जवानो—अपनी तरक्की ज़ाहिर कीजिए
जवानो—अपनी तरक्की ज़ाहिर कीजिए
“इन बातों के बारे में गहराई से सोचता रह और इन्हीं में लगा रह, ताकि तेरी तरक्की सब लोगों पर ज़ाहिर हो।”—1 तीमु. 4:15.
1. परमेश्वर जवानों के लिए क्या चाहता है?
प्राचीन इसराएल के बुद्धिमान राजा सुलैमान ने लिखा: “हे जवान, अपनी जवानी में आनन्द कर, और अपनी जवानी के दिनों में मगन रह।” (सभो. 11:9) यह संदेश यहोवा परमेश्वर की तरफ से है जो चाहता है कि आप जवान खुश रहें। और वह आपको सिर्फ जवानी में ही नहीं बल्कि उम्र-भर खुश देखना चाहता है। लेकिन कई बार जवानी में एक इंसान ऐसी गलतियाँ कर बैठता है जिसका दुख उसे ज़िंदगी-भर सालता रहता है। वफादार अय्यूब को भी अपनी ‘जवानी के अधर्म का फल भुगतना’ पड़ा और इसका उसे बेहद दुख था। (अय्यू. 13:26) किशोरावस्था में और उसके बाद के कुछ सालों में कई बार एक मसीही जवान को अहम फैसले करने पड़ते हैं। ऐसे में अगर वह कोई गलत फैसला कर बैठे, तो शायद यह बात उसके दिल को हमेशा कचोटती रहे। और हो सकता है ऐसी समस्याएँ खड़ी हो जाएँ, जिनका बोझ उसे सारी ज़िंदगी उठाना पड़े।—सभो. 11:10.
2. बाइबल में दी कौन-सी सलाह मानने से जवान गलतियाँ करने से बच सकते हैं?
2 जवानों को समझदारी से काम लेने की ज़रूरत है। गौर कीजिए कि प्रेषित पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को क्या सलाह दी। उसने लिखा: “सोचने-समझने की काबिलीयत में बच्चों जैसे नादान न बनो, . . . मगर सोचने-समझने की काबिलीयत में सयाने बनो।” (1 कुरिं. 14:20) पौलुस की सलाह मानने से जवान, बड़े लोगों की तरह सोचने-समझने और तर्क करने की काबिलीयत बढ़ा पाएँगे, जिससे वे ज़िंदगी में बड़ी गलतियाँ करने से बचेंगे।
3. सोचने-समझने और सही फैसले करने की काबिलीयत बढ़ाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
3 आप जवानों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि सोचने-समझने और सही फैसले करने की काबिलीयत बढ़ाने में मेहनत लगती है। पौलुस ने तीमुथियुस से कहा: “कोई भी तेरी कम उम्र की वजह से तुझे नीची नज़रों से न देखे। इसके बजाय, बोलने में, चालचलन में, प्यार में, विश्वास में और शुद्ध चरित्र बनाए रखने में विश्वासयोग्य लोगों के लिए एक मिसाल बन जा। . . . लोगों के सामने पढ़कर सुनाने, सीख देकर उकसाने और सिखाने में जी-जान से लगा रह। . . . इन बातों के बारे में गहराई से सोचता रह और इन्हीं में लगा रह, ताकि तेरी तरक्की सब लोगों पर ज़ाहिर हो।” (1 तीमु. 4:12-15) मसीही जवानों को तरक्की करने की ज़रूरत है और उनकी यह तरक्की दूसरों पर ज़ाहिर होनी चाहिए।
तरक्की क्या है?
4. एक मसीही को किन-किन मामलों में तरक्की करते रहने की ज़रूरत है?
4 तरक्की करने का मतलब है “आगे बढ़ना और अच्छे के लिए खुद में बदलाव लाना।” पौलुस ने तीमुथियुस को बढ़ावा दिया कि वह बोलने में, चालचलन में, प्यार में, विश्वास में, शुद्ध चरित्र बनाए रखने में और सेवा के हर दायरे में तरक्की करने के लिए खुद को लगा दे। तीमुथियुस को अपना जीवन ऐसा बनाना था, ताकि वह दूसरों के लिए एक अच्छी मिसाल ठहरे। इसके लिए उसे अपनी मसीही ज़िंदगी में और बाइबल की सच्चाइयाँ सिखाने की काबिलीयत में लगातार तरक्की करने की ज़रूरत थी।
5, 6. (क) तीमुथियुस ने अपनी तरक्की कब से ज़ाहिर करनी शुरू की? (ख) तरक्की करने के मामले में जवान, तीमुथियुस की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
5 पौलुस ने तीमुथियुस को यह सलाह ईसवी सन् 61 और 64 के बीच लिखी अपनी पहली चिट्ठी में दी थी। तब तक तीमुथियुस एक तजुर्बेकार प्राचीन बन चुका था। ऐसा नहीं था कि उसने अभी-अभी तरक्की करना शुरू किया हो। यह हम क्यों कह सकते हैं? क्योंकि ई. सन् 49 या 50 में जब तीमुथियुस करीब 20 साल का था, तब “लुस्त्रा और इकुनियुम के भाई तीमुथियुस की बहुत तारीफ किया करते थे।” (प्रेषि. 16:1-5) उस वक्त पौलुस, तीमुथियुस को अपने साथ मिशनरी दौरे पर ले गया। तीमुथियुस कुछ महीने पौलुस के साथ रहा। इस दौरान जब पौलुस ने देखा कि वह अच्छी तरक्की कर रहा है, तो उसने उसे थिस्सलुनीके भेजा, ताकि वह वहाँ के मसीहियों को दिलासा दे सके और उनका हौसला बढ़ा सके। (1 थिस्सलुनीकियों 3:1-3, 6 पढ़िए।) इन बातों से साफ है कि तीमुथियुस ने कम उम्र से ही अपनी तरक्की सब पर ज़ाहिर करनी शुरू कर दी थी।
6 मंडली के जवानो, आप अभी से अपने अंदर ऐसे गुण बढ़ाने के लिए मेहनत कीजिए ताकि मसीही ज़िंदगी में और बाइबल की सच्चाइयाँ सिखाने की काबिलीयत में आपकी तरक्की सब पर ज़ाहिर हो। बाइबल बताती है कि जब यीशु 12 साल का था, तब से वह “बुद्धि में बढ़ता और तरक्की करता गया।” (लूका 2:52) तो आइए देखें कि आप ज़िंदगी के तीन दायरों में अपनी तरक्की कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं: (1) मुश्किलों के वक्त, (2) शादी के बारे में सोचते वक्त और (3) “एक बढ़िया सेवक” बनने के लिए मेहनत करते वक्त।—1 तीमु. 4:6.
मुश्किलों के वक्त “स्वस्थ मन” बनाए रखिए
7. तनाव भरे हालात का जवानों पर कैसा असर हो सकता है?
7 सत्रह साल की एक मसीही जवान कैरल कहती है: “मेरी ज़िंदगी में एक ऐसा दौर था, जब मैं भावनात्मक रूप से टूट चुकी थी। मैं शारीरिक और दिमागी तौर पर पूरी तरह से थक जाती थी। ऐसे में मेरा मन करता कि मैं सुबह बस सोते रहूँ।” * वह किस बात से इतना टूट गयी थी? दरअसल जब कैरल 10 साल की थी तब उसके मम्मी-पापा का तलाक हो गया और उसका परिवार बिखर गया। इसके बाद उसे अपनी मम्मी के साथ रहना पड़ा, जो बाइबल के नैतिक सिद्धांतों को नहीं मानती थी। कैरल की तरह, शायद आप भी किसी तनाव भरे हालात से गुज़र रहे हों, जिनके सुधरने की गुंजाइश बहुत कम हो।
8. तीमुथियुस को अपनी ज़िंदगी में किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?
8 तीमुथियुस को भी अपने मसीही जीवन में तरक्की करते वक्त कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उदाहरण के लिए वह पेट में तकलीफ की वजह से ‘बार-बार बीमार’ रहता था। (1 तीमु. 5:23) इसके अलावा लगता है कि तीमुथियुस स्वभाव से थोड़ा संकोची या शर्मीला था। क्योंकि जब कुरिंथ के कुछ मसीहियों ने पौलुस के अधिकार पर सवाल खड़े किए तब समस्या को सुलझाने के लिए उसने तीमुथियुस को वहाँ भेजा। और पौलुस ने कुरिंथ की मंडली को लिखा कि वे तीमुथियुस को पूरा सहयोग दें, ताकि वह “बिना किसी डर के” उनके साथ रह सके।—1 कुरिं. 4:17; 16:10, 11.
9. स्वस्थ मन रखने का क्या मतलब है? यह कायरता दिखाने से कैसे अलग है?
9 तीमुथियुस की मदद करने के लिए आगे चलकर पौलुस ने उसे याद दिलाया: “परमेश्वर ने हमें जो मन का रुझान दिया है वह कायरता का नहीं, बल्कि शक्ति का और प्यार का और स्वस्थ मन रखने का रुझान है।” (2 तीमु. 1:7) “स्वस्थ मन” रखने का मतलब है, सोचने-समझने और समझदारी से काम करने की काबिलीयत। इसमें यह भी शामिल है कि आप हर हालात का सामना करें, भले ही हालात वैसे न हों जैसे आपने चाहे थे। कुछ जवान तनाव से बचने के लिए अपना पूरा समय सोने या टी.वी. देखने में बिता देते हैं। तो कुछ ड्रग्स या शराब का सहारा लेते हैं, या अकसर पार्टियों में मज़े करते या अनैतिक काम करते हैं। ऐसा करके वे दिखाते हैं कि वे कायर हैं और उनमें हालात का सामना करने की हिम्मत नहीं। मगर मसीहियों को साफ बताया गया है कि वे “ऐसे चालचलन को त्याग दें जो परमेश्वर की मरज़ी के खिलाफ है और दुनियावी ख्वाहिशों को त्याग दें और मौजूदा दुनिया की व्यवस्था में स्वस्थ मन से और परमेश्वर के स्तरों पर चलते हुए और उसकी भक्ति करते हुए जीवन बिताएँ।”—तीतु. 2:12.
10, 11. स्वस्थ मन होने से हम कैसे एक मज़बूत मसीही बन पाएँगे?
10 बाइबल ‘जवान भाइयों को उकसाती है कि वे स्वस्थ मन रखें।’ (तीतु. 2:6) इस सलाह को मानने का मतलब है कि जब आपके सामने समस्याएँ आती हैं तो आप उनका सामना करने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना में मदद माँगें और उससे मिलनेवाली शक्ति पर भरोसा रखें। (1 पतरस 4:7 पढ़िए।) इस तरह आप ‘उस शक्ति पर जो परमेश्वर देता है,’ पूरे दिल से भरोसा कर पाएँगे।—1 पत. 4:11.
11 स्वस्थ मन रखने और प्रार्थना करने से कैरल को मदद मिली। वह कहती है: “मेरी माँ की बदचलन ज़िंदगी के असर से खुद को बचाना मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। लेकिन प्रार्थना से मुझे सचमुच बड़ी मदद मिली। मैं जानती हूँ यहोवा मेरे साथ है, इसलिए अब मुझे डर नहीं लगता।” यह बात हमेशा याद रखिए कि मुश्किलों की कसौटी पर कसकर आप एक खरे इंसान बनेंगे और आपको हर हालात का सामना करने की ताकत मिलेगी। (भज. 105:17-19; विला. 3:27) आपकी ज़िंदगी में चाहे जो भी समस्या आए, परमेश्वर आपको कभी नहीं छोड़ेगा। वह ‘निश्चय ही आपकी सहायता करेगा।’—यशा. 41:10, NHT.
कामयाब शादी के लिए खुद को तैयार करना
12. जो मसीही शादी करने की सोच रहा है, उसे नीतिवचन 20:25 में दिए सिद्धांत को क्यों मानना चाहिए?
12 कुछ लोग जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते ही जल्दबाज़ी में शादी कर लेते हैं। वे सोचते हैं कि ऐसा करके उन्हें उदासी, अकेलेपन, उबाऊ ज़िंदगी और घर की परेशानियों से छुटकारा मिल जाएगा और उनकी ज़िंदगी खुशियों से भर जाएगी। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि शादी की शपथ एक गंभीर बात है। बाइबल के ज़माने में कुछ लोगों ने उतावली में बिना सोचे-समझे परमेश्वर के लिए मन्नत मानी, लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि उसे पूरा करने में कितना कुछ शामिल है। (नीतिवचन 20:25 पढ़िए।) कभी-कभी जवान शादी करने से पहले यह नहीं सोचते कि अपनी शादी को कामयाब बनाने के लिए उन्हें कितनी मेहनत करनी पड़ेगी। शादी के बाद ही उन्हें पता चलता है कि जैसा उन्होंने सोचा था, इसमें उससे कहीं ज़्यादा शामिल है।
13. जो किसी के साथ मेल-जोल बढ़ाने की सोच रहे हैं, उन्हें खुद से कौन-से सवाल पूछने चाहिए? उन्हें कहाँ से सलाह मिल सकती है?
13 शादी के बारे में सोचने से पहले खुद से पूछिए: ‘मैं क्यों शादी करना चाहता हूँ? शादीशुदा ज़िंदगी से मेरी क्या उम्मीदें हैं? क्या यह शख्स मेरा जीवन-साथी बनने के लिए सही है? क्या मैं शादीशुदा ज़िंदगी की ज़िम्मेदारियाँ उठाने के लिए तैयार हूँ?’ इन सवालों पर गहराई से सोचने और सही नतीजे पर पहुँचने में मदद देने के लिए ‘विश्वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ ने ऐसे लेख प्रकाशित किए हैं, जिनमें इस विषय पर खुलकर जानकारी दी गयी है। * (मत्ती 24:45-47) इन्हें हमें यहोवा की ओर से मिलनेवाली सलाह समझना चाहिए। इसलिए इन्हें पढ़ते वक्त ध्यान से जाँचिए और इनमें बतायी बातों को अपनी ज़िंदगी में लागू कीजिए। ‘घोड़े और खच्चर के समान मत बनिए जो समझ नहीं रखते।’ (भज. 32:8, 9) शादी के बाद क्या-क्या ज़िम्मेदारियाँ आएँगी, इस बारे में अपनी समझ बढ़ाइए। अगर आपको लगता है कि आप शादी के लिए तैयार हैं और किसी से मेल-जोल बढ़ाना चाहते हैं, तो यह हमेशा याद रखिए कि आप “शुद्ध चरित्र बनाए रखने में . . . एक मिसाल” बनें।—1 तीमु. 4:12.
14. मसीह के जैसे गुण बढ़ाने से आपको शादीशुदा ज़िंदगी में कैसे मदद मिलेगी?
14 अगर आप सच्चाई में मज़बूत हैं, तो आप शादी के बाद भी, ज़िंदगी में आनेवाली बाधाओं को पार कर पाएँगे और आपकी शादीशुदा ज़िंदगी कामयाब होगी। एक प्रौढ़ मसीही “मसीह की पूरी कद-काठी हासिल” करने की कोशिश करता है। (इफि. 4:11-14) वह मसीह के जैसे गुण बढ़ाने के लिए जी-जान से मेहनत करता है। मसीह ने हम सबके लिए एक आदर्श रखा। उसने “खुद को खुश नहीं किया।” (रोमि. 15:3) उसी तरह जब पति या पत्नी अपने बारे में सोचने के बजाय अपने साथी के फायदे के बारे में सोचते हैं, तो उनकी शादीशुदा ज़िंदगी में खुशी और शांति बनी रहती है। (1 कुरिं. 10:24) पति अपनी पत्नी के लिए निस्वार्थ प्यार दिखाएगा और पत्नी भी अपने पति के अधीन रह पाएगी ठीक जैसे यीशु अपने सिर यानी परमेश्वर के अधीन है।—1 कुरिं. 11:3; इफि. 5:25.
“अपनी सेवा को अच्छी तरह पूरा कर”
15, 16. सेवा में अपनी तरक्की ज़ाहिर करने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
15 तीमुथियुस को जो खास ज़िम्मेदारी दी गयी थी, उसकी तरफ ध्यान खींचते हुए पौलुस ने उसे लिखा: “मैं तुझे परमेश्वर के सामने और मसीह यीशु के सामने, . . . यह आदेश देता हूँ कि तू वचन का प्रचार करने में जी-जान से लगा रह।” उसने आगे कहा: “प्रचारक का काम कर, अपनी सेवा को अच्छी तरह पूरा कर।” (2 तीमु. 4:1, 2, 5) अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए तीमुथियुस को ‘विश्वास के वचनों से अपने मन का पोषण’ करना था।—1 तीमुथियुस 4:6 पढ़िए।
16 आप ‘विश्वास के वचनों से अपने मन का पोषण’ कैसे कर सकते हैं? पौलुस ने लिखा: “लोगों के सामने पढ़कर सुनाने, सीख देकर उकसाने और सिखाने में जी-जान से लगा रह। इन बातों के बारे में गहराई से सोचता रह और इन्हीं में लगा रह।” (1 तीमु. 4:13, 15) उन्नति करने के लिए मन लगाकर निजी अध्ययन करना ज़रूरी होता है। “इन्हीं में लगा रह,” ये शब्द ज़ाहिर करते हैं कि किसी काम को पूरी तल्लीनता से किया जाए। आपके अध्ययन की आदतें कैसी हैं? क्या आप “परमेश्वर के गहरे रहस्यों” को जानने में लगे रहते हैं? (1 कुरिं. 2:10) या आप सिर्फ नाम के वास्ते अध्ययन करते हैं? आप जो अध्ययन करते हैं, अगर आप उस बारे में गहराई से सोचें तो यह आपको भले कामों में लगे रहने के लिए उकसाएगा।—नीतिवचन 2:1-5 पढ़िए।
17, 18. (क) आपको कौन-कौन सी काबिलीयतें बढ़ानी चाहिए? (ख) तीमुथियुस के जैसा स्वभाव रखने से आपको सेवा में कैसे मदद मिलेगी?
17 मीशेल जो एक जवान पायनियर बहन है, कहती है: “प्रचार में असरदार तरीके से बात करने के लिए मैंने निजी अध्ययन का एक अच्छा शेड्यूल बनाया है और मैं बिना नागा सभाओं में हाज़िर होती हूँ। इस वजह से मैं सच्चाई में लगातार तरक्की कर पाती हूँ।” पायनियर सेवा करने से आप प्रचार में बाइबल का अच्छा इस्तेमाल करने की अपनी काबिलीयत निखार पाएँगे। साथ ही आप सच्चाई में भी तरक्की कर पाएँगे। एक अच्छा पढ़नेवाला बनिए और मसीही सभाओं में बढ़िया जवाब देने की कोशिश कीजिए। जब आपको परमेश्वर की सेवा स्कूल में कोई विद्यार्थी भाग पेश करना होता है, तो दिए गए भाग से अच्छी तैयारी कीजिए और इस तरह पेश कीजिए जिससे सभी को फायदा हो। इस तरह आप अपनी तरक्की दूसरों पर ज़ाहिर कर पाएँगे।
18 ‘प्रचारक का काम करने’ का मतलब है अपनी सेवा को ज़्यादा असरदार बनाना और उद्धार पाने में लोगों की मदद करना। और ऐसा करने के लिए ज़रूरी है कि आप अपनी “सिखाने की कला” में निखार लाएँ। (2 तीमु. 4:2) इसके लिए आप तजुर्बेकार प्रचारकों के साथ काम कर सकते हैं। वे सिखाने के लिए जो असरदार तरीके इस्तेमाल करते हैं, उससे आप बहुत कुछ सीख पाएँगे। ठीक जैसे तीमुथियुस, पौलुस के साथ काम करके सीख पाया था। (1 कुरिं. 4:17) पौलुस ने सच्चाई सीखने में जिन लोगों की मदद की थी, उनके बारे में उसने कहा कि उसने न सिर्फ उन्हें खुशखबरी सुनायी बल्कि उनके लिए “अपनी जान” तक देने को तैयार था। यानी उसने जी-जान से उनकी मदद की क्योंकि वे उसके प्यारे हो गए थे। (1 थिस्स. 2:8) तीमुथियुस ने भी पौलुस की मिसाल पर चलकर त्याग की भावना दिखायी। वह सच्चे दिल से दूसरों की परवाह करता था और ‘खुशखबरी फैलाने में कड़ी मेहनत’ करता था। (फिलिप्पियों 2:19-23 पढ़िए।) क्या आप भी पौलुस के जैसा बढ़िया प्रचारक बनने के लिए अपनी सेवा में दूसरों की खातिर ऐसी मेहनत करते हैं?
तरक्की करने से सच्चा संतोष मिलता है
19, 20. सच्चाई में तरक्की करने से हमें क्यों खुशी मिलती है?
19 सच्चाई में तरक्की करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन अगर आप धीरज रखते हुए अपने सिखाने की कला बढ़ाते जाएँ तो समय के गुज़रते आप “बहुतों को” सच्चाई सिखाकर ‘अमीर बना’ पाएँगे और वे आपकी ‘खुशी या जीत का ताज’ बन जाएँगे। (2 कुरिं. 6:10; 1 थिस्स. 2:19) पूरे समय का एक सेवक फ्रेड कहता है, “आज मैं पहले से भी ज़्यादा समय लोगों की मदद करने में बिताता हूँ। इसमें कोई शक नहीं कि लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।”
20 सच्चाई में तरक्की करने से जो खुशी और संतोष मिलता है उसके बारे में एक जवान पायनियर बहन डैफ्नी कहती है: “जैसे-जैसे मैं यहोवा के बारे में सीखती गयी उसके साथ मेरा रिश्ता मज़बूत होता गया। जब हम अपनी पूरी काबिलीयत से यहोवा की सेवा करते हैं और उसे खुश करते हैं तो बहुत अच्छा लगता है और गहरा संतोष मिलता है!” कभी-कभी हो सकता है कि सच्चाई में आपकी तरक्की लोगों को नज़र न आए, लेकिन याद रखिए आप जो तरक्की करते हैं यहोवा उसे हमेशा देखता है और उसकी कदर करता है। (इब्रा. 4:13) इसमें कोई शक नहीं कि आप मसीही जवान अपने जीने के तरीके से स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता की महिमा और स्तुति कर सकते हैं। हमें उम्मीद है कि आप जवान अपनी तरक्की ज़ाहिर करके यहोवा का दिल खुश करते रहेंगे।—नीति. 27:11.
[फुटनोट]
^ कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
^ जुलाई-सितंबर, 2007 की सजग होइए! का लेख “क्या ये शख्स मेरा जीवन-साथी बनने के लिए सही है?”; 15 मई, 2001 की प्रहरीदुर्ग का लेख “जीवन-साथी चुनने के लिए परमेश्वर का मार्गदर्शन” और किताब युवाओं के प्रश्न व्यावहारिक उत्तर का अध्याय “क्या मैं विवाह के लिए तैयार हूँ?” देखिए।
आपने क्या सीखा?
• मसीही जीवन में तरक्की करने में क्या-क्या शामिल है?
• आप अपनी तरक्की दूसरों पर कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं:
मुश्किलों का सामना करते वक्त?
शादी के बारे में सोचते वक्त?
प्रचार में?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 15 पर तसवीर]
मुश्किलों के वक्त प्रार्थना करने से आपको मदद मिलेगी
[पेज 16 पर तसवीर]
जवान प्रचारक असरदार तरीके से लोगों को सिखाने के लिए क्या कर सकते हैं?