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यीशु मसीह की कदर करना जो दाविद और सुलैमान से महान है

यीशु मसीह की कदर करना जो दाविद और सुलैमान से महान है

यीशु मसीह की कदर करना जो दाविद और सुलैमान से महान है

“देखो! यहाँ वह मौजूद है जो सुलैमान से भी बड़ा है।”—मत्ती 12:42.

1, 2. इंसानी नज़रिए से देखें तो यह क्यों ताज्जुब की बात थी कि यहोवा ने दाविद को राजा चुना?

 यहोवा ने शमूएल नबी को अपने सेवक यिशै के घर भेजा और कहा कि वह इसराएल का अगला राजा होने के लिए उसके बेटों में से एक का अभिषेक करे। यिशै के आठ बेटे थे और वह अपने सात लड़कों को एक-एक कर शमूएल के सामने लाया। मगर यहोवा ने इनमें से किसी को नहीं चुना। फिर सबसे छोटे बेटे दाविद को बुलाया गया जो उस वक्‍त घर पर नहीं था। जब दाविद आया तो यहोवा ने कहा कि यही है वह लड़का जिसे मैंने राजा चुना है, इसी का अभिषेक कर।

2 शमूएल ने कभी सोचा भी न होगा कि यहोवा इस मामूली-से लड़के को चुनेगा जो भेड़ चराता है। वाकई, इंसानी नज़रिए से देखें तो दाविद के बारे में कोई यकीन नहीं कर सकता था कि वह राजा बनेगा। एक तो उसमें राजा जैसा डील-डौल दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहा था। और फिर वह बेतलेहेम नाम की जिस जगह का रहनेवाला था, वह एक छोटा-सा गाँव था। इतना ‘छोटा कि यहूदा के हज़ारों में नहीं गिना जाता था।’ (मीका 5:2) मगर यहोवा की पसंद दाविद ही था और यही बात सचमुच मायने रखती है।—1 शमू. 16:1-10.

3. (क) जब यहोवा किसी इंसान को परखता है, तो वह क्या देखता है? (ख) दाविद का अभिषेक किए जाने पर क्या हुआ?

3 आखिर यहोवा ने दाविद को क्यों चुना? यहोवा उसका दिल पढ़ सकता था जो कि शमूएल नहीं कर सकता था। यहोवा ने देखा कि दाविद के अंदर कई अच्छे गुण थे और यही बात उसे भा गयी। उसके लिए इंसान की शक्ल-सूरत मायने नहीं रखती, वह यह देखता है कि एक इंसान अंदर से कैसा है। (1 शमूएल 16:7 पढ़िए।) इसलिए जब शमूएल ने देखा कि यहोवा ने यिशै के सात बेटों में से किसी को नहीं चुना, तो उसने सबसे छोटे लड़के को बुलवा भेजा। आगे का किस्सा बाइबल यूँ बताती है: तब यिशै “[दाविद को] बुलाकर भीतर ले आया। उसके तो लाली झलकती थी, और उसकी आंखें सुन्दर, और उसका रूप सुडौल था। तब यहोवा ने कहा, उठकर इस का अभिषेक कर: यही है। तब शमूएल ने अपना तेल का सींग लेकर उसके भाइयों के मध्य में उसका अभिषेक किया; और उस दिन से लेकर भविष्य को यहोवा का आत्मा दाऊद पर बल से उतरता रहा।”—1 शमू. 16:12, 13.

दाविद ने मसीह को दर्शाया

4, 5. (क) दाविद और यीशु के बीच कुछ समानताएँ बताइए। (ख) यीशु को दाविद से महान क्यों कहा जा सकता है?

4 दाविद की तरह, यीशु का जन्म भी बेतलेहेम में हुआ था। वह दाविद से लगभग 1,100 साल बाद पैदा हुआ था। यीशु के बारे में भी अधिकतर लोगों की यह राय थी कि वह राजा नहीं हो सकता। क्योंकि उन्होंने अपने मन में राजा की जो तसवीर बना रखी थी, यीशु वैसा नहीं था। मगर इंसानों का नज़रिया जो भी हो, यीशु यहोवा का चुना हुआ था, ठीक जैसे दाविद भी था। दाविद की तरह वह भी यहोवा के लिए प्यारा था। * (लूका 3:22) और यीशु का भी जब अभिषेक किया गया, तब से ‘यहोवा की आत्मा’ यानी पवित्र शक्‍ति उस पर काम करने लगी।

5 दाविद और यीशु के बीच और भी कई समानताएँ हैं। जिस तरह दाविद के सलाहकार अहीतोपेल ने उसके साथ विश्‍वासघात किया था, उसी तरह यीशु के एक प्रेषित यहूदा इस्करियोती ने उसके साथ विश्‍वासघात किया। (भज. 41:9; यूह. 13:18) दाविद और यीशु, दोनों में यहोवा के भवन के लिए ज़बरदस्त जोश था। (भज. 27:4; 69:9; यूह. 2:17) इन सारी बातों के अलावा, यीशु दाविद का वारिस भी था। उसके पैदा होने से पहले, एक स्वर्गदूत ने उसकी माँ से कहा: “यहोवा परमेश्‍वर उसके पुरखे दाविद की राजगद्दी उसे देगा।” (लूका 1:32; मत्ती 1:1) मगर यीशु, दाविद का वारिस होते हुए भी उससे महान है, क्योंकि मसीहा के बारे में की गयी सारी भविष्यवाणियाँ यीशु पर पूरी होती हैं। यीशु ही वह मसीहा और राजा है जिसका लोग मुद्दतों से इंतज़ार कर रहे थे।—यूह. 7:42.

हमारे राजा की आज्ञा मानना, जो चरवाहा भी है

6. दाविद किस तरह एक अच्छा चरवाहा था?

6 जैसे दाविद बचपन में एक चरवाहा था, उसी तरह यीशु भी अपने लोगों का चरवाहा है। एक अच्छे चरवाहे में क्या-क्या गुण होते हैं? वह अपने झुंड की सही तरह से देखभाल करता है, उसे खिलाता-पिलाता है और खतरों से उसकी रक्षा करता है। (भज. 23:2-4) दाविद अपने पिता की भेड़ों की अच्छी देखभाल करता था। वह एक बहादुर लड़का था। उसने भेड़ों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए दो बार अपनी जान जोखिम में डाल दी। एक बार उसने भेड़ों को शेर से बचाया और दूसरी बार भालू से।—1 शमू. 17:34, 35.

7. (क) एक राजा की ज़िम्मेदारियाँ निभाने में दाविद के लिए कौन-सा तजुरबा काम आया? (ख) यीशु ने कैसे साबित किया कि वह अच्छा चरवाहा है?

7 दाविद ने कई सालों तक मैदानों और पहाड़ियों पर भेड़ों को चराने का काम किया था। यह तजुरबा बाद में उसके बहुत काम आया जब वह इसराएल का राजा बना, क्योंकि प्रजा की अगुवाई करने में बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ और चुनौतियाँ शामिल थीं। दाविद में एक चरवाहे के गुण होने की वजह से वह इन ज़िम्मेदारियों को निभाने में कामयाब हुआ। * (भज. 78:70, 71) यीशु भी जिस तरह हमारी अगुवाई करता है, उससे पता चलता है कि वह एक आदर्श चरवाहा है। यहोवा से मिलनेवाली शक्‍ति और मार्गदर्शन की मदद से आज वह अपने “छोटे झुंड” की और ‘दूसरी भेड़ों’ की अच्छी अगुवाई कर रहा है। (लूका 12:32; यूह. 10:16) इस तरह यीशु ने साबित किया है कि वह अच्छा चरवाहा है। वह अपने झुंड के लोगों से इतनी अच्छी तरह वाकिफ है कि वह उनमें से हरेक को नाम से जानता है। वह उनसे इतना प्यार करता है कि धरती पर रहते वक्‍त उसने उनकी खातिर बहुत-से त्याग किए। (यूह. 10:3, 11, 14, 15) यीशु ने अच्छे चरवाहे के नाते ऐसा भला काम किया है जो दाविद कभी नहीं कर पाता। उसने अपना जीवन फिरौती में देकर सभी इंसानों के लिए मौत से छुटकारा पाने का रास्ता खोल दिया है। वह अपने “छोटे झुंड” की अगुवाई करके उसे स्वर्ग में अमर जीवन पाने में मदद देगा और अपनी ‘दूसरी भेड़ों’ को नयी दुनिया में ले जाएगा, जहाँ वे हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे और उन्हें भेड़िए जैसे खूँखार लोगों का खतरा नहीं होगा। उन्हें इस मंज़िल तक पहुँचाने से यीशु को कोई भी ताकत नहीं रोक सकती।यूहन्‍ना 10:27-29 पढ़िए।

विजयी राजा, यीशु के पीछे-पीछे चलिए

8. दाविद किस तरह एक विजयी राजा साबित हुआ?

8 दाविद एक राजा होने के साथ-साथ जाँबाज़ योद्धा भी था। उसने इसराएल देश की रक्षा करने के लिए कई युद्ध लड़े। “दाऊद जहां जहां जाता था वहां वहां यहोवा उसको जयवन्त करता था।” इसलिए उसकी हुकूमत के दौरान, इसराएल देश की सरहदें मिस्र की नदी से बढ़कर फरात नदी तक फैल गयीं। (2 शमू. 8:1-14) यहोवा की मदद से दाविद एक शक्‍तिशाली राजा बना। बाइबल कहती है: “दाऊद की कीर्त्ति सब देशों में फैल गई, और यहोवा ने सब जातियों के मन में उसका भय भर दिया।”—1 इति. 14:17.

9. समझाइए कि भविष्य में होनेवाले राजा के नाते यीशु कैसे विजयी हुआ।

9 राजा दाविद की तरह यीशु भी बहुत साहसी था। भविष्य में होनेवाले राजा के नाते उसने दिखाया कि उसे दुष्ट स्वर्गदूतों पर अधिकार है और जो लोग उनकी गिरफ्त में थे उन्हें छुड़ाया। (मर. 5:2, 6-13; लूका 4:36) यहाँ तक कि सबसे बड़े दुश्‍मन शैतान का भी उस पर ज़ोर नहीं चला। यहोवा की मदद से यीशु ने शैतान की पूरी दुनिया पर फतह हासिल कर ली है।—यूह. 14:30; 16:33; 1 यूह. 5:19.

10, 11. यीशु कैसे एक विजयी राजा है?

10 यीशु की मौत और उसके स्वर्ग लौटने के करीब 60 साल बाद, प्रेषित यूहन्‍ना को यीशु के बारे में एक दर्शन मिला। इस दर्शन में उसने जो देखा वह असल में एक भविष्यवाणी थी। यूहन्‍ना ने देखा कि यीशु स्वर्ग में राजा बन गया है और अपने दुश्‍मनों पर जीत हासिल कर रहा है। यूहन्‍ना ने लिखा: “देखो मैंने क्या देखा! एक सफेद घोड़ा; और उसके सवार के पास एक धनुष था। और उसे एक ताज दिया गया और वह जीत हासिल करता हुआ अपनी जीत पूरी करने निकला।” (प्रका. 6:2) यहाँ बताए सफेद घोड़े का सवार यीशु है। सन्‌ 1914 में उसे “एक ताज दिया गया” और वह स्वर्ग के राज में राजगद्दी पर बैठा। इसके बाद से वह “जीत हासिल करता हुआ” आगे बढ़ने लगा। जी हाँ, दाविद की तरह यीशु एक विजयी राजा है। परमेश्‍वर के राज का राजा बनने के कुछ ही समय बाद उसने एक युद्ध में शैतान को हराया और उसे और उसके दुष्ट दूतों को धरती पर फेंक दिया। (प्रका. 12:7-9) यीशु, शैतान और उसकी दुनिया पर इसी तरह जीत हासिल करता जाएगा और उसकी शानदार सवारी तब तक चलती रहेगी, जब तक कि वह इस दुष्ट संसार को खाक में मिलाकर अपनी “जीत पूरी” न कर ले।—प्रकाशितवाक्य 19:11, 19-21 पढ़िए।

11 यीशु, दाविद की तरह एक दयालु राजा भी है। इसलिए वह “बड़ी भीड़” के लोगों को हरमगिदोन के नाश से बचाकर नयी दुनिया में ले जाएगा। (प्रका. 7:9, 14) यही नहीं, जब वह 1,44,000 संगी वारिसों के साथ हुकूमत करेगा तब “अच्छे और बुरे, दोनों तरह के लोग मरे हुओं में से जी उठेंगे।” (प्रेषि. 24:15) इन लोगों को धरती पर हमेशा-हमेशा तक जीने का मौका मिलेगा। कितना सुनहरा भविष्य है उनके सामने! इसलिए आइए हम ठान लें कि हम “भलाई” करने में लगे रहेंगे ताकि हम भी वह दिन देख सकें जब यह धरती नेक लोगों से आबाद हो जाएगी और वे सभी महान दाविद, यीशु की हुकूमत में हँसते-मुस्कुराते हुए ज़िंदगी का लुत्फ उठाएँगे।—भज. 37:27-29.

बुद्धि के लिए सुलैमान की प्रार्थना का जवाब मिला

12. सुलैमान ने प्रार्थना में क्या माँगा?

12 दाविद के बेटे सुलैमान ने भी यीशु को दर्शाया। * जब सुलैमान राजा बना तो यहोवा ने एक स्वप्न में उसे दर्शन दिया और कहा कि सुलैमान जो कुछ माँगे, वह उसे देगा। सुलैमान चाहता तो दौलत, ताकत या फिर लंबी उम्र की फरमाइश कर सकता था। मगर उसने अपने लिए कुछ माँगने के बजाय यहोवा से यह गुज़ारिश की: “मुझे ऐसी बुद्धि और ज्ञान दे, कि मैं इस प्रजा के साम्हने अन्दर-बाहर आना-जाना कर सकूं, क्योंकि कौन ऐसा है कि तेरी इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सके?” (2 इति. 1:7-10) यहोवा ने सुलैमान की यह मुराद पूरी की।2 इतिहास 1:11, 12 पढ़िए।

13. हम क्यों कह सकते हैं कि सुलैमान अपने ज़माने का सबसे बुद्धिमान इंसान था? सुलैमान को यह बुद्धि किसने दी थी?

13 जब तक सुलैमान यहोवा का वफादार रहा, तब तक उसने लोगों को बुद्धि की कई अनमोल बातें सिखायीं। वह अपने ज़माने का सबसे बुद्धिमान इंसान था। उसने कुल मिलाकर “तीन हज़ार नीतिवचन” कहे। (1 राजा 4:30, 32, 34) इनमें से कई नीतिवचनों को दर्ज़ किया गया है और आज भी जो लोग बुद्धि हासिल करना चाहते हैं उनके लिए ये नीतिवचन ज्ञान का खज़ाना हैं। सुलैमान के दिनों में जब शीबा की रानी ने उसकी बुद्धि की तारीफ सुनी तो वह अपने देश से करीब 2,400 किलोमीटर का लंबा सफर तय कर सुलैमान से मिलने आयी। उसने सुलैमान की बुद्धि परखने के लिए उससे ‘कठिन कठिन प्रश्‍न’ पूछे। मगर सुलैमान ने जिस तरह उनके बिलकुल सटीक जवाब दिए उससे रानी हैरान रह गयी। उसने सुलैमान की बादशाहत की जो शानो-शौकत देखी, उसकी तारीफ के लिए मानो उसके पास शब्द ही नहीं थे। (1 राजा 10:1-9) बाइबल बताती है कि सुलैमान को यह बेशुमार बुद्धि किसने दी थी: “समस्त पृथ्वी के लोग उसकी बुद्धि की बातें सुनने को जो परमेश्‍वर ने उसके मन में उत्पन्‍न की थीं, सुलैमान का दर्शन पाना चाहते थे।”—1 राजा 10:24.

बुद्धिमान राजा यीशु के मार्गदर्शन में चलिए

14. किन मायनों में यीशु, “सुलैमान से भी बड़ा” है?

14 यीशु ने खुद के बारे में कहा कि वह “सुलैमान से भी बड़ा” है। (मत्ती 12:42) पूरे इतिहास में वही अकेला इंसान था जो बुद्धि में सुलैमान से भी बढ़कर था। यीशु ने जो बुद्धि की बातें सिखायीं, वे “हमेशा की ज़िंदगी की बातें” हैं। (यूह. 6:68) उसके पहाड़ी उपदेश का उदाहरण लीजिए। उसने इस उपदेश में ऐसे कई सिद्धांत बताए जिनसे सुलैमान के नीतिवचनों के बारे में ज़्यादा जानकारी और गहरी समझ मिलती है। सुलैमान ने अपने नीतिवचनों में ऐसी कई बातों का ज़िक्र किया जिनसे यहोवा के एक सेवक को खुशी मिलती है। (नीति. 3:13; 8:32, 33; 14:21; 16:20) यीशु ने इस बारे में और भी बेहतरीन जानकारी दी। उसने बताया कि सच्ची खुशी सिर्फ यहोवा की उपासना से जुड़ी बातों से और उसकी भविष्यवाणियों के पूरा होने से मिलती है। उसने कहा: “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है, क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है।” (मत्ती 5:3) जो लोग यीशु की शिक्षाओं पर अमल करते हैं, वे ‘जीवन के सोते’ यहोवा के और भी करीब आते हैं। (भज. 36:9; नीति. 22:11; मत्ती 5:8) मसीह “परमेश्‍वर की बुद्धि” का साकार रूप है। (1 कुरिं. 1:24, 30) मसीहाई राजा, यीशु के पास ‘ज्ञान की आत्मा’ है।—यशा. 11:2.

15. यहोवा की बुद्धि से फायदा पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

15 हम जो महान सुलैमान, यीशु के चेले हैं, यहोवा की बुद्धि से कैसे फायदा पा सकते हैं? यहोवा की बुद्धि उसके वचन बाइबल में पायी जाती है। इसलिए इस बुद्धि को हासिल करने के लिए बाइबल का गहराई से अध्ययन करना और मनन करना निहायत ज़रूरी है। हमें खासकर यीशु की सिखायी बातों का अध्ययन करना चाहिए। (नीति. 2:1-5) और पढ़ने और मनन करने के अलावा, हमें बुद्धि के लिए लगातार परमेश्‍वर से प्रार्थना करनी चाहिए। बाइबल हमें भरोसा दिलाती है कि अगर हम परमेश्‍वर से सच्चे दिल से मदद माँगें, तो वह ज़रूर हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देगा। (याकू. 1:5) जब हम पवित्र शक्‍ति की मदद से बाइबल का अध्ययन करेंगे तो हम बुद्धि से भरी ऐसी बातें सीख पाएँगे जो हमें ज़िंदगी की चुनौतियों का सामना करने और बुद्धिमानी से फैसले करने में मदद देंगी। (लूका 11:13) सुलैमान को एक “उपदेशक” भी कहा गया है क्योंकि वह अपनी “प्रजा” की सभा बुलाकर उन्हें ‘ज्ञान की बातें सिखाता’ था। (सभो. 12:9, 10) उसी तरह, मसीही मंडली का मुखिया यीशु अपने लोगों को सभाओं में इकट्ठा करके उन्हें सिखाता है। (यूह. 10:16; कुलु. 1:18) इसलिए हमें मंडली की सभाओं में ज़रूर हाज़िर होना चाहिए क्योंकि यहाँ हमें नियमित तौर पर बुद्धि की बातें ‘सिखायी’ जाती हैं।

16. सुलैमान और यीशु में क्या समानता है?

16 राजा सुलैमान ने अपने शासन के दौरान देश-भर में बहुत-से निर्माण काम करवाए। उसने कई सड़कें, महल, भंडार के नगर, रथों के नगर और सवारों के नगर बनवाए और पानी के अच्छे इंतज़ाम के लिए कई जल-प्रणालियाँ बनवायीं। (1 राजा 9:17-19) उसके इन निर्माण कामों से पूरे देश को फायदा हुआ। यीशु भी एक निर्माणकर्ता है। उसने “चट्टान” यानी खुद पर अपनी मंडली बनायी है। (मत्ती 16:18) और भविष्य में वह नयी दुनिया में भी निर्माण काम की देखरेख करेगा।—यशा. 65:21, 22.

शांति के राजा के मार्गदर्शन में चलिए

17. (क) सुलैमान की हुकूमत की एक यादगार बात क्या है? (ख) कौन-सा काम सुलैमान के बस में नहीं था?

17 “सुलैमान,” यह नाम जिस इब्रानी शब्द से निकला है उसका मतलब है “शांति।” राजा सुलैमान यरूशलेम से हुकूमत करता था और यरूशलेम का मतलब है, “दोहरी शांति का निवास।” सुलैमान की 40 साल की हुकूमत की एक यादगार बात यह है कि उन सालों के दौरान इसराएल में इतनी शांति थी जितनी पहले कभी नहीं थी। बाइबल उन सालों के बारे में कहती है: “दान से बेर्शेबा तक के सब यहूदी और इसराएली अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले सुलैमान के जीवन भर निडर रहते थे।” (1 राजा 4:25) मगर सुलैमान इतना बुद्धिमान होने के बावजूद अपनी प्रजा को बीमारी, पाप और मौत के बंधन से नहीं छुड़ा सका। जबकि महान सुलैमान, यीशु अपनी प्रजा को इन सबकी जकड़ से आज़ाद कर देगा।—रोमियों 8:19-21 पढ़िए।

18. आज मसीही मंडली में हम किन आशीषों का आनंद उठा रहे हैं?

18 आज हम भी मसीही मंडली में शांति के माहौल का आनंद उठाते हैं। सच कहें तो हम अभी से एक फिरदौस जैसी खुशहाली का अनुभव कर रहे हैं। हमने परमेश्‍वर के साथ शांति का रिश्‍ता कायम किया है और हम दूसरे लोगों के साथ भी मेल-मिलाप से रहते हैं। हमारे बीच जो शांति है, उसके बारे में यशायाह ने बहुत पहले यह भविष्यवाणी की थी: “वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएंगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे।” (यशा. 2:3, 4) अगर हम परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलते रहें, तो शांति के इस माहौल को बनाए रखने में अपना भाग अदा कर पाएँगे।

19, 20. आज हमारे पास आनंद मनाने के क्या-क्या कारण हैं?

19 जो लोग परमेश्‍वर की आज्ञा मानते हैं, उन्हें भविष्य में इससे भी खुशनुमा माहौल में जीने का मौका मिलेगा। वे यीशु की हज़ार साल की हुकूमत में ऐसी शांति का आनंद उठाएँगे जैसी दुनिया में पहले कभी नहीं थी। और उस दौरान उन्हें “भ्रष्टता की गुलामी से आज़ाद” करके सिद्ध किया जाएगा। (रोमि. 8:21) फिर हज़ार साल के खत्म होने पर जब ये “नम्र लोग” आखिरी परीक्षा में खरे उतरेंगे, तब वे “पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।” (भज. 37:11; प्रका. 20:7-10) वाकई, मसीह यीशु का राज सुलैमान के राज से इतना बढ़िया होगा कि आज हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते!

20 जब मूसा, दाविद और सुलैमान ने इसराएल की अगुवाई की थी, तब उनके दिनों में लोगों ने बहुत आनंद मनाया था। भविष्य में हमें उससे भी ज़्यादा खुशियाँ मिलेंगी, जब सारी दुनिया पर मसीह की हुकूमत होगी। (1 राजा 8:66) हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि उसने अपने इकलौते बेटे यीशु को हमारे लिए भेजा जो मूसा, दाविद और सुलैमान से भी महान है!

[फुटनोट]

^ दाविद नाम का शायद मतलब है “प्यारा।” गौरतलब है कि स्वर्ग से यहोवा ने दो मौकों पर यीशु को “मेरा प्यारा बेटा” कहा था। एक, यीशु के बपतिस्मे के वक्‍त और दूसरा, रूपांतरण के दर्शन में।—मत्ती 3:17; 17:5.

^ एक राजा की ज़िम्मेदारियाँ निभाते वक्‍त दाविद ने एक चरवाहे के गुण दिखाने के साथ-साथ एक मेम्ने के गुण भी दिखाए। जैसे मेम्ना अपने चरवाहे के भरोसे रहता है, उसी तरह दाविद ने महान चरवाहे, यहोवा पर भरोसा दिखाया कि वह मुसीबतों में उसे पनाह देगा और ज़िंदगी में सही राह दिखाएगा। दाविद ने पूरे यकीन के साथ कहा कि “यहोवा मेरा चरवाहा है, मुझे कुछ घटी न होगी।” (भज. 23:1) गौरतलब है कि यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले ने यीशु की तुलना एक मेम्ने से करते हुए कहा कि यह “परमेश्‍वर का मेम्ना” है।—यूह. 1:29.

^ सुलैमान का एक और नाम था, “यदीद्याह।” दिलचस्पी की बात है कि इस नाम का मतलब है “याह का प्यारा।”—2 शमू. 12:24, 25.

क्या आप समझा सकते हैं?

• यीशु किस तरह दाविद से महान है?

• यीशु किस तरह सुलैमान से महान है?

• महान दाविद और महान सुलैमान, यीशु के बारे में क्या बात आपके दिल को छू गयी?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 31 पर तसवीर]

सुलैमान को परमेश्‍वर ने जो बुद्धि दी थी, वह महान सुलैमान यीशु की बुद्धि की बस एक झलक थी

[पेज 32 पर तसवीर]

यीशु का राज, दाविद और सुलैमान के राज से इतना बढ़िया होगा कि आज हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते!