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चेले बनाने के काम में खुशी पाइए

चेले बनाने के काम में खुशी पाइए

चेले बनाने के काम में खुशी पाइए

“इसलिये तुम जाकर . . . चेला बनाओ।”—मत्ती 28:19.

1-3. (क) कई लोग बाइबल अध्ययन कराने पर कैसा महूसस करते हैं? (ख) हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

 अमरीका में रहनेवाली एक बहन, जो हिंदी भाषा बोलनेवाले समूह के साथ संगति करती है, कहती है: “मैं एक पाकिस्तानी परिवार के साथ पिछले 11 हफ्तों से बाइबल अध्ययन कर रही हूँ और मेरा इस परिवार से गहरा नाता जुड़ गया है। लेकिन अब इस खयाल से ही मेरे आँसू छलक पड़ते हैं कि जल्द ही यह परिवार पाकिस्तान लौट जाएगा। हालाँकि मुझे इस बात का बड़ा गम है कि हम बिछड़ जाएँगे, लेकिन उन्हें यहोवा के बारे में सिखाते वक्‍त मुझे जो खुशी मिली, वह मुझे हमेशा याद रहेगी!”

2 इस बहन की तरह क्या आपने भी बाइबल सिखाने में ऐसी ही खुशी का अनुभव किया है? यीशु और उसके पहली सदी के चेलों को इस काम में बहुत खुशी मिली थी। यीशु ने जिन 70 चेलों को तालीम दी थी, जब उन्होंने लौटकर खुशी-खुशी उसे प्रचार काम की रिपोर्ट दी, तो उनकी बात सुनकर यीशु “पवित्र आत्मा [‘पवित्र शक्‍ति,’ NW] में होकर आनन्द से भर गया।” (लूका 10:17-21) आज भी बहुत-से लोग चेले बनाने के काम में वैसी ही खुशी पाते हैं। सन्‌ 2007 में मेहनत करनेवाले खुशदिल प्रचारकों ने हर महीने औसतन 65,00,000 बाइबल अध्ययन चलाए!

3 लेकिन कुछ प्रचारकों को अभी तक बाइबल अध्ययन कराने की यह खुशी नहीं मिली है। और हो सकता है कि कुछ लोगों ने हाल के सालों में एक भी बाइबल अध्ययन नहीं चलाया हो। बाइबल अध्ययन कराने में हमारे सामने कौन-सी चुनौतियाँ आ सकती हैं? हम इनसे कैसे निपट सकते हैं? और जब हम अपना भरसक करके यीशु की इस आज्ञा को मानते हैं कि “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ,” तो हमें कौन-सी आशीषें मिलती हैं?—मत्ती 28:19.

चुनौतियाँ जो हमारी खुशी छीन सकती हैं

4, 5. (क) कुछ देशों में लोग सुसमाचार के लिए कैसा रवैया दिखाते हैं? (ख) कुछ देशों में प्रचारकों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

4 कुछ देशों में लोग हमारे साहित्य को बड़ी खुशी से कबूल करते हैं और बाइबल सीखने के लिए भी एकदम तैयार रहते हैं। ऑस्ट्रेलिया का एक जोड़ा, जो कुछ समय के लिए ज़ाम्बिया में सेवा कर रहा था, उसने लिखा: “ये सिर्फ अफवाहें नहीं हैं। प्रचार के मामले में ज़ाम्बिया वाकई फिरदौस है! और सड़क गवाही का तो कहना क्या! लोग खुद ही हमारे पास आते हैं और उनमें से कुछ तो पत्रिका के खास अंकों की गुज़ारिश करते हैं।” हाल के साल में ज़ाम्बिया के भाई-बहनों ने 2,00,000 से ज़्यादा बाइबल अध्ययन किए यानी हर प्रचारक के पास औसतन एक बाइबल अध्ययन था।

5 हो सकता है, कुछ जगहों में प्रचारकों के लिए साहित्य पेश करना या नियमित रूप से बाइबल अध्ययन कराना मुश्‍किल हो। ऐसा क्यों? क्योंकि जब प्रचारक दरवाज़ा खटखटाते हैं, तो अकसर लोग घर पर नहीं मिलते। और जो मिलते भी हैं, उन्हें धर्म पर चर्चा करने में कोई दिलचस्पी नहीं होती। हो सकता है, उनकी परवरिश ऐसे परिवार में हुई हो, जहाँ कोई सदस्य धर्म में आस्था न रखता हो। या फिर झूठे धर्म की आड़ में हो रहे कपट की वजह से उन्हें धर्म से नफरत हो चुकी हो। कई लोगों ने झूठे चरवाहों से गहरी चोट खायी हो। (मत्ती 9:36) तो लाज़िमी है कि कुछ लोग क्यों बाइबल पर चर्चा करने से हिचकिचाते और डरते हैं।

6. कुछ लोग किन चुनौतियों का सामना करते हैं?

6 कुछ वफादार प्रचारकों के सामने दूसरी तरह की चुनौतियाँ आती हैं, जिनसे उनकी खुशी छिन जाती है। एक वक्‍त था, जब वे चेले बनाने के काम में बहुत जोशीले थे, मगर अब शायद बीमारी या बुढ़ापा उनकी सेवा में रुकावट बन गया हो। कभी-कभी तो हम खुद अपने लिए रुकावट का कारण बन जाते हैं। मसलन, क्या आप बाइबल अध्ययन करने में अपने आपको नाकाबिल समझते हैं? मूसा ने भी ऐसा ही महसूस किया था, जब यहोवा ने उसे फिरौन से जाकर बात करने की आज्ञा दी थी। तब मूसा ने कहा था: “हे मेरे प्रभु, मैं बोलने में निपुण नहीं, न तो पहिले था, और न जब से तू अपने दास से बातें करने लगा।” (निर्ग. 4:10) नाकामी का डर ही, हममें नाकाबिल होने की भावना पैदा करता है। हम शायद यह सोचें कि मैं किसी को चेला बनने में मदद नहीं कर सकता क्योंकि मैं एक बढ़िया शिक्षक नहीं हूँ। और इस डर से शायद हम बाइबल अध्ययन कराने का मौका ही हाथ से जाने दें। हम इन चुनौतियों का सामना कैसे कर सकते हैं?

अपना मन तैयार कीजिए

7. क्या बात यीशु को सेवा करने के लिए उकसाती थी?

7 पहला कदम है, अपना मन तैयार करना। यीशु ने कहा: “जो मन में भरा है वही . . . मुंह पर आता है।” (लूका 6:45) यीशु को दूसरों की भलाई की गहरी चिंता थी और यही बात उसे सेवा करने के लिए उकसाती थी। मिसाल के लिए, जब उसने संगी यहूदियों की आध्यात्मिक हालत देखी, तो उसे उन पर “तरस” आया। उसने अपने चेलों से कहा: “पक्के खेत तो बहुत हैं . . . इसलिये खेत के स्वामी से बिनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिये मजदूर भेज दे।”—मत्ती 9:36-38.

8. (क) हमारे लिए किस बात पर सोचना अच्छा होगा? (ख) एक बाइबल विद्यार्थी की कही बात से हम क्या समझ सकते हैं?

8 जब हम चेला बनाने के काम में हिस्सा लेते हैं, तो इस बात पर गहराई से सोचना अच्छा होगा कि किसी ने हमें भी अपना वक्‍त देकर बाइबल सिखायी, जिससे हमें बहुत फायदा हुआ। इस बारे में भी सोचिए कि प्रचार में मिलनेवाले लोग जब हमारा संदेश सुनेंगे, तो उन्हें कितना फायदा होगा। एक स्त्री ने अपने देश के शाखा दफ्तर को लिखा: “मैं आपको बताना चाहती हूँ कि मैं उन साक्षियों की कितनी एहसानमंद हूँ जो मेरे घर मुझे सिखाने आते हैं। कभी-कभी वे मुझसे ज़रूर परेशान हो जाते होंगे, क्योंकि मैं उनके आगे सवालों की झड़ी लगा देती हूँ और ज़रूरत से ज़्यादा उनका समय ले लेती हूँ। लेकिन वे मेरे साथ बड़े सब्र से काम लेते हैं और उन्होंने जो भी सीखा है, उसे बताने के लिए हरदम तैयार रहते हैं। मैं यहोवा और यीशु की शुक्रगुज़ार हूँ कि मेरी मुलाकात इन साक्षियों से हुई।”

9. यीशु ने किस बात पर अपना पूरा ध्यान लगाया और हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

9 यीशु ने लोगों को सिखाने में बहुत मेहनत की थी, मगर हर किसी ने उसकी शिक्षाओं को कबूल नहीं किया। (मत्ती 23:37) कुछ लोग थोड़े समय तक तो उसके पीछे चले, मगर जब उन्हें उसकी शिक्षा रास नहीं आयी तब ‘उन्होंने उसका साथ छोड़ दिया।’ (यूह. 6:66, बुल्के बाइबिल) लोगों ने चाहे यीशु की शिक्षा को ठुकरा दिया हो, मगर उसने अपने संदेश की अहमियत को कभी कम नहीं आँका। उसके बोए हुए बीजों में से ज़्यादातर बीज अंकुरित नहीं हुए, इसके बावजूद उसने अपने काम पर पूरा ध्यान लगाया। उसने देखा कि खेत पक चुके हैं और उसने खुशी-खुशी कटनी के काम में हाथ बँटाया। (यूहन्‍ना 4:35, 36 पढ़िए।) गेहूँ की बालों के बीच की खाली ज़मीन पर ध्यान देने के बजाय, उसने लहलहाते पक्के खेतों पर ध्यान दिया और देखा कि कटनी का कितना काम बाकी है। क्या हम भी अपने प्रचार के इलाके को उसी नज़र से देखते हैं? आइए जाँचें कि इस मामले में हम कैसे सही रवैया बनाए रख सकते हैं?

कटनी को ध्यान में रखकर बोइए

10, 11. प्रचार में अपनी खुशी बरकरार रखने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

10 एक किसान अच्छी फसल काटने की मंशा से बीज बोता है। उसी तरह, हमें भी बाइबल अध्ययन शुरू करने के इरादे से प्रचार काम करना चाहिए। लेकिन तब क्या, जब प्रचार में जाने पर आपको ज़्यादातर घर बंद मिलते हैं या फिर वापसी भेंट पर लोगों से मुलाकात नहीं हो पाती? इससे आप निराश हो सकते हैं। तो क्या आपको घर-घर प्रचार करना छोड़ देना चाहिए? बेशक नहीं! आज भी ज़्यादातर लोगों को घर-घर के प्रचार के दौरान पहली मुलाकात में सच्चाई मिली है। सच, घर-घर का प्रचार, समय का आज़माया हुआ एक बढ़िया तरीका है।

11 क्या अपनी खुशी बरकरार रखने के लिए आप प्रचार करने के अलग-अलग तरीके आज़मा सकते हैं? मिसाल के लिए, क्या आपने सड़क पर या नौकरी की जगह पर किसी को गवाही देने की कोशिश की है? क्या आप टेलिफोन के ज़रिए लोगों को गवाही दे सकते हैं या फिर जिन्हें आपने राज्य संदेश सुनाया था, क्या आप उनका फोन नंबर ले सकते हैं ताकि बाद में आप उनसे बातचीत जारी रख सकें? इस तरह प्रचार में लगे रहने और अलग-अलग तरीके आज़माने से आप ऐसे लोगों को ढूँढ़ पाएँगे, जो राज्य संदेश में दिलचस्पी लेते हैं।

बेरुखी का सामना करना

12. जब लोग हमारे संदेश में दिलचस्पी नहीं दिखाते, तो हम क्या कर सकते हैं?

12 अगर आपके इलाके में कई लोग धर्म में कोई दिलचस्पी नहीं लेते, तो आप क्या कर सकते हैं? क्या आप उन विषयों पर बात कर सकते हैं, जिनमें लोगों को दिलचस्पी हो? कुरिन्थुस के अपने विश्‍वासी भाइयों को लिखते वक्‍त प्रेरित पौलुस ने कहा: ‘मैं यहूदियों के लिये यहूदी बना। व्यवस्थाहीनों के लिये मैं (जो परमेश्‍वर की व्यवस्था से हीन नहीं हूँ) व्यवस्थाहीन सा बना।’ पौलुस ने ऐसा क्यों किया? वह कहता है: “मैं सब मनुष्यों के लिये सब कुछ बना हूं, कि किसी न किसी रीति से कई एक का उद्धार कराऊं।” (1 कुरि. 9:20-22) क्या हम भी पौलुस की तरह बन सकते हैं? और प्रचार में मिलनेवाले लोगों को जिन बातों में रुचि है, उन्हीं विषयों पर उनसे बात कर सकते हैं? कई लोग धर्म में आस्था तो नहीं रखते, मगर परिवार में आपसी रिश्‍ते मज़बूत बनाने की ख्वाहिश रखते हैं। हो सकता है, वे अपने जीने का मकसद ढूँढ़ रहे हों। क्या हम ऐसे लोगों को राज्य का संदेश, इस तरह पेश कर सकते हैं कि वह उनके दिल को छू जाए?

13, 14. हम चेला बनाने के काम से मिलनेवाली खुशी को कैसे बढ़ा सकते हैं?

13 ऐसे इलाकों में भी जहाँ ज़्यादातर लोग संदेश के लिए बेरुखी दिखाते हैं, बहुत-से प्रचारकों ने चेला बनाने के काम में खुशी पायी है। कैसे? नयी भाषा सीखकर। एक जोड़ा जिनकी उम्र 65 के आस-पास है, उन्होंने देखा कि उनकी कलीसिया के इलाके में हज़ारों चीनी विद्यार्थी और उनके परिवार रहते हैं। पति कहता है: “इन लोगों को गवाही देने की खातिर हमें चीनी भाषा सीखने का बढ़ावा मिला। हालाँकि हर दिन हमें भाषा सीखने में काफी समय बिताना पड़ता था, लेकिन हम अपने इलाके के कई चीनी लोगों को बाइबल अध्ययन करा पाए।”

14 अगर आप किसी वजह से नयी भाषा नहीं सीख सकते, तो आप प्रचार में सब जातियों के लोगों के लिए सुसमाचार पुस्तिका का अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं। आप अपने इलाके में दूसरी भाषा बोलनेवाले जिन लोगों से मिलते हैं, उनकी भाषा के साहित्य अपने पास रख सकते हैं। माना कि दूसरी भाषा और संस्कृति सीखने में काफी मेहनत और समय लगता है, लेकिन परमेश्‍वर के वचन में पाए जानेवाले इस उसूल को कभी मत भूलिए: “जो बहुत बोता है, वह बहुत काटेगा।”—2 कुरि. 9:6.

पूरी कलीसिया का हाथ

15, 16. (क) चेला बनाने के काम में कैसे पूरी कलीसिया का हाथ है? (ख) इसमें हमारे बुज़ुर्गों की क्या भूमिका है?

15 लेकिन चेले बनाने में किसी एक मसीही का हाथ नहीं होता। इसमें पूरी कलीसिया की मेहनत शामिल होती है। ऐसा क्यों कहा जा सकता है? यीशु ने कहा था: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूह. 13:35) यह बात बिलकुल सच है क्योंकि जब एक नया व्यक्‍ति कलीसिया में आता है, तो वह अकसर हमारे बीच प्यार-भरे माहौल को देखकर दंग रह जाता है। एक बाइबल विद्यार्थी ने लिखा: “मुझे सभाओं में जाना बड़ा अच्छा लगता है। वहाँ सभी लोग कितने प्यार से आकर मिलते हैं!” यीशु ने कहा कि जो लोग उसके पीछे हो लेते हैं, उन्हें शायद अपने परिवार के ही सदस्यों से विरोध सहना पड़े। (मत्ती 10:35-37 पढ़िए।) लेकिन उसने यह भी वादा किया कि कलीसिया में उन्हें इनके बदले बहुत-से ‘भाई और बहिन और माता और लड़के-बाले’ मिलेंगे।—मर. 10:30.

16 बाइबल विद्यार्थियों की तरक्की में खासकर हमारे बुज़ुर्ग भाई-बहन एक अहम भूमिका निभाते हैं। वह कैसे? भले ही हमारे कुछ बुज़ुर्ग भाई-बहन बाइबल अध्ययन नहीं करा पाते, मगर कलीसिया में उनके हौसला बढ़ानेवाले जवाबों से सभी का विश्‍वास मज़बूत होता है। “धर्म के मार्ग पर चलने” के उनके रिकॉर्ड से कलीसिया की खूबसूरती में चार चाँद लग जाते हैं और इससे सच्चे दिल के लोग परमेश्‍वर के संगठन में खिंचे चले आते हैं।—नीति. 16:31.

डर पर काबू पाना

17. हम नाकाबिल होने की भावना का सामना कैसे कर सकते हैं?

17 अगर आप नाकाबिल होने की भावना से जूझ रहे हैं, तो आप क्या कर सकते हैं? याद कीजिए, यहोवा ने किस तरह मूसा की मदद की थी। उसने उसे पवित्र शक्‍ति दी थी और उसके भाई हारून को उसका साथी बनाया था। (निर्ग. 4:10-17) यीशु ने भी वादा किया है कि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति गवाही देने के काम में हमारी मदद करेगी। (प्रेरि. 1:8) इसके अलावा, यीशु ने चेलों को प्रचार में दो-दो करके भेजा था। (लूका 10:1) अगर आप भी बाइबल अध्ययन कराना मुश्‍किल पाते हैं, तो परमेश्‍वर से पवित्र शक्‍ति के लिए प्रार्थना कीजिए कि वह आपको बुद्धि दे। और ऐसे मसीही के साथ प्रचार में जाइए, जो आपकी हिम्मत बढ़ा सके और जिसके अनुभव से आपको फायदा हो। इस बात को याद करने से वाकई हमारा विश्‍वास मज़बूत होता है कि यहोवा ने अपना महान काम पूरा कराने के लिए “जगत के निर्बलों” यानी हम जैसे साधारण इंसानों को चुना है।—1 कुरि. 1:26-29.

18. हम नाकामी की भावना पर काबू कैसे पा सकते हैं?

18 हम नाकामी की भावना पर कैसे काबू पा सकते हैं? याद रखिए, चेले बनाने का काम, खाना पकाने की तरह नहीं है। खाना ज़ायकेदार बनेगा या नहीं, इसका पूरा दारोमदार खाना पकानेवाले पर होता है। जबकि चेले बनाने के काम में तीन की भागीदारी होती है। सबसे बड़ा भाग यहोवा अदा करता है, वही एक इंसान को सच्चाई की तरफ खींचता है। (यूह. 6:44) हम और दूसरे भाई-बहन बाइबल सिखाने की कला का अच्छा इस्तेमाल करके विद्यार्थी की तरक्की में अपना भाग अदा करते हैं। (2 तीमुथियुस 2:15 पढ़िए।) इसके अलावा, बाइबल विद्यार्थी सीखी हुई बातों पर अमल करके खुद का भाग अदा करता है। (मत्ती 7:24-27) जब एक व्यक्‍ति बाइबल सीखना बंद कर देता है, तो शायद हमें दुख हो, क्योंकि हम चाहते हैं कि बाइबल विद्यार्थी सही चुनाव करे। लेकिन हमें यह भी याद रखना है कि हरेक “परमेश्‍वर को अपना अपना लेखा देगा।”—रोमि. 14:12.

फायदे क्या हैं?

19-21. (क) बाइबल अध्ययन कराने के क्या फायदे होते हैं? (ख) प्रचार काम में हिस्सा लेनेवालों को यहोवा किस नज़र से देखता है?

19 बाइबल अध्ययन कराने से, हमारा पूरा ध्यान पहले राज्य की खोज करने में लगा रहता है। साथ ही, परमेश्‍वर के वचन में बतायी सच्चाइयाँ हमारे दिलो-दिमाग में गहराई से बैठ जाती हैं। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? बाराक नाम का एक पायनियर कहता है: “दूसरों के साथ बाइबल अध्ययन करना, हमें बाइबल का अच्छा विद्यार्थी होने के लिए विवश करता है। मैंने देखा है कि जब तक मुझे खुद किसी शिक्षा पर पूरा यकीन नहीं होता, मुझे उसे दूसरों को सिखाना मुश्‍किल लगता है।”

20 अगर आप बाइबल अध्ययन नहीं चला रहे हैं, तो क्या इसका मतलब है कि आपकी सेवा का परमेश्‍वर की नज़रों में कोई मोल नहीं? ऐसा कभी मत सोचिए! यहोवा की महिमा करने के लिए आप जो भी मेहनत करते हैं, वह उसकी तहेदिल से कदर करता है। बेशक प्रचार काम में हिस्सा लेनेवाले सभी मसीही, “परमेश्‍वर के सहकर्मी हैं।” लेकिन हाँ, बाइबल अध्ययन कराने से हमारी खुशी दुगनी हो जाती है। क्योंकि हम देखते हैं कि यहोवा कैसे उन बीज़ों को बढ़ा रहा है, जिन्हें हमने बोया था। (1 कुरि. 3:6, 9) एमी नाम की एक पायनियर कहती है, “जब हम अपने बाइबल विद्यार्थी को तरक्की करते देखते हैं, तो हमारा दिल यहोवा के लिए एहसान से भर जाता है। हमें इस बात की खुशी होती है कि एक व्यक्‍ति को यहोवा के बारे में सिखाने और अनंत जीवन की आशा का बेहतरीन तोहफा देने के लिए उसने हमें चुना है।”

21 बाइबल अध्ययन शुरू करने और चलाने में जब हम अपना भरसक करते हैं, तो हमें कई फायदे होते हैं। हमें आज परमेश्‍वर की सेवा में अपना पूरा ध्यान लगाने में मदद मिलती है, साथ ही आनेवाली नयी दुनिया में जीने की हमारी आशा और भी पक्की होती है। इतना ही नहीं, यहोवा की मदद से हम उन्हें भी उद्धार पाने में मदद दे पाते हैं, जो हमारी सुनते हैं। (1 तीमुथियुस 4:16 पढ़िए।) खुशी की इससे बड़ी वजह और क्या हो सकती है?

क्या आपको याद है?

• कौन-सी चुनौतियाँ बाइबल अध्ययन कराने में रुकावट बन सकती हैं?

• अगर हमारे इलाके में ज़्यादातर लोग बेरुखी से पेश आते हैं, तो हम क्या कर सकते हैं?

• बाइबल अध्ययन कराने के क्या फायदे हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीरें]

सच्चे दिल के लोगों को ढूँढ़ने के लिए क्या आप प्रचार के अलग-अलग तरीके आज़माते हैं?