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‘आ मेरे पीछे हो ले’

‘आ मेरे पीछे हो ले’

‘आ मेरे पीछे हो ले’

“यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने [आप] से इन्कार करे और प्रति दिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले।”—लूका 9:23.

1, 2. (क) यीशु ने कौन-सा न्यौता दिया है? (ख) क्या आपने यीशु का न्यौता कबूल किया है?

 यीशु अपनी सेवा के आखिरी सालों के दौरान, यहूदिया के उत्तर-पूर्व में यरदन पार पेरिया नाम एक इलाके में गवाही दे रहा था। उस वक्‍त एक अमीर जवान शासक उससे मिलता है और पूछता है कि हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए उसे क्या करना चाहिए? उसके साथ बातचीत करने पर यीशु जान लेता है कि वह जवान वफादारी से मूसा के ज़रिए दी व्यवस्था का पालन कर रहा है, इसलिए वह उसे एक खास न्यौता देता है। वह उससे कहता है: “जा, जो कुछ तेरा है, उसे बेच कर कंगालों को दे, और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले।” (मर. 10:21) ज़रा सोचिए, उसे यीशु के पीछे, जी हाँ, परमप्रधान परमेश्‍वर के इकलौते बेटे के पीछे हो लेने का न्यौता मिला!

2 हालाँकि उस नौजवान ने यीशु के न्यौते को ठुकरा दिया, मगर दूसरे बहुत-से लोगों ने उसका न्यौता कबूल किया। अपनी सेवा की शुरूआत में, यीशु ने फिलिप्पुस से कहा था: “मेरे पीछे हो ले।” (यूह. 1:43) फिलिप्पुस ने न्यौता कबूल किया और आगे चलकर वह एक प्रेरित बना। यीशु ने मत्ती को भी अपने पीछे हो लेने का न्यौता दिया, जिसे उसने कबूल किया। (मत्ती 9:9; 10:2-4) आज यीशु ने यह न्यौता उन सबको दिया है जो धार्मिकता से प्यार करते हैं। उसने कहा: “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने [आप] से इन्कार करे और प्रति दिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले।” (लूका 9:23) ध्यान दीजिए, कोई भी यीशु का चेला बन सकता है, बशर्ते वह सच्चे दिल से उसके पीछे आना चाहे। क्या आपकी भी यही तमन्‍ना है? हममें से ज़्यादातर लोगों ने उसके न्यौते को कबूल किया है। यही नहीं, हम प्रचार में लोगों के पास जाकर उन्हें भी यीशु के पीछे आने का न्यौता भी देते हैं।

3. हम बहककर यीशु से दूर न चले जाएँ, इसके लिए हमें किन सवालों पर गौर करना चाहिए?

3 मगर अफसोस, बाइबल की सच्चाई कबूल करनेवाले कुछ लोगों ने यीशु के पीछे चलना छोड़ दिया है। वे सच्चाई में धीमे पड़ गए और ‘बहककर दूर चले गए हैं।’ (इब्रा. 2:1) कहीं हमारे साथ भी ऐसा ही ना हो, इसके लिए आइए हम अपने आपसे ये सवाल पूछें: ‘मैंने यीशु के पीछे हो लेने का फैसला क्यों किया था? और उसके पीछे चलने का असल मतलब क्या है?’ इन दोनों सवालों के जवाब, सही राह पर बने रहने के हमारे इरादे को और बुलंद करेंगे। साथ ही, इनकी मदद से हम दूसरों को भी यीशु के पीछे हो लेने का बढ़ावा दे पाएँगे।

यीशु के पीछे क्यों हो लें?

4, 5. यीशु क्यों हमारा अगुवा होने के काबिल है?

4 नबी यिर्मयाह ने कहा: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।” (यिर्म. 10:23) इतिहास गवाह है कि यिर्मयाह की यह बात कितनी सच है। वक्‍त ने यह साबित कर दिखाया है कि असिद्ध इंसानों के पास हुकूमत करने की काबिलीयत नहीं है। इसी वजह से हमने यीशु के पीछे हो लेने का फैसला किया है क्योंकि हमने सीखा है कि वही सबसे काबिल अगुवा है। दुनिया में कोई उसकी बराबरी नहीं कर सकता। ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि यीशु ही एक काबिल अगुवा है। आइए इसकी कुछ वजहों पर गौर करें।

5 सबसे पहली वजह यह है कि खुद यहोवा ने यीशु का अभिषेक किया और उसे हमारा अगुवा चुना। ज़रा सोचिए, हमारे सिरजनहार से बेहतर और कौन जान सकता है कि हमें किस तरह के अगुवे की ज़रूरत है? दूसरी वजह यह है कि यीशु में ऐसे गुण हैं, जो वाकई काबिले-तारीफ हैं और जिन्हें हम भी अपनी ज़िंदगी में दिखा सकते हैं। (यशायाह 11:2, 3 पढ़िए।) वह हमारे लिए एक बढ़िया आदर्श है। (1 पत. 2:21, NHT) तीसरी वजह यह है कि वह अपने चेलों की दिल से परवाह करता है और उसने अपनी जान देकर यह साबित भी किया है। (यूहन्‍ना 10:14, 15 पढ़िए।) यीशु एक परवाह करनेवाला चरवाहा है। वह हमें ऐसी राह पर ले चलता है, जिस पर चलकर हमें न सिर्फ आज खुशियों-भरी ज़िंदगी मिलती है, बल्कि आगे हमेशा की ज़िंदगी भी मिलेगी। (यूह. 10:10, 11; प्रका. 7:16, 17) इन वजहों से और ऐसी ही दूसरी वजहों से हमने यीशु के पीछे हो लेने का फैसला किया है, जो एकदम सही है। मगर उसके पीछे हो लेने में क्या शामिल है?

6. यीशु के पीछे चलने का मतलब क्या है?

6 मसीह के पीछे हो लेने में सिर्फ यह दावा करना काफी नहीं कि हम उसके चेले हैं। दुनिया में दो अरब से भी ज़्यादा लोग ऐसा दावा करते हैं, मगर उनके काम दिखाते हैं कि वे ‘कुकर्मी’ हैं। (मत्ती 7:21-23 पढ़िए।) जब कोई यीशु के पीछे हो लेने का न्यौता कबूल करता है, तो हम उन्हें समझाते हैं कि मसीह का चेला होने का असल मतलब है, हर दिन यीशु की शिक्षाओं के मुताबिक जीना और उसकी मिसाल पर चलना। ऐसा हम कैसे कर सकते हैं, आइए हम यीशु के बारे में कुछ बातों पर गौर करें जिनसे हम वाकिफ हैं।

यीशु की तरह बुद्धि से काम लीजिए

7, 8. (क) बुद्धि क्या है और यीशु के पास ढेर सारी बुद्धि कहाँ से आयी? (ख) यीशु ने बुद्धि कैसे दिखायी और हम कैसे उसके नक्शेकदम पर चल सकते हैं?

7 यीशु ने अपनी ज़िंदगी में कई बेहतरीन गुण दिखाए। लेकिन हम उनमें से सिर्फ चार पर गौर करेंगे: उसकी बुद्धि, नम्रता, जोश और प्यार। आइए सबसे पहले उसकी बुद्धि के बारे में बात करें। बुद्धि क्या है? अपने ज्ञान और समझ का कारगर तरीके से इस्तेमाल करना। प्रेरित पौलुस ने यीशु के बारे में लिखा: “[उस] में बुद्धि और ज्ञान [के] सारे भण्डार छिपे हुए हैं।” (कुलु. 2:3) आखिर यीशु को ऐसी बुद्धि कहाँ से मिली? इसका जवाब खुद यीशु ने दिया: “जैसे मेरे पिता ने मुझे सिखाया, वैसे ही ये बातें कहता हूं।” (यूह. 8:28) जी हाँ, उसे बुद्धि यहोवा से मिली थी। इसलिए उसने अपनी ज़िंदगी में जिस तरह समझ-बूझ से काम लिया, उससे हमें कोई हैरानी नहीं होती।

8 मसलन, अपनी ज़िंदगी किस तरह से जीनी है, इसका फैसला करने के लिए यीशु ने समझ-बूझ से काम लिया। उसने सादगी-भरी ज़िंदगी जी और सिर्फ परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने पर ध्यान लगाया। उसने बुद्धि से काम लेते हुए अपना सारा वक्‍त और ताकत राज्य के कामों को बढ़ाने में लगा दी। हम अपनी “आंख निर्मल” बनाए रखने के ज़रिए यीशु के नक्शेकदम पर चलते हैं। (मत्ती 6:22) इसलिए हम गैर-ज़रूरी चीज़ें बटोरने में नहीं लगे रहते, जिनमें हमारा सारा समय और ध्यान जा सकता है। बहुत-से मसीहियों ने प्रचार में ज़्यादा समय बिताने के लिए अपना जीवन सादा बनाया है। और कुछ ने तो पायनियर सेवा शुरू की है। अगर आपने ऐसा कदम उठाया है, तो यह वाकई काबिले-तारीफ है। ‘पहले राज्य की खोज’ करने से बेशुमार खुशियाँ और सुकून मिलता है।—मत्ती 6:33.

यीशु की तरह नम्रता दिखाइए

9, 10. यीशु ने नम्रता कैसे दिखायी?

9 अब आइए हम यीशु की शख्सियत के दूसरे गुण, नम्रता पर चर्चा करें। अकसर जब एक असिद्ध इंसान को कोई अधिकार मिलता है, तो वह घमंड से फूल उठता है। मगर यीशु एकदम अलग था। हालाँकि यहोवा के मकसद को पूरा करने में उसे एक अहम भूमिका निभानी थी, मगर उसमें कभी घमंड नहीं आया। हमें उकसाया जाता है कि हम यीशु की मिसाल पर चलें। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो। जिस ने परमेश्‍वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्‍वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। बरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।” (फिलि. 2:5-7) ऐसा करने में क्या शामिल था?

10 यीशु स्वर्ग में अपने पिता के साथ एक शानदार ज़िंदगी जी रहा था, लेकिन फिर भी उसने खुशी-खुशी खुद को “शून्य” कर दिया। यीशु का जीवन भ्रूण के रूप में, एक यहूदी कुँवारी के गर्भ में डाला गया, जहाँ वह नौ महीने तक पला। फिर उसने शिशु के रूप में एक गरीब बढ़ई के परिवार में जन्म लिया। एक आम इंसान की तरह उसने भी धीरे-धीरे लड़कपन से जवानी में कदम रखा। सिद्ध होते हुए भी वह हमेशा अपने असिद्ध माँ-बाप के अधीन रहा। (लूका 2:51, 52) वाकई, उसने नम्रता की क्या ही बढ़िया मिसाल रखी!

11. हम किन तरीकों से यीशु की नम्रता की मिसाल पर चल सकते हैं?

11 जब हम मामूली और कमतर लगनेवाले काम खुशी-खुशी करते हैं, तो हम यीशु की तरह नम्रता दिखाते हैं। मिसाल के लिए, सुसमाचार सुनाने के हमारे काम को ही लीजिए। यह काम खासकर तब मामूली लग सकता है, जब लोग हमारे संदेश में दिलचस्पी ना दिखाएँ, हमारा मज़ाक उड़ाएँ या विरोध करें। लेकिन अगर हम प्रचार में लगे रहें, तो हम दूसरों की मदद कर पाएँगे कि वे भी यीशु का न्यौता कबूल करके उसके पीछे हो लें। ऐसा करके हम उनकी जान बचा रहे होंगे। (2 तीमुथियुस 4:1-5 पढ़िए।) एक और मिसाल है, राज्य घर की देखरेख। इसकी देखरेख में कचरे के डब्बे खाली करने, झाड़ू-पोंछा लगाने, शौचालय साफ करने जैसे काम शामिल हैं, जिन्हें कम दर्जे का समझा जाता है। हमें याद रखना चाहिए कि राज्य-घर उपासना की एक जगह है। इसलिए जब हम इसकी देखरेख करते हैं तो हम एक तरह से पवित्र सेवा में हिस्सा ले रहे होते हैं। इस तरह मामूली लगनेवाले कामों को खुशी-खुशी करने के ज़रिए हम नम्रता दिखाते हैं और मसीह के नक्शेकदम पर चलते हैं।

यीशु की तरह जोश दिखाइए

12, 13. (क) यीशु ने कैसे जोश दिखाया और ऐसा करने के लिए उसे किस बात ने उकसाया? (ख) क्या बात हमें प्रचार में जोशीला होने के लिए उकसाएगी?

12 अब आइए, प्रचार काम में यीशु के जोश पर गौर करें। यीशु ने धरती पर रहते वक्‍त बहुत-से काम किए। बचपन में, उसने अपने दत्तक पिता, यूसुफ से बढ़ई का काम सीखा। अपनी सेवा के दौरान, उसने कई चमत्कार किए जैसे, उसने बीमारों को चंगा किया और मरे हुओं को ज़िंदा किया। मगर उसने जिस काम को सबसे ज़्यादा अहमियत दी, वह था, सुसमाचार प्रचार करना और लोगों को उपदेश देना। (मत्ती 4:23) यीशु के चेले होने के नाते, हमें भी यही काम सौंपा गया है। हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? अपने दिल में यीशु के जैसा जज़्बा पैदा करके।

13 परमेश्‍वर के लिए प्यार ने ही, यीशु को प्रचार करने और दूसरों को सिखाने के लिए उकसाया। इसके अलावा, यीशु को उन सच्चाइयों से प्यार था, जो वह दूसरों को सिखाता था। उसके लिए वह सच्चाई अनमोल खज़ाने की तरह थी और वह उनके बारे में दूसरों को बताने के लिए बेताब रहता था। हम भी “शास्त्री” यानी शिक्षक होने के नाते दूसरों को सच्चाई सिखाने के लिए हरदम तैयार रहते हैं। ज़रा उन सच्चाइयों के बारे में सोचिए, जो हमने परमेश्‍वर के वचन से सीखी हैं। जैसे, विश्‍व की हुकूमत को लेकर उठा मसला और उसे कैसे निपटाया जाएगा। हम अच्छी तरह जानते हैं कि मरे हुए किस दशा में हैं और नयी दुनिया में परमेश्‍वर का राज्य क्या-क्या आशीषें लाएगा। चाहे ये सच्चाइयाँ हमने हाल में सीखी हों या सालों पहले, इनकी अहमियत कभी नहीं घटेगी। नयी हों या पुरानी, ये सच्चाइयाँ, वाकई बेशकीमती हैं। (मत्ती 13:52 पढ़िए।) हम दिलो-जान और पूरे जोश के साथ प्रचार करने के ज़रिए दिखाते हैं कि यहोवा से सीखी सच्चाइयों से हमें बहुत प्यार है।

14. हम यीशु के सिखाने का तरीका कैसे अपना सकते हैं?

14 ध्यान दीजिए कि यीशु लोगों को कैसे सिखाता था। वह हमेशा पवित्र शास्त्र का हवाला देता था। कोई अहम मुद्दा बताते वक्‍त वह अकसर कहता था: “लिखा है।” (मत्ती 4:4; 21:13) उसने इब्रानी शास्त्र की आधी-से-ज़्यादा किताबों से सीधे-सीधे हवाला दिया या किसी और तरीके से उनमें लिखी बातों का ज़िक्र किया। उसी तरह, हम भी प्रचार में बाइबल का अच्छा इस्तेमाल करते हैं। प्रचार करते वक्‍त, जब भी मुमकिन हो, हम बाइबल से आयतें खोलकर दिखाते हैं। इस तरह, हम नेकदिल लोगों को यह देखने का मौका देते हैं कि हम अपने विचार नहीं, बल्कि परमेश्‍वर के विचार सिखा रहे हैं। जब कोई बाइबल से पढ़ने के लिए राज़ी होता है, उसके फायदों और उसमें लिखी बातों के मतलब पर चर्चा करने के लिए तैयार होता है, तो हमें बेहद खुशी होती है। और जब ऐसे लोग यीशु के पीछे हो लेने का न्यौता कबूल करते हैं, तो हमारी खुशी दुगुनी हो जाती है।

यीशु के पीछे चलने का मतलब है, दूसरों से प्यार करना

15. यीशु की शख्सियत का सबसे बेहतरीन गुण कौन-सा है और उस पर मनन करने से हम पर क्या असर होता है?

15 अब हम यीशु की शख्सियत के जिस आखिरी गुण पर चर्चा करेंगे, वह एकदम मन को भा जाता है। वह है, इंसानों के लिए उसका प्यार। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है।” (2 कुरि. 5:14) जब हम इस बात पर मनन करते हैं कि यीशु पूरी मानवजाति से, आपसे और मुझसे कितना प्यार करता है, तो यह बात हमें दिल की गहराई तक छू जाती है। और यह हमें उसकी मिसाल पर चलने के लिए विवश कर देती है।

16, 17. यीशु ने दूसरों के लिए अपना प्यार किन तरीकों से दिखाया?

16 यीशु ने लोगों के लिए कैसे प्यार दिखाया? उसने खुशी-खुशी हमारी खातिर ‘अपना प्राण देकर’ इसका सबसे बड़ा सबूत दिया। (यूह. 15:13) अपनी सेवा के दौरान, यीशु ने दूसरे तरीकों से भी प्यार दिखाया। मिसाल के लिए, दुख से कराहते लोगों के लिए उसे हमदर्दी थी। जब यीशु ने मरियम और दूसरों को लाजर की मौत का मातम मनाते देखा, तो उनका दर्द देखकर उसका दिल भर आया। हालाँकि वह लाजर को ज़िंदा करने ही वाला था, फिर भी वह खुद को रोक नहीं पाया और उसके “आंसू” निकल पड़े।—यूह. 11:32-35.

17 यीशु के प्रचार काम के शुरूआती दौर में एक कोढ़ी ने उसके पास आकर कहा: “यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” तब यीशु ने क्या किया? ब्यौरा आगे बताता है: यीशु ने उस पर ‘तरस खाया।’ इसके बाद, उसने एक अनोखा काम किया। उसने अपना “हाथ बढ़ाया, और उसे छूकर कहा; मैं चाहता हूं तू शुद्ध हो जा। और तुरन्त उसका कोढ़ जाता रहा, और वह शुद्ध हो गया।” मूसा की कानून-व्यवस्था के तहत, कोढ़ी अशुद्ध माने जाते थे। हालाँकि यीशु उस कोढ़ी को बिना हाथ लगाए चंगा कर सकता था, मगर उसने कोढ़ी को छुआ। ज़रा सोचिए, बरसों बाद किसी इंसान के स्पर्श करने पर उसे कैसा लगा होगा। यीशु ने क्या ही कोमल करुणा दिखायी!—मर. 1:40-42.

18. हम दूसरों को ‘हमदर्दी’ कैसे दिखा सकते हैं?

18 मसीह के चेले होने के नाते, हमसे माँग की जाती है कि हम दूसरों को ‘हमदर्दी’ दिखाकर अपना प्यार ज़ाहिर करें। (1 पत. 3:8, हिन्दुस्तानी बाइबल) मगर गंभीर बीमारी से जूझनेवालों या हताश भाई-बहनों का दर्द समझ पाना शायद हमारे लिए आसान न हो। खासकर तब, जब हम खुद ऐसी तकलीफों से ना गुज़रे हों। यीशु कभी बीमार नहीं हुआ था, फिर भी वह दूसरों के साथ हमदर्दी जता सका। हम हमदर्दी कैसे दिखा सकते हैं? जब एक मसीही तकलीफ में होता है और अपने दिल की बात बताता है, तो हमें इत्मीनान से उसकी बात सुननी चाहिए। और अपने आपसे पूछना चाहिए: ‘अगर मैं उसकी जगह होता, तो कैसा महसूस करता?’ इस तरह दूसरों की भावनाओं को समझने से, हम ‘हताश प्राणियों को सांत्वना’ दे पाएँगे। (1 थिस्स. 5:14, NW) ऐसा करके हम यीशु के नक्शेकदम पर चल रहे होंगे।

19. यीशु की मिसाल का हम पर कैसा असर होता है?

19 सचमुच, यीशु की बातों और कामों से हमें कितना कुछ सीखने को मिलता है! हम जितना ज़्यादा यीशु के बारे में सीखते हैं, उतना ज़्यादा हम उसके जैसा बनना चाहते हैं। यही नहीं, हम दूसरों की भी उतनी ही मदद करना चाहते हैं, ताकि वे भी यीशु की तरह बन सकें। इसलिए आइए हम खुशी-खुशी अपने मसीहाई राजा के पीछे हो लें—आज और हमेशा-हमेशा के लिए!

क्या आप समझा सकते हैं?

• हम यीशु की तरह बुद्धि कैसे दिखा सकते हैं?

• हम किन तरीकों से नम्रता दिखा सकते हैं?

• हम प्रचार के लिए अपना जोश कैसे बढ़ा सकते हैं?

• हम दूसरों को प्यार दिखाने में यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 5 पर बक्स/तसवीर]

वह किताब, जो मसीह के पीछे हो लेने में मदद देती है

सन्‌ 2007 के ज़िला अधिवेशन में 192 पेजवाली एक किताब रिलीज़ की गयी। इसका नाम है, “कम बी माय फॉलोवर।” यह किताब मसीहियों के लिए तैयार की गयी है। इसमें खासकर यीशु के गुणों और उसके कामों पर ध्यान दिलाया गया है। किताब के पहले भाग में यीशु के बेहतरीन गुणों पर चर्चा की गयी है, जैसे उसकी नम्रता, साहस, बुद्धि, आज्ञाकारिता और धीरज।

दूसरे भागों में बताया गया है कि यीशु ने कैसे एक शिक्षक और सुसमाचार के प्रचारक के तौर पर काम किया, साथ ही उसने किन तरीकों से लोगों के लिए अपना प्यार ज़ाहिर किया। पूरी किताब में जानकारी इस तरह पेश की गयी है, जिससे एक मसीही को यीशु की मिसाल पर चलने में मदद मिलेगी।

हमें पूरा यकीन है कि यह किताब हमें खुद को जाँचने और यह सवाल पूछने के लिए उकसाएगी: ‘क्या मैं वाकई यीशु के पीछे चल रहा हूँ? मैं कैसे और भी अच्छी तरह उसके पीछे चल सकता हूँ?’ यह किताब उन सभी को मसीह के पीछे हो लेने में मदद करेगी, जो “अनन्त जीवन के लिये ठहराए गए” हैं।—प्रेरि. 13:48.

[पेज 4 पर तसवीर]

यीशु धरती पर आने को रज़ामंद हुआ और उसने शिशु के तौर पर जन्म लिया। इसके लिए उसे किस गुण की ज़रूरत थी?

[पेज 6 पर तसवीर]

क्या बात हमें प्रचार में जोशीला होने के लिए उकसाएगी?