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“खुद को ऐसा इंसान बनाए रखो जिससे परमेश्‍वर प्यार करे”

“खुद को ऐसा इंसान बनाए रखो जिससे परमेश्‍वर प्यार करे”

“खुद को ऐसा इंसान बनाए रखो जिससे परमेश्‍वर प्यार करे”

“खुद को ऐसा इंसान बनाए रखो जिससे परमेश्‍वर प्यार करे, जबकि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह की दया पाने का इंतज़ार करते हो जिससे तुम्हें हमेशा की ज़िंदगी मिलती है।”—यहू. 21.

1, 2. यहोवा ने हमारे लिए अपना प्यार कैसे दिखाया है? और हम कैसे जानते हैं कि उसके प्यार के लायक बने रहने के लिए हमें मेहनत करनी होगी?

 यहोवा परमेश्‍वर ने अनगिनत तरीकों से हमारे लिए अपना प्यार दिखाया है। उसके प्यार का सबसे बड़ा सबूत है, उसके बेटे यीशु का फिरौती बलिदान। यहोवा हम इंसानों से इतना प्यार करता है कि उसने अपने जिगर के टुकड़े को हमारी खातिर कुरबान होने के लिए इस धरती पर भेजा। (यूह. 3:16) यहोवा ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह चाहता है कि हम हमेशा की ज़िंदगी पाएँ और वह हमेशा तक हमसे प्यार करता रहे।

2 लेकिन क्या हमारा यह उम्मीद करना सही होगा कि हम चाहे जैसी भी ज़िंदगी जीएँ, यहोवा हमसे प्यार करता रहेगा? हरगिज़ नहीं। यहूदा की किताब में आयत 21 हमें यह बढ़ावा देती है: “खुद को ऐसा इंसान बनाए रखो जिससे परमेश्‍वर प्यार करे, जबकि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह की दया पाने का इंतज़ार करते हो जिससे तुम्हें हमेशा की ज़िंदगी मिलती है।” “खुद को ऐसा इंसान बनाए रखो,” ये शब्द दिखाते हैं कि परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहने के लिए हमें कुछ करना होगा। हमें क्या करने की ज़रूरत है?

हम परमेश्‍वर के प्यार में कैसे बने रह सकते हैं?

3. यीशु के मुताबिक यहोवा के प्यार में बने रहने के लिए उसे क्या करना था?

3 इस सवाल का जवाब हमें यीशु के उन शब्दों से मिलता है जो उसने धरती पर अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात कहे थे। उसने कहा: “अगर तुम मेरी आज्ञाओं पर चलो तो मेरे प्यार में बने रहोगे, ठीक जिस तरह मैं पिता की आज्ञाओं पर चलता हूँ और उसके प्यार में बना रहता हूँ।” (यूह. 15:10) यीशु बखूबी जानता था कि परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानने से ही वह उसके प्यार में बना रह सकता है। सोचिए, अगर परमेश्‍वर के सिद्ध बेटे के लिए उसकी आज्ञाएँ मानना ज़रूरी था, तो क्या हम असिद्ध इंसानों के लिए भी यह ज़रूरी नहीं?

4, 5. (क) यहोवा के लिए प्यार दिखाने का सबसे पहला और अहम तरीका क्या है? (ख) हमें यहोवा की आज्ञा मानने से क्यों दूर नहीं भागना चाहिए?

4 यहोवा के लिए अपना प्यार दिखाने का सबसे पहला और अहम तरीका है, उसकी आज्ञाएँ मानना। प्रेषित यूहन्‍ना ने कहा: “परमेश्‍वर से प्यार करने का मतलब यही है कि हम उसकी आज्ञाओं पर चलें; और उसकी आज्ञाएँ हम पर बोझ नहीं हैं।” (1 यूह. 5:3) यह सच है कि आज दुनिया में लोगों को दूसरों का हुक्म मानना बिलकुल गवारा नहीं। लेकिन गौर कीजिए कि यूहन्‍ना ने क्या कहा: “उसकी आज्ञाएँ हम पर बोझ नहीं हैं।” यहोवा हमसे ऐसा कोई भी काम करने के लिए नहीं कहता, जो हमारे लिए बहुत मुश्‍किल हो।

5 इस बात को समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए: क्या आप अपने जिगरी दोस्त से ऐसा सामान उठाने को कहेंगे, जो उसके लिए बहुत भारी हो? कभी नहीं! जब हम अपने दोस्त के लिए लिहाज़ दिखाते हैं तो सोचिए यहोवा हम इंसानों के लिए कितना लिहाज़ दिखाता होगा। वह हमसे कहीं ज़्यादा दयालु है और हमारी सीमाओं को हमसे बेहतर जानता है। बाइबल हमें यकीन दिलाती है कि यहोवा को ‘स्मरण है कि हम मिट्टी हैं।’ (भज. 103:14) वह हमसे ऐसा कुछ भी करने को नहीं कहता, जो हम न कर पाएँ। इसलिए यहोवा की आज्ञा मानने से हमें दूर नहीं भागना चाहिए। हम खुशी-खुशी उसकी आज्ञा मानते हैं, क्योंकि इस तरह हम दिखाते हैं कि हम उससे सच्चा प्यार करते हैं और उसके प्यार में बने रहना चाहते हैं।

यहोवा से मिला अनमोल तोहफा

6, 7. (क) ज़मीर क्या है? (ख) परमेश्‍वर के प्यार में बने रहने के लिए ज़मीर कैसे हमारी मदद करता है? उदाहरण देकर समझाइए।

6 उलझनों से भरी इस ज़िंदगी में हमें ऐसे कई फैसले लेने होते हैं, जिनसे हम दिखा सकते हैं कि हम परमेश्‍वर की आज्ञा मानते हैं। लेकिन सवाल है कि हम यह कैसे पता लगा सकते हैं कि ये फैसले परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक हैं या नहीं? यहोवा ने हमें एक अनमोल तोहफा दिया है जो उसकी आज्ञा मानने में हमारी मदद करता है। यह तोहफा है, हमारा ज़मीर। ज़मीर क्या है? यह एक खास काबिलीयत है, जो हमारे कामों, रवैयों और चुनावों को परखती है। यह हमारे अंदर के इंसान की आवाज़ है जो हमें बताती है कि हमने जो कदम उठाए, वे सही थे या गलत या हम जो चुनाव करने जा रहे हैं, वह अच्छा है या बुरा।—रोमियों 2:14, 15 पढ़िए।

7 हमारा ज़मीर कैसे हमारी मदद करता है? मान लीजिए, एक मुसाफिर एक वीरान इलाका पार कर रहा है। वहाँ न तो पक्की सड़क है और न ही दूर-दूर तक कोई साइन बोर्ड है। इसके बावजूद, वह बेफिक्र होकर अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ता जा रहा है। जानते हैं क्यों? क्योंकि उसके पास कम्पास है। कम्पास, घड़ी जैसा दिखनेवाला एक यंत्र है जिसमें चार दिशाएँ अंकित होती हैं। इस यंत्र के बीचों-बीच चुंबक की सुई होती है, जो हमेशा उत्तर दिशा दिखाती है। अगर उस मुसाफिर के पास कम्पास न हो तो वह रास्ता भटक सकता है। उसी तरह ज़मीर के बिना एक इंसान अपनी ज़िंदगी में गलत फैसले कर सकता है।

8, 9. (क) अपने ज़मीर के बारे में हमें क्या बात ध्यान में रखनी चाहिए? (ख) हमारा ज़मीर हमें सही राह दिखाए, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?

8 मगर कम्पास हमेशा सही दिशा नहीं दिखाता। अगर उसके पास एक चुंबक रखा जाए तो उसकी सुई गलत दिशा दिखाएगी। यही बात हमारे ज़मीर के बारे में भी सच है। अगर हम अपने दिल की हर इच्छा पूरी करने लगें, तो ये इच्छाएँ चुंबक जैसा असर करेंगी और इस वजह से हमारा ज़मीर हमें गलत राह दिखाएगा। बाइबल हमें खबरदार करती है: “मनुष्य का हृदय सब से अधिक कपटी और अविश्‍वसनीय है।” (यिर्म. 17:9, बुल्के बाइबिल; नीति. 4:23) इतना ही नहीं, अगर उस मुसाफिर के पास सही नक्शा न हो, तो उसका कम्पास भी उसकी कोई खास मदद नहीं कर पाएगा। उसी तरह अगर हम परमेश्‍वर के वचन से मिलनेवाली सही और भरोसेमंद सलाह पर न चलें तो हमारा ज़मीर किसी काम का नहीं होगा। (भज. 119:105) अफसोस, आज दुनिया में ज़्यादातर लोग बाइबल में दिए परमेश्‍वर के स्तरों की कदर नहीं करते। इसके बजाय वे अपनी स्वार्थी इच्छाएँ पूरी करने में लगे रहते हैं। (इफिसियों 4:17-19 पढ़िए।) यही वजह है कि ज़मीर के होते हुए भी कई लोग ऐसे घिनौने काम करते हैं, जिनके बारे में सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।—1 तीमु. 4:2.

9 हमें ठान लेना चाहिए कि हम उन लोगों के जैसा हरगिज़ नहीं बनेंगे। बल्कि हम परमेश्‍वर के वचन से अपने ज़मीर को प्रशिक्षण देते रहेंगे, ताकि वह हमें सही राह दिखा सके। हमें प्रशिक्षण पाए अपने ज़मीर की सुनना चाहिए और दिल में उठनेवाली स्वार्थी इच्छाओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। साथ ही, हमें अपने मसीही भाई-बहनों के ज़मीर का भी खयाल करना चाहिए। हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि जिन बातों के लिए हमारा ज़मीर हमें इजाज़त देता है, उन्हीं बातों के लिए शायद हमारे भाई-बहनों का ज़मीर उन्हें इजाज़त न दे। इसलिए हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे, जिससे हमारे भाई-बहन ठोकर खा जाएँ।—1 कुरिं. 8:12; 2 कुरिं. 4:2; 1 पत. 3:16.

10. अब हम ज़िंदगी के किन तीन पहलुओं पर चर्चा करेंगे?

10 आइए अब ज़िंदगी के उन तीन पहलुओं पर गौर करें, जिनमें हम आज्ञा मानकर यहोवा के लिए अपना प्यार दिखा सकते हैं। बेशक इन पहलुओं में हमारे ज़मीर की अहम भूमिका है। लेकिन सबसे पहले हमें अपने ज़मीर को बाइबल के स्तरों के मुताबिक प्रशिक्षण देने की ज़रूरत है। हम इन तरीकों से यहोवा के लिए अपना प्यार दिखा सकते हैं: (1) उन लोगों से प्यार करना, जिनसे यहोवा प्यार करता है, (2) उन लोगों का आदर करना, जिन्हें अधिकार दिया गया है और (3) यहोवा की नज़रों में शुद्ध बने रहने की कोशिश करना।

उनसे प्यार कीजिए जिनसे यहोवा प्यार करता है

11. हमें उन लोगों से क्यों प्यार करना चाहिए जिनसे यहोवा प्यार करता है?

11 पहला तरीका है, हमें उन लोगों से प्यार करना चाहिए जिनसे यहोवा प्यार करता है। जब संगति की बात आती है तो देखा गया है कि हम स्पंज की तरह होते हैं। जैसे स्पंज पानी सोख लेता है, वैसे ही हमारे आस-पास का माहौल हमारे अंदर समा जाता है। हमारा सिरजनहार बखूबी जानता है कि संगति से हम असिद्ध इंसानों को या तो फायदा हो सकता है, या नुकसान। इसलिए वह हमें यह सलाह देता है: “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।” (नीति. 13:20; 1 कुरिं. 15:33) हममें से कोई भी “नाश” होना नहीं चाहता, बल्कि हम सब “बुद्धिमान” बनना चाहते हैं। यहोवा इस जहान की सबसे बुद्धिमान हस्ती है। वह किसी की संगति में रहकर न तो और बुद्धिमान बन सकता है, न ही भ्रष्ट हो सकता है। फिर भी मित्र चुनने के मामले में वह हमारे लिए बेहतरीन मिसाल रखता है। गौर कीजिए कि उसने असिद्ध इंसानों में से किन्हें अपना मित्र चुना।

12. यहोवा किस तरह के लोगों को अपना मित्र चुनता है?

12 यहोवा ने कुलपिता अब्राहम को ‘मेरा मित्र’ कहा। (यशा. 41:8, NHT) अब्राहम आज्ञा मानने, नेक काम करने, विश्‍वास और वफादारी दिखाने में एक बेजोड़ मिसाल था। (याकू. 2:21-23) यहोवा आज भी ऐसे लोगों को अपना मित्र चुनता है। अगर यहोवा सोच-समझकर अपने मित्र चुनता है, तो क्या हमें भी ऐसा नहीं करना चाहिए ताकि बुद्धिमानों के साथ चलकर हम बुद्धिमान हो जाएँ?

13. अच्छे दोस्त चुनने में क्या बात आपकी मदद करेगी?

13 इस मामले में सही चुनाव करने में क्या बात आपकी मदद करेगी? बाइबल में दिए उदाहरण आपकी मदद कर सकते हैं। ज़रा रूत और उसकी सास नाओमी की, दाविद और योनातन की, तीमुथियुस और पौलुस की दोस्ती के बारे में सोचिए। (रूत 1:16, 17; 1 शमू. 23:16-18; फिलि. 2:19-22) इन लोगों की गहरी दोस्ती की सबसे बड़ी वजह यह थी कि वे यहोवा से सच्चा प्यार करते थे। क्या आपको ऐसे दोस्त मिल सकते हैं, जो यहोवा से उतना ही प्यार करते हों जितना कि आप? यकीन मानिए, मसीही मंडली में आप ऐसे कई दोस्त पा सकते हैं। ये दोस्त आपको ऐसा कोई भी काम करने के लिए नहीं उकसाएँगे जिससे यहोवा नाराज़ हो जाए। बल्कि ये आपको यहोवा की आज्ञा मानने, उसके करीब आने और पवित्र शक्‍ति के लिए बोने का बढ़ावा देंगे। (गलातियों 6:7, 8 पढ़िए।) जी हाँ, आपके ये दोस्त आपको परमेश्‍वर के प्यार में बने रहने में मदद देंगे।

अधिकार रखनेवालों का आदर कीजिए

14. किन वजहों से अधिकार रखनेवालों का आदर करना हमेशा आसान नहीं होता?

14 यहोवा के लिए अपना प्यार दिखाने का दूसरा तरीका है, उन लोगों को आदर देना जिन्हें अधिकार दिया गया है। ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होता। क्यों? पहली वजह यह है कि हम पर अधिकार रखनेवाले इंसान असिद्ध हैं। दूसरी वजह हम भी असिद्ध हैं। और हमारे अंदर बगावत करने की फितरत पैदाइशी होती है।

15, 16. (क) यहोवा ने अपने लोगों की देखभाल करने के लिए जिन्हें ठहराया है, हमें उनका आदर क्यों करना चाहिए? (ख) मूसा के खिलाफ इसराएलियों की बगावत को यहोवा ने जिस नज़र से देखा, उससे हम कौन-सा ज़रूरी सबक सीखते हैं?

15 शायद आप सोचें कि ‘जब अधिकारियों को आदर देना इतना मुश्‍किल है तो फिर उन्हें आदर क्यों दें?’ दरअसल इस सवाल का जवाब विश्‍व की हुकूमत से जुड़ा है। आप किसे अपना महाराजाधिराज मानते हैं? अगर हम यहोवा को अपना महाराजाधिराज मानते हैं, तो हमें उसके अधिकार का आदर करना चाहिए। अगर हम ऐसा न करें, तो क्या हम दिल से कह सकते हैं कि हम यहोवा को अपना राजा मानते हैं? देखा गया है कि यहोवा अकसर असिद्ध इंसानों को अपने लोगों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी देता है। अगर हम ऐसे लोगों के खिलाफ बगावत करेंगे, तो यहोवा इसे किस नज़र से देखेगा?—1 थिस्सलुनीकियों 5:12, 13 पढ़िए।

16 जब इसराएलियों ने मूसा के खिलाफ कुड़कुड़ाया और बगावत की, तो यहोवा ने कहा कि उनकी बगावत मूसा के खिलाफ नहीं खुद उसके खिलाफ है। (गिन. 14:26, 27) परमेश्‍वर बदला नहीं है। अगर आज हम उसके ठहराए नुमाइंदों के खिलाफ बगावत करते हैं, तो यह मानो यहोवा के खिलाफ बगावत होगी।

17. मंडली के ज़िम्मेदार भाइयों के लिए हमें कैसा रवैया रखना चाहिए?

17 प्रेषित पौलुस ने बताया कि मसीही मंडली के ज़िम्मेदार भाइयों के लिए हमें कैसा रवैया रखना चाहिए। उसने कहा: “तुम्हारे बीच जो अगुवाई करते हैं उनकी आज्ञा मानो और उनके अधीन रहो, क्योंकि वे यह जानते हुए तुम्हारी निगरानी करते हैं कि उन्हें इसका हिसाब देना होगा, ताकि वे यह काम खुशी से करें न कि आहें भरते हुए, क्योंकि ऐसे में तुम्हारा ही नुकसान होगा।” (इब्रा. 13:17) यह सच है कि अधीन रहने और आज्ञा मानने में हमें बहुत मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन याद रखिए कि हमारा लक्ष्य है, परमेश्‍वर के प्यार में बने रहना। क्या इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हम इतना भी नहीं कर सकते?

यहोवा की नज़रों में शुद्ध रहिए

18. यहोवा क्यों चाहता है कि हम शुद्ध रहें?

18 यहोवा के लिए प्यार दिखाने का तीसरा तरीका है, उसकी नज़रों में शुद्ध बने रहने की कोशिश करना। माँ-बाप अकसर अपने बच्चों को साफ-सुथरा रखने के लिए बहुत मेहनत करते हैं। क्यों? क्योंकि साफ-सुथरा रहने से बच्चा सेहतमंद रहता है। इसके अलावा, अगर बच्चा साफ-सुथरा होगा तो इससे लोग माँ-बाप की तारीफ करेंगे और वे यह देख पाएँगे कि माँ-बाप बच्चे से प्यार करते हैं और उसका अच्छा खयाल रखते हैं। उसी तरह हमारा पिता यहोवा चाहता है कि हम शुद्ध रहें। वह जानता है कि इसमें हमारी ही भलाई है। वह यह भी जानता है कि हमारे शुद्ध रहने से, लोग उसके बारे में अच्छा कहेंगे। और यह बहुत ज़रूरी भी है, क्योंकि जब लोग देखेंगे कि हम इस गंदे संसार से कितने अलग हैं तो शायद वे यहोवा की तरफ खिंचे चले आएँ।

19. हम कैसे जानते हैं कि अपने शरीर को साफ-सुथरा रखना ज़रूरी है?

19 हमें किन तरीकों से शुद्ध रहना चाहिए? हर तरीके से। प्राचीन इसराएल में यहोवा ने अपने लोगों को खुलकर बताया था कि शारीरिक तौर पर शुद्ध रहना उनके लिए बेहद ज़रूरी है। (लैव्य. 15:31) मूसा के कानून में मल-त्याग को ढकने, बरतनों को साफ रखने, हाथ-पैर और कपड़े धोने के बारे में नियम दिए गए थे। (निर्ग. 30:17-21; लैव्य. 11:32; गिन. 19:17-20; व्यव. 23:13, 14) इसराएलियों को बार-बार याद दिलाया गया कि उनका परमेश्‍वर यहोवा पवित्र है, यानी वह “साफ,” “शुद्ध” और “पावन” परमेश्‍वर है। इसलिए उसके सेवकों को भी पवित्र होना चाहिए।लैव्यव्यवस्था 11:44, 45 पढ़िए।

20. हमें किन-किन तरीकों से शुद्ध रहने की ज़रूरत है?

20 हमें शरीर से ही नहीं बल्कि मन से भी शुद्ध रहने की ज़रूरत है। हम अपने सोच-विचारों को शुद्ध रखने की पूरी कोशिश करते हैं। भले ही आज दुनिया के नैतिक स्तर दिन-ब-दिन गिरते जा रहे हैं, लेकिन हम यहोवा के ऊँचे स्तरों पर चलना नहीं छोड़ते। सबसे बढ़कर हम उपासना के मामले में शुद्धता बनाए रखते हैं और इसमें झूठी उपासना की मिलावट नहीं करते। यशायाह 52:11 में परमेश्‍वर ने जो चेतावनी दी है, उसे हम हमेशा याद रखते हैं। वहाँ लिखा है: “दूर हो, दूर, वहां से निकल जाओ, कोई अशुद्ध वस्तु मत छुओ; उसके बीच से निकल जाओ; . . . अपने को शुद्ध करो।” हम झूठे धर्म से कोई वास्ता नहीं रखते और इस तरह अपनी उपासना को शुद्ध रखते हैं। यही वजह है कि हम दुनिया में धूम-धाम से मनाए जानेवाले तीज-त्योहारों में शरीक नहीं होते। यह सच है कि आज की दुनिया में शुद्ध रहना आसान नहीं। लेकिन यहोवा के लोग शुद्ध रहने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं, क्योंकि इस तरह वे परमेश्‍वर के प्रेम में बने रहते हैं।

21. क्या करने से हम यकीन रख सकते हैं कि हम परमेश्‍वर के प्यार में बने रहेंगे?

21 यहोवा चाहता है कि हम उसके प्यार में हमेशा तक बने रहें। लेकिन उसके प्यार के लायक बने रहने के लिए हममें से हरेक को हर मुमकिन कोशिश करनी होगी। अगर हम यीशु की मिसाल पर चलें और यहोवा की आज्ञाएँ मानकर उसके लिए प्यार दिखाएँ, तो हम यकीन रख सकते हैं कि कोई भी बात हमें ‘परमेश्‍वर के उस प्यार से अलग नहीं कर सकेगी जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है।’—रोमि. 8:38, 39.

क्या आपको याद है?

• परमेश्‍वर के प्यार में बने रहने के लिए हमारा ज़मीर कैसे हमारी मदद करता है?

• हमें उन लोगों से क्यों प्यार करना चाहिए जिनसे यहोवा प्यार करता है?

• अधिकार रखनेवालों का आदर करना क्यों ज़रूरी है?

• परमेश्‍वर के लोगों के लिए शुद्धता क्या अहमियत रखती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 20 पर बक्स/तसवीर]

अच्छे चालचलन का बढ़ावा देनेवाली एक किताब

सन्‌ 2008 के ज़िला अधिवेशन में 224 पेजवाली एक किताब रिलीज़ की गयी, जिसका नाम है खुद को परमेश्‍वर के प्यार के लायक बनाए रखो। इस नयी किताब का मकसद क्या है? इसका मकसद है मसीहियों को यहोवा के स्तरों के बारे में जानने और उनसे प्यार करने में मदद देना, खासकर वे स्तर जो मसीही चालचलन से जुड़े हैं। इस किताब का गहरा अध्ययन करने से हमारा यह भरोसा बढ़ेगा कि यहोवा के स्तरों पर चलना ही जीने का सबसे बेहतरीन तरीका है और इसी से हमें हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी।

इससे बढ़कर, यह किताब हमें यह समझने में मदद देगी कि यहोवा की आज्ञाएँ मानना बोझ नहीं। बल्कि आज्ञा मानकर हम दिखा सकते हैं कि हम उससे कितना प्यार करते हैं। यह किताब हमें खुद से यह सवाल पूछने के लिए उकसाएगी ‘मैं किसलिए यहोवा की आज्ञा मानता हूँ?’

जब कोई यहोवा के प्यार से दूर चले जाने की गलती करता है, तो अकसर इसकी वजह यह नहीं होती कि उसे बाइबल की शिक्षाएँ समझ में नहीं आयीं। बल्कि यह होती है कि वह व्यक्‍ति चालचलन के मामले में यहोवा के स्तरों के मुताबिक नहीं चला। इसलिए कितना ज़रूरी है कि हम यहोवा के उन नियमों और सिद्धांतों के लिए प्यार और कदर बढ़ाएँ, जो हमें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में राह दिखाते हैं! हमें यकीन है कि इस नयी किताब से दुनिया-भर में यहोवा की भेड़ों को सही काम के लिए दृढ़ खड़े रहने, शैतान को झूठा साबित करने और सबसे बढ़कर परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहने की मदद मिलेगी!—यहू. 21.

[पेज 18 पर तसवीर]

“अगर तुम मेरी आज्ञाओं पर चलो तो मेरे प्यार में बने रहोगे, ठीक जिस तरह मैं पिता की आज्ञाओं पर चलता हूँ और उसके प्यार में बना रहता हूँ”