मिशनरियों को यिर्मयाह की तरह बनने का बढ़ावा दिया गया
125वाँ गिलियड ग्रेजुएशन
मिशनरियों को यिर्मयाह की तरह बनने का बढ़ावा दिया गया
“गिलियड की यह क्लास बहुत यादगार रहेगी।” यह बात शासी निकाय के सदस्य, भाई जैफरी जैकसन ने वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की 125वीं क्लास के ग्रेजुएशन के मौके पर हाज़िर 6,156 लोगों से कही। यह कार्यक्रम 13 सितंबर, 2008 को हुआ। इस क्लास में 56 लोग ग्रेजुएट हुए और इनको मिलाकर गिलियड स्कूल ने अब तक 8,000 से भी ज़्यादा मिशनरियों को “पृथ्वी की छोर तक” भेजा है।—प्रेरि. 1:8.
भाई जैकसन ग्रेजुएशन कार्यक्रम के सभापति थे। उन्होंने यह सवाल पूछा, “क्या लोगों का भरोसा जीतने से आप अपनी सेवा को बेहतर बना सकते हैं?” उसके बाद उन्होंने वे चार बातें बतायीं, जिससे लोगों का भरोसा जीता जा सकता है: सही रवैया होना, अच्छी मिसाल रखना, सारी बातें परमेश्वर के वचन से सिखाना और यहोवा का नाम ऐलान करने पर ध्यान देना।
शिक्षा समिति में सेवा करनेवाले भाई डेविड शेफर ने इस विषय पर चर्चा की: “क्या आप सबकुछ समझेंगे?” भाई ने ग्रेजुएट भाई-बहनों को यकीन दिलाया कि अगर वे यहोवा को ढूँढ़ते रहें और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के अधिकार को नम्रता से कबूल करते रहें, तो वे ‘सबकुछ समझ’ पाएँगे। दूसरे शब्दों में कहें तो एक अच्छा मिशनरी बनने के लिए जो बातें ज़रूरी हैं, उन्हें वे अच्छी तरह समझ पाएँगे।—नीति. 28:5; मत्ती 24:45.
इसके बाद, शासी निकाय के सदस्य भाई जॉन ई. बार ने इस विषय पर भाषण दिया: “परमेश्वर के प्रेम से कोई आपको अलग न कर पाए।” भाई बार ने एक पिता की तरह ग्रेजुएट भाई-बहनों और उनके माता-पिताओं को प्यार-भरी सलाह दी। इससे मिशनरी सेवा में आनेवाली चुनौतियों को लेकर उनके दिल में जो भी डर और चिंता थी, वह दूर हो गयी। भाई बार ने समझाया: “परमेश्वर के प्यार में बने रहना ही सबसे सुरक्षित और बेहतरीन जगह है।” उन्होंने बताया कि जब तक खुद मिशनरी न चाहें, तब तक कोई उन्हें परमेश्वर के प्यार से अलग नहीं कर सकता।
पैटरसन में (बाइबल) स्कूलों की निगरानी करनेवाले विभाग के भाई सैम रॉबरसन ने हाज़िर लोगों को “सबसे उम्दा किस्म के कपड़े” पहनने के लिए उकसाया। यीशु ने जो-जो काम किए, उनके बारे में अध्ययन करने और यीशु की मिसाल पर चलने से ग्रेजुएट भाई-बहन “प्रभु यीशु मसीह को पहिन” सकते हैं। (रोमि. 13:14) इसके बाद, (बाइबल) स्कूलों की निगरानी करनेवाले विभाग के अध्यक्ष, भाई विलियम सैमुएलसन ने भाषण दिया। उन्होंने बताया कि एक व्यक्ति तभी सही मायने में आदर के योग्य बनता है, जब वह परमेश्वर की नज़र में आदर के योग्य हो, न कि इंसान की नज़र में।
गिलियड स्कूल के दौरान ग्रेजुएट भाई-बहनों को प्रचार में कई अनुभव मिले। इस बारे में स्कूल के एक शिक्षक, भाई माइकल बरनेट ने इन भाई-बहनों का इंटरव्यू लिया। हालाँकि ज़्यादातर विद्यार्थियों को पैटरसन, न्यू यॉर्क के ऐसे इलाकों में भेजा गया था, जहाँ अकसर प्रचार होता है, लेकिन तब भी उन्हें दिलचस्पी दिखानेवाले कई लोग मिले। फिर, अधिवेशन विभाग के भाई जेरल्ड ग्रिज़ल ने तीन भाइयों का इंटरव्यू लिया जो वहाँ शाखा समिति के सदस्यों के लिए रखे स्कूल में तालीम पाने आए थे। उनकी बातों ने ग्रेजुएट भाई-बहनों को अपनी आनेवाली सेवा के लिए मज़बूत किया।
शासी निकाय के सदस्य और 42वीं क्लास के ग्रेजुएट, भाई डेविड स्प्लेन ने इस विषय पर भाषण दिया, “यिर्मयाह की तरह यिर्म. 1:7, 8) नए मिशनरियों के लिए भी परमेश्वर ऐसा करेगा। भाई स्प्लेन ने कहा: “अगर आपकी किसी से नहीं बनती है, तो उस व्यक्ति की दस खूबियाँ लिखिए। अगर आप दस खूबियाँ नहीं सोच पाते, तो इसका मतलब है कि आपको उसे और भी अच्छी तरह जानने की ज़रूरत है।”
बनिए।” हालाँकि यिर्मयाह को जो काम सौंपा गया था, उसे करने में वह डर महसूस कर रहा था, लेकिन यहोवा ने उसे हिम्मत दी। (यिर्मयाह ने त्याग की भावना दिखायी थी। और जब उसे लगने लगा कि अब वह यहोवा की सेवा नहीं कर सकता, तब उसने प्रार्थना की और यहोवा ने उसकी हिम्मत बँधायी। (यिर्म. 20:11) भाई स्प्लेन ने कहा, “जब आपकी हिम्मत जवाब देने लगे, तब यहोवा से इस बारे में बात कीजिए। आपको यह देखकर ताज्जुब होगा कि वह किस तरह आपकी मदद करता है।”
ग्रेजुएशन कार्यक्रम के आखिर में, सभापति ने हाज़िर लोगों को याद दिलाया कि ग्रेजुएट भाई-बहनों ने लोगों का भरोसा जीतने के कई तरीके सीखे हैं। और जब लोग देखेंगे कि वे मिशनरियों पर भरोसा कर सकते हैं, तो मिशनरियों का संदेश और भी दमदार हो जाएगा।—यशा. 43:8-12.
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क्लास के आँकड़े
जितने देशों से विद्यार्थी आए: 6
जितने देशों में भेजे गए: 21
विद्यार्थियों की संख्या: 56
औसत उम्र: 32.9
सच्चाई में बिताए औसत साल: 17.4
पूरे समय की सेवा में बिताए औसत साल: 13
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वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की 125वीं क्लास
नीचे दी गयी लिस्ट में, पंक्तियों का क्रम आगे से पीछे की ओर है और हर पंक्ति में नाम बाएँ से दाएँ दिए गए हैं।
(1) हॉजसन, ए.; वॉल, ए.; बीरेंस, के.; हॉर्टलानो, एम.; नूमन, एल.; डिकासो, ए. (2) जेन्गकंज़, जे.; जारज़ेमस्की, टी.; मेनडेस, एन.; कोरोना, वी.; कानालीटा, एल. (3) फ्रायर, एच.; साविज, एम.; टिडवेल, के.; एरिकसन, एन.; डिक, ई.; मकबेथ, आर. (4) पेरेज़, एल.; प्यूज़, एल.; स्किडमॉर, ए.; यंग, बी.; मकब्राइड, एन.; रॉनडॉन, पी.; गुडमैन, ई. (5) बीरेंस, एम.; फरगसन, जे.; पिरसन, एन.; चैपमन, एल.; वॉरडल, जे.; कानालीटा, एम. (6) पेरेज़, पी.; डिकासो, डी.; यंग, टी.; रॉनडॉन, डी.; गुडमैन, जी.; जेन्गकंज़, एम.; डिक, जी. (7) कोरोना, एम.; वॉल, आर.; प्यूज़, एस.; मेनडेस, एफ.; जारज़ेमस्की, एस.; साविज, टी. (8) नूमन, सी.; फरगसन, डी.; स्किडमॉर, डी.; एरिकसन, टी.; मकब्राइड, जे.; पिरसन, एम.; चैपमन, एम. (9) हॉजसन, के.; वॉरडल, ए.; मकबेथ, ए.; टिडवेल, टी.; फ्रायर, जे.; हॉर्टलानो, जे.