सेहत का खयाल रखने में बाइबल का नज़रिया अपनाइए
सेहत का खयाल रखने में बाइबल का नज़रिया अपनाइए
“तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से और . . . अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना।”—मर. 12:30.
1. परमेश्वर ने जब इंसानों को बनाया, तब उसका क्या मकसद था?
यहोवा परमेश्वर ने जब इंसानों को बनाया था, तब उसका यह मकसद नहीं था कि वे बीमार हों और मर जाएँ। उसने आदम और हव्वा को अदन के बाग में, यानी खुशियों के फिरदौस में सिर्फ 70 या 80 साल जीने के लिए नहीं बनाया था। वह चाहता था कि वे हमेशा की ज़िंदगी का लुत्फ उठाएँ और अदन के बाग की ‘बागवानी और देख-भाल करें।’ (उत्प. 2:8, 15, NHT; भज. 90:10) अगर आदम और हव्वा यहोवा के वफादार रहते और उसकी हुकूमत के अधीन रहते, तो न वे बीमार होते और ना ही उन्हें बुढ़ापा और मौत का सामना करना पड़ता।
2, 3. (क) सभोपदेशक किताब में बुढ़ापे की क्या जीती-जागती तसवीर पेश की गयी है? (ख) इंसानों पर जो मौत आती है, उसके लिए असल में कौन ज़िम्मेदार है? और मौत को कैसे मिटाया जाएगा?
2 असिद्ध इंसानों को बुढ़ापे में जो “विपत्ति के दिन” देखने पड़ते हैं, उस बारे में सभोपदेशक किताब के अध्याय 12 में एक जीती-जागती तसवीर पेश की गयी है। (सभोपदेशक 12:1-7 पढ़िए।) वहाँ सफेद बालों को ‘बादाम के पेड़’ के फूलों के समान बताया गया है। टाँगों की तुलना “बलवन्त” आदमियों से की गयी है, जो अब सीधी नहीं होतीं और लड़खड़ाती हैं। कमज़ोर पड़ती नज़र को उन स्त्रियों की तरह बताया गया है, जो रोशनी की तलाश में झरोखे के पास जाती हैं, मगर उन्हें अँधेरे के सिवा कुछ नज़र नहीं आता। और दाँतों को “पिसनहारियां” बताया गया है, जिन्होंने “थोड़ी रहने के कारण काम [करना] छोड़” दिया है।
3 टाँगों का लड़खड़ाना, नज़र का कमज़ोर पड़ना और एक-एक करके सारे दाँत गिर जाना—ये तकलीफें झेलने के लिए परमेश्वर ने इंसानों को नहीं बनाया था। और-तो-और आदम की वजह से इंसानों पर जो मौत आती है, वह दरअसल “शैतान के कामों” में से एक है। परमेश्वर का बेटा, अपने मसीहाई राज्य के ज़रिए शैतान के इस काम को ‘नाश करेगा।’ इस बारे में प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “परमेश्वर का पुत्र इसलिये प्रगट हुआ, कि शैतान के कामों को नाश करे।”—1 यूह. 3:8.
अपनी सेहत की फिक्र करना लाज़िमी है
4. यहोवा के सेवक अपनी सेहत की फिक्र क्यों करते हैं? लेकिन वे किस सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ते?
4 शैतान के कामों के नाश होने तक, यहोवा के सेवकों को बाकी असिद्ध इंसानों की तरह बीमारी और बुढ़ापे की तकलीफों से जूझना पड़ सकता है। ऐसे में अपनी सेहत की फिक्र करना लाज़िमी है और फायदेमंद भी। क्योंकि जब हम चुस्त-दुरुस्त रहेंगे, तभी तो “अपनी सारी शक्ति से” यहोवा की सेवा कर पाएँगे। (मर. 12:30) आखिर हम सब यही तो चाहते हैं, है ना? लेकिन हम इस सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ सकते कि बीमारियों से बचना और बुढ़ापे को रोकना हमारे हाथ में नहीं है।
5. हम यहोवा के उन वफादार सेवकों से क्या सीख सकते हैं, जिन्हें सेहत से जुड़ी परेशानियाँ झेलनी पड़ीं?
5 यहोवा के कई वफादार सेवकों को सेहत से जुड़ी परेशानियाँ झेलनी पड़ीं। इनमें से एक था, इपफ्रुदीतुस। (फिलि. 2:25-27) इसके अलावा, पौलुस के वफादार साथी तीमुथियुस को भी अकसर पेट की कुछ तकलीफ रहती थी, जिसके लिए पौलुस ने उसे “थोड़ा दाखरस” पीने की सलाह दी। (1 तीमु. 5:23) खुद पौलुस को शायद आँखों की कमज़ोरी या किसी दूसरी बीमारी ने परेशान कर रखा था, जिसका उस वक्त कोई इलाज नहीं था और जिसे उसने अपने ‘शरीर का कांटा’ कहा। (2 कुरि. 12:7; गल. 4:15; 6:11) इस ‘कांटे’ को दूर करने के लिए उसने यहोवा से कई बार बिनती की। (2 कुरिन्थियों 12:8-10 पढ़िए।) यहोवा ने किसी चमत्कार के ज़रिए पौलुस के ‘कांटे’ को दूर तो नहीं किया, मगर उसने पौलुस को वह तकलीफ सहने की ताकत दी। इस तरह पौलुस की निर्बलता में यहोवा की शक्ति ज़ाहिर हुई। इस वाकये से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।
सेहत न बने जुनून
6, 7. हम अपनी सेहत के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता क्यों नहीं करते?
6 जैसा कि आप जानते हैं, यहोवा के साक्षी बीमार पड़ने पर डॉक्टर के पास जाते हैं और ठीक होने के लिए कई तरह के इलाज भी करवाते हैं। हमारी सजग होइए! पत्रिका में अकसर सेहत से जुड़े लेख आते रहते हैं। इन लेखों में हम इलाज के किसी खास तरीके का बढ़ावा नहीं देते, लेकिन हम उन डॉक्टरों और नर्सों की कदर करते हैं जो हमें ज़रूरी मदद और सहयोग देते हैं। यह सच है कि इस दुनिया में बढ़िया सेहत पाना नामुमकिन है। इसलिए हम जानते हैं कि अपनी सेहत के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता करने का कोई फायदा नहीं। आज दुनिया के ज़्यादातर लोग “आशाहीन” हैं और सोचते हैं कि यही ज़िंदगी सबकुछ है। इस वजह से वे अपनी बीमारियों से राहत पाने के लिए इलाज का कोई भी तरीका अपनाने से पीछे नहीं हटते। (इफि. 2:2, 12) लेकिन हमने ठान लिया है कि हम अपनी मौजूदा ज़िंदगी बचाने के लिए ऐसा कोई भी इलाज नहीं करवाएँगे, जिससे हम यहोवा की मंज़ूरी खो दें। हमें यकीन है कि अगर हम यहोवा के वफादार बने रहें, तो हम “सच्ची ज़िन्दगी” पर यानी परमेश्वर की नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी पर ‘कब्ज़ा कर पाएँगे।’—1 तीमु. 6:12, 19, हिन्दुस्तानी बाइबल; 2 पत. 3:13.
7 हम इसलिए भी अपनी सेहत के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करते, क्योंकि ऐसा करने से हम स्वार्थी बन सकते हैं। इसी खतरे से पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को खबरदार किया था। उसने कहा: “हर एक अपनी ही हित की नहीं, बरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करे।” (फिलि. 2:4) अपनी सेहत की कुछ हद तक फिक्र करना सही है, लेकिन यह एक जुनून नहीं बनना चाहिए। इस खतरे से बचने के लिए हमें अपने भाइयों में और उन लोगों में गहरी दिलचस्पी लेनी चाहिए, जिन्हें हम ‘राज्य का सुसमाचार’ सुनाते हैं।—मत्ती 24:14.
8. सेहत को लेकर ज़रूरत-से-ज़्यादा चिंता करने से क्या हो सकता है?
8 जब एक मसीही, सेहत को लेकर ज़रूरत-से-ज़्यादा चिंता करने लगता है, तो हो सकता है कि वह राज्य के कामों को पहली जगह देना छोड़ दे। और यह भी हो सकता है कि वह इलाज के किसी तरीके या खान-पान के बारे में अपनी राय दूसरों पर थोपने लगे। इस मामले में पौलुस के इन शब्दों में दिए सिद्धांत पर गौर कीजिए: “तुम उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानो, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहो; और ठोकर न खाओ।”—फिलि. 1:10.
क्या बात सबसे ज़्यादा अहमियत रखती है?
9. अगर हम उत्तम-से-उत्तम बातों को प्रिय जानें, तो हम किस काम को नज़रअंदाज़ नहीं करेंगे और क्यों?
9 अगर हम उत्तम-से-उत्तम बातों को प्रिय जानें, तो हम आध्यात्मिक चंगाई के काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे, यानी लोगों को परमेश्वर के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाने में मदद देंगे। और यह हम तभी कर पाएँगे जब हम परमेश्वर के वचन का प्रचार करेंगे और लोगों को उसके बारे में सिखाएँगे। इस काम से हमें भी फायदा होगा और उन्हें भी जिन्हें हम सिखाएँगे। (नीति. 17:22; 1 तीमु. 4:15, 16) कभी-कभी प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाओं में ऐसे भाई-बहनों के अनुभव दिए जाते हैं, जो गंभीर बीमारियों के बावजूद, इस काम में लगे रहते हैं। वे कहते हैं कि जब वे यहोवा और उसके शानदार वादों के बारे में दूसरों को बताते हैं, तो इससे उन्हें अपनी मुश्किलों का सामना करने में मदद मिलती है। और-तो-और वे कुछ वक्त के लिए अपनी तकलीफें भूल जाते हैं। *
10. इलाज के बारे में हमारा चुनाव क्यों मायने रखता है?
10 जब इलाज के तरीके चुनने की बात आती है, तो हर मसीही को ‘अपना बोझ उठाना’ चाहिए। (गल. 6:5) मगर हमें यह याद रखना चाहिए कि हम जो भी चुनाव करते हैं, उसका असर यहोवा के साथ हमारे रिश्ते पर पड़ता है। जिस तरह हम बाइबल सिद्धांतो को मानकर ‘लहू से परे रहते हैं,’ उसी तरह हमें इलाज के ऐसे तरीकों से दूर रहना चाहिए, जिन्हें अपनाने से हम बाइबल सिद्धांतों के खिलाफ जा सकते हैं या यहोवा के साथ अपना रिश्ता बिगाड़ सकते हैं। (प्रेरि. 15:20) बीमारी का पता लगाने और इलाज के कुछ तरीकों में भूतविद्या का इस्तेमाल किया जाता है। प्राचीन समय में जब इस्राएली सच्ची उपासना छोड़कर “अनर्थ काम” यानी जादू-टोना के काम करने लगे, तो यहोवा ने उन्हें ठुकरा दिया। उसने उन्हें फटकारते हुए कहा: “व्यर्थ अन्नबलि फिर मत लाओ; धूप से मुझे घृणा है। नये चांद और विश्रामदिन का मानना, और सभाओं का प्रचार करना, यह मुझे बुरा लगता है। महासभा के साथ ही साथ अनर्थ काम करना मुझ से सहा नहीं जाता।” (यशा. 1:13) बीमारी के वक्त हमें प्रार्थना करने और यहोवा से ताकत पाने की ज़्यादा ज़रूरत होती है। इसलिए हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे यहोवा हमारी प्रार्थनाएँ अनसुनी कर दे और उसके साथ हमारा रिश्ता तबाह हो जाए।—विला. 3:44.
‘स्वस्थ मन’ से काम लेना ज़रूरी है
11, 12. सही इलाज चुनने में ‘स्वस्थ मन’ हमारी कैसे मदद कर सकता है?
11 बीमार पड़ने पर हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि यहोवा चमत्कार करके हमें ठीक कर देगा। मगर हम उससे बुद्धि ज़रूर माँग सकते हैं, ताकि हम सही इलाज चुन सकें। हमें हमेशा बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक और स्वस्थ मन यानी सूझबूझ से चुनाव करना चाहिए। अगर बीमारी बड़ी है, तो दो-चार डॉक्टरों से सलाह लेना बुद्धिमानी होगी, जैसा कि नीतिवचन 15:22 (NHT) में बताया गया है: “बिना सलाह के, योजनाएं निष्फल हो जाती हैं, परन्तु अनेक सलाहकारों की सलाहों से वे सफल हो जाती हैं।” प्रेरित पौलुस ने अपने संगी मसीहियों से गुज़ारिश की कि वे ‘इस मौजूदा दुनिया की व्यवस्था में स्वस्थ मन से और परमेश्वर के स्तरों पर चलते हुए और उसकी भक्ति करते हुए जीवन बिताएँ।’—तीतु. 2:12, NW.
12 यीशु के दिनों में एक स्त्री लंबे अरसे से बीमार थी। उसके बारे में हम मरकुस 5:25, 26 (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) में पढ़ते हैं: “एक स्त्री थी जिसे बारह बरस से लगातार खून जा रहा था। वह अनेक चिकित्सकों से इलाज कराते कराते बहुत दुःखी हो चुकी थी। उसके पास जो कुछ था, सब खर्च कर चुकी थी, पर उसकी हालत में कोई भी सुधार नहीं आ रहा था, बल्कि और बिगड़ती जा रही थी।” यीशु ने उस स्त्री को ठीक कर दिया और उसके साथ करुणा से पेश आया। (मर. 5:27-34) आज परमेश्वर के कई सेवकों का हाल उस बीमार स्त्री के जैसा है। ऐसे में कुछ मसीही अपनी बीमारी से राहत पाने के लिए इतने उतावले हो सकते हैं कि वे किसी भी तरह का इलाज करवाने के लिए तैयार हो जाएँ। फिर चाहे वह इलाज परमेश्वर के सिद्धांतों के खिलाफ ही क्यों न हो।
13, 14. (क) इलाज का चुनाव करने के मामले में शैतान कैसे हमारी खराई तोड़ सकता है? (ख) हमें क्यों ऐसे हर काम से दूर रहना चाहिए, जिसका तंत्र-मंत्र से नाता है?
13 शैतान हमें सच्ची उपासना से दूर ले जाने के लिए कोई भी हथकंडा अपना सकता है। वह कुछ सेवकों को फँसाने के लिए धन का लालच और अनैतिकता के फँदे बिछाता है। जबकि कुछ सेवकों की खराई तोड़ने के लिए वह तंत्र-मंत्र और भूतविद्या से जुड़े इलाज के तरीकों का इस्तेमाल करता है। हम यहोवा से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें ‘उस दुष्ट से बचाए’ और ‘हर प्रकार के अधर्म से छुड़ाए।’ तो फिर हमें ऐसे हर काम से दूर रहना चाहिए, जिसका भूतविद्या और तंत्र-मंत्र से नाता है और जिससे हम शैतान के हाथों की कठपुतली बन सकते हैं।—मत्ती 6:13, NHT, फुटनोट; तीतु. 2:14.
14 यहोवा ने इस्राएलियों को तंत्र-मंत्र और जादू-टोना के कामों में उलझने से साफ मना किया था। (व्यव. 18:10-12) पौलुस ने ‘टोने’ को ‘शरीर के कामों’ में से एक बताया। (गल. 5:19, 20) इतना ही नहीं, यहोवा की नयी दुनिया में ‘टोन्हा करनेवालों’ के लिए कोई जगह नहीं होगी। (प्रका. 21:8) इससे साफ ज़ाहिर है कि यहोवा ऐसे हर काम से घृणा करता है, जिसका भूतविद्या से नाता है।
तुम्हारी समझदारी सब पर ज़ाहिर हो
15, 16. (क) इलाज का चुनाव करते वक्त हमें बुद्धि की ज़रूरत क्यों है? (ख) पहली सदी के शासी निकाय ने मसीहियों को क्या बुद्धि-भरी हिदायत दी?
15 अगर हमें लगता है कि बीमारी का पता लगाने या इलाज के किसी तरीके का भूतविद्या से ताल्लुक है, तो उससे दूर रहना ही अक्लमंदी होगी। दूसरी तरफ, अगर हम यह समझा न पाएँ कि इलाज का फलाँ तरीका कैसे काम करता है, तो इसका यह मतलब नहीं कि उसमें किसी तरह की भूतविद्या शामिल है। अपनी सेहत का खयाल रखने में बाइबल का नज़रिया अपनाने के लिए ज़रूरी है कि हम उसमें दी बुद्धि का इस्तेमाल करें और समझ से काम लें। नीतिवचन के अध्याय 3 में हम यह सलाह पाते हैं: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा। . . . खरी बुद्धि और विवेक की रक्षा कर, तब इन से तुझे जीवन मिलेगा।”—नीति. 3:5, 6, 21, 22.
16 हम सभी सेहतमंद रहने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं। लेकिन बीमारी और बुढ़ापे में जब हमें इलाज का चुनाव करना होता है, तब हमें सावधान रहना चाहिए कि हम ऐसा कोई चुनाव न करें, जिससे हम यहोवा की मंज़ूरी खो बैठें। ज़िंदगी के दूसरे मामलों की तरह, इलाज के मामले में भी हमारी “कोमलता” यानी समझदारी ‘सब मनुष्यों पर प्रगट होनी चाहिए।’ इसके लिए ज़रूरी है कि हम बाइबल सिद्धांतों पर चलते रहें। (फिलि. 4:5) पहली सदी के शासी निकाय ने मसीहियों को एक अहम खत लिखा, जिसमें उन्हें मूर्तिपूजा, लहू और व्यभिचार से दूर रहने की हिदायत दी गयी थी। साथ ही उन्हें यह भी यकीन दिलाया गया था कि अगर वे ‘इन से परे रहें; तो उनका भला होगा।’ (प्रेरि. 15:28, 29) यह हिदायत मानने से मसीहियों का कैसे भला होता?
नयी दुनिया में मिलेगी बढ़िया और मुकम्मल सेहत
17. बाइबल सिद्धांतों को मानने से हमें शारीरिक तौर पर क्या फायदे होते हैं?
17 हममें से हरेक को खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं यह मानता हूँ कि लहू और व्यभिचार के बारे में बाइबल सिद्धांतों का सख्ती से पालन करने से ही मेरा भला हुआ है?’ इसके अलावा, उन फायदों के बारे में भी सोचिए जो हमें “अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध” रखने से मिलते हैं। (2 कुरि. 7:1) साफ-सफाई के सिलसिले में बाइबल के स्तरों को मानने से हम कई बीमारियों से बचे रहते हैं। हमारा तब भी भला होता है, जब हम तंबाकू और ड्रग्स से दूर रहते हैं, जो न सिर्फ हमें शारीरिक तौर पर बल्कि आध्यात्मिक तौर पर भी मलिन करते हैं। खाने-पीने के मामले में संयम बरतने से भी हमारी सेहत अच्छी रहती है। (नीतिवचन 23:20; तीतुस 2:2, 3 पढ़िए।) यह सच है कि भरपूर आराम और कसरत वगैरह से हम चुस्त-दुरुस्त रहते हैं। मगर शारीरिक और आध्यात्मिक मायनों में हमारा भला खासकर इस वजह से होता है, क्योंकि हम बाइबल की हिदायतें मानते हैं।
18. हमें सबसे ज़्यादा किस बात का खयाल रखना चाहिए? हम किस भविष्यवाणी के पूरा होने की आस लगाते हैं?
18 हमें सबसे ज़्यादा अपनी आध्यात्मिक सेहत का खयाल रखना चाहिए और यहोवा के साथ अपने अनमोल रिश्ते को मज़बूत करना चाहिए। वह हमारा पिता है और ‘इस जीवन का और आनेवाले जीवन’ का दाता भी। (1 तीमु. 4:8; भज. 36:9) परमेश्वर की नयी दुनिया में, जब यीशु के छुड़ौती बलिदान के आधार पर हमें पाप के चंगुल से आज़ाद किया जाएगा, तब हम आध्यात्मिक और शारीरिक मायने में पूरी तरह से चंगे हो जाएँगे। परमेश्वर का मेम्ना, यीशु मसीह हमें “जीवन रूपी जल के सोतों के पास ले” जाएगा। और परमेश्वर हमारी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा। (प्रका. 7:14-17; 22:1, 2) तब यह हैरतअँगेज़ भविष्यवाणी भी पूरी होगी: “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं।”—यशा. 33:24.
19. हमें किस बात का यकीन दिलाया गया है?
19 हमें पूरा भरोसा है कि हमारा छुटकारा निकट है! हमें उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार है जब यहोवा, बीमारी और मौत का नामो-निशान मिटा देगा। मगर जब तक वह दिन नहीं आ जाता, हमें यकीन दिलाया गया है कि हमारी पीड़ाओं और बीमारियों का बोझ उठाने में हमारा प्यारा पिता हमें ज़रूर मदद देगा, क्योंकि ‘उस को हमारी फिक्र है।’ (1 पत. 5:7, हिन्दुस्तानी बाइबल) तो फिर आइए, हम अपनी सेहत का खयाल रखने में हमेशा परमेश्वर के प्रेरित वचन में दी हिदायतें मानें!
[फुटनोट]
^ ऐसे कुछ अनुभवों की सूची, 1 सितंबर, 2003 के प्रहरीदुर्ग, पेज 17 के बक्स में दी गयी है।
दोहराने के लिए
• बीमारी के लिए असल में कौन ज़िम्मेदार है? और कौन हमें पाप के असर से छुटकारा दिलाएगा?
• हालाँकि अपनी सेहत की फिक्र करना लाज़िमी है, लेकिन हमें किस खतरे से सावधान रहना चाहिए?
• इलाज के बारे में हमारा चुनाव क्यों मायने रखता है?
• सेहत के बारे में बाइबल में दिए सिद्धांतों को मानने से हमें कैसे फायदा होता है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 23 पर तसवीर]
इंसान को बीमारी और बुढ़ापे की तकलीफें झेलने के लिए नहीं बनाया गया था
[पेज 24 पर तसवीर]
खराब सेहत के बावजूद, यहोवा के सेवक प्रचार काम से खुशी पाते हैं