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परमेश्‍वर के मकसद में यीशु की अनोखी भूमिका को समझिए और उसकी कदर कीजिए

परमेश्‍वर के मकसद में यीशु की अनोखी भूमिका को समझिए और उसकी कदर कीजिए

परमेश्‍वर के मकसद में यीशु की अनोखी भूमिका को समझिए और उसकी कदर कीजिए

“मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।”—यूह. 14:6.

1, 2. यीशु मसीह की अनोखी भूमिका में हमें क्यों दिलचस्पी होनी चाहिए?

 दुनिया में ऐसे कई लोग रहे हैं, जिन्होंने कुछ ऐसा कर दिखाने की कोशिश की है, जिससे वे दूसरों से एकदम अलग नज़र आएँ। लेकिन इनमें से बहुत कम ही कामयाब हो पाए हैं। और देखा जाए तो गिने-चुने लोग ही यह दावा कर सकते हैं कि वे किसी खास मायने में दूसरों से अलग हैं। लेकिन जहाँ तक परमेश्‍वर के बेटे यीशु मसीह की बात है, वह तो कई मायनों में अनोखा है।

2 हमें यीशु की अनोखी भूमिका में क्यों दिलचस्पी होनी चाहिए? क्योंकि इसका ताल्लुक हमारे पिता यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते से है। यीशु ने कहा: “मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।” (यूह. 14:6; 17:3) आइए अब यह जाँचें कि यीशु किन मायनों में अनोखा है। ऐसा करने से हम परमेश्‍वर के मकसद में उसकी भूमिका को और अच्छी तरह समझ पाएँगे और उसके लिए गहरा आदर दिखा पाएँगे।

“एकलौता पुत्र”

3, 4. (क) हम क्यों कह सकते हैं कि एकलौते पुत्र के तौर पर यीशु अनोखा है? (ख) सृष्टि रचने में यीशु ने क्या अनोखी भूमिका निभायी?

3 यीशु सिर्फ परमेश्‍वर का एक पुत्र ही नहीं, बल्कि वह “परमेश्‍वर [का] एकलौता पुत्र” है। (यूह. 3:16, 18) जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “एकलौता” किया गया है, उसका मतलब है, “अपने किस्म का एकमात्र,” “बेजोड़” या फिर “अनोखा।” यीशु के अलावा, यहोवा के सैकड़ों-हज़ारों आत्मिक बेटे हैं। तो फिर यीशु किस मायने में “अपने किस्म का एकमात्र” या अनोखा है?

4 यीशु ही अकेला ऐसा है, जिसे खुद यहोवा ने बनाया था। वह अपने पिता का पहिलौठा पुत्र है, इतना ही नहीं वह “सारी सृष्टि में पहिलौठा है।” (कुलु. 1:15) वह “परमेश्‍वर की सृष्टि की शुरूआत है।” (प्रका. 3:14, NW) सृष्टि रचने में भी इस एकलौते पुत्र की अनोखी भूमिका थी। वह खुद सृष्टिकर्ता नहीं था, लेकिन यहोवा ने उसके ज़रिए ही सब चीज़ें बनायी। (यूहन्‍ना 1:3 पढ़िए।) प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हमारे निकट तो एक ही परमेश्‍वर है: अर्थात्‌ पिता जिस की ओर से सब वस्तुएं हैं, और हम उसी के लिये हैं, और एक ही प्रभु है, अर्थात्‌ यीशु मसीह जिस के द्वारा सब वस्तुएं हुई, और हम भी उसी के द्वारा हैं।”—1 कुरि. 8:6.

5. बाइबल कैसे ज़ाहिर करती है कि यीशु और भी कई मायनों में अनोखा है?

5 यीशु और भी कई मायनों में अनोखा है। बाइबल में उसे ऐसे कई खिताब और उपाधियाँ दी गयी हैं, जिनसे परमेश्‍वर के मकसद में उसकी अनोखी भूमिका ज़ाहिर होती है। आइए अब ऐसी पाँच उपाधियों पर गौर करें, जो यूनानी शास्त्र में यीशु के लिए इस्तेमाल की गयी हैं।

“वचन”

6. यीशु को “वचन” क्यों कहा जा सकता है?

6 यूहन्‍ना 1:14 पढ़िए। यीशु को क्यों “वचन” या लोगोस कहा गया है? यह उपाधि ज़ाहिर करती है कि दूसरे बुद्धिमान प्राणियों के बनाए जाने के बाद यीशु ने क्या खास काम किया। यहोवा ने अपने दूसरे आत्मिक बेटों को जानकारी और हिदायतें देने के लिए यीशु को अपने प्रवक्‍ता के तौर पर इस्तेमाल किया। इसके अलावा, उसने धरती पर इंसानों को संदेश देने के लिए भी यीशु को वचन के तौर पर इस्तेमाल किया। यीशु वचन या परमेश्‍वर का प्रवक्‍ता है, यह खुद उसकी कही एक बात से भी ज़ाहिर होता है। उसने यहूदियों से कहा: “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है। यदि कोई उस की इच्छा पर चलना चाहे, तो वह इस उपदेश के विषय में जान जाएगा कि वह परमेश्‍वर की ओर से है, या मैं अपनी ओर से कहता हूं।” (यूह. 7:16, 17) स्वर्ग में महिमा पाने के बाद, यीशु को आज भी “परमेश्‍वर का वचन” कहा जाता है।—प्रका. 19:11, 13, 16.

7. “वचन” होने के नाते यीशु ने जो नम्रता की मिसाल रखी है, हम उस पर कैसे चल सकते हैं?

7 ज़रा सोचिए कि इस उपाधि का मतलब क्या है। हालाँकि यीशु, यहोवा के सिरजे गए प्राणियों में सबसे बुद्धिमान है, लेकिन वह अपनी बुद्धि का सहारा नहीं लेता। वह अपने पिता के बताए अनुसार ही बोलता है। वह हमेशा लोगों का ध्यान यहोवा की तरफ दिलाता है। (यूह. 12:50) सच, यीशु हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल है! हमें भी “अच्छी बातों का सुसमाचार” सुनाने का खास सम्मान दिया गया है। (रोमि. 10:15) यीशु ने कभी अपनी मरज़ी से कुछ नहीं कहा और इस तरह उसने नम्रता की अच्छी मिसाल रखी। इससे हमें बढ़ावा मिलता है कि हम भी खुद की मरज़ी से कुछ न बोलें। जब हम बाइबल से खुशखबरी सुनाते हैं, तो हम इस बात का ध्यान रखें कि हम ‘उन बातों से जो लिखी गई हैं आगे न बढ़ें।’—1 कुरि. 4:6, NHT.

“आमीन”

8, 9. (क) “आमीन” का मतलब क्या है? और यीशु को “आमीन” क्यों कहा गया है? (ख) यीशु ने “आमीन” के तौर पर अपनी भूमिका कैसे निभायी?

8 प्रकाशितवाक्य 3:14 पढ़िए। यीशु को “आमीन” क्यों कहा गया है? “आमीन” एक इब्रानी शब्द है, जिसका मतलब है, “ऐसा ही हो” या “ज़रूर हो।” इब्रानी भाषा के जिस मूल शब्द से यह शब्द निकला है उसका अर्थ है, “विश्‍वासयोग्य” या “सच्चा।” यहोवा की वफादारी को समझाने के लिए भी इसी शब्द का इस्तेमाल किया गया है। (व्यव. 7:9; यशा. 49:7) तो “आमीन” के तौर पर यीशु किस मायने में अनोखा है? ध्यान दीजिए कि 2 कुरिन्थियों 1:19, 20 में क्या जवाब दिया गया है: “परमेश्‍वर का पुत्र यीशु मसीह जिस का . . . तुम्हारे बीच में प्रचार हुआ; उस में हां और नहीं दोनों न थीं; परन्तु, उस में हां ही हां हुई। क्योंकि परमेश्‍वर की जितनी प्रतिज्ञाएं हैं, वे सब उसी में हां [हुई] हैं: इसलिये उसके द्वारा आमीन भी हुई, कि हमारे द्वारा परमेश्‍वर की महिमा हो।”

9 यीशु, परमेश्‍वर के सभी वादों का “आमीन” है। उसने धरती पर एक निष्पाप ज़िंदगी जी और अपना जीवन एक बलिदान के तौर पर दे दिया। ऐसा करके उसने परमेश्‍वर के सभी वादे और भी पुख्ता किए और उनका पूरा होना मुमकिन किया। इसके अलावा, यीशु ने वफादार रहने के ज़रिए शैतान के उस दावे को झूठा ठहराया, जो अय्यूब की किताब में दर्ज़ है। शैतान ने दावा किया था कि अगर परमेश्‍वर के सेवकों को तंगहाली, दु:ख-तकलीफों और परीक्षाओं से गुज़रना पड़े, तो वे उससे मुँह फेर लेंगे। (अय्यू. 1:6-12; 2:2-7) परमेश्‍वर के बनाए हुए सभी प्राणियों में से, उसके पहिलौठे बेटे यीशु ने इस इलज़ाम का मुँहतोड़ जवाब दिया। इसके अलावा, उसने इस बात का भी ज़बरदस्त सबूत दिया कि इस विश्‍व पर हुकूमत करने का हक सिर्फ उसके पिता यहोवा को है।

10. “आमीन” के तौर पर यीशु ने जो मिसाल रखी, उस पर हम कैसे चल सकते हैं?

10 वाकई यीशु ने “आमीन” के तौर पर एक अनोखी भूमिका निभायी। मगर हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? यहोवा का वफादार रहकर और विश्‍व पर हुकूमत करने के उसके अधिकार का पक्ष लेकर। ऐसा करके हम नीतिवचन 27:11 में दी गयी गुज़ारिश को मान रहे होंगे: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा।”

“नई वाचा का मध्यस्थ”

11, 12. मध्यस्थ के तौर पर यीशु की भूमिका कैसे अनोखी थी?

11 पहला तीमुथियुस 2:5, 6 पढ़िए। यीशु ‘परमेश्‍वर और मनुष्यों के बीच में एक ही बिचवई है।’ वह “नई वाचा का मध्यस्थ है।” (इब्रा. 9:15; 12:24) मूसा को भी एक मध्यस्थ कहा गया है। वह व्यवस्था वाचा का मध्यस्थ था। (गल. 3:19) तो फिर मध्यस्थ के तौर पर यीशु की भूमिका अनोखी कैसे है?

12 मूल भाषा के जिस शब्द का अनुवाद “मध्यस्थ” किया गया है, वह कानूनी मामलों में इस्तेमाल होनेवाला शब्द है। यह दिखाता है कि यीशु नयी वाचा का कानूनी मध्यस्थ है (मानो एक वकील है)। इसी वाचा की बदौलत एक नयी जाति, “परमेश्‍वर के इस्राएल” का जन्म हो पाया। (गल. 6:16) यह जाति पवित्र शक्‍ति से अभिषिक्‍त मसीहियों से बनी है, जो “राजकीय याजकों का समाज” हैं। (1 पत. 2:9, NHT; निर्ग. 19:6) लेकिन मूसा व्यवस्था वाचा के मध्यस्थ के तौर पर ऐसी कोई जाति नहीं बना पाया था।

13. एक मध्यस्थ के तौर पर यीशु की क्या भूमिका है?

13 मध्यस्थ के तौर पर यीशु की क्या भूमिका है? यीशु मसीह के बहाए गए लहू के आधार पर यहोवा उन लोगों को कानूनी तौर पर धर्मी करार देता है, जो नयी वाचा का हिस्सा बनने के लिए चुने गए हैं। (रोमि. 3:24; इब्रा. 9:15) धर्मी ठहराए जाने के बाद, परमेश्‍वर उन लोगों को नयी वाचा का हिस्सा बनाता है, जिसके तहत वे आगे चलकर स्वर्ग में राजाओं और याजकों की हैसियत से सेवा करेंगे। यीशु उनका मध्यस्थ होने के नाते उन्हें परमेश्‍वर की नज़र में शुद्ध बने रहने में मदद देता है।—इब्रा. 2:16.

14. नयी वाचा के मध्यस्थ के तौर पर यीशु की भूमिका की सभी मसीहियों को क्यों कदर करनी चाहिए?

14 उन लोगों के बारे में क्या जो नयी वाचा का हिस्सा नहीं हैं, यानी जिन्हें धरती पर हमेशा जीने की आशा है? माना कि वे नयी वाचा के हिस्सेदार नहीं, मगर उन्हें नयी वाचा से फायदा ज़रूर होता है। उन्हें अपने पापों की माफी मिलती है। इस तरह वे धर्मी गिने जाते हैं और परमेश्‍वर के मित्र ठहरते हैं। (याकू. 2:23; 1 यूह. 2:1, 2) चाहे हमारी आशा धरती पर जीने की हो या स्वर्ग जाने की, हममें से हरेक को, नयी वाचा के मध्यस्थ के तौर पर यीशु की भूमिका की कदर करनी चाहिए।

“महायाजक”

15. महायाजक के तौर पर यीशु की भूमिका दूसरे महायाजकों से कैसे अलग है?

15 बीते ज़माने में बहुत-से इंसानों ने महायाजक के तौर पर काम किया है, लेकिन इस मामले में यीशु की भूमिका अनोखी रही है। वह कैसे? पौलुस समझाता है: “उन महायाजकों की नाईं उसे आवश्‍यक नहीं कि प्रति दिन पहिले अपने पापों और फिर लोगों के पापों के लिये बलिदान चढ़ाए; क्योंकि उस ने अपने आप को बलिदान चढ़ाकर उसे एक ही बार निपटा दिया। क्योंकि व्यवस्था तो निर्बल मनुष्यों को महायाजक नियुक्‍त करती है; परन्तु उस शपथ का वचन जो व्यवस्था के बाद खाई गई, उस पुत्र को नियुक्‍त करता है जो युगानुयुग के लिये सिद्ध किया गया है।”—इब्रा. 7:27, 28. *

16. यीशु का बलिदान अनोखा क्यों है?

16 यीशु एक सिद्ध इंसान था, ठीक जैसे आदम पाप करने से पहले था। (1 कुरि. 15:45) इसलिए सिर्फ यीशु ही एक सिद्ध बलिदान दे सकता था, ऐसा अनोखा बलिदान जिसके बाद किसी और बलिदान की ज़रूरत नहीं पड़ती। मूसा के ज़रिए दी गयी व्यवस्था के तहत याजक हर रोज़ बलिदान चढ़ाते थे। लेकिन ये सारे बलिदान और याजकों की सेवाएँ, उन कामों की सिर्फ एक छाया थीं, जो आगे चलकर यीशु महायाजक के नाते करता। (इब्रा. 8:5; 10:1) एक महायाजक के नाते यीशु की भूमिका इस मायने में बेजोड़ है कि बीते ज़माने के महायाजकों के मुकाबले उसकी सेवा से ज़्यादा फायदा पहुँचेगा और वह हमेशा-हमेशा के लिए इस पद पर सेवा करेगा।

17. (क) महायाजक के तौर यीशु की सेवा हमारे लिए ज़रूरी क्यों है? (ख) उसकी सेवा के लिए हम अपनी कदर कैसे दिखा सकते हैं?

17 महायाजक के तौर पर यीशु की सेवा हमारे लिए बहुत ज़रूरी है, क्योंकि इसी की बदौलत हम परमेश्‍वर की मंज़ूरी पा सकते हैं। यीशु के बारे में पौलुस ने लिखा: “हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमसे सहानुभूति न रख सके। वह तो सब बातों में हमारे ही समान परखा गया, फिर भी निष्पाप निकला।” (इब्रा. 4:15, NHT) यीशु वाकई एक लाजवाब महायाजक है! इससे हमें बढ़ावा मिलता है कि हम ‘आगे को अपने लिये न जीएं परन्तु उसके लिये जो हमारे लिये मरा।’—2 कुरि. 5:14, 15; लूका 9:23.

वादा किया गया “वंश”

18. (क) आदम के पाप करने के बाद कौन-सी भविष्यवाणी की गयी? (ख) इस भविष्यवाणी के बारे में बाद में कौन-सी जानकारी दी गयी?

18 आदम के पाप करने के बाद ऐसा लगा, मानो इंसान अपना सब कुछ गँवा बैठा! परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता, हमेशा की ज़िंदगी, अपनी खुशी और अपना खूबसूरत घर, फिरदौस। लेकिन तभी यहोवा ने एक छुड़ानेवाले के बारे में भविष्यवाणी की। और इस छुड़ानेवाले को “वंश” कहा गया। (उत्प. 3:15) इस वंश की साफ-साफ पहचान नहीं बतायी गयी थी, लेकिन सदियों के दौरान उसके बारे में बाइबल में बहुत-सी भविष्यवाणियाँ की गयीं। इस वंश को इब्राहीम, इसहाक, याकूब और आगे चलकर राजा दाऊद के खानदान से आना था।—उत्प. 21:12; 22:16-18; 28:14; 2 शमू. 7:12-16.

19, 20. (क) वादा किया गया वंश कौन है? (ख) यह क्यों कहा जा सकता है कि यीशु के अलावा दूसरे भी इस वंश का हिस्सा हैं?

19 यह वादा किया गया वंश कौन था? इसका जवाब गलतियों 3:16 में मिलता है। (पढ़िए।) लेकिन इसी अध्याय में आगे, प्रेरित पौलुस अभिषिक्‍त मसीहियों से कहता है: “यदि तुम मसीह के हो, तो इब्राहीम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो।” (गल. 3:29) वादा किया गया वंश तो मसीह है, तो फिर दूसरे कैसे उस वंश का हिस्सा हो सकते हैं?

20 लाखों लोग यह दावा करते हैं कि वे इब्राहीम के खानदान से हैं। इनमें से कुछ तो अपने आपको नबी मानते हैं। कई धर्म इस बात पर फख्र करते हैं कि उनके नबी इब्राहीम के खानदान से हैं। लेकिन क्या ये सभी वादा किया गया वंश हैं? बिलकुल नहीं। प्रेरित पौलुस ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से जो लिखा था, उससे हम समझ सकते हैं कि इब्राहीम के खानदान में पैदा होनेवाला हर कोई यह दावा नहीं कर सकता कि वह वादा किया गया वंश है। इसहाक के अलावा, इब्राहीम के जो दूसरे बेटे थे, उनके ज़रिए पूरी दुनिया को आशीष नहीं मिलनेवाली थी। इसके बजाय, यह बताया गया कि इसहाक के ज़रिए ही वादा किया गया वंश आएगा, जो इंसानों के लिए आशीष का कारण बनेगा। (इब्रा. 11:18) और उस वंश का मुख्य भाग है, यीशु मसीह। उसके बारे में बाइबल में दर्ज़ वंशावली का रिकॉर्ड दिखाता है कि वह इब्राहीम के खानदान से था। * जो दूसरे इस वंश का हिस्सा बनते हैं उन्हें यह सुअवसर इस बिनाह पर मिलता है कि वे “मसीह के हैं,” न कि इसलिए कि वे इब्राहीम के खानदान से हैं। जी हाँ, वंश के बारे में की गयी भविष्यवाणी को पूरा करने में यीशु की भूमिका वाकई बेजोड़ है।

21. यीशु ने परमेश्‍वर के मकसद में जो अनोखी भूमिका निभायी है, उसके बारे में क्या बात आपके दिल को छू जाती है?

21 यहोवा के मकसद में यीशु की अनोखी भूमिका के बारे में हमने जिन बातों पर गौर किया, उससे हम क्या सीख सकते हैं? जब से परमेश्‍वर ने अपने एकलौते बेटे को बनाया, तब से ही वह वाकई अनोखा और बेजोड़ रहा है। उसने हमेशा अपने पिता की मरज़ी पूरी की और कभी-भी अपनी महिमा नहीं चाही। (यूह. 5:41; 8:50) सच, यीशु हमारे लिए क्या ही बेहतरीन मिसाल है! तो आइए हम यह ठान लें कि हम भी “सब कुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिये” करेंगे।—1 कुरि. 10:31.

[फुटनोट]

^ एक बाइबल विद्वान कहता है कि जिस शब्द का अनुवाद “एक ही बार” किया गया है, उससे हम बाइबल की इस अहम शिक्षा को समझ पाते हैं कि “मसीह की मौत अनोखी थी और एक ही बार होनी थी।”

^ हालाँकि पहली सदी के यहूदी यह मानते थे कि इब्राहीम के खानदान से होने के नाते वे परमेश्‍वर की नज़रों में खास हैं, मगर मसीहा के बारे में उनका मानना था कि वह कोई समूह नहीं बल्कि एक इंसान होगा।—यूह. 1:25; 7:41, 42; 8:39-41.

क्या आपको याद है?

• यीशु को जो खिताब या उपाधियाँ दी गयी हैं, उनसे आपने उसकी अनोखी भूमिका के बारे में क्या सीखा? (बक्स देखिए।)

• आप यहोवा के अनोखे बेटे की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर बक्स/तसवीर]

कुछ उपाधियाँ जो परमेश्‍वर के मकसद में यीशु की अनोखी भूमिका ज़ाहिर करती हैं

एकलौता पुत्र। (यूह. 1:3) यीशु ही अकेला ऐसा है, जिसे खुद यहोवा ने बनाया।

वचन। (यूह. 1:14) यहोवा अपने बेटे यीशु को एक प्रवक्‍ता के तौर पर इस्तेमाल करता है और उसके ज़रिए दूसरे प्राणियों को जानकारी और हिदायतें देता है।

आमीन। (प्रका. 3:14) यीशु ने धरती पर एक निष्पाप ज़िंदगी जी और अपना जीवन एक बलिदान के तौर पर दे दिया। ऐसा करके उसने यहोवा परमेश्‍वर के सभी वादे और भी पुख्ता किए और उनका पूरा होना मुमकिन किया।

नयी वाचा का मध्यस्थ। (1 तीमु. 2:5, 6) एक कानूनी मध्यस्थ के तौर पर यीशु ने एक नयी जाति, यानी “परमेश्‍वर के इस्राएल” का जन्म मुमकिन किया। यह जाति उन लोगों से बनी है, जिनसे आगे चलकर स्वर्ग में एक “राजकीय याजकों का समाज” बनेगा।—गल. 6:16; 1 पत. 2:9, NHT.

महायाजक। (इब्रा. 7:27, 28) सिर्फ यीशु ही ऐसा इंसान था जो एक सिद्ध बलिदान दे सकता था, जिसके बाद किसी और बलिदान की ज़रूरत नहीं पड़ती। वही हमारे पापों को दूर कर सकता है और मौत से छुटकारा दिला सकता है।

वादा किया गया वंश। (उत्प. 3:15) सिर्फ एक ही इंसान, यीशु, वादा किए गए वंश का मुख्य भाग है। उस वंश का दूसरा भाग होने के लिए उन लोगों को चुना गया है, जो ‘मसीह के हैं।’—गल. 3:29.