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खराई बनाए रखना क्यों ज़रूरी है?

खराई बनाए रखना क्यों ज़रूरी है?

खराई बनाए रखना क्यों ज़रूरी है?

‘यहोवा मेरी खराई के अनुसार मेरा न्याय चुका दे।’—भज. 7:8.

1, 2. ऐसे कुछ हालात क्या हैं, जिनमें एक मसीही को अपनी खराई बनाए रखने की जद्दोजेहद करनी पड़ती है?

 ज़रा कल्पना कीजिए: एक लड़के के स्कूल के कुछ साथी उसकी खिल्ली उड़ा रहे हैं। वे उसे गाली-गलौज और हाथा-पाई करने के लिए भड़का रहे हैं। ऐसे में क्या वह अपना आपा खो देगा या फिर खुद पर काबू रखकर वहाँ से चला जाएगा? एक पति घर में अकेला है और इंटरनेट पर कुछ खोजबीन कर रहा है। तभी अचानक स्क्रीन पर एक अश्‍लील वेब साइट का विज्ञापन आता है। क्या उसका दिल ललचेगा और वह उस साइट पर चला जाएगा या उसे बंद कर देगा? एक बहन, कुछ बहनों से बात कर रही है। बातचीत करते-करते, दूसरी बहनें कलीसिया की एक बहन की बुराई करने लगती हैं। क्या यह बहन भी उनके साथ मिलकर बुराई करने लग जाएगी या फिर वह बातचीत का रुख मोड़ने की कोशिश करेगी?

2 ये सभी हालात एक-दूसरे से अलग हैं, मगर इनमें एक समानता है। इनमें तीनों मसीहियों को खराई बनाए रखने की जद्दोजेहद करनी पड़ रही है। जब आप ज़िंदगी में अपनी समस्याओं, ज़रूरतों या लक्ष्यों को लेकर कोई फैसला करते हैं, तब क्या आप यह सोचते हैं कि उन फैसलों का आपकी खराई पर क्या असर होगा? रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लोग अपने रंग-रूप, अपनी सेहत, रोज़ी-रोटी, दोस्तों के साथ अपने रिश्‍ते या फिर रोमांस के बारे में काफी सोचते हैं। हम भी इन बातों को शायद बहुत तवज्जह दें। लेकिन जब यहोवा हमारे दिलों को जाँचता है, तब उसे खासकर किस बात में दिलचस्पी होती है? (भज. 139:23, 24) हमारी खराई में।

3. यहोवा ने हमें कौन-सा खास मौका दिया है? और हम इस लेख में किस बात पर चर्चा करेंगे?

3 यहोवा “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान” का दाता है और उसने हम सभी को तरह-तरह के वरदान दिए हैं। (याकू. 1:17) हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि उसने हमें बढ़िया शरीर, दिमाग, अच्छी सेहत, काबिलीयतें और ऐसे ही दूसरे तोहफे दिए हैं। (1 कुरि. 4:7) लेकिन इनके बदले में, यहोवा हमसे ज़बरदस्ती खराई की माँग नहीं करता। वह हमें मौका देता है कि हम अपनी मरज़ी से उसे खराई दिखाएँ। (व्यव. 30:19) तो आइए जाँचे कि खराई असल में क्या है। और खराई दिखाने की तीन अहम वजह कौन-सी हैं।

खराई क्या है?

4. (क) खराई का मतलब क्या है? (ख) यहोवा ने बलिदानों के सिलसिले में जो कानून दिया था, उससे हम क्या सीखते हैं?

4 कई लोग यह ठीक-ठीक नहीं जानते कि खराई क्या होती है। कुछ लोगों को लगता है कि खराई का मतलब ईमानदारी है। माना कि खराई रखने में ईमानदारी का गुण शामिल है, मगर यह सिर्फ खराई का एक पहलू है। बाइबल के मुताबिक खराई का मतलब है, परमेश्‍वर के सही-गलत के स्तरों पर पूरी तरह चलना। इब्रानी भाषा में “खराई” के लिए कई शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। इनका मूल अर्थ है, दुरुस्त, पूरा या जिसमें कोई खोट न हो। इनमें से एक इब्रानी शब्द, यहोवा को चढ़ाए जानेवाले बलिदानों के सिलसिले में भी इस्तेमाल किया गया है। यहोवा सिर्फ उन्हीं जानवरों को बलिदान के रूप में कबूल करता था, जो दुरुस्त होते थे या जिसमें कोई दोष नहीं होता था। (लैव्यव्यवस्था 22:19, 20 पढ़िए।) यहोवा ने उन लोगों की कड़ी निंदा की, जो जानबूझकर अंधे, लंगड़े या बीमार जानवरों की बलि चढ़ाते थे।—मला. 1:6-8.

5, 6. (क) कौन-सी मिसालें दिखाती हैं कि हम अकसर उन चीज़ों की कदर करते हैं जो पूरी होती हैं? (ख) असिद्ध इंसानों के मामले में, क्या खराई का मलतब सिद्धता है? समझाइए।

5 इंसान भी अकसर ऐसी चीज़ें चुनता और पसंद करता है, जिनमें कोई खोट या दोष नहीं होता। एक ऐसे इंसान की मिसाल लीजिए जो किताबों का शौकीन है। उसे एक ऐसी किताब मिलती है, जिसकी उसे बरसों से तलाश थी। लेकिन जब वह देखता है कि उसके कुछ पन्‍ने गायब हैं, तो वह मायूस होकर उसे वापस रख देता है। एक और उदाहरण लीजिए। एक महिला समुंदर के किनारे चलते-चलते बीच-बीच में रुकती है और तरह-तरह की सीपियों को निहारते हुए उन्हें बटोर रही है। आपको क्या लगता है, वह कौन-सी सीपियाँ रखेगी? वही जो टूटी-फूटी ना हों यानी बिलकुल साबूत हों। ठीक इसी तरह परमेश्‍वर भी ऐसे इंसानों की खोज में रहता है, जिनमें कोई खोट न हो या जो संर्पूण हो।—2 इति. 16:9, NHT.

6 तो क्या खराई दिखाने का यह मतलब है कि एक इंसान सिद्ध हो? पाप और असिद्धता की वजह से हममें खामियाँ आ गयी हैं। इसलिए हम शायद अपने आपको उस अधूरी किताब या टूटी हुई सीपी की तरह समझें। क्या आप भी कभी-कभी अपने बारे में ऐसा महूसस करते हैं? अगर हाँ, तो आप इस बात का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा यह उम्मीद नहीं करता कि हम सिद्ध हों। * (भज. 103:14; याकू. 3:2) जी हाँ, परमेश्‍वर कभी हमसे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता। लेकिन वह हमसे खराई बनाए रखने की उम्मीद ज़रूर करता है। तो फिर खराई और सिद्धता में क्या फर्क है? एक मिसाल पर गौर कीजिए: एक जवान लड़का एक लड़की से शादी करनेवाला है और वह उसे बेहद चाहता है। मगर उसका यह उम्मीद करना नासमझी होगी कि वह लड़की एकदम सिद्ध हो, यानी कोई गलती न करे। लेकिन हाँ, उसका यह उम्मीद करना सही होगा कि वह लड़की उसे दिलो-जान से प्यार करे, यानी सिर्फ उसी से मुहब्बत करे। उसी तरह, यहोवा परमेश्‍वर भी ‘एकनिष्ठ भक्‍ति की माँग करनेवाला ईश्‍वर’ है। (निर्ग. 20:5, NW) वह हमसे सिद्धता की उम्मीद नहीं करता, मगर हाँ वह यह ज़रूर चाहता है कि हम पूरे दिल से उसे प्यार करें और सिर्फ उसी की उपासना करें।

7, 8. (क) खराई के मामले में यीशु ने कौन-सी मिसाल रखी? (ख) बाइबल के मुताबिक, खराई दिखाने में क्या शामिल है?

7 यहोवा को पूरे दिल से प्यार करने की बात से शायद हमें यीशु का वह जवाब याद आए, जो उसने एक शास्त्री को दिया था। शास्त्री ने उससे पूछा कि सबसे बड़ी आज्ञा कौन-सी है। (मरकुस 12:28-30 पढ़िए।) यीशु ने उसे जो जवाब दिया, उसके मुताबिक यीशु ने जीकर भी दिखाया। उसने यहोवा से पूरे मन, प्राण, बुद्धि और शक्‍ति से प्यार करने की सबसे बेहतरीन मिसाल कायम की। उसने दिखाया कि खराई, बातों से नहीं बल्कि नेक इरादे से किए गए भले कामों से ज़ाहिर होती है। अगर हम खराई बनाए रखना चाहते हैं, तो हमें यीशु के नक्शेकदम पर चलने की ज़रूरत है।—1 पत. 2:21.

8 तो बाइबल के मुताबिक खराई दिखाने का निचोड़ यह है: पूरे दिल से सिर्फ यहोवा परमेश्‍वर की भक्‍ति करना और उसी की मरज़ी और मकसद को पूरा करना। खराई बनाए रखने के लिए हमें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सबसे बढ़कर यहोवा को खुश करने की कोशिश करनी चाहिए। हमें उन्हीं बातों को अपनी ज़िंदगी में अहमियत देनी चाहिए, जिन्हें परमेश्‍वर अहमियत देता है। खराई दिखाना क्यों इतना ज़रूरी है? आइए इसकी तीन वजहों पर गौर करें।

1. हमारी खराई और परमेश्‍वर की हुकूमत का मसला

9. खराई बनाए रखने का हुकूमत के मसले से क्या ताल्लुक है?

9 हम चाहे खरे रहें या ना रहें, इस सच्चाई को कोई बदल नहीं सकता कि यहोवा ही सारे जहाँ का मालिक है। सिर्फ उसी को पूरे विश्‍व पर हुकूमत करने का अधिकार है, उसी की हुकूमत हमेशा रहेगी और उसी की हुकूमत में सच्चा इंसाफ मिल सकता है। और यही हकीकत है, फिर चाहे कोई इसे कबूल करे या न करे। मगर स्वर्ग में और पृथ्वी पर परमेश्‍वर की हुकूमत पर तोहमत लगायी गयी है। इसलिए ज़रूरी है कि उसकी हुकूमत सभी बुद्धिमान प्राणियों के सामने बुलंद की जाए। यानी यह साबित किया जाए कि परमेश्‍वर को ही हुकूमत करने का हक है, वही सच्चा इंसाफ कर सकता है और वही प्रेम से हुकूमत करता है। इसलिए यहोवा के साक्षी होने के नाते हमें नेकदिल लोगों के साथ परमेश्‍वर की हुकूमत पर चर्चा करना बहुत अच्छा लगता है। हम कैसे दिखा सकते हैं कि हुकूमत के मसले में हम यहोवा की तरफ हैं और हमने उसी को अपना शासक चुना है? अपनी खराई बनाए रखने के ज़रिए।

10. शैतान ने इंसान की खराई के बारे में कौन-सा दावा किया है? और आप किस तरह इसका जवाब देना चाहेंगे?

10 अब गौर कीजिए कि हुकूमत के मसले में आपकी खराई कैसे शामिल है। शैतान ने एक तरह से यह दावा किया है कि कोई भी इंसान परमेश्‍वर की हुकूमत का साथ नहीं देगा। दूसरे शब्दों में कहें तो इंसान सिर्फ अपने स्वार्थ की वजह से परमेश्‍वर की सेवा करेगा, न कि प्यार की वजह से। जब परमेश्‍वर के सारे स्वर्गदूत उसके सामने हाज़िर थे, तब शैतान ने यहोवा से कहा: “खाल के बदले खाल, परन्तु प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है।” (अय्यू. 2:4) ऐसा कहकर शैतान ने न सिर्फ धर्मी अय्यूब पर, बल्कि सारी मानवजाति पर यह इलज़ाम लगाया। इसीलिए बाइबल शैतान को “हमारे भाइयों पर दोष लगानेवाला” कहती है। (प्रका. 12:10) शैतान ने दावा किया है कि कोई भी मसीही यहोवा का वफादार नहीं रहेगा, आप भी नहीं। अगर आपकी जान पर बन आए, तो आप परमेश्‍वर की सेवा करना छोड़ देंगे। आप पर लगाए गए इस इलज़ाम के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं? अगर आपको मौका मिले, तो क्या आप शैतान को झूठा साबित नहीं करना चाहेंगे? अपनी खराई बनाए रखकर आप ऐसा कर सकते हैं।

11, 12. (क) कौन-से उदाहरण दिखाते हैं कि हमारे फैसलों का सीधा ताल्लुक हमारी खराई पर उठाए गए सवाल से है? (ख) खराई बनाए रखना फख्र की बात क्यों है?

11 आपकी खराई पर उठे सवाल की वजह से यह निहायत ज़रूरी हो जाता है कि आप अपने चालचलन पर ध्यान दें और सोच-समझकर फैसले करें। आइए लेख की शुरूआत में बताए उन तीनों मसीहियों के हालात पर एक बार फिर गौर करें और देखें कि वे कैसे अपनी खराई बनाए रखते हैं? जिस लड़के की खिल्ली उड़ायी जा रही थी, उसका जी तो चाहा कि वह अपने साथियों पर बरस पड़े। मगर तभी वह इस सलाह को याद करता है: “हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु क्रोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूंगा।” (रोमि. 12:19) इसलिए वह चुपचाप वहाँ से चला जाता है। जो पति घर पर अकेले इंटरनेट पर खोजबीन कर रहा था, वह बड़ी आसानी से अश्‍लील वेब साइट पर जा सकता था, मगर वह अय्यूब की इस बात को याद करता है: “मैं ने अपनी आंखों के विषय वाचा बान्धी है, फिर मैं किसी कुंवारी पर क्योंकर आंखें लगाऊं?” (अय्यू. 31:1) इसलिए वह उन गंदी तसवीरों पर अपनी आँखें नहीं लगाता, क्योंकि वह जानता है कि ये तसवीरें उसके दिमाग में ज़हर घोल सकती हैं। वह बहन जो कुछ बहनों के साथ बातचीत कर रही थी, दूसरे की बुराई करने में उनका साथ नहीं देती, क्योंकि वह इस सिद्धांत को याद करती है: “हम में से प्रत्येक अपने पड़ोसी को प्रसन्‍न करे कि उसकी भलाई और उन्‍नति हो।” (रोमि. 15:2, NHT) वह सोचती है कि अगर वह बुराई करने में शामिल हो जाएगी, तो इससे किसी की उन्‍नति कैसे हो सकती है? जिस बहन की बुराई की जा रही है, उसका नाम बदनाम होगा, साथ ही परमेश्‍वर भी नाखुश होगा। इसलिए वह अपनी ज़बान पर काबू रखती है और बातचीत का रुख मोड़ देती है।

12 इस लड़के, पति और बहन ने जो फैसले किए, उससे मानो वे यह कह रहे थे, ‘मैं यहोवा को अपना शासक मानता हूँ। और इस मामले में, मैं वही करूँगा जो उसे भाता है।’ जब आपको कोई फैसला या चुनाव करना होता है, तो क्या आप भी वही करते हैं जो परमेश्‍वर को भाता है? अगर आप ऐसा करते हैं, तो आप नीतिवचन 27:11 में दी बात पर चल रहे होते हैं: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा।” परमेश्‍वर का दिल खुश करना हमारे लिए कितने फख्र की बात है! तो इससे साफ है कि खराई बनाए रखने की हमारी कोई भी कोशिश बेकार नहीं।

2. हमारे न्याय का आधार

13. अय्यूब और दाऊद के शब्दों से कैसे पता चलता है कि यहोवा हमारी खराई की बिनाह पर हमारा न्याय करता है?

13 हमने सीखा कि खराई बनाए रखने के ज़रिए हम हुकूमत के मसले में यहोवा का पक्ष ले सकते हैं। हमारी खराई की बिनाह पर ही यहोवा हमारा न्याय करता है। अय्यूब ने इस सच्चाई को बखूबी समझा था। (अय्यूब 31:6 पढ़िए।) अय्यूब जानता था कि परमेश्‍वर सभी इंसानों को “धर्म के तराज़ू” पर तौलता है। वह हमारी खराई को अपने न्याय के सिद्ध स्तरों के आधार पर मापता है। इस बारे में दाऊद ने भी कहा: “यहोवा समाज समाज का न्याय करता है; यहोवा मेरे धर्म और खराई के अनुसार मेरा न्याय चुका दे। . . . क्योंकि धर्मी परमेश्‍वर मन और मर्म का ज्ञाता है।” (भज. 7:8, 9) हम जानते हैं कि परमेश्‍वर “मन और मर्म” यानी इंसान के विचारों और इरादों को परखता है। लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि वह हममें क्या ढूँढ़ता है। वह हमारे अंदर खराई ढूँढ़ता है। जैसा कि दाऊद ने कहा, यहोवा हमारी खराई के अनुसार हमारा न्याय करता है।

14. हमें यह क्यों नहीं सोचना चाहिए कि हमारी गलतियों की वजह से हमारे लिए खराई बनाए रखना नामुमकिन है?

14 ज़रा सोचिए, आज यहोवा परमेश्‍वर लाखों लोगों के दिलों को जाँच रहा है। (1 इति. 28:9) वह कितने लोगों को खरा पाता होगा? बहुत कम! लेकिन हम शायद यह सोचें कि हम तो बार-बार गलतियाँ करते हैं, इसलिए हमारे लिए खराई बनाए रखना नामुमकिन है। दाऊद और अय्यूब की तरह, हम भी इस बात का भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा, हमारी असिद्धता के बावजूद हममें खराई पा सकता है। यह ज़रूरी नहीं कि अगर एक इंसान सिद्ध हो तो वह खरा भी रहेगा। इस धरती पर सिर्फ तीन सिद्ध इंसान हुए हैं। उनमें से दो, आदम और हव्वा अपनी खराई बरकरार नहीं रख पाए। मगर दूसरी तरफ लाखों असिद्ध इंसान अपनी खराई बनाए रखने में कामयाब हुए हैं और आप भी हो सकते हैं।

3. हमारी आशा के लिए ज़रूरी

15. दाऊद ने यह कैसे दिखाया कि भविष्य की आशा के लिए खराई बनाए रखना ज़रूरी है?

15 जैसा कि हमने सीखा, यहोवा खराई के आधार पर ही हमारा न्याय करेगा। इसलिए खराई हमारे भविष्य की आशा के लिए बहुत ज़रूरी है। दाऊद इस बात को अच्छी तरह जानता था। (भजन 41:12 पढ़िए।) दाऊद को आशा थी कि परमेश्‍वर का अनुग्रह उस पर सदा बना रहेगा। आज के मसीहियों की तरह वह भी हमेशा तक जीने की आस लगाए था। दाऊद चाहता था कि वह यहोवा परमेश्‍वर की सेवा करते हुए उसके साथ एक करीबी रिश्‍ता बरकरार रखे। वह इस बात को अच्छी तरह समझता था कि अगर वह अपनी इस आशा को पूरा होते देखना चाहता है, तो उसके लिए खरे बने रहना बहुत ज़रूरी है। अगर हम भी खराई बनाए रखें, तो यहोवा हमें सँभालेगा, सिखाएगा, हमारा मार्गदर्शन करेगा और हमें आशीष देगा।

16, 17. (क) आपने खराई बनाए रखने का फैसला क्यों किया है? (ख) अगले लेख में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी?

16 ज़िंदगी में खुश रहने के लिए आशा ज़रूरी है। इसी की बदौलत हम खुशी-खुशी मुश्‍किलों का सामना कर पाते हैं। यह हमारे विचारों को भी सुरक्षित रखती है। याद कीजिए, बाइबल आशा की तुलना टोप से करती है। (1 थिस्स. 5:8) शैतान की यह दुनिया हमारे अंदर निराशा की भावना पैदा करना चाहती है। लेकिन जिस तरह मैदाने-जंग में टोप एक सैनिक के सिर की रक्षा करता है, उसी तरह आशा हमारे मन में उठनेवाली निराशा की भावना से हमारी रक्षा करती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि आशा के बगैर ज़िंदगी बेमतलब हो जाती है। इसलिए हमें खुद की ईमानदारी से जाँच करनी चाहिए कि हमारी खराई किस हाल में है और याद रखना चाहिए कि हमारी खराई, हमारी आशा से जुड़ी हुई है। यह मत भूलिए कि खराई बनाए रखकर आप यहोवा की हुकूमत का पक्ष ले रहे होते हैं, साथ ही भविष्य की अपनी अनमोल आशा को सुरक्षित रख रहे होते हैं। हमारी यही प्रार्थना है कि आप अपनी खराई को कसकर थामे रहें।

17 वाकई खराई बनाए रखना बहुत ज़रूरी है, इसलिए हमें इससे जुड़े कुछ और सवालों पर गौर करने की ज़रूरत है। हम खरे इंसान कैसे बन सकते हैं? और अपनी खराई कैसे बनाए रख सकते हैं? अगर एक व्यक्‍ति कुछ समय के लिए खराई नहीं बनाए रखता, तब क्या किया जा सकता है? अगले लेख में हम इन्हीं सवालों पर चर्चा करेंगे।

[फुटनोट]

^ यीशु ने कहा: “इसलिये चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।” (मत्ती 5:48) यीशु जानता था कि इंसान असिद्ध होने के बावजूद कुछ मायनों में सिद्ध हो सकता है। मसलन प्यार दिखाने में। अपने दुश्‍मनों से प्यार करने के ज़रिए हम परमेश्‍वर को पूरी तरह खुश कर सकते हैं। लेकिन जहाँ तक यहोवा की बात है, वह हर तरह से सिद्ध है। जब परमेश्‍वर के बारे में कहा जाता है कि वह खरा है, तो इसका मतलब होता है कि वह “सिद्ध” है।—भज. 18:30, NHT.

आप क्या जवाब देंगे?

• खराई क्या है?

• खराई का हुकूमत के मसले से क्या ताल्लुक है?

• खराई का हमारे भविष्य की आशा से क्या नाता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 5 पर तसवीरें]

हमें हर रोज़ खराई बनाए रखने की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है