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क्या आप ‘परमेश्‍वर के अनुग्रह’ के भंडारी हैं?

क्या आप ‘परमेश्‍वर के अनुग्रह’ के भंडारी हैं?

क्या आप ‘परमेश्‍वर के अनुग्रह’ के भंडारी हैं?

“भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर मया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।”—रोमि. 12:10.

1. परमेश्‍वर के वचन से हमें क्या दिलासा मिलता है?

 परमेश्‍वर का वचन बार-बार हमें दिलासा देता है कि जब निराशा के काले बादल हम पर मँडराते हैं और हम पूरी तरह टूट जाते हैं, तब यहोवा हमारी मदद के लिए हाज़िर रहता है। उदाहरण के लिए, ज़रा दिलासा देनेवाले इन शब्दों पर ध्यान दीजिए: “यहोवा सब गिरते हुओं को संभालता है, और सब झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है।” “वह खेदित मनवालों को चंगा करता है, और उनके शोक पर मरहम-पट्टी बान्धता है।” (भज. 145:14; 147:3) इतना ही नहीं, हमारा पिता यहोवा खुद कहता है: “मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा, तेरा दहिना हाथ पकड़कर कहूंगा, मत डर, मैं तेरी सहायता करूंगा।”—यशा. 41:13.

2. यहोवा कैसे अपने लोगों को सहारा देता है?

2 यहोवा स्वर्ग में रहता है जिसे हम देख नहीं सकते, तो फिर वह कैसे ‘हमारा हाथ’ पकड़ता है? जब मायूसी की वजह से हम टूटकर मानो झुक जाते हैं, तो वह कैसे हमें ‘सीधा खड़ा’ करता है? यहोवा हमें अलग-अलग तरीकों से सहारा देता है। मसलन, वह हमें अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए “असीम सामर्थ” देता है। (2 कुरि. 4:7; यूह. 14:16, 17) इसके अलावा, परमेश्‍वर के वचन बाइबल में ऐसी बातें लिखी हैं, जिन्हें पढ़कर हमारे हौसले बुलंद होते हैं। (इब्रा. 4:12) क्या किसी और भी तरीके से यहोवा हमारा हौसला बढ़ाता है? इसका जवाब हमें पहले पतरस की किताब से मिलता है।

“परमेश्‍वर के नाना प्रकार के अनुग्रह”

3. (क) प्रेरित पतरस ने परीक्षाओं के बारे में क्या बात कही? (ख) पहले पतरस के आखिरी भाग में क्या चर्चा किया गया है?

3 अभिषिक्‍त मसीहियों को लिखते वक्‍त, प्रेरित पतरस ने कहा कि उनके पास खुश होने की एक खास वजह है क्योंकि उनके सामने एक शानदार इनाम रखा है। इसके बाद वह कहता है: “यद्यपि अवश्‍य है कि अब [तुम] कुछ दिन तक नाना प्रकार की परीक्षाओं के कारण उदास हो।” (1 पत. 1:1-6) “नाना प्रकार” इन शब्दों पर ध्यान दीजिए। ये शब्द दिखाते हैं कि परीक्षाएँ तरह-तरह की होंगी। लेकिन पतरस सिर्फ परीक्षाओं के बारे में बताकर, भाइयों को इस कशमकश में नहीं छोड़ देता कि वे उन तरह-तरह की परीक्षाओं का सामना कैसे करेंगे। इसके बजाय, वह बताता है कि मसीही पूरा यकीन रख सकते हैं कि वे चाहे जैसी भी परीक्षा से गुज़रें, यहोवा उन्हें हर परीक्षा से बाहर निकल आने में मदद देगा। पतरस अपनी पत्री के आखिरी भाग में, जब ‘सब बातों के अन्त’ के बारे में चर्चा करता है, तब वह मसीहियों को इसी बात का भरोसा दिलाता है।—1 पत. 4:7.

4. पहले पतरस 4:10 के शब्दों से हमें कैसे दिलासा मिलता है?

4 पतरस कहता है: “जिस को जो बरदान मिला है, वह उसे परमेश्‍वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों की नाईं एक दूसरे की सेवा में लगाए।” (1 पत. 4:10) पतरस एक बार फिर “नाना प्रकार” इन शब्दों का इस्तेमाल करता है। दूसरे शब्दों में, वह यह कह रहा है कि ‘जैसे परीक्षाएँ अलग-अलग तरह की होती हैं, वैसे ही परमेश्‍वर का अनुग्रह भी नाना प्रकार यानी अलग-अलग तरह का होता है।’ इस बात से हमें दिलासा कैसे मिलता है? हम पर चाहे जैसी भी परीक्षाएँ आएँ, परमेश्‍वर का अनुग्रह हर तरह की परीक्षाओं को सहने में हमारी मदद कर सकता है। क्या आपने पतरस की बात पर गौर किया कि यहोवा कैसे हम पर अनुग्रह दिखाता है? जी हाँ, संगी मसीहियों के ज़रिए।

“एक दूसरे की सेवाकरें

5. (क) हर मसीही का क्या फर्ज़ बनता है? (ख) वरदान के बारे में क्या सवाल उठते हैं?

5 मसीही कलीसिया के सभी सदस्यों से पतरस कहता है: “सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो।” फिर वह कहता है: “जिस को जो बरदान मिला है, वह उसे . . . एक दूसरे की सेवा में लगाए।” (1 पत. 4:8, 10) इससे साफ पता चलता है कि कलीसिया के हर सदस्य का फर्ज़ बनता है कि वह अपने संगी मसीहियों की हिम्मत बढ़ाए। यहोवा ने हमें एक अनमोल चीज़ सौंपी है और हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम दूसरों के साथ उसे बाँटें। वह क्या है? पतरस कहता है, वह है, ‘वरदान।’ तो फिर यहोवा ने हमें कौन-सा वरदान दिया है और हम कैसे उसे ‘एक दूसरे की सेवा में लगा’ सकते हैं?

6. मसीहियों को कौन-से वरदान दिए गए हैं?

6 परमेश्‍वर का वचन कहता है: “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है।” (याकू. 1:17) वाकई यहोवा अपने लोगों को जो भी वरदान देता है, उससे उसका अनुग्रह ज़ाहिर होता है। और उसने हमें जो सबसे बेहतरीन वरदान दिया है, वह है, उसकी पवित्र शक्‍ति। यह हमें परमेश्‍वर के जैसे गुण दिखाने में मदद करती है, जैसे प्यार, भलाई और नम्रता। और इन्हीं गुणों की बदौलत हमें बढ़ावा मिलता है कि हम अपने संगी भाई-बहनों को अपनापन दिखाएँ और उनकी मदद करें। हमें पवित्र शक्‍ति की मदद से सच्चा ज्ञान और बुद्धि मिलती है, जो परमेश्‍वर की तरफ से मिले वरदान हैं। (1 कुरि. 2:10-16; गल. 5:22, 23) दरअसल हमारी सारी ताकत, काबिलीयत और हुनर भी वरदान समझे जा सकते हैं, जिनका इस्तेमाल हमें अपने पिता यहोवा की महिमा और आदर के लिए करना चाहिए। यहोवा चाहता है कि हम अपने वरदान यानी गुणों और काबिलीयतों का इस्तेमाल भाई-बहनों की मदद के लिए करें। जब हम ऐसा करते हैं, तो असल में परमेश्‍वर का अनुग्रह ज़ाहिर कर रहे होते हैं।

‘उसे सेवा में लगाएँ’—कैसे?

7. (क) “जिस को जो,” इन शब्दों का मतलब क्या है? (ख) हमें खुद से कौन-से सवाल पूछने चाहिए और क्यों?

7 हमें जो वरदान मिले हैं, उनके बारे में पतरस कहता है: “जिस को जो बरदान मिला है, वह उसे . . . एक दूसरे की सेवा में लगाए।” “जिस को जो,” ये शब्द दिखाते हैं कि सबको अलग-अलग तरह के गुण और काबिलीयतें मिली हैं, किसी को कम तो किसी को ज़्यादा। इसके बावजूद, हरेक से गुज़ारिश की गयी है कि वह “उसे [यानी अपने खास वरदान को, जो उसे मिला है] एक दूसरे की सेवा में लगाए।” इसके अलावा, ‘उसे भले भण्डारियों की नाईं सेवा में लगाएँ’ ये शब्द दिखाते हैं कि यह एक आज्ञा है। इसलिए हमें अपने आप से पूछना चाहिए: ‘मुझे जो वरदान सौंपा गया है, क्या मैं उसका इस्तेमाल साथी मसीहियों की हिम्मत बढ़ाने या उनकी मदद करने के लिए करता हूँ?’ (1 तीमुथियुस 5:9, 10 से तुलना कीजिए।) ‘या फिर यहोवा से मिली अपनी काबिलीयत का इस्तेमाल सिर्फ अपने फायदे के लिए करता हूँ, यानी रुपया-पैसा कमाने या समाज में रुतबा हासिल करने के लिए?’ (1 कुरि. 4:7) अगर हम “एक दूसरे की सेवा में” अपने वरदान का इस्तेमाल करते हैं तो इससे हम यहोवा का दिल खुश करते हैं।—नीति. 19:17; इब्रानियों 13:16 पढ़िए।

8, 9. (क) किन तरीकों से पूरी दुनिया में मसीही संगी विश्‍वासियों की मदद करते हैं? (ख) आपकी कलीसिया में भाई-बहन कैसे एक दूसरे की मदद करते हैं?

8 परमेश्‍वर का वचन बताता है कि पहली सदी के मसीहियों ने अलग-अलग तरीकों से एक दूसरे की सेवा की थी। (रोमियों 15:25, 26; 2 तीमुथियुस 1:16-18 पढ़िए।) आज भी सच्चे मसीही, भाइयों की खातिर अपने वरदानों का इस्तेमाल करने की आज्ञा को पूरे दिल से मानते हैं। गौर कीजिए, वे किन तरीकों से ऐसा करते हैं।

9 हमारे बहुत-से भाई हर महीने सभाओं के अलग-अलग भागों की तैयारी करने में ढेरों घंटे बिताते हैं। बाइबल का अध्यनन करते समय उन्हें कई अनमोल रत्न मिलते हैं और सभाओं में जब वे इन रत्नों को यानी गहरी समझ की बातें बताते हैं तो इससे हरेक को अपनी सेवा में लगे रहने में मदद मिलती है। (1 तीमु. 5:17) हमारे अनगिनत भाई-बहन संगी विश्‍वासियों के लिए प्यार और करुणा दिखाने के लिए जाने जाते हैं। (रोमि. 12:15) कुछ हताश लोगों से नियमित तौर पर भेंट करते और उनके साथ प्रार्थना करते हैं। (1 थिस्स. 5:14) दूसरे हैं, जो दिल छू जानेवाली बातें लिखकर उन मसीहियों का हौसला बढ़ाते हैं, जो परीक्षाओं का सामना कर रहे हैं। कुछ मसीही हैं, जो बड़े प्यार से उन भाई-बहनों को कलीसिया में लाने-ले-जाने में मदद करते हैं, जो बीमार या शारिरिक तौर पर कमज़ोर हैं। ऐसे हज़ारों साक्षी हैं, जो कुदरती आफतों के शिकार संगी मसीहियों के घरों को बनाते और मरम्मत करने में हाथ बँटाते हैं। परवाह करनेवाले ये भाई जिस तरह कोमलता दिखाते और कारगर तरीके से मदद करते हैं, उससे “परमेश्‍वर के नाना प्रकार के अनुग्रह” ज़ाहिर होते हैं।—1 पतरस 4:11 पढ़िए।

कौन-सा पहलू ज़्यादा अहमियत रखता है?

10. (क) प्रेरित पौलुस सेवा के किन दो पहलुओं को बखूबी समझता था? (ख) हम आज पौलुस के उदाहरण पर कैसे चलते हैं?

10 परमेश्‍वर के सेवकों को जो वरदान सौंपे गए हैं, उन्हें उनका इस्तेमाल न सिर्फ संगी मसीहियों के लिए बल्कि दूसरों के लिए भी करना चाहिए। प्रेरित पौलुस सेवा के इन दो पहलुओं को बखूबी समझता था। उसने इफिसुस की कलीसिया को लिखा कि उनकी भलाई के लिए उसे ‘परमेश्‍वर के अनुग्रह का प्रबन्धक’ या भंडारी का काम दिया गया है। (इफि. 3:2) और उसने यह भी कहा: “परमेश्‍वर ने अपना सुसमाचार सौंपने के लिए हमें योग्य समझा।” (1 थिस्स. 2:4, NHT) पौलुस की तरह हम भी इस बात को बखूबी समझते हैं कि परमेश्‍वर ने अपने राज्य का प्रचारक होने की ज़िम्मेदारी हमें सौंपी है। जब हम जोश के साथ खुशखबरी का ऐलान करते हैं तो हम पौलुस की मिसाल पर चलते हैं जो बिना थके-हारे प्रचार काम में लगा रहता था। (प्रेरि. 20:20, 21; 1 कुरि. 11:1) हम जानते हैं कि राज्य का संदेश सुनाने से लोगों की ज़िंदगी बच सकती है। इसके अलावा, पौलुस की तरह हम ऐसे मौकों की तलाश में रहते हैं, जिससे अपने भाइयों को “आत्मिक बरदान” दे सकें।—रोमियों 1:11, 12; 10:13-15 पढ़िए।

11. हमें खुशखबरी का ऐलान करने और भाइयों की हौसला अफज़ाई करने के बारे में कैसा नज़रिया रखना चाहिए?

11 सेवा के इन दो पहलुओं में कौन-सा सबसे ज़्यादा अहमियत रखता है? यह सवाल ऐसा है, मानो हम पूछ रहे हों कि पक्षी के दो पंखों में से कौन-सा पंख ज़्यादा अहमियत रखता है? जवाब साफ है। एक पक्षी को उड़ने के लिए दोनों पंखों की ज़रूरत होती है। उसी तरह जब तक हम परमेश्‍वर की सेवा के इन दो पहलुओं में बराबर हिस्सा न लें, हम अधूरे मसीही कहलाएँगे। इसलिए हम ऐसा नहीं सोचते कि खुशखबरी का ऐलान करने और भाइयों की हौसला अफज़ाई करने के बीच कोई ताल्लुक नहीं है। प्रेरित पतरस और पौलुस की तरह हम इन दोनों ही ज़िम्मेदारियों को न सिर्फ ज़रूरी समझते हैं, बल्कि इन्हें एक दूसरे का पूरक मानते हैं। किस मायने में?

12. हम यहोवा के हाथों का औज़ार कैसे बन सकते हैं?

12 प्रचारक के तौर पर हम चाहते हैं कि परमेश्‍वर के राज्य का संदेश लोगों के दिल को छू जाए। इसलिए लोगों को सिखाने में हम अपने कौशल का अच्छा इस्तेमाल करते हैं और आशा करते हैं कि वे मसीह के चेले बनें। इसके अलावा, हम अपनी काबिलीयतों और दूसरे वरदानों का इस्तेमाल, अपने संगी मसीहियों में जोश भरने के लिए भी करते हैं। हम अपनी बातों से उनकी हिम्मत बढ़ाते हैं या और तरीकों से उनकी मदद करते हैं, जिससे परमेश्‍वर का अनुग्रह ज़ाहिर होता है। (नीति. 3:27; 12:25) और इस तरह हम उन्हें मसीह का चेला बने रहने में मदद देते हैं। जी हाँ, हम लोगों को प्रचार करने और “एक दूसरे की सेवा” करने के ज़रिए यहोवा के हाथों का औज़ार बनते हैं। (गल. 6:10) उसकी सेवा में हमारा इस तरह काम आना वाकई बड़े सम्मान की बात है!

“एक दूसरे पर मया रखो”

13. अगर हम “एक दूसरे की सेवा” करने से पीछे हट जाएँ तो क्या हो सकता है?

13 पौलुस ने अपने संगी भाइयों से आग्रह किया: “भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर मया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।” (रोमि. 12:10) इसमें शक नहीं, अगर हम अपने भाइयों से प्यार करते हैं तो यही प्यार हमें उकसाएगा कि हम दिलो-जान से परमेश्‍वर के अनुग्रह के भंडारी के तौर पर सेवा करें। हम जानते हैं कि अगर शैतान हमें “एक दूसरे की सेवा” करने से रोकने में कामयाब हो जाए तो वह हमारी एकता आसानी-से कमज़ोर पड़ सकती है। (कुलु. 3:14) और अगर हमारी एकता कमज़ोर पड़ गयी तो प्रचार काम के लिए हमारा जोश भी ठंडा पड़ जाएगा। शैतान बखूबी जानता है कि हमारे सिर्फ एक पंख को चोट पहुँचाने की ज़रूरत है और बस हम अपने आप धराशायी हो जाएँगे।

14. “एक दूसरे की सेवा” करने से किसे फायदा होता है? इसका एक उदाहरण दीजिए।

14 “एक दूसरे की सेवा” करने से न सिर्फ उन्हें फायदा होता है, जिन्हें परमेश्‍वर का अनुग्रह मिलता है बल्कि उन्हें भी जो परमेश्‍वर का अनुग्रह दूसरों को दिखाते हैं। (नीति. 11:25) रायन और रॉनी की बात लीजिए। यह जोड़ा अमरीका के इलिनॉय राज्य में रहता है। हरीकेन कटरीना ने जब अपना कहर ढाया तो सैकड़ों भाई-बहनों के घर तबाह हो गए। उस वक्‍त भाईचारे के प्रेम ने इस जोड़े को उनकी मदद के लिए उभारा। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी, अपना घर बेच दिया और एक पुराना ट्रेलर खरीदकर उसकी मरम्मत करवायी। फिर 1,400 किलोमीटर का सफर तय करके वे लुईज़ियाना राज्य पहुँचे। वे वहाँ एक साल तक रहे और अपना समय, शक्‍ति और सबकुछ भाइयों की मदद के लिए न्यौछावर कर दिया। उनतीस साल का रायन कहता है: “राहत काम में हिस्सा लेने से, मैं परमेश्‍वर के और करीब महसूस करने लगा हूँ। मैंने अपनी आँखों से देखा है कि यहोवा अपने लोगों की कितनी परवाह करता है।” वह आगे कहता है: “तजुरबेकार भाइयों के साथ काम करने से मैंने सीखा कि मैं कैसे दूसरे भाई-बहनों के लिए परवाह दिखा सकता हूँ। मैंने यह भी जाना कि यहोवा के संगठन में हम जवानों के लिए बहुत काम है।” पच्चीस साल की रॉनी कहती है: “मैं बड़ी एहसानमंद हूँ कि मुझे दूसरों की मदद करने का मौका मिला। ऐसी खुशी मुझे ज़िंदगी में पहले कभी नहीं मिली। मुझे यकीन है कि जो बढ़िया अनुभव मैंने हासिल किया है, वह आगे भी मेरे बहुत काम आएगा।”

15. परमेश्‍वर के अनुग्रह के भंडारी की नाईं, सेवा में लगे रहने की हमारे पास कौन-सी बढ़िया वजह हैं?

15 इसमें शक नहीं कि जब हम परमेश्‍वर की आज्ञाएँ मानते हुए खुशखबरी का ऐलान और अपने भाइयों की हौसला-अफज़ाई करते हैं, तो हमें ढेरों आशीषें मिलती हैं। जिन्हें हम मदद देते हैं, वे आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत होते हैं। साथ ही, हम उस खुशी का अनुभव करते हैं, जो देने से मिलती है। (प्रेरि. 20:35) जब कलीसिया के सभी सदस्य एक-दूसरे में सच्ची दिलचस्पी लेते हैं, तो पूरी कलीसिया प्रेम के माहौल में फलती-फूलती है। इतना ही नहीं, आपसी प्यार और अपनापन दिखाने से हमारी पहचान सच्चे मसीही के तौर पर होती है। यीशु ने कहा: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूह. 13:35) जब हम परवाह करनेवाले अपने पिता यहोवा की इच्छा पूरी करते हुए, ज़रूरत की घड़ी में उसके सेवकों की हिम्मत बढ़ाते हैं, तो इससे उसकी महिमा होती है। वाकई हमारे पास ‘परमेश्‍वर के अनुग्रह के भंडारी की नाईं एक दूसरे की सेवा करने’ की क्या ही बढ़िया वजह हैं! तो फिर क्या आप परमेश्‍वर के अनुग्रह के भंडारी के तौर पर सेवा करते रहेंगे?—इब्रानियों 6:10 पढ़िए।

क्या आपको याद है?

• यहोवा अपने सेवकों को किन तरीकों से मज़बूत करता है?

• हमें क्या अनमोल चीज़ सौंपी गयी है?

• हम किन तरीकों से अपने भाई-बहनों की सेवा कर सकते हैं?

• “एक दूसरे की सेवा” में अपने वरदान का इस्तेमाल करते रहने के लिए क्या बात हमें उभारेगी?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीरें]

क्या आप अपने ‘वरदान’ का इस्तेमाल दूसरों की सेवा के लिए करते हैं या अपनी खुशी के लिए?

[पेज 15 पर तसवीरें]

हम दूसरों को खुशखबरी सुनाते हैं और साथी मसीहियों को सहारा देते हैं

[पेज 16 पर तसवीर]

राहत काम करनेवाले आत्म-त्याग की जो भावना दिखाते हैं, उसके लिए वे तारीफ के काबिल हैं