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सृष्टि यहोवा की बुद्धि का बखान करती है

सृष्टि यहोवा की बुद्धि का बखान करती है

सृष्टि यहोवा की बुद्धि का बखान करती है

‘उसके अनदेखे गुण उसकी रचना से साफ दिखायी देते हैं।’—रोमि. 1:20.

1. दुनियावी बुद्धि के मुताबिक चलनेवालों का क्या अंजाम होता है?

 आज दुनिया में “बुद्धिमान” और “ज्ञानी” कहलानेवालों की कमी नहीं है। ऐसे बहुत-से लोग हैं जिन्होंने बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ हासिल की हैं और उनके पास ज्ञान का भंडार है। मगर दुनिया की नज़र में ये लोग चाहे कितने ही अक्लमंद और मेधावी क्यों न हों, क्या उन्हें सही मायनों में बुद्धिमान कहा जा सकता है? नहीं, क्योंकि वे लोगों को ज़िंदगी में सच्ची खुशी और मकसद पाने के लिए सही राह नहीं दिखा सकते। उलटा, जो उनकी दुनियावी बुद्धि पर भरोसा कर उनके मुताबिक चलते हैं, वे गुमराह किए जाते हैं। जैसा बाइबल बताती है, वे “झूठी बातों की लहरों से यहाँ-वहाँ उछाले जाते और शिक्षाओं के हर झोंके से इधर-उधर उड़ाए जाते हैं।”—इफि. 4:14.

2, 3. (क) यह क्यों कहा गया है कि यहोवा परमेश्‍वर “एकमात्र बुद्धिमान” है? (ख) परमेश्‍वर से मिलनेवाली बुद्धि किस तरह दुनिया की बुद्धि से अलग है?

2 मगर जो लोग सच्ची बुद्धि हासिल करते हैं, उनका ऐसा अंजाम नहीं होता क्योंकि यह बुद्धि यहोवा से मिलती है। बाइबल बताती है कि यहोवा “एकमात्र बुद्धिमान” है यानी बुद्धि में उसके बराबर कोई नहीं। (रोमि. 16:27) वह विश्‍व की सभी रचनाओं के बारे में पूरी-पूरी समझ रखता है। वह जानता है कि कौन-सी चीज़ किस तत्व से बनी है और कैसे बनायी गयी थी। आज इंसान कुदरत के जिन नियमों के आधार पर विश्‍व की रचनाओं का अध्ययन और खोजबीन करता है, वे यहोवा ही के बनाए हुए हैं। इसलिए इंसान चाहे एक-से-बढ़कर-एक आविष्कार कर ले, मगर वे यहोवा के लिए कोई बड़ी बात नहीं। और दुनिया के दार्शनिकों के विचार भले ही लोगों को महान लगें, मगर यहोवा को इनसे कोई अचंभा नहीं होता। सच तो यह है कि “इस दुनिया की बुद्धि परमेश्‍वर की नज़र में मूर्खता है।”—1 कुरिं. 3:19.

3 बाइबल बताती है कि यहोवा अपने सेवकों को ‘बुद्धि देता है।’ (नीति. 2:6) यह बुद्धि इंसानी फलसफों की तरह अस्पष्ट और बेतुकी नहीं। इसके बजाय, परमेश्‍वर की बुद्धि की बातें हमें सही ज्ञान और गहरी समझ हासिल करने और उसके आधार पर सही फैसले करने में मदद देती हैं। (याकूब 3:17 पढ़िए।) प्रेषित पौलुस ने यहोवा की लाजवाब बुद्धि की तारीफ करते हुए लिखा: “वाह! परमेश्‍वर की दौलत और बुद्धि और ज्ञान की गहराई क्या ही अथाह है! उसके फैसले हमारी सोच से कितने परे और उसके मार्ग कैसे अगम हैं!” (रोमि. 11:33) क्योंकि यहोवा ही सबसे बुद्धिमान है, इसलिए हमें पूरा भरोसा है कि उसके नियमों पर चलने से हम सबसे बेहतरीन ज़िंदगी जी सकते हैं। ज़िंदगी में खुशी का राज़ क्या है, यह यहोवा से बेहतर और कोई नहीं बता सकता!—नीति. 3:5, 6.

यीशु—“एक कुशल कारीगर”

4. यहोवा की बुद्धि के बारे में जानने का एक तरीका क्या है?

4 यहोवा की बुद्धि और उसके दूसरे बेजोड़ गुणों के बारे में जानने का एक तरीका है, उसकी बनायी चीज़ों पर गौर करना। (रोमियों 1:20 पढ़िए।) यहोवा की हरेक रचना हमें उसके किसी-न-किसी गुण के बारे में सिखाती है। हम जहाँ भी नज़र दौड़ाएँ, चाहे ऊपर विशाल आसमान को देखें या अपने पैरों तले ज़मीन को, हमें सिरजनहार यहोवा की बुद्धि और प्यार के बेशुमार सबूत मिलेंगे। उसकी बनायी चीज़ों पर गौर करने से हम उसके बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं।—भज. 19:1; यशा. 40:26.

5, 6. (क) सृष्टि के काम में यहोवा के साथ और कौन था? (ख) अब हम किस बारे में चर्चा करेंगे? और इससे हमें क्या फायदा होगा?

5 यहोवा ने “आकाश और पृथ्वी की सृष्टि” अकेले नहीं की। (उत्प. 1:1) बाइबल दिखाती है कि आकाश और पृथ्वी को बनाने से बहुत पहले उसने एक आत्मिक या अदृश्‍य प्राणी की सृष्टि की थी, और उसके ज़रिए बाकी “सब चीज़ें” बनायीं। वह शख्स परमेश्‍वर का इकलौता बेटा और “सारी सृष्टि में पहलौठा” था। बाद में जब वह इंसान बनकर धरती पर आया तो यीशु कहलाया। (कुलु. 1:15-17) यीशु भी बहुत बुद्धिमान है। नीतिवचन के अध्याय 8 में उसे बुद्धि का साकार रूप बताया गया है। उसी अध्याय में उसे परमेश्‍वर का “कुशल कारीगर” (NHT) भी कहा गया है।—नीति. 8:12, 22-31.

6 इसलिए सृष्टि पर ध्यान देने से हम यहोवा की और उसके कुशल कारीगर यीशु, दोनों की बुद्धि के बारे में जान सकते हैं। साथ ही, हम अपनी ज़िंदगी के लिए कई अनमोल सबक सीख सकते हैं। तो आइए हम सृष्टि में से ऐसे चार उदाहरण देखें जिन्हें नीतिवचन 30:24-28 में “सहज-वृत्ति से बुद्धिमान” (NW) कहा गया है। *

चींटी सिखाए मेहनती बनना

7, 8. चींटियों के बारे में कौन-सी बातें आपको मज़ेदार लगीं?

7 ‘पृथ्वी के छोटे-छोटे जन्तु’ भी हमें बहुत कुछ सिखाते हैं। अगर हम उनकी बनावट और उनकी आदतों और हरकतों को ध्यान से देखें तो हम उनसे ज़बरदस्त सबक सीख सकते हैं। मिसाल के लिए, चींटी की सहज बुद्धि के बारे में गौर कीजिए।—नीतिवचन 30:24, 25 पढ़िए।

8 कुछ खोजकर्ता कहते हैं कि इंसानों की तुलना में चींटियों की आबादी 2 लाख गुना ज़्यादा है। वे ज़मीन के अंदर और बाहर बहुत मेहनत करती हैं। चींटियाँ छोटी-छोटी बस्तियाँ बनाकर रहती हैं। ज़्यादातर बस्तियों में तीन तरह की चींटियाँ होती हैं: रानी, नर और मज़दूर चींटियाँ। ये तीनों किस्म की चींटियाँ बस्ती की ज़रूरतें पूरी करने में अपना-अपना भाग अदा करती हैं। दक्षिण अमरीका में पायी जानेवाली कुछ चींटियाँ बागबानी में बड़ी माहिर होती हैं। ज़मीन के नीचे उनके बगीचे होते हैं जो फफूँदी से बने होते हैं। वे इनमें खाद मिलाती हैं, फफूँद को एक जगह से उखाड़कर दूसरी जगह पर लगाती हैं और उनकी कटाई-छँटाई करती हैं जिससे फफूँद की अच्छी पैदावार होती है। खोजकर्ताओं ने यह भी पाया है कि ये हुनरमंद “बागबान” अपना समय और अपनी ताकत फिज़ूल में ज़ाया नहीं करतीं, बल्कि बस्ती के खाने की ज़रूरत के हिसाब से ही मेहनत करती हैं। *

9, 10. हम चींटियों की तरह मेहनती कैसे बन सकते हैं?

9 चींटियों से हम सीखते हैं कि किसी भी काम में अच्छे नतीजे पाने के लिए हमें जी-तोड़ मेहनत करने की ज़रूरत है। बाइबल कहती है: “हे आलसी, च्यूंटियों के पास जा; उनके काम पर ध्यान दे, और बुद्धिमान हो। उनके न तो कोई न्यायी होता है, न प्रधान, और न प्रभुता करनेवाला, तौभी वे अपना आहार धूपकाल में संचय करती हैं, और कटनी के समय अपनी भोजनवस्तु बटोरती हैं।” (नीति. 6:6-8) यहोवा परमेश्‍वर और उसका कुशल कारीगर यीशु, दोनों बहुत मेहनती हैं। यीशु ने कहा: “मेरा पिता अब तक काम करता आ रहा है और मैं भी काम करता रहता हूँ।”—यूह. 5:17.

10 परमेश्‍वर और मसीह की मिसाल पर चलते हुए हमें भी मेहनती होना चाहिए। परमेश्‍वर की सेवा में हमें जो भी काम या ज़िम्मेदारी दी जाती है, उसे जी-जान से पूरा करना चाहिए और हमेशा “प्रभु की सेवा में व्यस्त” रहना चाहिए। (1 कुरिं. 15:58) हमें पौलुस की इस सलाह पर चलना चाहिए जो उसने रोम के मसीहियों को दी थी: “अपने काम में आलस न दिखाओ। परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के तेज से भरे रहो। यहोवा के दास बनकर उसकी सेवा करो।” (रोमि. 12:11) यहोवा की मरज़ी पूरी करने में हम जो मेहनत करते हैं, वह कभी व्यर्थ नहीं जाएगी। बाइबल हमें यकीन दिलाती है: “परमेश्‍वर अन्यायी नहीं कि तुम्हारे काम और उस प्यार को भूल जाए जो तुमने उसके नाम के लिए दिखाया है।”—इब्रा. 6:10.

परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते की हिफाज़त करना

11. चट्टानी बिज्जू की कुछ खासियतें बताइए।

11 शापान या चट्टानी बिज्जू एक और छोटा जानवर है, जिससे हमें अहम सीख मिलती है। (नीतिवचन 30:26 पढ़िए।) * बिज्जू दिखने में एक बड़े खरगोश जैसा होता है लेकिन उसके कान छोटे और गोल होते हैं और उसके पैर भी छोटे होते हैं। बिज्जू चट्टानी इलाकों में रहता है। इसकी नज़र बहुत तेज़ होती है जिस वजह से वह दूर से ही खतरा भाँप लेता है और खबरदार हो जाता है। वह खड़ी चट्टानों में रहता है, इसलिए शिकारी जानवरों से उसे कोई खतरा नहीं होता। बिज्जू की एक और खासियत यह है कि वह हमेशा दूसरे बिज्जुओं के साथ-साथ रहता है। यह उसके लिए ज़रूरी भी है क्योंकि अगर वह अकेला रहे, तो दूसरे जानवरों का शिकार बन सकता है या फिर सर्दियों में ठिठुरकर मर सकता है। *

12, 13. चट्टानी बिज्जू से हम क्या-क्या सीखते हैं?

12 चट्टानी बिज्जू हमें क्या सिखाता है? सबसे पहले ध्यान दीजिए कि यह जानवर खुद को खतरे में नहीं डालता। इसके बजाय, वह अपनी पैनी नज़र से शिकारी जानवरों को दूर से ही भाँप लेता है। वह चट्टान की छेदों और दरारों के पास ही घूमता-फिरता है ताकि खतरे की भनक पड़ते ही अपनी जान बचाने के लिए अंदर भाग सके। बिज्जू से हमें यह सीख मिलती है कि हमें आध्यात्मिक खतरों से बचने के लिए हमेशा चौकन्‍ना रहने की ज़रूरत है। क्योंकि शैतान की इस दुनिया में हम मसीहियों के लिए ऐसे कई खतरे हैं जो हमें परमेश्‍वर से दूर ले जा सकते हैं। हमें उन खतरों को भाँपने के लिए सतर्क रहना चाहिए ताकि हम परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते की हिफाज़त कर सकें। प्रेषित पतरस ने मसीहियों को यह सलाह दी: “अपने होश-हवास बनाए रखो, चौकन्‍ने रहो। तुम्हारा दुश्‍मन शैतान, गरजते हुए शेर की तरह इस ताक में घूम रहा है कि किसे निगल जाए।” (1 पत. 5:8) इस मामले में यीशु हमारे लिए एक अच्छी मिसाल है। धरती पर रहते समय वह शैतान की चालों से हमेशा सतर्क रहता था, इसलिए शैतान की लाख कोशिशों के बावजूद वह अपनी वफादारी से नहीं मुकरा।—मत्ती 4:1-11.

13 आज हम भी सतर्क रहने के लिए क्या कर सकते हैं? एक तरीका है, यहोवा ने हमारी हिफाज़त के लिए जो इंतज़ाम किए हैं, उनका पूरा-पूरा फायदा उठाना। जैसे, परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करना और मसीही सभाओं में हाज़िर होना। (लूका 4:4; इब्रा. 10:24, 25) हमें इन बातों को कभी-भी हलका नहीं समझना चाहिए। इसके अलावा, जिस तरह बिज्जू हमेशा दूसरे बिज्जुओं के साथ-साथ रहता है, उसी तरह हमें लगातार अपनी मंडली के भाई-बहनों के साथ संगति करनी चाहिए ताकि हम “एक-दूसरे का हौसला बढ़ा सकें।” (रोमि. 1:12) यहोवा के किए इन इंतज़ामों का फायदा उठाने से हम यह दिखा रहे होंगे कि हम भी यहोवा के बारे में वैसा ही महसूस करते हैं, जैसा भजनहार दाविद ने महसूस किया था: “यहोवा मेरी चट्टान, और मेरा गढ़ और मेरा छुड़ानेवाला है; मेरा ईश्‍वर, मेरी चट्टान है, जिसका मैं शरणागत हूं, वह मेरी ढाल और मेरी मुक्‍ति का सींग, और मेरा ऊंचा गढ़ है।”—भज. 18:2.

विरोध के बावजूद डटे रहना

14. एक अकेली टिड्डी भले ही दिखने में मामूली लगे, मगर टिड्डी-दल के बारे में क्या कहा जा सकता है?

14 अब आइए देखें कि हम टिड्डियों से क्या सीख सकते हैं। टिड्डी लंबाई में बस 2 इंच के करीब होती है, इसलिए एक अकेली टिड्डी दिखने में शायद मामूली लगे, लेकिन अगर हम टिड्डियों के पूरे दल को देखें, तो भौचक्के रह जाएँगे। (नीतिवचन 30:27 पढ़िए।) टिड्डियों में गज़ब की भूख होती है। उनका झुंड पूरी-की-पूरी फसल को मिनटों में सफाचट कर सकता है। बाइबल में बताया गया है कि जब एक टिड्डी-दल हमला बोलता है, तो उनका शोर ऐसा जान पड़ता है मानो एक-साथ बहुत सारे रथ दौड़े चले आ रहे हों या भूसे को भस्म करती लपटों की चटचटाहट हो। (योए. 2:3, 5) टिड्डियों का हमला रोकने के लिए कभी-कभी आग का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन अकसर यह तोड़ नाकाम रहता है। क्यों? क्योंकि आग में भले ही कुछ टिड्डियाँ मर जाती हैं मगर उनकी लाशें आग को बुझा देती हैं। इसलिए बाकी टिड्डियाँ बिना किसी रुकावट के आगे बढ़ती जाती हैं। उनका न तो कोई राजा होता है न कोई लीडर, फिर भी उनका झुंड एक सेना की तरह बड़े व्यवस्थित ढंग से काम करता है और रास्ते में आनेवाली लगभग हर रुकावट को पार कर लेता है। *योए. 2:25.

15, 16. राज के प्रचारक किस तरह टिड्डी-दल जैसे हैं?

15 भविष्यवक्‍ता योएल ने यहोवा के सेवकों और उनके कामों की तुलना टिड्डियों से की। उसने लिखा: “वे सैनिक बहुत तेज दौड़ते हैं। वे सैनिक दीवारों पर चढ़ते हैं। प्रत्येक सैनिक सीधा ही आगे बढ़ जाता है। वे अपने मार्ग से जरा भी नहीं हटते हैं। वे एक दूसरे को आपस में नहीं धकेलते हैं। हर एक सैनिक अपनी राह पर चलता है। यदि कोई सैनिक आघात पा करके गिर जाता है तो भी वे दूसरे सैनिक आगे ही बढ़ते रहते हैं।”—योए. 2:7, 8, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

16 इस भविष्यवाणी में परमेश्‍वर के राज के प्रचारकों का कितना सही वर्णन दिया गया है! आज तक विरोध की कोई भी ‘दीवार’ उनके प्रचार काम को नहीं रोक पायी है। चाहे जो भी हो जाए, वे यीशु की मिसाल पर चलते हुए अपने काम में डटे रहते हैं। यीशु को बहुत लोगों ने तुच्छ समझा था, फिर भी वह परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने से पीछे नहीं हटा। (यशा. 53:3) हालाँकि कुछ मसीही अपने विश्‍वास की वजह से ‘आघात पाकर गिर’ गए यानी विरोधियों के हाथों मार डाले गए, फिर भी प्रचार का काम नहीं रुका है और प्रचारकों की गिनती बढ़ती जा रही है। दरअसल, कई बार ज़ुल्मों की वजह से ऐसी जगहों तक भी राज का संदेश पहुँचा है जहाँ पहले मुमकिन नहीं था। (प्रेषि. 8:1, 4) हममें से हरेक अपनी सेवा के बारे में खुद से पूछ सकता है, क्या मेरे अंदर टिड्डियों जैसी लगन है? चाहे लोग राज के संदेश में कोई दिलचस्पी न दिखाएँ या हमारा विरोध करें, फिर भी क्या मैं इस काम में डटा रहता हूँ?—इब्रा. 10:39.

“अच्छी बातों से लिपटे रहो”

17. छिपकली के पैर किस तरह उसे चिकनी सतह पर चिपकाए रखते हैं?

17 छिपकली को देखकर ऐसा लगता है मानो उस पर गुरुत्वाकर्षण बल का कोई असर नहीं होता। (नीतिवचन 30:28 पढ़िए।) * वह बड़ी फुर्ती से दीवार और सीलिंग की चिकनी सतह पर उलटी दौड़ती है और गिरती नहीं। उसका यह करिश्‍मा देखकर वैज्ञानिक दंग रह जाते हैं। भला एक छोटी-सी छिपकली यह कैसे कर पाती है? उसके पंजों में न तो छोटी-छोटी कपनुमा रचनाएँ होती हैं, जिनकी वजह से पंजों में निर्वात या खाली जगह बन जाती हो, और ना ही उसके पंजों से कोई चिपचिपा पदार्थ निकलता है जो उसे चिकनी सतह पर चिपकाए रखता हो। दरअसल छिपकली के हर पंजे में शल्क जैसी उभरी हुई रचनाएँ होती हैं। इनमें से हर शल्क पर बाल के समान हज़ारों बारीक रचनाएँ होती हैं। और हरेक बालनुमा रचना सैकड़ों रोओं में बँटी होती है और इनमें से हर रोएँ का सिरा हुक जैसा होता है। इन सभी रोओं में मौजूद अणुओं से एक तरह की शक्‍ति पैदा होती है, जिसकी वजह से छिपकली चिकनी सतह पर भी आसानी से अपनी पकड़ बना पाती है, फिर चाहे वह काँच जैसी सतह पर उलटी क्यों न दौड़ रही हो! छिपकली का यह कमाल देखकर खोजकर्ता कहते हैं कि उसके पंजों की नकल करके ऐसी कृत्रिम चीज़ें बनायी जा सकती हैं जिनमें गोंद की तरह चिपकने की ज़बरदस्त शक्‍ति हो। *

18. “अच्छी बातों से लिपटे” रहने के लिए हमें किस बात का ध्यान रखना होगा?

18 छिपकली से हम क्या सीख सकते हैं? बाइबल हमें सलाह देती है: “दुष्ट बातों से घिन करो, अच्छी बातों से लिपटे रहो।” (रोमि. 12:9) आज शैतान की दुनिया में जो बुराई फैली हुई है, उसका हम पर भी असर पड़ सकता है, जिस वजह से हम परमेश्‍वर के सिद्धांतों से लिपटे रहने के बजाय उन्हें मानने में ढीले पड़ सकते हैं। मिसाल के लिए, ऐसा मनोरंजन जो परमेश्‍वर के सिद्धांतों के खिलाफ है या स्कूल या नौकरी की जगह पर ऐसे लोगों की संगति जो परमेश्‍वर के नियमों को नहीं मानते, सही काम करने का हमारा इरादा कमज़ोर कर सकती है। सावधान रहें कि आपके साथ ऐसा कभी न हो! परमेश्‍वर का वचन खबरदार करता है: “अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना।” (नीति. 3:7) इसके बजाय, मूसा की यह बुद्धि-भरी सलाह मानिए जो उसने परमेश्‍वर के लोगों को दी थी: “अपने परमेश्‍वर यहोवा का भय मानना; उसी की सेवा करना और उसी से लिपटे रहना, और उसी के नाम की शपथ खाना।” (व्यव. 10:20) अगर हम यहोवा से लिपटे रहें तो हम यीशु की तरह बुराई से नफरत करेंगे। उसके बारे में कहा गया था: “तू ने सच्चाई से प्यार किया और दुराचार से नफरत की।”—इब्रा. 1:9.

सृष्टि से मिलनेवाली सीख

19. (क) सृष्टि पर गौर करने से आप यहोवा के किन गुणों को देख पाते हैं? (ख) परमेश्‍वर की बुद्धि के मुताबिक काम करने से हमें क्या फायदा होता है?

19 जैसा कि हमने देखा, यहोवा की बनायी रचनाओं से हम उसके गुणों के बारे में साफ-साफ समझ पाते हैं, साथ ही अपनी ज़िंदगी के लिए कई अनमोल सबक सीखते हैं। हम यहोवा की कारीगरी के बारे में जितनी गहराई से सीखते हैं, उतना ज़्यादा हम उसकी बुद्धि के बारे में सोचकर हैरान रह जाते हैं। अगर हम परमेश्‍वर की बुद्धि के मुताबिक काम करें, तो आज हम एक खुशहाल ज़िंदगी जीएँगे और भविष्य में सुरक्षित रह पाएँगे। (सभो. 7:12) जी हाँ, हम खुद अनुभव करेंगे कि नीतिवचन 3:13, 18 के शब्द कितने सच हैं: “क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे। जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, उनके लिये वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उसको पकड़े रहते हैं, [वे] धन्य हैं।”

[फुटनोट]

^ आगे के फुटनोट में बताए लेखों में दिलचस्प जानकारी दी गयी है, जिसे पढ़ने में खासकर बच्चों को बड़ा आनंद आएगा। और जब मंडली के प्रहरीदुर्ग अध्ययन में इस लेख पर चर्चा की जाएगी, तब वे अपने जवाबों में उन लेखों से सीखी बातें भी बता सकते हैं।

^ चींटियों के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए यहोवा के करीब आओ किताब का पेज 173, पैरा. 13 और अक्टूबर–दिसंबर 2006 की सजग होइए! के पेज 8 पर बक्स देखिए।

^ नीतिवचन 30:26 (नयी हिन्दी बाइबिल): “चट्टानी बिज्जू जीव-जन्तुओं में निर्बल होता है, किन्तु वह अपना घर मज़बूत चट्टानों में बनाता है।”

^ चट्टानी बिज्जू के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए 8 सितंबर, 1990 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) के पेज 15-16 देखिए।

^ टिड्डियों के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए 22 अक्टूबर, 1976 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) का पेज 11 देखिए।

^ नीतिवचन 30:28 (किताब-ए-मुकद्दस): “छिपकली जो अपने हाथों से पकड़ती है, और तौभी शाही महलों में है।”

^ छिपकली के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए अक्टूबर-दिसंबर 2006 की सजग होइए! का पेज 5 और 6 देखिए।

क्या आपको याद है?

हम यहोवा की इन रचनाओं से क्या सबक सीखते हैं:

• चींटी से?

• चट्टानी बिज्जू से?

• टिड्डी से?

• छिपकली से?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 16 पर तसवीर]

क्या आप चींटी की तरह मेहनती हैं?

[पेज 17 पर तसवीरें]

चट्टानी बिज्जू दूसरे बिज्जुओं के साथ-साथ रहने से हिफाज़त पाता है। उसी तरह, क्या आप मसीही भाई-बहनों की संगति में रहते हैं?

[पेज 18 पर तसवीरें]

प्रचार के काम के लिए मसीही सेवकों में टिड्डियों जैसी लगन होती है

[पेज 18 पर तसवीर]

जिस तरह छिपकली सतह से चिपकी रहती है, उसी तरह मसीही अच्छी बातों से लिपटे रहते हैं

[चित्र का श्रेय]

Stockbyte/Getty Images