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परमेश्‍वर ने दी धरती पर हमेशा की ज़िंदगी की आशा

परमेश्‍वर ने दी धरती पर हमेशा की ज़िंदगी की आशा

परमेश्‍वर ने दी धरती पर हमेशा की ज़िंदगी की आशा

‘आशा के आधार पर सृष्टि व्यर्थता के अधीन की गयी।’—रोमि. 8:20.

1, 2. (क) धरती पर हमेशा की ज़िंदगी की आशा हमारे लिए क्यों अहमियत रखती है? (ख) कई लोगों को इस आशा पर यकीन करना क्यों मुश्‍किल लगता है?

 जब आपने पहली बार बाइबल से सीखा कि भविष्य में लोग न तो बूढ़े होंगे, न मरेंगे बल्कि धरती पर हमेशा के लिए जीएँगे, तो आपको कैसा महसूस हुआ था? बेशक आपका दिल खुशी से झूम उठा होगा। (यूह. 17:3; प्रका. 21:3, 4) इस आशा के बारे में दूसरों को बताने में भी आपको बेहद खुशी मिली होगी। और क्यों न हो, आखिर हमेशा की ज़िंदगी की आशा उस खुशखबरी का अहम पहलू है, जिसका हम प्रचार करते हैं। इस आशा की वजह से ज़िंदगी की तरफ हमारा नज़रिया बदल गया है।

2 लेकिन ईसाईजगत ने इस आशा को नज़रअंदाज़ किया है। ज़्यादातर चर्चों में सिखाया जाता है कि इंसान के मरने पर उसका शरीर नाश हो जाता है, मगर उसकी आत्मा अमर रहती है और आत्मिक लोक में ज़िंदा रहती है। यह शिक्षा बाइबल से नहीं है, क्योंकि बाइबल सिखाती है कि जब एक इंसान मर जाता है, तो उसका पूरा वजूद मिट जाता है। (सभो. 9:5) ईसाईजगत की झूठी शिक्षा की वजह से कई लोगों को इस बात पर यकीन करना मुश्‍किल लगता है कि धरती पर हमें हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। इसलिए शायद हमारे मन में ये सवाल उठें: क्या बाइबल सचमुच इस आशा के बारे में बताती है? अगर हाँ, तो परमेश्‍वर ने इसे इंसानों पर सबसे पहले कब ज़ाहिर किया?

‘आशा के आधार पर व्यर्थता के अधीन की गयी’

3. इंसानों की शुरूआत से ही परमेश्‍वर ने मानवजाति के लिए अपना मकसद कैसे ज़ाहिर किया?

3 इंसान की शुरूआत से ही यहोवा ने ज़ाहिर किया कि मानवजाति के लिए उसका क्या मकसद है। परमेश्‍वर ने आदम को साफ-साफ बताया कि अगर वह उसका आज्ञाकारी रहे तो हमेशा तक जीएगा। (उत्प. 2:9, 17; 3:22) लेकिन आदम ने पाप किया और असिद्ध हो गया। आदम के शुरू के वंशजों को मालूम था कि इंसान ने सिद्धता खो दी है। वे देख सकते थे कि अदन के बाग का रास्ता बंद है और इंसान बूढ़े होकर मर रहे हैं। (उत्प. 3:23, 24) समय के गुज़रते, इंसानों की ज़िंदगी कम होने लगी। आदम 930 साल ज़िंदा रहा। नूह का बेटा, शेम सिर्फ 600 साल जीया। उसका बेटा अर्पक्षद्‌ 438 साल तक जीवित रहा। अब्राहम का पिता तेरह, 205 साल ज़िंदा रहा। अब्राहम 175 साल, उसका बेटा इसहाक 180 साल और याकूब 147 साल जीवित रहा। (उत्प. 5:5; 11:10-13, 32; 25:7; 35:28; 47:28) बहुत-से लोगों को यह एहसास हुआ होगा कि उनकी ज़िंदगी के दिन कम होने का मतलब है कि वे अनंत जीवन की आशा खो चुके हैं। क्या वे इस आशा को दोबारा पाने की आस लगा सकते थे?

4. वफादार जनों को किस बात से भरोसा मिला कि उन्हें वे सारी आशीषें मिलेंगी जो आदम ने गँवा दी थीं?

4 परमेश्‍वर का वचन कहता है: ‘सृष्टि [यानी इंसानों] को आशा के आधार पर व्यर्थता के अधीन किया गया।’ (रोमि. 8:20) यह आशा क्या है? यह हमें बाइबल की सबसे पहली भविष्यवाणी से मिलती है। इसमें एक “वंश” का ज़िक्र किया गया है, जो ‘साँप के सिर को कुचल डालेगा।’ (उत्पत्ति 3:1-5, 15 पढ़िए।) इस भविष्यवाणी से वफादार जनों को यह उम्मीद मिली कि परमेश्‍वर इंसानों के लिए अपना मकसद नहीं भूला है। इससे हाबिल और नूह जैसे लोगों को भरोसा मिला कि परमेश्‍वर इंसानों को वे सारी आशीषें देगा, जो आदम ने गँवा दी थीं। उन्हें शायद मालूम था कि ‘वंश की एड़ी को डसने’ में लहू बहाना शामिल होगा।—उत्प. 4:4; 8:20; इब्रा. 11:4.

5. किस बात से पता चलता है कि अब्राहम को पुनरुत्थान पर विश्‍वास था?

5 अब्राहम की मिसाल लीजिए। जब उसकी परीक्षा ली गयी तब उसने ‘अपने इकलौते बेटे इसहाक को मानो बलि चढ़ा दिया था।’ (इब्रा. 11:17) वह ऐसा करने के लिए क्यों तैयार हो गया? (इब्रानियों 11:19 पढ़िए।) क्योंकि उसे पुनरुत्थान पर विश्‍वास था। और उसका यह विश्‍वास बेबुनियाद नहीं था। क्या यहोवा ने अब्राहम में संतान पैदा करने की शक्‍ति नहीं लौटायी थी? और क्या उसे और उसकी पत्नी सारा को बुढ़ापे में एक बेटा नहीं दिया था? (उत्प. 18:10-14; 21:1-3; रोमि. 4:19-21) इसके अलावा, यहोवा ने उसे वचन भी दिया था कि “जो तेरा वंश कहलाएगा सो इसहाक ही से चलेगा।” (उत्प. 21:12) इसलिए अब्राहम को पक्का यकीन था कि परमेश्‍वर इसहाक को मरे हुओं में से ज़िंदा कर सकता है।

6, 7. (क) यहोवा ने अब्राहम के साथ क्या करार बाँधा? (ख) यहोवा ने अब्राहम से जो वादा किया, उससे इंसानों को क्या आशा मिली?

6 अब्राहम के बेमिसाल विश्‍वास की वजह से यहोवा ने उसके “वंश” के बारे में उससे एक करार बाँधा। (उत्पत्ति 22:18 पढ़िए।) इस “वंश” का मुख्य भाग यीशु मसीह साबित हुआ। (गला. 3:16) यहोवा ने अब्राहम को बताया कि उसका वंश “आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बाल के किनकों के समान” हो जाएगा। अब्राहम को नहीं पता था कि उसके वंश में ठीक कितने लोग होंगे। (उत्प. 22:17) लेकिन आगे चलकर इस गिनती का खुलासा किया गया। बाइबल बताती है कि अब्राहम का “वंश,” यीशु मसीह और 1,44,000 संगी राजाओं से मिलकर बना है। (गला. 3:29; प्रका. 7:4; 14:1) और मसीहाई राज के ज़रिए ही “सारी जातियां अपने को . . . धन्य मानेंगी।”

7 अब्राहम के साथ जो करार बाँधा गया था, वह शायद उसके मायने पूरी तरह न समझ पाया हो। फिर भी बाइबल कहती है कि “वह एक ऐसे शहर के इंतज़ार में था, जो सच्ची बुनियाद पर खड़ा है।” (इब्रा. 11:10) वह शहर परमेश्‍वर का राज है। उस राज में आशीषें पाने के लिए अब्राहम को फिर से जीना होगा। और पुनरुत्थान के ज़रिए ही वह धरती पर हमेशा के लिए जी पाएगा। अब्राहम के साथ-साथ उन लोगों को भी अनंत जीवन मिलेगा, जो या तो हर-मगिदोन से बचेंगे या जिन्हें दोबारा ज़िंदा किया जाएगा।—प्रका. 7:9, 14; 20:12-14.

‘पवित्र शक्‍ति मुझे उभार रही है’

8, 9. यह क्यों कहा जा सकता है कि अय्यूब की किताब सिर्फ उसकी परीक्षाओं के बारे में ही नहीं बताती?

8 अब्राहम के पर-पोते यूसुफ के बाद और मूसा के भविष्यवक्‍ता बनने से पहले, अय्यूब नाम का एक आदमी जीया था। बाइबल में अय्यूब नाम की किताब शायद मूसा ने लिखी थी। यह किताब बताती है कि क्यों यहोवा ने अय्यूब पर आज़माइशें आने दीं और इसका क्या नतीजा हुआ। मगर यह किताब सिर्फ अय्यूब की परीक्षाओं के बारे में ही नहीं बल्कि उन मसलों के बारे में भी बताती है जिनमें स्वर्ग और पृथ्वी के सभी बुद्धिमान प्राणी शामिल हैं। यह किताब हमें समझाती है कि यहोवा के हुकूमत करने का तरीका सही है और यह भी कि अदन में जो सवाल उठाया गया था, उसका गहरा ताल्लुक हमारी वफादारी और हमारे भविष्य से है। हालाँकि अय्यूब इस मसले से अनजान था, लेकिन अपने तीन दोस्तों की बातें सुनकर उसने यह नहीं सोचा कि वफादारी दिखाने में वह नाकाम हो गया है। (अय्यू. 27:5) अय्यूब की मिसाल से हमारा विश्‍वास मज़बूत होता है कि हम भी परमेश्‍वर के वफादार रह सकते हैं और उसकी हुकूमत बुलंद कर सकते हैं।

9 अय्यूब को झूठा दिलासा देने आए उसके तीन दोस्त जब अपनी-अपनी कह चुके, ‘तब बूजी बारकेल के पुत्र एलीहू ने अपनी बात कहना शुरू किया।’ इसके लिए उसे कहाँ से प्रेरणा मिली? उसने कहा: “मेरे मन में बातें भरी हैं, और . . . आत्मा [“पवित्र शक्‍ति,” NW] मुझे उभार रही है।” (अय्यू. 32:5, 6, 18) एलीहू ने प्रेरणा पाकर जो कहा, वह तब पूरा हुआ जब अय्यूब की परीक्षाएँ खत्म हुईं और यहोवा ने उसे आशीषें दीं। लेकिन उसकी बातें सभी वफादार जनों के लिए भी मायने रखती हैं। और उन्हें आशा देती है कि अगर वे यहोवा के वफादार रहे, तो यहोवा उन्हें आशीषें देगा।

10. किस बात से पता चलता है कि यहोवा एक व्यक्‍ति को जो संदेश देता है, वह बड़े पैमाने पर मानवजाति पर भी लागू होता है?

10 कभी-कभी यहोवा एक व्यक्‍ति को जो संदेश देता है, वह बड़े पैमाने पर पूरी मानवजाति पर भी लागू होता है। इसका एक उदाहरण हमें दानिय्येल की किताब में मिलता है। वहाँ बताया गया है कि बैबिलोन के राजा नबूकदनेस्सर ने एक सपना देखा जिसमें एक विशाल पेड़ काट डाला गया। (दानि. 4:10-27) हालाँकि सपने की बात नबूकदनेस्सर पर पूरी हुई, लेकिन उसकी पूर्ति बड़े पैमाने पर भी होनी थी। इस भविष्यवाणी से यह इशारा मिलता है कि ईसा पूर्व 607 से 2,520 साल बीतने पर दाविद का वंशज एक बार फिर यहोवा की राजगद्दी पर बैठेगा। * सन्‌ 1914 में यीशु मसीह को स्वर्ग में राजा बनाया गया, तब से पृथ्वी पर परमेश्‍वर की हुकूमत दोबारा एक नए रूप में शुरू हो गयी। ज़रा सोचिए, बहुत जल्द यह राज आज्ञा माननेवाले इंसानों की उम्मीदें पूरी करेगा!

“उसे गढ़हे में जाने से बचा ले”

11. एलीहू के शब्द परमेश्‍वर के बारे में क्या दिखाते हैं?

11 एक बार फिर एलीहू की बातों पर ध्यान दीजिए। उसने अय्यूब को जवाब देते वक्‍त ‘एक स्वर्गदूत’ के बारे में कहा ‘जो हज़ारों में से एक मध्यस्थ है’ और “जो मनुष्य को स्मरण दिलाए कि उसके लिए क्या उचित है।” परमेश्‍वर उस मनुष्य पर अनुग्रह करके कहता है, “‘उसे गढ़हे में जाने से छुड़ा ले, मुझे उसकी छुड़ौती का दाम मिल गया है।’ उसकी देह शिशु की-सी कोमल हो जाएगी, वह अपनी जवानी के दिनों में लौट जाएगा।” (अय्यू. 33:23-26, NHT) ये शब्द दिखाते हैं कि परमेश्‍वर, प्रायश्‍चित करनेवाले इंसानों के पापों को ढकने के लिए “छुड़ौती” यानी फिरौती कबूल करने के लिए तैयार है।—अय्यू. 33:24.

12. एलीहू के शब्दों से मानवजाति को क्या आशा मिलती है?

12 एलीहू शायद फिरौती के बारे में पूरी तरह न समझ पाया हो, ठीक जैसे कई भविष्यवक्‍ता भी अपनी दर्ज़ भविष्यवाणियों का मतलब पूरी तरह नहीं समझ पाए। (दानि. 12:8; 1 पत. 1:10-12) फिर भी, एलीहू के शब्दों से मानवजाति को आशा मिलती है कि परमेश्‍वर एक दिन उनकी खातिर फिरौती कबूल करेगा और उन्हें बुढ़ापे और मौत से छुटकारा दिलाएगा। एलीहू के शब्द हमें हमेशा की ज़िंदगी की बेहतरीन आशा देते हैं! अय्यूब की किताब हमें पुनरुत्थान की आशा भी देती है।—अय्यू. 14:14, 15.

13. एलीहू के शब्द मसीहियों के लिए क्या मतलब रखते हैं?

13 एलीहू के शब्द आज उन लाखों मसीहियों के लिए खास मतलब रखते हैं जिन्हें इस दुनिया की व्यवस्था के नाश से बच निकलने की आशा है। बच निकलनेवालों में जो बुज़ुर्ग होंगे, उनकी जवानी के दिन फिर लौट आएँगे। (प्रका. 7:9, 10, 14-17) इसके अलावा, वफादार जनों को इस आशा से बहुत खुशी मिलती है कि वे पुनरुत्थान पाए लोगों को फिर से जवान देखेंगे। मगर एक बात है, अभिषिक्‍त मसीहियों को स्वर्ग में अमर जीवन और यीशु की ‘दूसरी भेड़ों’ को धरती पर हमेशा की ज़िंदगी तभी मिल सकती है, अगर वे मसीह के फिरौती बलिदान में विश्‍वास करें।—यूह. 10:16; रोमि. 6:23.

धरती से मौत का नाश कर दिया जाएगा

14. अनंत जीवन पाने के लिए इसराएलियों को मूसा के कानून से बढ़कर छुड़ौती की ज़रूरत क्यों थी?

14 जब यहोवा ने अब्राहम की संतानों के साथ एक करार बाँधा, तब वे एक नयी जाति बने। उन्हें कानून देते वक्‍त यहोवा ने कहा: “तुम मेरे नियमों और मेरी विधियों को निरन्तर मानना; जो मनुष्य उनको माने वह उनके कारण जीवित रहेगा।” (लैव्य. 18:5) लेकिन इसराएली, कानून के सिद्ध स्तरों का पूरी तरह पालन नहीं कर पाए, इसलिए कानून के मुताबिक वे पापी ठहरे। इस हालात से बचने के लिए उन्हें छुटकारे की ज़रूरत थी।—गला. 3:13.

15. दाविद ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से भविष्य में मिलनेवाली किस आशीष के बारे में लिखा?

15 मूसा के बाद यहोवा ने दूसरे बाइबल लेखकों को भी हमेशा की ज़िंदगी की आशा के बारे में लिखने के लिए प्रेरित किया। (भज. 21:4; 37:29) मिसाल के लिए, दाविद ने अपने एक भजन में सिय्योन पर सच्ची उपासना करनेवालों की एकता के बारे में बताया और उसके आखिर में लिखा: “यहोवा ने तो वहीं सदा के जीवन की आशीष ठहराई है।”—भज. 133:3.

16. यशायाह के ज़रिए, यहोवा ने “सारी पृथ्वी” के भविष्य के बारे में क्या वादा किया है?

16 यहोवा ने यशायाह को धरती पर अनंत जीवन के बारे में भविष्यवाणी करने की प्रेरणा दी। (यशायाह 25:7, 8 पढ़िए।) इंसानों पर पाप और मौत का “पर्दा” पड़ा हुआ है, जिसके नीचे उनका दम घुट रहा है। यहोवा अपने लोगों से वादा करता है कि वह पाप और मौत को “सारी पृथ्वी पर से” सदा के लिए दूर करेगा।

17. यशायाह ने मसीहा की किस भूमिका के बारे में भविष्यवाणी की, जिससे हमेशा की ज़िंदगी का रास्ता खुलता?

17 आइए ज़रा इस बात पर भी गौर करें कि मूसा के कानून में अजाजेल के बकरे के साथ क्या किया जाता था। हर साल, प्रायश्‍चित दिन में महायाजक ‘अपने दोनों हाथों को जीवित बकरे पर रखकर इसराएलियों के सब अधर्म के कामों को अंगीकार करता और बकरे के सिर पर धर देता था। और वह बकरा उनके सब अधर्म के कामों को अपने ऊपर लादे हुए किसी [निर्जन स्थान] में जाता था।’ (लैव्य. 16:7-10, 21, 22) जिस तरह अजाजेल का बकरा इसराएलियों के पापों को उठा ले जाता था, उसी तरह यशायाह ने भविष्यवाणी की कि मसीहा भी “बहुतों के पाप का बोझ,” ‘रोग’ और ‘दुख’ उठाकर उनसे दूर ले जाएगा। इस तरह वह उनके लिए हमेशा की ज़िंदगी का रास्ता खोलेगा।यशायाह 53:4-6, 12 पढ़िए।

18, 19. यशायाह 26:19 और दानिय्येल 12:13 में क्या आशा दी गयी है?

18 यहोवा ने यशायाह के ज़रिए इसराएलियों से कहा: “तेरे मरे हुए लोग जीवित होंगे, मुर्दे उठ खड़े होंगे। हे मिट्टी में बसनेवालो, जागकर जयजयकार करो! क्योंकि तेरी ओस ज्योति से उत्पन्‍न होती है, और पृथ्वी मुर्दों को लौटा देगी।” (यशा. 26:19) इससे साफ पता चलता है कि इब्रानी शास्त्र में पुनरुत्थान और धरती पर हमेशा की ज़िंदगी की आशा दी गयी है। जब दानिय्येल करीब 100 साल का था तब यहोवा ने उसे यह भरोसा दिलाया: “तू विश्राम करेगा और उन दिनों के अन्त में अपना निज भाग पाने के लिए उठ खड़ा होगा।”—दानि. 12:13, NHT.

19 मारथा को आशा थी कि उसका भाई पुनरुत्थान में ज़रूर वापस आएगा, इसलिए वह यीशु से कह सकी: “मैं जानती हूँ कि वह आखिरी दिन मरे हुओं में से जी उठेगा।” (यूह. 11:24) यीशु ने जो शिक्षाएँ दीं और उसके चेलों ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से जो लिखा, क्या उससे यह आशा बदल गयी? क्या यहोवा आज भी इंसानों को धरती पर हमेशा की ज़िंदगी की आशा देता है? इन सवालों के जवाब हम अगले लेख में देखेंगे।

[फुटनोट]

क्या आप समझा सकते हैं?

• इंसानों को किस आशा के आधार पर ‘व्यर्थता के अधीन किया गया’ है?

• किस बात से पता चलता है कि अब्राहम को पुनरुत्थान पर विश्‍वास था?

• एलीहू ने अय्यूब से जो कहा, उससे मानवजाति को क्या आशा मिलती है?

• इब्रानी शास्त्र कैसे ज़ोर देकर बताता है कि इंसानों को पुनरुत्थान और धरती पर हमेशा की ज़िंदगी की आशा है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 5 पर तसवीर]

अय्यूब से कहे एलीहू के शब्द यह आशा देते हैं कि इंसानों को बुढ़ापे और मौत से छुटकारा दिलाया जाएगा

[पेज 6 पर तसवीर]

दानिय्येल को यह भरोसा दिया गया कि वह “उन दिनों के अन्त में अपना निज भाग पाने के लिए उठ खड़ा होगा”