इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

धरती पर हमेशा की ज़िंदगी की आशा फिर से ढूँढ़ी गयी

धरती पर हमेशा की ज़िंदगी की आशा फिर से ढूँढ़ी गयी

धरती पर हमेशा की ज़िंदगी की आशा फिर से ढूँढ़ी गयी

“हे दानिय्येल, . . . इन वचनों को अन्त समय तक के लिए बन्द रख। और बहुत लोग पूछ-पाछ और ढ़ूंढ़-ढांढ़ करेंगे, और इस से ज्ञान बढ़ भी जाएगा।”—दानि. 12:4.

1, 2. इस लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

 आज लाखों लोग बाइबल की इस आशा के बारे में अच्छी तरह जानते हैं कि इंसान धरती पर एक खूबसूरत बाग में हमेशा के लिए जीएँगे। (प्रका. 7:9, 17) परमेश्‍वर ने शुरू से ही ज़ाहिर किया कि इंसान को चंद साल जीने, फिर मर जाने के लिए नहीं बनाया गया है। उसे तो हमेशा तक जीने के लिए रचा गया था।—उत्प. 1:26-28.

2 जैसा कि हमने पिछले लेखों में देखा, इसराएलियों को आशा थी कि पूरी मानवजाति को सिद्ध किया जाएगा, ठीक जैसे शुरू में आदम सिद्ध था। और मसीही यूनानी शास्त्र में समझाया गया है कि परमेश्‍वर किस तरह फिरदौस में इंसानों को हमेशा की ज़िंदगी देगा। तो फिर ऐसा क्या हुआ कि यह आशा गुमनामी के अँधेरे में खो गयी? इसे दोबारा कैसे ढूँढ़ निकाला गया और लाखों लोगों को इसके बारे में कैसे पता चला?

आशा छिपायी गयी

3. इसमें क्यों ताज्जुब नहीं कि लोग, धरती पर अनंत जीवन की आशा से अनजान हैं?

3 यीशु ने कहा था कि झूठे भविष्यवक्‍ता आएँगे, जो उसकी शिक्षाओं को तोड़-मरोड़कर सिखाएँगे और बहुतों को गुमराह करेंगे। (मत्ती 24:11) प्रेषित पतरस ने मसीहियों को खबरदार किया: “तुम्हारे बीच भी झूठे शिक्षक आएँगे।” (2 पत. 2:1) और प्रेषित पौलुस ने कहा कि “ऐसा वक्‍त आएगा जब [लोग] खरी शिक्षा को बरदाश्‍त न कर सकेंगे, मगर अपनी ख्वाहिशों के मुताबिक अपने लिए ऐसे शिक्षक इकट्ठे करेंगे जो उनके कानों की खुजली मिटा सकें।” (2 तीमु. 4:3, 4) लोगों को गुमराह करने के पीछे शैतान का हाथ है और इसके लिए उसने झूठे ईसाई धर्म का इस्तेमाल किया है, ताकि लोग उस मकसद को न जान सकें, जो परमेश्‍वर ने इंसान और धरती के लिए ठहराया है।—2 कुरिंथियों 4:3, 4 पढ़िए।

4. ईसाईजगत के धर्म-गुरुओं ने किस शिक्षा को ठुकराया?

4 बाइबल समझाती है कि परमेश्‍वर का राज स्वर्ग की सरकार है, जो इंसान की तमाम सरकारों को चकनाचूर कर देगी। (दानि. 2:44) फिर मसीह की हज़ार साल की हुकूमत के दौरान, शैतान को अथाह-कुंड में कैद किया जाएगा, मरे हुओं को जी उठाया जाएगा और धरती पर इंसानों को सिद्ध किया जाएगा। (प्रका. 20:1-3, 6, 12; 21:1-4) लेकिन ईसाईजगत के धर्म-गुरुओं ने इस शिक्षा को ठुकराकर दूसरी धारणाओं को बढ़ावा दिया। मिसाल के लिए, तीसरी सदी में चर्च के एक विद्वान, सिकंदरिया के ऑरिजन ने उन लोगों की कड़ी निंदा की जो मानते हैं कि मसीह के हज़ार साल के राज में धरती पर लोगों को आशीषें मिलेंगी। द कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया के मुताबिक प्राचीन शहर हिप्पो के धर्म-विज्ञानी अगस्टीन (ईसवी सन्‌ 354-430) का “मानना था कि मसीह की हज़ार साल की हुकूमत नहीं होगी।” *

5, 6. ऑरिजन और अगस्टीन ने हज़ार साल की हुकूमत की शिक्षा को क्यों ठुकराया?

5 ऑरिजन और अगस्टीन ने हज़ार साल की हुकूमत की शिक्षा को क्यों ठुकराया? ऑरिजन यूनानियों की यह शिक्षा मानने लगा कि आत्मा अमर है। आत्मा के बारे में यूनानी दार्शनिक प्लेटो के विचारों ने भी उस पर गहरा असर किया। धर्म-विज्ञानी वरनर येगे कहता है कि ऑरिजन ने “मसीही शिक्षाओं में अमर आत्मा की शिक्षा मिला दी, जो उसने प्लेटो से अपनायी थी।” नतीजा, ऑरिजन यह सिखाने लगा कि मसीह की हज़ार साल की हुकूमत में लोगों को धरती पर नहीं, स्वर्ग में आशीषें मिलेंगी।

6 अगस्टीन के बारे में देखें तो वह 33 साल की उम्र में ईसाई बना। उससे पहले वह नवप्लेटोवाद विचारधारा का समर्थक था। नवप्लेटोवाद की शुरूआत प्लोटिनस नाम के एक दार्शनिक ने की थी, जिसकी शिक्षाएँ और फलसफे प्लेटो के विचारों पर आधारित थीं। ईसाई बनने के बाद भी अगस्टीन की सोच नवप्लेटोवादियों के जैसी ही रही। द न्यू इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका कहती है: “नए नियम की शिक्षाओं में प्लेटो की शिक्षाओं को मिलाने में अगस्टीन का बहुत बड़ा हाथ था।” द कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया के मुताबिक अगस्टीन ने समझाया कि प्रकाशितवाक्य अध्याय 20 में बताए हज़ार साल का शासन असल में होनेवाली घटना नहीं, बल्कि “एक रूपक-कथा” है। इनसाइक्लोपीडिया आगे कहती है कि ‘अगस्टीन की इस शिक्षा को उसके बाद आनेवाले ईसाईजगत के धर्म-विज्ञानियों ने अपना लिया। देखते-ही-देखते धरती पर अनंत जीवन की आशा गुमनामी के अँधेरे में खो गयी।’

7. किस झूठी शिक्षा की वजह से धरती पर हमेशा की ज़िंदगी की आशा मानवजाति से छिपायी गयी? यह कैसे हुआ?

7 हमेशा की ज़िंदगी की आशा पूरी मानवजाति से तब छिपायी गयी, जब प्राचीन बैबिलोन की एक शिक्षा दुनिया-भर में फैल गयी। इस शिक्षा के मुताबिक इंसान के अंदर अमर आत्मा होती है, जो थोड़े समय के लिए शरीर में वास करती है। ईसाईजगत ने भी यह शिक्षा अपना ली और बाइबल की जिन आयतों में स्वर्गीय आशा के बारे में बताया गया है, धर्म-विज्ञानी उन्हें तोड़-मरोड़कर यह सिखाने लगे कि सभी अच्छे लोग स्वर्ग जाएँगे। इस शिक्षा के मुताबिक धरती तो बस एक जगह है जहाँ इंसान कुछ साल रहता है और उसे परखा जाता है कि वह स्वर्ग में जीने के लायक है या नहीं। यहूदियों की आशा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। जैसे-जैसे यहूदियों ने इस यूनानी धारणा को अपना लिया कि आत्मा अमर है, धरती पर हमेशा तक जीने की उनकी आशा धुँधली पड़ गयी। यह धारणा बाइबल में बतायी इस सच्चाई से एकदम अलग है कि इंसान हाड़-माँस से बना है, उसमें कोई आत्मा नहीं होती। जैसा कि उत्पत्ति 3:19 में यहोवा ने पहले इंसान से कहा: ‘तू मिट्टी है।’ इंसान को स्वर्ग में नहीं धरती पर हमेशा तक जीने के लिए बनाया गया था।—भजन 104:5; 115:16 पढ़िए।

अँधेरे में चमकी सच्चाई की रौशनी

8. 1600 के दशकों में कुछ विद्वानों ने इंसान की आशा के बारे में क्या कहा?

8 मसीही होने का दावा करनेवाले ज़्यादातर धर्मों ने धरती पर अनंत जीवन की आशा के बारे में नहीं सिखाया। इन धर्मों के ज़रिए शैतान ने सच्चाई को अंधकार में रखने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह हमेशा कामयाब नहीं हुआ। सदियों के दौरान ऐसे चंद लोग हुए, जिन्होंने बाइबल का गहरा अध्ययन किया और कुछ हद तक समझ पाए कि परमेश्‍वर मानवजाति को कैसे सिद्ध करेगा। इस तरह उन पर सच्चाई की रौशनी चमकी। (भज. 97:11; मत्ती 7:13, 14; 13:37-39) 1600 के दशकों के आते-आते बाइबल के अनुवाद और छपाई से पवित्र शास्त्र बड़े पैमाने पर उपलब्ध हुआ। सन्‌ 1651 में एक विद्वान ने लिखा कि जहाँ आदम की वजह से इंसानों से “फिरदौस और धरती पर हमेशा की ज़िंदगी छिन गयी,” वहीं मसीह के ज़रिए “सब लोग धरती पर अनंत जीवन पाएँगे।” (1 कुरिंथियों 15:21, 22 पढ़िए।) ब्रिटेन के एक जाने-माने कवि जॉन मिल्टन (1608-1674) ने एक कविता लिखी फिरदौस खो गया (अँग्रेज़ी) और बाद में उसी कविता का दूसरा भाग लिखा, फिरदौस मिल गया (अँग्रेज़ी)। अपनी रचनाओं में मिल्टन ने बताया कि परमेश्‍वर के वफादार लोगों को धरती पर फिरदौस में ज़िंदगी मिलेगी। हालाँकि उन्होंने लगभग सारी ज़िंदगी बाइबल का अध्ययन करने में बितायी, लेकिन वे जानते थे कि बाइबल में दी सच्चाई की पूरी समझ मसीह की मौजूदगी के दौरान ही मिलेगी।

9, 10. (क) मानवजाति की आशा के बारे में आइज़क न्यूटन ने क्या लिखा? (ख) न्यूटन को ऐसा क्यों लगा कि मसीह की मौजूदगी शुरू होने में सदियाँ बाकी हैं?

9 गणित के एक मशहूर विद्वान सर आइज़क न्यूटन (1642-1727) को भी बाइबल में गहरी दिलचस्पी थी। उन्हें मालूम था कि पवित्र लोगों को स्वर्ग में जी उठाया जाएगा और वे मसीह के साथ राज करेंगे। (प्रका. 5:9, 10) उस राज की प्रजा के बारे में उन्होंने लिखा: “न्याय के दिन के बाद भी धरती पर इंसान जीएँगे और वह भी सिर्फ हज़ार साल के लिए नहीं बल्कि हमेशा के लिए।”

10 लेकिन न्यूटन के मुताबिक मसीह की मौजूदगी शुरू होने में सदियाँ बाकी थीं। न्यूटन को ऐसा क्यों लगा? इतिहासकार स्टीवन स्नोबेलन कहता है: “इसकी एक वजह थी कि उनके समय के ज़्यादातर लोग त्रिएक की झूठी शिक्षा में गहरी आस्था रखते थे। यह देखकर उन्हें लगा कि परमेश्‍वर का राज इतनी जल्दी नहीं आएगा।” खुशखबरी पर अभी-भी परदा पड़ा हुआ था। और न्यूटन को ऐसा कोई भी मसीही समूह नज़र नहीं आया जो इस खुशखबरी का ऐलान करता। उन्होंने लिखा: “दानिय्येल और [प्रकाशितवाक्य की किताब में दर्ज़] यूहन्‍ना की भविष्यवाणियों की समझ अंत के समय में ही मिलेगी।” न्यूटन ने समझाया: “दानिय्येल कहता है, ‘उस समय कई लोग यहाँ-वहाँ ढूँढ़-ढाँढ़ करेंगे और ज्ञान बढ़ जाएगा।’ इसलिए यह ज़रूरी है कि महा-संकट और दुनिया के अंत से पहले सभी देशों में खुशखबरी का प्रचार किया जाए। अगर ऐसा न किया गया, तो भला महा-संकट से बच निकलनेवालों की गिनती अनगिनत कैसे हो सकती है?”—दानि. 12:4; मत्ती 24:14; प्रका. 7:9, 10.

11. मिल्टन और न्यूटन के दिनों में ज़्यादातर लोग, धरती पर अनंत जीवन की आशा से अनजान क्यों थे?

11 मिल्टन और न्यूटन के दिनों में चर्च की शिक्षाओं से अलग विचार ज़ाहिर करना खतरे से खाली नहीं था। इसलिए उन्होंने बाइबल का अध्ययन करने पर जो कुछ लिखा, उसे छापा नहीं गया। उनकी रचनाओं को उनकी मौत के काफी अरसे बाद छापा गया। सोलहवीं सदी में कुछ लोगों ने कैथोलिक चर्च और उसकी शिक्षाओं के खिलाफ बगावत की और खुद को चर्च से अलग कर लिया। उन्हें प्रोटेस्टेंट कहा गया। लेकिन फिर भी अमर आत्मा की झूठी शिक्षा में कोई सुधार या बदलाव नहीं आया। उलटा बड़े-बड़े प्रोटेस्टेंट चर्चों ने अगस्टीन की विचारधारा सिखाना जारी रखा कि मसीह की हज़ार साल की हुकूमत शुरू हो चुकी है, यह भविष्य में होनेवाली कोई घटना नहीं। तो क्या अंत के समय में ज्ञान बढ़ा?

‘सच्चा ज्ञान बढ़ जाएगा’

12. सच्चे ज्ञान को कब बढ़ना था?

12 “अन्त समय” के बारे में दानिय्येल ने भविष्यवाणी की कि एक अच्छी घटना घटेगी। (दानिय्येल 12:3, 4, 9, 10 पढ़िए।) उस समय के बारे में यीशु ने भी कहा: “जो परमेश्‍वर की नज़र में नेक हैं, वे उस वक्‍त अपने पिता के राज में सूरज की तरह तेज़ चमकेंगे।” (मत्ती 13:43) अंत के समय में सच्चा ज्ञान कैसे बढ़ा है? जानने के लिए आइए देखें कि अंत का समय शुरू होने यानी 1914 से पहले के कुछ दशकों में क्या घटनाएँ घटीं।

13. बहाली के विषय पर अध्ययन करने के बाद चार्ल्स टेज़ रसल ने क्या लिखा?

13 सन्‌ 1800 के आखिरी सालों में, कई नेकदिल इंसान ‘खरी शिक्षाओं के नमूने’ को समझने की कोशिश कर रहे थे। (2 तीमु. 1:13) उनमें से एक थे, चार्ल्स टेज़ रसल। सन्‌ 1870 में उन्होंने सच्चाई की तलाश करनेवाले दूसरे लोगों के साथ मिलकर बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया। सन्‌ 1872 में उन लोगों ने बहाली के विषय पर अध्ययन किया। भाई रसल ने इस बारे में लिखा: “उस वक्‍त तक हम यह समझने से चूक गए थे कि चर्च (यानी अभिषिक्‍त मसीहियों की मंडली) को मिलनेवाले इनाम और वफादार लोगों को मिलनेवाले इनाम में बहुत बड़ा फर्क है।” वफादार लोगों का इनाम यह होगा कि उन्हें “बहाल करके सिद्ध किया जाएगा ठीक जैसे अदन में उनका पूर्वज . . . आदम सिद्ध था।” रसल ने कबूल किया कि बाइबल की समझ हासिल करने में दूसरे लोगों ने उनकी मदद की थी। वे कौन थे?

14. (क) प्रेषितों 3:21 में बतायी बहाली के बारे में हेनरी डन क्या जानता था? (ख) डन के मुताबिक कौन इस धरती पर हमेशा के लिए जीएँगे?

14 उनमें से एक था, हेनरी डन। उसने “उन सब बातों को बहाल करने” के बारे में लिखा, “जिनके बारे में परमेश्‍वर ने बीते ज़माने के अपने पवित्र भविष्यवक्‍ताओं के मुँह से कहा था।” (प्रेषि. 3:21) डन जानता था कि बहाली मसीह के हज़ार साल की हुकूमत के दौरान होगी और तब मानवजाति को धरती पर सिद्ध किया जाएगा। उसने उस सवाल पर भी काफी खोजबीन की, जो कई लोगों के मन में घूम रहा था। वह सवाल था, कौन इस धरती पर हमेशा के लिए जीएँगे? डन के मुताबिक लाखों लोगों को मरे हुओं में से ज़िंदा किया जाएगा, उन्हें सच्चाई सिखायी जाएगी और मसीह पर विश्‍वास ज़ाहिर करने का मौका दिया जाएगा।

15. जॉर्ज स्टॉर्ज़ पुनरुत्थान के बारे में किस नतीजे पर पहुँचा?

15 सन्‌ 1870 में जॉर्ज स्टॉर्ज़ भी इस नतीजे पर पहुँचा कि जो लोग जीते-जी यहोवा के बारे में नहीं जान पाए, उन्हें भविष्य में मरे हुओं में से जी उठाया जाएगा और हमेशा की ज़िंदगी पाने का मौका दिया जाएगा। उसने बाइबल से यह समझ भी हासिल की कि पुनरुत्थान के बाद अगर कोई इस मौके का फायदा नहीं उठाता, तो उसे “मौत मिलेगी फिर चाहे ‘वह सौ वर्ष का क्यों न हो।’” (यशा. 65:20) स्टॉर्ज़ ब्रुकलिन के न्यू यॉर्क शहर में रहता था और वह बाइबल एगज़ामिनर नाम की एक पत्रिका का संपादक था।

16. किस वजह से बाइबल विद्यार्थी, ईसाईजगत से अलग ठहरे?

16 भाई रसल ने बाइबल से समझा कि अब वह समय आ गया है जब खुशखबरी का दूर-दूर तक प्रचार किया जाना है। इसलिए 1879 में उन्होंने ज़ायन्स वॉच टावर एण्ड हेराल्ड ऑफ क्राइस्ट्‌स प्रेज़ेंस पत्रिका प्रकाशित करना शुरू किया, जो आज प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है, के नाम से जाना जाता है। इससे पहले बहुत कम लोगों को मानवजाति की आशा के बारे में समझ थी। लेकिन जब से प्रहरीदुर्ग पत्रिका छपनी शुरू हुई, तब से कई देशों में बाइबल विद्यार्थियों ने इसका अध्ययन किया और यह समझ हासिल की कि सिर्फ मुट्ठी-भर लोग स्वर्ग जाएँगे, जबकि लाखों लोगों को धरती पर सिद्ध जीवन मिलेगा। इस शिक्षा की वजह से वे ईसाईजगत से अलग ठहरे।

17. सच्चा ज्ञान किस तरह जगह-जगह फैला?

17 दानिय्येल की भविष्यवाणी में बताया गया “अन्त समय” 1914 में शुरू हुआ। क्या इंसान की आशा के बारे में सच्चा ज्ञान जगह-जगह फैला? (दानि. 12:4) सन्‌ 1913 तक भाई रसल के भाषण 2,000 अखबारों में छापे जा चुके थे और कुल मिलाकर 1 करोड़ 50 लाख लोग इन्हें पढ़ रहे थे। सन्‌ 1914 के आखिर तक, तीन महाद्वीपों में 90 लाख से भी ज़्यादा लोगों ने “फोटो-ड्रामा ऑफ क्रिएशन” देखा। यह चलती-फिरती तसवीरों और स्लाइड से बनी एक फिल्म थी, जिसमें मसीह की हज़ार साल की हुकूमत के बारे में समझाया गया है। सन्‌ 1918 से 1925 तक दुनिया-भर में 30 से भी ज़्यादा भाषाओं में यहोवा के सेवकों ने यह भाषण दिया, “आज जी रहे लाखों लोग कभी नहीं मरेंगे!” इस भाषण में धरती पर हमेशा तक जीने की आशा के बारे में बताया गया था। सन्‌ 1934 तक यहोवा के साक्षियों को एहसास हो गया था कि जो लोग धरती पर हमेशा जीने की आशा रखते हैं, उन्हें बपतिस्मा लेना होगा। इस आशा की समझ ने उनमें राज के बारे में खुशखबरी प्रचार करने का जोश और भी भर दिया। आज लाखों लोग धरती पर अनंत जीवन पाने की आशा के लिए यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं!

“शानदार आज़ादी” बहुत जल्द!

18, 19. यशायाह 65:21-25 की भविष्यवाणी के मुताबिक भविष्य में ज़िंदगी कैसी होगी?

18 भविष्यवक्‍ता यशायाह ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा कि यहोवा के लोग धरती पर कैसी ज़िंदगी का लुत्फ उठाएँगे। (यशायाह 65:21-25 पढ़िए।) यशायाह ने ये शब्द आज से लगभग 2,700 साल पहले लिखे थे और उस ज़माने के कुछ पेड़ शायद आज भी ज़िंदा हैं। क्या आप इतनी लंबी उम्र तक सेहतमंद ज़िंदगी जीने की सोच सकते हैं?

19 नयी दुनिया में ज़िंदगी पल भर की नहीं होगी। इसके बजाय हमें तरह-तरह की चीज़ें बनाने, पेड़-पौधे लगाने और बहुत कुछ सीखने के ढेर सारे मौके मिलेंगे। ज़रा उस समय के बारे में सोचिए जब आप कई लोगों से दोस्ती कर पाएँगे। प्यार की डोर से बँधे ये रिश्‍ते कभी खत्म नहीं होंगे, बल्कि मज़बूत होते चले जाएँगे। जी हाँ, उस समय “परमेश्‍वर के बच्चे” धरती पर कैसी “शानदार आज़ादी” का मज़ा उठाएँगे!—रोमि. 8:21.

[फुटनोट]

^ अगस्टीन का दावा था कि परमेश्‍वर के राज की हज़ार साल की हुकूमत भविष्य में होनेवाली कोई घटना नहीं, बल्कि यह तो [कैथोलिक] चर्च की स्थापना से शुरू हो चुकी है।

क्या आप समझा सकते हैं?

• धरती पर जीने की आशा किस तरह गुमनामी के अँधेरे में खो गयी?

• 1600 के दशकों में बाइबल पढ़नेवाले कुछ लोगों को क्या समझ मिली?

• 1914 के आते-आते इंसान की सच्ची आशा पर पड़ा परदा कैसे उठाया गया?

• धरती पर जीने की आशा के बारे में ज्ञान कैसे बढ़ गया है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीरें]

कवि जॉन मिल्टन (बायीं तरफ) और गणित के विद्वान आइज़क न्यूटन (दायीं तरफ) धरती पर हमेशा की ज़िंदगी की आशा के बारे में जानते थे

[पेज 15 पर तसवीरें]

शुरू के बाइबल विद्यार्थियों ने बाइबल से समझा कि दुनिया को इंसानों की सच्ची आशा के बारे में बताने का वक्‍त आ गया है