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यहोवा को कभी मत भूलिए

यहोवा को कभी मत भूलिए

यहोवा को कभी मत भूलिए

कुछ इसराएलियों के लिए यह नयी बात नहीं थी। मगर ज़्यादातर इसराएलियों के लिए यह एक नया और अनोखा अनुभव था। उन्हें पैदल चलकर एक नदी पार करनी थी, वह भी बिना भीगे! यहोवा ने यरदन नदी का पानी रोक दिया और देखते-ही-देखते नदी का पानी सूख गया। फिर क्या था, लाखों की तादाद में इसराएली नदी पार करके वादा किए देश में दाखिल हो गए। चालीस साल पहले लाल सागर पार करनेवाले अपने पुरखों की तरह इन इसराएलियों ने भी यही सोचा होगा: ‘यहोवा के इस चमत्कार को मैं कभी नहीं भूलूँगा।’—यहो. 3:13-17.

लेकिन यहोवा जानता था कि कुछ इसराएली “शीघ्र ही उसके कामों को भूल” जाएँगे। (भज. 106:13, NHT) इसलिए उसने इसराएल के अगुवे यहोशू को आज्ञा दी कि वह नदी के तल से 12 पत्थर लेकर उन्हें उस जगह खड़ा करे, जहाँ इसराएली अपना अगला पड़ाव डालेंगे। इससे क्या होता? यहोशू समझाता है: “वे पत्थर इस्राएल को सदा के लिये स्मरण दिलानेवाले ठहरेंगे।” (यहो. 4:1-8) पत्थरों से बना यह स्मारक, इसराएल जाति को यहोवा के महान कामों की याद दिलाता रहता। साथ ही, उनके मन में यह बात बिठाता कि यहोवा की वफादारी से सेवा करना कितना ज़रूरी है।

हज़ारों साल पहले का यह ब्यौरा क्या आज परमेश्‍वर के लोगों के लिए कोई मायने रखता है? बिलकुल। इससे हम सीखते हैं कि हमें भी यहोवा को कभी नहीं भूलना चाहिए और हमेशा वफादारी से उसकी सेवा करनी चाहिए। इसराएल जाति को दी दूसरी चेतावनियाँ भी आज यहोवा के सेवकों पर लागू होती हैं। मूसा की कही बात लीजिए: ‘सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि अपने परमेश्‍वर यहोवा को भूलकर उसकी आज्ञा, नियम, और विधि मानना छोड़ दो।’ (व्यव. 8:11) यह दिखाता है कि यहोवा को भूलने से एक इंसान उसकी आज्ञाएँ मानना छोड़ सकता है। हमारे सामने भी ऐसा ही खतरा है। इसी खतरे के बारे में प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को बताया कि कैसे इसराएलियों ने वीराने में परमेश्‍वर की आज्ञा मानना छोड़ दिया था। पौलुस ने मसीहियों को ‘उन की नाईं आज्ञा न मानने’ से खबरदार किया।—इब्रा. 4:8-11.

आइए हम इसराएलियों के इतिहास की चंद घटनाओं पर गौर करें, जो इस बात पर ज़ोर देती हैं कि हमें परमेश्‍वर को कभी नहीं भूलना चाहिए। इसके अलावा, हम दो वफादार इसराएलियों की मिसाल पर भी गौर करेंगे। और उनसे यह सीखेंगे कि हम कैसे यहोवा की सेवा धीरज के साथ और एहसान-भरे दिल से कर सकते हैं।

यहोवा को याद रखने की वजह

इसराएली जितने साल मिस्र में गुलाम थे, यहोवा उन्हें कभी नहीं भूला। उसने “अपनी वाचा को, जो उस ने इब्राहीम, और इसहाक, और याकूब के साथ बान्धी थी, स्मरण किया।” (निर्ग. 2:23, 24) यहोवा ने उन्हें गुलामी से छुड़ाने के लिए जो बड़े-बड़े काम किए, वे सचमुच भुलाए नहीं जा सकते।

यहोवा पहले तो मिस्र पर नौ विपत्तियाँ लाया। इन्हें रोकने के लिए फिरौन के जादूगरों का कोई ज़ोर न चला। फिर भी, फिरौन ने परमेश्‍वर की आज्ञा नहीं मानी और इसराएलियों को जाने नहीं दिया। (निर्ग. 7:14–10:29) मगर दसवीं विपत्ति ने उस मगरूर राजा को परमेश्‍वर की मरज़ी के आगे घुटने टेकने को मजबूर कर दिया। (निर्ग. 11:1-10; 12:12) मूसा की अगुवाई में इसराएल जाति और एक मिली-जुली भीड़ यानी करीब 30 लाख लोग मिस्र से निकल पड़े। (निर्ग. 12:37, 38) वे अभी ज़्यादा दूर जा भी नहीं पाए थे कि फिरौन का मन बदल गया। उसने अपने रथसवारों और घुड़सवारों को हुक्म दिया कि वे गुलामों को वापस पकड़ लाएँ। उस समय फिरौन की सेना धरती की सबसे ताकतवर सेना थी। इस बीच मूसा यहोवा के कहे मुताबिक इसराएलियों को उस जगह ले आया, जहाँ एक तरफ लाल सागर था तो दूसरी तरफ ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ। इस जगह को पीहाहिरोत कहा जाता था, जहाँ आकर शायद इसराएलियों को लगा कि वे बुरी तरह फँस गए हैं।—निर्ग. 14:1-9.

फिरौन ने सोचा कि अब इसराएली मेरे हाथ से नहीं बच सकते और वह अपनी सेना के साथ उन पर हमला बोलने के लिए तैयार था। मगर यहोवा ने मिस्रियों और इसराएलियों के बीच दिन के वक्‍त बादल का खंभा और रात के वक्‍त आग का खंभा खड़ा कर दिया, जिससे मिस्री सेना आगे न बढ़ सकी। फिर परमेश्‍वर ने लाल सागर को दो भागों में बाँटकर बीच में से रास्ता बना दिया। इसके दोनों तरफ पानी दीवार की तरह खड़ा हो गया, जिसकी ऊँचाई 50 फुट रही होगी। इसराएली सूखी ज़मीन पर चलकर समुंदर पार करने लगे। जब तक मिस्री लाल सागर के किनारे पहुँचे, उन्होंने देखा कि इसराएली दूसरे किनारे पहुँचनेवाले हैं।—निर्ग. 13:21; 14:10-22.

फिरौन की जगह अगर कोई और राजा होता, तो वह उसी समय इसराएलियों का पीछा करना छोड़ देता, मगर मगरूर फिरौन को ऐसा मंज़ूर कहाँ। उसे खुद पर कुछ ज़्यादा ही भरोसा था, इसलिए उसने अपनी सेना को समुद्र में उतरने का हुक्म दिया। मिस्री बेतहाशा इसराएलियों का पीछा करने लगे। लेकिन इससे पहले कि वे उन्हें धर-दबोचते यहोवा ने उनके रथों के पहिए निकाल दिए जिससे उनका आगे बढ़ना मुश्‍किल हो गया।—निर्ग. 14:23-25; 15:9.

मिस्री अपने टूटे-फूटे रथों में उलझे हुए थे कि सभी इसराएली लाल सागर के पूर्वी तट पर पहुँच गए। तब मूसा ने अपना हाथ लाल सागर की तरफ बढ़ाया। इस पर यहोवा ने पानी की दीवारें ढा दी। कई गैलन पानी गर्जन करते हुए फिरौन और उसके सैनिकों पर टूट पड़ा और उन्हें ले डूबा। एक भी दुश्‍मन ज़िंदा नहीं बचा। इसराएली अब आज़ाद थे!—निर्ग. 14:26-28; भज. 136:13-15.

इस घटना से आस-पास के देशों में इसराएलियों का खौफ लंबे समय तक बना रहा। (निर्ग. 15:14-16) इसके 40 साल बाद यरीहो की रहनेवाली राहाब ने दो इसराएली पुरुषों से कहा: “तुम्हारा भय हम लोगों के मन में समाया है, . . . क्योंकि हम ने सुना है कि यहोवा ने तुम्हारे मिस्र से निकलने के समय तुम्हारे साम्हने लाल समुद्र का जल सुखा दिया।” (यहो. 2:9, 10) यहोवा ने जिस तरह अपने लोगों को छुड़ाया, जब यह बात विधर्मी देश के लोग नहीं भूले, तो इसराएलियों को और भी नहीं भूलना चाहिए था।

‘अपनी आँखों की पुतली के समान उनकी सुरक्षा की’

इसराएली लाल सागर पार करने के बाद सीनै नाम के वीराने में पहुँचे। यह एक ‘बड़ा और भयानक जंगल’ था। आगे बढ़ने पर उन्होंने पाया कि यह तो ‘जलरहित सूखा देश’ है और यहाँ इतनी बड़ी भीड़ के लिए खाना भी नहीं है। लेकिन यहोवा उन्हें सँभाले रहा। उस समय को याद करते हुए मूसा ने कहा: “[यहोवा] ने [इसराएल को] जंगल में, वरन्‌ पशुओं के चीत्कार से भरी वीरान मरुभूमि में पाया। उसने उसके चारों ओर रहकर उसे सम्भाला और अपनी आँखों की पुतली के समान उसकी सुरक्षा की।” (व्यव. 8:15; 32:10, NHT) परमेश्‍वर ने इसराएलियों को किस तरह सँभाला?

यहोवा ने चमत्कार करके “आकाश से” मन्‍ना नाम की “भोजन वस्तु” बरसायी, जिसे इसराएली “जंगल की भूमि पर” से उठाते थे। (निर्ग. 16:4, 14, 15, 35) और उसने “चकमक की चट्टान से” उनके लिए पानी भी निकाला। वीराने में 40 सालों के दौरान, यहोवा की आशीष से न तो उनके कपड़े पुराने हुए और न कभी उनके पैरों में छाले पड़े। (व्यव. 8:4) बदले में क्या यहोवा का उनसे यह उम्मीद करना सही नहीं था कि वे उसके आभारी रहें? मूसा ने इसराएलियों से कहा: “तुम अपने विषय में सचेत रहो, और अपने मन की बड़ी चौकसी करो, कहीं ऐसा न हो कि जो जो बातें तुम ने अपनी आंखों से देखीं उनको भूल जाओ, और वह जीवन भर के लिये तुम्हारे मन से जाती रहे।” (व्यव. 4:9) अगर इसराएली यहोवा के उद्धार के कामों को याद करते और उनके लिए एहसानमंद रहते, तो वे हमेशा उसकी सेवा करते और उसके नियमों का पालन करते। लेकिन क्या इसराएलियों ने ऐसा किया?

यहोवा को भूल गए, एहसानफरामोश बन गए

मूसा ने इसराएलियों से कहा: “जिस चट्टान से तू उत्पन्‍न हुआ उसको तू भूल गया, और ईश्‍वर जिस से तेरी उत्पत्ति हुई उसको भी तू भूल गया है।” (व्यव. 32:18) यहोवा ने लाल सागर के पास जो करिश्‍मा किया, वीराने में जो चीज़ें मुहैया करायी और जितने उपकार किए, उन्हें इसराएलियों ने या तो नज़रअंदाज़ कर दिया या उन्हें भुला दिया। वे बागी बन गए।

एक मौके पर जब इसराएलियों को पीने के लिए पानी नहीं मिला, तो वे मूसा को भला-बुरा कहने लगे। (गिन. 20:2-5) और जिस मन्‍ना की बदौलत वे ज़िंदा थे, उसके बारे में वे शिकायत करने लगे: “हमारे प्राण इस निकम्मी रोटी से दुखित हैं।” (गिन. 21:5) यहाँ तक कि परमेश्‍वर ने उन्हें मिस्र से निकाल लाने का जो फैसला किया था, उस पर भी उन्होंने उँगली उठायी और मूसा को अगुवा मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा: “काश, हम मिस्र में या इस जंगल में ही मर जाते! . . . आओ हम अपने लिए अगुवा नियुक्‍त करें और मिस्र को लौट चलें।”—गिन. 14:2-4, NHT.

इसराएलियों का बगावती रवैया देखकर यहोवा को कैसा महसूस हुआ? इन घटनाओं को याद करते हुए एक भजनहार ने लिखा: “उन्हों ने कितनी ही बार जंगल में उस से बलवा किया, और निर्जल देश में उसको उदास किया! वे बारबार ईश्‍वर की परीक्षा करते थे, और इस्राएल के पवित्र को खेदित करते थे। उन्हों ने न तो उसका भुजबल स्मरण किया, न वह दिन जब उस ने उनको द्रोही के वश से छुड़ाया था; कि उस ने क्योंकर अपने चिन्ह मिस्र में, . . . किए थे।” (भज. 78:40-43) जी हाँ, यहोवा को यह देखकर गहरी चोट पहुँची कि इसराएली उसे और उसके सारे एहसानों को भूल गए।

दो इसराएली, जो यहोवा को नहीं भूले

लेकिन कुछ इसराएली यहोवा को नहीं भूले। उनमें से दो थे, यहोशू और कालेब। वे उन 12 जासूसों में से थे, जिन्हें कादेशबर्ने से वादा किए देश का भेद लेने के लिए भेजा गया था। दस जासूसों ने बुरी खबर दी जिससे सबकी हिम्मत टूट गयी, जबकि यहोशू और कालेब ने लोगों से कहा: “जिस देश का भेद लेने को हम इधर उधर घूम कर आए हैं, वह अत्यन्त उत्तम देश है। यदि यहोवा हम से प्रसन्‍न हो, तो हम को उस देश में, जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, पहुंचाकर उसे हमें दे देगा। केवल इतना करो कि तुम यहोवा के विरुद्ध बलवा न करो।” उनकी यह बात सुनकर इसराएली, यहोशू और कालेब पर पत्थरवाह करने की सोचने लगे। लेकिन वे दोनों यहोवा पर भरोसा करते हुए दृढ़ खड़े रहे।—गिन. 14:6-10.

कई साल बाद कालेब ने यहोशू से कहा: “यहोवा के दास मूसा ने मुझे इस देश का भेद लेने के लिये कादेशबर्ने से भेजा था . . . और मैं सच्चे मन से उसके पास सन्देश ले आया। और मेरे साथी जो मेरे संग गए थे उन्हों ने तो प्रजा के लोगों का मन निराश कर दिया, परन्तु मैं ने अपने परमेश्‍वर यहोवा की पूरी रीति से बात मानी।” (यहो. 14:6-8) कालेब और यहोशू पर कई तरह की मुश्‍किलें आयीं, लेकिन परमेश्‍वर पर भरोसा रखने की वजह से वे उनका सामना कर पाए। उन्होंने ठान लिया था कि चाहे जो हो जाए वे यहोवा को कभी नहीं भूलेंगे।

यहोवा पर भरोसा रखने के अलावा, कालेब और यहोशू ने एहसानमंदी की भावना भी दिखायी। वे जानते थे कि यहोवा ने अपने लोगों को एक फलते-फूलते देश में लाकर अपना वादा पूरा किया था। जी हाँ, इसराएलियों के पास यहोवा के एहसानमंद होने की हर वजह थी। वे ज़िंदा थे, तो सिर्फ उसी की बदौलत। यहोशू ने लिखा: “यहोवा ने इस्राएलियों को वह सारा देश दिया, जिसे उस ने उनके पूर्वजों से शपथ खाकर देने को कहा था; . . . जितनी भलाई की बातें यहोवा ने इस्राएल के घराने से कही थीं उन में से कोई बात भी न छूटी; सब की सब पूरी हुई।” (यहो. 21:43, 45) कालेब और यहोशू की तरह आज हम यहोवा के लिए एहसानमंदी कैसे दिखा सकते हैं?

यहोवा के शुक्रगुज़ार रहिए

एक मौके पर परमेश्‍वर का भय माननेवाले एक आदमी ने पूछा: “यहोवा ने मेरे [लिए] जितने उपकार किए हैं, उनका बदला मैं उसको क्या दूं?” (भज. 116:12) परमेश्‍वर ने हमारे लिए कितना कुछ किया है। उसने हमारे खाने-पहनने, हमें मार्गदर्शन देने और भविष्य में हमारे उद्धार का इंतज़ाम किया है। यहोवा का हम पर इतना एहसान है कि उसे चुकाने के लिए हमेशा की ज़िंदगी भी कम पड़ेगी। दरअसल देखा जाए तो हम उसके एहसानों का बदला कभी नहीं चुका सकते। लेकिन हाँ, हम उसके शुक्रगुज़ार ज़रूर बने रह सकते हैं।

क्या यहोवा की दी सलाह ने आपको समस्याओं से बचाया है? यहोवा माफ करनेवाला परमेश्‍वर है, क्या इस बात से आपको दोबारा शुद्ध विवेक पाने में मदद मिली है? परमेश्‍वर के इन उपकारों से हमें लंबे समय तक फायदा मिलता रहेगा, इसलिए हमें हमेशा उसका एहसान मानना चाहिए। चौदह साल की सैंड्रा को गंभीर समस्याओं ने आ घेरा था, लेकिन यहोवा की मदद से वह उन समस्याओं से उबर सकी। वह कहती है: “मैंने यहोवा से प्रार्थना में मदद माँगी और जिस तरह उसने मेरी मदद की, मान गए उसे! अब मैं समझी कि क्यों पापा अकसर मुझे नीतिवचन 3:5, 6 में लिखी बातें बताते थे: ‘तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।’ मुझे पक्का यकीन है कि अब तक यहोवा ने जिस तरह मेरी मदद की है, आगे भी करता रहेगा।”

धीरज धरकर दिखाइए कि आप यहोवा को याद रखते हैं

यहोवा को याद रखने के लिए एक और गुण ज़रूरी है। इस बारे में बाइबल बताती है: “धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे।” (याकू. 1:4) “पूरे और सिद्ध” होने में क्या शामिल है? इसमें ऐसे गुण बढ़ाना शामिल है, जो हमें परीक्षाओं के वक्‍त यहोवा पर भरोसा रखने और हार न मानने की हिम्मत दें। अगर हम ऐसा धीरज दिखाएँ, तो विश्‍वास की परीक्षा खत्म होने पर हमें बहुत संतोष मिलेगा। और यकीन मानिए, हर परीक्षा का अंत होता है।—1 कुरि. 10:13.

एक भाई की मिसाल लीजिए जो लंबे अरसे से यहोवा की सेवा करता आया है। उसे गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ा है। वह बताता है कि क्या बात उसे धीरज धरने में मदद देती है: “मैं अपने बारे में सोचने से ज़्यादा यहोवा के कामों के बारे में सोचने की कोशिश करता हूँ। यहोवा के वफादार रहने का मतलब है, उसके मकसद पर अपनी आँखें टिकाए रखना, न कि अपनी इच्छाओं या अरमानों पर। जब मैं मुश्‍किलों से गुज़रता हूँ, तो मैं यह नहीं कहता, ‘हे यहोवा, मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है?’ इसके बजाय, मैं यहोवा की सेवा करते जाता हूँ और उससे लिपटा रहता हूँ। तब भी, जब मेरी ज़िंदगी में अचानक कोई मुसीबत आती है।”

आज सच्चे मसीही यहोवा की उपासना ‘पवित्र शक्‍ति और सच्चाई से’ करते हैं। (यूह. 4:23, 24, NW) एक समूह के तौर पर वे यहोवा को भूलने की गलती कभी नहीं करेंगे, जैसी गलती इसराएल जाति ने की थी। लेकिन कलीसिया का हिस्सा होना इस बात की गारंटी नहीं कि हम निजी तौर पर परमेश्‍वर के वफादार बने रहेंगे। कालेब और यहोशू की तरह हममें से हरेक को एहसानमंदी की भावना दिखानी चाहिए और धीरज धरते हुए परमेश्‍वर की सेवा करनी चाहिए। और ऐसा करना सही भी है, क्योंकि इस कठिन समय में यहोवा लगातार हमें सही राह दिखाता है और हमारी देखभाल करता है।

यहोशू ने पत्थरों का जो स्मारक खड़ा किया, वह इसराएलियों को यहोवा के महान कामों की याद दिलाता था। उसी तरह, यहोवा के उद्धार के कामों का रिकॉर्ड आज हमारा भरोसा बढ़ाता है कि वह अपने लोगों को कभी नहीं छोड़ेगा। ऐसा हो कि आप भी भजनहार के जैसा जज़्बा रखें, जिसने लिखा: “मैं याह के बड़े कामों की चर्चा करूंगा; निश्‍चय मैं तेरे प्राचीनकालवाले अद्‌भुत कामों को स्मरण करूंगा। मैं तेरे सब कामों पर ध्यान करूंगा, और तेरे बड़े कामों को सोचूंगा।”—भज. 77:11, 12.

[पेज 7 पर तसवीर]

पूरी इसराएल जाति को एक “सूखे देश” में सफर करना था

[चित्र का श्रेय]

Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.

[पेज 8 पर तसवीर]

जब इसराएली कादेशबर्ने में थे, तब जासूसों को वादा किए देश में भेजा गया

[चित्र का श्रेय]

Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.

[पेज 9 पर तसवीर]

वीराने में कई साल बिताने के बाद, इसराएली फलते-फूलते देश के लिए सचमुच शुक्रगुज़ार हो सकते थे

[चित्र का श्रेय]

Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.

[पेज 10 पर तसवीर]

यहोवा के मकसद पर अपनी आँखें टिकाए रखने से हम हर मुश्‍किल का सामना कर पाएँगे