नब्बे साल पहले मैंने “अपने सृष्टिकर्ता को याद” करना शुरू किया
नब्बे साल पहले मैंने “अपने सृष्टिकर्ता को याद” करना शुरू किया
एडविन रीजवैल की ज़ुबानी
ग्यारह नवंबर, 1918 का दिन था। उस दिन महायुद्ध, जिसे आगे चलकर प्रथम विश्वयुद्ध कहा गया, खत्म हुआ। मेरे स्कूल में अचानक ही सारे बच्चों को इसका जश्न मनाने के लिए इकट्ठा किया गया। तब मैं सिर्फ पाँच साल का था और मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। फिर भी परमेश्वर के बारे में मम्मी-पापा ने अब तक मुझे जो सिखाया था, उससे मेरे मन में एक बात साफ थी कि मुझे इस जश्न में हिस्सा नहीं लेना है। मैंने मदद के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की, मगर दूसरे ही पल मैं अपनी भावनाओं पर काबू न पा सका और फूट-फूटकर रोने लगा। इसके बावजूद मैं उस जश्न में शरीक नहीं हुआ। उस छोटी-सी उम्र से मैंने “अपने सृष्टिकर्ता को याद” करना शुरू किया।—सभो. 12:1, बुल्के बाइबिल।
इस घटना के कुछ महीने पहले मेरा परिवार स्कॉटलैंड के ग्लास्गो शहर में आ बसा था। उन्हीं दिनों, पापा ने एक जन भाषण सुना जिसका शीर्षक था: “आज जी रहे लाखों लोग कभी नहीं मरेंगे।” इस भाषण ने पापा की ज़िंदगी बदल दी। मम्मी-पापा ने बाइबल का अध्ययन शुरू किया। वे अकसर आपस में परमेश्वर के राज और भविष्य में मिलनेवाली आशीषों के बारे में बात करते। उस समय से ही उन्होंने मुझे परमेश्वर से प्यार करना और उस पर भरोसा रखना सिखाया। और इस बात के लिए मैं यहोवा का बहुत शुक्रगुज़ार हूँ।—नीति. 22:6.
पूरे समय की सेवा शुरू की
पंद्रह साल की उम्र में मेरे सामने ऊँची शिक्षा हासिल करने का मौका आया। लेकिन मैं पूरे समय की सेवा करना चाहता था। पापा को लगा कि मैं अभी बहुत छोटा हूँ, इसलिए कुछ समय के लिए मैं एक ऑफिस में काम करने लगा। पर यहोवा की सेवा करने की मेरी इच्छा इतनी ज़बरदस्त थी कि एक दिन मैंने भाई जे. एफ. रदरफर्ड को एक चिट्ठी लिख डाली। वे उस समय दुनिया-भर में हो रहे प्रचार काम की निगरानी कर रहे थे। मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्हें भी लगता है कि मैं पूरे समय की सेवा करने के लिए बहुत छोटा हूँ। भाई ने जवाब में लिखा: “अगर तुम नौकरी करने के लिए छोटे नहीं, तो प्रभु की सेवा करने के लिए भी छोटे नहीं। . . . मुझे यकीन है, अगर तुम खुद को प्रभु की सेवा में लगा दोगे, तो वह तुम्हें ज़रूर आशीष देगा।” 10 मार्च, 1928 को लिखी उस चिट्ठी ने मेरे परिवार पर गहरा असर किया। जल्द ही पापा, मम्मी, दीदी और मैंने पूरे समय की सेवा शुरू कर दी।
सन् 1931 में लंदन में हुए एक अधिवेशन में भाई रदरफर्ड ने कहा कि ऐसे भाई-बहनों की ज़रूरत है, जो दूसरे देशों में जाकर खुशखबरी सुना सकें। मैंने फौरन अपना नाम दिया और मुझे एक दूसरे भाई एंड्रू जैक के साथ लिथुआनिया की राजधानी काउनस भेजा गया। तब मैं 18 साल का था।
विदेश में राज संदेश फैलाना
उस समय लिथुआनिया एक गरीब देश था और वहाँ के लोग खेती-बाड़ी करते थे। इस देश के देहाती इलाकों में प्रचार करना एक भारी चुनौती थी। रहने की जगह मिलना मुश्किल था। और कुछ जगह जहाँ हम रहे, उन्हें तो मैं कभी नहीं भूल सकता। एक बार की बात है, मैं और एंड्रू ठीक से सो नहीं पा रहे थे। जब हमने दीया जलाकर देखा तो हमारा बिस्तर खटमलों से भरा पड़ा था। उन खटमलों ने हमें सिर से पाँव तक
काट लिया था। अपना दर्द कम करने के लिए मैं एक हफ्ते तक हर सुबह पास की एक नदी में जाता और गर्दन तक पानी में डूबा रहता। लेकिन हमने हार नहीं मानी और अपनी सेवा जारी रखी। कुछ ही दिनों में हमारे रहने की समस्या सुलझ गयी। हमारी मुलाकात एक शादीशुदा जोड़े से हुई जिन्होंने सच्चाई कबूल की थी। वे हमें अपने घर ले गए जो छोटा मगर साफ-सुथरा था। उस रात हम बड़े चैन की नींद सोए। भले ही यहाँ हमें ज़मीन पर सोना था, मगर यह उस खटमल-भरे बिस्तर से लाख गुना अच्छा था!उस वक्त लिथुआनिया में रोमन कैथोलिक और रूस के ऑर्थोडॉक्स चर्च के पादरियों का दबदबा था। बाइबल सिर्फ अमीर लोग ही खरीद सकते थे। इसलिए हमारा मकसद था ज़्यादा-से-ज़्यादा इलाकों में प्रचार करना और दिलचस्पी दिखानेवालों को जितना हो सके उतना बाइबल साहित्य देना। जब हम किसी कसबे में जाते, तो पहले रहने की जगह ढूँढ़ते। फिर बड़ी सावधानी से कसबे के बाहरी इलाकों में प्रचार करते। बाद में हम कसबे में तेज़ी से प्रचार करते और इससे पहले कि पादरी कोई बखेड़ा खड़ा करते, हम वहाँ से उड़न-छू हो जाते।
मचायी एक हलचल, हो गया प्रचार घर-घर
सन् 1934 में एंड्रू को काउनस के शाखा दफ्तर में काम करने के लिए बुलाया गया और फिर मेरा नया साथी बना जॉन सैम्पे। हमारे साथ बहुत-से यादगार अनुभव हुए। एक दिन मैं किसी कसबे में एक वकील को उसके ऑफिस में प्रचार कर रहा था। अचानक ही वह भड़क उठा और दराज़ से अपनी पिस्तौल निकालकर मुझ पर तान दी और कहा: ‘दफा हो जाओ यहाँ से!’ मैंने मन-ही-मन प्रार्थना की और बाइबल की यह सलाह याद की, “कोमल उत्तर से क्रोध शान्त हो जाता है।” (नीति. 15:1, NHT) मैंने उसे जवाब दिया: “मैं सिर्फ एक दोस्त के नाते आपको खुशखबरी सुनाने आया था। अगर आपको कोई एतराज़ है तो मैं चला जाता हूँ।” यह सुनकर पिस्तौल के घोड़े पर उसकी पकड़ ढीली हो गयी और मैं उलटे पाँव लौट आया।
जब मैं जॉन से मिला, तो उसने कहा कि आज उसके साथ भी बहुत कुछ हुआ। वह एक स्त्री को प्रचार कर रहा था और उस स्त्री ने उस पर पैसे चुराने का इलज़ाम लगाया। जॉन को पुलिस स्टेशन ले जाया गया जहाँ उसके कपड़े उतारकर उसकी तलाशी ली गयी। लेकिन उसके पास वे पैसे नहीं मिले। बाद में असली चोर पकड़ा गया।
इन दोनों घटनाओं से उस शांत कसबे में हलचल मच गयी और हमारे प्रचार किए बिना ही सबको हमारे काम के बारे में पता चल गया।
गुप्त अभियान
हमें लिथुआनिया के पड़ोसी देश लाटविया में बाइबल साहित्य ले जाने का ज़िम्मा सौंपा गया था। यह एक जोखिम-भरा काम था क्योंकि वहाँ प्रचार पर पाबंदी लगी थी। महीने में एक बार हम रात की ट्रेन से लाटविया जाते। कई बार वहाँ साहित्य पहुँचाने के बाद हम कुछ और साहित्य लेने आगे एस्टोनिया तक जाते। और वापसी में वे साहित्य लाटविया में छोड़ देते।
एक मौके पर एक कस्टम ऑफिसर को हमारे काम की भनक लग गयी और उसने हमें आदेश दिया कि हम फौरन ट्रेन से उतरें और बड़े अफसर के पास अपना साहित्य लाएँ। मैंने और जॉन ने यहोवा से मदद के लिए प्रार्थना की। ताज्जुब की बात थी कि उस ऑफिसर ने अपने अधिकारी को यह नहीं
बताया कि हम क्या ले जा रहे हैं। उसने सिर्फ इतना कहा: “इन लोगों के पास कुछ सामान है जिसके बारे में ये आपको बताना चाहते हैं।” मैंने उन्हें “बताया” कि हमारे पास कुछ ऐसे साहित्य हैं जो स्कूल-कॉलेज के बच्चों के लिए बहुत मददगार हैं। इनसे वे समझ पाएँगे कि दुनिया में जो बुरी घटनाएँ हो रही हैं उसकी वजह क्या है। उस बड़े अफसर ने हमें जाने दिया और हम साहित्य को अपनी मंज़िल तक पहुँचाने में कामयाब हो गए।जैसे-जैसे बाल्टिक राज्यों (लिथुआनिया, लाटविया और एस्टोनिया) की राजनीतिक हालत बिगड़ती गयी, लोग साक्षियों के खिलाफ होते गए। लिथुआनिया में भी हमारे काम पर पाबंदी लग गयी। एंड्रू और जॉन को उनके देश वापस भेज दिया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध का खतरा मँडरा रहा था और लिथुआनिया में रहनेवाले ब्रिटेन के सभी नागरिकों को वहाँ से जाने की सलाह दी गयी। इसलिए मुझे अपने दिल पर पत्थर रखकर उस देश को अलविदा कहना पड़ा।
उत्तरी आयरलैंड में मिली खास ज़िम्मेदारियाँ और आशीषें
उस समय मम्मी-पापा उत्तरी आयरलैंड में आकर रहने लगे थे। सन् 1937 में मैं भी उनके पास चला गया। लोगों पर युद्ध का जुनून इस कदर सवार था कि यहाँ पर भी हमारे साहित्य पर पाबंदी लगा दी गयी। मगर हम द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान प्रचार करते रहे। युद्ध के बाद सरकार ने हमारे काम पर लगी पाबंदी हटा दी। भाई हैरल्ड किंग ने हमारे यहाँ खुले मैदान में जन भाषण आयोजित करने का ज़िम्मा उठाया। वे एक तजुरबेकार पायनियर थे, जिन्होंने आगे चलकर चीन में मिशनरी सेवा की। उन्होंने कहा: “इस शनिवार पहला जन भाषण मैं दूँगा।” फिर उन्होंने मेरी तरफ देखकर कहा: “अगले शनिवार भाषण देने की बारी तुम्हारी।” यह सुनकर मेरे होश उड़ गए।
मुझे आज भी अपना पहला भाषण अच्छे से याद है। मैंने एक बक्से पर खड़े होकर, बिना लाउडस्पीकर के भाषण दिया। वहाँ सैकड़ों लोग जमा थे। भाषण खत्म होने के बाद एक आदमी ने मुझसे हाथ मिलाया और अपना नाम बिल स्मिथ बताया। उसने कहा कि जब उसने लोगों की भीड़ देखी तो यह जानने के लिए रुक गया कि यहाँ क्या हो रहा है।
बातों-बातों में पता चला कि बिल के पास पहले मेरे पापा आया करते थे। लेकिन जब से पापा पायनियर सेवा के लिए डब्लिन चले गए तब से उन दोनों की मुलाकात नहीं हो पायी। मैंने बिल के साथ दोबारा बाइबल अध्ययन शुरू किया। वक्त के गुज़रते बिल के परिवार के नौ और सदस्य यहोवा के सेवक बने।बाद में मैं बेलफास्ट के बाहरी इलाकों के बड़े-बड़े बंगलों में प्रचार करने लगा। वहाँ मेरी मुलाकात एक रूसी लड़की से हुई जो लिथुआनिया में रह चुकी थी। जब मैंने उसे कुछ साहित्य दिखाए तो उसने एक किताब की तरफ इशारा करते हुए कहा: “यह किताब तो मेरे पास है। मेरे बड़े पापा ने मुझे दी है, वे काउनस यूनिवर्सिटी में एक प्रोफेसर हैं।” उसने मुझे पोलिश भाषा में क्रिएश्न किताब निकालकर दिखायी। किताब के हाशिए नोट्स से भरे हुए थे। मैंने उसे बताया कि वह किताब मैंने ही उसके बड़े पापा को काउनस में दी थी। यह सुनकर वह हैरान रह गयी।—सभो. 11:1.
जब मैं उत्तरी आयरलैंड आने की तैयारी कर रहा था, तब जॉन सैम्पे ने मुझसे कहा कि वहाँ मैं उसकी छोटी बहन नैली से ज़रूर मिलूँ क्योंकि उसे बाइबल में दिलचस्पी थी। मैंने और मेरी दीदी कौनी ने उसके साथ बाइबल अध्ययन किया। नैली ने जल्द ही तरक्की की और यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित कर दी। धीरे-धीरे हम दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया और हमने शादी कर ली।
नैली और मैंने साथ मिलकर यहोवा की सेवा में 56 साल गुज़ारे। हमें सौ से भी ज़्यादा लोगों को सच्चाई सिखाने की आशीष मिली। हम सोचते थे कि हम साथ-साथ हर-मगिदोन पार कर यहोवा की नयी दुनिया में पहुँचेंगे। मगर 1998 में बेरहम दुश्मन मौत ने उसे मुझसे छीन लिया। नैली की मौत से मुझे गहरा सदमा पहुँचा, इसे सहना मेरी ज़िंदगी की सबसे कठिन परीक्षा थी।
पुरानी यादें ताज़ा हुईं
नैली के गुज़रने के करीब एक साल बाद मुझे एक सुनहरी आशीष मिली। मुझे एस्टोनिया के शाखा दफ्तर में आमंत्रित किया गया जो टाल्लीन शहर में है। खत में भाइयों ने लिखा: “1920 और 1930 के दशक में जिन दस भाइयों को बाल्टिक राज्यों में भेजा गया था उनमें सिर्फ आप ही हमारे बीच हैं।” उसमें यह भी लिखा था कि शाखा दफ्तर एस्टोनिया, लाटविया और लिथुआनिया में हुए प्रचार काम का इतिहास लिख रहा है। खत के आखिर में मुझसे पूछा गया था: “क्या आप आकर हमारी मदद कर सकते हैं?”
उन बीते सालों की यादें ताज़ा करना और अपने साथियों के साथ मैंने जो सेवा की थी, उसके बारे में बताना वाकई एक बड़ा सम्मान था! लाटविया में मैंने भाइयों को वह मकान दिखाया जो शुरू-शुरू में हमारा शाखा दफ्तर हुआ करता था। छत के नीचे मैंने वह जगह भी दिखायी जहाँ हम साहित्य छिपाते थे और जिसे पुलिस कभी नहीं ढूँढ़ पायी। लिथुआनिया में मुझे शाउले नाम के एक छोटे-से कसबे में ले जाया गया जहाँ मैंने पायनियर सेवा की थी। एक सभा में एक भाई ने मुझसे कहा: “बहुत साल पहले मैंने और मम्मी ने इस कसबे में एक घर खरीदा था। परछत्ती साफ करते वक्त हमें दो किताबें मिलीं। एक थी, द डिवाइन प्लान ऑफ दि एजेस् और दूसरी द हार्प ऑफ गॉड। उन्हें पढ़कर मुझे यकीन हो गया कि मुझे सच्चाई मिल गयी है। वह ज़रूर आप ही होंगे जिन्होंने सालों पहले उस घर पर वे किताबें छोड़ी होंगी।”
मैं एक और कसबे में गया जहाँ मैंने पायनियर सेवा की थी और वहाँ एक सर्किट सम्मेलन में भी हाज़िर हुआ। इसी जगह पर 65 साल पहले मैं एक सम्मेलन में हाज़िर हुआ था। उस समय सम्मेलन में कुल 35 लोग थे। मगर आज वहाँ 1,500 लोगों को देख मेरा दिल बाग-बाग हो गया। यहोवा ने प्रचार काम पर क्या ही आशीष दी है!
‘यहोवा ने मुझे नहीं छोड़ा’
हाल ही में मुझे एक ऐसी आशीष मिली जिसके बारे में मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। एक प्यारी-सी मसीही बहन जिसका नाम बी है मुझसे शादी करने के लिए राज़ी हुई। नवंबर 2006 में हमने शादी कर ली।
अगर कोई जवान इस कशमकश में है कि वह अपनी ज़िंदगी के साथ क्या करेगा तो मैं उससे कहूँगा कि इन शब्दों को मानने में ही बुद्धिमानी है: “अपनी जवानी के दिनों में अपने सृष्टिकर्ता को याद रखो।” मैंने खुद ऐसा किया और मुझे ज़िंदगी से कोई शिकवा नहीं। आज मैं भजनहार की तरह यह कह सकता हूँ: “हे परमेश्वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है, और अब तक मैं तेरे आश्चर्य कर्मों का प्रचार करता आया हूं। इसलिये हे परमेश्वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़, जब तक मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगों को तेरा बाहुबल और सब उत्पन्न होनेवालों को तेरा पराक्रम [न] सुनाऊं।”—भज. 71:17, 18.
[पेज 25 पर नक्शा]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
लाटविया में बाइबल साहित्य पहुँचाना एक जोखिम-भरा काम था
एस्टोनिया
टाल्लीन
रीगा की खाड़ी
लाटविया
रीगा
लिथुआनिया
विल्निअस
काउनस
[पेज 26 पर तसवीर]
15 साल की उम्र में मैंने स्कॉटलैंड में एक कॉलपोर्टर (पायनियर) के नाते सेवा शुरू की
[पेज 26 पर तसवीर]
1942 में नैली के साथ, हमारी शादी के दिन