मसीह का प्यार हमें भी प्यार करने के लिए उकसाता है
मसीह का प्यार हमें भी प्यार करने के लिए उकसाता है
“दुनिया में जो [यीशु के] अपने थे जिनसे वह प्यार करता आया था, वह उनसे आखिर तक प्यार करता रहा।”—यूह. 13:1.
1, 2. (क) यीशु के प्यार के बारे में क्या बात ध्यान देने लायक है? (ख) इस लेख में हम क्या देखेंगे?
यीशु ने प्यार की सबसे बेहतरीन मिसाल कायम की। उसने अपने व्यवहार, अपनी बातों, शिक्षाओं और बलिदान से—जी हाँ, हर काम से अपने प्यार का सबूत दिया। धरती पर अपनी ज़िंदगी की आखिरी घड़ी तक उसने लोगों और खासकर अपने चेलों के लिए प्यार दिखाया।
2 यीशु ने प्यार की जो मिसाल कायम की, वह उसके चेलों के लिए एक ऊँचा आदर्श बनी जिस पर वे चले। यीशु की मिसाल हमें भी उकसाती है कि हम उसकी तरह मंडली के सभी भाई-बहनों को, साथ ही बाहरवालों को प्यार दिखाएँ। इस लेख में हम देखेंगे कि जब मंडली में कोई मसीही छोटी-मोटी गलती या गंभीर पाप करता है, तो प्राचीन यीशु की मिसाल पर चलते हुए उन्हें कैसे प्यार दिखा सकते हैं। हम यह भी सीखेंगे कि कैसे यीशु का प्यार मसीहियों को उन भाई-बहनों की मदद करने के लिए उभारता है जो तंगी, आफत या बीमारी का सामना करते हैं।
3. पतरस ने यीशु को जानने से इनकार किया, फिर भी यीशु उसके साथ कैसे पेश आया?
3 यीशु की मौत से पहले की रात, उसके अपने ही चेले पतरस ने तीन बार उसे जानने से इनकार कर दिया। (मर. 14:66-72) लेकिन यीशु ने कहा था कि पतरस पश्चाताप कर लौट आएगा। और जब पतरस ने ऐसा किया तो यीशु ने उसे माफ कर दिया और उसे बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ दीं। (लूका 22:32; प्रेषि. 2:14; 8:14-17; 10:44, 45) जो लोग गंभीर पाप करते हैं, उनके साथ पेश आने के बारे में हम यीशु के स्वभाव से क्या सीख सकते हैं?
गुनहगारों के साथ मसीह जैसा स्वभाव दिखाइए
4. खासकर किन हालात में मसीह के जैसा स्वभाव दिखाया जाना चाहिए?
4 ज़िंदगी में ऐसे कई हालात आते हैं जिनमें मसीह के जैसा मन का स्वभाव दिखाने की ज़रूरत होती है। और सबसे मुश्किल हालात तब पैदा होते हैं, जब मंडली या घर का कोई सदस्य गंभीर पाप करता है। अफसोस कि जैसे-जैसे शैतान की दुनिया का अंत करीब आ रहा है, लोगों के नैतिक स्तरों पर दुनिया की फितरत का बुरा असर बढ़ता ही जा रहा है। जहाँ देखो वहाँ लोग बुराई करने पर आमादा हैं या उन्हें अच्छे-बुरे, सही-गलत की कोई परवाह नहीं रह गयी है। उनके रवैए का हम पर भी बुरा असर हो सकता है और सही काम करने का हमारा इरादा कमज़ोर पड़ सकता है। पहली सदी में कुछ लोगों को मसीही मंडली से बहिष्कार किया गया था, तो कुछ लोगों को ताड़ना दी गयी थी। आज हमारे समय में भी कुछ ऐसा ही किया जाता है। (1 कुरिं. 5:11-13; 1 तीमु. 5:20) फिर भी इन मामलों से निपटते वक्त जब प्राचीन, मसीह के जैसा प्यार दिखाते हैं तो गुनहगार पर इसका गहरा असर होता है।
5. गुनहगार के साथ पेश आते वक्त प्राचीन कैसे मसीह के जैसा स्वभाव दिखा सकते हैं?
5 यीशु की तरह, प्राचीनों को हर समय उन स्तरों पर चलना चाहिए जो यहोवा की नज़र में सही हैं। ऐसा करने से वे यहोवा के जैसी कोमलता, कृपा और प्यार ज़ाहिर करेंगे। जब कोई अपने पाप की वजह से ‘टूटा’ और ‘पिसा हुआ’ महसूस करता है और सच्चा पछतावा दिखाता है, तो शायद प्राचीनों के लिए ‘कोमलता की भावना के साथ ऐसे इंसान को सुधारना’ मुश्किल न हो। (भज. 34:18; गला. 6:1) लेकिन प्राचीनों को उनके साथ कैसा बरताव करना चाहिए जो नाफरमान होते हैं और जिन्हें अपने किए पर रत्ती-भर पछतावा नहीं होता?
6. गुनहगारों के साथ पेश आते वक्त प्राचीनों को किस बात से खबरदार रहना चाहिए? और क्यों?
6 जब कोई गुनहगार बाइबल से मिलनेवाली सलाह ठुकरा देता है या अपनी गलती किसी और पर थोपने की कोशिश करता है, तो शायद प्राचीनों और दूसरे लोगों को गुस्सा आए। और क्योंकि वे जानते हैं कि गुनहगार के गलत कदम से क्या नुकसान पहुँचा है, हो सकता है उनका मन करे कि उसके गलत काम और रवैए के लिए उसे खरी-खोटी सुनाएँ। लेकिन याद रखिए गुस्सा करने से कभी किसी का भला नहीं हुआ है और न ही यह दिखाएगा कि हममें “मसीह का मन” है। (1 कुरिं. 2:16; याकूब 1:19, 20 पढ़िए।) भले ही यीशु ने अपने दिनों के कुछ लोगों को सीधे शब्दों में चेतावनी दी, मगर उसने कभी-भी चुभनेवाली बातें नहीं कहीं। (1 पत. 2:23) इसके बजाय, उसने अपनी बातों और कामों से जताया कि गुनहगार सच्चा पश्चाताप कर यहोवा की मंज़ूरी फिर से पा सकते हैं। सच तो यह है कि यीशु इस दुनिया में खासकर इसलिए आया था कि “पापियों का उद्धार” कराए।—1 तीमु. 1:15.
7, 8. न्यायिक कार्रवाई करते वक्त क्या बात प्राचीनों की मदद करेगी?
7 यीशु की मिसाल से हम क्या सीखते हैं? जब मंडली में किसी को ताड़ना दी जाती है, तो उनकी तरफ हमारा नज़रिया कैसा होना चाहिए? याद रखिए कि मंडली में न्यायिक कार्रवाई करने के बारे में बाइबल जो निर्देशन देती है, उससे झुंड की हिफाज़त होती है। और इस कार्रवाई से शायद गुनहगार पश्चाताप करने के लिए उभारा जाए। (2 कुरिं. 2:6-8) दुख की बात है कि कुछ मसीही पश्चाताप नहीं दिखाते इसलिए उन्हें मंडली से बहिष्कार किया जाता है। मगर खुशी की बात यह है कि इनमें से कई बाद में यहोवा के पास और उसकी मंडली में लौट आते हैं। जब प्राचीन, मसीह के जैसा स्वभाव दिखाते हैं तो गुनहगार के लिए सच्चा पश्चाताप करना और वापस आना आसान हो जाता है। बहिष्कृत किए गए कुछ लोगों को शायद बाइबल से दी प्राचीनों की तमाम सलाह याद न रहें। मगर उन्हें यह ज़रूर याद रहता है कि प्राचीन उनके साथ इज़्ज़त और प्यार से पेश आए थे। और यही बात उन्हें मंडली में लौट आने को उकसाएगी।
8 इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि प्राचीन “परमेश्वर की पवित्र शक्ति का फल” दिखाएँ, खासकर मसीह के जैसा प्यार। ऐसा उन्हें तब भी करना चाहिए जब गुनहगार बाइबल से दी सलाह नहीं मानता। (गला. 5:22, 23) उन्हें, गुनहगार को मंडली से बहिष्कार करने में जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। उन्हें गलती करनेवाले को यह दिखाना चाहिए कि वे दिल से चाहते हैं, वह यहोवा के पास लौट आए। इसलिए बहुतों की तरह, जब एक गुनहगार आगे चलकर पश्चाताप दिखाता है, तो वह शायद यहोवा का दिल से एहसानमंद हो। और “आदमियों के रूप में तोहफे” यानी प्राचीनों का भी शुक्रगुज़ार हो, जिन्होंने मंडली में वापस आने में उसकी मदद की।—इफि. 4:8, 11, 12.
अंत के समय में मसीह जैसा प्यार दिखाना
9. एक उदाहरण देकर बताइए कि कैसे यीशु ने अपने चेलों के लिए प्यार दिखाया।
9 यीशु ने अपने चेलों के लिए प्यार कैसे दिखाया, इसका एक बढ़िया उदाहरण लूका की किताब में दर्ज़ है। यीशु जानता था कि आगे चलकर रोमी सैनिक यरूशलेम नगर का नाश करने के लिए उसे घेर लेंगे और वहाँ रहनेवालों का नगर से भागना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए उसने अपने चेलों के लिए प्यार दिखाते हुए उन्हें खबरदार किया, “जब तुम यरूशलेम को डेरा डाली हुई फौजों से घिरा हुआ देखो, तब जान लेना कि उसके उजड़ने का समय पास आ गया है।” उन्हें क्या करना था? यीशु ने अपने चेलों को इस सिलसिले में पहले से साफ शब्दों में हिदायत दी। उसने कहा, “जो यहूदिया में हों, वे पहाड़ों की तरफ भागना शुरू कर दें और जो यरूशलेम शहर के अंदर हों, वे बाहर निकल जाएँ और जो देहातों में हों वे इस शहर के अंदर न जाएँ। क्योंकि ये दिन बदला चुकाने के दिन होंगे, ताकि जितनी बातें लिखी हैं वे सब पूरी हों।” (लूका 21:20-22) ईसवी सन् 66 में जब रोमी सेना ने यरूशलेम को घेर लिया, तब यीशु के चेले उसकी हिदायतें मानते हुए यरूशलेम से भाग निकले।
10, 11. यरूशलेम से भागनेवाले मसीहियों के वाकये पर ध्यान देने से हमें “महा-संकट” के लिए तैयार होने में कैसे मदद मिलती है?
10 यरूशलेम से भागते वक्त, मसीहियों को एक-दूसरे के लिए प्यार दिखाना था, ठीक जैसे मसीह ने उनके लिए दिखाया था। उनके पास जो कुछ था उसे उन्हें आपस में बाँटने की ज़रूरत थी। यीशु की इस भविष्यवाणी की एक और पूर्ति बड़े पैमाने पर होनी थी। यीशु ने बताया था, “इसके बाद ऐसा महा-संकट होगा जैसा दुनिया की शुरूआत से न अब तक हुआ और न फिर कभी होगा।” (मत्ती 24:17, 18, 21) भविष्य में आनेवाले “महा-संकट” से पहले और उसके दौरान, हमें भी शायद कई मुश्किलों और तंगी का सामना करना पड़े। लेकिन मसीह के जैसा मन का स्वभाव होने से हम इन मुश्किलों को पार कर पाएँगे।
11 महा-संकट से पहले और इसके दौरान, हमें यीशु की मिसाल पर चलना चाहिए और निस्वार्थ प्रेम दिखाना चाहिए। इस बारे में पौलुस सलाह देता है: “हरेक अपने पड़ोसी को उन बातों में खुश करे जो उसके भले के लिए हैं और जिनसे उसे मज़बूती मिलती है। इसलिए कि मसीह ने भी खुद को खुश नहीं किया, . . . धीरज और दिलासा देनेवाला परमेश्वर तुम्हें ऐसी आशीष दे कि तुम्हारे मन का स्वभाव वैसा ही हो जैसा मसीह यीशु का था।”—रोमि. 15:2, 3, 5.
12. आज हमें किस तरह का प्यार बढ़ाने की ज़रूरत है? और क्यों?
12 पतरस जिसने खुद यीशु से प्यार पाया, मसीहियों को उकसाता है कि वे अपने अंदर “भाईचारे का निष्कपट प्यार” बढ़ाएँ और ‘सच्चाई के वचन को माननेवाले’ बनें। (1 पत. 1:22) आज हमें पहले से कहीं ज़्यादा मसीह के जैसे गुण पैदा करने की ज़रूरत है, क्योंकि परमेश्वर के सभी सेवकों पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है। हमें इस दुनिया के किसी भी हिस्से पर भरोसा नहीं रखना चाहिए। हाल ही में दुनिया की आर्थिक व्यवस्था में जो उथल-पुथल हुई है, वह इस बात का सबूत है कि शैतान की दुनिया का कोई भी हिस्सा भरोसे लायक नहीं है। (1 यूहन्ना 2:15-17 पढ़िए।) इसके बजाय, इस दुनिया का अंत जैसे-जैसे नज़दीक आ रहा है, हमें यहोवा और एक-दूसरे के और भी करीब आने की ज़रूरत है। साथ ही, हमें चाहिए कि हम मंडली के भाई-बहनों से गहरी दोस्ती करें। पौलुस सलाह देता है, “आपस में भाइयों जैसा प्यार दिखाते हुए एक-दूसरे के लिए गहरा लगाव रखो। एक-दूसरे का आदर करने में पहल करो।” (रोमि. 12:10) पतरस ने इसी बात पर ज़ोर देते हुए कहा, “सबसे बढ़कर, एक-दूसरे के लिए गहरा प्यार रखो, क्योंकि प्यार ढेर सारे पापों को ढक देता है।”—1 पत. 4:8.
13-15. कुदरती आफतों के बाद कुछ भाइयों ने किस तरह मसीह के जैसा प्यार दिखाया?
13 दुनिया-भर में, यहोवा के साक्षी मसीह की तरह सच्चा प्यार दिखाने के लिए जाने जाते हैं। गौर कीजिए कि साक्षियों ने तब क्या किया जब 2005 में अमरीका के दक्षिणी इलाकों में हरीकेन ने बड़े पैमाने पर तबाही मचायी। मसीह की मिसाल ने 20,000 से भी ज़्यादा साक्षियों को उभारा कि वे अपने अच्छे-खासे घर और पक्की नौकरियाँ छोड़कर उन इलाकों में रहनेवाले अपने भाइयों की मदद करें।
14 एक इलाके में, समंदर से इतना भयंकर तूफान उठा कि पानी दीवार-सा 30 फुट ऊँचा हो गया और बड़े-बड़े डग भरते हुए 80 किलोमीटर तक फैली आबादी को अपनी चपेट में ले लिया। इससे एक तिहाई घर और दूसरी इमारतें तहस-नहस हो गयीं। ऐसे में अलग-अलग देशों के साक्षी मदद के लिए आगे आए और अपने साथ घर बनाने का सामान और औज़ार लाए। कुछ साक्षियों में इमारत खड़ी करने या उनकी मरम्मत करने का हुनर भी था। ये सभी साक्षी ज़रूरत के मुताबिक कोई भी काम करने को तैयार थे। दो सगी बहनों की मिसाल लीजिए जो विधवा हैं। वे एक छोटे-से ट्रक में अपना सामान लादकर उस इलाके के भाइयों की मदद के लिए निकल पड़ीं। इसके लिए उन्हें 3,000 किलोमीटर से भी ज़्यादा लंबा सफर तय करना पड़ा। उनमें से छोटी बहन अब भी उस इलाके में राहत समिति की मदद कर रही है और पायनियर के तौर पर सेवा भी कर रही है।
15 उस इलाके में 5,600 से भी ज़्यादा साक्षियों और दूसरे लोगों के घरों की या तो मरम्मत की गयी या फिर नए घर बनाए गए। ऐसा सच्चा प्यार देखकर वहाँ के साक्षियों ने कैसा महसूस किया? एक बहन जिसका घर तबाह हो गया था, एक छोटे-से ट्रेलर (चार पहियोंवाला घर जो किसी गाड़ी के सहारे खींचा जाता है) में रहने लगी। ट्रेलर की छत टपकती थी और बहन के पास खाना बनाने के लिए सिर्फ एक टूटा चूल्हा था। उस बहन के लिए भाइयों ने एक घर बनाया, जो ज़्यादा बड़ा नहीं था मगर उसमें वह आराम से रह सकती थी। जब उसने अपना नया घर देखा, तो उसका दिल भर आया और वह रो पड़ी। वह यहोवा और अपने भाइयों की दिल से एहसानमंद थी। उस इलाके में कई साक्षी ऐसे भी थे जिनके नए घर बनने के बाद भी वे कच्चे घरों में रहे। वह क्यों? वह इसलिए ताकि राहत काम करनेवाले भाई-बहन उनके नए घरों में रह सकें। मसीह के जैसा मन का स्वभाव दिखाने की क्या ही बढ़िया मिसाल!
बीमारों की तरफ मसीह के जैसा रवैया दिखाना
16, 17. हम किन तरीकों से बीमार लोगों की तरफ मसीह जैसा रवैया दिखा सकते हैं?
16 हममें से कुछ लोग ही ऐसे होंगे जिन्हें बड़ी-बड़ी कुदरती आफतों का सामना करना पड़ा हो। लेकिन लगभग सभी को सेहत से जुड़ी तकलीफें झेलनी पड़ती हैं, फिर चाहे ये खुद हम पर आएँ या हमारे परिवार के सदस्यों पर। यीशु ने बीमार लोगों की तरफ जैसा रवैया दिखाया, उससे हम काफी कुछ सीख सकते हैं। उसके दिल में लोगों के लिए प्यार था, इसलिए वह उनकी हालत देखकर तड़प उठता था। जब भीड़ उसके पास बीमारों को लेकर आयी, तो “उसने उन सभी लोगों को चंगा किया जो तकलीफ के मारे थे।”—मत्ती 8:16; 14:14.
17 आज भले ही मसीहियों के पास लोगों को चंगा करने की शक्ति नहीं है। लेकिन वे यीशु की मिसाल पर चलते हुए बीमारों के साथ दया और हमदर्दी से पेश आते हैं। कैसे? एक तरीका है कि प्राचीन, मंडली में बीमार भाई-बहनों की मदद करने का इंतज़ाम करते हैं और इस बात का खयाल रखते हैं कि उसके मुताबिक उन्हें मदद मिल रही है या नहीं। इस तरह प्राचीन मत्ती 25:39, 40 (पढ़िए) में दिए सिद्धांत के मुताबिक चलते हैं। *
18. दो बहनों ने कैसे एक बीमार बहन के लिए सच्चा प्यार दिखाया? और उसका क्या नतीजा हुआ?
18 बेशक, दूसरों का भला करने के लिए यह ज़रूरी नहीं कि हम एक प्राचीन हों। चवालीस साल की शारलीन के मामले पर गौर कीजिए। उसे कैंसर था और उसे बताया गया था कि वह सिर्फ दस दिन की मेहमान है। मंडली में दो बहनें, शैरन और नीकोलेट ने देखा कि शारलीन को मदद की ज़रूरत है और उसके पति उसकी देखभाल करते-करते पस्त हो चुके हैं। तब ये दोनों बहनें शारलीन की चौबीसों घंटे देखभाल करने के लिए आगे आयीं। हालाँकि डॉक्टर ने कहा था कि शारलीन सिर्फ दस दिन ज़िंदा रहेगी, मगर वह छः हफ्ते तक ज़िंदा रही। फिर भी इन बहनों ने उस पूरे समय के दौरान उसकी देखभाल की और आखिर तक अपने सच्चे प्यार का सबूत दिया। शैरन कहती है, “जब हमें मालूम होता है कि एक व्यक्ति ज़्यादा दिनों तक ज़िंदा नहीं रहेगा, तो उस हकीकत को कबूल करना मुश्किल होता है। लेकिन यहोवा ने हमें ताकत दी। इस अनुभव से हम यहोवा और एक-दूसरे के और भी करीब आए।” शारलीन का पति कहता है: “इन दोनों बहनों ने जिस तरह प्यार से हमारी मदद की उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। उन्होंने निस्वार्थ भावना से शारलीन की देखभाल की और अच्छी-अच्छी बातें कर उसे खुश रखने की कोशिश की। इस वजह से मेरी प्यारी पत्नी के लिए इस आखिरी आज़माइश का सामना करना आसान हो गया। साथ ही, उन बहनों की बदौलत मेरे थके शरीर और मन को वह आराम मिला जिसकी मुझे सख्त ज़रूरत थी। मैं हमेशा उनका शुक्रगुज़ार रहूँगा। उनकी त्याग की भावना से यहोवा पर मेरा विश्वास मज़बूत हुआ और भाइयों की सारी बिरादरी के लिए मेरा प्यार बढ़ा है।”
19, 20. (क) हमने यीशु के स्वभाव के किन पाँच पहलुओं पर गौर किया? (ख) आपने क्या करने की ठान ली है?
19 इन तीन अध्ययन लेखों में हमने यीशु के स्वभाव के पाँच पहलुओं पर गौर किया और सीखा कि हम उसकी तरह अपनी सोच कैसे ढाल सकते हैं और किस तरह उसके जैसे काम कर सकते हैं। आइए हम यीशु की तरह ‘कोमल-स्वभाव के और दिल से दीन’ हों। (मत्ती 11:29) हमारी यह कोशिश भी होनी चाहिए कि हम दूसरों के साथ कृपा से पेश आएँ, तब भी जब हमें उनकी गलतियाँ और कमज़ोरियाँ साफ नज़र आती हैं। आइए हम आज़माइशों में भी हिम्मत दिखाएँ और यहोवा की हर आज्ञा का पालन करें।
20 आखिरी बात, हम एक-दूसरे के लिए वैसा प्यार दिखाएँ जैसा मसीह ने “आखिर तक” दिखाया था। ऐसे प्यार से ही हम जाने जाते हैं कि हम यीशु के सच्चे चेले हैं। (यूह. 13:1, 34, 35) जी हाँ, “भाइयों की तरह एक-दूसरे से प्यार करते” रहिए। (इब्रा. 13:1) ऐसा करने से पीछे मत हटिए! अपनी ज़िंदगी यहोवा की महिमा करने और दूसरों की मदद करने में लगा दीजिए। यकीन मानिए, यहोवा आपकी कोशिशों पर ज़रूर आशीष देगा।
[फुटनोट]
^ 1 जुलाई, 1987 की प्रहरीदुर्ग में “कहने से अधिक करें: ‘गर्म रहो और तृप्त रहो’” लेख देखिए।
क्या आप समझा सकते हैं?
• गुनहगारों के साथ पेश आते वक्त प्राचीन कैसे मसीह के जैसा स्वभाव दिखा सकते हैं?
• अंत के इस समय में मसीह जैसा प्यार दिखाना क्यों बहुत ज़रूरी है?
• हम बीमारों की तरफ मसीह जैसा रवैया कैसे दिखा सकते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 17 पर तसवीर]
प्राचीन चाहते हैं कि गलती करनेवाले यहोवा के पास लौट आएँ
[पेज 18 पर तसवीर]
यरूशलेम से भागनेवाले मसीहियों ने किस तरह यीशु के जैसा स्वभाव दिखाया?
[पेज 19 पर तसवीर]
यहोवा के साक्षी मसीह की तरह सच्चा प्यार दिखाने के लिए जाने जाते हैं