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अच्छी तरह गवाही देने की ठान लीजिए

अच्छी तरह गवाही देने की ठान लीजिए

अच्छी तरह गवाही देने की ठान लीजिए

“उस ने हमें आज्ञा दी, कि लोगों में प्रचार करो; और [ “अच्छी तरह,” NW] गवाही दो।”—प्रेरि. 10:42.

1. कुरनेलियुस से बात करते वक्‍त पतरस ने किस आज्ञा के बारे में बताया?

 एक बार परमेश्‍वर का भय माननेवाले एक इतालवी सूबेदार ने अपने दोस्तों और रिश्‍तेदारों को अपने घर बुलाया। उस मौके पर एक अहम घटना घटनेवाली थी। वहाँ प्रेरित पतरस भी मौजूद था। उसने सब लोगों से कहा कि प्रेरितों को यीशु के बारे में ‘प्रचार करने और अच्छी तरह गवाही देने’ की आज्ञा दी गयी है। पतरस की गवाही देने का बढ़िया नतीजा निकला। खतनारहित अन्यजाति के लोगों को परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति मिली और उन्होंने बपतिस्मा लिया। इस तरह वे यीशु के साथ स्वर्ग में राज्य करने के लिए चुने गए। वाकई, अच्छी गवाही देने से क्या ही बढ़िया नतीजा निकला!—प्रेरि. 10:22, 34-48.

2. हम यह क्यों कह सकते हैं कि गवाही देने की आज्ञा सिर्फ 12 प्रेरितों को ही नहीं दी गयी थी?

2 यह घटना सा.यु. 36 में घटी। इसके करीब दो साल पहले, मसीहियत के एक जानी-दुश्‍मन शाऊल की ज़िंदगी में बहुत बड़ी तबदीली आयी। वह तरसुस का रहनेवाला था। एक बार जब वह दमिश्‍क जा रहा था, तब रास्ते में उसे यीशु का दर्शन मिला और यीशु ने उससे कहा: “नगर में जा, और जो तुझे करना है, वह तुझ से कहा जाएगा।” फिर यीशु ने अपने चेले हनन्याह को इस बात का यकीन दिलाया कि शाऊल “अन्यजातियों और राजाओं, और इस्राएलियों के साम्हने” उसकी गवाही देगा। (प्रेरितों 9:3-6, 13-20 पढ़िए।) फिर हनन्याह ने शाऊल से मिलकर उससे कहा: “हमारे बापदादों के परमेश्‍वर ने तुझे इसलिये ठहराया है, . . . क्योंकि तू उस की ओर से सब मनुष्यों के साम्हने . . . गवाह होगा।” (प्रेरि. 22:12-16) तो फिर शाऊल, जो आगे चलकर पौलुस के नाम से जाना गया, उसने गवाही देने के इस काम को कितनी गंभीरता से लिया?

उसने वाकई अच्छी गवाही दी!

3. (क) हम किस ब्यौरे पर ध्यान देंगे? (ख) पौलुस का संदेश पाकर इफिसुस के प्राचीनों ने क्या किया होगा? और उनसे हम क्या सबक सीख सकते हैं?

3 मसीही बनने के बाद पौलुस ने जो बढ़िया गवाही दी, उसके बारे में अध्ययन करना बड़ा दिलचस्प होगा। मगर आइए हम पौलुस के एक भाषण पर ध्यान दें, जो उसने सा.यु. 56 में दिया था। हम इसका ब्यौरा प्रेरितों के अध्याय 20 में पाते हैं। पौलुस ने यह भाषण अपनी तीसरी मिशनरी यात्रा के आखिर में दिया था। अपने सफर के दौरान, वह मीलेतुस पर उतर गया, जो एजियन सागर के तट पर बसा एक बंदरगाह शहर था। वहाँ से उसने इफिसुस कलीसिया के प्राचीनों को बुलावा भेजा। इफिसुस वहाँ से 50 किलोमीटर की दूरी पर था, लेकिन घुमावदार रास्ते की वजह से सफर में ज़्यादा समय लगता था। आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जब इफिसुस के प्राचीनों को पौलुस का संदेश मिला, तो वे कितने खुश हुए होंगे। (नीतिवचन 10:28 से तुलना कीजिए।) लेकिन हाँ, उन्हें मीलेतुस जाने के लिए कुछ बंदोबस्त करने पड़े होंगे। शायद कुछ भाइयों को काम से छुट्टी लेनी पड़ी होगी या फिर अपनी दुकानें बंद करनी पड़ी होंगी। आज भी कई मसीही सालाना ज़िला अधिवेशन के हर सेशन में हाज़िर होने के लिए ऐसा ही करते हैं।

4. इफिसुस में रहते वक्‍त पौलुस ने अपने किस रिवाज़ को जारी रखा?

4 इफिसुस के प्राचीनों को मीलेतुस पहुँचने के लिए तीन से चार दिन लगे। आपको क्या लगता है, इस बीच पौलुस ने क्या किया होगा? अगर आप पौलुस की जगह होते, तो क्या करते? (प्रेरितों 17:16, 17 से तुलना कीजिए।) पौलुस ने इफिसुस के प्राचीनों से जो बात कही, उससे हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इस दरमियान उसने क्या किया। पौलुस उन्हें बताता है कि प्रचार करना, सालों से उसका रिवाज़ रहा है। और वह उन्हें याद दिलाता है कि इफिसुस में उनके साथ रहते वक्‍त भी उसने यही किया था। (प्रेरितों 20:18-21 पढ़िए।) उसने पूरे यकीन के साथ उनसे कहा: “तुम जानते हो, कि पहिले ही दिन से जब मैं आसिया में पहुंचा, मैं . . . [“अच्छी तरह,” NW] गवाही देता रहा।” जी हाँ, पौलुस ने यीशु से मिली ज़िम्मेदारी को हर कीमत पर पूरा करने की ठान ली थी। उसने इफिसुस में यह काम कैसे पूरा किया? उसने वहाँ जाकर प्रचार किया, जहाँ ज़्यादा-से-ज़्यादा यहूदी मिल सकते थे। लूका बताता है कि जब पौलुस इफिसुस में था, यानी करीब सा.यु. 52-55 के बीच, तब वह आराधनालय में जाकर “विवाद करता और समझाता” था। लेकिन जब यहूदियों ने “कठोर होकर उस की नहीं मानी,” तब वह शहर में दूसरी जगह जाकर रहने लगा और उसने अपना प्रचार काम जारी रखा। इस तरह उसने उस शहर के यहूदियों और यूनानियों, सभी को अच्छी तरह गवाही दी।—प्रेरि. 19:1, 8, 9.

5, 6. हम इस बात का यकीन कैसे रख सकते हैं कि पौलुस ने घर-घर जाकर गैर-मसीहियों को प्रचार किया?

5 इफिसुस में पौलुस ने जिन लोगों को गवाही दी थी, वक्‍त के गुज़रते उनमें से कुछ अब प्राचीन बन गए थे और मीलेतुस में उससे मिलने आए थे। पौलुस उन्हें याद दिलाता है कि उसने प्रचार का कौन-सा तरीका अपनाया था। वह कहता है: “जो जो बातें तुम्हारे लाभ की थीं, उन को बताने और लोगों के साम्हने और घर घर सिखाने से [मैं] कभी न झिझका।” आज कुछ लोग दावा करते हैं कि पौलुस यहाँ रखवाली भेंट की बात कर रहा था। लेकिन ऐसा नहीं है। पौलुस ने “लोगों के साम्हने और घर घर सिखाने” की जो बात कही थी, वह खासकर गैर-मसीहियों को प्रचार करने के बारे में लागू होती है। यह बात आगे कहे उसके शब्दों से साफ हो जाती है। उसने कहा कि वह “यहूदियों और यूनानियों के साम्हने गवाही देता रहा, कि परमेश्‍वर की ओर मन फिराना, और हमारे प्रभु यीशु मसीह पर विश्‍वास करना।” तो ज़ाहिर है कि पौलुस अन्यजाति के लोगों को गवाही दे रहा था, जिन्हें पश्‍चाताप करने और यीशु पर विश्‍वास करने की ज़रूरत थी।—प्रेरि. 20:20, 21.

6 मसीही यूनानी शास्त्र का गहराई से अध्ययन करनेवाले एक विद्वान ने प्रेरितों 20:20 के बारे में कहा: “पौलुस तीन साल इफिसुस में रहा। वह हरेक घर में गया। अगर ना भी गया हो, तो भी इतना तो तय है कि उसने हरेक को गवाही दी। (आयत 26) इससे पता चलता है कि घर-घर प्रचार करने और समूहों के तौर पर लोगों को गवाही देने के तरीके बाइबल पर आधारित है।” हम यह तो नहीं जानते कि पौलुस ने हरेक घर में जाकर प्रचार किया या नहीं, जैसा कि यह विद्वान कहता है। मगर हम इतना ज़रूर जानते हैं कि पौलुस चाहता था कि इफिसुस के प्राचीन इस बात को न भूलें कि उसने किस तरह से गवाही दी और उसका क्या असर हुआ। इस बारे में लूका ने बताया: “वे जो एशिया में रहते थे—यहूदी तथा यूनानी—सब ने प्रभु का वचन सुन लिया।” (प्रेरि. 19:10, NHT) लेकिन एशिया में “सब” लोगों ने पौलुस की गवाही कैसे सुनी और इससे गवाही देने के बारे में हम क्या सीखते हैं?

7. पौलुस के प्रचार का उन लोगों पर कैसा असर हुआ होगा, जिनको उसने सीधे-सीधे प्रचार नहीं किया था?

7 पौलुस ने सार्वजनिक जगहों में और घर-घर जाकर प्रचार किया, जिस वजह से बहुत-से लोग उसका संदेश सुन पाए। क्या आपको लगता है कि जिन लोगों ने उसका संदेश सुना था, वे सब-के-सब इफिसुस में ही रहे? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कुछ लोग बिज़नेस के सिलसिले में, या फिर रिश्‍तेदारों के पास रहने के लिए, या शहर की भाग-दौड़वाली ज़िंदगी से बचने के लिए कहीं और जाकर बस गए हों? हो सकता है। आज भी कई लोग इन वजहों से दूसरे शहरों में जा बसते हैं। शायद आप भी उनमें से एक हों। इसके अलावा, दूसरे शहरों से व्यापार के सिलसिले में और दूसरी वजहों से कई लोग इफिसुस में आते थे। और हो सकता है कि वे पौलुस से मिले होंगे और पौलुस ने उन्हें भी गवाही दी होगी। जब वे अपने शहर लौटे होंगे, तब उन्होंने क्या किया होगा? जिन लोगों ने सच्चाई स्वीकार की, उन्होंने दूसरों को गवाही दी होगी। लेकिन जो लोग विश्‍वासी नहीं बने थे, उन्होंने भी शायद अपने शहर में दूसरों को सुसमाचार के बारे में बताया होगा। इसलिए उनके रिश्‍तेदारों, पड़ोसियों और ग्राहकों ने उनसे सच्चाई के बारे में सुना होगा और कुछ ने सच्चाई कबूल भी की होगी। (मरकुस 5:13-15 से तुलना कीजिए।) पौलुस की तरह अगर हम भी दूसरों को अच्छी तरह गवाही दें, तो इसके बढ़िया नतीजे निकल सकते हैं।

8. एशिया के पूरे इलाके में लोगों तक सच्चाई कैसे पहुँची होगी?

8 जब पौलुस ने इफिसुस में प्रचार काम शुरू किया था, तब उसने लिखा कि उसके लिए “सेवा करने का एक बड़ा द्वार खुला है।” (1 कुरि. 16:8, 9, NHT) यह किस द्वार की बात हो रही थी और वह उसके लिए कैसे खोला गया था? पौलुस, इफिसुस में प्रचार करते रहा और इस वजह से सुसमाचार दूर-दूर तक फैला। इफिसुस से कुछ दूरी पर बसे कुलुस्से, लौदीकिया और हियरापुलिस जैसे शहरों के बारे में सोचिए। पौलुस वहाँ कभी नहीं गया था, मगर सुसमाचार वहाँ भी पहुँचा। इपफ्रास उसी इलाके से था। (कुलु. 2:1; 4:12, 13) तो क्या इपफ्रास, इफिसुस में पौलुस से सुसमाचार सुनकर मसीही बना था? बाइबल इस बारे में साफ-साफ नहीं बताती। हो सकता है, इपफ्रास ने अपने शहर जाकर पौलुस के प्रतिनिधि के तौर पर सच्चाई के बीज बोए हों। (कुलु. 1:7) और इन्हीं सालों के दौरान जब पौलुस इफिसुस में प्रचार कर रहा था, तो उसका संदेश फिलेदिलफिया, सरदीस और थुआतीरा जैसे शहरों में भी पहुँचा होगा।

9. (क) पौलुस की दिली चाहत क्या थी? (ख) सन्‌ 2009 का सालाना वचन क्या होगा?

9 पौलुस ने इफिसुस के प्राचीनों से कहा: ‘मैं अपनी जान को ज़रा भी कीमती नहीं समझता कि इसकी परवाह करूँ, बस इतना चाहता हूँ कि मैं किसी तरह अपनी दौड़ पूरी कर सकूँ और अपनी सेवा पूरी कर सकूँ। यही सेवा जो मुझे प्रभु यीशु से मिली थी कि परमेश्‍वर की महा-कृपा के बारे में खुशखबरी की अच्छी गवाही दूँ।’ वाकई, इफिसुस के प्राचीनों के पास उसकी इस बात को मानने के ढेरों कारण थे। पौलुस की इसी बात से सन्‌ 2009 का हमारा सालाना वचन लिया गया है। वह है: ‘खुशखबरी की अच्छी गवाही दो।’ (प्रेरि. 20:24, NW) यह वचन वाकई हमें प्रचार में ज़्यादा-से-ज़्यादा करने के लिए उकसाएगा!

आज भी अच्छी गवाही देना

10. हम कैसे जानते हैं कि आज हमें भी सबको अच्छी तरह गवाही देनी है?

10 ‘लोगों को प्रचार करने और अच्छी तरह गवाही देने’ की आज्ञा सिर्फ प्रेरितों को नहीं दी गयी थी। यीशु ने जी उठने के बाद, गलील में इकट्ठा हुए अपने 500 चेलों से कहा: “इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” यह आज्ञा आज भी सच्चे मसीहियों पर लागू होती है, जैसा कि यीशु के इन शब्दों से साफ देखा जा सकता है: “देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।”—मत्ती 28:19, 20.

11. यहोवा के साक्षी किस अहम काम के लिए जाने जाते हैं?

11 जोशीले मसीही, यीशु की आज्ञा को मानते हुए आज ‘खुशखबरी की अच्छी गवाही देने’ की पूरी कोशिश करते हैं। और उनका मुख्य तरीका है, घर-घर प्रचार करना, ठीक जैसे पौलुस ने इफिसुस के प्राचीनों को बताया था। डेविड जी. स्टीवॉर्ट जूनियर, प्रचार काम के असरदार तरीके के बारे में सन्‌ 2007 में प्रकाशित अपनी किताब में कहता है: “प्रचार करने के लिए [मंच पर खड़े होकर भाषण देने] के मुकाबले, यहोवा के साक्षी जो तरीका अपनाते हैं, वह ज़्यादा असरदार साबित हुआ है। वे अपने सभी सदस्यों को अपने विश्‍वासों के बारे में दूसरों को प्रचार करने के लिए सिखाते हैं। बहुत-से साक्षियों का यह मनपसंद काम है।” नतीजा? स्टीवॉर्ट जूनियर बताता है, “सन्‌ 1999 में, मैंने पूर्वी यूरोप के दो देशों की राजधानी में रहनेवाले जिन लोगों का सर्वे किया, उनमें से सिर्फ 2 से 4 प्रतिशत लोगों ने लेटर-डे सेंट्‌स या ‘मोर्मोन’ मिशनरियों के आने की बात कही, जबकि 70 प्रतिशत लोगों ने बताया कि यहोवा के साक्षी व्यक्‍तिगत तौर पर उनसे मिलने आए थे और ज़्यादातर मामलों में साक्षी एक-से-ज़्यादा बार आए थे।”

12. (क) हम प्रचार में लोगों के पास “एक-से-ज़्यादा बार” क्यों जाते हैं? (ख) किसी ऐसे व्यक्‍ति का अनुभव बताइए, जिसने पहले-पहल सच्चाई में दिलचस्पी नहीं दिखायी, मगर बाद में उसका नज़रिया बदल गया?

12 आपके इलाके में भी लोग शायद साक्षियों के बारे में ऐसा ही नज़रिया रखते हों। और शायद इसलिए, क्योंकि आपने भी अपने इलाके में अच्छी गवाही दी है। घर-घर के प्रचार काम में आपने “व्यक्‍तिगत तौर पर” कई स्त्री-पुरुषों और जवानों से बातचीत की होगी। कुछ लोगों के पास तो आप “एक-से-ज़्यादा बार” गए होंगे, लेकिन उन्होंने सुनने से इनकार कर दिया होगा। दूसरों के साथ शायद आपकी चंद मिनटों के लिए बातचीत हुई हो और आपने उन्हें बाइबल की कोई आयत पढ़कर सुनायी हो या उसे समझाया हो। कुछ और लोगों को शायद आपने बहुत अच्छी गवाही दी हो और उन्होंने सुसमाचार कबूल किया हो। जब हम ‘खुशखबरी की अच्छी गवाही देते हैं,’ तो हमें किसी भी तरह के लोग मिल सकते हैं। आप ऐसे कई लोगों को जानते होंगे, जिन्हें “एक-से-ज़्यादा बार” सुसमाचार सुनाया गया हो, मगर उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी। लेकिन आगे चलकर उनका नज़रिया बदल गया। शायद उनकी या उनके किसी अज़ीज की ज़िंदगी में कुछ ऐसा हुआ, जिससे वे सच्चाई को कबूल करने के लिए तैयार हो गए। और अब वे हमारे भाई या बहन बन गए हैं। इसलिए अगर प्रचार के इलाके में ज़्यादातर लोग आपकी बात नहीं सुनते, तो हिम्मत मत हारिए। हम यह उम्मीद नहीं करते कि सभी लोग सच्चाई कबूल करेंगे। लेकिन परमेश्‍वर हमसे चाहता है कि हम पूरी लगन से और जोश के साथ सबको अच्छी तरह गवाही देते रहें।

क्या पता, हमारी मेहनत कहाँ रंग लाए?

13. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि कुछ मामलों में गवाही देने की हमारी मेहनत रंग ला रही है और हम बेखबर हैं?

13 पौलुस ने जो सेवा की उसका असर सिर्फ उन्हीं लोगों पर नहीं पड़ा, जिन्हें उसने सीध-सीधे गवाही दी थी, बल्कि दूसरों पर भी पड़ा। यही बात हमारे मामले में भी सच है। हमारी यही कोशिश रहती है कि हम नियमित तौर पर घर-घर के प्रचार में हिस्सा लें और ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को गवाही दें। हम पड़ोसियों, साथ काम करनेवालों या पढ़नेवालों और रिश्‍तेदारों को सुसमाचार सुनाते हैं। क्या हमेशा हमें पता होता है कि हमारी मेहनत किस तरह रंग ला रही है? कुछ मामलों में तो तुरंत अच्छे नतीजे दिखने लगते हैं। लेकिन कुछ मामलों में, शायद लंबे अरसे बाद किसी के दिल में सच्चाई का अंकुर फूट निकले। अगर ऐसा न भी हो, तो यह हो सकता है कि एक व्यक्‍ति हमारे संदेश, हमारे विश्‍वासों और हमारे अच्छे आचरण का ज़िक्र दूसरों से करे। जी हाँ, हो सकता है कि ऐसे लोग अनजाने में ही सच्चाई के बीज को अच्छी मिट्टी तक पहुँचाने का काम कर दें।

14, 15. एक भाई के गवाही देने का क्या नतीजा निकला?

14 इसकी एक मिसाल लीजिए। रायन और उसकी पत्नी मैंडी, अमरीका के फ्लोरिडा राज्य में रहते हैं। रायन ने अपने साथ काम करनेवाले एक आदमी को गवाही दी। वह हिंदू था और उसे रायन का पहनावा और बातचीत करने का ढंग बड़ा अच्छा लगता था। रायन ने उससे पुनरुत्थान और मरे हुए की हालत के बारे में बातचीत की थी। जनवरी की एक शाम को उस आदमी ने अपनी पत्नी, जोडी से पूछा, क्या तुमने कभी यहोवा के साक्षियों के बारे में सुना है। जोडी कैथोलिक थी और उसने कहा कि वह सिर्फ इतना जानती है कि साक्षी “घर-घर प्रचार” करते हैं। इसके बाद, जोडी ने इंटरनेट पर जाकर “यहोवा के साक्षी” टाइप किया और इससे वह उनके वेब साइट www.watchtower.org पर पहुँची। कई महीनों तक उसने साइट पर बाइबल और कुछ दूसरे साहित्य पढ़े, जो उसे दिलचस्प लगे।

15 कुछ समय बाद जोडी की मुलाकात मैंडी से हुई। वे दोनों ही नर्स थीं। जोडी ने मैंडी से कई सवाल पूछे, जिनका उसने खुशी-खुशी जवाब दिया। इसके बाद जैसा कि जोडी कहती है, उनमें “आदम से लेकर हरमिगोदन तक” की लंबी बातचीत हुई। जॉडी ने बाइबल अध्ययन कबूल किया और जल्द ही राज्य घर भी जाने लगी। अक्टूबर में जोडी बपतिस्मा-रहित प्रचारक बनी और फरवरी में उसने बपतिस्मा ले लिया। वह लिखती है: “सच्चाई जानने के बाद से मेरी ज़िंदगी खुशियों से भर गयी है और मैं बहुत संतुष्ट महसूस करती हूँ।”

16. फ्लोरिडा में रहनेवाले एक भाई के अनुभव से हम अच्छी तरह गवाही देने के बारे में क्या सीख सकते हैं?

16 रायन ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि अपने साथ काम करनेवाले को गवाही देने से कोई और व्यक्‍ति सच्चाई सीखेगा। बेशक, इस वाकये में तो रायन को यह पता लग पाया कि ‘अच्छी तरह गवाही देने’ की उसकी मेहनत कैसे रंग लायी। तो जब आप घर-घर जाकर, नौकरी की जगह पर, स्कूल में या किसी और मौके पर गवाही देते हैं, तो हो सकता है कि आपकी मेहनत की वजह से किसी तीसरे को सच्चाई मिल जाए और आपको इसकी खबर ही न हो। पौलुस को यह नहीं मालूम था कि ‘एशिया’ में गवाही देने में उसने जो मेहनत की, वह किस तरह रंग लायी। उसी तरह आपको भी शायद इस बात का अंदाज़ा न हो कि आपकी गवाही के क्या अच्छे नतीजे निकल रहे हैं। (प्रेरितों 23:11; 28:23 पढ़िए।) तो यह कितना ज़रूरी है कि आप अच्छी तरह गवाही देते रहें!

17. सन्‌ 2009 में आपने क्या करने की ठानी है?

17 आइए हम यह ठान लें कि सन्‌ 2009 के दौरान घर-घर प्रचार करने और दूसरे तरीकों से गवाही देने में हम पूरा-पूरा हिस्सा लेंगे। अगर हम ऐसा करें, तो हम भी पौलुस की तरह यह कह पाएँगे: ‘मैं अपनी जान को ज़रा भी कीमती नहीं समझता कि इसकी परवाह करूँ, बस इतना चाहता हूँ कि मैं किसी तरह अपनी दौड़ पूरी कर सकूँ और अपनी सेवा पूरी कर सकूँ। यही सेवा जो मुझे प्रभु यीशु से मिली थी कि परमेश्‍वर की महा-कृपा के बारे में खुशखबरी की अच्छी गवाही दूँ।’

आप क्या जवाब देंगे?

• पहली सदी में प्रेरित पतरस, पौलुस और दूसरों ने किस तरह अच्छी गवाही दी?

• ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि गवाही देने की हमारी मेहनत रंग ला रही है और हम बेखबर हैं?

• सन्‌ 2009 का सालाना वचन क्या है और आपको क्यों लगता है कि यह एकदम सही है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 19 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

सन्‌ 2009 का सालाना वचन होगा: ‘खुशखबरी की अच्छी गवाही दो।’—प्रेरि. 20:24, NW.

[पेज 17 पर तसवीर]

घर-घर प्रचार करने के पौलुस के रिवाज़ से इफिसुस के प्राचीन अच्छी तरह वाकिफ थे

[पेज 18 पर तसवीर]

क्या आप जानते हैं, अच्छी तरह गवाही देने की आपकी मेहनत कहाँ रंग लाएगी?