर लेना चाहिए?—2 यूह. 4.

11 प्राचीन ऐसे मसीही को, यीशु के उन चेलों की याद दिला सकता है, जिन्होंने उसे इसलिए छोड़ दिया था क्योंकि उन्हें यीशु की एक शिक्षा रास नहीं आयी थी। (यूह. 6:53, 66) यीशु और उसके वफादार चेलों के साथ नाता तोड़ लेने से उन्होंने अपनी आध्यात्मिकता और खुशी दोनों खो दी। जिन लोगों ने मसीही कलीसिया की संगति छोड़ दी है, क्या उन्हें कहीं और ऐसा आध्यात्मिक भोजन मिला है? कहीं नहीं! क्योंकि ऐसी कोई जगह है ही नहीं।

क्या उन्होंने कोई गंभीर पाप किया है?

12, 13. अगर झुंड से भटकी हुई एक भेड़ कबूल करती है कि उसने गंभीर पाप किया है तो उसे कैसे मदद दी जा सकती है?

12 कुछ लोग शायद प्रचार करना और सभाओं में जाना इसलिए छोड़ दें, क्योंकि उन्होंने कोई गंभीर पाप किया हो। उन्हें शायद लगे कि अगर वे प्राचीनों को इस बारे में बताएँगे, तो उन्हें कलीसिया से बहिष्कृत कर दिया जाएगा। लेकिन अगर उन्होंने वह पाप करना छोड़ दिया है और सच्चे दिल से पछतावा किया है, तो उन्हें बहिष्कृत नहीं किया जाएगा। (2 कुरि. 7:10, 11) इसके बजाय, कलीसिया में खुशी-खुशी उनका स्वागत किया जाएगा और प्राचीन उन्हें ज़रूरी आध्यात्मिक मदद देंगे।

13 मान लीजिए कि आप एक तजुरबेकार प्रचारक हैं और आपको सच्चाई में ठंडे पड़ चुके किसी व्यक्‍ति के साथ अध्ययन करने को कहा गया है। अध्ययन के दौरान, वह आपको बताता है कि उसने कोई गंभीर पाप किया है, तो आप क्या करेंगे? जैसा हमने पहले देखा था, ऐसे मामलों में पड़ने के बजाय आपको उसे बताना चाहिए कि वह सीधे प्राचीनों से बात करे। अगर वह प्राचीनों को इत्तला नहीं करता है, तो आपका फर्ज़ बनता है कि आप प्राचीनों को इस बारे में बताएँ। ऐसा करने से आप परमेश्‍वर के निर्देशन के मुताबिक काम कर रहे होंगे। साथ ही, आप यहोवा के नाम और उसकी कलीसिया की आध्यात्मिक खैरियत के लिए परवाह दिखा रहे होंगे। (लैव्यव्यवस्था 5:1 पढ़िए।) प्राचीन जानते हैं कि उन लोगों को कैसे मदद दी जा सकती है, जो झुंड में लौट आना चाहते हैं और परमेश्‍वर की इच्छा के मुताबिक जीना चाहते हैं। हो सकता है कि प्राचीनों को उन्हें प्यार से अनुशासन देने की ज़रूरत पड़े। (इब्रा. 12:7-11) अगर वह व्यक्‍ति कबूल करता है कि उसने परमेश्‍वर के खिलाफ पाप किया है और यह बताता है कि अब उसने पाप करना छोड़ दिया है और उसे अपने किए पर पछतावा है, तो प्राचीन उसे परमेश्‍वर से माफी पाने में मदद देंगे।—यशा. 1:18; 55:7; याकू. 5:13-16.

बेटे के लौटने की खुशी

14. उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत को अपने शब्दों में बयान कीजिए।

14 झुंड से भटकी हुई किसी भेड़ के साथ अध्ययन करते वक्‍त एक तजुरबेकार मसीही, लूका 15:11-24 में दर्ज़ यीशु के दृष्टांत का हवाला दे सकता है। उस दृष्टांत में, एक ऐसे जवान के बारे में बताया गया है, जो अपनी संपत्ति ऐयाशी में उड़ा देता है। आगे चलकर उसे अपनी ज़िंदगी से नफरत होने लगती है। वह दाने-दाने को मोहताज हो जाता है और उसे घर की याद सताने लगती है। आखिरकार वह ठान लेता है कि वह घर लौट जाएगा। वह अभी अपने घर से दूर ही होता है कि उसे देखकर उसका पिता दौड़कर उसे गले लगा लेता है और चूमता है। पिता अपने बेटे से मिलकर खुशी से भर जाता है। हो सकता है कि इस दृष्टांत पर गौर करने से भटकी हुई भेड़ में वापस लौटने की इच्छा जाग जाए। यह दुनिया जल्द ही खत्म होनेवाली है, इसलिए उसे बिना देर किए ‘घर लौट आना’ चाहिए।

15. कुछ लोग कलीसिया छोड़कर क्यों चले जाते हैं?

15 ज़्यादातर लोग उड़ाऊ पुत्र की तरह नहीं होते। वे शायद एकदम से कलीसिया छोड़कर न जाएँ। हो सकता है कि वे धीरे-धीरे कलीसिया से दूर हो जाएँ, जैसे किनारे पर खड़ी कश्‍ती बहकर दूर चली जाती है। कुछ लोगों पर शायद जीवन की चिंताएँ हावी हो जाएँ और वे परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते को कोई अहमियत न दें। कुछ और लोग शायद किसी मसीही भाई या बहन से ठोकर खाकर कलीसिया में आना छोड़ दें। कुछ लोग इसलिए ठंडे पड़ जाएँ कि उन्हें बाइबल पर आधारित कोई शिक्षा रास न आयी हो। कुछ ऐसे भी हों, जो गंभीर पाप में फँसने की वजह से झुंड को छोड़ दें। या फिर वे किसी और वजह से सच्चाई में ठंडे पड़ गए हों। वजह चाहे जो भी हो, हमने जिन सुझावों पर गौर किया है, उन्हें लागू करके हम भटकी हुई भेड़ों को जल्द-से-जल्द झुंड में लौटने में मदद दे सकते हैं।

“मुबारक हो बेटा, तुम घर लौट आए!”

16-18. (क) एक प्राचीन ने कई सालों से सच्चाई में ठंडे पड़ चुके भाई की कैसे मदद की? (ख) वह भाई क्यों सच्चाई में ठंडा पड़ गया था और उसे झुंड में लौटने के लिए किस बात से मदद मिली? (ग) कलीसिया में लौटने पर भाई-बहन उसके साथ कैसे पेश आए?

16 एक प्राचीन बताता है: “हमारी कलीसिया के प्राचीन, उन लोगों से मुलाकात करने की खास कोशिश करते हैं, जो सच्चाई में ठंडे पड़ चुके हैं। मुझे एक भाई याद आया, जिसे मैंने सच्चाई सिखायी थी। उसे कलीसिया छोड़े करीब 25 साल हो चुके थे और वह अपनी ज़िंदगी के एक मुश्‍किल दौर से गुज़र रहा था। मैंने उसे समझाया कि बाइबल के उसूलों को अपनी ज़िंदगी में लागू करने से उसे कैसे मदद मिल सकती है। कुछ समय बाद, वह सभाओं में आने लगा और बाइबल अध्ययन करने लगा। इससे झुंड में वापस आने का उसका इरादा और भी मज़बूत हो गया।”

17 यह भाई क्यों सच्चाई में ठंडा पड़ गया था? वह कहता है: “मैं आध्यात्मिक बातों के बजाय दुनियावी बातों पर ज़्यादा ध्यान देने लगा। धीरे-धीरे मैंने अध्ययन करना, प्रचार में जाना और सभाओं में हाज़िर होना पूरी तरह बंद कर दिया। मुझे पता ही नहीं चला कि कब कलीसिया के साथ मेरा रिश्‍ता टूट गया। लेकिन एक प्राचीन ने मुझमें जो सच्ची परवाह दिखायी उससे मुझे झुंड में लौटने में मदद मिली।” अध्ययन शुरू करने के बाद उसकी समस्याएँ कम हो गयीं। वह कहता है: “मुझे एहसास हुआ कि मेरी ज़िंदगी में जो सबसे बड़ी कमी थी, वह थी यहोवा और भाई-बहनों के प्यार की और उसके संगठन के निर्देशन की।”

18 जब यह भाई कलीसिया में लौटा, तो दूसरे भाई-बहन उसके साथ कैसे पेश आए? वह कहता है: “मुझे ऐसा लगा जैसे मैं यीशु के दृष्टांत का उड़ाऊ पुत्र हूँ। दरअसल जब मैं कलीसिया में लौटा तो मेरी मुलाकात उस बहन से हुई, जो 30 साल पहले उसी कलीसिया में थी, और अब भी वफादारी से सेवा कर रही थी। उस बुज़ुर्ग बहन ने मुझसे कहा, ‘मुबारक हो बेटा, तुम घर लौट आए!’ उस बहन की बात मेरे दिल को छू गयी। मुझे लगा कि मैं सचमुच घर लौट आया हूँ। मैं कलीसिया के प्राचीनों और भाई-बहनों का बहुत एहसनामंद हूँ कि उन्होंने मुझे प्यार और अपनापन दिखाया। मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने मुझमें दिलचस्पी ली और मेरे साथ सब्र से पेश आए। यहोवा और पड़ोसियों के लिए उनका जो प्यार था, उसी ने मुझे झुंड में लौटने में मदद दी।”

गुज़ारिश कीजिए कि वे फौरन कदम उठाएँ!

19, 20. (क) आप सच्चाई में ठंडे पड़ चुके लोगों को जल्द-से-जल्द झुंड में लौटने के लिए कैसे मदद दे सकते हैं? (ख) आप उन्हें कैसे समझा सकते हैं कि यहोवा उनसे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता?

19 हम अंतिम दिनों में जी रहे हैं और बहुत जल्द इस दुनिया का नाश होनेवाला है। इसलिए सच्चाई में ठंडे पड़ चुके मसीहियों को सभाओं में आने के लिए उकसाइए। उनसे गुज़ारिश कीजिए की वे बिना समय गँवाए, तुरंत सभाओं में आना शुरू कर दें। उन्हें बताइए कि शैतान, परमेश्‍वर के साथ उनके रिश्‍ते को तोड़ने पर तुला हुआ है। वह उनके मन में यह बात बिठाना चाहता है कि सच्ची उपासना छोड़कर ही वे जीवन की चिंताओं से आज़ाद हो पाएँगे। उन्हें यकीन दिलाइए कि अगर वे वफादारी से यीशु के पीछे चलें, तो उन्हें ज़िंदगी में सच्ची खुशी और ताज़गी मिलेगी।—मत्ती 11:28-30 पढ़िए।

20 ऐसे लोगों को याद दिलाइए कि परमेश्‍वर हमसे उतना ही करने की उम्मीद करता है जितना कि हम कर सकते हैं। यीशु की मौत के कुछ दिन पहले, लाजर की बहन मरियम ने यीशु के सिर पर कीमती इत्र डाला। यह देखकर उसके चेले मरियम को बुरा-भला कहने लगे। इस पर यीशु ने उनसे कहा, “उसे छोड़ दो; . . . जो कुछ वह कर सकी, उस ने किया।” (मर. 14:6-8) यीशु ने मंदिर में आयी उस कंगाल विधवा की भी सराहना की, जिसने छोटा-सा दान दिया था। उसने भी उतना किया, जितना वह कर सकती थी। (लूका 21:1-4) हममें से ज़्यादातर लोग, सभाओं में हाज़िर हो सकते हैं और सुसमाचार का प्रचार कर सकते हैं। और यहोवा की मदद से, सच्चाई में ठंडे पड़ चुके लोगों के लिए भी ऐसा करना मुमकिन है।

21, 22. यहोवा की ओर फिरनेवालों को आप क्या यकीन दिला सकते हैं?

21 अगर सच्चाई में ठंडा पड़ चुका एक मसीही यह सोचकर कलीसिया में आने से कतरता है कि वह भाई-बहनों का सामना कैसे करेगा, तो आप क्या कर सकते हैं? आप उसे यकीन दिला सकते हैं कि जिस तरह उड़ाऊ पुत्र के घर लौटने पर खुशियाँ मनायी गयी थीं, उसी तरह उसे कलीसिया में दोबारा देखकर सभी भाई-बहन बहुत ही खुश होंगे। उसे उकसाइए कि वह शैतान का विरोध करने और परमेश्‍वर के करीब आने के लिए फौरन कदम उठाए।—याकू. 4:7, 8.

22 यहोवा की ओर फिरनेवालों का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया जाएगा। (विला. 3:40) बीते समय में, उन्होंने परमेश्‍वर की सेवा में ढेरों आशीषों का लुत्फ उठाया था। और अगर वे बिना देर किए परमेश्‍वर के झुंड में लौटते हैं, तो उनका दामन एक बार फिर खुशियों से भर जाएगा!

आप क्या जवाब देंगे?

• ठोकर खाने की वजह से सच्चाई में ठंडे पड़ चुके एक मसीही की आप कैसे मदद कर सकते हैं?

• ऐसे लोगों के साथ आप क्या तर्क कर सकते हैं, जो बाइबल पर आधारित किसी शिक्षा से सहमत न होने की वजह से झुंड से दूर चले गए हैं?

• सच्चाई में ठंडे पड़ चुके ऐसे मसीही की मदद कैसे की जा सकती है, जो कलीसिया में आने से कतराता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीर]

जब सच्चाई में ठंडा पड़ चुका एक मसीही अपने दिल का हाल बयान करता है, तो उसकी ध्यान से सुनिए

[पेज 15 पर तसवीर]

उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत पर गौर करने से सच्चाई में ठंडे पड़ चुके लोगों में दोबारा लौट आने की इच्छा जाग सकती है